कभी न कभी आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी, ‘लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सज़ा पाई। गुस्से और क्षणिक आवेग में अच्छा भला इंसान ऐसा कोई अपराध, भूल, भटकाव और अक्षम्य गलती कर जाता है, जिससे उसकी सारी ज़िन्दगी की तपस्या तार-तार हो जाती है। मुंबई के पश्चिम उपनगर दहिसर क्षेत्र के निवासी निकेश ने अपनी प्रिय 40 वर्षीय पत्नी निर्मला की इसलिए गला दबाकर नृशंस हत्या कर दी, क्योंकि उसने साबूदाने की खिचड़ी में ज्यादा नमक डालने की भूल कर दी थी। निकेश अपने मन को शांत रखने के लिए पिछले कई वर्षों से शुक्रवार का व्रत रखता चला आ रहा था। अब निकेश जेल में है। उनका बारह वर्षीय बेटा जो इस हत्या का प्रत्यक्ष गवाह है अकेले जीने को विवश है।
मुंबई के 76 वर्षीय काशीराम पाटील को निर्धारित समय पर नाश्ता नहीं मिला तो वे तिलमिला गये। उनका यह क्रोध उतरा अपने बेटे की पत्नी पर, जिसने अपने ससुर को दिन के 11 बज जाने के बाद भी नाश्ते से वंचित रखा था। नाश्ता देने में हुई देरी की वजह जानने की बजाय उम्रदराज ससुर ने अपनी कमर में खोंसी रिवॉल्वर निकाली और बहू के सीने में अंधाधुंध गोलियां उतार दीं। इन महाशय की भी बाकी बची उम्र जेल में ही गुजर रही है। देहसुख के लिए साथी और बिस्तर बदलने वाली इंद्राणी मुखर्जी साढ़े छह वर्ष तक जेल में कैद रहने के बाद जब जमानत पर बाहर आई तो एक बार फिर से लोगों को उसकी खूनी कहानी की याद हो आई। भोग विलास को ही सब कुछ मानती रही इंद्राणी अपनी जेल यात्रा पर किताब लिखने की सोच रही है। पता नहीं उसे किसने कह दिया है कि अपनी ही बेटी की हत्यारी के लिखे शब्दों को लोग पढ़ने को आतुर हैं। इंद्राणी की बेटी शीना की 2012 में हत्या हुई थी। हाई प्रोफाइल जीवन जीने वाली इंद्राणी शीना को अपनी बहन बताती थी। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे इतनी बड़ी बेटी की मां समझे। उसने अपनी ही पुत्री को इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि वह अपने ही सौतेले भाई से प्यार करने लगी थी। शीना हत्याकांड के अथाह सनसनीखेज खुलासों ने देश और दुनिया को चौंका दिया था। न्यूज चैनल वाले उसके काले इतिहास को महीनों दिखाते और दोहराते रहे थे। बेटी की ये हत्यारी जानी-मानी मीडिया की हस्ती होने के साथ देश में प्राइवेट टीवी चैनलों को कामयाबी का स्वाद चखाने वाले प्रतिष्ठित चेहरे पीटर मुखर्जी की फैशनेबल पत्नी भी थी। वर्षों तक जेल की काली कोठरी में बंद रही इंद्राणी अपने जिस्म के जलवे दिखाने को लेकर अतीत में कितनी सतर्क रही होगी उसका पता इससे चलता है कि जब वह कैदी थी तो उसके बाल पूरी तरह से सफेद हो चुके थे, लेकिन जब वह बाहर निकली तो उसने अपने बाल रंग रखे थे। उसकी यह रंगत यह भी कह रही थी कि उसे अपनी बेटी की हत्या करने का कोई दुख नहीं है। वह तो बस अब फिर से रंगरेलियां मनाने को आतुर है। रईसों का अपने गुनाहों पर प्रायश्चित करने का यह भी एक तरीका है।
नवजोत सिंह सिद्धू ने 27 दिसंबर 1988 में पटियाला में कार पार्किंग को लेकर उम्रदराज गुरनाम सिंह को इतनी जोर का मुक्का मारा, जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये थे। क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू का यकीनन हत्या करने का इरादा नहीं रहा होगा, लेकिन क्रोध में आकर की गई भूल अभी तक उसका पीछा कर रही है। पंजाब के विधानसभा चुनाव में उसे बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। उसके बड़बोलेपन ने उसे वो धूल चटायी, जिसकी शर्मिंदगी उसके चेहरे पर चस्पा हो गई। सिद्धू जब बोलते हैं तो लोग सुनते हैं। मज़ाक उड़ाने वाले भी कम नहीं। अपने आप को हमेशा दमखम वाला दर्शाता यह नेता पहले भी अदालती सज़ा के झटके झेल चुका है, लेकिन इस बार की एक साल की सश्रम कारावास ने उस पर चिंता और गम की ऐसी चादर ओढ़ा दी है, जिसे आसानी से उतार पाना संभव नहीं। वर्षों पहले की गई उन्मादी भूल आज भी सन्नाटे भरी रातों में उसकी नींद उड़ाती होगी। मन में कहीं न कहीं यह विचार भी आता ही होगा कि काश! तब खुद को क्रोध के चंगुल से बचा लिया होता तो ये काले दिन और डरावनी रातें न देखनी पड़तीं।
कुछ दिन पहले अखबार में खबर पड़ी कि मुंबई में एक दुल्हे ने इसलिए शादी ही तोड़ दी, क्योंकि वधु पक्ष ने जो निमंत्रण पत्रिका छपवायी उसमें उसकी डिग्री नहीं छापी गई थी। अपने भावी पति की जिद्दी कारस्तानी ने वधु को इतनी जबरदस्त ठेस पहुंचायी कि उसने खुदकुशी करने की ठान ली। उसे किसी तरह से घरवालों ने मनाया, समझाया-बुझाया, लेकिन शादी टूटने की शर्मिंदगी से वह अभी तक नहीं उबर पाई है। दुल्हे मियां फरार हैं। पुलिस दिन-रात उसे दबोचने की कसरत में लगी है। यह अहंकारी और क्रोधी इंसान जहां भी होगा, चैन से तो नहीं होगा। अपनी क्षणिक गलती पर माथा भी पीट रहा होगा।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया यकीनन एक बेहतर और सशक्त माध्यम है, लेकिन कुछ लोग एक-दूसरे को नीचा दिखाते हुए अरे-तुरे में लगे हैं। यहां-वहां के आवेश में आकर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर खुद के लिए मुसीबत खड़े कर रहे हैं। अभी हाल ही में मराठी फिल्म अभिनेत्री केतकी चितले को देश के प्रतिष्ठित राजनेता शरद पवार के खिलाफ बेहूदी टिप्पणी करने के आरोप में हिरासत में लिया गया। केतकी संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायियों पर भी घटिया शब्दों की बौछार कर चुकी है। अपने विचारों पर नियंत्रण न रख पाने वाले ऐसे ढेरों लोग हैं, जो कड़ी सज़ा के हकदार हैं। सतही प्रचार और मनोरंजन के लिए दूसरों को अपमानित करने और पीड़ा पहुंचाने का यह खेल सोशल मीडिया के सुलभ हो जाने के बाद कुछ ऐसा बढ़ा है, जो भले लोगों के लिए चिंता, परेशानी का सबब बन गया है। समाज में जानबूझकर द्वेष व क्रोध का वातावरण बनाने वालों की वजह से एक अच्छे-खासे आपसी समन्वय कायम करने वाले माध्यम को कटुता और वैमनस्य का मंच बनाने की तो जैसे चालें ही चली जा रही हैं। उन्माद और गुस्से पर काबू पाने के लिए जानकार डॉक्टर कई उपाय सुझाते हैं, जिनका अनुसरण कर अपनी ज़िन्दगी को तबाह होने से बचाया जा सकता है। क्रोध के कारण शरीर को भी नुकसान होता है। ब्लडप्रेशर से लेकर हृदयरोग तक होना संभव हैं। किसी ने आपका फोन नहीं उठाया, कोई बेअदबी पर उतर आया या किसी ने आपका आदेश नहीं माना तो अपना पारा नहीं बढ़ाना कई संकटों से बचाता है।
Thursday, May 26, 2022
लम्हों की खताएं, दिलाएं लंबी सज़ाएं
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