चित्र : 1 - सविता प्रधान आज आईएएस अधिकारी हैं। सभी झुक-झुक कर उन्हें बड़ी अदब के साथ सलाम करते हैं। मध्यप्रदेश के मंडी के एक आदिवासी परिवार में जन्मी सविता की संघर्ष गाथा से जो भी अवगत होता है, वह बस सोचता रह जाता है। पूरी तरह से बिखरने के बाद खुद को जोड़ने और संभालने की शक्ति और हिम्मत इस नारी ने कहां से पायी? अपने माता-पिता की इस तीसरी संतान की पढ़ाई में बचपन से ही जबरदस्त अभिरुचि थी, लेकिन घर के हालात अच्छे नहीं थे। हमेशा आर्थिक तंगी सिर ताने रहती थी। यह तो उसकी किस्मत अच्छी थी कि स्कॉलरशिप मिल गई और आगे की पढ़ाई संभव हो पायी। वह रोज सात किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाती और थककर घर लौटने पर भी कलेक्टर बनने की प्रबल चाह के साथ किताबों में खो जाती थी। चंचल और खूबसूरत सविता किसी के साथ घुलने-मिलने में देरी नहीं लगाती थी। यही वजह थी, सभी उसे पसंद करते थे। सविता को पढ़ाई के अलावा और कुछ नहीं सूझता था, लेकिन गरीब माता-पिता को उसकी शादी की चिन्ता खाये रहती थी। इसी दौरान एक अच्छे-खासे रईस घराने से उसके लिए रिश्ता आया तो माता-पिता ने हामी भरने में देरी नहीं की। दरअसल, लड़के ने सविता को कहीं देखा था और उसकी खूबसूरती पर मर मिटा था। उसने अपने मां-बाप को सविता से शादी करने के लिए बड़ी मुश्किल से मनाया था। सविता रोती-गाती समझाती रही कि अभी उसकी शादी करने की उम्र नहीं। अभी तो उसे अपने सपने को साकार करना है, लेकिन जिद्दी घरवाले नहीं माने। उसको तसल्ली देने के लिए उन्होंने उसके समक्ष उन लड़कियों के उदाहरण भी पेश कर दिए, जिन्होंने ब्याह के बाद भी पढ़ाई-लिखाई जारी रखी और अपने सपने पूरे कर दिखाए। शादी के बाद सविता अपनी ससुराल पहुंची। शुरू-शुरू के दिन अच्छे बीते। सास-ससुर भी ठीक-ठाक लगे। पति ने भी प्यार बरसाया, लेकिन कालांतर में सास-ससुर का रंग बदलने लगा। गरीब माता-पिता की बेटी होना मुसीबत बन गया। माता-पिता के इशारे पर नाचने वाले पति ने अपनी असली औकात दिखानी प्रारंभ कर दी। जब सविता ने अपनी पढ़ाई जारी रखने की मंशा जतायी तो उसे डांटा-फटकारा गया। दरअसल, वो ऐसा सर्वसम्पन्न धनवान परिवार था, जिनके लिए अपनी बेटियां तो अनमोल थीं, लेकिन बहुओं का कोई मोल न था। बेटियों को किसी के साथ भी बोलने-बतियाने, हंसने, मुस्कराने और कहीं भी आने-जाने की खुली छूट थी, लेकिन बहुओं पर हजारों पाबंदियां थीं। सविता किसी के साथ हंस बोल लेती तो उससे सवाल किये जाने लगते। घर के सभी सदस्य उससे दूरी बनाये रहते। सभी के खा-पी लेने के बाद उसे खाना नसीब होता। कई बार तो खाना खत्म हो जाता और सविता को भूखे पेट सोना पड़ता। भूख तो भूख होती है। रसोई में खाना बनाते-बनाते वह दो-चार रोटियां छिपाकर रख लेती और मौका मिलने पर खा लेती। कई बार तो उसे बाथरूम में जाकर सूखी रोटी निगलनी पड़ी और पानी पीकर जैसे-तैसे सोना पड़ा। जब वह पहली बार गर्भवती हुई तो उसके मन में यह उम्मीद जागी कि अब उसके प्रति उनका व्यवहार बदलेगा, लेकिन यह उसका भ्रम था। दो बच्चों के जन्म के बाद भी सास-ससुर कटु बोलों की बरसात करने से बाज नहीं आए। शराबी पति ने भी मारना-पीटना नहीं छोड़ा। ऐसे में सविता ने खुदकुशी करने का पक्का मन बना लिया। एक रात फांसी के फंदे पर झूलने के लिए वह अपने कमरे में पहुंची तो उसने देखा कि खुली खिड़की से सास उसे देख रही है। उसे उम्मीद थी कि सास उसे रोकेगी, लेकिन उसे फांसी के फंदे के करीब देखकर भी जिस तरह से सास खुद को बेखबर, बेपरवाह दर्शाती रही उससे सविता को बहुत झटका लगा। वह समझ गई कि उसके मरने का ही इंतजार किया जा रहा है। तब एकाएक उसके मन में विचार आया कि वह खुद को किस कसूर की सज़ा देने पर उतारू है? सज़ा तो इन्हें मिलनी चाहिए जो बाहरी लोगों के लिए भद्र और शालीन हैं, लेकिन अपनी बहू के लिए किसी राक्षस से कम नहीं। सुबह-सुबह सविता कभी न लौटने की कसम के साथ दोनों बच्चों के संग नए संघर्ष के पथ पर चल पड़ी। एक पार्लर में काम करने के साथ-साथ इंदौर यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स किया। पहले ही प्रयास में यूपीएससी क्लियर कर अपनी किस्मत ही बदल डाली। आज सविता का नाम बड़े गर्व के साथ मध्यप्रदेश के शीर्ष अधिकारियों में लिया जाता है...।
चित्र : 2 - कोरोना काल की याद आज भी उन कई लोगों को डरा देती है, जिन्होंने अपनो को खोने के साथ-साथ अनेक कष्ट भोगे। ऐसे लोगों की अथाह भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिनकी कोविड-19 ने जिन्दगी ही बदल दी। रेशमा को पीने की लत थी। जंकफूड के बिना उसका एक दिन भी गुजारा नहीं था। दोस्तों को नशे की पार्टियां देने का भी उसे खर्चीला शौक था। उसका जिस शख्स से ब्याह हुआ था वह दिन-रात पीने का लती था। मिलन की पहली रात में ही उसने रेशमा को शराब का स्वाद चखा दिया। बाद में एक समय ऐसा आया जब पत्नी अपने शराबी पति को मात देने लगी। अत्याधिक नशा करने के कारण पति की कोरोना काल से पहले हमेशा-हमेशा के लिए रवानगी हो गई। हमेशा नशे में टुन्न रहने वाली रेशमा को पता ही नहीं चला कि वह कब उच्च रक्तचाप तथा डायबिटीज की गंभीर रोगी हो गई। एक दिन ऐसा भी आया जब उसने बिस्तर पकड़ लिया और फिर कोमा में चली गई। तभी कोरोना के भयंकर तांडव के चलते लॉकडाउन लग गया। महंगे डॉक्टरों के इलाज से रेशमा जैसे-तैसे चलने-फिरने लगी। स्वस्थ होने के कुछ दिनों बाद फिर से उसकी पीने की इच्छा जागी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बार, पब और शराब दुकानों पर ताले लगे थे। रेशमा को किसी और ने नहीं, अपने ही मन-मस्तिष्क ने चेताया कि इतने दिनों तक कोमा में रहने के बाद बड़ी मुश्किल से बची हो, अब तो खुद पर रहम करो और हमेशा-हमेशा के लिए अंधाधुंध पीने से तौबा कर लो। अपने पति को खो चुकी रेशमा का जीने के प्रति मोह जाग उठा। शराब को पानी की तरह पीने वाली नारी ग्रीन टी, नींबू पानी पीने लगी। कसरत को भी जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया। आज रेशमा नशा विरोधी अभियान की मुखिया हैं और कई लोगों की शराब छुड़वा चुकी हैं।
चित्र : 3 - इस भागम-भाग वाले समय में किसी के पास किसी का हालचाल जानने की फुर्सत नहीं। सभी के अपने-अपने दर्द और समस्याएं हैं। उन्हीं को सुलझाने में उनकी जिन्दगी कट जाती है। ऐसे में दूसरों से सहारे की आशा करना खुद को धोखा देने जैसा है। आधुनिक शहर चंडीगढ़ में एक महिला व्हीलचेयर पर प्रतिदिन फूड डिलीवरी करती नजर आती हैं। अपार इच्छाशक्ति और मनोबल वाली इस महिला का नाम है, विद्या। अपने नाम के अनुरूप संघर्ष करती विद्या का जन्म बिहार के समस्तीपुर के छोटे से गांव में हुआ। 2007 में साइकल चलाते वक्त वह पुल के नीचे गिर गई। रीढ़ की हड्डी टूट जाने के कारण 11 साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के दौरान एक दिन उसने अपने शरीर की कमी और कमजोरी को मात देने का द़ृढ़ निश्चय कर डाला। आत्मनिर्भर बनने के अपने इरादे के बारे में उसने जब अपने करीबियों को बताया तो उन्होंने उसका खूब म़जाक उड़ाया। किसी शुभचिंतक की सलाह पर उसने 2017 में चंडीगढ़ स्पाइनल रिहेव सेंटर में किसी तरह से जाकर बेडसोल का ऑप्रेशन करवाया। वहीं पर अन्य जुनूनी, उत्साही विकलांगों को देखकर उसकी जीने की इच्छा और बलवति हुई और वह चुस्त-दुरुस्त होकर अस्पताल से बाहर निकली। फिर उसने दिव्यांग श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर पर बास्केट बॉल खेलकर लोगों को चौंकाया। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर टेबल टेनिस और स्विमिंग में नाम कमाकर तानें कसने वालों की तो बोलती बंद कर दी...।
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