Thursday, August 29, 2024

इन मासूमों का क्या दोष?

    कुछ दिन पूर्व दो ऐसी महिलाओं से मुलाकात हुई, जिनकी प्रतिभाशाली बेटियों की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। अपनी लाड़ली पुत्रियों को सदा-सदा के लिए खो चुकी इन माताओं के साथ हमारा समाज कैसी बेअदबी और निष्ठुरता के साथ पेश आता है, इस सच को जान कर बहुत पीड़ा हुई। उनकी आपबीती सुनकर जब सुनने और जानने वालों का मन आहत हो जाता है तो सोचें, कि इन मांओं पर क्या बीती होगी। होना तो यह चाहिए था कि इनके प्रति आदर और सहानुभूति दर्शायी जाती। इनके धैर्य और हौसले को सराहा जाता। आप ही बतायें कि इन्हें कसूरवार ठहराना कहां तक जायज है? शहर के नामी स्कूल की सम्मानित शिक्षिका रहीं रजनी वर्मा की इक्कीस वर्षीय पुत्री एक रात अपने मित्र के साथ थियेटर में पिक्चर देख कर लौट रही थी। दोनों किसी मॉल में काम करते थे। उस दिन छुट्टी के बाद उनका बहुत दिनों के बाद फिल्म देखने का मन हुआ था। रजनी वर्मा की बेटी अलका अत्यंत ही खुले विचारों की होने के बावजूद अनुशासन और मर्यादा के साथ जीने में यकीन रखती थी। वह जहां भी जाती, मां को खबर करना नहीं भूलती। उस रात भी उसने मां को बता दिया था कि घर आने में देरी हो सकती है। चिन्ता मत करना। रात को रजनी वर्मा की कब आंख लगी, पता ही नहीं चला। सुबह तक रजनी की पूरी दुनिया लुट चुकी थी। तीन-चार नकाबपोशों ने अलका का रेप करने के पश्चात उसे रेल की पटरियों पर मरने के लिए फेंक दिया था। उनका दोस्त किसी तरह से बच-बचाकर पुलिस तक पहुंचा था। पुलिस ने तुरंत अलका को अस्पताल पहुंचाया था, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं पाई थी। बेटी की क्षत-विक्षत लाश रजनी ने कैसे देखी और उन पर क्या गुजरी इस बारे में उन्होंने कभी किसी को कुछ नहीं बताया। आंखों में आंसू अटके के अटके रह गये। पति के गुजर जाने के बाद इकलौती बेटी की परवरिश में कोई कमी नहीं करने वाली रजनी के जीवन में आया भूचाल अभी तक नहीं थमा है। कोर्ट-कचहरी और वकीलों की फीस ने अधमरा कर दिया है। पुश्तैनी घर तक बेचना पड़ा। चारों बलात्कारी कॉलेज के छात्र थे। रजनी उन्हें पहचानती थी। बदमाशों को अलका की दिनचर्या का पूरा पता था। उन्हीं में से एक बदमाश अलका पर शादी का दबाव बनाता चला आ रहा था। बारह साल तक कोर्ट में मामला चलता रहा। आखिरकार पुख्ता सबूतों के अभाव में सभी बदमाश बरी हो गये। लस्त-पस्त हो चुकी रजनी बताती हैं कि तब उनकी आंखों से चिंगारियां निकलने लगती थीं जब कोर्टरूम के आसपास कुछ लोग उनका मज़ाक उड़ाते हुए ताने कसा करते थे कि ये बुढ़िया भी अपनी बेटी की तरह अपने कर्मों की सज़ा भुगत रही है। यदि इसने अपनी आवारा बेटी पर अंकुश लगाया होता तो आज दोनों शान से जी रही होतीं। आधी-आधी रात को अपनी बेटी को उसके यार के साथ घूमने की  छूट देने वाली मां को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। 

    ऐसी ही जली-कटी अर्चना खुराना को सुनना पड़ी थीं, जिनकी प्रतिभाशाली अभिनेत्री बेटी की चलती ट्रेन में अस्मत लूट ली गई थी। अर्चना की बिटिया रानी मुंबई में अभिनय एवं मॉडलिंग के क्षेत्र में सक्रिय थी। कुछ टीवी सीरीयल में उसके काम को काफी सराहा गया था। नागपुर से मुंबई जाते समय रात के समय रेलगाड़ी में दो शराबी मुस्तंडे उस पर टूट पड़े थे। यात्रियों के सामने युवा अभिनेत्री को निर्वस्त्र कर अपनी अंधी वासना को शिकार बनाने वाले गुंडे बड़े आराम से चलती रेलगाड़ी का चेन खींचकर चलते बने थे। रानी ने फांसी के फंदे पर झूल कर खुदकुशी कर ली थी। इस सदमें ने अर्चना को निचोड़ कर रख दिया था, लेकिन तब तो वह पूरी तरह से खत्म ही हो गई थीं जब उन पर तैजाबी तंज कसे गये कि उनकी बेटी अपने खुले विचारों और अंग प्रदर्शन करने वाले परिधानों के कारण बलात्कार का शिकार हुई। अनजान पुरुषों से हंस-हंसकर बोलना बतियाना उसी को भारी पड़ गया। सफर के दौरान यदि वह अपने में सिमट कर रही होती तो गुंडे बदमाशों की नज़र उस पर नहीं जाती। टीवी सीरियल में भी उसने जिन किरदारों को जीवंत किया वे कामुकता और शारीरिक आकर्षण में रचे बसे थे। अपने देश में पीड़िता को दोषी ठहराने के बहाने और तर्क गढ़ने का जो सिलसिला चलाया जाता है उसकी कोई सीमा नहीं होती। अभी हाल ही में महाराष्ट्र के शहर बदलापुर में नर्सरी में पढ़ रही चार साल की दो मासूम बच्चियों से 24 वर्षीय सफाई कर्मी ने दुष्कर्म और यौन शोषण किया। अस्पताल में इसकी पुष्टि भी हो गई। पुलिस वाले रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करते रहे। लोगों का विरोध और दबाव बढ़ने के पश्चात प्राथमिक रिपोर्ट लिखी गई। यह हमारे देश की अधिकांश खाकी की शर्मनाक सच्चाई है, जिसकी वजह से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं। बदलापुर के आदर्श स्कूल में जहां मासूम बेटियों का यौन शोषण होता रहा, वहां के सीसीटीवी काम नहीं कर रहे थे। ऐसा कहा और माना जाता है कि यदि बच्चे घर से बाहर कहीं सुरक्षित हो सकते हैं तो वह जगह है स्कूल, लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली...कहीं भी बच्चे आज सुरक्षित नहीं। बहन-बेटियों की अस्मत के लुटेरे शिक्षा के मंदिरों में भी अपना तांडव मचाए हैं। हैरतअंगेज सच तो यह है कि जब तक जनता सड़कों पर नहीं उतरती तब तक शासन और प्रशासन की नींद ही नहीं टूटती। बदलापुर के बाद महाराष्ट्र के अकोला में स्थित जिला परिषद स्कूल के शिक्षक को पुलिस ने गिरफ्तार किया। यह नराधम आठवीं कक्षा की छह छात्राओं को अश्लील वीडियो दिखाकर उनके साथ घोर अश्लील हरकतें करता चला आ रहा था। अब सवाल उन ज्ञानी लोगों से जो युवतियों के पहनावे और खुलेपन को बलात्कार का कारण मानते हैं। मासूम बच्चियों ने तो अपने स्कूल की ड्रेस पहन रखी थी। उन्हें तो दुनियादारी की कोई समझ ही नहीं थी। अपने काम से काम रखती थीं। आपस में ही खुश रहती थी। उनकी भोली-भाली सूरत में दरिंदों को क्या नजर नजर आया जिसने उन्हें हैवान बना दिया।

Thursday, August 22, 2024

‘बेटी बचाओ’ क्या महज सरकारी नारा है?

    बहन, बेटियों की प्रगति, सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार और बराबरी के तमाम दावे और नारे तब एकदम खोखले, निरर्थक लगते हैं, जब बार-बार उन पर घोर अत्याचार की खबरें दिल चीर जाती हैं। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, सड़क, चौक-चौराहे, अस्पताल में बलात्कार। भरे पूरे परिवारों में भी बहन-बेटियों का निर्लज्ज चीर-हरण उस देश के माथे का कलंक और असहनीय जख्म है, जहां सदियों से नारी-पूजन होता चला आ रहा है। अब तो लेखक बेहिचक कहने तथा लिखने को स्वतंत्र है कि यह सब नाटक-नौटंकी, निर्लज्जता और अखंड पाखंड है। कभी भी माफ नहीं किये जाने वाला पाप और अपराध है। अपने देश भारत में अब जब भी कहीं बलात्कार-हत्याकांड होता है, तब दिल्ली में वर्षों पूर्व हुए निर्भया रेप हत्याकांड की याद ताजा की जाने लगती है। सारे अखबार और न्यूज चैनल धड़ाधड़ बताने लगते हैं कि तब किस तरह से पूरे देश का खून खौल उठा था। बलात्कारियों को भरे चौराहे पर नंगा कर फांसी के फंदे पर लटकाने, गोलियों से भूनने की मांग लिए जगह-जगह स्त्री, पुरुष, बच्चों का हुजूम सड़कों पर उतर आया था। कुछ भारतीयों ने हर बलात्कारी के गुप्तांग को काट देने की मांग भी की थी। सरकार ने बलात्कारियों को सबक सिखाने के लिए कठोरतम दंड का प्रावधान भी किया था, लेकिन नतीजा सबके सामने है। दुराचारियों को नया कानून भी डरा नहीं पाया। बेटियों की आबरू तार-तार करने के सिलसिले में कोई कमी नहीं आई।

    अभी हाल ही में कोलकता के अरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 31 साल की ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की बेहद चौंकाने और दिल दहलाने वाली घटना ने फिर से लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए विवश कर दिया। फिर से पुलिस की नालायकी, घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता ने जन-जन को गुस्सा दिलाया। लेडी डॉक्टर के मृतक शरीर को देखने से ही उसके साथ हुई बर्बरता का पता चल रहा था, लेकिन पुलिस आत्महत्या घोषित कर मामले को रफा-दफा करने की चालें चलती रही। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि पीड़िता के शरीर में करीब 151 ग्राम सीमन यानि लिक्विड मिला, उससे इस शंका को बल मिलता है कि उससे एक से ज्यादा दरिंदों ने रेप किया है। लिक्विड की इतनी ज्यादा मात्रा किसी एक दरिंदे की नहीं हो सकती।

    मृतका के माता-पिता को भी अस्पताल प्रबंधन द्वारा यही बताया गया था कि उनकी लड़की ने खुदकुशी कर ली है। अस्पताल पहुंचने पर उनकी धड़कनें बेकाबू होती चली गईं। वे बार-बार हाथ जोड़कर बच्ची को तुरंत दिखाने की विनती करते रहे, लेकिन उन्हें तीन घंटे तक इंतजार करवाया गया। अपनी लाड़ली की दुर्दशा देख मां तो चक्कर खाकर गिर पड़ी। बेटी की आंखों, मुंह और गुप्तांग में खून ही खून तथा शरीर  पर कोई कपड़ा नहीं था। दोनों पैर राइट एंगल में थे। एक पांव बेड के एक तरफ और दूसरा पांव बेड के दूसरी तरफ था। चश्मे को बड़ी निर्दयता के साथ कूचे जाने के कारण आँखों में रक्त जमा था। हर तरह की जंगली बर्बरता से रेप और उसके बाद गला घोंट असहाय बेटी की हत्या की गईं थी। अस्पताल प्रशासन की लीपापोती धरी की धरी रह गई। अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे के आधार पर गिरफ्तार किए गए अय्याश संशय राय ने पुलिस की पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार करने में देरी नहीं की। उसे इस दरिंदगी को लेकर कोई पछतावा नहीं था। उसने सीना तानते हुए कहा कि, अगर चाहो तो मुझे फांसी पर लटका दो। उसका मोबाइल फोन भी अश्लील सामग्री से भरा मिला। पीड़िता के शव के पास उसका ब्लूटूथ हैंडसेट भी बरामद किया गया, जो उसके मोबाइल से जुड़ा हुआ था। 

    यह कितनी स्तब्ध करने वाली बात है कि इतने बड़े अस्पताल में जब प्रशिक्षु डॉक्टर पर बलात्कार हो रहा था तब वहां पर और कोई नहीं था, जो उसकी चीख-पुकार सुन कर दौड़ा चला आता? भारत में डॉक्टर्स के असुरक्षित होने की खबर विदेशों तक भी जा पहुंची। न्यूयार्क के टाइम्स स्कवायर पर धरना प्रदर्शन कर भारतीय छात्रों और डॉक्टर्स के प्रति अपना समर्थन प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनकारियों ने एक महिला डॉक्टर की मेडिकल कॉलेज में ड्यूटी के दौरान दुष्कर्म और हत्या को सिस्टम की असफलता करार दिया और सख्त कार्रवाई की मांग की। जर्मनी, लंदन और कनाडा में भी लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। डॉक्टर बेटी से दरिंदगी के विरोध में रक्षाबंधन पर पूरे हिंदुस्तान की बेटियों ने सड़कों पर उतर कर नारियों की सुरक्षा की गुहार लगाई और सरकारी नारे ‘बेटी बचाओ’ को कटघरे में खड़ा किया। यह कैसी विडंबना है कि एक महिला मुख्यमंत्री के राज में ही महिलाएं असुरक्षित हैं। यह भी सच है की सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही दुराचारियों के हौसले बुलंद नहीं हैं, अन्य प्रदेशों में भी बलात्कारी कानून से खौफ नहीं खाते। कोलकता में हुए इस नृशंस बलात्कार, हत्या के तीन दिन बाद बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में एक महादलित परिवार की 14 वर्षीय छात्रा की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। मुख्य आरोपी छात्रा पर शादी का दबाव बना रहा था। जब वह नहीं मानी तो वह चार साथियों के साथ रात को उसके घर जा पहुंचा। मां-बाप के सामने हथियारों का भय दिखाकर लड़की को बाहर खींच कर ले गया। अगले दिन झील में छात्रा का हाथ-पैर बंधा शव मिला। इतना बड़ा कांड हो गया लेकिन कहीं कोई आवाज और शोर शराबा नहीं हुआ। अखबार और न्यूज चैनल भी खामोश रहे। एक तरफ पूरे देश में डॉक्टर और सजग जन सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर मृतक लेडी डॉक्टर के क्षत-विक्षत शरीर की तस्वीरों के साथ उसके नाम को धड़ाधड़ उजागर करने का गंदा और शर्मनाक खेल चल रहा था। अपनी जान से प्यारी प्रतिभावान पुत्री को हमेशा के लिए खो चुके दुःखी मां-बाप को बार-बार अपील और विनती करनी पड़ी कि, प्लीज  हमारी बेटी की तस्वीरें और नाम  शेयर मत करें। गौरतलब है कि, पीड़ित की तस्वीर और नाम को गोपनीय रखने का नियम बना हुआ है, लेकिन सोशल मीडिया के इस अजीबोगरीब दौर में कुछ लोग अति उत्साह में किसी कानून-कायदे का पालन करना जरूरी नहीं समझते। अपने नाम का परचम लहराने के साथ-साथ अपना तथाकथित गुस्सा व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया को हथियार बना चुके फुर्सतियों की अपने यहां अच्छी-खासी तादाद है। साफ सुथरे लोगों पर कीचड़ उछालने की शर्मनाक कला में यह चेहरे बहुत माहिर हैं...।

Saturday, August 17, 2024

तख्तापलट

    बांग्लादेश में वर्षों से चली आ रही विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की छात्रों की मांग ने अंततः इतना उग्र और विस्फोटक रूप धारण कर लिया कि वहां की प्रधानमंत्री को देश से भागना पड़ा। गौरतलब है की 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम  में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान था। 2024 के जुलाई  महीने में हुई हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए थे। जिनमें से कई लोगों की मौत पुलिस  की गोलीबारी से हुई। इससे लोग बेहद क्रोधित थे। 5 अगस्त को मूवमेंट के तहत सुबह  दस बजे से ही बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सेंट्रल शहीद मीनार के पास लगभग चार लाख उग्र छात्रों की जो भीड़ एकत्रित हुई, पुलिस के लिए उसे संभालना और नियंत्रण में लेना अत्यंत मुश्किल होता चला गया। स्थिति, परिस्थिति और हिंसक हालात को बेकाबू देख प्रधान मंत्री शेख हसीना कुछ ही घंटों के भीतर डरी-सहमी, सुरक्षित भारत पहुंच गईं। इस दौरान उपद्रवी बेखौफ होकर संसद भवन की छत, प्रधान मंत्री के आवास में घुसकर कीमती सामान पर हाथ फेरने और तोड़फोड़ करने लगे। विरोध प्रदर्शन के नाम पर अराजकता, अभद्रता और गुंडागर्दी की जाने लगी। सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक हिंदू तथा सिखों के घरों पर हमलों के साथ-साथ महिलाओं के साथ अभद्रता के वीडियो वायरल होने लगे। बांग्लादेश की बुनियाद रखने वाले राष्ट्रपिता के रूप में प्रतिष्ठित शेख मुजीब उर रहमान की मूर्ति को उसी हिंसक, अराजक, कट्टरपंथी सोच ने हथौड़े पर हथौड़े बरसा कर ढहा दिया, जिसने कभी उनकी क्रूरता से नृशंस हत्या की थी। उनके स्टैच्यू पर बुलडोजर  चलाए गए। आजादी के प्रतीक को भी धराशायी करने की शर्मनाक दुष्टता  की गई। शेख हसीना ने 15 वर्ष पूर्व जब सत्ता संभाली थी तब बांग्लादेश के अत्यंत चिंताजनक हालात थे। हसीना ने खस्ताहाल देश को विकास का जामा पहनाकर काफी हद तक खुशहाल बनाया, लेकिन यह भी सच है कि 17 करोड़ की आबादी वाले देश में तीन करोड़ युवा बेरोजगार हैं। कोई भी शासक सभी का प्रिय नहीं हो सकता। कमजोरी और कमियां ढूंढने वाले अपने मकसद में कामयाब हो ही जाते हैं। हसीना का भारत  से मधुर और दृढ संबंध बनाए रखना अंतरराष्ट्रीय ताकतों को रास नहीं आ रहा था। भारत के जगजाहिर शत्रु चीन और पाकिस्तान की साजिशों ने भी शेख हसीना का तख्तापलट करवाने में खासी भूमिका निभाई और आरक्षण विरोधी आंदोलन के बहाने एक प्रगति करते देश में कोहराम मचवा दिया।

    बांग्लादेश  में नई  सरकार का गठन भी हो गया है, लेकिन यह सवाल हमेशा सुलगता रहेगा कि लोगों का गुस्सा तो सरकार पर था, लेकिन अल्पसंख्यकों पर कहर क्यों बरपाया गया? तख्तापलट के बाद वर्षों से वहां रह रहे हिंदुओं को चुन-चुन  कर मौत के घाट उतारा गया। उनकी दुकानें, घर बार फूंक डाले गए। मंदिरों को आग लगाई गई। उन्हें रातों-रात बांग्लादेश छोड़ने को विवश कर दिया गया। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिंदू गायक राहुल आनन्द के घर को राख करने से पहले उपद्रवियों की भीड़ ने जमकर लूट-पाट की। उनके तीन हजार से ज्यादा हैंडमेड म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट् के कलेक्शन के साथ-साथ सभी कीमती सामान समेट कर ले भागे।

    अभिनेता शांतो तथा उसके पिता की भीड़ ने पीट-पीटकर  हत्या कर दी। एक होटल में आग लगा दी, जहां आसाम के रहने वाले दो युवक ठहरे थे। जान बचाने के लिए वे चौथे माले से कूदे और चल बसे। इसी तरह से एक अन्य होटल में आग के हवाले किया गया, जिसमें 25 हिंदू राख हो गये। खौफ के अंधरे में जीते अनेकों हिदुओं को भूखे-प्यासे चार-पांच दिन तक अपने घरों में कैद रहना पड़ा। हिंसक भीड़ का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा था। कई स्थानों पर लूटमारी करती भीड़ धमकियां देती नजर आई, हिंदुओं अपने घर बार छोड़कर भाग जाओ, नहीं तो मार काट कर फेंक दिया जाएगा। इस भयावह मंजर में कुछ मुस्लिम परिवारों ने हिंदुओं की सुरक्षा के लिए खुद को भी खतरे में डालने की हिम्मत दिखायी। 

    एक तरफ मारकाट, लूट-पाट, बलात्कार हो रहे थे, वहां की पुलिस और सेना हाथ पर हाथ धरे अराजक  तत्वों को मूकदर्शक बन देखने को विवश नज़र आ रही थी। इस उपद्रवी आंदोलन में पांच सौ से अधिक लोगों की जानें चली गईं। सरकारी इमारतें और पुलिस थाने फूंक दिए गए। देश के नेतृत्वहीन होने का फायदा इस्लामी कट्टरपंथियों नें भी खूब उठाया। एयर इंडिया और इंडिगो की विशेष उड़ानों से सैकड़ों भारतीयों को भारत लाया गया। बीते वर्ष पड़ोसी देश श्रीलंका में भी ऐसा ही तख्तापलट का नजारा हम सबने देखा था। सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो में स्थित राष्ट्रपति भवन पर एक तरह से कब्जा ही कर लिया था। उनके स्विमिंग पुल में नहाने, रसोई घर में खाना बना कर खाने और आलीशान कमरों के बिस्तर  पर धमा चौकड़ी मचाने के वीडियो धड़ल्ले से वायरल होते रहे थे। वहां की बेबस सरकार ने हाथ खड़े करते हुए ऐलान किया था कि वह दिवालिया हो चुकी है... बांग्लादेश में हुए तख्तापलट ने हिंदुस्तान  के कुछ धूर्त  नेताओं, संपादकों, पत्रकारों एवं तथाकथित सेकुलर बुद्धिमानों को उमंगों और उम्मीदों के मायावी झूले पर झुलाना  प्रारम्भ कर दिया। सजग वोटरों ने तो सता से वंचित रखा, लेकिन पड़ोसी देश में हुए तख्तापलट की वजह से मुंगेरी लालों ने दिलकश उम्मीदें पालते हुए कहना शुरू कर दिया कि जो बांग्लादेश में हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है, लेकिन जब सजग देशवासियों ने उन्हें दुत्कारा, फटकारा और थू...थू की तो वे इधर-उधर मुंह छिपाने लगे...।