Saturday, August 17, 2024

तख्तापलट

    बांग्लादेश में वर्षों से चली आ रही विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की छात्रों की मांग ने अंततः इतना उग्र और विस्फोटक रूप धारण कर लिया कि वहां की प्रधानमंत्री को देश से भागना पड़ा। गौरतलब है की 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम  में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान था। 2024 के जुलाई  महीने में हुई हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए थे। जिनमें से कई लोगों की मौत पुलिस  की गोलीबारी से हुई। इससे लोग बेहद क्रोधित थे। 5 अगस्त को मूवमेंट के तहत सुबह  दस बजे से ही बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सेंट्रल शहीद मीनार के पास लगभग चार लाख उग्र छात्रों की जो भीड़ एकत्रित हुई, पुलिस के लिए उसे संभालना और नियंत्रण में लेना अत्यंत मुश्किल होता चला गया। स्थिति, परिस्थिति और हिंसक हालात को बेकाबू देख प्रधान मंत्री शेख हसीना कुछ ही घंटों के भीतर डरी-सहमी, सुरक्षित भारत पहुंच गईं। इस दौरान उपद्रवी बेखौफ होकर संसद भवन की छत, प्रधान मंत्री के आवास में घुसकर कीमती सामान पर हाथ फेरने और तोड़फोड़ करने लगे। विरोध प्रदर्शन के नाम पर अराजकता, अभद्रता और गुंडागर्दी की जाने लगी। सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक हिंदू तथा सिखों के घरों पर हमलों के साथ-साथ महिलाओं के साथ अभद्रता के वीडियो वायरल होने लगे। बांग्लादेश की बुनियाद रखने वाले राष्ट्रपिता के रूप में प्रतिष्ठित शेख मुजीब उर रहमान की मूर्ति को उसी हिंसक, अराजक, कट्टरपंथी सोच ने हथौड़े पर हथौड़े बरसा कर ढहा दिया, जिसने कभी उनकी क्रूरता से नृशंस हत्या की थी। उनके स्टैच्यू पर बुलडोजर  चलाए गए। आजादी के प्रतीक को भी धराशायी करने की शर्मनाक दुष्टता  की गई। शेख हसीना ने 15 वर्ष पूर्व जब सत्ता संभाली थी तब बांग्लादेश के अत्यंत चिंताजनक हालात थे। हसीना ने खस्ताहाल देश को विकास का जामा पहनाकर काफी हद तक खुशहाल बनाया, लेकिन यह भी सच है कि 17 करोड़ की आबादी वाले देश में तीन करोड़ युवा बेरोजगार हैं। कोई भी शासक सभी का प्रिय नहीं हो सकता। कमजोरी और कमियां ढूंढने वाले अपने मकसद में कामयाब हो ही जाते हैं। हसीना का भारत  से मधुर और दृढ संबंध बनाए रखना अंतरराष्ट्रीय ताकतों को रास नहीं आ रहा था। भारत के जगजाहिर शत्रु चीन और पाकिस्तान की साजिशों ने भी शेख हसीना का तख्तापलट करवाने में खासी भूमिका निभाई और आरक्षण विरोधी आंदोलन के बहाने एक प्रगति करते देश में कोहराम मचवा दिया।

    बांग्लादेश  में नई  सरकार का गठन भी हो गया है, लेकिन यह सवाल हमेशा सुलगता रहेगा कि लोगों का गुस्सा तो सरकार पर था, लेकिन अल्पसंख्यकों पर कहर क्यों बरपाया गया? तख्तापलट के बाद वर्षों से वहां रह रहे हिंदुओं को चुन-चुन  कर मौत के घाट उतारा गया। उनकी दुकानें, घर बार फूंक डाले गए। मंदिरों को आग लगाई गई। उन्हें रातों-रात बांग्लादेश छोड़ने को विवश कर दिया गया। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिंदू गायक राहुल आनन्द के घर को राख करने से पहले उपद्रवियों की भीड़ ने जमकर लूट-पाट की। उनके तीन हजार से ज्यादा हैंडमेड म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट् के कलेक्शन के साथ-साथ सभी कीमती सामान समेट कर ले भागे।

    अभिनेता शांतो तथा उसके पिता की भीड़ ने पीट-पीटकर  हत्या कर दी। एक होटल में आग लगा दी, जहां आसाम के रहने वाले दो युवक ठहरे थे। जान बचाने के लिए वे चौथे माले से कूदे और चल बसे। इसी तरह से एक अन्य होटल में आग के हवाले किया गया, जिसमें 25 हिंदू राख हो गये। खौफ के अंधरे में जीते अनेकों हिदुओं को भूखे-प्यासे चार-पांच दिन तक अपने घरों में कैद रहना पड़ा। हिंसक भीड़ का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा था। कई स्थानों पर लूटमारी करती भीड़ धमकियां देती नजर आई, हिंदुओं अपने घर बार छोड़कर भाग जाओ, नहीं तो मार काट कर फेंक दिया जाएगा। इस भयावह मंजर में कुछ मुस्लिम परिवारों ने हिंदुओं की सुरक्षा के लिए खुद को भी खतरे में डालने की हिम्मत दिखायी। 

    एक तरफ मारकाट, लूट-पाट, बलात्कार हो रहे थे, वहां की पुलिस और सेना हाथ पर हाथ धरे अराजक  तत्वों को मूकदर्शक बन देखने को विवश नज़र आ रही थी। इस उपद्रवी आंदोलन में पांच सौ से अधिक लोगों की जानें चली गईं। सरकारी इमारतें और पुलिस थाने फूंक दिए गए। देश के नेतृत्वहीन होने का फायदा इस्लामी कट्टरपंथियों नें भी खूब उठाया। एयर इंडिया और इंडिगो की विशेष उड़ानों से सैकड़ों भारतीयों को भारत लाया गया। बीते वर्ष पड़ोसी देश श्रीलंका में भी ऐसा ही तख्तापलट का नजारा हम सबने देखा था। सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो में स्थित राष्ट्रपति भवन पर एक तरह से कब्जा ही कर लिया था। उनके स्विमिंग पुल में नहाने, रसोई घर में खाना बना कर खाने और आलीशान कमरों के बिस्तर  पर धमा चौकड़ी मचाने के वीडियो धड़ल्ले से वायरल होते रहे थे। वहां की बेबस सरकार ने हाथ खड़े करते हुए ऐलान किया था कि वह दिवालिया हो चुकी है... बांग्लादेश में हुए तख्तापलट ने हिंदुस्तान  के कुछ धूर्त  नेताओं, संपादकों, पत्रकारों एवं तथाकथित सेकुलर बुद्धिमानों को उमंगों और उम्मीदों के मायावी झूले पर झुलाना  प्रारम्भ कर दिया। सजग वोटरों ने तो सता से वंचित रखा, लेकिन पड़ोसी देश में हुए तख्तापलट की वजह से मुंगेरी लालों ने दिलकश उम्मीदें पालते हुए कहना शुरू कर दिया कि जो बांग्लादेश में हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है, लेकिन जब सजग देशवासियों ने उन्हें दुत्कारा, फटकारा और थू...थू की तो वे इधर-उधर मुंह छिपाने लगे...।

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