बहन, बेटियों की प्रगति, सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार और बराबरी के तमाम दावे और नारे तब एकदम खोखले, निरर्थक लगते हैं, जब बार-बार उन पर घोर अत्याचार की खबरें दिल चीर जाती हैं। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, सड़क, चौक-चौराहे, अस्पताल में बलात्कार। भरे पूरे परिवारों में भी बहन-बेटियों का निर्लज्ज चीर-हरण उस देश के माथे का कलंक और असहनीय जख्म है, जहां सदियों से नारी-पूजन होता चला आ रहा है। अब तो लेखक बेहिचक कहने तथा लिखने को स्वतंत्र है कि यह सब नाटक-नौटंकी, निर्लज्जता और अखंड पाखंड है। कभी भी माफ नहीं किये जाने वाला पाप और अपराध है। अपने देश भारत में अब जब भी कहीं बलात्कार-हत्याकांड होता है, तब दिल्ली में वर्षों पूर्व हुए निर्भया रेप हत्याकांड की याद ताजा की जाने लगती है। सारे अखबार और न्यूज चैनल धड़ाधड़ बताने लगते हैं कि तब किस तरह से पूरे देश का खून खौल उठा था। बलात्कारियों को भरे चौराहे पर नंगा कर फांसी के फंदे पर लटकाने, गोलियों से भूनने की मांग लिए जगह-जगह स्त्री, पुरुष, बच्चों का हुजूम सड़कों पर उतर आया था। कुछ भारतीयों ने हर बलात्कारी के गुप्तांग को काट देने की मांग भी की थी। सरकार ने बलात्कारियों को सबक सिखाने के लिए कठोरतम दंड का प्रावधान भी किया था, लेकिन नतीजा सबके सामने है। दुराचारियों को नया कानून भी डरा नहीं पाया। बेटियों की आबरू तार-तार करने के सिलसिले में कोई कमी नहीं आई।
अभी हाल ही में कोलकता के अरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 31 साल की ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की बेहद चौंकाने और दिल दहलाने वाली घटना ने फिर से लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए विवश कर दिया। फिर से पुलिस की नालायकी, घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता ने जन-जन को गुस्सा दिलाया। लेडी डॉक्टर के मृतक शरीर को देखने से ही उसके साथ हुई बर्बरता का पता चल रहा था, लेकिन पुलिस आत्महत्या घोषित कर मामले को रफा-दफा करने की चालें चलती रही। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि पीड़िता के शरीर में करीब 151 ग्राम सीमन यानि लिक्विड मिला, उससे इस शंका को बल मिलता है कि उससे एक से ज्यादा दरिंदों ने रेप किया है। लिक्विड की इतनी ज्यादा मात्रा किसी एक दरिंदे की नहीं हो सकती।
मृतका के माता-पिता को भी अस्पताल प्रबंधन द्वारा यही बताया गया था कि उनकी लड़की ने खुदकुशी कर ली है। अस्पताल पहुंचने पर उनकी धड़कनें बेकाबू होती चली गईं। वे बार-बार हाथ जोड़कर बच्ची को तुरंत दिखाने की विनती करते रहे, लेकिन उन्हें तीन घंटे तक इंतजार करवाया गया। अपनी लाड़ली की दुर्दशा देख मां तो चक्कर खाकर गिर पड़ी। बेटी की आंखों, मुंह और गुप्तांग में खून ही खून तथा शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। दोनों पैर राइट एंगल में थे। एक पांव बेड के एक तरफ और दूसरा पांव बेड के दूसरी तरफ था। चश्मे को बड़ी निर्दयता के साथ कूचे जाने के कारण आँखों में रक्त जमा था। हर तरह की जंगली बर्बरता से रेप और उसके बाद गला घोंट असहाय बेटी की हत्या की गईं थी। अस्पताल प्रशासन की लीपापोती धरी की धरी रह गई। अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे के आधार पर गिरफ्तार किए गए अय्याश संशय राय ने पुलिस की पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार करने में देरी नहीं की। उसे इस दरिंदगी को लेकर कोई पछतावा नहीं था। उसने सीना तानते हुए कहा कि, अगर चाहो तो मुझे फांसी पर लटका दो। उसका मोबाइल फोन भी अश्लील सामग्री से भरा मिला। पीड़िता के शव के पास उसका ब्लूटूथ हैंडसेट भी बरामद किया गया, जो उसके मोबाइल से जुड़ा हुआ था।
यह कितनी स्तब्ध करने वाली बात है कि इतने बड़े अस्पताल में जब प्रशिक्षु डॉक्टर पर बलात्कार हो रहा था तब वहां पर और कोई नहीं था, जो उसकी चीख-पुकार सुन कर दौड़ा चला आता? भारत में डॉक्टर्स के असुरक्षित होने की खबर विदेशों तक भी जा पहुंची। न्यूयार्क के टाइम्स स्कवायर पर धरना प्रदर्शन कर भारतीय छात्रों और डॉक्टर्स के प्रति अपना समर्थन प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनकारियों ने एक महिला डॉक्टर की मेडिकल कॉलेज में ड्यूटी के दौरान दुष्कर्म और हत्या को सिस्टम की असफलता करार दिया और सख्त कार्रवाई की मांग की। जर्मनी, लंदन और कनाडा में भी लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। डॉक्टर बेटी से दरिंदगी के विरोध में रक्षाबंधन पर पूरे हिंदुस्तान की बेटियों ने सड़कों पर उतर कर नारियों की सुरक्षा की गुहार लगाई और सरकारी नारे ‘बेटी बचाओ’ को कटघरे में खड़ा किया। यह कैसी विडंबना है कि एक महिला मुख्यमंत्री के राज में ही महिलाएं असुरक्षित हैं। यह भी सच है की सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही दुराचारियों के हौसले बुलंद नहीं हैं, अन्य प्रदेशों में भी बलात्कारी कानून से खौफ नहीं खाते। कोलकता में हुए इस नृशंस बलात्कार, हत्या के तीन दिन बाद बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में एक महादलित परिवार की 14 वर्षीय छात्रा की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। मुख्य आरोपी छात्रा पर शादी का दबाव बना रहा था। जब वह नहीं मानी तो वह चार साथियों के साथ रात को उसके घर जा पहुंचा। मां-बाप के सामने हथियारों का भय दिखाकर लड़की को बाहर खींच कर ले गया। अगले दिन झील में छात्रा का हाथ-पैर बंधा शव मिला। इतना बड़ा कांड हो गया लेकिन कहीं कोई आवाज और शोर शराबा नहीं हुआ। अखबार और न्यूज चैनल भी खामोश रहे। एक तरफ पूरे देश में डॉक्टर और सजग जन सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर मृतक लेडी डॉक्टर के क्षत-विक्षत शरीर की तस्वीरों के साथ उसके नाम को धड़ाधड़ उजागर करने का गंदा और शर्मनाक खेल चल रहा था। अपनी जान से प्यारी प्रतिभावान पुत्री को हमेशा के लिए खो चुके दुःखी मां-बाप को बार-बार अपील और विनती करनी पड़ी कि, प्लीज हमारी बेटी की तस्वीरें और नाम शेयर मत करें। गौरतलब है कि, पीड़ित की तस्वीर और नाम को गोपनीय रखने का नियम बना हुआ है, लेकिन सोशल मीडिया के इस अजीबोगरीब दौर में कुछ लोग अति उत्साह में किसी कानून-कायदे का पालन करना जरूरी नहीं समझते। अपने नाम का परचम लहराने के साथ-साथ अपना तथाकथित गुस्सा व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया को हथियार बना चुके फुर्सतियों की अपने यहां अच्छी-खासी तादाद है। साफ सुथरे लोगों पर कीचड़ उछालने की शर्मनाक कला में यह चेहरे बहुत माहिर हैं...।
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