सन 2024 के नवंबर माह में संपन्न हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों को अनेक कारणों से याद रखा जाएगा। मतदाताओं को असंमजस में डालने वाला ऐसा जटिल चुनाव पहले कभी देखने में नहीं आया। वैसे तो हर चुनाव प्रत्याशियों की धड़कन बढ़ाने वाला होता है, लेकिन इस बार के चुनाव ने उनकी रातों की नींद ही उड़ा दी। लगातार चुनाव जीतते चले आ रहे नेताओं के विश्वास को भी डगमगाने वाले इस बार के विधानसभा चुनाव में भाषा, मर्यादा, शिष्टाचार और उसूलों को पूरी तरह से ताक पर रख दिया गया। महंगाई और बेरोजगारी का खात्मा करने की गारंटी देने की बजाय मतदाताओं को खरीदने के लिए ऊंची से ऊंची कीमत, सौगात और प्रलोभनों की झड़ी लगा दी गई। छाती तानकर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणाएं करते सभी राजनीतिक दलों तथा नेताओं ने अपनी अक्ल को तो जैसे किसी घने जंगल में चरने के लिए भेज दिया। किसी ने बटेंगे तो कटेंगे का भय दिखाया तो किसी ने कुत्ता बनाने के शर्मनाक बोलवचन उगलकर अपनी भड़ास निकाली। जिन्हें अमन-शांति का पैगाम देना चाहिए था, वो झूम-झूम कर नफरती ढोल बजाते नजर आए, मोहब्बत की दुकान वालों ने भी खूब विष उगला और एकतरफा सोच के साथ सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण का राग अलापा।
प्रदेश की महिलाओं के वोटों के लिए पहले भारतीय जनता पार्टी ने लाडली बहन योजना का जाल फेंकते हुए हर महीने 1500 रुपए देने की घोषणा कर उसे अमली जामा भी पहनाया। मध्यप्रदेश में लाडली बहनों की बदौलत भाजपा ने विधानसभा चुनाव में विजय का सेहरा पहना था। इसी सफलता ने भाजपा को महाराष्ट्र में भी लाडली योजना को लाने के लिए प्रेरित किया। उत्साही तथा आशान्वित भाजपा ने चुनाव जीतने के पश्चात दिसम्बर माह से महाराष्ट्र की बहनों को 2100 रुपए प्रतिमाह देने का ऐलान कर दिया है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने पर महिलाओं को 3000 रुपए हर माह देने का वादा कर जीत की उम्मीद पाल ली। महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों तथा युवकों को तरह-तरह की सौगातें देने के वादे किये गए। वोट खरीदने की यह अंधी दौड़ पता नहीं कहां जाकर थमेगी? कितनी हैरानी की बात है कि कुछ वर्ष पहले तक विपक्षी दल मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का पुरजोर विरोध किया करते थे, लेकिन अब वे भी प्रतिस्पर्धा पर उतर आए हैं। उन्हें यह फायदे का सौदा दिख रहा है। वोटों के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलने का जो खेल चल रहा है, उसे मतदाता भलीभांति जान समझ रहे हैं। कल तक जिन दलों में छत्तीस का आंकड़ा था, अब वे एक होने का दावा कर रहे हैं। इनकी एकता में कितना दम है, वक्त आने पर उसका भी पता चल जाएगा। सच कहें तो जागरूक जनता का दिमाग ही काम नहीं कर रहा है। मेहनतकश भारतीयों द्वारा विभिन्न प्रकार के टैक्स के रूप में दी जाने वाली रकम को अंधाधुंध लुटाने की जिद पाले नेतागणों ने भविष्य की चिंता करनी छोड़ दी है!
मध्यप्रदेश और बाकी राज्यों में जहां ऐसी योजनाएं चल रही हैं वहां की सरकारों को इसके लिए बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। जो धन विभिन्न विकास कार्योें में खर्च होना चाहिए वो इन खैरातों की भेंट चढ़ रहा है। महाराष्ट्र के नेता भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आने वाले दिनों में सभी वादों को निभाने में नानी याद आ सकती है। राजनीति और राजनेताओं के गर्त में समाते चले जाने की कोई सीमा है भी या नहीं? महाराष्ट्र से भाजपा के राज्यसभा सांसद धनंजय महाडिक ने एक चुनावी सभा में दहाड़ते और ललकारते हुए कहा कि, जो महिलाएं वर्तमान सरकार से 1500 रुपए ले रही हैं, वे यदि कांग्रेस की रैलियों में भाग लेंगी तो यह ठीक नहीं होगा। यानी सभी लाडली बहनों को एक स्वर में भारतीय जनता पार्टी की ही जय-जयकार करनी चाहिए। किसी दूसरी पार्टी को वोट देना तो दूर उनकी परछाई से भी दूर रहना चाहिए। नागपुर के निकट स्थित सावनेर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के बदनाम, बदजुबान नेता सुनील केदार ने मतदाताओं को भरे मंच पर धमकाया और चमकाया कि यदि किसी ने भी भारतीय जनता पार्टी का झंडा लहराया तो उसे गांव से बाहर खदेड़ दिया जाएगा। वर्षों पूर्व सुनील केदार जिस सहकारी बैंक के अध्यक्ष यानी सर्वेसर्वा थे, उसी बैंक के सैकड़ों करोड़ रुपए इधर-उधर करने के अपराधी हैं। अदालत ने उनके चुनाव लड़ने पर बंदिश लगा रखी है। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी को कांग्रेस का टिकट दिलवा कर चुनाव लड़वाया है। दागी की पत्नी को चुनावी टिकट देने वाली कांग्रेस ने भी विवेक से निर्णय लेना जरूरी नहीं समझा। भारत के राजनीतिक दलों के मुखियाओं की इसी शर्मनाक नीति की वजह से राजनीति अपराधियों की सुरक्षित शरणस्थली बन चुकी है। हैरत और अफसोस यह भी कि अधिकांश गुंडे बदमाश येन-केन प्रकारेण चुनाव जीत भी जाते हैं। इसके लिए यकीनन वो मतदाता भी कम दोषी नहीं जो ईमानदार और जमीन से जुड़े प्रत्याशी को नजरअंदाज कर कुख्यात और निकम्मे चेहरों का साथ देकर अपने कीमती वोट का अवमूल्यन तथा अपमान करते हैं। हम मतदाता जब तक नहीं सुधरेंगे तब तक वोटों के खरीदार नोट, शराब और तमाम प्रलोभनों की बरसात के दम पर विजयी होते रहेेंगे। विधानसभा चुनाव से ऐन एक दिन पूर्व विभिन्न अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर यह खबर छायी रही कि, महाराष्ट्र के 74 वर्षीय पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख रात को जब अपने पुत्र सलील देशमुख का चुनाव प्रचार कर लौट रहे थे, तब अचानक चार युवकों ने उन पर हमला कर लहूलुहान कर दिया। अनिल देशमुख वही महापुरुष हैं, जिन पर मुंबई के शराब कारोबारियों तथा बियर बार मालिकों से 100 करोड़ लेने के संगीन आरोप लगे थे और उन्होंने कई महीनों तक जेल की कोठरी में रहकर रोटी-दाल-चावल का मन मारकर स्वाद चखा था...।
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