कई लोग मानते हैं कि यह धनयुग है। हर समस्या के समाधान के लिए इफरात पैसा चाहिए। जिनके पास धन का अभाव रहता है, उनका जीवन निरर्थक है। दुनियाभर की बीमारियों, पीड़ाओं, चिंताओं और तनावों से उन्हें जूझते रहना पड़ता है। धनवान बड़े से बड़े अस्पताल में किसी भी जानलेवा बीमारी से मुक्ति पा सकते हैं। धनहीन के लिए घुट-घुट कर मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचता। ऐसा सोचने वाले लोगों को जरा इन ताजा खबरों पर भी गौर कर लेना चाहिए...
भारत की विख्यात शख्सियत हरफनमौला नवजोत सिंह सिद्धू के नाम और काम से अधिकांश लोग वाकिफ हैं। कुछ दिन पूर्व सिद्धू ने अमृतसर स्थित अपने आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया कि, उनकी पत्नी, पूर्व विधायक नवजोत कौर ने स्टेज 4 के कैंसर को किस तरह से मात्र 40 दिन में नींबू पानी, कच्ची हल्दी, तुलसी और नीम के पत्तों आदि से मात देने में सफलता पायी। पूर्व क्रिकेटर और सांसद नवजोत सिंह सिद्धू यह कहते हुए अत्यंत भावुक हो गए कि, तमाम डॉक्टरों ने कह दिया था कि नवजोत कौर चंद दिनों की मेहमान हैं। उनके बचने की उम्मीद करना व्यर्थ है। खुद नवजोत कौर भी अत्यंत चिंतित और घबराई-घबराई रहती थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने मनोबल का दामन थामे रखा और बड़ी बहादुरी के साथ कैंसर से संघर्ष करती रहीं।
सिद्धू ने इस बात पर बार-बार जोर दिया कि उन्होंने कैंसर को इसलिए नहीं हराया, क्योंकि वे साधन संपन्न थे। दरअसल, एकमात्र वास्तविक सच यही है कि अनुशासित जीवनशैली को अपनाने से ही यह चमत्कार संभव हो पाया। उनका साथ देने के लिए मैंने भी अपने खान-पान की दिनचर्या को उन्हीं के अनुरूप खुशी-खुशी ढाल लिया था। नींबू पानी, कच्ची हल्दी, नीम के पत्ते, तुलसी व सेब के साथ-साथ कद्दू, अनार, आंवला, चुकंदर तथा अखरोट जैसे खट्टे फल और जूस उनकी डाइट और इलाज का प्रबल हिस्सा रहे। उन्होंने एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटीक कैंसर फूड्स भी खाये, जिसमें खाना पकाने के लिए नारियल तेल या बादाम के तेल का इस्तेमाल किया जाता था। कैंसर से बचाव और सदैव स्वस्थ रहने के लिए अपने खान-पान में बदलाव लाने का संदेश देनेवाले सिद्धू ने बताया कि, उन्होंने जब सुबह की चाय की जगह दालचीनी, लौंग, काली मिर्च, छोटी इलायची उबालकर थोड़ा सा गुड़ मिलाकर पीना शुरू किया, तो उनके जिस्म में पहले की तुलना में काफी अधिक चुस्ती-फुर्ती के साथ-साथ वास्तविक प्रसन्नता और संतुष्टि का संचार होता चला गया। मात्र कुछ हफ्तों में ही पच्चीस किलो वजन कम होने तथा फैटी लीवर को मात देने से वे खुद को पच्चीस-तीस वर्ष का युवा महसूस करने लगे हैं।
उनके चेहरे पर चमक आ गई है। जिस किसी को भी खुद को चुस्त-दुरूस्त करना है तथा अपना मोटापा खत्म करना है, उसके लिए यह नाममात्र की कीमत वाला नुस्खा अत्यंत उपयोगी है। यह भी ध्यान रहे कि कैंसर एसिडिक चीजों से पनपता है। पैक फूड अत्यंत हानिकारक हैं। बाजार में बिकने वाला अधिकतर पनीर और दूध नकली है।
अपनी अर्धांगिनी को कैंसर के घातक जबड़ों से बाहर खींचकर लाने वाले सच्चे पत्नी प्रेमी नवजोत सिंह सिद्धू के बताए इलाज के प्रति अधिकांश डॉक्टरों ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि, कैंसर जैसी भयावह बीमारी पर कीमोथेरेपी, सर्जरी या रेडिएशन के अलावा और कोई जादुई फार्मूला काम नहीं कर सकता। कैंसर के विशेषज्ञों ने तो उन पर सनसनी फैलाने तथा लोगों को गुमराह करने के आरोप जड़ने में भी देरी नहीं की। इलाज की कौन सी विधि सही है, कौन सी गलत इस चक्कर में न पड़ते हुए इस कलमकार का तो यही मानना है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने अनुभवों को उजागर कर कोई अपराध नहीं किया है। जिन्हें उनके आजमाए नुस्खे का अनुसरण करना है, वे जरूर करें, जिन्हें नहीं करना उनके लिए आलीशान अस्पतालों और लाखों रुपयों की फीस लेने वाले डॉक्टरों की कहीं कोई कमी नहीं है। सहज, सरल उपलब्ध इन नुस्खों से न तो किसी की जेब कटने वाली है और ना ही किसी तरह का शारीरिक नुकसान होने वाला है।
आज के समय में असंख्य लोग तनाव, उत्तेजना, उदासी, हताशा और निराशा की गिरफ्त में हैं। इन लक्षणों को भी रोग ही माना जाता है, जिसके इलाज के लिए ‘फाइव स्टार’ तथा ‘सेवन स्टार’ हॉस्पिटल तथा डॉक्टर हैं, जिनकी मुंह मांगी फीस को चुकाने में अच्छे-अच्छों का पसीना छूट जाता है। कुछ दिन पूर्व अखबारों में खबर पढ़ने में आयी कि ब्रिटेन में उदासी, अकेलापन, हताशा, निराशा जैसी बीमारियों का इलाज दवाओं से नहीं, कविताओं से हो रहा है। इसके लिए बाकायदा पोएम फार्मेसी खुल चुकी हैं। जहां पर अकेलापन और तनाव जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोग आकर कविताओं की किताबें पढ़ते हैं, एक-दूसरे को सुनाते हैं। कई युवा कविताएं लिखते और एक-दूसरे को सुनाकर रिश्ते बनाते हैं। अपनी तकलीफों और परेशानियों को कविताओं के जरिए एक-दूसरे को साझा करने से उनके चेहरे खिल जाते हैं और तनाव, अकेलापन धीरे-धीरे फुर्र होने लगता है। पोएम फार्मेसी के संस्थापकों का कहना है, कविता एक ऐसी कला है, जो मन की सर्वोच्च अवस्था में विकसित होती है, फिर चाहे वह अवस्था खुशी की हो या दुख-उदासी-दर्द की। कविताएं ट्रामा से बाहर निकाल सकती हैं। पोएम फार्मेसी में कविताओं के अलावा दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान की पुस्तकें भी रखी रहती हैं। वहां टेबलों पर रखी बोतलों पर भी ऐसी कविताएं अंकित हैं, जो सोये...खोये मनोबल को तेजी से जगाती हैं। यह भी गौरतलब है कि, समय-समय पर वहां अनुभवी, जिंदादिल बुजुर्ग कवि, लेखक आते हैं, जो निराशा और तनाव से छुटकारा पाने के विभिन्न मार्ग सुझाने वाली कविताओं का पाठ करते हैं। उन्हें सुनने वालों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है...।
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