Thursday, January 16, 2025

अगले जन्म जरूर आना वापस...

    बीते हफ्ते गुजरात के पोरबंदर में इंडियन कोस्टगार्ड का एक हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया। इस आकस्मिक हादसे में भारत माता के तीन लाल शहीद हो गए। तीनों के भरे-पूरे परिवार पर दु:ख का पहाड़ टूट पड़ा। हम और आप में से अधिकांश लोग ऐसी शहादत की खबरों को पढ़ने-सुनने के बाद अन्य दूसरी खबरों की तरह शीघ्र भूल-भाल जाते हैं। हमें किसी के जाने का कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जिन पर बीतती है, वही अपनों को खोने के गम और पीड़ा को समझ पाते हैं। हिंदुस्तान के शहीदों और उनके परिजनों की देशभक्ति की कहानियों से कई ग्रंथ पड़े हैं। जिनसे देश की रक्षा के लिए हंसते-हंसते कुर्बान होने की प्रेरणा मिलती है, लेकिन यह भी सच है कि सभी देशवासी अपनी संतानों को सेना में भेजने का साहस नहीं दिखाते। लेकिन जिनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी होती है वे खुद तो खुद अपने बच्चों को भी सरहद पर भेजकर गर्वित होते हैं। अपने परिजनों के युद्ध में या अपने कर्तव्य निर्वाह के दौरान शहीद होने वाले सैनिकों की विदायी परिजनों को जहां रूलाती है, वही गर्व से भी भर देती है। फिर भी उनका संयम, साहस और धैर्य उनकी अटूट देशभक्ति से साक्षात्कार करवाते हुए नतमस्तक कर देता है। कोस्टगार्ड पायलट सुधीर कुमार यादव का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर जैसे ही घर लाया गया, सभी की आंखों से आंसू बहने लगे। शहीद की जज पत्नी आवृत्ति नैथानी ने धैर्य के साथ खुद को संभालते हुए पार्थिव शरीर को नमन किया और अपने हाथ से लिखा एक पत्र शरीर के पास रखते हुए कहा कि, प्लीज इसे जरूर पढ़ लेना। कोई फॉल्ट हो गया हो तो माफ कर देना। पति के प्रति ऐसे अनूठे प्रेम, समर्पण और विश्वास के पवित्रतम भाव को देखकर सभी स्तब्ध और नतमस्तक रह गए। शहीद की मां बार-बार बेटे की तस्वीर को चूमे और अपलक निहारे जा रही थी। पार्थिव देह के पास बैठकर बिलखती मां का यह कहना हर संवेदनशील इंसान की आंखों को भिगो गया, ‘‘हाय हमार बाबू चला गा... हमार हीरा चला गा...। हमसे फूल चढ़वा रहा है, तुम्हें हमारे चढ़ाना चाहिए था। मेरे बेटन की जोड़ी फूट गई। अगले जन्म में घर वापस जरूर आना...।’’ बेटे के ताबूत पर पुष्प अर्पित करते-करते पिता की जो अश्रु धारा बही उसे रोकना मुश्किल था। धैर्यवान पिता यह कहना भी नहीं भूले कि, मेरा बेटा देश सेवा करते-करते शहीद हुआ, हम सबको उस पर गर्व है। 

    42 वर्षीय कमांडेंट सौरभ यादव के पार्थिव शरीर को कोस्टगार्ड की नौ सदस्यीय टीम जब घर लेकर पहुंची तो पूरा प्रयागराज गमगीन हो गया। उनकी बहादुरी और सहज सरल स्वभाव की गाथाएं बड़े गर्व के साथ पेश की जाने लगीं। अंतिम यात्रा के लिए ले जाते वक्त भारत माता की जयकारों के साथ-साथ कमांडेंट सौरभ अमर रहे, सौरभ तुम्हारा ये बलिदान नहीं भूलेगा हिन्दुस्तान के नारे गूंजते रहे। शहीद की छह साल की बेटी टीका की दर्द भरी चीत्कार सुनकर पत्थर से पत्थर इंसान को रोना आ गया। मासूम बिटिया बार-बार सभी से अनुरोध कर रही थी कि ‘‘कोई मेरा पापा को उठा दो। पापा आप कब तो सोये रहोगे?.. जागो न’’ तीन साल के नादान बेटे को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसे इस सच का तनिक भी आभास नहीं था कि अब वह अपने प्यारे पापा को कभी नहीं देख पायेगा। तिरंगे में लिपटे पति के पार्थिव शरीर को अश्रुपूति निगाहों से ताकती पत्नी को परिजन सांत्वना दे रहे थे, लेकिन वह बुत बनी बैठी थी। जब अंतिम विदाई देने की घड़ी आई तो वह बेहोश होकर गिर पड़ी। शहीद की मां और पिता भी बेसुध थे। उनकी सदैव सुध लेने वाले उनके कर्मठ आज्ञाकारी बेटे ने बीते महीने जाते-जाते वादा किया था कि, मैं बहुत जल्द वापिस आऊंगा। लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। इन खबरों के बीच एक खबर यह भी... 

    ‘‘बारह साल बाद 13 जनवरी को प्रारंभ होने जा रहे महाकुंभ में दो-तीन दिन के लिए घूमने आए एक माता-पिता ने अपनी 13 साल की पुत्री को जूना अखाड़े में दान कर दिया। इस महाआयोजन में देश-विदेश से करोड़ों लोग शामिल होने के लिए आते हैं। लड़की के माता-पिता का कहना था कि उनकी बेटी राखी साध्वी बनने की इच्छुक थी। उसे बचपन से ही धार्मिक कार्यों में काफी रुचि थी। नौंवी कक्षा की छात्रा राखी पढ़ने में अव्वल होने के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़- चढ़कर भाग लेती रही है। राखी को साध्वी की दीक्षा दिये जाने तथा नया नाम गौरी गिरी रखने की खबर सोशल मीडिया पर छायी तो एक वीडियो भी धड़ाधड़ वायरल होने लगा। जिसमें लड़की को कहते सुना गया कि वो बड़ी होकर आईएएस बनना चाहती थी, लेकिन अब उसे साध्वी की तरह रहना पड़ेगा। इस वीडियो के वायरल होने के बाद पुलिस ने हस्तक्षेप किया। अखाड़े के लोग भी नींद से जाग गए। लड़की को संन्यास दिलाने वाले महंत कौशलगिरी को सात साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। अखाड़े के नियमों के मुताबिक नाबालिग को कभी दीक्षा नहीं दी जा सकती। अखाड़े का नियम यह भी कहता है कि 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकी लड़कियों को अखाड़े में प्रवेश दिया जाता है। माता-पिता के आग्रह पर केवल छोटी आयु के लड़कों को जूना अखाड़े में प्रवेश दिया जाता है। लड़की अब अपने आईएएस बनने के सपने को पूरा कर पाएगी। जो लोग बेटियों को वस्तु समझते हैं और उसे ‘दान’ कर अपनी पीठ थपथपाते हैं उन्हें भी सतर्क हो जाना चाहिए। महत्वाकांक्षी लड़की अपने माता-पिता के साथ अपने घर पहुंच चुकी है...।

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