नये साल के पहले दिन तो अच्छी खबरें पढ़ने-सुनने की आकांक्षा रहती है। बीते साल की कटु यादों को भूलाने के लिए ही तो 31 दिसंबर की रात दिल खोलकर जश्न मनाया जाता है। कोशिश यह भी होती है कि नाराजगी और मनमुटाव को पीछे छोड़कर एक-दूसरे से मिला-मिलाया जाए और नववर्ष की शुभकामनाएं दी जाएं। होली, ईद, दिवाली, क्रिसमस की तरह सभी को नये साल का भी बेसब्री से इंतजार रहता है। नये साल के पहले दिन अच्छा ही अच्छा होने की हर किसी की तमन्ना रहती है, ताकि पूरा साल खुशी-खुशी गुजरे, लेकिन 2025 की शुरुआत बहुत आहत कर गई। सुबह-सुबह अखबार के पहले पन्ने पर खून से सनी कुछ खबरों ने दिल को दहलाकर रख दिया। नारंगी नगर नागपुर में एक नालायक, नराधम, नीच, लम्बट कुपुत्र ने अपने मां-बाप की इसलिए नृशंस हत्या कर दी, क्योंकि वे उसका भला चाहते थे। उसे बेहतर इंसान बनने की बार-बार नसीहत देते थे। इंजीनियरिंग में दूसरे वर्ष का छात्र हत्यारा उत्कर्ष छह साल से परीक्षा में पास ही नहीं हो रहा था, इसलिए पिता को उसके भविष्य की चिंता सताने लगी थी। सोचते-सोचते उनकी रातों की नींद उड़ जाती थी। हमारे नहीं रहने पर इकलौते बेटे का जीवन कैसे गुजरेगा। इसे तो अपने आनेवाले कल की चिन्ता ही नहीं। पढ़ने-लिखने में इसका मन नहीं लगता। यहां-वहां मटरगश्ती करते हुए टाइमपास कर रहा है। एक ही क्लास में छह साल से अटका है। शराब, गांजा और एमडी जैसे नशों के चंगुल में भी बुरी तरह से फंस चुका है। नशे तो पतन और बरबादी की जड़ होते हैं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? जब भी उसे समझाने की कोशिश करते हैं तो बेअदबी से पेश आते हुए चीखने-चिल्लाने लगता है। कई बार तो आंखें दिखाते हुए हावी भी हो जाता है, जिससे उन्हें भय लगने लगता है। उस दिन उन्होंने इतना ही तो कहा था कि जब पढ़ने में मन नहीं लगता तो परिवार की पुश्तैनी खेती-बाड़ी में क्यों नहीं लग जाते। कई युवा नये-नये तरीकों से खेती कर लाखों रुपये कमा रहे हैं। तुम भी मेहनत करोगे तो यकीनन बेहतर प्रतिफल मिलेगा, लेकिन वह तो ऐसे आगबबूला हो गया था, जैसे कि खेती का काम कोई अपमानजनक घटिया पेशा हो। 25 दिसंबर की रात भी पिता लीलाधर अपने जवान बेटे उत्कर्ष को सही राह पर चलने की सीख दे रहे थे। उत्कर्ष ने जब सीधे-मुंह बात नहीं की तो गुस्से में उन्होंने उत्कर्ष के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया। पिता के चांटे को सुझाव और नसीहत का हिस्सा मानने की बजाय उत्कर्ष ने उसी समय उनका हमेशा-हमेशा के लिए काम तमाम करने का दृढ़ निश्चय करते हुए बाजार जाकर धारदार चाकू खरीद कर पैंट की जेब में रख लिया। 26 दिसंबर की सुबह लगभग दस बजे पिता किसी नजदीकी की अंत्येष्टि में गए हुए थे। केवल उत्कर्ष और उसकी मां ही घर में थे। मां ने भी पिता की तरह बेटे को बार-बार फेल होने को लेकर कड़ी फटकार लगाते हुए गांव जाकर खेत में पसीना बहाने को कहा तो उत्कर्ष का तन-बदन सुलग गया। मां-बेटे में लगभग डेढ़ घंटे तक विवाद होता रहा। इसी दौरान गुस्से से तमतमाये उत्कर्ष ने मां की गला घोटकर हत्या कर दी और बड़े इत्मीनान से टीवी देखते हुए पिता के लौटने का इंतजार करने लगा। दोपहर साढ़े चार बजे घर लौटकर जब पिता स्नान के लिए बाथरूम जाने लगे तभी बोखलाये हिंसक जानवर की तरह उत्कर्ष उन पर टूट पड़ा। अचानक हुए आक्रमण से पिता कुछ समझ नहीं पाए। उत्कर्ष ने पिता की पीठ पर चाकू से जैसे ही वार किया तो उन्होंने अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारा। बेरहम उत्कर्ष ने उन्हें तुरंत बताया कि मां को तो मैंने पहले ही ऊपर भेज दिया है। ऐसे में अब अकेले रह कर क्या करेंगे? घबराये पिता ने बेटे को शांत होने के अनुरोध के साथ मिल-बैठकर बात करने की विनती की। उन्होंने कुछ पल प्रभु की अर्चना करने का भी पुत्र से समय मांगा, लेकिन उत्कर्ष पर तो खून सवार था। उसने अपने जन्मदाता पर रहम करने की बजाय हमेशा के लिए मौत की नींद के हवाले करके ही दम लिया। अपने मां-बाप की नृशंस हत्या करने के बाद वह किंचित भी चिंतित और विचलित नहीं हुआ। उसकी बहन शेजल जो कि बीएएमएस की छात्रा है, उसे उसने बताया कि मम्मी-पापा मेडिटेशन के लिए अचानक बेंगलुरु चले गए हैं। अपने घर में रहने की बजाय बहन के साथ वह निकट स्थित गांव में अपने रिश्तेदार के यहां उधेड़ बुन में लगा रहा। एक-एक दिन उस पर भारी पड़ रहा था। इसी दौरान घर से दुर्गंध आने की वजह से पड़ोसियों में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई। पुलिस तक भी बात जा पहुंची। पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों ने दरवाजा तोड़कर भीतर प्रवेश किया तो पति-पत्नी के शवों ने उनके पैरोंतले की जमीन खिसका दी। उत्कर्ष ने अपना गुनाह कबूलने में ज्यादा देरी नहीं लगाई। उसके हावभाव बता रहे थे कि उसे अपने जन्मदाताओं की हत्या करने का जरा भी मलाल नहीं है। उसका कहना था कि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। ये न करता तो क्या सारी उम्र उनके ताने सुनते रहता?
इसी तरह से उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में नये साल के पहले ही दिन एक युवक ने अपनी मां और चार बहनों को मौत के घाट उतार दिया। इस हत्याकांड में उसे अपने पिता का भी पूरा-पूरा समर्थन और साथ मिला। यह परिवार मूलत: आगरा का रहने वाला था। अरशद ने मां और बहनों का खून करने के बाद एक वीडियो के माध्यम से बताया कि बस्ती वालों की गंदी सोच और वासना भरी निगाहों से बहनों को बचाने के लिए उसे हत्यारा बनना पड़ा। मेरी बहनों को हैदराबाद की देहमंडी में बेचने की साजिशें रची जा रही थीं। भाई होने के नाते मैं ऐसा कैसे होने देता? अशरद का पूरा परिवार 31 दिसंबर की रात लखनऊ पहुंचा था। होटल वालों ने सोचा कि सभी नया साल सेलिब्रेट करने के लिए आगरा से लखनऊ आये हैं। होटल में अशरद ने मां और बहनों को पहले जबरन शराब पिलाई। पहले मां के मुंह में दुपट्टा ठूंसकर गला घोंटा। फिर बहनों को भी तरह-तरह की यातनाएं देकर तड़पा-तड़पा कर मार डाला। अरशद और उसके परिवार का आगरा की जिस बस्ती में घर है, वहां के लोगों का कहना है कि बाप-बेटा दोनों बेहद सनकी हैं। मां तथा बहनों को कभी भी घर से बाहर कदम ही नहीं रखने देते थे। उनके लिए तो घर ऐसा कैदखाना था, जहां से रिहाई असंभव थी। ज़रा-ज़रा-सी बात पर पड़ोसियों से लड़ना-झगड़ना बाप-बेटे की आदत में शुमार था। खुद ही लड़ते थे और खुद ही पुलिस को बुला लेते थे। बस्ती वालों पर बहनों को बेचने और जिस्म फरोशी कराने की साजिश रचने के आरोप भी पूर्णत: बेहूदा और असत्य हैं। अरशद की साल 2017 में जिस लड़की से शादी हुई थी। वह सिर्फ दो महीने में ही इतनी परेशान हो गई कि, ससुराल को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर मायके चल दी। मायके वालों का कहना था कि, अरशद का बाप अपनी बहू पर बुरी नजर रखता था। इसलिए फटाफटा तलाक का रास्ता चुना गया।
ये खबरें नहीं, धारदार खंजर हैं, इनकी कातिल चुभन दिल-दिमाग को दहलाकर सुन्न कर देती है। मां, बाप, भाई-बहन और पति-पत्नी के रिश्तों से बढ़कर तो कुछ भी नहीं होता, लेकिन कुछ वहशी हैवान प्रवृत्ति के लोग इन्हीं पवित्र, आत्मिक रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कत्ल करने में ज़रा भी नहीं सकुचाते। कोई भी माता-पिता अपनी संतान के अहित की कैसे सोच सकते हैं! वे तो उन्हें आकाश की बुलंदियों पर देखना चाहते हैं। इसके लिए वे अपना सबकुछ लुटाने को भी तत्पर रहते हैं, लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि उनके बच्चे नालायक साबित हो रहे हैं। लोग उनकी परवरिश पर सवाल उठा रहे हैं तो वे जिस गम और टूटन से गुजरते हैं उसे बच्चे कम ही समझ और जान पाते हैं। उन्हें तो मां-बाप की नसीहत शूल की तरह चुभती है। यहीं से जो टकराव शुरू होता है उसके दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। भारतीय नारियां अपने पति को मात्र दिखावे के लिए परमेश्वर नहीं मानतीं, लेकिन कुछ कपटी पुरुष पत्नी की भावना को पढ़ ही नहीं पाते। किसी भी बेटे, पिता, भाई, बहन और पति का कातिल चेहरा कई-कई सवाल छोड़ जाता है...।
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