Thursday, June 13, 2024

खरी-खरी

    इस बार के लोकसभा चुनावों के नतीजे कितना कुछ कह गये। नादान भले ही अनदेखी करें, लेकिन समझदारों की आंखे खुल गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया था। विपक्ष ने भी जी तोड़ पसीना बहाया, लेकिन देश के सजग मतदाताओं ने उन्हें जिस परिणाम से रूबरू करवाया उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सबल साथी इस बार 400 पार के नारे को गुंजायमान करते रहे तो वहीं विपक्ष का इंडिया गठबंधन इसकी हवा निकालने के लिए कमर कसे रहा। लड़ाई वाकई बड़ी जबरदस्त थी। देश के अधिकांश मीडिया ने भी एनडीए के 400 पार और भाजपा के 370 पार के दावों को सही साबित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। उसके ओपिनियन पोल से लेकर एक्जिट पोल तक में इंडिया गठबंधन फिसड्डी और बलहीन था, लेकिन चुनाव परिणामों ने तो जैसे खलबली मचा दी। इस चुनाव को मोदी ने अपने नाम पर लड़ा। उनकी गारंटी उतनी असरकारी नहीं रही, जितनी की उन्हें उम्मीद थी। भारतीय मतदाता के मन को थाह पाना कभी भी आसान नहीं रहा। प्रधानमंत्री अपनी ही बनारस सीट से उतने मतों से नहीं जीत पाए, जितने का धुआंधार प्रचार किया जा रहा था। बनारस में यह नारा भी बड़ी दमदारी के साथ उछाला गया कि अबकी बार दस लाख पार, लेकिन नरेंद्र मोदी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी से लगभग डेढ़ लाख मतों से ही विजयी हो पाए। जिस राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मुद्दे पर भाजपा हवा में उड़ रही थी उसकी भी मतदाताओं ने हवा निकाल दी। पांच सौ साल बाद प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। सभी भारतीयों के लिए यह गर्व की बात है, लेकिन यहीं से भाजपा का हारना पूरी दुनिया को अचंभे में डाल गया। कुछ गुस्साये लोगों ने वहां के मतदाताओं को गद्दार के साथ-साथ अहसान फरामोश करार दे दिया, जिनकी राम मंदिर तथा श्रीराम के प्रति कोई आस्था नहीं। अयोध्या वासियों पर  अपना तेजाबी क्रोध दर्शाने वालों को अब कौन बताये कि रोजी-रोटी के लिए दिन-रात संघर्ष करने वालों के लिए पूजा-पाठ ही सबकुछ नहीं। उनकी और भी कई चिंताएं और तकलीफें हैं। भारतीय वोटर को प्रजातंत्र का भरपूर मान-सम्मान करना आता है। हर पूजा स्थल पर उसका मस्तक झुक जाता है। वह वहीं से शक्ति भी पाता है। फिर राम तो जन-जन के आराध्य हैं...।

    भाजपा को अनुमान से कम वोटों का मिलना यह भी बताता है कि सजग मतदाता हिंदू-मुस्लिम विभाजन की राजनीति से तंग आ चुके हैं। उन्हें धार्मिक भावनाओं से बार-बार खिलवाड़ पसंद नहीं। डराने और चिंतित करने वाली सच्चाई तो ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृत पाल सिंह की चुनावी जीत है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत असम जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृत पाल सिंह का लोकसभा चुनाव जीतना कट्टरपंथियों के उभरने और ताकतवर होने का प्रमाण है। अमृत पाल के विजयी होने के पश्चात उसकी मां ने कहा कि, लोकसभा चुनाव में मेरे बेटे की जीत मारे गये खालिस्तानियों को समर्पित है। बॉलीवुड अभिनेत्री, नवनिर्वाचित सांसद कंगना रानौत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर महिला सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर ने थप्पड़ जड़ दिया। यह थप्पड़ बाज सिरफिरी महिला सांसद कंगना के किसान आंदोलन के समय दिये गये बयान से नाराज और असहमत थी। इस बयान में कहा गया था कि धरने पर बैठने वाली महिलाएं सौ-सौ रुपये के लालच में आंदोलन में शामिल हुई थी। कुलविंदर की मां भी तब किसान आंदोलन के धरने में शामिल होती थी। इसलिए कुलविंदर ने थप्पड़ जड़ कर अपना गुस्सा उतारा। कुछ लोगों ने एयरपोर्ट जैसे संवेदनशील स्थल पर तैनात सुरक्षा कर्मी की इस शैतानी हरकत को सही ठहराने के लिए खुद को हद से नीचे गिरा दिया। इस शर्मनाक थप्पड़ कांड पर जिन बुद्धिजीवियों ने तालियां बजायीं, उन्हीं ने कभी ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार की भी पीठ थपथपायी थी। चुनाव दर चुनाव मात खाते आ रहे कन्हैया कुमार का हश्र आज पूरा देश देख रहा है। जिन्हें लोकतंत्र और जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना नहीं आता वे कभी भी देश के लिए खतरा बन सकते हैं। अतिवादी सोच और आतंकवाद के बीच जो महीनतम रेखा है, उसे मिटने में ज्यादा देरी नहीं लगती। 

    नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार विशाल भारत की कमान संभाल ली है। उनका फिर से प्रधानमंत्री बनना विपक्ष को शूल की तरह चुभा है। यह भी सच है कि देश के विपक्ष में उनकी टक्कर का फिलहाल दूर-दूर तक और कोई चेहरा नहीं। मतदाताओं ने थोड़ा बहुमत से नीचे लाकर भाजपा और नरेंद्र मोदी को सावधान होने का संदेश और सबक दे दिया है। इस देश का आम से आम आदमी भी हिंदू-मुस्लिम के बीच वैमनस्य और झगड़े नहीं चाहता। वह नफरत का नहीं, आपसी भाईचारे का पक्षधर है। इस बार के लोकसभा में मतदान करते वक्त वह भूला नहीं था कि देश के जन-जन के चहुंमुखी विकास के वादे की बदौलत सत्ता पाने वाले हुक्मरान सत्ता पर काबिज होने के बाद बुनियादी मुद्दों को विस्मृत कर विभाजनकारी की राजनीति करते रहे। वोटों के लिए राम मंदिर को भुनाने वालों को बुलडोजर तो याद रहा, लेकिन गरीबों को छत और बेरोजगारों को रोजगार देना भूल गए। धन्नासेठों के तो करोड़ों-अरबों रुपये बार-बार माफ किये, लेकिन किसानों के तीस-चालीस हजार रुपये बैंक कर्जे को माफ करने में आनाकानी करते रहे। मेट्रो, पुल और सड़कों का जाल बिछाने वाले यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई पर भी ध्यान देते, रोजगार और नौकरियों के लिए कारखानों का निर्माण करते तो मतदाता उनकी झोली में वोट डालने में कंजूसी नहीं करते। तमाम अटकलों, अवरोधों के बाद अब जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए सरकार बन चुकी है। विपक्ष भले ही बेकद्री करता रहे, लेकिन नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत ने पूरी दुनिया में उनका कद बढ़ाया है। गठबंधन सरकार के सक्षम नेता से अब सभी भारतीय वास्तविक विकास और बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। नए रोजगार के साथ-साथ गांव, गरीब और किसान की खुशहाली की मांग कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी के लिए यह अंतिम मौका है। इसमें उनकी संपूर्ण प्रतिष्ठा दांव पर लगी है...।

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