लगता है, कोई फिल्म देख रहे हैं। शराब, कबाब, शबाब, मारधाड़ के साथ-साथ अजब-गजब नाटक-नौटंकी। नायक और खलनायक एक ही रंग में। पुलिस है तो असली, लेकिन नकली का भ्रम होता है। फुर्तीले अपराधियों के समक्ष बेबस और नत-मस्तक। कारण कई हैं। ऐसा भी नहीं कि सारे वर्दीधारी एक जैसे हैं। कुछ कर्मठ भी हैं। किसी भी कीमत पर नहीं बिकते। कर्तव्य उनके लिए सर्वोपरि है। किशोर तथा युवा अपराध करने के कीर्तिमान बना रहे हैं। कानून का सम्मान करना उन्होंने सीखा ही नहीं। औलादों के प्रति अपने फर्ज को निभाने में माता-पिता तथा अन्य परिजन भी कहीं-कहीं फिसड्डी साबित हो रहे हैं। गरीबों के बच्चों को उनकी परिस्थितियां पतन के मार्ग पर ले जा रही हैं, लेकिन अमीरों की अधिकांश संतानें सुख-सुविधाओं का दुरुपयोग कर संगीन अपराधी बन रही हैं। पति-पत्नी मॉडर्न कहलाने के चक्कर में क्लबों, फाईव स्टार होटलों में संग-संग नाचते गाते हैं। स्कॉच, वोदका के कई-कई पैग हलक में धकेल कर मदमस्त हो जाते हैं। उन्हें इसी रंगीनी में खुशी और संतुष्टि मिलती है। उनके माथे पर तब भी कोई शिकन नहीं आती, जब वे अपनी आलीशान कार से किसी की हत्या कर गुजरते हैं। उनके लिए तो यह नशे में हुई भूल है, लेकिन वो तो जीते-जी मर जाते हैं, जिनके बेटे-बेटियां बेकाबू रफ्तार के शिकार होकर सदा-सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। धन्नासेठों की बिगड़ी औलादों का शराब पीकर बहकना कोई नयी बात नहीं। यह सच भी बेपर्दा हो चुका है कि बिगड़े रईसों की बेटे-बेटियां अपने बाप-दादा के पद चिन्हों पर चलने में देरी नहीं लगातीं। बाप-दादा भी उनके शैतानी रंग-ढंग को देखकर कोई चिन्ता-फिक्र नहीं करते। उनके होश तो तब ठिकाने आते हैं, जब उन्हें अपने बिगड़ैल बच्चों के कारण शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। कभी-कभी तो जेल भी जाना पड़ता है।
सरकारें भी जनहित कम, स्वहित की ज्यादा चिंता रहती है। शहरों, गांवों में शराब की दुकानें खुलवा कर लोगों को नशे का गुलाम बनाने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। देश के अधिकांश महानगर तो नशे के सौदागरों के हाथों का खिलौना बन कर रह गये हैं। पाठकों को यह जानकर हैरानी होगी कि लगभग तीस लाख की जनसंख्या वाले शहर नागपुर में 375 से ज्यादा बार, पब और रंगारंग रेस्टारेंट हैं। कई बार और पब अपराधों के ठिकाने बन चुके हैं। जहां नशे में हत्याएं किए जाने की खबरें अक्सर सुनने में आती हैं। इन खतरनाक ठिकानों पर नाबालिगों को शराब के साथ सभी तरह के मादक पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस शहर में क्लबों की भी भरमार है। जहां रईसों की महफिलें सजती हैं। पुरुषों के संग महिलाएं भी शराब के नशे में डुबकियां लगाती हैं। इन क्लबों की मेंबरशिप के लिए लाखों रुपये देने पड़ते हैं। आम आदमी इनका मेंबर बनने का सपना भी नहीं देख सकता। नशा किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। उसके लिए स्त्री और पुरुष एक बराबर हैं।
बीते महीने शहर के नामी क्लब में दो रईस महिलाओं ने भरपूर नशा होने तक कई पैग शराब पी। लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ बाहर निकलने के बाद अपनी मर्सीडीज को तूफानी रफ्तार से सड़क पर दौड़ाया, जैसे हवा में उड़ रही हों। उन्हें मोटर साइकिल तथा पैदल चलने वाले लोग कीड़े-मकोड़े से लग रहे थे। इसी नशे की धुन में महिला कार चालक ने दो मोटर साइकिल सवारों को कार के पहियों से रौंद डाला। घटना के छह घण्टे के बाद शराबी महिला की मेडिकल जांच की गई। उस समय भी शराब की गंध आ रही थी। उसके बोलने का अंदाज भी अत्यंत आपत्तिजनक था। दरअसल वह नहीं, उसका पैसा बोल रहा था। दो युवकों की जान लेने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। मसीर्र्डीज की टूटी-फूटी हालत चीख-चीख कर नशेड़ी महिला की अंधी लापरवाही की हकीकत को बयां कर रही थी। मर्सीडिज की नेम प्लेट भी गायब थी। इस हत्यारी महिला को बचाने के लिए उनके परिजनों ने कई तरह के दांव पेंच आजमाये। कोर्ट से जमानत दिलवाने के लिए महंगे वकीलों की फौज तैनात कर लाखों रुपये फूंक दिए। फिर भी उनकी दाल नहीं गल पाई। कोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया।
पुणे में नशे में धुत होकर युवक-युवती को अपनी कार से रौंदने वाले नाबालिग को बचाने के लिए अस्पताल के धनलोलुप डॉक्टर ऐसे बिक गए, जैसे यही होना कर्म और धर्म रहा हो। अपने शराबी बेटे को बचाने के लिए पिता और दादा ने पहले अपने ड्राइवर को फांसने की चालें चलीं। वह यह दिखाना चाहता था कि जब कार ने दो जानें लीं, तब कार नाबालिग नहीं, ड्राइवर चला रहा था। जब यहां दाल नहीं गली तब मां की ममता ने जबरदस्त जोर मारा।
नाबालिग के बाप-दादा की तर्ज पर उसने भी अपने नशेड़ी बेटे को बचाने के लिए कानून की आंखों में धूल झोंकने की ठानी। डॉक्टरी जांच में बेटा शराबी साबित न हो इसके लिए उसने अपने ब्लड सैंपल को बेटे के ब्लड सैंपल में बदल कर शराब पीकर एक्सीडेंट करने वाले हत्यारे बेटे को बचाने का जी-तोड़ प्रयास किया, लेकिन पुलिस को चकमा देने की चाल की दाल नहीं गल पायी। देश का केंद्र बिंदु है, शहर नागपुर। यहां नये-नये प्रयोग होते रहते हैं। नेता, कवि, व्यंग्यकार, पत्रकार, संपादक तरह-तरह के करिश्मों से देश और दुनिया को चौंकाते रहते हैं। यहां की पुलिस भी इस कलाकारी में खासी पारंगत है। प्रदेश और शहर में शराब पीकर वाहन चलाने वालों की बढ़ती संख्या से हैरान-परेशान नागपुर की पुलिस ने शहर के बार, पब, लाउंज और रेस्टारेंट का बारीकी से निरीक्षण करने का मन बनाया। डीएसपी, एसपी ने जब सादे लिबास में विवादित बार, पब, होटल में चुपके-चुपके दस्तक दी तो आधी रात को नाबालिग लड़के, लड़कियों को भी बीयर, शराब तथा नशीले हुक्के के कश लगाते पाया। पुलिस अधिकारियों को यह नज़ारा हतप्रभ (?) कर गया। यह भी पता चला है कि पूरे महाराष्ट्र में नाबालिगों को शराब से दूर रखने के लिए शीघ्र ही पबों तथा बारों पर नजर रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तकनीक के जरिए सभी पबों और बारों में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन को अब सीधे हर जिले के एसपी दफ्तर से जोड़ा जायेगा। किसी पब या बार के देरी तक चलने, नियम का उल्लंघन करने पर उसका अलार्म एसपी, डिविजनल एसपी तथा कमिश्नर के मोबाइल पर बजेगा और इसके तुरंत बाद कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
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