Thursday, July 11, 2024

अब तो पीछा छोड़ो बाबा...

    उत्तर प्रदेश  के हाथरस में एक  सत्संग  के दौरान  मची तूफानी भगदड़ ने 123 भक्तों को मौत की दर्दनाक नींद में सुला दिया। इस हादसे ने यह भी बता दिया कि हम नहीं चेतने और सुधरने वाले। अतीत से सबक नहीं लेने की हमने कसम खा रखी है। भले ही हमारी जान चली जाए, लेकिन  हम  स्वयंभू  साधू -संतों, प्रवचनकारों के दरबारों में जाना नहीं छोड़ सकते। हमें डॉक्टरों पर  कम, तंत्र, मंत्र  और  पाखंड  पर ज्यादा भरोसा है। हम मेहनत  की बजाय  चमत्कार  पर  यकीन रखते हैं। अखबारों, न्यूज चैनलों और यहां वहां बार-बार  पढ़ने- सुनने के बाद कि अपने देश में एक-दूसरे की देखा-देखी कुछ धूर्त चेहरे संत और  प्रवचनकार बन जाते हैं, लेकिन हम सावधान नहीं होते। जब तक उनका पर्दाफाश होता है, तब तक असंख्य लोग लुट-पुट  कर तबाह  हो चुके होते हैं। हाथरस में जिस तथाकथित बाबा के तथाकथित सत्संग  में हत्यारी भगदड़ मची, उसका नाम है, सूरजपोल उर्फ भोले बाबा। सूरज पाल की पूरी कुंडली भी देश तब जान पाया जब उसके श्रद्धालू मौत का निवाला बनने के बाद अखबारों और न्यूज चैनलों की ऐसी खबर  बने जिसे पढ़ सुन कर बहुत जल्दी बिसरा दिया जाता है। सिर्फ परिवार वाले ही कभी भूल नहीं पाते। उनके जख्मों की कीमत लगाने वाले भी उन तक पहुंच जाते हैं। सूरज पाल की बाबा बनने की कहानी कुछ यूं है...पहले वह अपने गांव  में खेती किसानी किया करता धा। बाद में उसे पुलिस में सिपाही की नौकरी बजाने का मौका मिल गया। इसी दौरान  यौन  शोषण  के आरोप  में उसे जेल जाना पड़ा।

    इसी जेल यात्रा के दौरान उसके मन में बाबा बनने का  विचार  बलवती हुआ। 17 साल तक खाकी वर्दी में रहकर सूरज पाल ने नेताओं तथा प्रवचनकारों के ठाठ-बाट करीब से देखे थे। नकली बाबा किस तरह से लोगों का अपना अंध भक्त  बनाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं। खासतौर पर गरीब, कम पढ़ी-लिखी, विभिन्न तकलीफों से जूझती महिलाओं पर कौन सा जाल फेंकते हैं, इसका नज़ारा उसने बहुत करीब से देखा-जाना था। जेल  से बाहर आते ही वह धुंआधार प्रचार करने लगा कि सपने में उसकी हर रात ईश्वर से मेल-मुलाकात होती है, उनका आदेश है कि मैं लोगों के दुःख दर्द दूर करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दूं। चालबाज सूरज पाल ने पांच-सात लोगों को भी अपने पक्ष में प्रचार करने के काम पर लगा दिया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। पहले आसपास फिर दूर-दराज तक के लोग माथा टेकने के लिए सूरज पाल जाटव उर्फ भोले बाबा के दरबार में आने लगे। उसने भगवा की बजाय सफेद सूट, काला चश्मा, काले जूते और किस्म-किस्म की टाई धारण कर अपनी अलग छवि बनायी। सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने वाले भोले बाबा ने हमेशा चंदा नहीं लेने की बात कही, लेकिन चंद वर्ष में 100 करोड़  रुपए  की सम्पति  खड़ी कर ली!

    वर्तमान  में विभिन्न  स्थानों पर इसके 24 लक्जरी आश्रम  हैं। वह किसी पर भरोसा नहीं करता। जब उसने सत्संग की दुकानदारी प्रारम्भ  की थी, तब भीड़ के बीच अपने लोगों को बैठाता था। वे लोग अपनी-अपनी समस्या बताते और बाबा तुरंत उसका निदान बता देता। इससे भीड़ को भी यकीन होता चला गया कि ये बाबा तो बहुत चमत्कारी है। धीरे-धीरे यह भी प्रचारित कर दिया गया की धरती के इस भगवान के चरणों की  धूल  तथा आश्रम के बाहर  लगे  हैंडपंप के पानी में गंभीर से गंभीर रोगों  को खत्म करने की करिश्माई शक्ति है।

    कुछ ही वर्षों में इसके सत्संग में उस गरीब तबके के लोगों  की बेतहाशा भीड़ आने लगी, जो दो वक्त की रोटी के लिए सतत जूझती रहती हैं। जब उसने देखा कि भीड़ को संभालना मुश्किल हो रहा है तो उसने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम जुटाने में देरी नहीं की। दुनियाभर की तामझाम और ठाठ-बाट  भरा जीवन  जीते इस आधुनिक असंत ने 5000 से ज्यादा पिंक वर्दी वाले जवानों के साथ-साथ 100 ब्लैक कैट कमांडो की नियुक्ति की।  उसकी इस आर्मी में उसकेकट्टर अनुयायियों को ही रखा गया है। घाट-घाट का पानी पी चुके हुए इस चालबाज ने अपनी सेना में महिलाओं को भी शामिल  करवाया। दलितों, पिछड़ों में जबरदस्त पैठ होने के चलते विभिन्न राजनीतिक  दलों के नेता  इसके दर्शन कर खुद को सौभाग्यशाली मानने लगे। दो जुलाई, मंगलवार  को सत्संग  में  दो लाख से ज्यादा का जमावड़ा  था। आयोजक गदगद थे। भीड़ भी उत्साहित थी। पुरुषों से कहीं बहुत ज्यादा औरतें हैं। पंप का चमत्कारिक पानी तथा अपने भगवान  के चरणों की धूल  का प्रसाद  पाने के लिए  दूर-दूर  से आईं थीं। जैसे ही कार्यक्रम  समाप्त  हुआ   भगवान  अपनी चमचमाती कार में सवार हो चल पड़ा।  तेजी से दौड़ती कार के पहियों से उड़ती धूल को अपने माथे पर लगाने के  लिए असंख्य महिलाओं, पुरुषों तथा बच्चों की भीड़ कार के पीछे दौड़ पड़ी। इसी अंधाधुंध भागमभाग से मची भगदड़  में गिरने, दबने, कुचले और मसले जाने से भक्त  दम तोड़ने लगे। देखते ही देखते 121 इंसानों की सांसों  की डोर  टूट गई। अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाने की तमन्ना के साथ सत्संग में पहुंचे अनुयायियों को मरता देखने के बावजूद भोले बाबा ने सरपट भागने में ही अपनी भलाई समझी। इस भगदड़ में 108 महिलाओं के साथ आठ मासूम बच्चों को भी अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। किसी के सिर में गंभीर चोट लगी, किसी का लीवर-फेफड़ा फटा, किसी ने दम घुटने तो किसी ने ब्रेन हेमरेज हो जाने की वजह से हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से विदायी ले ली। अत्यंत दुःखद  तथ्य यह  भी है कि शातिर आयोजकों के द्वारा उनका पीड़ितों के जूते, कपड़े और  अन्य  सामानों  को खेत में फेंकने की शर्मनाक हरकत भी की गई। उनका इरादा था कि किसी भी तरह से भगदड़  होने के सच को दुनिया से छिपाया जाए। यह स्वयंभू भगवान यदि हादसे के स्थल से कायर बन नहीं भागता तो वह खलनायक नहीं नायक कहलाता...लेकिन सच तो अंततः  सामने आ ही जाता है....


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