देश की राजधानी दिल्ली। तपते जून का आखिरी हफ्ता। रात को जल्दी सोने के कारण सुबह छह बजे का अलार्म बजते ही उठ खड़ा हुआ। दो गिलास पानी पीने के बाद मार्निंग वॉक के लिए निकल पड़ा। रानी बाग में स्थित जाने-पहचाने बाग तक पहुंचने में करीब दस मिनट लगे। बीस साल पूर्व की हरियाली छिन चुकी थी। बाग उदास...उदास लग रहा था। एक्सरसाइज के नये -नये यंत्र जरूर सज चुके थे। पुरुष, महिलाएं और लड़के लड़कियां वॉक के साथ साथ आधुनिक साधनों से कसरत कर पसीना पसीना हो रहे थे। पुरुष एक दूसरे का राम...राम,जय श्रीराम से अभिवादन कर रहे थे। नमस्कार, गुड मार्निंग का चलन लगभग नदारद था। मैंने लगभग एक घंटे तक सैर करने के बाद बाहर की राह पकड़ी। आठ बजने जा रहे थे। विभिन्न फलों के जूस, नारियल पानी तथा सब्जी के ठेलों पर ग्राहक खड़े नज़र आ रहे थे मैंने चाय की बजाय नारियल के पानी का आनन्द लेना बेहतर समझा।
नारियल पानी पीते-पीते सामने लगे, आम आदमी...मोहल्ला क्लीनिक के विशाल बोर्ड पर नज़र जा अटकी। वहां पर खड़े पढ़े -लिखे दिखते एक शख्स से क्लीनिक के खुलने खुलाने तथा प्रदत की जाने वाली सुविधाओं के बारे में पूछा तो उस ने पहले तो छूटते ही केजरीवाल को पंजाबी में गाली दी फिर कहा इस से झूठा फरेबी नेता दिल्ली वालों नें पहले तो कभी नहीं देखा। इस चालबाज ने जगह-जगह क्लीनिक तो खुलवा दिए, लेकिन वहां न दवाइयां हैं और न ही ढंग के डॉक्टर। शुरू-शुरू में कुछ दिनों तक मरीजों को संतुष्ट किया गया। फिर देखते ही देखते बदहाली नज़र आने लगी। नब्बे प्रतिशत मोहल्ला क्लीनिक महज दिखावा बन कर रह गए हैं। तभी वहीं पर खड़े एक उम्रदराज सरदार जी बोल पड़े, आम आदमी पार्टी की सरकार से दिल्ली वालों को बहुत उम्मीदें थीं।अपने पहले कार्यकाल में केजरी सरकार ने आम आदमी का दिल जीता। सरकार ने यदि बेहतर काम नहीं किया होता तो दिल्ली की जागरूक जनता दोबारा उसे सत्ता का ताज क्यों पहनाती, लेकिन यहीं भारी गड़बड़ी हुई। आम आदमी पार्टी के सर्वोच्च नेता सत्ता के नशे में मदहोश होते चले गए। भ्रष्टाचार और अखंड भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बिगुल फूंकने वालों ने ऐसे लूट-पाट करनी प्रारम्भ कर दी जैसे हाथ में आया यह अवसर कहीं छिन न जाए। इसी चक्कर में जेल के मेहमान बनते चले गए।
यदि वाकई ये निरपराध होते तो कोई भी ताकत इनका बाल भी बांका नहीं कर पाती। अपने देश का कानून सभी के लिए एक समान है। अदालतें सबूत चाहती हैं। नाटक नौटंकी, आरोप-प्रत्यारोप पर दिमाग नहीं खपातीं। ऐसा देश में और कहीं नहीं हुआ जैसा दिल्ली में दिख रहा है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों को जेल में सड़ना और जमानत के लिए मर...मर कर तरसना पड़ा हो...।
मैंने वहां से खिसक लेने में अपनी भलाई समझी। पूरा दिन कुछ सरकारी-अखबारी काम में बीत गया। रात का भोजन करने तथा भांजे धीरज से इधर-उधर की बातें करने के बाद बिस्तर की शरण ले ली। अच्छी गहरी नींद में था। तभी चीचने-चिल्लाने की आवाजों ने नींद में खलल डाल दी। धीरज जल्दी बाहर आओ, सामने की बिल्डिंग में आग लगी है। कोई जोर-जोर से दरवाजा खटखटा रहा था। धीरज और मैं हड़बड़ा कर बाहर निकले। सामने की चार मंजिला बिल्डिंग से गहरा काला धुंआ बड़ी तेजी से बाहर फैल रहा था। नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी कमरों में भयंकर आग लगी थी। चीख़-पुकार की आवाजें दिल दहला रहीं थीं। आग लगते ही बिल्डिंग के अधिकांश निवासी बाहर आ चुके थे, लेकिन कुछ उम्रदराज स्त्री पुरुष अंदर फंसे थे। आग बुझाने के साथ -साथ उन्हें किसी भी तरह बचाने की जद्दोजहद जारी थी। सभी को फायरब्रिगेड का इंतजार था, जो अंतत: तब पहुंचा जब तक बहुत कुछ जल कर राख हो गया। सुखद यह रहा कि तीसरी मंजिल में जहरीली धुंधलाहट में छटपटाते उम्रदराज दम्पति को फायर ब्रिगेड की सीढ़ी से उतार लिया गया। दमे के पुराने रोगी होने की वजह उनकी जान पर बन आयी थी। एसी के फटने की वजह से अचानक लगी भयंकर आग को पूरी तरह से बुझाने में लगभग चार घंटे लगे। दिल्ली में एसी का चलन बहुत बढ़ गया है। घर-घर में एसी लगे हैं। लोगों ने अवैध कनेक्शन भी रखे हैं।
इमारत तक पहुंचने का रास्ता यदि बेहद संकरा नहीं होता तो फायरब्रिगेड की गाड़ी जल्दी पहुंच जाती, जिससे नुकसान कम होता। देश की राजधानी में अनेकों बस्तियां ऐसी हैं, जिनमें प्रवेश करने के रास्ते अत्यंत संकरे हैं, उनमें कार बहुत मुश्किल से जा पाती है। स्कूटर, मोटरसाइकिल चालकों के घबराहट के मारे पसीने छूट जाते हैं। फिर भी कुछ युवा तो तीन-तीन साथियों को पीछे बिठा कर ऐसे स्कूटर, मोटर साइकिल दौड़ाते नज़र आते हैं जैसे वे वर्षों सर्कस में अपने रोमांचक खेल, तमाशे दिखा चुके हों।
अधिकांश रिहाइशी इलाकों में लोग अपने वाहन खड़े कर बेफिक्र हो जाते हैं। जगह-जगह बिजली के खम्भों की लटकती तारें भयग्रस्त कर देती हैं, लेकिन यह भी सच है कि एक ही कतार में एक दूसरे से चिपके इन घरों में रहने वाले लोग-बाग का दिल बहुत विशाल है। किसी भी आपदा और संकट के समय एक दूसरे के साथ खड़े होने में देरी नहीं लगाते। अपना तन, मन, धन लगा देते हैं। यही तो हिन्दुस्तान की वास्तविक तस्वीर है।
दिल्लीवासी गजब के धर्म प्रेमी होने के साथ साथ परोपकारी भी हैं। कोरोना-काल में ग़रीबों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए यहां के अनेक युवा बढ़-चढ़कर सामने आए। उन्होंने लोगों के सहयोग से मिले धन तथा अपनी जेब की रकम से अनाज, कपड़े तथा अन्य समान खरीद कर जरूरतमंदों तक पहुंचाने में अपने सुख चैन की बेहिचक कुर्बानी देते हुए बिना किसी भेदभाव के इंसानियत के धर्म का पालन किया। कोरोना-काल की विदाई के बाद भी कुछ स्थानों पर अभी भी ‘भोजन सेवा’ पर विराम नहीं लगाया गया है। उन्हीं में शामिल है, रानीबाग, जहां पर प्रतिदिन ‘सेवा रसोई’ के माध्यम से मात्र पांच रुपए में जरूरतमंदों को भरपेट खाना खिलाया जाता है। हां, जो पांच रुपए का भुगतान नहीं कर पाते उन्हें भी मान सम्मान के साथ संतुष्ट किया जाता है। रसगुल्ला, गुलाबजामुन, कलाकंद या अन्य कोई मिठाई भी सभी को भोजन के साथ जरूर परोसी जाती है। पहले की तुलना में अब काफी लोग सेवा रसोई से जुड़ चुके हैं। हार्दिक सेवा भावना और ईमानदारी का ही प्रतिफल है कि, दूर-दूर के अनजाने दानवीर भी बड़ी खामोशी और बिना किसी प्रचार के लाखों रुपए पहुंचा देते हैं।
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