Thursday, December 5, 2024

क्या-क्या होने का दौर

     कैसा समय दस्तक दे चुका है। सब अपने में मस्त-व्यस्त हैं। दूर तो दूर आसपास से भी बेखबर! महानगर की एक विख्यात कॉलोनी में स्थित शानदार फ्लैट में अकेले रहने वाले 80 वर्षीय अमन खन्ना की सड़ी-गली लाश मिलने की खबर अखबारों में जिसने भी पढ़ी, स्तब्ध रह गया। उनकी मौत दस-बारह दिन पूर्व हो चुकी थी। बदबू के फैलने पर आसपास के निवासियों का माथा ठनका तो पुलिस कोे सूचित किया गया। मृतक खन्ना के दोनों बेटे वर्षों से सात समंदर पार अमेरिका में रह रहे हैं। खन्ना अच्छी खासी शिक्षक की नौकरी से रिटायर होकर अपनी जिंदगी अपने अंदाज से जी रहे थे। उनकी धर्मपत्नी का दस वर्ष पूर्व निधन हो चुका था। बच्चों के लाख अनुरोध के बावजूद उन्होंने अकेले अपने शहर में रहना ही पसंद किया। जवानी के दिनों में अपने कुछ एकदम करीबी दोस्तों के साथ महफिले सजाने वाले खन्ना तब नितांत अकेले पड़ गए, जब कोरोना काल में उनके तीन लंगोटिया यार चल बसे और एक ने सिंगापुर में रह रही अपनी इकलौती बेटी के यहां जाकर रहना प्रारंभ कर दिया। नये रिश्ते बनाने से परहेज करने और अपने आप में सिमटे रहने वाले खन्ना को साल भर पहले तक अक्सर नियमित मॉर्निंग वॉक पर जाते देखा जाता था। गार्डन में भी उनकी किसी से ज्यादा बातचीत नहीं थी। आज के जमाने में जब लगभग हर हाथ में मोबाइल है, खन्ना लैंड लाइन के ही भरोसे थे, जिसकी घंटी न के बराबर बजती थी। किराना वाले, दूध वाले, डॉक्टर और धोबी से काम पड़ने पर ही खन्ना लैंड लाइन फोन को हाथ लगाते थे। उन्हें मोबाइल से हरदम चिपके रहने वाले लोगों पर रह-रह कर बड़ा गुस्सा आता था। बाइक चलाते समय मोबाइल कान पर लगाकर बाइक दौड़ाने वाले कॉलोनी के दो-तीन लड़कों को जब उन्होंने फटकार लगाई थी, तो उन्हें गंदी गालियों के साथ-साथ उनके घूसे और मुक्के भी खाने पड़े थे। बुरी तरह से आहत खन्ना ने जब लड़कों के मां-बाप से उनकी औलाद की गुंडागर्दी की शिकायत की, तो उन्होंने उलटे उन्हें ही खरी-खोटी सुनाते हुए अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पुलिस को उनके कमरे से मिली डायरी में और भी बहुत कुछ दर्ज मिला। लगभग तीस साल तक महानगर के नामी-गिरामी हाईस्कूल में एक आदर्श शिक्षक के तौर पर अपना दायित्व निभाने वाले खन्ना के पढ़ाये अनेकों छात्र आज एक से एक ऊंचे सरकारी पद पर आसीन हैं। कुछ ने उद्योग और राजनीति में भी बेहतर पैठ बनाई है। रिटायरमेंट से पहले खन्ना मास्टर जी के यहां रौनक लगी रहती थी। उनका मन भी प्रफुल्लित रहता था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे ऐसा सन्नाटा छाता चला गया, जिसने उन्हें उदास और निराश कर दिया। उन्होंने बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया और लोगों ने भी उनकी सुध-बुध लेनी छोड़ दी।

    पहले घर-घर पहुंचे टेलीविजन ने संबंधों में सेंध लगाई, फिर रही-सही कसर मोबाइल ने पूरी कर दी। रिश्तेदार, यार-दोस्त एक-दूसरे से कैसे दूर होते चले गए, लिखने-बताने की जरूरत नहीं है। इस सच से इंकार नहीं कि, मोबाइल ने हमारे रोजमर्रा के कई कामों को बहुत आसान कर दिया है, लेकिन इसके कारण करीबी रिश्ते बुरी तरह से तार-तार हो रहे हैं। मां-बाप, चाचा-चाची, बहन-भाई, बच्चे और यहां तक कि दादा, दादी, नाना, नानी भी अपने-अपने मोबाइल के गुलाम हो चुके हैं। अब तो मोबाइल के कारण पति-पत्नी में लड़ाई, मारपीट और तलाक की खबरें सुर्खियां पाने लगी हैं। बच्चों की मोबाइल की लत ने मां-बाप की नींदें छीन ली हैं। यदि माता-पिता मोबाइल का अंधाधुंध इस्तेमाल करने पर अपने बच्चों को डांटते-फटकारते हैं, तो वे तिलमिला जाते हैं। पुरी तरह से गुस्सा जाते हैं और घर से भाग खड़े होने तथा आत्महत्या तक करने की धमकी देने पर उतर आते हैं। अभी हाल ही में इंदौर के एक माता-पिता ने जब अपनी 21 वर्षीय बेटी और आठ साल के बेटे को ज्यादा टीवी और मोबाइल देखने पर जबरदस्त फटकार लगाई तो वे दोनों तुरंत थाने जा पहुंचे। दोनों ने मां-बाप के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई कि मोबाइल, टीवी देखने के कारण उन्हें कई बार बुरी तरह से मारा-पीटा गया। ताज्जुब तो यह है कि, पुलिस ने भी मां-बाप का पक्ष सुने बिना उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली। आजकल की अधिकांश संतानें मनमानी और आजादी को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानने लगी हैं। मोबाइल ने भी आपसी बातचीत और संवाद के अवसर छीन लिए हैं। एक जमाना था, जब बच्चों के लिए मां-बाप का सम्मान ही सर्वोपरि होता था। बच्चे अपने जन्मदाताओं के समर्पण और त्याग के प्रति नतमस्तक और एहसानमंद रहते थे, लेकिन अब तो वे यह कहने में किंचित भी संकोच नहीं करते कि मां-बाप हमारी परवरिश कर हम पर कोई अहसान नहीं करते। हमें अपने मन-मुताबिक जीने, खाने और कहीं भी जाने का पूरा हक है। हम पर किसी तरह की रोक-टोक और बंदिश लगाने वाले मां-बाप जान लें कि हम उनकी कोई निर्जीव संपत्ति नहीं हैं। हाड़ मांस के जीते जागते इंसान हैं। भरे-पूरे चमकते-दमकते परिवारों के भीतर सन्नाटा और बिखराव अब खुलकर सामने आने लगा है। एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद एक-दूसरे की अनदेखी और संवाद हीनता ने आपसी रिश्तों को इस हद तक कटु और खराब कर दिया है कि, जानी-मानी प्रतिष्ठित हस्तियों को भी संबंधों में सुधार लाने के विभिन्न रास्तों को तलाशने को विवश होना पड़ रहा है। लोकप्रिय फिल्म अभिनेता आमिर खान ने हाल ही में एक साक्षात्कार में बताया कि, आपसी रिश्ते में सुधार और नई ऊर्जा लाने के लिए वे अपनी बेटी के साथ जॉइंट थेरेपी ले रहे हैं। गौरतलब है कि आपसी मेलजोल और संवाद के मधुर तार टूटने की वजह से आई कटुता को खत्म करने के लिए फैमिली थेरेपी या जॉइंट थेरेपी अत्यंत कारगर साबित हो रही है। इसमें विशेषज्ञ एक परिवार या परिवार के कुछ सदस्यों को एक-दूसरे को समझने और उनकी समस्याओं को हल करने में भरपूर मदद करते हैं। पारिवारिक रिश्ते बिगड़ने की वजह का भी पता लगाया जाता है। हमारे यहां अक्सर ज़रा सी बात पर भी मनमुटाव इस कदर बढ़ जाता है कि बातचीत पर विराम लग जाता है और गुस्सा खत्म होने का नाम नहीं लेता। गढ़े मुर्दे उखाड़ने के साथ-साथ आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लग जाती है। एक दूसरे के प्रति नफरत भी बढ़ती चली जाती है। ऐसे मामलों में उन्हें समझाया जाता है कि, जो हो गया, उसे भूलें और आगे से सकारात्मक सोचने और बेहतर करने का संकल्प लें। वर्षों पूर्व जब मैं छत्तीसगढ़ के कटघोरा में रहता था तब वहां एक उम्रदराज सज्जन अकेले घूमते-दौड़ते नज़र आते थे। उन्हें बड़बड़ाते तथा खुद से सवाल-जवाब करते देख बच्चे पागल कहकर छेड़ा करते थे और वे बच्चों को ईंट-पत्थर से डराया करते थे, लेकिन कुछ दिन पूर्व मेरे पढ़ने में आया कि  यदि आप परेशान हैं, फैसले नहीं ले पाते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त करने में सकुचाते हैं तो बेफिक्र होकर खुद से जोरों से बाते करें, अत्यधिक तनाव और चुनौतियों से जूझ रहे हैं, तब भी खुद से जोरों से बतियानें पर अकल्पनीय चमत्कार हो सकता है। आत्मविश्वासी, ऊर्जावान बनने तथा आसानी से अपना लक्ष्य पाने के लिए विदेशों में अपनाई जा रही इस विधि के बारे में पढ़ते ही मुझे जिगर मुरादाबादी की लिखी इन पंक्तियों की याद हो आई...‘मायूस हो के पलटीं जब हर तरफ से नज़रें, दिल ही को बुत बनाया, दिल ही से गुफ्तगू की।’

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