Thursday, May 16, 2024

देशी, विदेशी ठग

    यह सतर्क होने का वक्त है। सोने का नहीं जागने का समय है। किस्म-किस्म के धोखे करने वाले हमारे आसपास विद्यमान हैं। ठगों और लुटेरों ने अपने तौर-तरीके बदल लिये हैं। अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर लुभावने विज्ञापन देकर नकली खाद्य पदार्थ, दवाएं, टॉनिक, सौंदर्य प्रसाधन आदि खपा कर भारतीयों की जेबें साफ करने के साथ-साथ उन्हें बीमार किया जा रहा है। इस लूटमारी के कुचक्र में देशी और विदेशी कंपनियां मौत के सौदागर की सशक्त भूमिका में हैं। रंग-बिरंगे पैकेटों में भरे खाद्य पदार्थ कितने फायदेमंद है, गुणवता की कसौटी में कितने खरे हैं, इसकी चिंता और खोज-खबर मां-बाप ने भी लेनी बंद कर दी है। पिछले दिनों राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में एक 14 वर्षीय किशोर की हार्ट अटैक की वजह से मौत हो गई। पंजाब के पटियाला में केक खाते ही दस वर्ष का बच्चा चल बसा। मोबाइल देखते-देखते एक बच्चे को दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि डॉक्टरों के सभी प्रयास धरे के धरे रह गये। दिल्ली में एक पंद्रह वर्ष की लड़की, जिसे मोबाइल पर गेम खेलने की लत थी उसने भी दिल का दौरा पड़ने पर मौत का दामन थाम लिया। ऐसी अनेकों खबरें हैं, जो यह बता रही हैं कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक आहार की वजह से कम उम्र के बच्चे मौत का निवाला बन रहे हैं।

    व्यापारी, कारोबारी को तो अपना माल बेचना ही है। उसके लिए डिब्बा बंद जूस, चाकलेट, पिज्जा, कोल्डड्रिंक्स, विभिन्न प्रोटीन सप्लीमेंट कमायी के साधन हैं। नैतिकता और ईमानदारी भी अधिकांश धंधेबाजों के शब्दकोष में शामिल नहीं है। सतर्क तो उपभोक्ता को होना है। लेकिन उनके पास समय का अभाव है। उनके पास यह जांचने का भी वक्त नहीं है कि वे अपने बच्चों को जो पिला-खिला रहे हैं उससे कितना फायदा और नुकसान है। उन्हें तो अपने बच्चे के मोटापे में भी खुशी और तसल्ली का अहसास होता है। लोग भी मोटे बच्चों को खाते-पीते घर की निशानी कहकर उनका उत्साहवर्धन करते हैं,  लेकिन जब उनका खाता-पीता बच्चा एकाएक चल बसता है तो माथा पीटने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं रहता। घर में ताजा फलों का जूस बनाने की बजाय डिब्बाबंद फलों के रस को असली फलों का रस समझने वालो की बढ़ती जमात को नकली,विदेशी सामान जितने आकर्षित करते हैं, उतने स्वदेशी नहीं।

    स्वदेशी की अवहेलना और विदेशी का सम्मान कितना नुकसान पहुंचा रहा है, इसका आकलन करने का किसी के पास समय नहीं है। मेरे प्रिय पाठक मित्रों को याद होगा कि कुछ वर्ष पूर्व विदेशी मैगी में हानिकारक सीसा होने की खबरों ने खासी हलचल मचायी थी। कई दिनों तक खूब शोर-शराबा मचा था, फिर विदेशी कंपनी नेस्ले की मैगी धड़ाधड़ बिकने लगी थी। इस बीच भारत के शातिर योग गुरू और धूर्त कारोबारी रामदेव बाबा ने स्वदेशी मैगी बाजार में उतार कर जमकर चांदी काटी थी। इसी नेस्ले के शिशु आहार सेरेलैक को लेकर इन दिनों शिकायतों का अंबार लगा है। 

    अपने देश भारत में प्रतिवर्ष बीस हजार करोड़ रुपये की सेरेलैक की खपत हो जाती है। सेरेलैक की सूक्ष्मता से जांच के बाद यह सच सामने आया है कि इसमें चीनी का मात्रा तय सीमा से काफी ज्यादा है। भारतीय बच्चे मीठे की लत के शिकार हो रहे हैं। मोटापा तथा अन्य गंभीर बीमारियां जकड़ रही हैं। चिंतित तथा परेशान करने वाला सच यह भी है कि यूरोपीय देशों में जो सेरेलैक भेजा जाता है उसमें चीनी बिलकुल नहीं होती, लेकिन भारत, बांग्लादेश तथा अन्य एशियाई व अफ्रीकी देशों में बेचे जाने वाले सेरेलैक की हर खुराक में तीन ग्राम से अधिक चीनी के होने का पर्दाफाश हुआ है। बच्चों को टॉनिक की जगह जहर पिलाने वाली नेस्ले अपने देश स्विट्जरलैंड में भी जो सेरेलैक बेचती है उसमें चीनी नहीं मिलाती। अधिक मीठा खाने के कारण बच्चों को दिल की बीमारी, मुंहासे, पाचन संबंधी समस्याएं, डिमेशिया और किडनी संबंधी बीमारियों के होने का निरंतर खतरा बढ़ रहा है। मीठा वो धीमा ज़हर है जो कम उम्र में मधुमेह, उच्च रक्तचाप के साथ-साथ दांतों में सड़न तथा अवसाद का भी जन्मदाता है। नेस्ले के लगभग 150 उत्पाद पूरी दुनिया में बेचे जाते हैं। 

    विदेशों में तो जैसे ही कोई गलत रिपोर्ट आती है तो उस उत्पाद पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया जाता है। वहां की जांच एजेंसियां सदैव सतर्क रहकर खाद्य एवं पेय पदार्थों की निगरानी करती हैं। इतना ही नहीं वहां पर तो हर नियम-कायदे का सख्ती से पालन किया जाता है। किसी को भी बख्शा नहीं जाता। भारत में सेटिंग का चलन कुछ ऐसा है कि बड़े-बड़े अपराध और अपराधी रिश्वत एवं संबंधों के दबाव की बदौलत बच जाते हैं। उन्हें कब क्लीनचिट दे दी जाती है, लोगों को खबर ही नहीं होती। विदेशों में सेहत के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाता। विभिन्न मसालों के लिए पूरे विश्व में भारत का बड़ा नाम है। दुनिया भर के देशों में यहां से मसाले निर्यात किये जाते हैं। हाल ही में हांगकांग और सिंगापुर में जांच में जब भारतीय मसालों में एथिलीन आक्साइड नाम का रासायनिक कैंसर कारक तत्व पाया गया तो दोनों देशों ने तुरंत प्रतिबंध लगा दिया। हानिकारक आहार के साथ-साथ नकली दवाएं भी भारतवासियों की शत्रु बनी हुई हैं। कुछ हफ्ते पूर्व देश की राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम, मेरठ आदि में करोड़ों की नकली दवाओं का जखीरा पकड़ में आया। अखबारों तथा न्यूज चैनलों में भ्रामक विज्ञापन देकर गलत दवाओं को बाजार में खपाने में बाबा रामदेव भी काफी कुख्यात हैं। योग के माध्यम से देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने वाले इस बाबा ने आंखों में धूल झोंकने की कलाकारी में भी अभूतपूर्व महारत हासिल कर ली है। कोरोना काल में रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद ने थोथा दावा किया था कि उनके प्रोडक्ट ‘कोरोनिल’ और ‘स्वसारी’ से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। उनकी बनायी दवाएं जितनी उपयोगी और असरकारी हैं, उतनी दूसरी दवाएं कतई नहीं। एलोपैथी वाले तो बस लूटमार ही करते हैं। करोड़ों भारतीयों ने बाबा के विज्ञापनों, दावों पर यकीन कर ‘पंतजलि’ की दवाओं को आंखें बंद कर खरीदा, लेकिन उन्हें इनका कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन बाबा ने तो छल-कपट के मायाजाल से करोड़ों रुपये अंदर कर लिए। बाद में कई प्रबुद्ध लोगों ने शिकायतें कीं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सुप्रीम कोर्ट में पंतजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों को भ्रामक बताते हुए याचिका दायर कर दी, लेकिन रामदेव खुद की दवाओं को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए एलोपैथी दवाइयों के खिलाफ विज्ञापनबाजी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने यदि बाबा रामदेव की मनमानी और काम करने के तरीके पर गंभीरता से ध्यान देकर फटकारा नहीं लगायी होती तो उसकी ठगी की दुकान की रौनक सतत बरकरार रहती। हां, कोर्ट ने यह भी कहा कि रामदेव ने योग के क्षेत्र में यकीनन अच्छा काम किया है, लेकिन एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की बेवजह आलोचना करना अनुचित है।

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