प्रतिदिन की तरह पति-पत्नी सुबह की सैर पर निकले। रास्ते में पड़ने वाली गहरी नदी में दोनों ने एक साथ छलांग लगा दी। किसी राह चलते साहसी व्यक्ति ने नदी में डुबकी लगाकर महिला को तो बचा लिया, लेकिन पुरुष पानी के बहाव के साथ बह गया। यह खबर जिसने पड़ी वह हतप्रभ रह गया। दोनों को मार्निंग वॉक का शौक था। अपने स्वस्थ के प्रति सतर्क थे। लंबा जीवन जीने की तमन्ना भी रही होगी, तो फिर ऐसे में दोनों ने यह हैरतअंगेज कदम क्यों उठाया? कई खबरें अपने साथ प्रश्न भी जोड़े रहती हैं। सभी के जवाब नहीं मिल पाते। संतान सुख से वंचित शंकालू पति ने पीट-पीट कर पत्नी की हत्या कर दी। हत्या के बाद वह उस के शव के पास घंटों गुमसुम बैठा रहा। मृतका के सिर के पास नारियल भी रखा था। ...कोलकाता में मेडिकल कॉलेज में हुए बलात्कार-हत्या के संगीन मामले को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, देश में गुस्से का माहौल है। मैं स्वयं निराश और भयभीत हूं। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को वस्तु के रूप में देखने की मानसिकता जिम्मेदार है। अपनी बेटियों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके भय से मुक्ति पाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें। अब समय आ गया है कि न केवल इतिहास का सीधे सामना किया जाए बल्कि अपनी आत्मा के भीतर झांका जाए और महिलाओं के खिलाफ अपराध की इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए।
महाराष्ट्र के छत्रपति संभाली नगर में महिला डॉक्टर ने अपने पति के आतंक और जुल्म की इंतिहा से उकता और घबरा कर खुदकुशी कर ली। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि मेरी हार्दिक इच्छा है की मेरे पति मुझे चिता पर रखने से पहले कसकर गले लगाएं। जिस शैतान पति ने कभी चैन से जीने नहीं दिया। अच्छे-खासे जीवन को नर्क बना कर रख दिया उससे यह कैसी मांग? दुर्जन पति के प्रति मरते दम तक सहानुभूति रखने वाली यह नारी मेडिकल अधिकारी थी यानी आर्थिक रूप में सक्षम थी। दिन-रात गाली-गलौच और शंका करने वाले पति को उसके हाल पर छोड़कर नयी स्वतंत्र राह भी तो पकड़ी जा सकती थी। फांसी के फंदे पर झूल कर इसी पढ़ी-लिखी भारतीय नारी ने खुद को किसी सहानुभूति के लायक भी नहीं छोड़ा।
‘‘महाराष्ट्र में चौथी क्लास की छात्रा से शिक्षक ने, तो सगी बेटी से बाप ने किया बलात्कार।’’ कल्याण तहसील में स्थित एक गांव में पुलिस ने 37 वर्षीय दरिंदे को दो साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के संगीन आरोप में गिरफ्तार किया है। मासूम का अस्पताल में इलाज चल रहा है। बच्ची के माता-पिता तीन माह पूर्व मेहनत-मजदूरी करने आए थे। बच्ची घर के पास की दुकान से चाकलेट खरीदने गई थी। शैतान उसे उठाकर ले गया और निर्जन स्थान पर बलात्कार की कोशिश की। पीड़ा से कराहती बच्ची रोते हुए घर पहुंची तो नराधम की हैवानियत का पता चला।
‘‘यूपी में छात्रा से बलात्कार के आरोपियों के जेल से बाहर आने पर फूल, गुलदस्ते और हार पहनाकर किया गया स्वागत’’... जी हां, एकदम सही पढ़ा आपने। उत्तरप्रदेश के आईआईटी बीएचयू में बीटेक छात्रा की लगभग आठ माह पूर्व दो बदमाशों ने अस्मत पर डाका डाला था। इन दरिंदों के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतरे थे। अभी हाल में अदालत ने दोनों को सशर्त जमानत दे दी। साथ में यह भी कहा कि इन पेशेवर अपराधियों को जनता के बीच जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन जनता तो जनता है, सब कुछ जानती, समझती है, फिर भी अंधी-बहरी बनी रहना चाहती है। जिन्हें अपना मानती है, उनके सौ खून माफ करने की हिमायती होने में नहीं सकुचाती। यह हमारे समाज की बेहद शर्मनाक हकीकत है।
कई हृदयहीन भारतीय दूसरों की बहन, बेटियों का आदर करना नहीं जानते। उनका संरक्षण करना तो बहुत दूर की बात है। पिछले कुछ सालों में हमारे भारत को बलात्कारियों का देश भी कहा जाने लगा है। कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब देश के किसी हिस्से में बहन-बेटी की आबरू लूटने का खबर पढ़ने-सुनने में न आती हो। घर की सुरक्षित चार दिवारी में भी बेटियां, बहुएं और मासूम बच्चियां रौंद दी जाती हैं। उनके विरोध के स्वर और चीखों को बड़ी चालाकी से दबा-छिपा दिया जाता है। शर्मनाक तथ्य यह भी है कि संपूर्ण भारत में व्याभिचार और बलात्कार को लेकर अत्यंत शर्मनाक राजनीति होती देखी जाती है। पीड़िताओं के साथ बड़ी निर्लज्जता से भेदभाव कर आहत करने वाली बयानबाजी रूकने का नाम नहीं लेती। समाज को विषैला और असंवेदनशील बनाने में उन राजनेताओं की बहुत बड़ी भूमिका है, जो इस मामले में घोर पक्षपाती हैं। जिन प्रदेशों में उनकी सरकार है वहां पर महिलाओं के साथ बर्बरता होने पर खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं और जहां पर उनकी सत्ता नहीं वहां कुत्तों की तरह भौंकने में कोई कमी नहीं करते। देश की बेटियों पर हो रहे दुराचारों के मामले में भेदभाव करने वाले नेताओं की वजह से ही राक्षसी कृत्य करने वाले चुन-चुन कर नारियों की इज्जत पर डाका डालते हैं और बाद में अपने आकाओं की गोद में जाकर बैठ जाते हैं। उनके आका उन्हें बचाने के लिए ओछी से ओछी चालें चलने लगते हैं। देश का कानून भी इनके कुचक्र का शिकार हो जाता है। सबूतों के अभाव में भरे चौराहे पर बलात्कार करने वाले दुराचारी बाइज्जत बरी हो जाते हैं। उनको अपना आदर्श मानने वाले उनका आन-बान और शान के साथ गुलदस्तों तथा फूलों के हारों से अभिनंदन-स्वागत कर पीड़िता और उनके माता-पिता के सीने में खंजर घोंपकर बार-बार लहुलूहान और करते रहते हैं।
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