Thursday, September 26, 2024

संस्कार

    खुश और सेहतमंद रहना तो सभी चाहते है। मिलने-मिलाने वाले इज्जत से पेश आएं, कहीं अनादर न हो, अपने नाम, काम और पहचान का डंका बजता रहे यह भी हर कोई चाहता है। सब को खबर है कि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। यदि शरीर रोगमुक्त, चुस्त-दुरुस्त है तो ही दुनियाभर की सुख-सुविधाएं अपनी हैं। सार्थक हैं। तनाव मुक्त होकर जीना भी तभी संभव है जब बुरी संगत और बुरे कर्मों से दूरी बना ली जाए। कोई अगर हितकारी सुझाव देता है तो उसकी अवहेलना, तिरस्कार, अपमान न किया जाए। यूं तो देश में तमाशबीनों की भरमार है, लेकिन कुछ लोग अपने आसपास गलत होता नहीं देख सकते। पहले अखबार में छपी इस खबर पर गौर करें...।

    ‘‘शहर के एक मोहल्ले में शाम होते ही तीन युवकों का शराब पी कर आती-जाती महिलाओं से बदतमीजी करना रोजमर्रा की बात थी। उनके बेलगाम अश्लील इशारों की वजह सभी आहत और परेशान रहते। खासकर युवतियां, जिन्हें घर में दुबक कर रह जाना पड़ता था। अधिकांश लोग व्यापारी थे, जिन्हें नोट छापने से फुर्सत नहीं थी। अपने काम से ही मतलब रखते थे। एक अंधेरी रात शराबियों की अति बेहयायी वहां रहने वाले स्कूल के शिक्षक से देखी नहीं गई। वे गुस्से से तमतमा गए। उन्होंने तीनों को जोरदार फटकार लगाते हुए वहां से तुरंत चले जाने को कहा। उस वक्त तो वे बड़बड़ाते हुए वहां से निकल लिए, लेकिन आधी रात को आठ-दस गुंडों के झुंड ने उम्रदराज शिक्षक और उनकी पत्नी को निर्वस्त्र कर बड़ी बेरहमी से पटक-पटक कर पीटा। जाते-जाते पेट्रोल छिड़क कर घर भी फूंक दिया। पड़ोसियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बड़ी मुश्क़िल से उन्हें आग से बाहर निकालने में सफलता पाई, लेकिन एक दुःखद, चिंतित करने वाला शर्मनाक सच यह भी है की जब शराबी एक साथ असहाय शिक्षक और उनकी पत्नी का खून बहा रहे थे और वे संघर्षरत रहकर जोर-जोर से चीख-चिला कर बचाने की गुहार लगा रहे तब सुनने के बाद भी किसी ने सामने आने की हिम्मत नहीं की। वहां पर कब्रिस्तान-सा सन्नाटा बना रहा।

    अखबार में छपी उपरोक्त खबर के नीचे यह खबर भी छपी थी... 

    ‘‘थाईलैंड के बैकांक में एक महिला को किचन में बर्तन धोने के दौरान अजगर ने जकड़ लिया। 64 वर्षीय महिला लगभग दो घंटे तक 16 फीट के अजगर से बचने के लिए जूझती रही। उसका जोर-शोर से संघर्ष जारी था तभी उसी दौरान घर के सामने से गुजर रहे एक शख्स ने महिला की चीख़-पुकार की आवाज़ सुनी। उस जागरूक इंसान के द्वारा पुलिस को तुरंत सूचित करने से महिला को बचा लिया गया।’’ 

    मेरे मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न भी अभी तक कब्जा जमाये है कि शराबी, बदमाश, मदहोश युवकों को सुधरने की सीख देकर शिक्षक ने कोई बहुत बड़ी भूल कर दी? उन्हे भी मोहल्ले के अन्य लोगों की तरह चुपचाप रहने का दस्तूर निभाते हुए इस सोच से बंधे रहना चाहिए था कि, जो हो रहा है, होता रहे। मेरे घर में कौन सी बहू-बेटियां हैं। ऐसे में दूसरों की बहन-बेटियों की चिंता मैं क्यों करूं? यह गली भी कौन सी मेरे बाप-दादा की है, जो इस पर अपना अधिकार जताते हुए गुंडों को गुण्डागर्दी करने से रोकूं। शिक्षक महोदय की यदि यही संकुचित, स्वार्थी और विकृत सोच होती तो वे अपने में मस्त रहते। अपने रास्ते आते और निकल जाते, लेकिन उनसे यही तो नहीं हो पाया। कई वर्षों तक हाईस्कूल में अध्यापन कर चुके गुरूजी को लगा था कि लड़के उनके साथ अदब से पेश आते हुए चुपचाप गिलास, बोतल, चखना समेट कर गली से चले जाएंगे। जो हुआ उसकी तो उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। 

    कितना अच्छा होता यदि वे पुलिस स्टेशन जाकर बदमाशों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाते। वहां पर ढिलाई बेपरवाही दिखने पर सभी मोहल्लेवासी एकजुट होकर उन्हें वहां से खदेड़ने का एक सूत्रीय अभियान चलाते तो अंततः वे चले जाने को मजबूर हो जाते, लेकिन एक-दूसरे से कटे रहने की शहरी संस्कृति ने ऐसी कोई पहल होने ही नहीं दी। मेल-मिलाप, एकता और अटूट संकल्प में कितनी ताकत होती है, इसकी वास्तविक तस्वीर पिछले दिनों हमने उत्तरप्रदेश के एक गांव में देखी। मिरगपुर नामक इस गांव को भारत देश का सबसे पवित्र और अनुशासित गांव का दर्जा मिला हुआ है। दस हजार की आबादी वाले इस आदर्श गांव में पांच सौ साल से किसी ने कोई नशा नहीं किया। कई लोगों ने शराब और बीयर का नाम तक नहीं सुना। न ही कभी दुष्कर्म और छेड़छाड़ की कोई घटना घटी। गांववासी कई पीढ़ियों से शुद्ध शाकाहारी हैं। खाने में प्याज-लहसून तक का इस्तेमाल नहीं करते। तनाव मुक्त रहने वाले यहां के नागरिकों को डॉक्टरों की बहुत कम शरण लेनी पड़ती है। सभी एक-दूसरे का मान-सम्मान करते हैं। युवा, बड़ों की बातों को बड़े ध्यान से सुनकर अनुसरण करते है। गांव की बेटियां जब शादी करके किसी अन्य स्थान यानी ससुराल जाती हैं तो वे मिरगपुर गांव की प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाती हैं, लेकिन फिर भी अपने जन्मस्थल के संस्कार उनके दिल दिमाग में इतनी मजबूत जड़ें जमा चुके होते हैं, जिससे वे ससुराल के सदस्यों को नशे-पानी से दूर रखने के भरपूर प्रयास में लगी रहती हैं। और हां, मिरगपुर में ब्याह कर आने वाली बहुएं इस प्रतिज्ञा से सदा-सदा के लिए बंध जाती हैं। मिरगपुर का नाम इंडिया बुक के बाद एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका है। जिला प्रशासन ने भी इसे बड़े गर्व के साथ नशा मुक्त गांव घोषित कर रखा है। इस सात्विक गांव में जो भी जाता है आश्चर्य में पड़ जाता है। उसका वहीं बस जाने का मन करता है। दो वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर की यात्रा के दौरान किसी पर्यटन प्रेमी ने हमें मिरगपुर को करीब से देखने की सलाह दी थी। उत्तरप्रदेश के भ्रमण पर निकले हमारे दल में चार पत्रकार और तीन कॉलेज के प्रोफेसर थे। दो उम्रदराज पत्रकारों और एक प्रोफेसर महोदय को तो मिरगपुर इस कदर भाया कि उन्होंने कुछ महीने बाद अपने शहर को छोड़-छाड़ कर मिरगपुर में हमेशा-हमेशा के लिए बसने की घोषणा को साकार भी कर दिया।

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