Thursday, December 26, 2024

फितरत

    अपनी धूर्तता और संवेदनहीनता से मानवता को शर्मसार करते कपटी लोग कहीं भी हो सकते हैं। मेहनत से मुंह चुराने और मुफ्त का खाने की कुछ लोगों को बीमारी लग गई है। इनमें आम के साथ खास चेहरे भी शामिल हैं, जिनकी चोरी ऊपर से सीनाचोरी की आदत उनके असली रूप को उजागर कर ही देती है। यह कितने अफसोस भरी हकीकत है कि चोरी-डकैती करने में सफेदपोश लोग भी पीछे नहीं हैं। यहां तक कि लाखों लोगों के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि भी अपने दायित्व को भूलकर हेराफेरी करते नज़र आते हैं।

    बीते सप्ताह मायानगरी मुंबई के उपनगर कुर्ला में हुए एक कार हादसे में एक महिला की मौत हो गई। मौके पर मौजूद भीड़ में शामिल दो लोग उसके हाथ से कंगन निकालकर गायब हो गए। वहीं एक शख्स उसका मोबाइल अपनी जेब के हवाले कर वहां से ऐसे चलता बना जैसे उसके बाप का माल हो। वहां पर तमाशबीनों की तरह खड़े किसी भी स्त्री-पुरुष को उस 55 वर्षीय मृत महिला पर रहम नहीं आया। दरअसल, इन बदमाशों, चोरों और लुटेरों का यही पेशा है, कहीं भी रेल, बस, कार दुर्घटनाग्रस्त होती है तो ये शैतान मृतकोें  तथा घायलों की सहायता करने की बजाय उनकी जेबें खाली करने लगते हैं। महिलाओं के गले, कान आदि के जेवर निकालने-नोचने में लग जाते हैं। इन्हें शायद ही कभी अपनी शर्मनाक करतूतों पर शर्म आती हो, यह दूसरों की मौतों का तमाशा देखते हुए आनंदित होते हैं। ये बेशर्म दूसरों की तबाही और मौतों पर जश्न मनाना अपने जीवन का एकमात्र मकसद बना चुके हैं। 

    बीते सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 104 वर्षीय रसिक चंद्र मंडल ने जेल की कोठरी से बाहर कदम रखा। होना तो यह चाहिए था कि तीस साल के बाद खुली हवा में सांस लेने की खुशी से रसिक चंद्र का चेहरा खिल उठता। लेकिन जेल से बाहर कदम रखने में ही उसे झिझक हो रही थी। मानसिक रूप से अभी भी चुस्त-दुरुस्त और तंदुरुस्त रसिक लाल से जब उनकी उदासी की वजह पूछी गयी तो उसने कहा कि मुझे जेल की बहुत याद आएगी। मैंने तीस साल तक अन्य कैदियों के साथ खुशी-खुशी जीवन की यात्रा तय की। मुझे वहां की सुकून वाली दिनचर्या की आदत हो गई थी। कई कैदियों से मेरी प्रगाढ़ मित्रता होने की वजह से मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे कि मैं अपने लोगों के सुरक्षा घेरे में हूं। गौरतलब है कि रसिक ने अपने किसी करीबी रिश्तेदार की हत्या की थी। उसने अपना गुनाह भी कुबूल किया था। स्वभाव से भावुक रसिक का हत्या करने का इरादा नहीं था। हालातों ने उससे यह गुनाह करवा दिया। पश्चाताप की भावना के वशीभूत रसिक लाल अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों को अपना चेहरा दिखाने से भी कतरा रहा था... 

    मुंबई में रहता है, भरत जैन। करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। नाम और हैसियत तो यही दर्शाती है कि ये बंदा कोई बड़ा उद्योगपति या व्यापारी-कारोबारी है, लेकिन जनाब, यह सरासर आपका-हमारा मुगालता है। भीख मांगना इस शख्स का पसंदीदा पेशा है। लोगों ने तो अब उसे यह कहकर दुत्कारना और फटकारना भी बंद कर दिया है कि हट्टे-कट्टे होकर भीख मांगते हो। कोई मेहनत-मजदूरी का काम क्यों नहीं करते। अपने पेशे के साथ वफादारी करने वाला भरत जैन मुंबई जैसे महंगे महानगर में अपने परिवार के साथ बड़े ठाठ-बाट के साथ रहता है। भीख मांगते-मांगते दो फ्लैट्स, तीन दुकानों के मालिक बन चुके भरत की एक स्टेशनरी की दुकान भी है, जिससे अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। भरत के परिवारजनों को अब  उसका भीख मांगना पसंद नहीं। वे कहते-कहते थक चुके हैं कि, करोड़ों की जमीन जायदाद से आने वाले किराये के रूप में होने वाली आवक से संतुष्ट हो जाओ और घर में रहकर अब तो आराम और सब्र के साथ जीवनयापन करो। लेकिन भरत कहता है कि मेरा किसी और काम में मन ही नहीं लग सकता। मेरे लिए तो ये दुनिया का सबसे बेहतरीन पेशा है। हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाए की कहावत को चरितार्थ करता भरत अपनी पीठ थपथपाते हुए यह बताना नहीं भूलता कि, मैं न तो लालची हूं और ना ही मौज-मजे का गुलाम। मुझे उदारता के साथ मंदिरों में दान करना भी बहुत अच्छा लगता है। दिनभर बिना रूके मेहनत कर प्रति दिन ढाई से तीन हजार रुपये की भीख पाने के बाद रात को जो सुकून भरी नींद सोता हूं वो तो अनेकों धनासेठों को भी नसीब नहीं होती। मैं खुदको बहुत नसीब वाला मानता हूं। लोग मेरे बारे में जो सोचते-कहते हैं, उससे मुझे कुछ भी नहीं लेना-देना।

    उत्तरप्रदेश में स्थित संभल शहर का नाम पिछले कुछ महीनों से काफी चर्चा में है। यहां की मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का विरोध करने पर सुरक्षा कर्मियों के साथ हुई झड़प में चार लोगों की मौत हो गई थी। भीड़ को भड़काने में वहां के सांसद जियाउर रहमान की खासी भूमिका बताई गई थी। शासन और प्रशासन ने समाजवादी सांसद पर शिकंजा कसने का जो सिलसिला चलाया, उसी में उनके बिजली चोर होने की खबरों ने भी देशवासियों को बेहद चौंकाया। बिजली विभाग ने एक अधिकारी की शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी में कहा गया कि विद्युत परीक्षण प्रयोगशाला से प्राप्त सांसद के मीटर की जांच करने पर यह पूरी तरह से स्पष्ट हुआ है कि मीटर से छेड़छाड़ करके धड़ल्ले से बिजली चोरी की गई। चोरी का यह सिलसिला बीते कई वर्षों से चला आ रहा है। बिजली चोरी के संगीन आरोप लगने के बाद भी सांसद का सीना तना रहा। वो खुद को ईमानदार बताते हुए शासन-प्रशासन की साजिशी, पक्षपाती नीति के ढोल बजाते रहे। यह भी कम हैरत की बात नहीं कि जिसे एक करोड़, 91 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, उसी को बिजली चोरी को रोकने का दायित्व सौंपा गया था। ध्यान रहे कि जिले में बिजली परियोजनाओं में गति और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए डिस्ट्रिक्ट/इलेक्ट्रिसिटी कमेटी का गठन किया गया है, सांसद बर्क को उसका चेयरपर्सन नियुक्त किया गया है। चोरी उस पर सीनाचोरी, हां यह भी हुआ, जब बिजली विभाग के अधिकारी, कर्मचारी, सांसद के घर के मीटर और बिजली के उपकरणों की सघन जांच कर रहे थे, तब उनके पिता ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए सरकारी काम में बाधा डालते हुए सीना तानकर धमकी दी कि जैसे ही सरकार बदलेगी हम तुम्हें बर्बाद कर नानी याद दिला देंगे...।

Thursday, December 19, 2024

गुनाह-बेगुनाह

    एक चालीस साल के व्यक्ति को बलात्कार के संगीन आरोप के चलते 16 वर्ष तक जेल की काली कोठरी में रहना पड़ा। इस दौरान उसका सब कुछ बर्बाद हो गया। पत्नी ने लोगों के तानों से तंग आकर आत्महत्या कर ली। बच्चे दर-दर की ठोकरें खाते रहे। जिस महिला के बलात्कार के आरोप में उसे शर्मसार करने वाली पीड़ादायक सजा भोगनी पड़ी उसका अभी हाल में बयान आया है कि उसके साथ किसी अन्य शख्स ने बलात्कार किया था। उसे उस गुंडे का नाम लेने की बजाय इस निर्दोष व्यक्ति का नाम लेने को विवश किया गया। इसके जेल जाने के बाद मेरी रातों की नींद जाती रही थी, लेकिन तब मैं सच नहीं बोल पायी। इसका मुझे अत्यंत दु:ख और पछतावा है। मैं उस बेकसूर व्यक्ति से माफी मांगना चाहती हूं। कृपया वह मुझे माफ कर दे। कुछ इसी ही तर्ज पर खंडवा के अनोखीलाल पर हुए अन्याय और जुल्म की दास्तान तो और भी अनोखी है। साल 2013 की तीस जनवरी की बात है। एक नौ साल की लड़की अचानक गायब हो गई। घरवालों के इधर-उधर तलाशने पर जब उसका कोई पता नहीं चला तो पुलिस में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी गई। परिवारजनों ने पुलिस को यह भी बताया कि, बच्ची को उन्होंने आखिरी बार अनोखीलाल के साथ देखा था। 21 वर्षीय अनोखीलाल गांव में दूध बेचने वाले हलवाई के यहां काम करता था। दो दिनों के बाद लड़की की लाश एक खेत में मिली। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। पुलिस ने ज्यादा दौड़धूप करने और दिमाग खपाने की बजाय तुरंत अनोखीलाल को गिरफ्तार कर लिया। अनोखीलाल बार-बार कहता रहा कि, वह उस दिन गांव में ही नहीं था। यह घटना जब सुर्खियों में आयी उससे करीब एक महीने पहले दिल्ली में बड़े ही जालिम तरीके से अंजाम दिए गए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड की गूंज थी। देश गुस्से की आग में सुलग रहा था। बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग को लेकर जगह-जगह धरने-प्रदर्शन हो रहे थे। निर्भया पर हुए नृशंस बलात्कार की तपिश अनोखीलाल के केस तक भी आ पहुंची। 

    पुलिस और अदालत को खुद पर बेतहाशा दबाव महसूस होने लगा। गांव के एक व्यक्ति ने भी कोर्ट के सामने लड़की को आखिरी बार अनोखीलाल के साथ देखे जाने की बात दोहरा दी। बड़ी तेजी से अदालत में सुनवाई शुरू हो गई और अदालत ने अनोखीलाल को मात्र 13 दिनों में फांसी की सजा सुनाने का इतिहास रचते हुए कहा कि, यह शख्स समाज के लिए खतरा है। इसका खुलेआम घूमना लड़कियों के लिए ठीक नहीं है। देशभर के अखबारों तथा न्यूज चैनलों ने जोर-शोर से लिखा और कहा कि, देश की तमाम अदालतों को ऐसे ही कम से कम समय में चुस्ती-फूर्ती के साथ अपने फैसले सुनाने चाहिए। इतना ही नहीं इस फैसले के बाद दो और अदालतों में भी अनोखीलाल को मौत की सजा सुनाने में देरी नहीं लगाई। इस मामले में वर्ष 2024 के मार्च महीने में तो जैसे हैरतअंगेज चमत्कार हो गया। खंडवा जिला अदालत ने तीन बार की मौत की सजा पाये अनोखीलाल को इस आधार पर रिहा कर दिया कि, साक्ष्य का विश्लेषण गलत तरीके से किया गया था। 

    अनोखीलाल ने ग्यारह साल बाद जेल से बाहर आने के बाद कहा कि, एकबारगी तो मुझे लगा कि मैं कोई सपना देख रहा हूं। मैंने तो जेल से छूटने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। मैं तो फांसी के फंदे पर लटकने की राह देख रहा था, लेकिन ऊपरवाले ने मेरी सुनी और मुझे अंतत: न्याय मिल ही गया, लेकिन दु:ख यह भी है कि समाज की नजर में अभी भी मैं कसूरवार हूं। मेरी जिंदगी के 11 साल बर्बाद हो गये। उनकी भरपाई होने से तो रही। मेरे सभी दोस्त कहां से कहां पहुंच गए। उनके बाल-बच्चे भी हो गए और मेरी तो अभी तक शादी ही नहीं हो पायी है। मैं तो असंमजस में हूं कि कोई मुझे अपनी लड़की देने को तैयार होगा भी या नहीं। परिवार पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। इस केस ने तो कंगाल करके रख दिया। पिता को वकीलों की फीस देने के लिए पुश्तैनी जमीन बेचनी पड़ी। मानसिक परेशानी से त्रस्त उम्रदराज पिता नींद में भी बड़बड़ाते रहते थे कि मेरे बेटे को चंद दिनों के बाद फांसी निगलने वाली है। इसी चिंता में घुल-घुल कर वे चल बसे।

    दिल्ली विश्व विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर गोकरकोंडा नागा साईबाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं। 12 अक्टूबर, 2024 को 57 वर्ष की उम्र में किडनियों के फेल हो जाने के कारण हैदराबाद के एक सरकारी अस्पताल में उनका निधन हो गया। नक्सलियों से संबंध रखने की शंका के चलते 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने साईबाबा को गिरफ्तार किया था। 2017 में सत्र अदालत ने दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। साईबाबा ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में चुनौती दी थी। नागपुर पीठ में माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में वर्षों तक ट्रायल चलने के बाद साईबाबा एवं पांच अन्य को आरोपों से बरी कर दिया गया था। मुंबई पुलिस एवं अन्य जांच एजेंसियां इस मामले में वर्षों तक चली कानूनी जंग के दौरान साईबाबा के खिलाफ मामला साबित करने में विफल रहीं। उसके बाद अदालत ने न केवल उनकी आजीवन कारावास की सजा रद्द की, बल्कि जमानत पर रिहा भी कर दिया था। नागपुर केंद्रीय कारागार से 10 वर्षों बाद बाहर निकलने के बाद साईबाबा के मुंह से यह शब्द निकले थे, ‘मुझे अभी भी ऐसा लग रहा है, जैसे मैं जेल में ही हूं।’ उन्होंने यह दावा भी किया था कि उनकी आवाज दबाने के लिए उनका अपहरण किया गया और महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर तरह-तरह की यातनाएं दीं। गिरफ्तारी के बाद पुलिस के वरिष्ठ जांच अधिकारी उनके घर गए और परिवार के सदस्यों को डराया-धमकाया तथा उन्हें झूठे मामले में फंसाकर जेल में सड़ाने की धमकी दी। व्हीलचेयर से इतनी निर्दयता से घसीटा गया, जिसमें उनके हाथ में गंभीर चोटें लगीं, जिससे उनके तंत्रिका तंत्र पर भी बुरा असर पड़ा। जेल में बंद रहने के दौरान उनके शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया, लेकिन उन्हें अस्पताल ले जाने की बजाय केवल दर्द निवारक दवाएं दी जाती रहीं। जेल के दिनों को याद करते हुए साईबाबा ने कहा था कि मैं एक गिलास पानी तक नहीं ले सकता था। आप ही बताएं कोई कब तक ऐसी जिन्दगी जी सकता है।

    गौरतलब है कि साईबाबा जब मात्र पांच वर्ष के थे, तभी पोलियो के शिकार हो गए थे। तभी से व्हीलचेयर ही उनके चलने-फिरने का एकमात्र सहारा थी। नक्सलियों से करीबी संबंध रखने और उन्हें देश में खून-खराबी करने के लिए उत्साहित करने के आरोप में वर्षों तक जेल में बंद रहे साईबाबा को खतरनाक आतंकवादी भी कहा गया था। जेल में रोज मर-मर कर गुजारे पलों को याद करते हुए वे अक्सर भावुक हो जाते। भीगी आंखों से कहते, मैं तो बिना कोई अपराध किये ही दुनिया की निगाह में संगीन अपराधी बन गया। इस कारण मेरे परिवार की भी बदनामी हुई। लोगों ने उन पर भी व्यंग्य बाण चलाये। दिव्यांग साईबाबा को जेल में बंद रहने के दौरान खुद से ज्यादा अपने परिजनों की चिंता सताती थी। विकलांगता भी निरंतर बढ़ती चली जा रही थी। उन्हें बार-बार 22 अगस्त, 2013 का वो दिन याद आता था, जब उन्हें गड़चिरोली के अहेरी बस अड्डे से गिरफ्तार किया था। दूसरे दिन के अखबारों में पहले पन्ने पर मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था, ‘‘खूंखार हत्यारे नक्सलियों का साथी आतंकवादी प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा बड़ी मुश्किल से पुलिस की पकड़ में आया है। यह पढ़ा-लिखा शहरी नक्सली जंगल में रहने वाले देश के दुश्मन नक्सलियों से भी ज्यादा खतरनाक है।’’ न्यूज चैनल वालों ने इस शहरी नक्सली को उम्रभर जेल में सड़ाने की पुरजोर मांग करते हुए देशवासियों से अपील की थी कि, ऐसे हर देशद्रोही से सतर्क और सावधान रहें। तभी साईबाबा ने देखा और जाना था कि लोगों की निगाहों ने उन्हें पूरी तरह से अपराधी मान लिया है। कल तक जो लोग इज्जत से पेश आते थे अब नफरत करने लगे हैं। 

    अभी हाल ही में मैंने पुरानी दिल्ली के रहने वाले मोहम्मद आमिर खान की आपबीती किसी अखबार में पढ़ी। इस युवक को आतंकवादी होने के झूठे आरोप में 14 वर्ष तक जेल में रहना पड़ा। उन्हीं की लिखी ‘आतंकवादी का फर्जी ठप्पा’ नामक किताब में व्यवस्था के अंधेपन को उजागर करने का साहस दिखाया गया है। आमिर तब लगभग 18 वर्ष के थे जब बम विस्फोट और हत्या के लिए दोषी मानते हुए जेल में डाल दिया गया। पुलिस रिमांड में उन्हें अमाननीय यातनाएं दी गयीं। जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं था उसे कबूलने के लिए जिस्म की हड्डी-हड्डी तोड़ी गई। किसी से मिलने नहीं दिया गया। पिता के गुजरने पर उन्हें सुपुर्द-ए-खाक भी नहीं कर पाए। यह वही पिता थे, जिन्होंने बेटे के इंसाफ के लिए अपना घर-बार तक बेच डाला था। जेल की काली कोठरी में अपनी जवानी को गला कर आमिर जब 14 साल बाद बाहर निकले तो पूरी दुनिया ही बदल चुकी थी। कई डरी-डरी निगाहें उन्हें ऐसे ताक रही थीं, जैसे कोई जंगली जानवर शहर में जबरन घुस आया हो...।

Thursday, December 12, 2024

संस्कार

    देश के केंद्र में स्थित, संतरों के लिए विख्यात नागपुर को सर्वधर्म समभाव का आदर्श ध्वजवाहक माना जाता है। सभी धर्मों के लोग यहां पर एक-दूसरे का मान-सम्मान करते हुए अमन-शांति के साथ रहना पसंद करते हैं। बाहर से आने वाले लोगों को भी बड़ी आसानी से अपना बना लेने वाले नागपुर में वो तमाम गुण और सुख-सुविधाएं हैं, जिनकी हर कोई आकांक्षा करता है। उद्योग, राजनीति, साहित्य एवं विभिन्न कलाओं में भी संतरानगरी अग्रणी है। देश और प्रदेश को एक से एक लोकप्रिय तथा हर तरह की चुनौतियों से टकराने वाले परिपक्व नेताओं की सौगात देने का श्रेय भी इस बहुआयामी संस्कारित महानगरी को जाता है। तेजी से विकास की ऊंचाइयों को छू रहे नागपुर के लोग खान-पान के भी बहुत शौकीन हैं। एक से एक होटल, रेस्टारेंट लोगों के स्वागत के लिए सीना तान कर खड़े हैं। सावजी भोजनालयों का भी यहां जबरदस्त क्रेज है। शाकाहारी और मांसाहारी भोजनालयों की भरमार है, जहां का भरपूर मिर्च-मसाले वाला चिकन, मटन खाने के लिए दूसरे प्रदेशों के लोग भी आते हैं। तीखे मसालों की वजह से उन लोगों के नाक और आंख से पानी की धारा बहने लगती है, जिनको पहली बार इनका स्वाद चखने को मिलता है। महाराष्ट्र की पाक कला को सात समंदर पार पहचान दिलाने वाले विष्णु मनोहर की रसोई का भी एकदम खास जलवा है। उन्हें अनेकों पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। नागपुर के कुछ खास ठिकानों पर बिकने वाले चटपटे मसालेदार पोहा-चना का मज़ा लेने के लिए सुबह-सुबह जो कतारें लगती हैं वे दोपहर तक बनी रहती हैं। यहां के कुछ मजेदार चाय के अड्डे  भी बड़े लाजवाब हैं। अनेकों चायप्रेमियों को अपने मोहपाश में बांधने वाले डॉली चायवाले की प्रसिद्धि के ढोल-नगाड़े भी विदेशों तक बजने लगे हैं। डॉली जिसका नाम सुनील पाटील है, तब अत्याधिक चर्चा में आया जब उसने हैदराबाद में एक इवेंट के दौरान दुनिया के बड़े रईसों में शामिल बिल गेट्स को चाय बना कर पिलाई। उसके बाद तो जैसे उसकी किस्मत ही पलट गई और वह फर्श से अर्श पर पहुंच गया। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सह संस्थापक खरबपति बिल गेट्स को चाय पिलाने की तस्वीरें तथा वीडियो सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ वायरल होने से डॉली रातोंरात सिलेब्रिटी बन गया। पहले जहां उसकी टपरी पर दिनभर में ढाई-तीन हजार की चाय बिकती थी, अब पंद्रह-बीस हजार तक जा पहुंची है। डॉली को तो बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि, वह किसे चाय पिला रहा है। वह तो यही सोच रहा था कि विदेश से आए कोई महानुभाव हैं, जो उसकी टपरी पर चाय का स्वाद लेने आए हैं। बिल गेट्स ने खुद सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर करते हुए कहा कि, मैं अनोखे अंदाज की कलाकारी में माहिर इस चायवाले के साथ चाय पर चर्चा करने से खुद को नहीं रोक पाया। इस दुबले-पतले फुर्तीले अदभुत चायवाले से हुई मुलाकात को मैं हमेशा याद रखूंगा। जब किसी बड़ी हस्ती का हाथ और साथ आम आदमी को मिलता है, तो एकाएक उसकी पूछ-परख बढ़ जाती है। डॉली के साथ ऐसा ही हुआ। उसे विदेशों दुबई, यूएसए, श्रीलंका तथा कुछ अन्य देशों के निमंत्रण के साथ-साथ महंगे तोहफे भी मिलने लगे। किसी शेख ने करोड़ों की कार भी थमा दी और जाने-अनजाने प्रशंसक उसके साथ ऐसे फोटो खिंचवाने लगे जैसे वो कोई फिल्मी सितारा हो, जिसकी फिल्में हिट पर हिट हो रही हों।

    नागपुर के रामनगर चौक पर वर्षों से चाय की टपरी लगाने वाले गोपाल बावनकुले की खुशियों का तब कोई ठिकाना नहीं रहा, जब उसके देवाभाऊ यानी देवेंद्र फडणवीस के कार्यालय से उसे मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में उपस्थित होने का निमंत्रण मिला। एकबारगी तो उसे लगा कि कहीं यह उसका भ्रम और सपना तो नहीं, लेकिन यह एकदम सच था। गोपाल देवाभाऊ को उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत से जानता है। जब वे विधायक बनने के बाद उसकी टपरी पर चाय पीने आये थे, तब भी वह अचंभित हो उन्हें ताकता रह गया था। देवेंद्र फडणवीस ने जिस सहजता के साथ उससे बातचीत करते हुए हालचाल पूछा था, उससे तो वह खुद को भावुक होने से नहीं रोक पाया था। तभी उसने उनसे कहा था कि जब आप मुख्यमंत्री बनेंगे तब भी क्या आप मेरी टपरी पर ऐसे ही चाय पीने आएंगे? जिस तरह से कई लोग अपने मनपसंद फिल्मी सितारों की फोटो अपने यहां लगाकर रखते हैं वैसे ही गोपाल ने अपने आदर्श प्रिय नेता देवाभाऊ की बड़ी सी तस्वीर अपनी टपरी के साथ-साथ दिल में भी बिठा रखी है। नागपुर में गोपाल जैसे हजारों आम चेहरे हैं, जिनको देवेंद्र फडणवीस का सरल, सहज व्यवहार बहुत भाता है। 2024 के विधानसभा चुनाव में विजयी होने के पश्चात उनका जो विजय जुलूस निकला, उसमें जाने-अनजाने चेहरों की अथाह भीड़ थी। फूल-मालाओं से लदे, विजय रथ पर सवार देवेंद्र की निगाह एकाएक उस समोसे बेचने वाले पर जा पड़ी, जिसके बनाये समोसे उन्हें अत्यंत प्रिय हैं। उन्होंने विजयरथ से ही उस समोसे वाले को इशारे से अपने पास बुलाया और कहा कि क्या दोस्त, हार, गुलदस्ता तो ले आए, लेकिन समोसे लाना भूल गए। आज तो तुम्हारे यहां के समोसे खाने का मेरा बड़ा मन हो रहा है। अभी हाल ही में तीसरी बार शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अहिल्यानगर में एक शादी समारोह में शामिल हुए। उन्होंने 2016 के कोपर्डी बलात्कार और हत्या मामले की पीड़िता से वादा किया था कि, उनकी बहन की शादी उनकी जिम्मेदारी होगी और वे अवश्य शादी में शामिल होंगे। फडणवीस ने आठ वर्ष पूर्व किये गए वादे को याद रखा। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं। कुर्सी की चकाचौंध नेताओं को भटका देती है। चुनाव जीतते ही वे मतदाताओं को भूल जाते हैं, लेकिन देवेंद्र उनसे एकदम अलग और एकदम खास हैं। किसी को यूं ही बैठे-बिठाये सफलता के शिखरों तक पहुंचने का अवसर नहीं मिल जाता। इसके लिए अत्यंत संयम, धैर्य, जुनून और मर्यादा का पालन करते हुए लोगों के दिलों में स्थायी जगह बनानी पड़ती है। राजनीति की डगर न कल आसान थी और ना ही आज फूलों की सेज है। तमाम विरोधी ताकतों तथा अवरोधों को मात देते हुए महाराष्ट्र के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने देवेंद्र फडणवीस की राजनीतिक यात्रा उन युवाओं को आइना दिखाती है, जो महज सपने देखते हैं, करते-धरते कुछ भी नहीं। 

    देवेंद्र ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्यम से करते हुए अपने बलबूते पर खुद की पहचान बनाई। हालांकि उनके पिताजी  स्वर्गीय गंगाधरराव फडणवीस अटल-अडवाणी काल के नेता और विधान परिषद के सदस्य थे। जिस 22 वर्ष की उम्र में अधिकांश युवा अनिश्चय के भंवर मेें गोते खा रहे होते हैं, तब देवेंद्र ने नागपुर महानगर पालिका के पार्षद और 27 वर्ष की आयु में महापौर बनने का उल्लेखनीय गौरव पाया। मुझे आज भी वो दिन याद है जब देवेंद्र शहर के महापौर थे और महानगर पालिका के प्रांगण में आयोजित सम्मान कार्यक्रम के भव्य मंच पर सुप्रसिद्ध वकील और जाने-माने राजनीतिज्ञ राम जेठमलानी ने बड़े गर्व से भविष्यवाणी की थी कि, देवेंद्र फडणवीस ने जिस तरह से कम उम्र में जो राजनीतिक मुकाम हासिल किया है, उससे मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि ये जुनूनी युवक एक न एक दिन प्रधानमंत्री...राष्ट्रपति अवश्य बनकर दिखायेगा। विधानसभा के हर चुनाव में भारी मतों से विजयी होते चले आ रहे देवेंद्र को उनकी योग्यता और क्षमता को देखते हुए 2013 में प्रदेश भाजपा का मुखिया बनाया गया। 31 अक्टूबर, 2014 को जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उनकी उम्र मात्र 44 वर्ष थी। शरद पवार के बाद वे महाराष्ट्र के दूसरे सबसे युवा सीएम थे। अब तो देवेंद्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की श्रेणी का नेता माना जाने लगा है। भारतीय जनता पार्टी का बहुत बड़ा वर्ग उन्हें उसी तरह से देखता है जैसा कि नरेंद्र मोदी को तब देखता और मानता था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और बहुत धैर्य और संयम के साथ प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर कदम बढ़ा रहे थे। सर्व गुण सम्पन्न देवेंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत प्रिय भी हैं और अपार विश्वास पात्र भी। अपने सहयोगी दलों को जोड़े रखने की कला में पारंगत देवेंद्र विपक्षी नेताओं से भी दोस्ताना व्यवहार के लिए विख्यात हैं। लगभग 32 वर्ष की सक्रिय राजनीति में होने के बावजूद देवेंद्र पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है...।

Thursday, December 5, 2024

क्या-क्या होने का दौर

     कैसा समय दस्तक दे चुका है। सब अपने में मस्त-व्यस्त हैं। दूर तो दूर आसपास से भी बेखबर! महानगर की एक विख्यात कॉलोनी में स्थित शानदार फ्लैट में अकेले रहने वाले 80 वर्षीय अमन खन्ना की सड़ी-गली लाश मिलने की खबर अखबारों में जिसने भी पढ़ी, स्तब्ध रह गया। उनकी मौत दस-बारह दिन पूर्व हो चुकी थी। बदबू के फैलने पर आसपास के निवासियों का माथा ठनका तो पुलिस कोे सूचित किया गया। मृतक खन्ना के दोनों बेटे वर्षों से सात समंदर पार अमेरिका में रह रहे हैं। खन्ना अच्छी खासी शिक्षक की नौकरी से रिटायर होकर अपनी जिंदगी अपने अंदाज से जी रहे थे। उनकी धर्मपत्नी का दस वर्ष पूर्व निधन हो चुका था। बच्चों के लाख अनुरोध के बावजूद उन्होंने अकेले अपने शहर में रहना ही पसंद किया। जवानी के दिनों में अपने कुछ एकदम करीबी दोस्तों के साथ महफिले सजाने वाले खन्ना तब नितांत अकेले पड़ गए, जब कोरोना काल में उनके तीन लंगोटिया यार चल बसे और एक ने सिंगापुर में रह रही अपनी इकलौती बेटी के यहां जाकर रहना प्रारंभ कर दिया। नये रिश्ते बनाने से परहेज करने और अपने आप में सिमटे रहने वाले खन्ना को साल भर पहले तक अक्सर नियमित मॉर्निंग वॉक पर जाते देखा जाता था। गार्डन में भी उनकी किसी से ज्यादा बातचीत नहीं थी। आज के जमाने में जब लगभग हर हाथ में मोबाइल है, खन्ना लैंड लाइन के ही भरोसे थे, जिसकी घंटी न के बराबर बजती थी। किराना वाले, दूध वाले, डॉक्टर और धोबी से काम पड़ने पर ही खन्ना लैंड लाइन फोन को हाथ लगाते थे। उन्हें मोबाइल से हरदम चिपके रहने वाले लोगों पर रह-रह कर बड़ा गुस्सा आता था। बाइक चलाते समय मोबाइल कान पर लगाकर बाइक दौड़ाने वाले कॉलोनी के दो-तीन लड़कों को जब उन्होंने फटकार लगाई थी, तो उन्हें गंदी गालियों के साथ-साथ उनके घूसे और मुक्के भी खाने पड़े थे। बुरी तरह से आहत खन्ना ने जब लड़कों के मां-बाप से उनकी औलाद की गुंडागर्दी की शिकायत की, तो उन्होंने उलटे उन्हें ही खरी-खोटी सुनाते हुए अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पुलिस को उनके कमरे से मिली डायरी में और भी बहुत कुछ दर्ज मिला। लगभग तीस साल तक महानगर के नामी-गिरामी हाईस्कूल में एक आदर्श शिक्षक के तौर पर अपना दायित्व निभाने वाले खन्ना के पढ़ाये अनेकों छात्र आज एक से एक ऊंचे सरकारी पद पर आसीन हैं। कुछ ने उद्योग और राजनीति में भी बेहतर पैठ बनाई है। रिटायरमेंट से पहले खन्ना मास्टर जी के यहां रौनक लगी रहती थी। उनका मन भी प्रफुल्लित रहता था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे ऐसा सन्नाटा छाता चला गया, जिसने उन्हें उदास और निराश कर दिया। उन्होंने बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया और लोगों ने भी उनकी सुध-बुध लेनी छोड़ दी।

    पहले घर-घर पहुंचे टेलीविजन ने संबंधों में सेंध लगाई, फिर रही-सही कसर मोबाइल ने पूरी कर दी। रिश्तेदार, यार-दोस्त एक-दूसरे से कैसे दूर होते चले गए, लिखने-बताने की जरूरत नहीं है। इस सच से इंकार नहीं कि, मोबाइल ने हमारे रोजमर्रा के कई कामों को बहुत आसान कर दिया है, लेकिन इसके कारण करीबी रिश्ते बुरी तरह से तार-तार हो रहे हैं। मां-बाप, चाचा-चाची, बहन-भाई, बच्चे और यहां तक कि दादा, दादी, नाना, नानी भी अपने-अपने मोबाइल के गुलाम हो चुके हैं। अब तो मोबाइल के कारण पति-पत्नी में लड़ाई, मारपीट और तलाक की खबरें सुर्खियां पाने लगी हैं। बच्चों की मोबाइल की लत ने मां-बाप की नींदें छीन ली हैं। यदि माता-पिता मोबाइल का अंधाधुंध इस्तेमाल करने पर अपने बच्चों को डांटते-फटकारते हैं, तो वे तिलमिला जाते हैं। पुरी तरह से गुस्सा जाते हैं और घर से भाग खड़े होने तथा आत्महत्या तक करने की धमकी देने पर उतर आते हैं। अभी हाल ही में इंदौर के एक माता-पिता ने जब अपनी 21 वर्षीय बेटी और आठ साल के बेटे को ज्यादा टीवी और मोबाइल देखने पर जबरदस्त फटकार लगाई तो वे दोनों तुरंत थाने जा पहुंचे। दोनों ने मां-बाप के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई कि मोबाइल, टीवी देखने के कारण उन्हें कई बार बुरी तरह से मारा-पीटा गया। ताज्जुब तो यह है कि, पुलिस ने भी मां-बाप का पक्ष सुने बिना उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली। आजकल की अधिकांश संतानें मनमानी और आजादी को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानने लगी हैं। मोबाइल ने भी आपसी बातचीत और संवाद के अवसर छीन लिए हैं। एक जमाना था, जब बच्चों के लिए मां-बाप का सम्मान ही सर्वोपरि होता था। बच्चे अपने जन्मदाताओं के समर्पण और त्याग के प्रति नतमस्तक और एहसानमंद रहते थे, लेकिन अब तो वे यह कहने में किंचित भी संकोच नहीं करते कि मां-बाप हमारी परवरिश कर हम पर कोई अहसान नहीं करते। हमें अपने मन-मुताबिक जीने, खाने और कहीं भी जाने का पूरा हक है। हम पर किसी तरह की रोक-टोक और बंदिश लगाने वाले मां-बाप जान लें कि हम उनकी कोई निर्जीव संपत्ति नहीं हैं। हाड़ मांस के जीते जागते इंसान हैं। भरे-पूरे चमकते-दमकते परिवारों के भीतर सन्नाटा और बिखराव अब खुलकर सामने आने लगा है। एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद एक-दूसरे की अनदेखी और संवाद हीनता ने आपसी रिश्तों को इस हद तक कटु और खराब कर दिया है कि, जानी-मानी प्रतिष्ठित हस्तियों को भी संबंधों में सुधार लाने के विभिन्न रास्तों को तलाशने को विवश होना पड़ रहा है। लोकप्रिय फिल्म अभिनेता आमिर खान ने हाल ही में एक साक्षात्कार में बताया कि, आपसी रिश्ते में सुधार और नई ऊर्जा लाने के लिए वे अपनी बेटी के साथ जॉइंट थेरेपी ले रहे हैं। गौरतलब है कि आपसी मेलजोल और संवाद के मधुर तार टूटने की वजह से आई कटुता को खत्म करने के लिए फैमिली थेरेपी या जॉइंट थेरेपी अत्यंत कारगर साबित हो रही है। इसमें विशेषज्ञ एक परिवार या परिवार के कुछ सदस्यों को एक-दूसरे को समझने और उनकी समस्याओं को हल करने में भरपूर मदद करते हैं। पारिवारिक रिश्ते बिगड़ने की वजह का भी पता लगाया जाता है। हमारे यहां अक्सर ज़रा सी बात पर भी मनमुटाव इस कदर बढ़ जाता है कि बातचीत पर विराम लग जाता है और गुस्सा खत्म होने का नाम नहीं लेता। गढ़े मुर्दे उखाड़ने के साथ-साथ आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लग जाती है। एक दूसरे के प्रति नफरत भी बढ़ती चली जाती है। ऐसे मामलों में उन्हें समझाया जाता है कि, जो हो गया, उसे भूलें और आगे से सकारात्मक सोचने और बेहतर करने का संकल्प लें। वर्षों पूर्व जब मैं छत्तीसगढ़ के कटघोरा में रहता था तब वहां एक उम्रदराज सज्जन अकेले घूमते-दौड़ते नज़र आते थे। उन्हें बड़बड़ाते तथा खुद से सवाल-जवाब करते देख बच्चे पागल कहकर छेड़ा करते थे और वे बच्चों को ईंट-पत्थर से डराया करते थे, लेकिन कुछ दिन पूर्व मेरे पढ़ने में आया कि  यदि आप परेशान हैं, फैसले नहीं ले पाते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त करने में सकुचाते हैं तो बेफिक्र होकर खुद से जोरों से बाते करें, अत्यधिक तनाव और चुनौतियों से जूझ रहे हैं, तब भी खुद से जोरों से बतियानें पर अकल्पनीय चमत्कार हो सकता है। आत्मविश्वासी, ऊर्जावान बनने तथा आसानी से अपना लक्ष्य पाने के लिए विदेशों में अपनाई जा रही इस विधि के बारे में पढ़ते ही मुझे जिगर मुरादाबादी की लिखी इन पंक्तियों की याद हो आई...‘मायूस हो के पलटीं जब हर तरफ से नज़रें, दिल ही को बुत बनाया, दिल ही से गुफ्तगू की।’