मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में अमृत स्नान के लिए उमड़ी भारी भीड़ के अनियंत्रित होने से मची भगदड़ में तीस से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई। यह सरकारी आंकड़ा है। इस पर लोगों को यकीन कम और अविश्वास ज्यादा है। सरकारें अक्सर इस तरह का झूठ बोलने, प्रचारित करने का करतब दिखाती रही हैं। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि, महाकुंभ में मौत के तांडव ने 100 से अधिक लोगों की जिन्दगी छीनी है और अनेकों को बुरी तरह से घायल कर अस्पताल पहुंचाया है। दुनिया के सबसे बड़े आस्था के मेले के अवसर पर भारी भीड़ का उमड़ना कोई नई बात नहीं है। कुंभ मेलों का पूर्व का इतिहास भी भगदड़ के कारण मरने वाले श्रद्धालुओं के सच्चे, झूठे आंकड़ों को अपने में समेटे है। देश की आजादी के बाद 1954 में आयोजित हुए कुंभ मेला में 800 श्रद्धालु मौत के मुंह में समा गए थे। यह सरकारी आंकड़ा था, जबकि कम-अज़-कम 1000 लोगों की मौत होने के दावे किये गये थे। तब मेले में भगदड़ की वजह थी, एक खबर जिसमें कहा और प्रचारित किया गया था कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। बस फिर क्या था। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। अपार भीड़ को अपनी तरफ आता देखकर नागा संन्यासी इस भ्रम के शिकार हो गये कि लोग उन्हें मारने के लिए भागे चले आ रहे हैं इसलिए वे त्रिशूल-तलवारों के साथ उन पर टूट पड़े। लोग डर के मारे इधर-उधर भागने लगे। देखते ही देखते भगदड़ ने विराट रूप ले लिया। लोग मरते-कटते और एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते चले गए। कई श्रद्धालु तो जान बचाने के लिए बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर जा लटके और अपने प्राण गंवा बैठे।
भारत के चार पवित्र स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर बारह साल के अंतराल में होनेवाले महाकुंभ में करोड़ों भारतीयों के साथ-साथ विदेशी भी शामिल होते हैं। दरअसल, महाकुंभ न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का प्रतीक भी है। ...यह मान्यता भी है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अचानक मची भगदड़ में जिन लोगों ने अपनों को खो दिया, उनकी पीड़ा और वेदना अनंत है। यह दर्द ताउम्र उनके साथ रहने वाला है। सबसे बुरा हाल महिलाओं तथा बच्चों का हुआ, जो गिरकर दोबारा उठ नहीं सके। करोड़ों की भीड़ को संभालने के लिए पुलिस भी कम पड़ गई। भीड़ में बिछड़ चुके अपनों को खोजना आसान नहीं था। कभी इस अस्पताल तो कभी उस अस्पताल तथा खोया-पाया केंद्रों में पूछताछ करते-करते उन्हें कई तरह के ख्याल आते रहे। ग्वालियर से पंद्रह लोगों के साथ महाकुंभ मेला में आई शकुंतला देवी को उसके परिजन तलाशते-तलाशते थक गए। देवरिया से मौनी अमावस्या पर स्नान करने आई माया सिंह भीड़ में एकाएक ऐसी गुम हो गईं कि खोजना मुश्किल हो गया। उनके पति जनार्दन का रो-रोकर बुरा हाल था। महाकुंभ से स्नान कर लौटे हमारे एक करीबी रिश्तेदार ने बताया कि, दो-दिन पहले से ही कई श्रद्धालु स्नान के लिए संगम स्थल पर डेरा डालकर बैठे थे। उन्हें यकीन था कि उन्हें सबसे पहले स्नान करने का सौभाग्य मिलेगा, लेकिन जैसे ही मौनी अमावस्या के स्नान की घोषणा हुई, तो देश के कोने-कोने से आए अन्य श्रद्धालुओं की बेताब भीड़ बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ने लगी, जिससे पहले बैठे श्रद्धालु कुछ समझ ही नहीं पाए। इस चक्कर में जो भगदड़ मची, उसी से हालात बिगड़ गये। पुलिस और सुरक्षा बल भीड़ को नियंत्रित करने में पूरी तरह से असफल रहे। गौरतलब है कि, स्नान के लिए 24 घाटों के होने के बावजूद संगमघाट पर ही स्नान करने की जिद बहुत भारी पड़ी। इस घटना केे बाद सभी रास्ते बंद कर दिये गए। इससे कई लोगों को दो दिन तक एक ही जगह पर अटके रहना पड़ा। कई आस्थावानों की वापसी की रिजर्वेशन थी, लेकिन वे नहीं जा पाए। इतनी मौतों के बाद कुछ बदमाश किस्म के लोग मौके का फायदा उठाने से नहीं चूके। कुछ मृतकों और घायलों के सामान गायब कर दिये गए। पांच-दस रुपये कीमत वाले खाद्य पदार्थों के लिए पचास-साठ रुपये चुकाने को विवश होना पड़ा। कई मोटर साइकिल वालों ने श्रद्धालुओं को संगम घाट पहुंचाने के लिए दो से तीन हजार रुपए वसूल कर अपनी निर्दयता और घोर मौका परस्ती का उदाहरण पेश किया। एक तरफ भगदड़ मची थी, दूसरे तरफ कुछ अराजक तत्व लूटमार में लगे थे। दुकानों से सामानों को लूटने की नीचता करने वालों के लिए मेला अपना घर भरने का ऐसा सुनहरा मौका था, जो बार-बार नहीं आता। लोगों को आतंकित करने के लिए हथियार लहराने के साथ-साथ तोड़फोड़ भी की गई। भगदड़ में अपने पति को खो चुकी एक महिला को सड़क पर छाती पीटकर रोते-बिलखते देखा गया। किसी ने उसके पैसे और कीमती सामान पर हाथ साफ कर दिया था। मृत पति के शव को बिहार ले जाने के लिए एंबुलेंस वाले उससे 20 हजार रुपये मांग रहे थे, लेकिन उसके पास देने के लिए एक धेला भी नहीं था। निर्दयी, शैतान लोगों की बेरहमी से आहत महिला गुस्से में कहती नज़र आईं ‘क्या देह बेचकर पैसा दूं? कुंभ मेले में चोर-चकारी, ठगी और लूटमारी करने वालों की खबरों के बीच इस खबर ने बहुत राहत और तसल्ली बख्शी, ‘‘एक मेहनतकश युवक ने अपनी प्रेमिका की सलाह पर महाकुंभ मेले में दातून बेचने का अपना छोटा-सा व्यवसाय शुरू किया और सिर्फ पांच दिनों में 40,000 रुपये कमा लिए। जब उससे पूछा गया कि, उसे यह बिजनेस करने का विचार कहां से आया, तो उसने मुस्कुराते हुए गर्व से जवाब दिया कि, उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे आइडिया दिया कि, दातून बेचने में कोई पूंजी नहीं लगती और वह इसे मुफ्त में लाकर बेच सकता है। उसी की प्रेरणा से वह अब अच्छी कमाई कर रहा है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन गया है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है और लोग युवक की ईमानदारी और सच्चे प्रेम को सराह रहे हैं। एक यूजर ने लिखा-कभी भी ऐसी अद्भुत प्रेमिका को धोखा मत देना। दूसरे ने कहा-सच्चा आदमी, जिसने अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपनी गर्लफ्रेंड को दिया।’’
No comments:
Post a Comment