इस बार के महाकुंभ का जलवा अद्भुत और खास है। भस्म लपेटे, जटाधारी, गेरूआ वस्त्र पहने साधुओं की भीड़ में कई अचंभित करते चेहरे भी नजर आ रहे हैं। देश और विदेशों से भी कई साधु-संत और पर्यटक इस आस्था के उत्सव में शमिल होकर मीडिया की सुर्खियां पा रहे हैं। सोशल मीडिया में छाये बाबा गिरी, अभय सिंह उर्फ आईआईटीयन बाबा, तीन फीट के गंगापुरी बाबा, चायवाले बाबा, भक्तों को अपने हाथ से रबड़ी बनाकर खिलाने वाले बाबा, बीस किलो चाबियां लेकर चलने वाले बाबा, एम्बेसडर कार दौड़ाते बाबा, सात फीट के बॉडी बिल्डर बाबा के साथ-साथ और भी कई साधु-संतों के क्रियाकलापों तथा असली-नकली खूबसूरत साध्वियों के सोशल मीडिया पर वायरल होते वीडियो ने महाकुंभ को मनोरंजक भी बना दिया है। इसमें दो मत नहीं कि, भारतीय संस्कृति में संत महात्माओं की विशेष अहमियत है। सभी संत अपनी-अपनी विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु अपनी रहस्यमयी दुनिया और जीवनशैली के लिए हमेशा जिज्ञासा का विषय रहे हैं। पुरुष नागा साधु तो कभी-कभार देखने में आ जाते हैं। उनकी शाही सवारी और स्नान की भी चर्चाएं और खबरें सुनने-पढ़ने में आती रहती हैं। लेकिन महिला नागा साध्वियां ज्यादातर लोगों की नजरों से दूर ही रहती हैं। लेकिन इस बार प्रयागराज के महाकुंभ में इनकी उपस्थिति ने स्तब्ध कर दिया है। अपनी तमाम इच्छाओं और धन दौलत का त्याग करना कतई आसान नहीं होता। साधु और साध्वी बनना हर किसी के बस की बात नहीं है। यह आस्था और भक्ति का ऐसा मार्ग है, जहां खुद को पूरी तरह से बदल देना पड़ता है। गुफाओं, जंगलों-पहाड़ों के एकांत में तप और तपस्या करनी पड़ती है। कुंभ मेले में कई साधु-संत और तपस्वी अपार उत्सुकता, जिज्ञासा और आकर्षण का विषय बने हुए हैं, जिनकी तपस्या और जीवन यात्रा अद्भुत और स्तब्ध करने वाली है। उन्हीं में शामिल हैं योग साधक स्वामी शिवानंद। भारत सरकार के द्वारा पद्मश्री से सम्मानित शिवानंद महाराज की आधार कार्ड के अनुसार उम्र 128 वर्ष है। उम्र के इस पड़ाव पर होने के बावजूद पूरी तरह से सक्रिय शिवानंद बाबा हर कुंभ में शामिल होते हैं। उनका यह सिलसिला 100 साल से निरंतर बरकरार है। बाबा कभी किसी से दान-दक्षिणा नहीं लेते। उबला हुआ खाना खाते है और अभी भी कठिन से कठिन आसन बड़ी आसानी से कर लेते हैं। इनके माता-पिता अत्यंत गरीब थे। भीख मांग कर किसी तरह से दिन काट रहे थे। चार साल की उम्र में मां-बाप ने इन्हें गांव में पधारे संत ओंकारानंद गोस्वामी के हवाले कर दिया, ताकि कम अज़ कम उनके बच्चे को खाना तो मिल जाए। शिवानंद ने चार साल की उम्र तक दूध, फल, रोटी अच्छी तरह से नहीं देखी थी, कालांतर में यही इनकी जीवनशैली बन गई। अभी भी आधा पेट ही भोजन करते हैं। बाबा रात को नौ बजे सो जाते है और नियमित सुबह तीन बजे उठते हैं और शौच आदि से निवृत्त होकर योग साधना में लीन हो जाते हैं। दिन में कभी भी उन्हें सोते नहीं देखा गया। युवाओं को उनका यही संदेश है कि, प्रतिदिन सुबह जल्दी उठो। आधा घंटा हर हालत में योग करो। टहलना कभी भी न भूलो। संतुलित जीवन शैली अपनाओगे तो हमेशा स्वस्थ रहोगे।
41 साल से मौन व्रत पर हैं दिनेश स्वरूप ब्रह्मचारी। महाकुंभ में भीड़ से घिरे रहनेवाले इन बाबा को चायवाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है। बाबा ने पिछले 41 वर्षों से अन्न, जल ग्रहण नहीं किया है। वे सिर्फ चाय पीते हैं। अपने अटूट संकल्प के बारे में किसी से कोई जानकारी साझा नहीं करते। हर बात का जवाब लिखकर देते हैं। वह बाएं हाथ से लिखते हैं। उनकी कलम जब चलती है तो बोलने की स्पीड को मात देती प्रतीत होती है। बाबा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यार्थियों को एक कुशल अध्यापक की तरह पढ़ाते हैं। वे नोट्स तैयार करके देने के साथ-साथ छात्रों की शंकाओं का समाधान मोबाइल पर टाइप करके भेजते हैं। उनके पढ़ाये 40 से ज्यादा छात्र उच्च अधिकारी बन चुके हैं। महाकुंभ में भी छात्र उन्हें घेरकर सफलता के गुरू मंत्र लेते दिखाई देेते हैं। अंग्रेजी और गणित जैसे विषयों के विशेषज्ञ हठयोगी चायवाले बाबा कहते है कि, वह तो ज्ञान की गंगा में प्रतिदिन डुबकी लगाते हैं। उनका हर दिन शाही स्नान की तरह होता है। महाकुंभ मेले में पधारे आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरी अपने अनुयायियों को दो पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। एक पेड़ अंतिम संस्कार के लिए और एक पीपल का पेड़ आक्सीजन के लिए। 2016 में वैष्णोदेवी से कन्याकुमारी तक बाबा ने 27 लाख पौधे वितरित किए। एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाने का संकल्प ले चुके अरुण गिरी को उनके भक्त बड़े मान-सम्मान के साथ ‘पर्यावरण बाबा’ कहते हैं।
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में अनेकों विदेशी बाबाओं की साधना और तपस्या लोगों को प्रेरित और आकर्षित कर रही है। अमेरिका में जन्मे और अमेरिकी सेना में सैनिक रहे माइकल वर्ष 2000 में अपनी पत्नी और बेटे के साथ भारत आए थे। तब वे विभिन्न धार्मिक स्थलों के भ्रमण और साधु-संतों के प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित हुए थे। दो वर्ष के पश्चात उनके पुत्र का आकस्मिक निधन हो गया। उन्हें गम और तनाव ने बुरी तरह से घेर लिया। तब उन्हें भारत में बिताये दिन याद हो आए और एहसास हुआ कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। भारत आकर उन्होंने बहुत गहराई के साथ सनातन धर्म का अध्ययन करते हुए संन्यास की राह पकड़ ली। माइकल को अब मोक्षपुरी बाबा के नाम से जाना जाता है। ध्यान ने उन्हें सभी चिंताओं से मुक्ति दिलाई है। इस बार के महाकुंभ में मोक्षपुरी सनातन धर्म के शाश्वत संदेश को फैला रहे हैं। वेदों, उपनिषदों और भगवद् गीता के ज्ञानी अमेरिकी बाबा अनेकों भारतीयों के प्रिय बन चुके हैं। प्रयागराज में जूना अखाड़े के सात फुट कद के आत्मा प्रेमगिरी बाबा के चेहरे की चमक दमक और चुस्ती-दुरुस्ती का आकर्षण लाजवाब है। जो भी एक बार देखता है उन्हें भूल नहीं पाता। विख्यात पायलट बाबा के अनुयायी रह चुके आत्मा प्रेमगिरी बाबा जब महाकुंभ में भ्रमण के लिए निकलते हैं तो भीड़ उनके पीछे-पीछे चलने लगती है। यह बाबा भी मूलत: रूस के रहने वाले हैं। पेशे से अध्यापक हैं, लेकिन सनातन धर्म के आकर्षण में इस कदर बंधे कि पिछले तीस साल से नेपाल में रहकर हिंदू धर्म का प्रचार कर रहे हैं। फौलादी शरीर की वजह से वाहवाही बटोरते इस बाबा को परशुराम का अवतार भी बताया जा रहा है।
अभय सिंह नाम का एक दुबला-पतला युवक मेले की शुरुआत में असंख्य लोगों के आकर्षण और जिज्ञासा का विषय बनज्ञ रहा। सोशल मीडिया ने तो उसे जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि वाले आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र अभय ने अच्छी खासी मोटी तनख्वाह वाली नौकरियों को लात मारकर अध्यात्मका मार्ग चुना। अपने इस जुनून के चलते मां-बाप की नाराजगी और प्रेमिका को भी खोना पड़ा। बाबा अभय सिंह की मासूम मुस्कराहट पर उसके कटु बयान भारी पड़ गये। जूना अखाड़े के संत और संन्यासी उसे बार-बार समझाते रहे कि वह संयम का दामन न छोड़े। लेकिन वह नशे की धुन में कभी अपने माता-पिता तो कभी अपने गुरू के बारे में ऐसे-ऐसे बेहूदा और अशोभनीय बयान देने में लगा रहा, जो किसी संन्यासी बाबा को तो कतई शोभा नहीं देते। दरअसल देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी उसे चने के झाड़ पर चढ़ा दिया था। उसे लगने लगा था कि वह विद्वान भी है और अत्यंत महान भी। उसकी तथाकथित लोकप्रियता से कुछ लोग चिढ़ रहे हैं। ईर्ष्या कर रहे हैं। इसी अहंकार में वह ऊटपटांग बोलता चला गया। कल तक जिस अभय सिंह की कहानी सुनकर लोग उसके प्रति सहानुभूति दर्शा रहे थे, दांतो तले उंगलियां दबा रहे थे, अब उसे ढोंगी और नौटंकी बाज कहते हुए कोस रहे हैं। कुंभ की शुरुआत में ही सोशल मीडिया स्टार हर्षा रिछारिया भी अपनी विभिन्न आकर्षक मुद्राओं और बोलवचनों के कारण काफी छायी रही। सोशल मीडिया उस पर पूरी तरह से लट्टू और मेहरबान रहा। तीस वर्षीय इस खूबसूरत युवती के बारे में जानने के लिए देशभर के लोगों की उत्सुकता बढ़ती चली गई। हर्षा जब निरंजनी अखाड़े के रथ पर विराजमान हुई तो विरोध के साथ-साथ तरह-तरह की बातें होने लगीं। उस पर निशाना साधा जाने लगा कि यह सब खूबसूरती का कमाल है। उसके भगवा वस्त्र धारण करने पर भी आपत्ति के स्वर गूंजे। तब गुस्सायी हर्षा ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें फूट-फूट कर रोती दिखी। अंतत: कुंभ छोड़कर जाने से पहले हर्षा ने कहा, लोगों को शर्म आनी चाहिए। एक लड़की जो धर्म से जुड़ने, धर्म को जानने, सनातन संस्कृति को समझने के लिए आईं थी, लेकिन उसे इस लायक भी नहीं समझा गया कि वो कुंभ में शांति से रूक सके। मैं तो अभिनय को छोड़कर सुकून की तलाश में यहां आई थी, लेकिन कुछ लोगों को मेरा साध्वी का रूप रास नहीं आया...।
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