Wednesday, April 1, 2020

खामियां निकालना ही है जिनका धंधा

कैसे होगा, क्या होगा? हर सजग भारतीय चिन्तित है। कोरोना ने सभी को डरा दिया है, लेकिन डर इस समस्या का हल नहीं। देश के सजग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों का पालन करते हुए अधिकांश देशवासियों ने खुद को २१ दिन के लिए अपने-अपने घरों में बंद कर लिया है। जहां थे, वहीं हैं। कुछ लोग हैं, जो घर में बैठने को तैयार नहीं। घर में पता नहीं उन्हें कौन-सा कीडा काटता है। सडक पर नजारा देखने को निकल पडते हैं। कभी अकेले तो कभी यार दोस्तों के साथ पैदल और वाहनों पर होकर सवार। कोरोना एक ऐसी महामारी है, जो गरीब और अमीर में भेदभाव नहीं करती। इसकी मार हर उस इन्सान पर पडनी तय है, जो लापरवाही के पल्लू से बंधा है, जिसकी हमेशा यह सोचने की आदत रही है कि मेरा कुछ नहीं होगा। मैं तो भला चंगा हूं। हट्टा-कट्टा हूं। मरेंगे तो वो जो निर्बल हैं, जबकि सच यही है कि अगर यह सच होता तो देश और दुनिया में रईसों के कोरोना की गिरफ्त में आने और मौत के मुंह में समाने की खबरें नहीं आतीं।
नासमझी, जिद और नादानी के कारण इन्सान हमेशा अपना ही अहित करता आया है। ऐसे लोगों पर रहम भी आता है, गुस्सा भी, जो यह कहते देखे जा रहे हैं कि हमारे धर्म, हमारे मजहब, हमारी जमात को मानने वालों का कोरोना बाल भी बांका नहीं कर सकता। हम कहीं भी आने-जाने और ठहरने के लिए स्वतंत्र हैं। हम दुनिया की किसी बीमारी से खौफ नहीं खाते। मौत का दिन तो वैसे भी निश्चित है। ऊपर वाला जैसा चाहता है, वैसा ही होता है।
इन बेअक्लों को मरना है तो मरें, लेकिन उनकी जिद, नादानी और मनमानी का खामियाजा दूसरे क्यों भुगतें? यह लोग भीड-भाड वाले इलाकों तथा अपने-बेगानों के निकट जाकर उन्हें कोरोना का शिकार क्यों बना रहे हैं? जानलेवा संक्रमण क्यों फैला रहे हैं? यह हक उन्हें किसने दिया है कि जानबूझकर वे बेकसूरों को मौत के मुंह में धकेलें? कोरोना की आपदा को जो भी 'स्वयंभ्यू सिकंदर' मामूली मान रहे हैं उन्हें वक्त रहते होश में आना होगा। यह महामारी डंडे के जोर से नहीं स्वविवेक से दफन हो पाएगी। अनुशासन, जनभागीदारी और प्रबल इच्छा ही इसका एकमात्र इलाज है। इस सच को भी जान लें कि हमारी अहंकारी सोच हमें बरबाद तो करेगी ही, देश को आर्थिक रूप से पूरी तरह से भी हिला कर रख देगी। देशभर में लॉकडाउन के चलते सरकारें भरसक मदद कर रही हैं। कई समाजसेवी संस्थाओ और कई संपन्न लोगों ने भी मदद के लिए हाथ बढा दिये हैं। गरीब लोगों तथा रोज कमाने-खाने वालों के लिए जगह-जगह खाने की व्यवस्था कर दी गई है। गरीबों के घरों तक भी राशन पहुंचाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने १.७० लाख करोड पैकेज के अलावा हर वर्ग के लिए राहत का ऐलान किया है। सरकार की बस यही मंशा है कि कोई भी भूखा न रहने पाए। यह महामारी किसी की भी मौत का कारण न बने। यह समय सरकारी कमियां गिनाने का नहीं, लोगों को जागृत करने और उनका हौसला बढाने का है। इस महा चिन्ताजनक दौर में देश का अधिकांश मीडिया भी सतर्कता और ईमानदारी से अपनी भूमिका निभा रहा है। फिर भी एक शर्मनाक सच यह भी है कि भारतीय मीडिया में कुछ मायावी चेहरे ऐसे भी हैं, जो देशवासियों को गुमराह करने में लगे हैं। धडाधड अफवाहें फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल, यह मोदी के जन्मजात विरोधी हैं। प्रधानमंत्री के हर निर्णय, हर जनहितकार्य में खामियां निकालना ही इनकी पत्रकारिता का मूल मंत्र है। इनके पैर जब कब्र में भी होंगे तब भी ये रोगी मोदी-मोदी चिल्लाते रहेंगे। पानी से बाहर फेंक दी गई मछली की तरह फडफडाते रहेंगे। यह स्वनिर्मित 'मोदी कोरोना' के मारे, बेचारे चैन से मर भी नहीं सकेंगे।