Thursday, May 26, 2022

लम्हों की खताएं, दिलाएं लंबी सज़ाएं

    कभी न कभी आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी, ‘लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सज़ा पाई। गुस्से और क्षणिक आवेग में अच्छा भला इंसान ऐसा कोई अपराध, भूल, भटकाव और अक्षम्य गलती कर जाता है, जिससे उसकी सारी ज़िन्दगी की तपस्या तार-तार हो जाती है। मुंबई के पश्चिम उपनगर दहिसर क्षेत्र के निवासी निकेश ने अपनी प्रिय 40 वर्षीय पत्नी निर्मला की इसलिए गला दबाकर नृशंस हत्या कर दी, क्योंकि उसने साबूदाने की खिचड़ी में ज्यादा नमक डालने की भूल कर दी थी। निकेश अपने मन को शांत रखने के लिए पिछले कई वर्षों से शुक्रवार का व्रत रखता चला आ रहा था। अब निकेश जेल में है। उनका बारह वर्षीय बेटा जो इस हत्या का प्रत्यक्ष गवाह है अकेले जीने को विवश है।
    मुंबई के 76 वर्षीय काशीराम पाटील को निर्धारित समय पर नाश्ता नहीं मिला तो वे तिलमिला गये। उनका यह क्रोध उतरा अपने बेटे की पत्नी पर, जिसने अपने ससुर को दिन के 11 बज जाने के बाद भी नाश्ते से वंचित रखा था। नाश्ता देने में हुई देरी की वजह जानने की बजाय उम्रदराज ससुर ने अपनी कमर में खोंसी रिवॉल्वर निकाली और बहू के सीने में अंधाधुंध गोलियां उतार दीं। इन महाशय की भी बाकी बची उम्र जेल में ही गुजर रही है। देहसुख के लिए साथी और बिस्तर बदलने वाली इंद्राणी मुखर्जी साढ़े छह वर्ष तक जेल में कैद रहने के बाद जब जमानत पर बाहर आई तो एक बार फिर से लोगों को उसकी खूनी कहानी की याद हो आई। भोग विलास को ही सब कुछ मानती रही इंद्राणी अपनी जेल यात्रा पर किताब लिखने की सोच रही है। पता नहीं उसे किसने कह दिया है कि अपनी ही बेटी की हत्यारी के लिखे शब्दों को लोग पढ़ने को आतुर हैं। इंद्राणी की बेटी शीना की 2012 में हत्या हुई थी। हाई प्रोफाइल जीवन जीने वाली इंद्राणी शीना को अपनी बहन बताती थी। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे इतनी बड़ी बेटी की मां समझे। उसने अपनी ही पुत्री को इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि वह अपने ही सौतेले भाई से प्यार करने लगी थी। शीना हत्याकांड के अथाह सनसनीखेज खुलासों ने देश और दुनिया को चौंका दिया था। न्यूज चैनल वाले उसके काले इतिहास को महीनों दिखाते और दोहराते रहे थे। बेटी की ये हत्यारी जानी-मानी मीडिया की हस्ती होने के साथ देश में प्राइवेट टीवी चैनलों को कामयाबी का स्वाद चखाने वाले प्रतिष्ठित चेहरे पीटर मुखर्जी की फैशनेबल पत्नी भी थी। वर्षों तक जेल की काली कोठरी में बंद रही इंद्राणी अपने जिस्म के जलवे दिखाने को लेकर अतीत में कितनी सतर्क रही होगी उसका पता इससे चलता है कि जब वह कैदी थी तो उसके बाल पूरी तरह से सफेद हो चुके थे, लेकिन जब वह बाहर निकली तो उसने अपने बाल रंग रखे थे। उसकी यह रंगत यह भी कह रही थी कि उसे अपनी बेटी की हत्या करने का कोई दुख नहीं है। वह तो बस अब फिर से रंगरेलियां मनाने को आतुर है। रईसों का अपने गुनाहों पर प्रायश्चित करने का यह भी एक तरीका है।
    नवजोत सिंह सिद्धू ने 27 दिसंबर 1988 में पटियाला में कार पार्किंग को लेकर उम्रदराज गुरनाम सिंह को इतनी जोर का मुक्का मारा, जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये थे। क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू का यकीनन हत्या करने का इरादा नहीं रहा होगा, लेकिन क्रोध में आकर की गई भूल अभी तक उसका पीछा कर रही है। पंजाब के विधानसभा चुनाव में उसे बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। उसके बड़बोलेपन ने उसे वो धूल चटायी, जिसकी शर्मिंदगी उसके चेहरे पर चस्पा हो गई। सिद्धू जब बोलते हैं तो लोग सुनते हैं। मज़ाक उड़ाने वाले भी कम नहीं। अपने आप को हमेशा दमखम वाला दर्शाता यह नेता पहले भी अदालती सज़ा के झटके झेल चुका है, लेकिन इस बार की एक साल की सश्रम कारावास ने उस पर चिंता और गम की ऐसी चादर ओढ़ा दी है, जिसे आसानी से उतार पाना संभव नहीं।  वर्षों पहले की गई उन्मादी भूल आज भी सन्नाटे भरी रातों में उसकी नींद उड़ाती होगी। मन में कहीं न कहीं यह विचार भी आता ही होगा कि काश! तब खुद को क्रोध के चंगुल से बचा लिया होता तो ये काले दिन और डरावनी रातें न देखनी पड़तीं।
    कुछ दिन पहले अखबार में खबर पड़ी कि मुंबई में एक दुल्हे ने इसलिए शादी ही तोड़ दी, क्योंकि वधु पक्ष ने जो निमंत्रण पत्रिका छपवायी उसमें उसकी डिग्री नहीं छापी गई थी। अपने भावी पति की जिद्दी कारस्तानी ने वधु को इतनी जबरदस्त ठेस पहुंचायी कि उसने खुदकुशी करने की ठान ली। उसे किसी तरह से घरवालों ने मनाया, समझाया-बुझाया, लेकिन शादी टूटने की शर्मिंदगी से वह अभी तक नहीं उबर पाई है। दुल्हे मियां फरार हैं। पुलिस दिन-रात उसे दबोचने की कसरत में लगी है। यह अहंकारी और क्रोधी इंसान जहां भी होगा, चैन से तो नहीं होगा। अपनी क्षणिक गलती पर माथा भी पीट रहा होगा।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया यकीनन एक बेहतर और सशक्त माध्यम है, लेकिन कुछ लोग एक-दूसरे को नीचा दिखाते हुए अरे-तुरे में लगे हैं। यहां-वहां के आवेश में आकर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर खुद के लिए मुसीबत खड़े कर रहे हैं। अभी हाल ही में मराठी फिल्म अभिनेत्री केतकी चितले को देश के प्रतिष्ठित राजनेता शरद पवार के खिलाफ बेहूदी टिप्पणी करने के आरोप में हिरासत में लिया गया। केतकी संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायियों पर भी घटिया शब्दों की बौछार कर चुकी है। अपने विचारों पर नियंत्रण न रख पाने वाले ऐसे ढेरों लोग हैं, जो कड़ी सज़ा के हकदार हैं। सतही प्रचार और मनोरंजन के लिए दूसरों को अपमानित करने और पीड़ा पहुंचाने का यह खेल सोशल मीडिया के सुलभ हो जाने के बाद कुछ ऐसा बढ़ा है, जो भले लोगों के लिए चिंता, परेशानी का सबब बन गया है। समाज में जानबूझकर द्वेष व क्रोध का वातावरण बनाने वालों की वजह से एक अच्छे-खासे आपसी समन्वय कायम करने वाले माध्यम को कटुता और वैमनस्य का मंच बनाने की तो जैसे चालें ही चली जा रही हैं। उन्माद और गुस्से पर काबू पाने के लिए जानकार डॉक्टर कई उपाय सुझाते हैं, जिनका अनुसरण कर अपनी ज़िन्दगी को तबाह होने से बचाया जा सकता है। क्रोध के कारण शरीर को भी नुकसान होता है। ब्लडप्रेशर से लेकर हृदयरोग तक होना संभव हैं। किसी ने आपका फोन नहीं उठाया, कोई बेअदबी पर उतर आया या किसी ने आपका आदेश नहीं माना तो अपना पारा नहीं बढ़ाना कई संकटों से बचाता है।

Thursday, May 19, 2022

...और आदमी मर जाता है

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। यह कैसा न्याय है? कानून की किताबों में भी पढ़ने में नहीं आया कि प्रेमियों को इस तरह से डराओ कि उनकी रूह कांप जाए। उनके घरवालों को भी कहीं का नहीं छोड़ो। करे कोई और भरे कोई की कहावत को चरितार्थ करने वालें इतने संवेदनहीन और अंधे कैसे हो सकते हैं? प्रेम... प्यार कोई धर्म, जाति और योजना बनाकर नहीं किया जाता। यह तो बस हो जाता है। आसिफ और साक्षी भी इसी मोहब्बत के कैदी थे, जिसकी अनंत दस्तानों के किस्से दुनिया जहान की किताबों में भरे पड़े हैं। मध्यप्रदेश के डिडौरी जिले के छोटे से गांव के रहने वाले इस प्रेमी जोड़े को बार-बार कुछ लोगों ने याद दिलाया कि अलग-अलग धर्म के होने के कारण उन्हें समय रहते दूरियां बना लेनी चाहिए। नहीं तो धर्म की तलवार से गर्दन काटने वाले तैयार बैठे हैं, लेकिन सच्चा प्यार कहां मानता है!
    आसिफ और साक्षी के घरवालों को भी खबर लग गई थी कि कुछ हिंदूवादी संगठन उनके पवित्र रिश्ते के खिलाफ हैं। दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वर्षों पहले उनमें प्यार हो गया था। जब साक्षी के घरवालों ने उसकी शादी की बात कहीं और चलायी तो उसने साफ-साफ कह दिया कि वह आसिफ के सिवा किसी और से ब्याह करने की सोच भी नहीं सकती। मां और भाई ने फिर पुराना राग अलापा। हम हिंदू हैं, आसिफ, मुसलमान। क्यों हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाने पर तुली हो? जिद्दी साक्षी नहीं मानी तो उसके घरवालों ने उसके बाहर निकलने पर कड़ी बंदिशें लगा दीं। पढ़ना भी बंद करवा दिया गया। साक्षी ने आसिफ तक अपना संदेश भी भिजवाने में देरी नहीं की, कि यदि हम दोनों एक नहीं हो पाए तो मैं अपनी जान ही दे दूंगी। मेरे लिए तुम्हारे बिना जीना मुमकिन नहीं। साक्षी को मनाने के लिए उसके घरवालों ने इलाके के तांत्रिक से झाड़-फूंक करवायी, लेकिन यह इलाज भी प्यार के तीव्र बुखार पर बेअसर रहा। अंतत: दोनों ने भागकर अपने गांव से लगभग पांच सौ किलोमीटर दूर मंदिर में जाकर सात फेरे ले लिए।
    उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन हमले का खतरा नहीं टला। भागमभाग के बीच किसी दिन साक्षी ने वीडियो जारी कर बताया कि मैं अपनी मर्जी से आसिफ के साथ परिणय सूत्र में बंधी हूं। हम दोनों सच्चे प्रेमी हैं, इसलिए हमें अपने अंदाज में जीने दिया जाए, लेकिन साक्षी के परिजनों ने आसिफ पर बेटी को बरगला कर भगा ले जाने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी और पुलिस तो बस अब दोनों के पीछे ही पड़ गई। कई मोहब्बत के दुश्मन भी पुलिस पर गिरफ्तारी का दबाव बनाने लगे। आपसी खिंचाव और तनाव बढ़ता देख प्रशासन ने आसिफ के परिवार की दुकान और घर को बुलडोजर चलाकर जमींदोज कर दिया। कारण बताया कि अवैध निर्माण था, इसलिए धराशायी करने की वीरता दिखायी। इस खबर को पढ़ने-सुनने के बाद मेरे मन में बार-बार विचार आया कि यदि ये दोनों प्रेमी सच्चे प्यार के अटूट सूत्र में नहीं बंधे होते तो यह अवैध निर्माण ध्वस्त ही नहीं होता। यानी असली गुनहगार तो गैर धर्म में पनपा जुड़ाव है। ऐसे और भी न जाने कितने अनाधिकृत कच्चे-पक्के घर होंगे, जो सीना ताने खड़े हैं, लेकिन जिनकी तरफ कभी किसी कि निगाह नहीं जाती। जाएगी भी नहीं। रसूखदारों के असंख्य अवैध निर्माण भी अनदेखे कर दिये गये हैं। उन्हें कसूरवार नहीं माना जाता। गरीबों और असहायो पर ही किसी न किसी वजह से गाज गिरती रहती है। उन्हीं की इज्जत का बार-बार चीरहरण किया जाता है। उन्हें खुलेआम पीटा जाता है। प्यार करने के जुर्म में जिंदा तक जला दिया जाता है।
    प्रेम करने के अपराधी आसिफ के घर और धंधे का मटियामेट करने वाला प्रशासन इस सच को क्यों नजरअंदाज कर गया कि वर्षों की खून-पसीने की कमायी पर बने घर-दुकान पर उनके पूरे परिवार का हक था। यह संपत्ति अकेले तथाकथित अपराधी आसिफ की तो नहीं थी। ऐसी ही कई दुकानों और घरों को नेस्तनाबूत करने का जो निर्दयी सिलसिला बुलडोजर से चलाया जा रहा है उस पर चिंतन-मनन की जरूरत है। अंधे बुलडोजरों से जिनके घरों, घरौंदो को उजाड़ा जा रहा है, बेरोजगार कर उनके सपनों को मिट्टी में मिलाया जा रहा है, सभी वही वोटर हैं, जिन्होंने किसी न किसी पार्टी को अपना वोट दिया होगा। अवैध निर्माण खड़ा करने के लिए नेताओं और सरकारी नौकरों ने भी शह दी होगी, लेकिन आज उनकी फरियाद को सुनने वाला कोई भी नहीं। अवैध कब्जे को हटाने से पहले कम अज़ कम नोटिस... चेतावनी तो दे देते। तब भी धोखा, अब भी धोखा। पहले बनाने की छूट दी। अब तोड़ने में नादिरशाही। एक ही झटके में बेघर और बेरोजगारी की ज़हरीली सौगात!
    इंसानियत, दया, धर्म की दहाड लगाने वाले भी कहीं दुबक गये हैं। देश के समक्ष एक से एक विकराल समस्याएं सीना ताने खड़ी हैं, लेकिन सत्ताधीश और प्रशासन उन्हें दूर करने अक्षम और बौना साबित हो रहा है। आस्था के नाम पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने की आंधी चल रही है। लाउडस्पीकर, हनुमान चालीसा के साथ-साथ मंदिर, मस्जिद, मजारों के मुद्दों के शोर में असली जरूरतों के लिए कराहते देशवासियों की खबर लेने वाला कोई नजर नहीं आ रहा। जहां-तहां ताजमहल और ज्ञानवापी छाये हैं। कुतुबमीनार के अंदर के रहस्यों को उजागर करने की होड़ है। हाड़-मांस के आदमी के अंदर कैसी आंधी चल रही है उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं। इंसानों की कम, मंदिर, मस्जिद, भगवानों की चिंता का जबरदस्त सैलाब उमड़ रहा है। सैकड़ों वर्ष पूर्व की गयी किन्हीं मुस्लिम शासकों की तथाकथित मनमानी का दंड वर्तमान को झेलना पड़ रहा है। मुसलमानों को लग रहा है धार्मिक स्थानों को निशाना बनाकर उन्हें ऐसे कसूर की सज़ा दी जा रही है, जो उन्होंने किया ही नहीं। देश की बिगड़ती आर्थिक हालत पर कोई बात नहीं हो रही। रुपया रेत की तरह फिसल रहा है। पेट्रोल ने सौ का आंकड़ा पार कर लिया है। डीजल भी दिल तोड़ चुका है। घरेलू ईंधन हजार तक तो दालें आसमान पर हैं। खाने का तेल भी महंगा हो चुका है। बेरोजगारी भूख और अपराध पैदा कर रही है। न्यूज चैनल वालों ने आम आदमी की चिंता करनी छोड़ दी है। उसके लिए भी धर्म पहले और इंसान बाद का विषय है। देश में आतंकी फिर सिर उठाने की फिराक में हैं। देशवासियों को खौफ और अलगाव के साये में जीना पड़ रहा है।
    हाल ही में कश्मीर में आतंकियों ने कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। सरकारी स्तर पर सुरक्षा की कमी के चलते कश्मीरी पंडितों को फिर से 1990 की याद आने लगी है। देश की सीमा पर डटे जवान भी तनाव में जीने को विवश हैं। इस सच को महज खबर मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि विगत तीन वर्षों में लगभग 350 जवानों ने तनाव और असंतोष की वजह से खुदकुशी कर ली और 47 हजार से अधिक जवानों ने नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया है। हताशा और निराशा की यह पराकाष्टा ही है कि सैनिक अपने ही साथियों को गोलियों से छलनी करने से नहीं सकुचा रहे हैं। अब ऐसे में प्रश्न यह है कि हम और आप आखिर कब जागेंगे और सीना तान कर अन्याय और मनमानी के खिलाफ बोलेंगे? देश के जागरूक कवि उदय प्रकाश ने अपनी कविता भी यही चिंता व्यक्त की है...,
‘‘आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता
आदमी मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी
मर जाता है...।’’

Thursday, May 12, 2022

जिनका कोई एतबार नहीं

    कोई महंगाई का रोना नहीं।  रोजगार के लिए भी शोर नहीं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग भी भूले। बस याद है तो भेदभाव, हिंसा और मनमुटाव। महिलाओं पर हो रहे बेलगाम अत्याचारों को भी अनदेखा किया जा रहा है। वर्षों से चली आ रही सात्विक परंपराओं की खुलेआम हत्याएं हो रही हैं। इस बार तो हिंदू-मुस्लिम समुदाय के पवित्र त्योहारों में भी खलल डालने वालों ने अपना आतंकी चेहरा दिखाया। तलवारें चमकीं व पत्थर बरसे और चिंताग्रस्त कर देने वाला खौफ देखने में आया। शासन और प्रशासन को कई जगहों पर बुलडोजर चलाना पड़ा। खाकी वर्दी वाले भी कहीं असहाय तो कहीं मूकदर्शक बने रहे। अन्याय, अत्याचार और अपराधों के खिलाफ गूंजने वाली आवाजें धीमी पड़ चुकी हैं। अगल-बगल में बहू-बेटी की अस्मत लुटती है तो लुटती रहे, लेकिन सभी को अपना घर बचाने की पड़ी है। इस सच को तो बिसरा ही दिया गया है कि कल हम पर भी गाज गिर सकती है। मानवता के शत्रु बहुत सोच-समझकर आपसी फूट डालने के षडयंत्रों के बीज बो रहे हैं, जिन्हें विषैले पेड़ बनने में देरी नहीं लगेगी। देश के सबसे सुरक्षित और मजहबी एकता के प्रतीक, अमन पसंद शहर नागपुर के रेलवे स्टेशन पर विस्फोटो का मिलना और पंजाब के खुफिया मुख्यालय में धमाके का होना बहुत कुछ कह रहा है कि देश के शत्रु, आतंकी सिर उठाने को आतुर हैं।
नेताओं को तो बस सत्ता की पड़ी है। सत्ताधीश भी मदहोश हैं। अधिकांश न्यूज चैनलों पर समाचारों की जगह अनर्गल बहसबाजी सिरदर्द बढ़ा रही है। अब तो कई जागरूक नागरिक न्यूज चैनल के करीब भी नहीं जाना चाहते। लगभग सभी चैनल वाले ऊटपटांग एकपक्षीय तर्कों का पिटारा खोलने वालों को अपने कार्यक्रमों में ला बिठाते हैं और ऊल-जलूल तमाशा दिखाते हैं। अखबारों के प्रति भी लोगों का पहले जैसा भरोसा और रुझान नहीं रहा। विज्ञापनों के लिए लोकतंत्र के सशक्त प्रहरी को निर्वस्त्र बाज़ार बना दिया गया है। पैसा फेंको, तमाशा देखो। विभिन्न धर्मों के सच्चे प्रेमियों की हत्याएं की जा रही हैं। दुकानें और घर फूंके जा रहे हैं। तथाकथित सेक्युलरों ने चुप्पी ओढ़ ली है। अपने जीवनकाल में मैंने ऐसे बुरे मंज़र पहले कभी नहीं देखे।
    अपने इस भारत देश में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य फैलाने वालों की जमात के साथ-साथ कई ऐसे और भी नफरती लोग पनप रहे हैं, जिन्हें सिख, सिंधी, पंजाबी, मारवाड़ी, जैन, ब्राह्मण, बनिया, सिख, ईसाई और बौद्धों में भी खतरे, कमियां और बुराइयां दिखती हैं। वे इन्हें भी आपस में लड़ाना और खून-खराबा करवाना चाहते हैं। खाली दिमाग के शैतानों के तो अब बस यही मंसूबे हैं कि सभी भारतीय एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहें। सतत खून की नदियां बहती रहें। आपसी सद्भाव और एकता की सोच फांसी के फंदे पर चढ़ती रहे।
    ऐसा कतई नहीं है कि हम और आप बाहर और अंदर के गद्दारों से अंजान हैं। यह कितनी हैरत की बात है कि अब कुछ लोगों को मस्जिद, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजास्थलों में होने वाली मधुर प्रेरक आराधनाएं और प्रार्थनाएं अप्रिय लगने लगी हैं। जिस तरह से मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के विरोध में मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा है उस पर अपनी-अपनी राय है, लेकिन यह लेखक मानता है कि यह मसला उतना बड़ा नहीं, जितना बना दिया गया है। हां, ध्वनि प्रदूषण फैलाना कतई उचित नहीं। एक-दूसरे की इच्छा और भावनाओं की अनदेखी अक्षम्य है। देश के आपसी सद्भाव और पवित्र भाईचारे के हत्यारों को तो मैं सर्वनाशी मानता हूं, जो खुद के भी मित्र नहीं हैं। अभी भी वक्त है... सोचिए... यदि इनकी साजिशें कामयाब हो जाती हैं तो भारत देश का कौन-सा चेहरा विश्व के सामने होगा? इस धरती के तमाम समाज सुधारकों, विचारकों ने अमन शांति का पैगाम फैलाने में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया और ये हैं कि उनके दिखाये और सुझाये मार्ग पर बम-बारूद बिछा रहे हैं। अभी भी वक्त है, संभल जाएं। कोई भी मजहब धर्मांध बनाने के मार्ग पर जाने की सीख नहीं देता। इक्कीसवीं सदी में भी हिंदू-मुसलमान युवक-युवती आपस में प्यार नहीं कर सकते! उनके एक होने पर इतना गुस्सा कि उन्हें दिया जा रहा है मौत का उपहार! इस नये दौर में ऐसी गुंडागर्दी! प्यार और शादी सिर्फ अपने ही धर्म के साथी के साथ करो। नहीं तो मरने को तैयार रहो। यह समय बहुत सोचने का है। यदि ज़रा भी चूक हो गई तो इतिहास हमें मुर्दा मानते हुए हमीं पर थू-थू करेगा। हमने देश के बंटवारे के अथाह दर्द को झेला है। भारत माता ने अपने सपूतों की लाशें गिरती देखी हैं। भारत माता अब और हिंसा, पीड़ा और खून-खराबा बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस सच को भी जान लें कि जब तक हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी एकजुट होकर नहीं रहेंगे तब तक बरबादी के खूनी मंजर सामने आते रहेंगे और भारत माता कराहती रहेगी। सच्चा सुख-चैन देशवासियों के हिस्से में भी नहीं आ पायेगा। जब तक यह मंज़र रहेगा तब तक इंसानियत महज आत्माहीन शब्द बना रहेगा। हिंदुस्तान के और टुकड़े करने के सपने देख रही जो सांप्रदायिक एवं दंगाई साजिशें ज़हर घोलने पर आमादा हैं उनका कतई भरोसा नहीं। कोई एतबार नहीं। यदि भारत की सभी कौमें ठान लें कि भाईचारे के अटूट बंधन के धागों को कमजोर नहीं होने देना है तो कोई भी माई के लाल भारत धरा पर बम-बारूद बिछाने की जुर्रत नहीं कर सकता...।