Thursday, May 16, 2024

देशी, विदेशी ठग

    यह सतर्क होने का वक्त है। सोने का नहीं जागने का समय है। किस्म-किस्म के धोखे करने वाले हमारे आसपास विद्यमान हैं। ठगों और लुटेरों ने अपने तौर-तरीके बदल लिये हैं। अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर लुभावने विज्ञापन देकर नकली खाद्य पदार्थ, दवाएं, टॉनिक, सौंदर्य प्रसाधन आदि खपा कर भारतीयों की जेबें साफ करने के साथ-साथ उन्हें बीमार किया जा रहा है। इस लूटमारी के कुचक्र में देशी और विदेशी कंपनियां मौत के सौदागर की सशक्त भूमिका में हैं। रंग-बिरंगे पैकेटों में भरे खाद्य पदार्थ कितने फायदेमंद है, गुणवता की कसौटी में कितने खरे हैं, इसकी चिंता और खोज-खबर मां-बाप ने भी लेनी बंद कर दी है। पिछले दिनों राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में एक 14 वर्षीय किशोर की हार्ट अटैक की वजह से मौत हो गई। पंजाब के पटियाला में केक खाते ही दस वर्ष का बच्चा चल बसा। मोबाइल देखते-देखते एक बच्चे को दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि डॉक्टरों के सभी प्रयास धरे के धरे रह गये। दिल्ली में एक पंद्रह वर्ष की लड़की, जिसे मोबाइल पर गेम खेलने की लत थी उसने भी दिल का दौरा पड़ने पर मौत का दामन थाम लिया। ऐसी अनेकों खबरें हैं, जो यह बता रही हैं कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक आहार की वजह से कम उम्र के बच्चे मौत का निवाला बन रहे हैं।

    व्यापारी, कारोबारी को तो अपना माल बेचना ही है। उसके लिए डिब्बा बंद जूस, चाकलेट, पिज्जा, कोल्डड्रिंक्स, विभिन्न प्रोटीन सप्लीमेंट कमायी के साधन हैं। नैतिकता और ईमानदारी भी अधिकांश धंधेबाजों के शब्दकोष में शामिल नहीं है। सतर्क तो उपभोक्ता को होना है। लेकिन उनके पास समय का अभाव है। उनके पास यह जांचने का भी वक्त नहीं है कि वे अपने बच्चों को जो पिला-खिला रहे हैं उससे कितना फायदा और नुकसान है। उन्हें तो अपने बच्चे के मोटापे में भी खुशी और तसल्ली का अहसास होता है। लोग भी मोटे बच्चों को खाते-पीते घर की निशानी कहकर उनका उत्साहवर्धन करते हैं,  लेकिन जब उनका खाता-पीता बच्चा एकाएक चल बसता है तो माथा पीटने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं रहता। घर में ताजा फलों का जूस बनाने की बजाय डिब्बाबंद फलों के रस को असली फलों का रस समझने वालो की बढ़ती जमात को नकली,विदेशी सामान जितने आकर्षित करते हैं, उतने स्वदेशी नहीं।

    स्वदेशी की अवहेलना और विदेशी का सम्मान कितना नुकसान पहुंचा रहा है, इसका आकलन करने का किसी के पास समय नहीं है। मेरे प्रिय पाठक मित्रों को याद होगा कि कुछ वर्ष पूर्व विदेशी मैगी में हानिकारक सीसा होने की खबरों ने खासी हलचल मचायी थी। कई दिनों तक खूब शोर-शराबा मचा था, फिर विदेशी कंपनी नेस्ले की मैगी धड़ाधड़ बिकने लगी थी। इस बीच भारत के शातिर योग गुरू और धूर्त कारोबारी रामदेव बाबा ने स्वदेशी मैगी बाजार में उतार कर जमकर चांदी काटी थी। इसी नेस्ले के शिशु आहार सेरेलैक को लेकर इन दिनों शिकायतों का अंबार लगा है। 

    अपने देश भारत में प्रतिवर्ष बीस हजार करोड़ रुपये की सेरेलैक की खपत हो जाती है। सेरेलैक की सूक्ष्मता से जांच के बाद यह सच सामने आया है कि इसमें चीनी का मात्रा तय सीमा से काफी ज्यादा है। भारतीय बच्चे मीठे की लत के शिकार हो रहे हैं। मोटापा तथा अन्य गंभीर बीमारियां जकड़ रही हैं। चिंतित तथा परेशान करने वाला सच यह भी है कि यूरोपीय देशों में जो सेरेलैक भेजा जाता है उसमें चीनी बिलकुल नहीं होती, लेकिन भारत, बांग्लादेश तथा अन्य एशियाई व अफ्रीकी देशों में बेचे जाने वाले सेरेलैक की हर खुराक में तीन ग्राम से अधिक चीनी के होने का पर्दाफाश हुआ है। बच्चों को टॉनिक की जगह जहर पिलाने वाली नेस्ले अपने देश स्विट्जरलैंड में भी जो सेरेलैक बेचती है उसमें चीनी नहीं मिलाती। अधिक मीठा खाने के कारण बच्चों को दिल की बीमारी, मुंहासे, पाचन संबंधी समस्याएं, डिमेशिया और किडनी संबंधी बीमारियों के होने का निरंतर खतरा बढ़ रहा है। मीठा वो धीमा ज़हर है जो कम उम्र में मधुमेह, उच्च रक्तचाप के साथ-साथ दांतों में सड़न तथा अवसाद का भी जन्मदाता है। नेस्ले के लगभग 150 उत्पाद पूरी दुनिया में बेचे जाते हैं। 

    विदेशों में तो जैसे ही कोई गलत रिपोर्ट आती है तो उस उत्पाद पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया जाता है। वहां की जांच एजेंसियां सदैव सतर्क रहकर खाद्य एवं पेय पदार्थों की निगरानी करती हैं। इतना ही नहीं वहां पर तो हर नियम-कायदे का सख्ती से पालन किया जाता है। किसी को भी बख्शा नहीं जाता। भारत में सेटिंग का चलन कुछ ऐसा है कि बड़े-बड़े अपराध और अपराधी रिश्वत एवं संबंधों के दबाव की बदौलत बच जाते हैं। उन्हें कब क्लीनचिट दे दी जाती है, लोगों को खबर ही नहीं होती। विदेशों में सेहत के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाता। विभिन्न मसालों के लिए पूरे विश्व में भारत का बड़ा नाम है। दुनिया भर के देशों में यहां से मसाले निर्यात किये जाते हैं। हाल ही में हांगकांग और सिंगापुर में जांच में जब भारतीय मसालों में एथिलीन आक्साइड नाम का रासायनिक कैंसर कारक तत्व पाया गया तो दोनों देशों ने तुरंत प्रतिबंध लगा दिया। हानिकारक आहार के साथ-साथ नकली दवाएं भी भारतवासियों की शत्रु बनी हुई हैं। कुछ हफ्ते पूर्व देश की राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम, मेरठ आदि में करोड़ों की नकली दवाओं का जखीरा पकड़ में आया। अखबारों तथा न्यूज चैनलों में भ्रामक विज्ञापन देकर गलत दवाओं को बाजार में खपाने में बाबा रामदेव भी काफी कुख्यात हैं। योग के माध्यम से देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने वाले इस बाबा ने आंखों में धूल झोंकने की कलाकारी में भी अभूतपूर्व महारत हासिल कर ली है। कोरोना काल में रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद ने थोथा दावा किया था कि उनके प्रोडक्ट ‘कोरोनिल’ और ‘स्वसारी’ से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। उनकी बनायी दवाएं जितनी उपयोगी और असरकारी हैं, उतनी दूसरी दवाएं कतई नहीं। एलोपैथी वाले तो बस लूटमार ही करते हैं। करोड़ों भारतीयों ने बाबा के विज्ञापनों, दावों पर यकीन कर ‘पंतजलि’ की दवाओं को आंखें बंद कर खरीदा, लेकिन उन्हें इनका कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन बाबा ने तो छल-कपट के मायाजाल से करोड़ों रुपये अंदर कर लिए। बाद में कई प्रबुद्ध लोगों ने शिकायतें कीं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सुप्रीम कोर्ट में पंतजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों को भ्रामक बताते हुए याचिका दायर कर दी, लेकिन रामदेव खुद की दवाओं को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए एलोपैथी दवाइयों के खिलाफ विज्ञापनबाजी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने यदि बाबा रामदेव की मनमानी और काम करने के तरीके पर गंभीरता से ध्यान देकर फटकारा नहीं लगायी होती तो उसकी ठगी की दुकान की रौनक सतत बरकरार रहती। हां, कोर्ट ने यह भी कहा कि रामदेव ने योग के क्षेत्र में यकीनन अच्छा काम किया है, लेकिन एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की बेवजह आलोचना करना अनुचित है।

Thursday, May 9, 2024

रंग-बिरंगे नकाब

    दो आशिक मिजाज मित्र शहर के आलीशान होटल के बार में रसरंजन कर रहे थे। उनका किसी जरूरी काम से अमरावती से नागपुर आना हुआ था। सदर में स्थित होटल अशोका का बड़ा नाम है। मांसाहारी, शाकाहारी, लजीज भोजन तथा पीने-पिलाने के शौकीनों को यहां का वातावरण खासा रास आता है। पैग पर पैग चढ़ाते दोनों मित्रों ने होटल में प्रवेश करते ही उन दो महिलाओं को देख लिया था जो भोजन करने के इरादे से वहां आयी थीं। इसलिए दोनों ने ऐसी सीट चुनी थी, जहां से खूबसूरत महिलाओं का दीदार होता रहे। इत्मीनान से भोजन करती महिलाओं को दोनों पुरुष सड़क छाप मजनूओं की तरह घूर रहे थे और वे उन्हें नजरअंदाज कर रहीं थीं। शहर के पुराने नामी होटल में सुकून से भोजन करने आयीं दोनों महिलाओं को रह-रह कर गुस्सा आ रहा था। चप्पल और तमाचों से अच्छी तरह से धुन देने की उनकी इच्छा भी हो रही थी, सब्र का दामन थामे रहीं। बिगड़े रईसों की अश्लील इशारेबाजी चलती रही। महिलाएं जल्दी-जल्दी भोजन कर उठ खड़ी हुईं। बाहर निकल कर जब वे कार में बैठीं तो वे मनचले भी उन्हें अपने करीब आते नज़र आए। तब भी उन्हें बहुत गुस्सा आया। फटकारने की भी इच्छा हुई, लेकिन तमाशा खड़ा करने की बजाय चुपचाप कार में बैठकर वहां से चल दीं।

    दोनों रंगीन मिजाज बदमाशों ने अपनी बिना नंबर वाली कार उनकी कार के पीछे दौड़ानी प्रारंभ कर दी। इस दौरान उन्होंने उनकी कार को रोकने का भी भरसक प्रयास किया। लगभग चार किमी तक उनका पीछा जारी रहा। जब महिलाओं की कार एक अपार्टमेंट पर रुकी तब भी वे अश्लील इशारेबाजी करने से बाज नहीं आए। ऐसे बदचलन लफंगों को अकेले मॉल में शापिंग करने, होटलिंग करने तथा आजादी के साथ सैर सपाटा करने वाली नारियां चरित्रहीन लगती हैं। इसलिए उन्हें अपने जाल में फांसने की तिकड़में लगाते हुए नीचता की सभी हदें पार करने से बाज नहीं आते। घर पहुंच कर महिलाओं ने राहत की सांस ली। दरअसल इन दोनों महिलाओं में से एक के पति शहर पुलिस विभाग में आला अधिकारी हैं। अधिकारी की पत्नी अपनी पुरानी सहेली के संग अच्छे सुखद माहौल में भोजन तथा बातचीत करने के इरादे से गईं थीं, लेकिन बिगड़े मनचले रईसों ने उनका वहां इत्मीनान के साथ बैठना मुश्किल कर दिया। महिला ने बड़े दु:खी मन से अपने साथ हुई बदसलूकी की पूरी-पूरी जानकारी अपने पति महोदय को दी तो उनका भी पारा चढ़ गया। दोनों आरोपी अपार्टमेंट के सीसीटीवी में कैद हो चुके थे। तड़के साढ़े चार बजे नागपुर की पुलिस ने अमरावती में दोनों को गिरफ्तार कर लिया। दोनों बड़े कारोबारी हैं। एक का अमरावती में अच्छा-खासा होटल है तो दूसरा फायनांस का काम करता है। होटल वाले का पाकिस्तान कनेक्शन भी सामने आया है। उसके बैंक खातों में पाकिस्तान से फंडिंग होने की जानकारी सामने आने से इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) ने भी अपना शिकंजा कस दिया है। यह शख्स सन 2000 में पाकिस्तान से अमरावती आया था। इसके माता-पिता अभी भी पाकिस्तान में रहते हैं। एक भाई भी है जो पाकिस्तान में संत का चोला धारण कर उपदेशक बना घूमता है और यह भारत में पता नहीं कैसे-कैसे शैतानी गुल खिलाता घूम रहा है।

    छोटी और घटिया सोच रखने वाले आदमी के पास जब पैसा आता है, लोग उसे जानने लगते हैं, नाम हो जाता है। तो उसकी रंगत बदल जाती है। नये-नये शौक उसे आकर्षित करने लगते हैं।  बहुतों को याद होगा कि बीते वर्ष उज्जैन में बलात्कारियों की हवस का शिकार हुई एक बारह वर्षीय बालिका सड़क पर मदद की भीख मांगती भटक रही थी। किसी सभ्य शहरी ने सहायता का हाथ नहीं बढ़ाया था। तब आश्रम का एक पुजारी उसके लिए मसीहा बन सामने आया था। उसने बच्ची पर अपना वस्त्र ओढ़ा कर अस्पताल पहुंचाया था। ईश्वर की तरह अवतरित हुए परोपकारी, मददगार पुजारी की हर किसी ने प्रशंसा की थी, लेकिन वो उसका असली चेहरा नहीं था। उसका असली चेहरा तो अभी हाल में सामने आया है। तीन नाबालिग लड़कों के यौन शोषण के संगीन आरोप में पुलिस ने उसे हथकड़ियां पहना दी हैं। कलम चलाते-चलाते एकाएक मुझे निदा फाज़ली का यह शेर याद हो आया है, ‘‘हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,  जिसको भी देखना हो कई बार देखना’’...लेकिन यह भी सच है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें कई-कई बार देखो, कितने भी करीब से देखो, लेकिन उनकी समग्र पहचान सामने नहीं आ पाती। बहुत कुछ छिपा और दबा रह जाता है। यह चालाकी, धूर्तता और नकाबपोशी भारत के अधिकांश राजनेताओं के चरित्र में रची-बसी है। पाप का घड़ा भरने के बाद जब कभी इनका पर्दाफाश होता है तो लोग हतप्रभ रह जाते हैं।

    देश के प्रदेश कर्नाटक के युवा सांसद प्रज्वल रेवन्ना  और उनके पिता एचडी रेवन्ना पर ऐन लोकसभा चुनाव के बीच संगीनतम यौन शोषण के आरोपों ने पूरे देश में तहलका मचा कर यह संदेश भी दे दिया है कि जिन सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, संत्रियों पर महिलाओं के संरक्षण की जिम्मेदारी है, वे ही जन्मजात व्याभिचारी और बलात्कारी हैं। देशवासियों एक से एक सेक्स स्कैंडल से रूबरू होते आये हैं, लेकिन एसी खबर पहली बार सुनी जानीं, जिसमें बाप और बेटे के बीच कोई पर्दा नहीं। दोनों ऐसे देह भोगी हैं जिन्हें एक साथ एक ही नारी के साथ बिस्तरबाजी करने में कोई लज्जा और संकोच नहीं। हमने तो अभी तक यही देखा-सुना था कि वासना के खेल में पिता और बेटे के बीच मर्यादा का पर्दा होता है। संस्कृति और संस्कार का भी यही तकाजा है, लेकिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नीच  बेटे और पोते के यौनाचार वाले 2976 वीडियोज वायरल होने से देश और दुनिया को पता चल गया है कि भारत की राजनीति में कैसे-कैसे भूखे भेड़ियों ने जनसेवा की बजाय अंधी वासना का तांडव मचा रखा है। इन सफेदपोश बलात्कारियों के वीडियो बाहर नहीं आते तो यह शर्मनाक सच रंगीन नकाब में ढंका रह जाता। एक बीस वर्षीय युवक को उसके दोस्त ने बताया कि एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उसकी मां को रस्सी से बांधा गया है और सांसद प्रज्जवल उनसे दुष्कर्म कर रहा है। युवक ने जब इस वीडियो को देखा तो उसके दिमाग की नसें फट गईं। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, लेकिन वह मां की अस्मत लुटने की पीड़ा और सदमे से  अभी तक बाहर नहीं आ पाया है। ऐसे हजारों लोग हैं, जिनकी मां, बहनें वहशी बाप-बेटे की दरिंदगी की शिकार हुई हैं।

Thursday, May 2, 2024

आंख मूंदकर मतदान!

    नागपुर शहर के धरमपेठ में स्थित है, ट्रैफिक पार्क चौक। भीड़-भाड़ वाले इस चौक पर लोकसभा चुनाव की वोटिंग के चंद दिन बाद लगाया गया होर्डिंग आते-जाते हर शख्स के आकर्षण का केंद्र बना रहा। मतदान से मुंह चुराने वाले मतदाताओं को लताड़ लगाते इस होर्डिंग में ‘शेम ऑन यू’ लिखकर उन पर तीखा वार किया, जिन्होंने लोकतंत्र के महापर्व का अपमान किया। लेकिन क्या उन पर कोई असर हुआ? ध्यान रहे कि नागपुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 22 लाख मतदाता हैं, लेकिन दस लाख पंद्रह हजार मतदाता वोट देने ही नहीं गये। कई घरों में दुबके रहे तो अनेकों छुट्टी मनाने के लिए शहर से दूर चले गये। सर्वधर्म समभाव और एकता के प्रतीक नारंगी नगर के माथे पर यकीनन कलंक जैसी है यह लापरवाही। सजग शहरवासी इस होर्डिंग को लगाने वाले की जहां प्रशंसा करते रहे वहीं प्रशासन को इसकी सजीली और नुकीली शब्दावली इस कदर आहत कर गई कि उसने इसे हटाने में चीते सी फुर्ती दिखायी। वोटर लिस्ट में भारी पैमाने पर हुई गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को मिर्ची लगने की चर्चा गली-कूचों, चौक-चौराहों पर जोर पकड़ती रही। यह भी बेहद चौंकाने वाली हकीकत है कि अकेले नागपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब ढाई लाख मतदाता सूची से नाम कटने, इधर-उधर होने या नाम में गड़बड़ी होने के कारण वोट करने से वंचित रह गए। 

    हिंदुस्तान के निर्वाचन आयोग ने सुनियोजित तरीके से मतदान कराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों पर कर्मचारियों को भेजा, जहां हट्टे-कट्टे लोग जाने से घबराते हैं। जिन स्थानों पर पांच-सात मतदाता हैं वहां पर भी ईवीएम की मशीनों के साथ कर्मचारियों को भिजवाया और काम पर लगाया गया। 

    यह बताने की जरूरत नहीं होने के बावजूद भी लिखना पड़ रहा है कि अपने देश भारत में चुनावों की अपार अहमियत है। अपने मताधिकार का उपयोग कर सरकार चुनी जाती है। हर पांच साल में होने वाले लोकसभा चुनाव का सजग मतदाताओं को बेसब्री से इंतजार रहता है। इन चुनावों की प्रक्रिया में जो अरबों रुपये खर्च होते हैं। उनसे अनेकों विकास कार्य संपन्न किये जा सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र में चुनाव की जरूरत और प्राथमिकता सर्वोच्च स्थान रखती है। 

    गौरतलब है कि 2024 को इस लोकसभा चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि 2024 के चुनावों का खर्च 2019 में हुए लोकसभा चुनावों की अपेक्षा दोगुना होगा। 2019 के चुनाव में कुल खर्च तकरीबन 55 से 60 हजार करोड़ था। कितने आश्चर्य की बात है कि चुनावी खर्च सतत तो बढ़ रहा है, लेकिन मतदान करने वाले भारतीयों की संख्या में बढ़ोतरी की बजाय कमी हो रही है। वो भी तब जब नये वोटरों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हो रहा है। चुनावों में खर्च होने वाला धन अंतत: देशवासियों का ही है, जिसकी कमी की वजह से करोड़ों भारतीय विभिन्न अभावों से जूझ रहे हैं। गरीबों तथा अमीरों के बीच की असमानता दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। मतदान की अवहेलना या मतदान में सजगता नहीं बरतने का खामियाजा भी अंतत: देशवासियों को ही भुगतना पड़ता है। 

    खामियाजा तो मतदाताओं की और भी कई गलतियों का देश को सतत भुगतना पड़ रहा है। भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, हत्यारे और किस्म-किस्म के माफिया चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं। राजनीतिक दलों के अधिकांश कर्ताधर्ता उन्हीं को चुनाव मैदान में उतारते हें जो येन-केन-प्रकारेण विजयी होने का चमत्कार दिखाने में सक्षम होते हैं। 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला कर बार-बार जेल जाने वाला इस सदी का सबसे भ्रष्ट नेता लालूप्रसाद यादव अपने पूरे खानदान के साथ छाती तानकर वोट मांगने पहुंच जाता है। सजायाफ्ता होने पर अपनी अनपढ़ पत्नी को मुख्यमंत्री बना देता है। उसका कम पढ़ा-लिखा छोटा बेटा बिहार का उपमुख्यमंत्री बन जाता है। बड़ा बेटा जो चपरासी बनने के काबिल नहीं वह मंत्री पद का सुख भोगते हुए करोड़ों शिक्षित युवकों को अपना माथा पीटने को विवश कर देता है। यहां तक कि उसकी बेटियां भी सांसद बनकर करोड़ों-अरबों की दौलत के साथ इठलाती, गाती-नाचती नज़र आती हैं। यह अनोखा नाटक और नज़ारा उन मतदाताओं की देन है जो मतदान करते वक्त जाति और धर्म की सोच की जंजीरों में जकड़े रहते हैं। जिनके लिए लूट-खसोट और भ्रष्टाचार कतई कोई अपराध नहीं। आंख मूंदकर मतदान करने वालों की वजह से ही न जाने कितने खूंखार अपराधी विधायक और सांसद बनते देखे गये हैं। देश के आम आदमी को जब किसी अपराध की वजह से जेल जाना पड़ता है, तब शर्म के मारे उसे अपना मुंह छिपाना पड़ता है। अपने और बेगाने उससे दूरी बना लेते हैं। यहां तक कि उसके बाल-बच्चों को भी अपने निकट नहीं आने देते, लेकिन राजनीति के लुटेरों, हत्यारों, बलात्कारियों के गुनाहों को जनता बहुत जल्दी भूल जाती है। इसलिए राजनीति के चोर-उचक्कों को कभी शर्म नहीं आती। शर्म आती तो छाती तानकर मतदाताओं के यहां वोट लेने के लिए नहीं पहुंच जाते। चुनाव जीतने के बाद भ्रष्ट नेता छाती तान कर यह कहना-बताना और चेताना नहीं भूलते कि यदि हम जनता की निगाह में अपराधी होते तो वह हमें वोट ही क्यों देती। अदालत के द्वारा सजा देने से क्या होता है। लोकतंत्र में तो जनता की अदालत से ऊपर और कोई कोर्ट-कचहरी नहीं। 

    हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की नाक के नीचे पच्चीस हजार शिक्षकों की भर्ती में जबरदस्त घोटाला हो गया। कलकता हाईकोर्ट ने सभी शिक्षकों की भर्ती रद्द कर दी। रिश्वत की मलाई चटाकर नौकरी हथियाने वालों के साथ-साथ उन पर भी आफत आन पड़ी, जिन्होंने कड़ी मेहनत के बाद नौकरी हासिल की थी। बड़े लंबे इंतजार के बाद उनके जीवन में स्थिरता आ पायी थी, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले ने उनके पैरों की जमीन ही छीन ली। अपने परिवार के अकेले कमाने वाले कई लोगों को पड़ोसियों तक को अपना मुंह दिखाने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है। नौकरी के दौरान उन्हें जो वेतन मिला था, वो खर्च हो गया। ऐसे में 12 फीसदी सूद के साथ सरकार को पैसे लौटाने के फैसले का पालन कर पाना उसके बस की बात नहीं है, लेकिन हमारे यहां तो अक्सर गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। जिन्होंने गलत हथकंडे अपना कर नौकरी हथियायी, दरअसल सजा के तो वही हकदार हैं और हां उन नेताओं पर भी कोई आंच नहीं आयी जिन्होंने रिश्वत खाकर नालायक लोगों को शिक्षक बनाने का अक्षम्य संगीन अपराध किया है।