Thursday, September 28, 2017

इस हिंसा और बर्बरता के क्या हैं मायने?

क्या जमाना है। कोई कानून तोड रहा हो, माहौल बिगाड रहा हो, बेहूदा हरकतें कर रहा हो, वातावरण को दूषित कर रहा है... तो भी आप उसे रोक नहीं सकते। सामने वाला आपको अपना शत्रु मानने लगता है उसके सिर पर खून सवार हो जाता है। कल दिल्ली में एक वकील सार्वजनिक स्थल पर सिगरेट के धुएं के छल्ले उडा रहा था। उसकी इस हरकत को फोटोग्राफी के दो छात्र देख रहे थे। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने बडी शालीनता के साथ वकील को सरेआम सिगरेट न पीने का अनुरोध किया। छात्र तो सर... सर कर बात कर रहे थे, लेकिन वकील तू... तडाक और गाली-गलौच पर उतर आया। छात्र शालीनता का दामन थाम अपनी बाइक पर सवार होकर जाने लगे तो वकील ने अपनी कार बाइक पर च‹ढा दी। एक छात्र की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। वकील शराब के नशे में धुत था और सिगरेट के छल्ले बनाकर आने-जाने वाली महिलाओं के मुंह पर मार रहा था। लोग तमाशबीन बने देख रहे थे। किसी ने भी उसे फटकारने की हिम्मत नहीं की। दो सजग छात्रों ने पहल की तो एक छात्र को जान से हाथ धोना पड गया। यह हमारे समाज का वो डरावना चेहरा है जो डराता है और चिंतन-मनन को विवश करता है कि आखिर लोगों में इतना गुस्सा क्यों है और वे कानून से खौफ क्यों नहीं खाते?
मध्यप्रदेश के अशोक नगर में एक पिता ने पत्नी और गांव वालों के तानों से तंग आकर अपनी दो बेटियों को बेतवा पुल के नदी में फेंककर मार डाला। हत्यारे पिता का कहना था कि मुझसे बार-बार कहा जाता था कि तेरी तीन-तीन बेटियां हैं। तेरी पत्नी फिर गर्भवती हो गई है। उस पर तुम कामधंधा तो करते नहीं हो फिर ऐसे में बच्चों की परवरिश कैसे करोगे। उनका पेट कैसे भरोगे...?
कमलेश अहिरवार नामक यह दरिंदा अपनी छह वर्षीय बेटी रक्षा और तीन वर्षीय बेटी पूनम को इलाज के बहाने ले गया और जब दो दिन बाद वह अकेला घर लौटा तो पत्नी ने बेटियों के बारे में पूछा। उसने नजर चुराते हुए बताया कि चौराहे पर सुलाकर कहीं चला गया था। जब वापस आया तो बेटियां वहां से गायब थीं। पत्नी, पति के जवाब को सुनकर हैरत में पड गई। यह कैसा बाप है जिसे अपनी बेटियों का गायब होना किसी मामूली से सामान के गुम हो जाने जैसा लग रहा है! पति चुपचाप कमरे में जाकर चादर ओढकर बेफिक्र सो गया। पत्नी के तो होश ही उड चुके थे। उसने पति को फटकारा और फौरन थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने दबाव डालने लगी, लेकिन वह टालमटोल करने लगा। पत्नी ने अपने रिश्तेदारों के साथ जाकर थाने में बेटियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई तो बेटियों की हत्या का यह शर्मनाक, भयावह सच सामने आया। इस तरह से मेरठ में एक जल्लाद बाप ने अपनी दुधमुंही बेटी को गला घोटकर मार डाला और शव को सूखे तालाब में दबाकर बेफिक्र हो गया। हुआ यूं कि राजेश कुमार नामक युवक का अपनी दूसरी पत्नी से झगडा हुआ। पत्नी गुस्से में घर से निकल गई। इसके कुछ मिनटों के बाद बच्ची रोने लगी। राजेश गुस्से में आग बबूला हो गया और उसने अपनी मासूम बच्ची का गला दबाकर मार डाला। गांव के लोग सुबह सैर को निकले तो उनकी नजर सूखे तालाब में मिट्टी हटाकर कुछ नोचने की कोशिश करते कुत्तों पर पडी तो उनका माथा ठनका। कुत्तों को वहां से हटाया गया तभी सात माह की बच्ची का शव नजर आया।
दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में एक शख्स को पडोसी के नाबालिग बेटे को शराब न पीने की नसीहत देना भारी पड गया। वह शख्स जब अपने घर जा रहा था तो रास्ते में उसे अपने पडोसी का लडका अपने कुछ दोस्तों के साथ शराब पीते नजर आया। उसने पडोसी धर्म निभाते हुए लडके को कहा कि वह अक्सर उसे यहां दोस्तों के साथ शराबखोरी करते देखता है, आज तो वह उसके पिता को उसकी शिकायत करके ही रहेगा। वह नाबालिग फौरन अपने घर गया और पिता को बुला लाया पिता-पुत्र ने रॉड से हमला कर नसीहत देनेवाले शख्स को इतना पीटा कि उसे अस्पताल ले जाना पडा। बडी मुश्किल से उसकी जान बच पायी।
खून के रिश्तों को डसती निष्ठुरता की खबरें हिलाकर रख देती हैं। कुछ महीने पूर्व एक बेटे की बेरहमी की खबर ने काफी सुर्खियां पायी थीं। बेटा विदेश में रहता था और मां अकेली दिल्ली में। उम्रदराज मां के नाम दिल्ली में करोडों की सम्पत्ति थी। इकलौते बेटे के सात समन्दर पार रहने के कारण मां की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। एक दिन बेटा विदेश से लौटा। मां को संपूर्ण सम्पत्ति बेचकर अपने साथ विदेश चलने के लिए राजी कर लिया। किसी भी मां के लिए बेटे के साथ से बढकर और कुछ नहीं होता। वह राजीखुशी तैयार हो गई। बेटे ने आनन-फानन में संपत्ति का सौदा कर करोडों रुपये अपनी अटैची में रखे और मां को साथ लेकर हवाई अड्डे पहुंच गया। मां की खुशी का पार नहीं था। अपने बेटे, पोते-पोतियों के साथ शेष जीवन बिताने का उसका वर्षों का सपना पूरा होने जा रहा था। "मां तुम यहां पर बैठों मैं एक जरूरी काम निपटाकर आता हूँ।"  बेटे ने बडी आत्मीयता के साथ मां को आश्वस्त किया और चला गया। घडी की सुई खिसकने लगी। मां राह देखती रही। दोपहर से रात हो गयी, लेकिन बेटे का कोई अता-पता नहीं था। उसने हवाई अड्डे के अधिकारियों को अपनी चिन्ता से अवगत कराया। खोजबीन की गई तो पता चला कि बेटा तो घंटो पहले विदेश फुर्र हो चुका है। अकेली मां रोती-बिलखती रही। यह खबर देश के तमाम अखबारों में छपी। लोगों ने नालायक बेटे को जी-भरकर कोसा। दूसरे दिन की सुबह अपनी ही औलाद के हाथों ठगी गई मां की हार्टअटैक से मौत हो गई।
दिल्ली के निकट स्थित नोएडा में बीते सप्ताह एक और अहसानफरामोश बेटा अपनी उम्रदराज मां को जिला अस्पताल के इमरजेंसी में इलाज के बहाने छोडकर चलता बना। उसने अस्पताल को अपना मोबाइल नंबर भी गलत दिया था। बुजुर्ग मां अपनी गंभीर बीमारी को भूल बार-बार बेटे का नाम लेकर रोती रही। बेटे ने मां को पूरी तैयारी के साथ अस्पताल में लाकर छोडा था। उसने मां के पूरे कपडे और अन्य जरूरी सामान एक बडे अटैची में भरे थे। डॉक्टर ने जब इलाज शुरू किया तो वह दवाई लेने के बहाने से अस्पताल से जो गया कि डॉक्टर भी इंतजार करते रहे और मां के तो रो-रो कर आंसू ही सूख गए।

Thursday, September 21, 2017

जवाब मांगते सवाल

एक जमाना था जब स्कूल, पाठशाला का नाम लेते ही आंखों के सामने देवी-देवताओं की मूर्तियों से सुसज्जित मंदिर की तस्वीर घूमने लगती थी। माता-पिता अपने बच्चों को इस मंदिर में भेजकर गर्वित होते थे। उन्हें वहां पर अपनी संतानों के पूर्णतया सुरक्षित होने का भरोसा रहता था। मां-बाप सबकुछ मंदिर के भगवान पर छोड देते थे। मास्टरजी भी अपने छात्रों को अपनी औलादों की तरह ज्ञान, स्नेह और सुरक्षा प्रदान करते थे। वक्त पडने पर डंडे से कुटायी भी कर देते थे। अभिभावकों को भी कोई आपत्ति नहीं होती थी। वक्त बदलने के साथ-साथ स्कूल, पाठशालाएं भी बदल गयीं और मास्टर साहब भी। बीते सप्ताह गुरुग्राम में स्थित एक नामी स्कूल, जिसे रायन इंटरनैशनल स्कूल के नाम से पूरे देश में जाना जाता है, में हुई प्रद्युम्न नामक सात साल के बच्चे की निर्मम हत्या ने समस्त सजग देशवासियों को हिलाकर रख दिया। दरअसल, यह हत्या उस भरोसे की हुई जिस भरोसे से बच्चों को पढने और संस्कारित होने के लिए स्कूल भेजा जाता है। माता-पिता को जब अपने बच्चे की बर्बर हत्या की खबर मिली तो वे अपनी सुध-बुध खो बैठे। उनके लिए उनका बेटा ही उनके जीने का एकमात्र मकसद था। उनके सारे सपने चकनाचूर हो गए। आज भी मां के सामने बार-बार बेटे का चेहरा घूमने लगता है, जिसे वह रोजाना स्कूल के लिए तैयार करती थी। उसने उसे बडा आदमी बनाने के लिए अपनी सभी इच्छाओं को तिलांजलि दे दी थी। बेटी बडी है और बेटा छोटा था। बेटे को स्विमिंग, साइकलिंग और क्रिकेट का काफी शौक था। वह कहता था कि मुझे विराट कोहली बनना है। दिनभर घर में क्रिकेट का बैट लेकर घूमता रहता था।
मां को हवाई जहाज में सारी दुनिया घुमाने की बातें करने वाले बेटे की तस्वीर को निहारती मां के मुंह से बार-बार यही शब्द निकलते हैं कि मेरे बेटे के साथ जो हुआ वह दुनिया में किसी बच्चे के साथ न हो। शिक्षा को कारोबार और व्यापार बनाने वाले निजी स्कूलों की बहुत लंबी श्रृंखला है। अधिकांश स्कूल अंधाधुंध कमायी का जरिया बन गए हैं। यह भी जान लें कि अधिकतर प्रायवेट स्कूल नेताओं, मंत्रियों, तथाकथित समाज सेवकों, उद्योगपतियों और धन्नासेठों के द्वारा चलाये जा रहे हैं। यह ऐसी जमात है जिसका एकमात्र लक्ष्य धन कमाना है। इनमें से अधिकांश खुद अंगूठा छाप हैं, लेकिन बडे-बडे डिग्रीधारियों को अपने इशारे पर नचाते हैं। दरअसल इनके लिए स्कूल, कालेज और अस्पताल चलाना धंधा बन गया है। सरकारें भी इन पर मेहरबान रहती हैं। कौडी के दाम पर जमीनें दे दी जाती हैं। महाराष्ट्र में कई नेता ऐसे हैं जिनके बीसियों स्कूल, कालेज, अस्पताल चल रहे हैं। राकां के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल के तो चालीस से ज्यादा स्कूल, कालेज दौड रहे हैं। मेडिकल और इंजिनियरिंग कालेजों में प्रवेश के नाम पर लाखों की वसूली की जाती है। फीस भी अच्छी-खासी होती है। इनके यहां चलने वाली भर्राशाही की तरफ शासन और प्रशासन का बहुत कम ध्यान जाता है। धंधेबाजों के हाई-फाई स्कूलों की मनमानी और लापरवाही की वजह से सतत दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आती रहती हैं। धन के बल पर स्कूलों के प्रबंधक, मालिक तमाम कायदों और दिशा-निर्देशों को जूते की नोक पर रखते हैं और छात्र-छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार, दुराचार एवं हत्याओं तक की खबरें सुर्खियां पाती रहती हैं। दो वर्ष पूर्व बंगलुरु में एक नामी-गिरामी स्कूल में पढने वाली पहली कक्षा की छात्रा पर एक नरपशु जिम इंस्ट्रक्टर ने बलात्कार का जुल्म ढाया था। इस शर्मनाक घटना के विरोध में अभिभावकों और स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन और तोडफोड की थी। इसी तरह से मुंबई में इसी वर्ष के अगस्त महीने में विख्यात सेठ जुग्गीलाल पोद्दार स्कूल में चार साल की एक मासूम बच्ची बलात्कार का शिकार हुई। बलात्कारी स्कूल का ही चपरासी था।
राजस्थान के बीकानेर के एक निजी स्कूल में तेरह साल की छात्रा के साथ आठ शिक्षकों ने डेढ साल तक बलात्कार किया। इतना ही नहीं यह दुष्ट, छात्रा की अश्लील क्लिप बनाकर उसे लगातार ब्लैकमेल और प्रताडित करते थे जिसके चलते उसे समर्पण हेतु विवश होना पडता था। बलात्कारी शिक्षक स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद उसे कमरे में जबरन बंद कर मनमानी करते थे। पीडिता कहीं गर्भवती न हो जाए इस भय से बलात्कारी शिक्षकों ने उसे इतनी अधिक मात्रा में गर्भ निरोधक गोलियां जबरन खिलायीं जिससे उसे कैंसर हो गया। यह सच भी बेहद चौंकाने वाला है कई पब्लिक स्कूलों के एकदम निकट शराब की दुकानें खुली हुई हैं जहां पर लडते- लुढकते शराबियों का जमावडा लगा रहता है। रायन इन्टरनैशनल स्कूल के समीप खुली दारू की दुकान लोगों के गुस्से का शिकार हो गयी। यहां पर भी बच्चों के सामने आपत्तिजनक गतिविधियां चलती रहती हैं। शराबी छात्राओं के साथ बेखौफ छेडछाड करते हैं। स्कूल की छुट्टी के बाद खुलेआम शराबियों को शराब पीते देखकर बच्चों पर क्या असर पडता होगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। देश के विभिन्न शहरों में चलने वाले पब्लिक स्कूलों के निकट खुली शराब की दुकानों से न स्कूल संचालकों को कोई फर्क पडता है और न ही प्रशासन के दिमाग की घंटी बजती है। बार-बार यही सवाल उठता है कि १०० मीटर के दायरे में शराब की दुकान खोलने की अनुमति कैसे मिल जाती है? यकीनन यह सब धन की माया है। छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही बरतने वाले स्कूल प्रबंधक जानबूझकर इस सच को भी नजरअंदाज करते चले आ रहे हैं कि किशोर न्याय अधिनियम २०१६ की धारा ७५ में स्पष्ट उल्लेख है कि बच्चा जिसके संरक्षण में होगा उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी संस्था की होगी।

Thursday, September 14, 2017

आस्था के सौदागर

राजनीति और धर्म के बाजार में वर्षों से खोटे सिक्के धडल्ले से चल रहे हैं। इनके बारे में पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई प्रभावी कदम उठाने की कोशिश ही नहीं की गई। पथभ्रष्ट नेताओं को तो लगभग पूरी तरह से बख्श दिया गया है। वे हर तरह की मनमानी करने को स्वतंत्र हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी हम और आप हैं जो आंख मूंदकर इस छलिया बिरादरी का अंधानुकरण करते हैं। डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत का धूर्त और कपटी चेहरा सामने आने के बाद अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने १४ फर्जी और ढोंगी बाबा की जो सूची जारी की है उसमें गुरमीत के अलावा जो नाम शामिल हैं उनमें से कुछ जेल में हैं तो कुछ का डंका अभी भी गूंज रहा है। हमारे यहां धर्मांध लोगों को कितना भी सचेत किया जाए, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। आज से लगभग तीन वर्ष पूर्व जब प्रवचनकार आसाराम के कुकर्मों का पिटारा खुला था तो होना तो यह चाहिए था कि लोग कपटी बाबाओं से दूरी बना लेते। बाबा भी खुद में सुधार लाते, लेकिन न तो अंधभक्तों के दिमाग के ताले खुले और न ही फर्जी बाबाओं ने आसाराम की गिरफ्तारी से कोई सबक सीखा। उन्होंने तो यही मान लिया था कि आसाराम बदकिस्मत था जो पकड में आ गया। वे बहुत सतर्क होकर अपना काम करते हैं इसलिए उनकी पोल कभी भी नहीं खुलेगी। उनकी शिकार महिलाएं कभी भी उनके खिलाफ मुंह नहीं खोलेंगी। आसाराम को जेल में ठूंसे जाने के बाद कई धूर्त बाबाओं के कुकर्मों का भांडाफोड हुआ, लेकिन ढोंगी बाबाओं के अंधभक्तों की तंद्रा नहीं टूटी। यही वजह है कि रामपाल और गुरमीत जैसे कपटियों का धर्म का धंधा सरपट दौडता रहा। कहावत है कि 'पाप का घडा एक न एक दिन फूटता ही है। पिछले वर्ष रामपाल को जेल भेजे जाने पर उसके अनुयायियों ने जमकर अपनी गुंडागर्दी का तमाशा दिखाया था। उनपर काबू पाने के लिए पुलिस की भी सांसें फूल गयी थीं। रामपाल भक्तों के धन की बदौलत राजसी जीवन जीने के साथ-साथ नारियों की अस्मत लूटता था। गुरमीत ने तो जैसे सभी अय्याश पाखंडियों को मात दे दी। उसके भक्तों की संख्या करोडों में बतायी जाती है। अपने ही भक्तों के साथ विश्वासघात करने वाला गुरमीत तो बहुत बडा जालसाज और अपराधियों का सरगना निकला। उसके अपराधों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। उसको अदालत के द्वारा दोषी करार दिये जाने के बाद जो हिंसा हुई उसमें ४० लोगों ने अपनी जान दे दी और सैक‹डो घायल हुए। यह सब उस अंधभक्ति के कारण हुआ जो धूर्त साधुओं की पूंजी है। नाबालिग लडकी के यौन शोषण के आरोप में २०१४ से जेल में बंद आसाराम के चेलों ने भी उसे जेल में डाले जाने पर कम तमाशेबाजी नहीं की थी। जिस तरह से गुंडे-बदमाश और पेशेवर हत्यारे अपने खिलाफ खडे होने वाले गवाहों को धमकाते-चमकाते हैं वैसा ही धतकर्म आसाराम और उसके खरीदे हुए गुंडों ने किया। कुछ गवाहों की तो हत्या तक करवा दी गयी। एक जमाना था जब आसाराम के यहां मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और बडे-बडे नेताओं का भी जमावडा लगा रहता था। इसी जमावडे ने आसाराम की 'साख' में खूब इजाफा किया था और उसके अनुयायियों की संख्या बढती चली गई थी। तब भी उस पर कई संगीन आरोप लगते थे, लेकिन उनपर ध्यान नहीं दिया जाता था। गुरमीत और रामपाल जैसे नकाबपोश देहभोगियों ने भी जी-भरकर आसाराम का अनुसरण किया और चंद वर्षों में अरबों-खरबों का साम्राज्य खडा कर लिया। दरअसल इन लोगों की सोच साधु-संतों वाली है ही नहीं। यह धन और सम्पत्ति के जन्मजात भूखे हैं। येन-केन-प्रकारेण धन बटोरना ही इनका मूल उद्देश्य है। दुनिया को तो यह मोहमाया से दूर रहने, भौतिक सुखों के त्यागने की शिक्षा देते हैं, लेकिन खुद चौबीस घण्टे भोग विलास में डूबे रहते हैं। गुरमीत ने बिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के मुख्यालय में तलाशी में कई रहस्योद्घाटन हुए। गुरमीत कितना अय्याश था और साध्वियों का कहां-कहां यौन शोषण करता था इसका पता तो इस सच से चलता है कि वह जिस गुफा में रहता-सोता था उससे जुडा एक गुप्त रास्ता था जो सीधे साध्वी निवास पर खुलता था। इसी साध्वी निवास में विभिन्न महिलाएं रखी जाती थीं जिन्हें वह अपनी अंधी वासना का शिकार बनाता था। डेरा छोड चुके कुछ लोगों ने बताया कि डेरा प्रमुख गुरमीत और उसके कुछ करीबियों के अलावा गुफा में घुसने की किसी को भी इजाजत नहीं थी। खुद को संत कहने वाले 'भगवान के दूत' के यहां एके-४७, विस्फोटकों एवं पटाखों की फैक्टरी का मिलना आखिर क्या दर्शाता है? गौरतलब है कि गुरमीत को महिलाओं से मालिश करवाने की लत थी। इसीलिए वह अपनी मुंहबोली बेटी हनीप्रित को अपने साथ जेल में रखना चाहता था। जेल में गुरमीत के स्वास्थ्य की जांच करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि वह 'सेक्स एडिक्ट' है। इसी वजह से जेल में वह बेचैन रहता है। गुरमीत के एक पूर्व सेवक का दावा है कि गुरमीत नियमित सेक्स टॉनिक लेता था। उसके लिए आस्ट्रेलिया और कई देशों से यौन क्षमता बढाने वाला पेय मंगाया जाता था। इतना ही नहीं कुछ लोगों का यह भी दावा है कि वह सुंदरियों के साथ-साथ सुरा का भी गुलाम था। हजारों अनुयायियों को इसकी जानकारी थी फिर भी उनका गुरमीत से पता नहीं मोहभंग क्यों नहीं हुआ? अपने दुखों को दूर करने और सुकून की चाहत में आश्रमों और डेरों में पहुंचने वाली भीड में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जिन पर बाबाओं को बहुत भरोसा होता है। यह भरोसा काफी जांचने-परखने के बाद बलवती होता है। यह भक्त भी बहती गंगा में हाथ धोने के मौके तलाशते रहते हैं। अपने 'भगवान' के ऊपर जाने या जेल में जाने के बाद यह उनकी धन-सम्पत्ति पर कब्जा करने की साजिशों में लीन हो जाते हैं। एक थे आशुतोष महाराज जिनका २९ जनवरी २०१४ को देहावसान हो गया था। लेकिन उनके कुछ करीबी चालाक भक्तों ने यह प्रचारित कर दिया कि महाराज तो गहरी नींद में लीन हैं। जैसे ही उनकी नींद खुलेगी वे अपने भक्तों के बीच खडे नज़र आएंगे। तीन साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है और महाराज का शव डीप फ्रीजर में रखा हुआ है। अंधभक्त उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब महाराज अपनी चेतना में लौट आएंगे। महाराज का बेटा अपने पिता की देह का अंतिम संस्कार करना चाहता है, लेकिन महाराज के आश्रम पर कब्जा जमा चुके 'दबंग' चेहरे उन्हें इसकी इजाजत देने को तैयार नहीं हैं। महाराज की अरबों-खरबों की जो सम्पत्ति है उस पर भी उन्होंने अपना कब्जा जमा लिया है। आसाराम के जेल में जाने के बाद इंदौर, नागपुर, अहमदाबाद, सूरत आदि शहरों में उनके जो आश्रम थे और धन सम्पत्ति थी उस पर कुछ विश्वस्त भक्तों ने कब्जा जमा लिया है। कई भक्तों ने बडी-बडी इमारतें खडी कर ली हैं और महंगी आलीशान गाडियों में घूमने लगे हैं। इंदौर के एक 'गुटखाछाप' भक्त ने तो बडी 'दबंगता' के साथ देश के विभिन्न महानगरों से एक दैनिक अखबार का प्रकाशन प्रारंभ कर 'दुनिया' को अपना जलवा दिखा दिया है। ऐसे खुशकिस्मत और प्रतिभावान लोग अब यही चाहते हैं कि आसाराम जेल में ही पडा-पडा मर-खप जाए। गुरमीत उर्फ राम रहीम के नजदीकी अनुयायियों की भी नजर उसके डेरों, जमीनों और तमाम धन-दौलत पर है जो उसने लोगों को बेवकूफ बनाकर जुटायी है।

Thursday, September 7, 2017

कट्टरपंथियो होश में आओ

कहने और करने में बहुत फर्क होता है। अपनी साख खो चुके नेताओं और बुद्धिजीवियों की तरह शोर-शराबा करने वालों की तादाद काफी ज्यादा है। खुद तो कुछ करते नहीं दूसरों को भी शंका की निगाह से देखते रहते हैं। कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ लिखने और बोलने वालों की हत्या कर दी जाती है। ऐसी निर्मम हत्याओं को सही ठहराने वाले कुछ चेहरे कल भी छाती ताने थे और आज भी हत्या-दर-हत्या करने से नहीं सकुचाते। अपने देश की राजनीति और नेताओं ने दूरियां बढाने में जितनी ऊर्जा खर्च की है, उतनी अगर सर्वधर्म समभाव की नीति पर चलने में लगायी होती तो वतन की तस्वीर ही बदल चुकी होती। निराशा और हताशा की डरावनी लकीरें नज़र ही नहीं आतीं। अयोध्या में हंसी-खुशी राम-मंदिर का भी निर्माण हो गया होता। वोटों की गंदी राजनीति ने फासले इस कदर बढा दिये हैं कि कुछ भी समझ में नहीं आता। हां, यह सच है कि वोटों के भूखे सत्ताधीशों ने भी निराशा के सिवाय कुछ भी नहीं दिया। यह आम लोग ही हैं जिन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसालें पेश कर भाईचारे की लौ को जलाए रखा है। हर धर्म के मानने वालों में फरिश्तों का वास है जो बार-बार आईना दिखाते रहते हैं। देश में आए दिन कुछ नेता हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच कटुता और वैमनस्य के बीज बोने वाली भाषणबाजी कर देश का माहौल बिगाडने का खेल खेलते रहते हैं। कई लोग इनकी साजिशों के हाथों का खिलौना बनने में देरी नहीं लगाते। ऐसे दौर में पिछले दिनों उत्तराखंड के एक गुरुद्वारे के द्वार नमाज के लिए खोल दिये गये। गौरतलब है कि चमोली जनपद स्थित जोशीमठ में हर वर्ष गांधी मैदान में नमाज अदा की जाती थी, लेकिन इस बार घनघोर बारिश की वजह से नमाज पढना बेहद मुश्किल हो गया। गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने मुस्लिम भाइयों की इस समस्या का फौरन समाधान निकालते हुए नमाज के लिए गुरुद्वारे में सहर्ष जगह दे दी। मुस्लिम समुदाय के करीब सात सौ लोगों ने गुरुद्वारे में ईद की नमाज अदा कर देश की एकता, अखंडता और अमन चैन की दुआ मांगी। मुख्य नमाजी इमाम ने मुस्लिम समुदाय को मानवता की रक्षा करने और अन्य सभी धर्मों के लोगों की मदद के लिए सदा तैयार रहने की अपील की। नमाज के दौरान हिन्दू, सिख सहित अन्य सम्प्रदाय के लोग काफी संख्या में मौजूद थे।
आइए... अब आपको मिलाते हैं साइकिल मैकेनिक अयोध्या के अस्सी वर्षीय मोहम्मद शरीफ से जो वर्षों से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते चले आ रहे हैं। लगभग पच्चीस साल पूर्व १९९२ में जब राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद चरम पर था और आपसी भाईचारे के परखच्चे उडा दिये गये थे तब उनका जवान बेटा गायब हो गया था। एक महीने तक गायब रहे बेटे की सडी-गली लाश एक बोरे में बंद मिली थी। मोहम्मद को बेटे की मौत ने झकझोर कर रख दिया था। उन्हे इस बात का बेहद गम था कि उनका बेटा सम्मानजनक ढंग से अंतिम संस्कार से वंचित रह गया। तब उन्होंने काफी चिंतन-मनन किया। हत्यारे उनकी नजरों से दूर थे। किसको कोसते, अपना गुस्सा दिखाते और नफरत के बारूद को थामे बदले की भावना में जलते रहते। उन्होंने फैसला किया कि जीवन भर कटुता के साथ जीने की बजाय अमन चैन का संदेश पहुंचाया जाए। नफरत और बदले की भावना वो आग है जो कभी ठंडी नहीं होती। उन्होंने अपने बेटे की सडी-गली लाश को दफनाने के साथ यह निश्चय भी किया कि अब किसी भी लावारिस लाश का ऐसा हश्र नहीं होने देंगे। वो दिन था और आज का दिन है। वे साइकिल से जिला अस्पताल के शवग्रह के चक्कर लगाते हैं और लावारिस शव मिलने पर उसका अंतिम संस्कार करते हैं। पिछले पच्चीस सालों से नियमित कब्रिस्तान और श्मशान के चक्कर काटने वाले मोहम्मद ने पूरे शहर के सार्वजनिक स्थलों पर साइन बोर्ड लगा दिए हैं जिनपर लिखा है कि कोई भी लावारिस शव मिलने पर मुझसे संपर्क करें। उन्हें ऐसे-ऐसे शवों से रूबरू होना पडता है जो बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो चुके होते हैं। उन्हें देखना और पहचानना भी मुश्किल होता है। वे सभी शवों को उनके धर्म के हिसाब से एक कमरे में रखते हैं, नहलाते हैं और कफन से ढकने के बाद अंतिम संस्कार करते हैं। अब तक सैकडों-हिन्दू-मुसलमानों के लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके मोहम्मद बताते हैं मेरे इस काम में कई लोग भी मदद करते हैं। कुछ साल पहले उन्हें एक सामाजिक पुरस्कार से नवाजा गया। इसमें जो राशि मिली उससे उन्होंने हाथ से चलने वाले ठेले खरीदे और शवों को उनके अंतिम मुकाम पर ले जाने के लिए चार कामगारों को भी रख लिया। वे कहते हैं कि मैं लाश के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता। हिन्दुस्तान के आम जन भी सर्वधर्म समभाव का समर्थक हैं। यह तो नेताओं की शातिर बिरादरी है जो वोटों के चक्कर में लडाने और बांटने का काम करती है।
इसी महीने देश की राजधानी दिल्ली में दो हिन्दू और मुस्लिम परिवारों ने एक दूसरे को अंगदान करके भाईचारे की अभूतपूर्व मिसाल पेश की है। दिल्ली के इकराम और बागपत के राहुल ने दिल्ली के जेपी हॉस्पिटल में अपनी किडनी संबंधित बीमारी की जांच करायी तो पता चला कि दोनों की किडनियां पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं। ऐसे में उन्हें एक-एक डोनर की जरूरत थी। डॉक्टरी जांच के बाद पाया गया कि दोनों के परिवार में कोई भी सदस्य किडनी डोनर के लिए उपयुक्त नहीं था। केवल इकराम की पत्नी रजिया और राहुल की पत्नी पवित्रा ही डोनर के लिए योग्य थे। समस्या यह भी थी कि दोनों मरीज और उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप एक नहीं होने के कारण अपने-अपने पति को किडनी दान नहीं कर सकती थीं। ऐसे में अस्पताल के डॉक्टरों ने दोनों परिवारों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि यदि ऐसी स्थिति में दोनों महिलाएं एक-दूसरे के पति के लिए किडनी दान करें तो दोनों मरीजों को नया जीवन मिल सकता है। दोनों महिलाओं ने बिना किसी हिचकिचाहट किडनी दान करने का निर्णय लेने में देरी नहीं की। इसके बाद अगली प्रक्रिया के तहत करीब पांच घंटे चले ऑपरेशन ने इकराम की पत्नी रजिया की किडनी राहुल को और राहुल की पत्नी पवित्रा की किडनी इकराम को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर दी गई।