Thursday, August 25, 2022

सवाल तो जरूर उठेंगे...

    भारत वर्ष का ही एक गांव है, व्यासपुरा। इसी गांव की एक नाबालिग दलित लड़की मोहल्ले की दुकान पर सामान लेने गई थी तभी दो युवकों ने इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। कोई काम होगा, यह सोचकर वह उन तक गई। तो उन्होंने उसे बंदूक दिखायी, डराया, धमकाया और चुपचाप साथ चलने को कहा। किसी सुनसान स्थान पर ले जाकर उस पर बलात्कार कर दोनों यह कहकर चलते बने कि अगर पुलिस वालों को खबर की तो तुम्हारे मां-बाप को मार डालेंगे। लड़की के साथ हुई बातचीत और यहां तक कि उसके साथ हुए दुष्कर्म को भी गांव के ही कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। देखकर भी अनदेखा कर अपने-अपने घरों में जाकर बैठ गये। लड़की ने अपने घर में जाकर अपने साथ हुई दरिंदगी की जानकारी दी तो मां-बाप का खून खौल उठा। वे फौरन बेटी को लेकर पुलिस स्टेशन जा पहुंचे। वहां पर जो खाकी वर्दीधारी विराजमान थे उनका अपने दायित्व और कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं था। वे बलात्कारियों के रुतबे से वाकिफ थे। हो सकता है उन्हें कुछ धन देकर समझा दिया गया हो कि उन्हें क्या करना है। बिक चुके पुलिसियों ने लड़की के मां-बाप से कहा, जो होना था हो गया। थाने और कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ोगे तो अपना घर बेचने की नौबत आ जाएगी। फिर भी न्याय नहीं मिल पायेगा। वे करोड़पति हैं, अपने बचाव के लिए महंगे से महंगे वकीलों को खड़ा करने की अथाह ताकत रखते हैं। तुम कितना भी जोर लगा लो, उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे, इसलिए अक्लमंदी इसी में है कि कुछ रुपये लेकर समझौता कर लो और चुपचाप घर में जाकर आराम करो।
    उत्तरप्रदेश के हमीरपुरा में एक लड़की अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ गार्डन में बैठी थी। तभी वहां छह लड़के आए और उन दोनों से पूछताछ करने लगे। कहां रहते हो? यहां क्या काम करने आए हो? दोनों ने बड़ी अदब के साथ उनके हर सवाल का जवाब दिया, लेकिन उनकी तो नीयत में ही खोट था। उन बदमाशों ने पहले तो दोनों को डंडे और बेल्ट से मारा-पीटा। दोनों हाथ जोड़ते रहे लेकिन उन्होंने लड़की को निर्वस्त्र कर वीडियो बनाया। गार्डन में मौजूद तमाशबीन इसलिए चुप्पी साधे रहे क्योंकि जिस लड़की के कपड़े उतारे गये वह न तो उनकी बेटी थी और न ही कोई करीबी रिश्तेदार।
    बिहार की राजधानी पटना से लगे नौबतपुरा में एक व्यक्ति ने अपनी बेटी पर एक-एक कर पांच गोलियां इसलिए दागीं क्योंकि उसका किसी युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती अस्पताल में मौत से जंग लड़ रही है। युवती की मां ने पूछताछ में पुलिस से कहा कि गोलियां गलती से चलीं। जब पुलिस ने सवाल दागा कि गलती से तो एकाध गोली चल सकती है, पांच गोलियां कैसे चलीं? पतिव्रता पत्नी से इस प्रश्न का जवाब देते नहीं बना। वह तो येन-केन-प्रकारेण अपने पति परमेश्वर को कानून के शिकंजे से बचाना चाहती थी।
    किसी को बचाने और किसी को फंसाने के खेल में सच फांसी के फंदे पर लटका दिखायी दे रहा है। कुछ दिन पहले एक खबर पढ़ी। शीर्षक था, दुष्कर्म के मुआवजे में घूस। राजस्थान में बलात्कार की शिकार नाबालिग बच्चियों को अधिकतम पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान है। राजस्थान के पाली में वासना के भूखे भेड़ियों ने आठ साल की एक बच्ची से दुष्कर्म कर सड़क पर फेंक दिया। सरकारी योजना के तहत बच्चों के भविष्य के लिए सवा चार लाख की राशि स्वीकृत की गयी थी। इस सहायता राशि को बच्ची के मां-बाप को देने में बाल कल्याण समिति के कर्ताधर्ताओं को तकलीफ होने लगी। बच्ची के मां-बाप जब चक्कर काट-काटकर थक गये तो उन्होंने समिति के अध्यक्ष से पूछा कि आखिर वे चाहते क्या हैं? तो उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि जब तुम्हें मुफ्त में माल मिल रहा है तो हमें हमारा हिस्सा भी तो मिलना ही चाहिए। सरकारी मुआवजे की राशि में रिश्वत के रूप में अपना दस प्रतिशत हिस्सा मांगने वाले बेईमानों को एसीबी की टीम ने गिरफ्तार तो कर लिया है, लेकिन इस लूट परंपरा पर ज़रा भी आंच नहीं आई है। बलात्कारी भी बेखौफ हैं। यह सच कितना चौंकाने वाला है कि राजस्थान में ही कई बच्चियां दुष्कर्मियों की शिकार होकर गर्भवती तक हो जाती हैं, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिलता। सरकारी मुआवजा तो बहुत दूर की बात है। नारियों से बलात्कार  और अन्याय के मामले में अकेले राजस्थान को कटघरे में करने का हमारा कोई इरादा नहीं। हमारे देश के हर प्रदेश में बच्चियां, और महिलाएं असुरक्षित हैं। महिलाओं को अपने घर से बाहर निकलते ही कई मुश्किलों तथा खतरों से रूबरू होना पड़ता है। अस्मत के लुटेरे ताक में लगे रहते हैं, मौका पाते ही अपनी मनमानी कर गुजरते हैं। कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों, सड़कों, चौराहों, बसों, रेलगाड़ियों, बाग-बगीचों में घोषित गुंडे-बदमाशों तथा सफेदपोशों की गंदी निगाहें नारी देह पर विषैले सांप की तरह रेंगती रहती हैं। महिलाओं पर छींटाकशी करना, घूरना और अभद्र इशारे करना उनके लिए मनोरंजन का साधन है। कामकाजी महिलाएं और छात्राएं उचक्कों की सीटीबाजी, शारीरिक छेड़छाड़ और अश्लील शब्दावली को सुनते-सुनते तंग आ जाती हैं। तमिलनाडु में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक नया कानून बनाया गया है। यदि कोई सड़क छाप मजनू या सफेदपोश रसिक महिलाओं के साथ गंदी अभद्र हरकतें करते पाया और पकड़ा जाता है तो उसे जेल की हवा खाने से कोई नहीं बचा पाएगा। उसका सलाखों के पीछे पहुंचना तय है।
    महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो पहले भी बने हैं। देश का हर प्रदेश खुद को महिलाओं के सशक्तिकरण का पक्षधर दिखाने की कोशिश करता है। केंद्र सरकार के सत्ताधीश भी नारियों के सम्मान पर कोई आघात नहीं लगाने की सीख देते नहीं थकते, लेकिन अधिकांश राजनेता खुद नारी को कितना सम्मान देते हैं, इसका पता उनकी बातों और व्यवहार से चलता रहता है। इस कलमकार ने कितने नेताओं को मां-बहन की गालियां देकर गर्वित होते देखा है। यह सच भी जगजाहिर है। कई अश्लील गालीबाज और बलात्कारी तो विधायक और सांसद भी बनने में सफल हो जाते हैं। उन पर सवाल भी उठते हैं, लेकिन उनका बस यही रट्टा-रट्टाया जवाब होता है कि उनसे ज्यादा चरित्रवान तो और कोई हो ही नहीं सकता। राजनीति में ऐसे झूठे आरोपों का सुनने और सहने की तो हमारी आदत पड़ चुकी है। कुत्ते भोंकते रहते हैं और हाथी अपनी चाल में मस्त चलता चला जाता है। खुद को हाथी बताने वालों ने ही देश के लोकतंत्र को शर्मिंदा कर रखा है। जहां पुलिस बिक रही हो, अमीर अपराध पर अपराध के बाद भी कानून के शिकंजे से दूर न्याय व्यवस्था की खिल्ली उड़ा रहे हों और गरीब न्याय के लिए तरस रहे हों तो वहां सवाल तो उठने ही हैं। वो दौर खत्म हुआ जब न्यायाधीशों को न्याय का देवता माना जाता था, लेकिन अब तो उन पर भी उंगलियां उठने लगी हैं। ये भी सच है कि सभी जज दागी नहीं, लेकिन ये भी तो सच है कि एक सड़ी हुई मछली सारे तालाब को गंदा और विषैला बनाकर रख देती है। आज देश की लगभग व्यवस्था क्यों कटघरे में है इसका जवाब भुक्तभोगी बड़ी आसानी से दे सकते हैं, लेकिन उनकी यहां सुनता कौन है?

Thursday, August 18, 2022

इनका कौन करे इलाज?

    ‘‘यह मेरी बेटी है। उम्र है 16 साल। इसकी कीमत मैंने रखी है, एक लाख रुपये। इससे एक धेला भी कम नहीं लूंगा। पसंद है तो मोल चुकाओ और अभी अपने साथ ले जाकर मन में जो आए वो करो। यह हमेशा अपना मुंह बंद रखेगी।’’ अपनी ही बेटी की बोली लगाते इस नराधम पिता की आत्मा मर चुकी है। इसके लिए बेटी से ज्यादा पैसा कीमती है। हो सकता है कि आपको हैरानी हो, लेकिन यही हकीकत है कि देश के प्रदेश राजस्थान में स्थित उदयपुर व झाड़ोल के बीस से ज्यादा गांवों में आज भी बेटियां बेची जा रही हैं। बेचने वालों में देह के दलाल भी हैं और सगे मां-बाप भी, जिनकी दलालों से भी बदतर भूमिका है। देह के भूखे बड़ी आसानी से 50 हजार से एक-डेढ़ लाख में लड़कियां खरीदकर ले जाते हैं और अपनी वासना की सेज सजाते हैं। यह देश की बदकिस्मती है कि इस शर्मनाक कारोबार में कई नेता भी शामिल हैं, जो एक तरफ विभिन्न मंचों पर ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का राग अलापते हैं, तो दूसरी तरफ बेटियों को बेचने-बिकवाने में संकोच नहीं करते। गुजरात से सटा शहर उदयपुर कोई छोटा-मोटा शहर नहीं है, न ही अंधेरे में डूबा रहता है, जो वहां लगने वाला मासूम बेटियों का बाजार किसी को दिखायी न दे। सबकुछ खुलेआम... बेखौफ हो रहा है। कई बेटियां तो बार-बार बिक रही हैं। झाड़ोल के पारगियापाड़ा के रामलाल ने तीन साल पहले अपनी बड़ी बेटी को दो लाख में किसी रईस को बेचकर खून के रिश्ते को कलंकित किया था। रणजीतपुरा की 15 साल की बेटी की डेढ़ लाख की बोली लगी और उसे गुजरात का एक व्यापारी बड़ी शान से अपने साथ ले गया था। वहीं के एक जागरूक संवेदनशील शिक्षक से यह जुल्म देखा नहीं गया तो वह उस बेटी को व्यापारी की कैद से मुक्त करा लाया, लेकिन लालची नकारा बाप फिर से कोई मोटा ग्राहक ढूंढ़ता फिर रहा है। इसी रेतीले प्रदेश की ही जो 12 बेटिया केरल में बेचने के लिए ले जायी गई थीं उन्हें पुलिस की मदद से जैसे-तैसे वापस लाया गया।
    जिन लोगों की किन्ही वजहों से शादी नहीं हो पाती उन्हें यहां बड़ी आसानी से छोटी-बड़ी लड़की मिल जाती है। पचासों शातिर दलाल हैं, जो बाल तस्करी भी कर रहे हैं और कुंवारों की शादी की तमन्ना पूरी कर माया बटोर रहे हैं। देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गये, लेकिन बेटियां अभी भी गुलाम हैं। उन पर तरह-तरह से जुल्म ढाए जा रहे हैं। उनके बचपन और सपनों को बड़ी बेदर्दी से रौंदा जा रहा है। नारंगी नगर नागपुर में अंधविश्वास ने पूरे परिवार के दिमाग के सोचने-समझने की क्षमता छीन ली। उन्हें इस कदर विवेकशुन्य और अंधा बना दिया कि उन्होंने अपनी ही पांच साल की मासूम अबोध बेटी अनक्षी की जादू-टोने के चक्कर में पीट-पीट कर नृशंस हत्या कर दी। गुरू पूर्णिमा के दिन अनक्षी की तबीयत बिगड़ने पर उसे तांत्रिक शंकर बाण के यहां ले जाया गया। अनक्षी का जन्मदाता सिद्धार्थ चिमणे पढ़ा-लिखा है। यू-ट्यूब चैनल चलाता है। कई लोग उसके पास अपनी समस्याओं को सुलझाने के उपाय जानने आते हैं। मेडिटेशन और भाषण दागने में भी वह निपुण माना जाता है। ऐसे ज्ञानी-ध्यानी पिता की बेटी की जैसे ही तबीयत बिगड़ी तो पूरे परिवार ने टोने-टोटके प्रारंभ कर दिए। तांत्रिक के यह बताने पर कि बच्ची पर बुरी आत्मा का साया है तो पूरा परिवार ही बच्ची का शत्रु हो गया। तांत्रिक ने पहले तो मठ में झाड़-फूंक और पूजा-पाठ की। फिर परिवारवालों को घर में ही टोटके करते रहने की सलाह दी। ढोंगी बाबा के चक्कर में अंधे हो चुके परिवार ने बच्ची को यातनाएं देनी प्रारंभ कर दीं। उसे बेल्ट से मारने के साथ-साथ ज़िस्म पर सुइंया चुभो-चुभोकर पूछा जाता कि बता तेरे शरीर में कौन आया है? नादान भोली-भाली बच्ची क्या जवाब देती? उसके पास तो रोने-बिलखने के सिवा और कोई चारा ही नहीं था। असहनीय पीड़ा से वह कराहती रहती, लेकिन किसी को भी उस पर रहम न आता। इस दौरान उसे न खाने को कुछ दिया गया और ना ही पीने को पानी। लगातार मारपीट से बेहाल भूखी-प्यासी बच्ची ने अंतत: प्राण त्याग दिए। मेडिकल अस्पताल में जब पांच वर्षीय गुड़िया उर्फ अनक्षी को पोस्टमार्टम के लिए लाया गया, तब वहां पर भीड़ लगी थी। नजदीकी तथा दूर के रिश्तेदार भी वहां मौजूद थे। हर कोई हतप्रभ था। इस इक्कीसवीं सदी में ऐसी क्रुर अंधी श्रद्धा... तांत्रिक पर घोर विश्वास! ऐसा कोई नहीं था, जिसकी आंखें न भीगी हों और उसे गुस्सा भी न आया हो। मासूम बच्ची को ऐसी वहशी निर्दयता के साथ पीटा गया था, जिससे उसकी चमड़ी छिल गई थी। शरीर पर किसी नुकीली वस्तु तथा आग से दागने के गहरे निशान स्पष्ट दिखायी दे रहे थे। गुड़िया के हत्यारों को मगरमच्छी आंसू बहाते देख सभी को बड़ा गुस्सा आ रहा था। उनका तो मन हो रहा था कि इन शैतानों... हैवानों को पीट-पीट कर अधमरा कर दें, लेकिन यदि वे खून-खराबे पर उतर आते तो बेटी के हत्यारों और उनमें क्या फर्क रह जाता। यही आत्मनियंत्रण और इंसानी सोच ही तो अभी तक रिश्तों तथा मानवता को पूरी तरह से मरने से बचाये हुए है।
    बच्चियों और महिलाओं पर जुल्म ढाने में तथाकथित साधु-महात्मा भी कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। नकली संतों, प्रवचनकारों ने हाल के वर्षों में अपनी साख को खोने का कीर्तिमान रचा है। नामों को गिनाने का कोई फायदा नहीं। सभी सजग भारतीय उन्हें जानते हैं। अफसोस तो इस बात का है कि धोखे पर धोखे खाने के बाद भी लोग सतर्क नहीं हो रहे हैं। अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि दिल-दिमाग से बाहर निकल ही नहीं पा रही हैं। खासकर महिलाएं तो कपटी और धूर्त नकली साधुओं के चंगुल में बार-बार बड़ी आसानी से फंस रही हैं। अभी हाल ही में साधु बाबा की शक्ल में एक भेड़िये वैराग्यनंद गिरी उर्फ मिर्ची बाबा को पुलिस ने दबोचा है। रायसेन की एक महिला शादी के चार साल होने के बाद भी संतानहीन थी। पति और सास ने ताने मारने शुरू कर दिये थे कि कैसी औरत हो, जो अभी तक एक बच्चे को जन्म नहीं दे सकी। दिल में तीर-सी चुभने वाली बातें सुनते-सुनते वह तंग आ चुकी थी। हर पल तनाव उसे दबोचे रहता था। इसी दौरान मोहल्ले की किसी औरत ने उसे बताया कि, भोपाल में मिर्ची बाबा नाम के एक पहुंचे हुए योगी रहते हैं, जिनकी दवाई से बांझ औरत को भी बच्चा हो जाता है। हताश और निराश इंसान को जब कोई पक्का भरोसा दिलाता है, तो वह मौका गंवाना नहीं चाहता। ज्यादा विचार किए एक दिन वह महिला मिर्ची वाले बाबा के दरबार में जा पहुंची। बाबा ने उस खूबसूरत महिला को अपने बगल में बैठाकर बच्चा होने का विश्वास दिलाते हुए कोई दवा खिलाई। जिसे खाने के कुछ पलों के बाद महिला का माथा चकराने लगा। शातिर शिकारी बड़ी आसानी से महिला से दुष्कर्म करने में सफल हो गया। जब महिला को होश आया तो बाबा ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, घबराओ नहीं। मेरी दवा कभी भी असरहीन नहीं होती। अब तुम घर जाओ। हां, बीच-बीच में आकर मिलती रहना। तुम्हारे यहां जरूर अत्यंत खूबसूरत गोल-मटोल बच्चा पैदा होगा, जिसे देखकर तुम्हें अपनी किस्मत पर नाज होगा। हां, तब तुम हमें मिठाई खिलाना भी नहीं भूलना। महिला बाबा के दरबार में तो चुपचाप उसकी सुनती रही, लेकिन बाहर निकलने के बाद उसने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। नि:संतान महिला पर बलात्कार करने वाला अय्याश कुसंत पुलिस से बचने के लिए यहां-वहां भागता रहा, लेकिन अंतत: पकड़ में आ ही गया है। झांसे और प्रलोभन के जाल फेंकने में अभ्यस्त वैराग्यनंद गिरी राजनेताओं का भी अत्यंत प्रिय रहा है। वह उनको चुनाव में विजयी होने का ही आशीर्वाद नहीं देता, बल्कि उसके लिए पूजा-पाठ और कर्म-कांड भी करता रहा ह। वैसे ही जैसे महिलाएं उसके जाल में फंसती रही हैं वैसे ही कई नेता भी उसके मायावी जाल से नहीं बच पाये। इसने कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह की जीत के लिए कभी मिर्ची से हवन-पूजन कर खूब प्रचार तथा चर्चाएं बटोरी थीं, लेकिन दिग्विजय सिंह की लोकसभा चुनाव में जो शर्मनाक हार और दुर्गति हुई वो सबको पता है।

Wednesday, August 10, 2022

दुनिया तुम्हें देखे

    समय की ताकत को कोई भी नहीं पहचान पाया। यह इतना शक्तिशाली है कि बड़े-बड़े सूरमा पलक झपकते ही इसके सामने नतमस्तक हो जाते हैं, तिनके की तरह बिखर-बिखर जाते हैं। यह वक्त ही है जो राजा को रंक तो रंक को राजा बनाता है। यह भी अकाट्य सत्य है कि अनुकूल और प्रतिकूल हालात जीवन के ही रंग हैं जो हर इंसान को देखने ही पड़ते हैं। कोई इन बदलते दृश्यों से घबरा जाता है तो कोई अपने रास्ते तलाश कर लेता है। कोई भी कठिनाई कई लोगों को रास नहीं आती। उन्हें लगने लगता है कि अपने बस में अब कुछ भी नहीं रहा। हमारी तो किस्मत ही खराब है। सतत सघर्षों से जूझते और सफलताओं-असफलताओं से मेल-मिलाप करते रहे एक विख्यात लेखक और अभिनेता कहते हैं कि अगर हम हारें नहीं तो बहुत कुछ कायम रहता है। जिन्दगी से जो चाहिए, मांग कर तो देखिए। निराश होकर हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने वालों को यहां कुछ नहीं मिलता। वे तो बस दूसरों के लिए तमाशा ही बनकर रह जाते हैं।
एक ही शहर में एक ही समय में दो लोगों को अचानक अपनी आंखों की रोशनी खोनी पड़ी। एक तो निराशा के सागर में डूब गया और पेट भरने के लिए फौरन उसने भीख मांगने का रास्ता चुना। वर्षों बाद आज भी उसे शहर के मंदिर के सामने भीख का कटोरा थामे देखा जा सकता है। कई बार उसे दुत्कारा और फटकारा भी जाता है। तुम्हें शर्म नहीं आती, अच्छे खासे हट्टे-कट्टे होकर भी भीख मांगते हो! लोगों की गालियां सुनने की तो उसे आदत पड़ चुकी है। दिन भर भीख में जो चंद सिक्के मिलते हैं, उन्हीं से शाम होते ही दारू खरीद कर पीता है और नशे में बेसुध होकर यहां-वहां सो जाता है। दूसरे शख्स ने आंखों की रोशनी खोने के बाद भी निराशा का दामन नहीं थामा। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी। संघर्ष-दर संघर्ष करते हुए अपनी राह बनायी। अंधेरे को उजाले में बदला। सड़कों पर पेन बेचे, अगरबतियां बेचीं तथा और भी कई सामान बेचकर अपना मस्तक ताने रखा। पिछले तीस साल से दृष्टि बाधित इस लड़ाकू इंसान को आज भी तामिलनाडु के शहर मदुरे में स्थित सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में किताबें, पैम्फलेट और पत्रिकाएं बनाने के लिए मुद्रित पृष्ठों को काटते, सिलते व स्टेपल करते देखा जा सकता है।
     भावेश भी दृष्टिहीन हैं। उम्र पचास के आंकड़े को पार कर चुकी है, लेकिन उनकी हार नहीं मानने की दूर-दूर तक कोई सानी नहीं। भावेश की बचपन में ही रेटिना मस्कुलर डेटोरिएशन की बीमारी के कारण आंखों की रोशनी कुछ कमजोर थी। 23 साल की उम्र में जब वह एक बड़े होटल में मैनेजर थे तभी उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से जाती रही। अच्छा-खासा इंसान बेबस और बेरोजगार हो गया, लेकिन भावेश ने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने तो बस तकलीफों और परेशानियों के समंदर को तैर कर पार करने की ठान ली। इस दौरान कैंसर से जूझ रही मां चल बसी, लेकिन उनकी सीख बेटे के खून में दौड़ रही थी, ‘तुम भले ही दुनिया न देख सको, लेकिन दुनिया तुम्हें देखे।’ भावुक और संवेदनशील भावेश की कला के प्रति बचपन से ही दिलचस्पी थी। तीन-चार वर्षों तक घूम-घूमकर मोमबतियां बेचीं। उसके पश्चात कुछ बड़ा करने की ठानी। नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड में एक साल रहकर कैंडल मेकिंग सहित अपनी अभिरुचि के कुछ और भी कई कोर्स किए। 1994 में महाबलेश्वर में सनराइज कैंडल की स्थापना की। कुछ समय के पश्चात अलग-अलग शहरों में मोमबती के स्टॉल लगाने प्रारंभ कर दिए। 2007 में पुणे में आयोजित विशाल प्रदर्शनी में एक साथ 12 हजार मोमबतियां प्रदर्शित कर भावेश ने लाखों की संख्या में आये लोगों का दिल जीत लिया। यही वो शानदार मौका था, जिसने भावेश की किस्मत ही बदल दी। आज भावेश मोमबती व्यवसाय के अत्यंत प्रेरक सम्राट हैं। अरबपति हैं। रोशनी देने वाले व्यवसाय से कई घरों में उजाला करते भावेश लगभग दस हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का कीर्तिमान रच चुके हैं। उनकी जिंदगी का यही उद्देश्य है, उम्मीद का हमेशा दामन थामे रहो, सब मिलकर आगे बढ़ो और आसपास ही अवसर खोजते रहो। उनके माध्यम से हजारों लोगों ने मोमबती बनाने का हुनर सीखकर अपनी जिन्दगी संवारी है और संवार रहे हैं। ध्यान रहे कि वर्तमान में एक हजार से ज्यादा मल्टीनेशनल कंपनियां सनराइज कैंडल्स की ग्राहक हैं। अपनी अटूट मेहनत और जुनून की बदौलत सफलता के शिखर को छूने वाले कर्मवीर भाटिया आज हर किसी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
    बीते दिनों देश भर में अखबारों और न्यूज चैनलों पर यह खबर छायी रही, ‘गुजरात के जूनागढ़ निवासी सोलंकी परिवार ने पांच घंटे में दो स्वजनों को खोने के बाद भी ‘मृत्यु को महोत्सव’ में तब्दील कर दिया। सोलंकी परिवार की गर्भवती पुत्रवधू मोनिका बेन की अचानक तबीयत खराब हो गई थी। अस्पताल में ले जाते समय रास्ते में उन्हें मिर्गी का तेज दौरा पड़ा। मोनिका तो इलाज के दौरान चल बसीं, लेकिन गर्भस्थ शिशु जीवित था। परिवारजनों की सहमति पर डॉक्टरों ने सीजर कर प्रसव करवाया, लेकिन कुछ देर के बाद नवजात बालिका ने भी दम तोड़ दिया। मात्र पांच घण्टों में दो स्वजनों को खोने की पीड़ा से जूझते सोलंकी परिवार को मोनिका बेन के नेत्रदान के संकल्प की याद थी। उनकी आंखों से कोई और भी ये संसार देख सके इसलिए नेत्रदान और फिर बाद में बैंडबाजे के साथ अंतिम संस्कार किया।
    आध्यात्मिक गुरू और लेखक (स्वामी मुक्तानंद) का कथन है कि हम सब सुखी और सफल जीवन जीना चाहते हैं, किंतु हमसे अधिकांश लोग या तो ऐसा जीवन जीने के लिए आवश्यक जरिए नहीं जानते या फिर हमें उसके लिए आवश्यक कीमत पता नहीं होती अथवा इस विषय में गलत अवधारणाएं होती हैं। हमारी किसी भी उपलब्धि के पीछे एक चीज़ है हमारे विचार। हम जीवन में जो कुछ भी करते हैं उसके प्रणेता हमारे ही विचार होते हैं। जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है। हौसले की उड़ान को कोई नहीं रोक सकता। कहने को तो ये शब्द हैं, लेकिन इनके अर्थ को सार्थक करने वालों को हमेशा सम्मानित और याद किया जाता है।
    स्वतंत्र भारत में हर भारतीय को अपने मन की करने की पूर्ण आजादी है। इस हक को कोई भी नहीं छीन सकता। अपनी सुख-सुविधाओं और खुशियों के साथ-साथ दूसरों की तमन्ना और प्रसन्नता में खलल डालने का किसी को कोई अधिकार नहीं है। यह अटल हकीकत है कि ओछी और गिरी हरकतें हमेशा नापसंद की जाती हैं। स्वार्थी लोगों से भी दूरी बनाने का जगजाहिर चलन है। यहां उसी को इज्जत मिलती है जो अपने स्वाभिमान को जिन्दा रखता है और कभी किसी को आहत नहीं करता। हमेशा संघर्षरत रहना जिन्दा इंसान की ही पहचान है। अच्छी  साख और मान-मर्यादा ही तो हम सभी कि एकमात्र दौलत है...। 15 अगस्त...स्वतंत्रता दिवस, अमृत महोत्सव की हर सजग देशवासी को अपार शुभकामनाएं...ढेरों बधाइयां।

Thursday, August 4, 2022

शराबी की खराबी

    पूरे गुजरात और बिहार में शराबबंदी है। महाराष्ट्र के वर्धा जिला और गड़चिरोली में भी कहने को तो शराब पीने पर सख्त पाबंदी है, लेकिन जिन्हें पीनी होती है वे कैसे भी जुगाड़ कर अपनी आदत और शौक को पूरा कर रहे हैं। इस चक्कर में मौतें हो रही हैं। बसे-बसाये घर बरबाद हो रहे हैं और कलह-क्लेश भी बना हुआ है। बिहार में तो शराब बंदी लागू हुए अभी चंद वर्ष ही हुए हैं, लेकिन गुजरात में तो 60 साल से ऊपर हो चुके हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र के वर्धा को महात्मा गांधी की कर्मभूमि होने के कारण शराबबंदी के लिए चुना गया वैसी ही दलील गुजरात के लिए दी गयी। पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने और भारत को आजादी दिलवाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसी प्रदेश के शहर पोरबंदर में जन्म लिया था। अभी हाल ही में बापू के जन्म स्थल गुजरात में जहरीली देशी शराब पीने-पिलाने से 65 लोगों की मौत हो गई और लगभग 150 लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इनमें से कुछ तो उम्र भर के लिए दृष्टिहीन हो गये। नकली शराब मौत के साथ-साथ कई जानलेवा रोगों की सौगात दे देती है। हर पीने वाले को पता है कि ये नशा बेहद खतरनाक है, जानलेवा है लेकिन फिर भी पियक्कड़ों की अक्ल ठिकाने नहीं आती। नकली शराब बनाने वाले भी जानते हैं कि वे गुनाह कर रहे हैं, लेकिन मोटी कमायी के लालच में अंधे बने रहते हैं। विषैली शराब पीने के कारण जब-जब मौतें होती हैं तब-तब देशभर में शोर-शराबा होता है। शासन और प्रशासन पर उंगलियां उठायी जाती हैं। जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने और सवाल उठाने वालों में वे नेता भी बड़े दमखम के साथ शामिल होते हैं, जिनके साथ के दम पर शराब माफिया बड़ी तेजी से पनपते हैं और उनका कोई बाल भी बाकां नहीं कर पाता। नशीली और विषैली शराब पीकर मरते कौन हैं? यकीनन रईस तो नहीं मरते। नेता, अभिनेता, मंत्री-संत्री भी इससे बचे रहते हैं। जिनकी महंगी अंग्रेजी शराब खरीदने की हैसियत नहीं, वही देशी शराब को गले लगाते हैं और जब तक कुछ नहीं होता मस्त रहते हैं। इसके सेवन के बाद मौत होने पर उनके बाल-बच्चे, माता-पिता, पत्नी, बहन और अन्य रिश्तेदार मातम मनाते हैं और अपनी किस्मत को कोसते रह जाते हैं। पत्रकार हूं, इसलिए मेरी शुरू से ही खबरों के पीछे भागने की आदत है। गुजरात में जहरीली शराब पीने के बाद हुई दर्दनाक मौतों के कुछ दिन बाद यह खबर पढ़ने में आयी, ‘मद्य निषेध’ की नीति वाले गुजरात में शराब तस्करी का गोरखधंधा उद्योग की तरह चल रहा है। बोटाद-अहमदाबाद में 65 लोगों की मौत के बाद जहरीली शराब त्रासदी की जांच में ये खुलासा हुआ है कि दारूबंदी के प्रदेश में शराब तस्करी का एक मजबूत व्यवस्थित तंत्र है। इसमें शराब के आयात, वितरण, बिक्री, वसूली और भुगतान में बैंक सहित आंगढिया पेढी के नेटवर्क का इस्तेमाल होता है। इस जानलेवा जहरीले धंधे को चलाने वालों का नेटवर्क इतना फुलप्रूफ है कि आपूर्ति और पैसे की उगाही में गलती की गुंजाइश  ही नहीं है। शराब की तस्करी में लगे बड़े खिलाड़ी शायद ही कभी पकड़ में आते हैं। अरबों-खरबों की नगदी और जमीन, जायदाद के मालिक बन चुके कुछ नाम बहुत बलवान हैं। ये गोवा से शराब वाया महाराष्ट्र से गुजरात मंगवाते हैं। इस माल के भंडारण के लिए बाकायदा गोदाम भी बनाये गए हैं। इस पूरे खेल की सत्ताधीशों, समाजसेवकों, छोटे-बड़े नेताओं तथा पुलिस को जानकारी है, लेकिन सभी चंद सिक्कों में अपना ईमान बेचकर बेफिक्र और खुश हैं। एक-एक बड़ा शराब तस्कर लगभग 2 करोड़ रुपये का हफ्ता पुलिस वालों को देता है। जब पकड़ा-धकड़ी का नाटक होता है तो वह अपने छोटे-मोटे नौकरों को आगे कर देता है। कौन नहीं जानता कि कमजोर हर जगह बलि का बकरा बनता है। जानकारों का कहना है कि अकेले गुजरात में ही शराब, तस्करों का प्रतिवर्ष लगभग हजार करोड़ से ऊपर का कारोबार है। इसमें होने वाली कमायी का कुछ हिस्सा नेताओं, मंत्रियों, अफसरों, समाजसेवकों, पत्रकारों, संपादकों तक पहुंचता है। ऊंचे लोगों के जीने के अंदाज बड़े निराले हैं। जहां शराब बंदी है वहां भी मौज-मस्ती की पार्टियां तो चलती ही रहती हैं। बीते हफ्ते गुजरात के वलसाड जिले में स्थित एक गांव में आयोजित एक जन्मदिन की पार्टी मेें शराब के जाम टकराये जा रहे थे। बिलकुल वैसे ही जैसे दिल्ली और मुंबई और अन्य महानगरों की पार्टियों में टकराये जाते हैं। इस शराब पार्टी में एक पुलिस सबइंस्पेक्टर और तीन कांस्टेबल भी पकड़ में आये, जो दारू के नशे में  टुन्न थे। जिन पर लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है उन्हें तो हमेशा सजग और सतर्क रहना चाहिए। यह जानकार यकीनन धक्का लगता है कि कुछ पायलट भी शराब पीकर हवाई जहाज उड़ाते हैं। यह उनकी गद्दारी भी है और नालायकी भी। नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में जानकारी दी है कि जनवरी, 2022 से जून, 2022 तक कुल 14 ऐसे मामले दर्ज किये गये, जहां उड़ान से पहले ब्रेथ-एनलाइजर (बीए) परीक्षण में पायलटों की रिपोर्ट में उनके नशे में होने की पुष्टि हुई। अब आप ही सोचें कि जब हवाई जहाज उड़ाने वाले पायलट ही नशेड़ी हैं, पीने के आदी हैं तो यात्री कितने सुरिक्षत हैं! अहमदाबाद के वासणा इलाके में रहने वाले एक पिता ने अपने शराबी बेटे को धारदार हथियार से मार डाला। इतना ही नहीं, उसने ग्राइंडर मशीन से बेटे के मृत शरीर के कई छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें अलग-अलग जगह पर फेंक दिया। पिता का कहना है कि शराबी बेटे को पैसे देते-देते मैं थक चुका था। हर रोज घर में शराब पीकर आता और लड़ाई-झगड़े पर तुल जाता। लाख समझाने के बाद भी उसने शराब पीनी नहीं छोड़ी। घर को नर्क बनाकर रख दिया। अंतत: मेरी सहनशीलता भी जवाब दे गई और मैंने उसका खात्मा कर दिया। महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा और आस्था के नाम पर शराबबंदी झेल रहे गुजरात में किस तरह की शराब बंदी है इसका पता तो इस हकीकत से पता चलता है कि सूरत और अहमदाबाद में पीने वालों के घरों तक शराब पहुंचायी जा रही है। ये पियक्कड़ कोई भी कीमत देने का दम रखते हैं। शादी-ब्याह या जन्मदिन की पार्टी में इन्हें सहज ही हर ब्रांड की शराब की बोतलें उपलब्ध हो जाती हैं। गरीबों के लिए 20 रुपये से प्रति पाउच में बिकने और मिलने वाली शराब कितनी को ऊपर पहुंचा चुकी है, इसका आंकड़ा तो सरकार के पास भी नहीं है। चुनावों के समय भी इसी खतरनाक शराब से गांव तथा शहर के गरीब मतदाताओं को खुश किया जाता है।