Thursday, September 29, 2022

जय भारत देश

    जब सातवीं-आठवीं में था तभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बारे में जानने और सुनने लगा था। बंटवारे के बाद किसी तरह से जान बचाकर पहले अमृतसर फिर पानीपत के शरणार्थी शिविर में महीनों रहे पिता और चाचा ने बताया था कि किस तरह से राष्ट्रीय संघ से जुड़े युवकों ने दिन-रात उनकी सहायता की थी। बेसहारों का सहारा बन भूखे-प्यासे स्त्री-पुरूषों, बच्चों, युवकों तथा वृद्धों की तन-मन से सेवा कर उनका दिल जीत लिया था। वो 1947 का काल था। तब आजादी की खुशी भी थी, भारत के विभाजन की पीड़ा भी थी। अपने बसे-बसाये घरों से बेघर कर दिये गए करोड़ों लोगों को नये ठिकाने की तलाश थी। वक्त के पास हर जख्म का इलाज है। धीरे-धीरे उसने जख्मों को भर दिया।
    आजादी के बाद के वर्षों में भी निरंतर हम आरएसएस के कर्मठ, जूनूनी कार्यकर्ताओं की सहायता और सेवाभावना से अवगत होते चले आ रहे हैं। देश में कहीं भी अकाल पड़ा हो, बाढ़ आयी हो या फिर कोई बड़ी आपदा और दुर्घटना ने कहर ढाया हो तो आरएसएस के हिम्मती सैनिक बिना किसी भेदभाव के तन-मन और धन से मानव सेवा कर इंसानियत का धर्म निभाते नजर आते हैं। संघ को कभी भी प्रचार की भूख नहीं रही। चुपचाप मानव सेवा करते हुए इसने अपने कद को बढ़ाया है और विरोधियों को अपनी सुनी-सुनायी राय बदलने के लिए प्रेरित किया है। राष्ट्रीय सेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में, विजयादशमी के शुभ दिन हुई थी। इस संगठन की नींव रखी थी प्रखर राष्ट्रभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने, जिनका बस यही सपना था कि भारत एक ऐसा मजबूत राष्ट्र बने, जहां सभी बराबर हों। कहीं कोई ऊंच-नीच का भाव न हो। सभी के मन में राष्ट्र की एकता व अखंडता के पवित्र विचार कूट-कूट कर भरे हों। हर कोई भारत माता के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने के लिए हमेशा कमर कस कर तैयार रहे। डॉ. हेडगेवार ने 97 वर्ष पूर्व जो बीज बोया था वह आज वटवृक्ष बन चुका है। यह सच जगजाहिर है कि इस वटवृक्ष के जहां बेशुमार प्रशंसक हैं, वहीं इसके कई आलोचक भी हैं, जिन्हें इसकी बुराई करते रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं सूझता। कुछ बुद्धिजीवियों ने तो आरएसएस की आलोचना करते रहने की कसम खा रखी है। मीडिया के कई चेहरों को भी भारतीय जनता पार्टी तथा आरएसएस मुसलमानों को शत्रु प्रतीत होती है। आरएसएस को भाजपा का संरक्षक भी कहा जाता है, लेकिन उसने हमेशा खुद को विशुद्ध सांस्कृतिक संगठन कहलवाना पसंद किया है। किसने किसके कंधे पर बंदूक रख रखी है इसका जवाब आसान भी है और मुश्किल भी।
    आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी से मुलाकात की तो ऐसा हंगामा और शोर मचा जैसे कोई अकल्पनीय कांड घट गया हो। मोहन भागवत ने इमाम उमर इलियासी के पिता जमील इलियासी की पुण्यतिथि पर उनकी मजार पर जियारत की और एक मदरसे का दौरा भी किया। वहां पर उन्होंने बच्चों से उनकी पढ़ाई के बारे में जानकारी लेते हुए पूछा कि वे अपने जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं। बच्चों ने पढ़-लिखकर डॉक्टर और इंजीनियर बनने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। संघ प्रमुख के मस्जिद में कदम रखने से देश में यकीनन एक अच्छा सकारात्मक संदेश गया है। कुछ अमन के शत्रुओं को भागवत की इस पहल से जबर्दस्त धक्का लगा है। हिंदुओं और मुसलमानों में ऐसे कुछ लोग भरे पड़े हैं, जिनकी एकता, आपसी सद्भाव और शांति के मार्ग से कट्टर दुश्मनी है। मार-काट और खून-खराबा पसंद करने वाले इन अमन के दुश्मनों को आपसी मेलमिलाप की कोई भी कोशिश और मुलाकात रास नहीं आती। इस ऐतिहासिक मुलाकात के दौरान इमाम इलियासी का मोहन भागवत को राष्ट्रपिता और राष्ट्रऋषी कहना भी ऐसे विघ्न संतोषियों को शूल की तरह चुभा है। निमंत्रित मेहमान को आदर सूचक शब्दों से नवाजना इस देश की सदियों से चली आ रही पुरातन आदर्श परंपरा है।
यहां पर लिखना और बताना भी जरूरी है कि भारत के अधिकांश हिंदुओं और मुसलमानों में सद्भाव और भाईचारा यथावत बरकरार है। हाल के वर्षों में जो प्रचारित किया जा रहा है उसमें अतिशयोक्ति काफी ज्यादा है। भारत भूमि पर रहने वाले हर सजग हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन यहूदी और पारसी के मन में एक-दूसरे के धर्म के प्रति अपार सम्मान है। एक-दूसरे के पूजा स्थलों पर माथा टेकने में उन्हें खुशी और संतुष्टि मिलती है। मुंबई की हाजी अली दरगाह हो या नागपुर में स्थित ताजुद्दीन बाबा की दरगाह... यहां आपको सभी धर्मों के लोग चादर चढ़ाते और इबादत करते मिल जाएंगे। राजस्थान के अजमेर शरीफ में यह जान पाना मुश्किल होता है कि किसका किस धर्म से वास्ता है। सभी मानवता के रंग और खूशबू में महकते नज़र आते हैं। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर पटरियों के बीच खम्मन पीर बाबा की दरगाह पर हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई... सभी पूरी आस्था के साथ शीश नवाते हैं। आंध्रप्रदेश के कडप्पी में श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में रोज मुस्लिम एवं अन्य धर्मों के लोग एक जैसी पवित्र सोच के साथ आते हैं। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में भी किसी एक धर्म के नहीं सभी धर्मों के लोग माथा टेकने जाते हैं और छक कर पवित्र लंगर का सात्विक आनंद उठाते हैं। तामिलनाडु के वेलंकनी चर्च में सैकड़ों किमी की पैदल यात्रा कर पहुंचने वालों में भी हर धर्म के लोगों का समावेश रहता है। यह तो नाम मात्र के उदाहरण हैं। भारतवासियों की एक दूसरे के धर्म के प्रति आदर-सम्मान और आस्था की हकीकतों असंख्य रंग और जीवंत तस्वीरें हैं, जिन्हें देखने के बाद पक्का यकीन होता है कि सभी भारतवासी एक सूत्र में बंधे हैं, भले ही पूजा-पद्धति अलग-अलग है। भारत का हर आम आदमी आपसी प्रेम-प्यार, अटूट सद्भाव और एकता के साथ रहने का प्रबल अभिलाषी रहा है। कुछ स्वार्थी दुष्ट लोगों की तोड़क सोच और अंधी राजनीति देश की फिज़ा को बदरंग करने की साजिशें जरूर रचती रहती है, लेकिन लाख सिर पटकने के बाद यदि वे असफल हैं तो उन आम भारतीयो की वजह से जो किसी दुष्चक्र में कभी भी नहीं फंसते।

Thursday, September 22, 2022

जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं

यह भारतीय खाकी वर्दीधारियों, पुलिस थानों और अधिकांश जेलों का वास्तविक चेहरा है, जिसे उन्हीं ने अच्छी तरह से जाना और पहचाना है, जिनका इससे वास्ता पड़ा है। फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने और पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंची किसी नारी की अस्मत लुटने और उसे अपमानित करने की खबरें पुरानी पड़ चुकी हैं। कुछ अपराध ऐसे हैं, जो पुलिसवाले सत्ताधीशों के इशारे पर करते चले आ रहे हैं। पुरस्कार तथा पदोन्नति का लालच तो लगभग सभी को रहता है। फर्जी मुठभेड़ के साथ भी कहीं न कहीं यह सच जुड़ा हुआ है। कल भी अधिकांश औरते थाने जाने में घबराती थीं। आज भी घिनौने से घिनौने दुष्कर्म का शिकार होने के बाद भी वहां की चौखट पर पैर रखने से कतराती हैं। पुलिस के लालची और पक्षपाती चलन के चलते कई बार बेकसूर ही अपराधी घोषित कर दिये जाते हैं। उन्हें न्याय के फूलों की बजाय कांटे ही कांटे मिलते हैं।
    भारतीय जेलों के भी बड़े बुरे हाल हैं। कहने को तो पुलिस आम लोगों की सुरक्षा और जेलें अपराधियों को सज़ा और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए हैं, लेकिन जो सच सामने है वह बड़ा चिंतनीय तथा डरावना है। निर्दोष लोगों के सिर काटकर हत्याएं करने और पूरी दिल्ली में दहशत फैलाने वाले एक सीरियल किलर ने खुद के अपराधी बनने का जो कारण बताया उससे तो अदालत के दिमाग की चूलें ही हिल गईं। वह अपनी कह रहा था और स्तब्ध जज साहब बस सुन रहे थे, साहब, मैं तो यहां मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी कमाने के लिए आया था। राजधानी के कई इलाकों में कई काम किए। भरपूर मेहनत-मजदूरी करने के बाद दो पैसे हाथ में नहीं लगने पर आदर्शनगर में सड़क के किनारे की खाली जमीन पर सब्जी बेचने लगा। हमारे गांव में तो सरकारी जगह पर ठेला, रेहडी लगाने की पूरी आज़ादी थी। महानगर के दस्तूर का मुझे पता नहीं था। सब्जी की दुकान लगाये अभी पांच-छह दिन ही बीते थे कि गुंडे-बदमाशों ने पैसों के लिए तंग करना प्रारंभ कर दिया। मेहनत मेरी थी, लेकिन वे अपना हिस्सा मांग रहे थे। मैंने उन्हें कुछ दे-दुआकर किसी तरह शांत किया, तो पुलिस वालों ने अपनी हिस्सेदारी मांगनी प्रारंभ कर दी। एक बीट कांस्टेबल तो मेरे पीछे ही पड़ गया। मनचाही रिश्वत नहीं मिलने पर उस धूर्त ने तो मेरी सब्जी की टोकरियां नष्ट करने के साथ-साथ मेरे खिलाफ मुकदमें दर्ज करवाने प्रारंभ कर दिये। एक जगह से दूसरी जगह पर जा-जाकर मैंने अपनी दुकान लगायी, लेकिन हर बार लुटेरे वर्दीवालों ने चैन से जीने नहीं दिया। बेकसूर होने के बावजूद कई बार मुझे जेल जाना पड़ा। जेल यात्रा के दौरान ही मन में पुलिस वालों को सबक सिखाने और उनकी नींद उड़ाने का विचार आया तो निर्दोषों की चुन-चुन कर हत्याएं करने लगा। ऐसा भी नहीं कि आम आदमी से मित्रवत व्यवहार करनेवाले खाकी वर्दीधारियों का अकाल पड़ गया है, लेकिन जो हैं, वे गिने-चुने हैं। अपराधी सोचवाले उन पर भारी पड़ रहे हैं।
    देहरादून की जेल में हत्या के आरोप में आजीवन कारावास भोग रहे रामप्रसाद को दाएं गुर्दे में पथरी की शिकायत थी। पथरी के ऑप्रेशन के लिए उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां जेल प्रशासन की मिलीभगत से पथरी का ऑप्रेशन करने की बजाय उसकी बायीं किडनी ही निकाल ली गई। कुछ महीनों के बाद रामप्रसाद को फिर दर्द हुआ तो इलाज के नाम पर की गई धोखाधड़ी का पता चला। जेल में बंद खूंखार कैदी जेल में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। बिकाऊ जेल प्रशासन को मोटी रिश्वत थमा कर जन्मजात चोर, लुटेरे, वसूलीबाज कैदी हर वो सुविधा पा रहे हैं, जो वे चाहते हैं। पैसे वाले कैदी जेल में मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। अपना जन्मदिन और हर खुशी का जश्न मनाने के लिए शराब, गांजा आदि उन्हें पीने को मिल रहा है। जेल में वर्षों तक बंद रहे एक अपराधी ने बताया कि उसने अपनी आंखों से कैदियों को पेटीएम व फोन-पे के माध्यम से पैसे मंगवा कर अधिकारियों की रिश्वत की अंधी भूख को पूरा करते देखा है। यही भ्रष्टाचारी जेल अधिकारी रिश्वत देने वाले कैदियों के लिए दारू, चिकन-मटन पार्टी से लेकर अन्य और सभी मौज-मजों के इंतजाम कर रहे हैं। कुछ कैदियों को मिल रही सुविधाओ को देखकर लगता ही नहीं कि वे किसी संगीन जुर्म के कारण सींखचो में डाले गये हैं। नागपुर की सेंट्रल जेल में कई खूंखार हत्यारे, बलात्कारी, डॉन, माफिया कैद हैं। जेल के कुछ अधिकारी इन पर बड़े मेहरबान हैं। अभी हाल ही में कुछ कैदियों को मोबाइल तथा गांजा उपलब्ध कराने की शर्मनाक हकीकत ने सुर्खियां पायीं। जेल में विशाल प्रवेश द्वार पर कड़ी जांच की जाती है। यहां तक कि बाहरी व्यक्तियों के मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रानिक्स सामान काउंटर पर जमा कर लिए जाते हैं। तो फिर ऐसे में जेल के भीतर नशे के लिए गांजा तथा बातचीत के लिए मोबाइल कैसे पहुंचा होगा? इसका उत्तर तो कोई बच्चा भी दे सकता है। तिहाड़ जेल में कैद रहकर भी ठगराज सुकेश चंद्रशेखरन ने एक शीर्ष उद्योगपति की बीवी से 200 करोड़ झटक लिए। तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बिकने का इससे खतरनाक सच भला और कौन सा हो सकता है। लोग अक्सर सवाल करते हैं कि देश में अपराधियों को नकेल कसने के लिए जब इतने कानून हैं, तो अपराधों का आंकड़ा जस का तस और अपराधियों का बाल भी बांका क्यों नहीं हो रहा? हां, यह सच है कि देश में कानूनों की तो भरमार है, रोज नये-नये कानून बनते भी रहते हैं, लेकिन रक्षक के भक्षक बनने, उसके बिक जाने और सत्ता तथा व्यवस्था के भेदभाव करने के कारण कानून असहाय और बौना बनकर रह गया है...।

Thursday, September 15, 2022

खबरें मांगें जवाब

इस वीडियो को देखने के बाद सबसे पहला विचार आया कि क्या भारतीय महिलाओं की सोच बदल रही है? वो अपनत्व और ममत्व जो इस पवित्र धरा की नारी की वास्तविक पहचान है, कहां मरखप गयी है। यकीनन जो सच सामने था, वो दिल को दुखाने, तड़पाने और दहलाने वाला था। इतनी संवेदनहीनता संकीर्णता और शर्मनाक निष्ठुरता! गाजियाबाद की रइसों और पढ़े-लिखों की सोसाइटी में एक महिला अपने पालतू कुत्ते के साथ लिफ्ट में सवार होती है। कुत्ता एक बच्चे को झपट्टा मार काट खाता है, लेकिन महिला देखकर भी अनदेखा कर देती है। जैसे कुछ हुआ ही न हो। बच्चा दर्द से कराहता रहता है, लेकिन निर्दयी महिला की इंसानियत नहीं जागती। वह तो बस तब तक चुपचाप लिफ्ट में खड़ी रहती है, जब तक उसका फ्लोर नहीं आ जाता। चौथी क्लास में पढ़ रहा यह बच्चा ट्यूशन से भूखा-प्यासा लिफ्ट से अपने फ्लैट लौट रहा था। जैसे ही उसे खूंखार कुत्ते ने काटा तो वह दर्द के मारे हाथ-पैर पटकने लगा। उसके लिए खड़े रहना मुश्किल हो गय। वीडियो में स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि कुत्ते के काटने से घायल हुए बच्चे को संभालने की बजाय महिला अपनी अकड़ और मस्ती में गुम है। उसके चेहरे से जो अहंकार टपक रहा है, वो उसके नारीत्व की गरिमा के पतन की दास्तान कह रहा है...।
    झारखंड की बीजेपी की अच्छी-खासी रंगदार नेत्री रहीं हैं सीमा पात्रा। पतिदेव भी पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे हैं। अमूमन नेता और नेत्रियां अनपढ़ होते हैं, लेकिन सीमा पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन घमंड ने उसे जाहिल, गंवार से भी बदतर बना दिया है। उनकी नजर में गरीब की औकात शुन्य भी नहीं। सच का साथ देने वाले अपने ही बेटे को पागलखाने भिजवा चुकी सीमा पात्रा को अपने घर की आदिवासी नौकरानी का रहन-सहन तथा चेहरा-मोहरा पसंद नहीं था। वह जैसा चाहती थी नौकरानी सुनीता खाखा वैसा कर नहीं पाती थी। होना तो यह चाहिए था कि असंतुष्ट मालकिन नौकरानी की छुट्टी कर देती, लेकिन उसने तो हिंसक पशु की तरह उस पर जुल्म ढाने प्रारंभ कर दिए। उसे गरम सलाखों से जगह-जगह दागा गया। खाना-पीना तक बंद कर घर के अंधेरे कमरे में कैद करके रखने की दुष्टता के साथ-साथ बेहोश होने तक उसकी पिटायी तथा जीभ से मैला-कुचैला फर्श चटवाया गया। एक दिन तो डंडे से पीटते-पीटते उसके दांत तक तोड़ डाले। सीमा के बेटे ने अपनी मां के जंगलीपन का विरोध जताया, तो पागलखाने जाने की सज़ा पायी। सीमा पात्रा के संवेदनशील बेटे के दोस्त ने यदि लाठी, डंडों और लोहे की रॉड से बार-बार लहूलुहान की जाती रही सुनीता को अस्पताल में नहीं पहुंचाया होता तो इस नेत्री की वहशी दरिंदगी उजागर ही नहीं हो पाती। कालांतर में हो सकता है कि वह पार्टी में कोई उच्च पद पाते हुए विधायक और सांसद भी बन जाती। ऐसे कई मुखौटेधारी चेहरे राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाये हुए हैं और अपनी मनमानी कर रहे हैं।  
    पूरे विश्व में प्रसिद्ध अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के निकट के बाजार में निहंगों ने एक युवक की किरपाण से काटकर हत्या कर दी। स्वर्ण मंदिर के पास एक अनजान युवक को तंबाखू का सेवन करते देख निहंग आग-बबूला हो गये और उसे मौत की सौगात दे दी। ध्यान रहे कि सिख समुदाय के बीच स्वभाव से आक्रमक और हथियार रखने वाले इस विशेष तबके के सिखों को निहंग सिख कहा जाता है। यौद्धा के रूप में भी इनकी विशेष पहचान रही है। युवक का नाम हरमनजीत सिंह है। अपना आपा खो चुके निहंगों ने स्वर्ण मंदिर के नजदीक नशा करने पर आपत्ति जतायी तो वाद-विवाद होने लगा। बात बढ़ती-बढ़ती हाथापाई तक जा पहुंची। युवक भी हट्टा-कट्टा था। उसके भारी पड़ने पर एक निहंग की पगड़ी भी उतर गई। फिर तो जैसे आग में पेट्रोल का छिड़काव हो गया। दहलाने वाले तलवारों के आतंकी हमले के बाद युवक छह घंटे तक सड़क किनारे पड़ा रहा। किसी राहगीर को उस पर रहम नहीं आया। अंतत: उसने वहीं पड़े-पड़े ही दम तोड़ दिया। यह हमारे आज के समाज का असली चेहरा है, जो देखकर भी अंधा बना रहना चाहता है। नाटक-नौटंकी करने में भी उसने महारत हासिल कर ली है। आंखें होने के बावजूद भी अंधे हुए लोगों को सचमुच के अंधों से इंसानियत का पाठ सीखने का वक्त आ गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित है काली बाड़ी चौक। इस चौराहे पर हमेशा भीड़ का सैलाब उमड़ता दिखायी देता है। इसी सैलाब में अक्सर दिख जाती हैं, एक दूसरे की मददगार वो तीन हिम्मती लड़कियां जो कॉलेज की छात्राएं हैं। इन तीनों के साथ कुदरत ने बड़ी बेइंसाफी की है। राधिका यादव जो हिस्ट्री में एमए कर रही है, वह तो पूरी तरह से नेत्रहीन है। राजनीति में एमए कर रही भूमिका को सिर्फ 20 प्रतिशत ही दिखता है। शुक्री डिग्री गर्ल्स कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा है उसकी भी दोनों आंखें अंधेरे की भेंट चढ़ चुकी हैं। तीनों नियमित साथ-साथ बस से काली बाड़ी चौक आती हैं और एक-दूसरे का हाथ थामे सड़क और चौराहा पार कर कॉलेज जाती हैं। उनके अपनत्व भरे जुड़ाव को देखकर अक्सर लोग उन्हें देखने के लिए खड़े हो जाते हैं। सवाल करने पर वे कहती हैं कि खून के रिश्ते ही सबकुछ नहीं होते। मन की आंखें अपने और बेगाने की पहचान कर लेती हैं। हम तीनों नेत्रहीन हैं, लेकिन कुदरत ने हमें एक-दूसरे से मिलाकर अटूट रिश्ते में बांध दिया है, जो इस जन्म में तो नहीं टूट सकता। हां, एक सच और जो हमारी समझ में आया है... वो है, इंसान के लिए आंखें ही सबकुछ नहीं होतीं। हमने भीड़ भरी इस दुनिया में बहुत से आंखों वाले ऐसे-ऐसे अंधे देखे हैं, जो दूसरों की मां-बहन की आबरू को लूटने के लिए हर मर्यादा को सूली पर लटका देते हैं। कई बार तो वासना के अंधेपन में अपनी बहू-बेटी तक को शिकार बनाने में भी संकोच नहीं करते।

Thursday, September 8, 2022

बदरंग बचपन और जवानी

    गुलाटी साहब पंद्रह दिन के बाद घर लौटे। उनका पालतू कुत्ता उन्हें देखते ही उनके इर्द-गिर्द घूमने और उनके पैरों को चाटने लगा। गुलाटी साहब ने देखा, कुते की आंखों से झर-झर आंसू छलक रहे थे। गुलाटी साहब ने उसे बड़े जोर से अपने गले से चिपटा लिया। जैसे उन्हीं का प्यारा-दुलारा बेटा हो। गुलाटी शहर के विख्यात कॉलेज में हिन्दी के व्याख्याता थेे। अपने छात्र-छात्राओं में खासे लोकप्रिय गुलाटी और उनकी पत्नी को उन्हीं के इकलौते कपूत ने गोलियों से भूनकर दर्दनाक मौत दे दी। यह खबर पढ़ते ही मुझे लगा किसी जालिम ने मेरे सीने का धड़कता दिल खींचकर बाहर निकाल लिया हो। मेरे हाथ-पैर सूखे पत्ते की तरह कांपने लगे। दिमाग कुछ भी सोचने के काबिल नहीं रहा। गुलाटी का नाबालिग बेटा शराब और गांजा के नशे की लती हो चुका था। मां-बाप समझा-समझा कर थकहार गये थे। पहले तो नशे के लिए घर के कीमती सामान बेचकर गांजा, शराब खरीदता था फिर यहां-वहां चोरी-चक्कारी करने लगा। सुबह-शाम हवाखोरी के लिए सैर पर निकलने वाली महिलाओं के गले की सोने की चेन उड़ाने के कारण जेल भी हो आया था। प्रोफेसर गुलाटी बेटे के कारण बदनामी के दंश झेलते-झेलते बीमार-बीमार से दिखने लगे थे। पत्नी ने तो बिस्तर ही पकड़ लिया था और अब यह शर्मनाक कांड जो हर किसी की जबान पर था...
गुलाटी ने जितना भी कमाया  और बनाया था, सब अपने बेटे के लिए ही तो जुटाया था। वे तो बस यही चाहते थे बेटा किसी तरह से सही राह पकड़ ले। उनके विरोधी तो उन्हीं को अपराधी और कसूरवार समझते थे। पीठ पीछे कहते नहीं थकते थे कि जो इंसान अपने इकलौते बेटे को सही संस्कार नहीं दे पाया उसका प्रोफेसर होना ढकोसला है। अगर उन्होंने बेटे पर शुरू से नज़र रखी होती तो बेटा कभी बेकाबू नहीं होता। अच्छे-बुरे हर मौके पर आलोचना करने का ठेका ले चुके लोगों को तो सदबुद्धि दे पाना ऊपर वाले के भी बस के बाहर है। मुझे पता है कि गुलाटी ने अपने बिगड़ैल बेटे को अच्छे विचारों से संस्कारित करने के लिए जी-जान से न जाने कितनी कोशिशें की थीं। यह बड़ी विचित्र विडंबना है कि गुलाटी जैसे विद्वान दुनिया को तो जीतने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अपने ही घर में अक्सर मात खा जाते हैं।
    देश के विशाल प्रदेश उत्तरप्रदेश के शहर गाजियाबाद के उस पिता पर क्या बीत रही होगी जिसके नाबालिग बेटे ने पढ़ने-लिखने की उम्र में खुद पर हत्यारा होने के कलंक का ठप्पा लगवा लिया है। हर माता-पिता अपनी संतान के अच्छे भविष्य के लिए सतत चिंतित रहते हैं, लेकिन आज के दौर के बच्चे तो कहां से कहां अंधे घोड़े की तरह दौड़े चले जा रहे हैं। दसवीं में पढ़ने वाले इस लड़के का पढ़ाई से ऐसा मन उचटा कि उसने किताबों से छुटकारा पाने के उपाय तलाशने प्रारंभ कर दिए। घर से स्कूल जाने के लिए निकलता लेकिन यहां-वहां भटकता रहता। उसे इस आवारागर्दी में ही मज़ा आने लगा था। महीने में मात्र पांच-सात दिन स्कूल जाते हुए अपने पिता की मेहनत की कमायी की बरबादी करता रहा। पिता को जब खबर लगी तो डांट पड़ी जो उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगी। फिर तो उसने जो काम किया उसे देख- सुनकर  सभी के रोंगटे खड़े हो गए। पढ़ाई के सिरदर्द से छुटकारा पाने के रास्ते तलाशते-तलाशते सोशल मीडिया से उसे पता चला जेल जाने पर पढ़ाई से छुटकारा हमेशा-हमेशा के लिए मिल सकता है। फिर तो उसके दिल-दिमाग में जेल जाने का भूत सवार हो गया, लेकिन उसके लिए कोई अपराध करना जरूरी थी। गूगल और अपराधियों को महिमामंडित करने वाले विभिन्न वीडियो से उसे प्रेरणा मिली कि किसी की हत्या कर दो तो जेल जाने से कोई नहीं रोक सकेगा। किसी कुत्ते-बिल्ली की हत्या कर तो जेल नहीं पहुंचा जा सकता था। इसके लिए तो किसी जीती-जागती इंसानी जान की कुर्बानी की जरूरत थी। शातिर लड़के ने अपने पड़ोस में रहने वाले तेरह साल के बच्चे से दोस्ती की। कुछ ही दिनों में उसने बच्चे को विश्वास दिला दिया कि वह उसका अच्छा दोस्त है। एक शाम वह घुमाने-फिराने और कुछ खिलाने के बहाने से उसे सुनसान इलाके में ले गया और वहीं अभ्यस्त हत्यारे की तरह गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने जब उसे दबोचा तो वह बस यही कहता रहा कि, मैं पढ़ना नहीं चाहता, मुझे जल्दी से जल्दी जेल भेज दो...। नाबालिग होने के कारण इस हत्यारे को जेल तो नहीं भेजा गया, लेकिन सुधारगृह में जरूर डाल दिया गया है।
    शिवकुमार धुर्वे उम्र 18 वर्ष। छह दिन में 4 निर्दोषों की हत्या कर सीरियल किलर का तमगा हासिल करने वाले इस किशोर की चाहत थी कि उसका किसी भी तरह से नाम हो। लोग उसकी चर्चा करें। उसका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाएं। पुलिसिया पूछताछ में उसने बताया कि एक फिल्म के किरदार रॉकीभाई ने उसे इस कदर रोमांचित किया कि उसने हत्या दर हत्या कर अपनी इच्छा पूरी करने के साथ-साथ मीडिया की भी भरपूर सुर्खियां पा लीं। धुर्वे ने हत्याएं करने का वही तरीका अपनाया जो फिल्मी किरदार ने अपनाया। वह रात को घूम-घूमकर देखता कि कौन थका-हारा चौकीदार अपनी ड्यूटी के बाद मधुर नींद की आगोश में है। मौका पाते ही वह सिर पर पत्थर मारकर उसकी निर्मम हत्या कर नये शिकार के लिए आगे निकल जाता। उसका इरादा तो पच्चीस-पचास को टपकाने का था, लेकिन 4 की हत्या के बाद वह पकड़ में आ गया। यह सीरियल किलर पढ़ा-लिखा तो नहीं लेकिन, स्मार्टफोन चलाने का उसे जबर्दस्त शौक रहा है। कई-कई घंटों तक अपराधों से संबंधित वीडियो देखना और मसालेदार खाना खाने के शौकीन इस और अन्य सभी नृशंस हत्यारों की गिनती इंसानों में तो कतई नहीं की जा सकती...।

Thursday, September 1, 2022

बोना और काटना

    सोचें, तो सोचते ही रह जाएं। देखें तो आंखें चुंधिया जाएं। मंज़र ही कुछ ऐसे हैं। आजादी के बाद के भारत के शीर्ष भ्रष्टाचारियों के इतिहास की जब कोई मोटी किताब लिखी जाएगी तब इस सदी के सबसे निर्लज्ज भ्रष्ट नेता लालू प्रसाद यादव का उल्लेख सबसे पहले होगा, जिसने बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए करोड़ों रुपये का पशुओं का चारा खा-पी डाला। भारत सरकार में रेल मंत्री रहते बेरोजगारों को रेलवे में नौकरी देने के बदले में उनके परिवारों की जमीनें अपने तथा अपने परिवार के सदस्यों के नाम करवा लीं। लालू ने बिहार का मुख्यमंत्री रहते शहाबुद्दीन जैसे कई गुंडे, बदमाश, हत्यारे पाले। उन्हें सत्ता का स्वाद चखाया। जब चारा घोटाले के चलते जेल जाने की नौबत आई तो अपनी अनपढ़, गंवार बीवी को बिहार की कुर्सी पर विराजमान करवा दिया, ताकि चारों तरफ से हो रही धन की बरसात अपने ही आंगन में होती रहे।
    पचास, सौ साल के बाद की पीढ़ी को घोर आश्चर्य होगा कि फिर भी इस चोर-डकैत का डंका बजता रहा। वह विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीतता रहा। उसके अंगूठा छाप बेटे भी विधानसभा का चुनाव जीतकर मंत्री बन गये। बेटी भी राज्यसभा की माननीय सांसद बन लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने में सफल होती रही। भ्रष्टाचारियों के सरगना लालू ने अरबों-खरबों की लूट अपने बेटों, बेटियों और पत्नी के सुरक्षित भविष्य के लिए जुटायी। उसके बेटे तो छाती तानकर कहते रहे कि हमें छापो...वापों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम बिहारी हैं, डरते थोड़े ही हैं। बिहार के वोटर हमारे साथ हैं तो फिर काहे की चिंता-फिक्र करना।
हरियाणा का खानदानी नेता ओमप्रकाश चौटाला भी बड़ी बेहयायी के साथ भ्रष्टाचार करता रहा। प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हजारों बेरोजगारों को सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनाने के ऐवज में मोटी रिश्वत लेने के आरोप में लालू की तरह यह भ्रष्टाचारी शैतान भी जेल हो आया, लेकिन फिर भी छाती तानी रही। उसकी औलादें भी हरियाणा की राजनीति की छाती पर बेखौफ होकर हुड़दंग मचाती रहीं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गयी। इस बेईमान को रांची के अनगड़ा में खनन लीज अपने नाम आवंटित करवाने में ज़रा भी शर्म नहीं आयी। हेमंत का एक से एक खतरनाक अपराधियों से याराना रहा है। उसके खास सहयोगी प्रेम प्रकाश के घर से दो एके-47 जब्त की गईं। इन अवैध हथियारों से कितने शत्रुओं को डराया और टपकाया गया होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। इसका बाप, शिबू सोरेन भी छंटा हुआ भ्रष्ट नेता रहा है। 1993 में इसने तथा इसके चार बिकाऊ सांसद साथियों ने नरसिम्हाराव की सरकार को बचाने के लिए लाखों रुपये की रिश्वत खायी थी। इसी भ्रष्टों के सरगना शिबू सोरेन के चहेतों ने कई वर्षों से अभियान चला रखा है कि, सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं को शिबू सोरेन की जीवनी पढ़ायी जाए। इसी तरह से बिहार में भी लालू परिवार के कई शुभचिंतक यही लालसा रखते हैं। ऐसे लोगों की सोच पर सोचकर गुस्सा आता है। इनका बस चले तो राष्ट्रद्रोही हत्यारे दाऊद इब्राहिम की जीवनी भी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आएं।
पश्चिमी बंगाल की तथाकथित शेरनी ममता बनर्जी के नाक के नीचे उसका सबसे करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी सैकड़ों करोड़ों की रिश्वतखोरी कर बेहिसाब संपत्तियों का अंबार खड़ा करता रहा, लेकिन ईमानदार मुख्यमंत्री को भनक तक नहीं लगी। बुढ़ापे में भी दिलकश खूबसूरत महिलाओं के साथ इश्कबाजी करते रहे भ्रष्टाचारी सम्राट के काले कारनामों की खबर सीबीआई तथा ईडी को लग गई, लेकिन ममता अनजान रहीं! जब पार्थ की जानेमन अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी के यहां से लगभग पचास करोड़ के कड़कते नोटों का जखीरा मिला तो देखने वाले भी हैरान रह गए। यह सारा काला धन स्कूलों में हुई शिक्षकों की नियुक्ति के बदले ऐंठा गया। ममता के प्रदेश में वर्ष 2014 और 2020 में शिक्षकों की भर्ती में बेखौफ होकर रिश्वतखोरी की गई थी। किसी भुक्तभोगी की शिकायत पर हाईकोर्ट ने इस शर्मनाक रिश्वतकांड की जांच कराने के आदेश सीबीआई को दिये थे। न जाने कितने होनहार योग्य प्रत्याशियों की प्रतिभा को लात मारकर उन्हें उनके हक से वंचित किया जाता रहा। ममता ने मजबूरन पार्थ से मंत्री की कुर्सी तो छीन ली, लेकिन उसके प्रति सहानुभूति में कोई कमी नहीं आयी। हरियाणा के जन्मजात चोर-डकैत ओम प्रकाश चौटाला की राह पर चलकर सरकारी स्कूलों में की गई शिक्षकों की नियुक्तियां करने वाला पार्थ पूरी तरह से अंधा बना रहा। जिन अपात्र हजारों लोगों को नौकरी दी उनकी जमीनें बिक गईं। हर भ्रष्टाचारी इसी भ्रम में रहता है कि उसका कुछ नहीं होगा, लेकिन जब कानून का डंडा चलता है तो होश ठिकाने आ जाते हैं, लेकिन कुछ निर्लज्ज ऐसे भी हैं, जिन्हें जेल जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कालांतर में अपने बाप की जुटायी काली माया से उनकी औलादें राजनीति में पैर जमाने में लग जाती हैं। काले धन की बदौलत चुनाव जीत कर मंत्री तक बन जाती हैं। इस हकीकत के एक नहीं, कई उदाहरण हमारे सामने हैं। धर्म और जातिवाद की बीमारी के शिकंजे में फंसे हम यानी वोटर अपने वाले के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं। जानते-समझते हैं कि सामने वाला हद दर्जे का लुटेरा और विश्वासघाती है फिर भी उसे वोट देने में देरी नहीं लगाते। लालू, शिबू सोरेन जैसे बेईमानों तथा उनके सड़कछाप बच्चों के चुनाव जीतते चले जाने की भी यही वजह है। लालू का नौवीं फेल नालायक जोकरनुमा बेटा बिहार का वनमंत्री बन वरिष्ठ आइएएस पर राजा-महाराजा की तरह हुक्म झाड़ता है और हम गदगद हो जाते हैं।