Thursday, July 28, 2022

लेनी है तो बस अपनी जान लो...

    संतरा नगरी नागपुर में स्थित है वर्धा रोड। यह सड़क अहिंसा के सच्चे पुजारी महात्मा गांधी की कर्मभूमि वर्धा तक ले जाती है। इसी सड़क के खापरी नाके पर भरी दोपहर लोगों ने एक मारुति 800 कार जलती देखी। देखने वालों का तो तन-बदन कांप गया। पूरे ज़िस्म के रोंगटे खड़े हो गए। तरह-तरह की अटकलें लगायी जाने लगीं। आजकल चलती कारों में अचानक आग लगना कोई नयी बात नहीं है। दमकल वाहन के घटनास्थल पर पहुंचते-पहुंचते कार पूरी तरह से आग की चपेट में आ चुकी थी। तब तक कार चालक की मौत हो चुकी थी। गंभीर रूप से झुलस चुकी महिला और युवक ने कार से उतर कर सड़क किनारे जमा हुए पानी में लेटकर अपने बदन की आग बुझायी। दोनों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया है। दूसरे दिन जब शहर के दैनिक अखबारों में कार के साथ पूरी तरह से जलने के बाद मौत के हवाले हुए पुरुष और किसी तरह से बचने में कामयाब रहे युवक और उसकी मां के बारे में खबरें छपीं तो यह कहानी सामने आयी। 63 वर्षीय रामराज भट कभी खुशहाल जिन्दगी जी रहे थे। शहर में स्थित एमआइर्डीसी परिसर में नट-बोल्ट बनाने का उसका कारखाना था, लेकिन कोविड काल में कारोबार पर जो गहरी चोट लगी उससे रामराज का मनोबल लस्त-पस्त हो गया। मस्तिष्क ने काम करना ही बंद कर दिया। धीरे-धीरे आर्थिक संकट ने ऐसा घेरा कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया। दरअसल रामराज व्यापारी तो था, लेकिन आसान राह पर चलने का आदी था। अपने कारखाने के लिए उसने किसी फाइनेंस कंपनी से 10-12 लाख का कर्जा ले रखा था। समय पर किस्तें नहीं भरने की वजह से जब कंपनी के तकादे के नुकीले तीर चलने शुरू हुए तो वह बुरी तरह से घबरा गया। दिन-रात इज्ज़त लुटने का भय सताने लगा। रामराज के बेटे नंदन ने इंजीनियरिंग की डिग्री तो ले ली थी, लेकिन नौकरी करने की बजाय आगे पढ़ना चाहता था। रामराज चाहता था कि बेटा तुरंत नौकरी का दामन थाम ले, जिससे उसकी आर्थिक दिक्कतें कम हो जाएं। रामराज उन लोगों में शामिल था, जो सोचते ज्यादा हैं, लेकिन समस्याओं से जूझते कम हैं। वक्त के बीतने के साथ-साथ उसे हर पल बस यही चिन्ता सताने लगी कि उसका आने वाला कल कैसा होगा। इस चक्कर मेें एक दिन वह बाज़ार गया और ज़हर की एक बोतल खरीद लाया। रामराज ने सोचा था कि वह पत्नी और बेटे को बड़ी आसानी से जहर पीकर मरने के लिए राजी कर लेगा, लेकिन जब पत्नी संगीता और बेटे नंदन को धोखे में रखते हुए उसने पेय पदार्थ पीने को कहा तो उन्होंने उसे नहीं पिया। शायद उन्हें संदेह हो गया था कि कोई न कोई गड़बड़ तो जरूर है। रामराज ने अपनी दूसरी योजना को साकार करने की तैयारी प्रारंभ कर दी। मंगलवार की दोपहर उसने पत्नी और बेटे से कहा कि बहुत दिन हो गये हैं, हम कहीं बाहर खाना खाने नहीं गये। आज मेरा छुट्टी मनाने का मन है। आप दोनों साथ होंगे तो बहुत मज़ा आयेगा। दोनों से रामराज की हालत छिपी नहीं थी। वे भी हर हाल में उसकी खुशी चाहते थे। तीनों किसी शानदार बड़े होटल में खाना खाने के लिए कार से निकल पड़े। कार रामराज ही चला रहे था। कुछ किमी की दूरी तय करने के बाद उसने लघुशंका के बहाने कार रोकी। फिर बड़ी सावधानी से पॉलिथीन के अंदर सुसाइड नोट को रखकर बाहर फेंक दिया। दोबारा कार में बैठने के कुछ पलों के बाद उसने पेट्रोल छिड़क कर कार में आग लगा दी। मां और बेटा किसी तरह से कार से उतर कर भागे, लेकिन वह नहीं बच पाया। पांच दिन बाद आग से बुरी तरह झुलसी उसकी पत्नी भी अस्पताल में इलाज के दौरान चल बसी। बेटा भी जन्मदाता की करनी पर आंसू बहाते-बहाते मां के देहावसान के दो दिन बाद इस दुनिया से रूख्सत हो गया।
    देश की राजधानी दिल्ली में 1 जुलाई, 2018 को एक ही घर में 11 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। मृतकों के हाथ-पैर बंधे थे और आंखों पर काली पट्टी बंधी थी। काला जादू, टोने-टोटके और मोक्ष पाने के चक्कर में हुई इन आत्महत्याओं के पीछे घर के मुखिया की बहुत बड़ी भूमिका थी। उन्होंने अपनी मां, पत्नी, बहन और बच्चों तथा खुद की बड़ी निर्दयतापूर्वक इस दुनिया से विदायी करवायी थी। महाराष्ट्र के सांगली जिले में भी एक ही परिवार के 9 सदस्यों के द्वारा ज़हर खाकर की गई खुदकुशी ने पूरे देश को चौंकाया था। घर के मुखिया के सुझाव और निर्देश पर ही यह मौत का रास्ता चुना गया। दरअसल, साहूकारों और बैंकों का कर्ज जीवन पर भारी पड़ गया। बीते साल मध्यप्रदेश के ग्वालियर से सटे एक गांव में स्थित एक घर में चार लाशें मिलने से सनसनी फैल गई। घर के मुखिया ने पहले तो पत्नी तथा दो साल की बेटी को जहर देकर मारा फिर बाद में अपने मासूम बेटे को फांसी पर लटकाने के बाद खुद भी आत्महत्या कर ली।
सामूहिक आत्महत्याओं का सिलसिला अनंत है। इन आत्महत्याओं में परिवार के मुखिया की जबरदस्ती, मनमानी और भारी दबाव का बहुत बड़ा हाथ स्पष्ट दिखाई देता है। खुद के साथ दूसरों की जान ले लेने वाले ये प्राणी नकारात्मक सोच से बाहर ही नहीं निकल पाते। तकलीफें तो लगभग हर इंसान के हिस्से में आती हैं, लेकिन सभी तो आत्मघाती राह नहीं चुनते जो नागपुर के रामराज ने चुनी। रामराज जैसे लोग बिना जोखिम उठाये हर खेल में जीतना चाहते हैं, जो कि संभव नहीं। ऐसे कायर भगौड़े किस्म के लोगों से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि असफलता और हार के असली जिम्मेदार तो तुम खुद ही हो। ऐसे में तुम्हें  यह हक किसने दे दिया कि तुम अपने सारे परिवार को ही मार डालने पर तुल जाओ। उन्हें खुदकुशी करने को विवश कर दो। माना कि पत्नी के साथ तुमने सात फेरे लिए हैं, लेकिन वो तुम्हारी गुलाम नहीं। बेटा भी तुम्हारी सम्पत्ति नहीं। उसे भी अपनी जिन्दगी जीने का पूरा हक है। मरना ही है तो तुम अकेले मरो। खुद को सही ठहराने का यह सरासर बचकाना बहाना है कि मेरे मरने के बाद मेरी पत्नी, बच्चे कहीं के नहीं रहेंगे। मेरे जाने के बाद कर्जदार उनका जीना हराम कर देंगे। सारा जमाना उन्हें नोच-नोच कर खा  जायेगा। अभी हाल ही में अमरावती की रहने वाली स्नेहल ने रेलगाड़ी के सामने कूदकर अपने जिस्म के परखच्चे उड़वा दिए। वह अपने पति के अत्याचारों से परेशान थी। उसके जुल्म सहते-सहते थक गई थी। उसका एक बेटा और बेटी है, जिन्हें अकेला छोड़कर वह इस जहां से चलती बनी। यह अत्यंत राहत और संतुष्टि की बात है कि उसने अपने बच्चों को बख्श दिया। वक्त के बीतने के बाद बच्चे सच जान जाएंगे। अपनी कायर जननी के प्रति सहानुभूति का भाव तो उनके मन में भी नहीं उपजेगा। कोई भी खुदकुशी प्रशंसा की हकदार नहीं होती। वो मां-बाप जो हमेशा बच्चों की चिंता में खुद को परेशान रखते हैं। सुकून की नींद नहीं ले पाते उन्हीं के लिए पेश हैं किसी कवि की लिखी यह पंक्तियां... 

वो खुद ही जान जाते हैं
बुलंदी आसमानों की
परिंदो को नहीं दी जाती
तालीम उड़ानों की।

Thursday, July 21, 2022

कुत्तों से सावधान!

    पंजाब में एक युवा विख्यात गायक की उनके दुश्मनों ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी। गमगीन माता-पिता, रिश्तेदारों के साथ-साथ उनके लाखों प्रशसकों ने आंसू बहाए और कई दिन तक शोक मनाया। जनप्रिय गायक को बड़ी निर्दयता से इस दुनिया से विदा कर दिये जाने से उनके पालतू कुत्ते ने भी अपनी सुध-बुध खो दी। उसने भी कई दिन तक खाना नहीं खाया। भूखा-प्यासा बस उस कुर्सी के इर्द-गिर्द मंडराता रहा जहां गायक बैठकर नये-नये गीत रचता और गाता था। कोरोना काल में जब अचानक हमारे मित्र अवध प्रकाश की मौत हुई तो उनके प्रिय पालतू कुत्ते ने मातम मनाने के मामले में इंसानों को मात दे दी थी। इंसानों की इस दुनिया में कुत्तों को इंसानों का सबसे वफादार साथी माना जाता है। कुत्तों की समझदारी और स्वामी भक्ति की कई ऐसी दास्तानें हैं जो उनके प्रति प्रेम की भावना जगाती और उपजाती हैं।
    एक जमाना था जब स्कूलों के आठवीं-दसवीं के छात्रों को गाय, हाथी, शेर हिरण आदि पर निबंध लिखने को कहा जाता था। इस नये दौर में उन्हें अपने घर के प्यारे-दुलारे कुत्ते पर अपने विचार व्यक्त करने को कहा जाता है। छात्र-छात्राएं भी बड़े ज्ञानी की तरह अपने पालतू डॉगी की शान में बहुत कुछ लिखने में देरी नहीं लगाते। जैसे...हमारा डॉगी तोे सारी दुनिया से निराला है। उसका सफेद रंग, चमकती आंखें और लोटपोट होने का तरीका हमारा ही नहीं, मेहमानों का भी दिल जीत लेता है। डैडी-मम्मी, दीदी और मैं अक्सर शाम को  उसे सैर कराने को निकलते हैं तो उसे देखने के लिए कई लोगों के कदम रुक जाते हैं। हमारा डॉगी मेरी ही तरह फुटबॉल खेलना पसंद करता है। जब हम शुरू-शुरू में उसे अपने घर लाये थे तब वह काफी कमजोर था, लेकिन हमने उसे मांस-मटन खिला-खिलाकर अत्यंत बलशाली बना दिया है। गली के आवारा कुत्ते भी अब उससे खौफ खाते हैं। वह जब सड़क पर चलता है तो वे उसके लिए रास्ता छोड़ देते हैं। हमारा दुलारा डॉगी किसी भी अनजान आदमी को घर में आते देख शेर की तरह गुर्राने लगता है। इसकी पहचानने और सूंघने की अपार क्षमता का जवाब नहीं। उसी के कारण हम सुरक्षा और बेफिक्री की नींद सोते हैं।’’
    अमेरिका के शोधकर्ताओं ने अपने विशेष सर्वे में पाया है कि जिन गली-मोहल्लों में ज्यादा कुत्ते होते हैं वहां अपराधी पैर रखने से घबराते हैं। डकैतियों तथा चोरियों में काफी कमी आ जाती है। ऐसे रहवासी इलाकों को सुरक्षित  माना जाता है जहां कुत्तों को पालने वालों की तादाद ज्यादा होती है। इसलिए कहा गया है कि अगर आप सुरक्षित पड़ोस चाहते हैं और किसी भी तरह की लूटपाट से बचना चाहते हैं तो ऐसा इलाका चुनें जहां बहुत सारे लोगों ने कुत्ते पाल रखे हों। यह भी सच है कि अमेरिका और भारत में बहुत फर्क है। कोई भी भुक्तभोगी बता देगा कि अपने यहां तो गली-मोहल्लों में सुबह-शाम आवारा घूमने वाले कुत्ते और उनके पिल्ले लोगों का जीना हाराम कर देते हैं। कब कोई पगलाया कुत्ता किसी बच्चे, बूढ़े और युवा को काट खाए और उसे इंजेक्शन लगवाने की नौबत आ जाए... कुछ कहा नहीं जा सकता। अबोध बच्चे-बच्चियों को आवारा कुत्ते के द्वारा घर में घुसकर नोच-नोच कर खा जाने की खबरें अक्सर हमारा दिल दहलाती रहती हैं। कई देशी और विदेशी नस्ल के ऐसे कुत्ते हैं जो शेर और चीते से भी खतरनाक हैं। जर्मन शेफर्ड ब्रीड के कुत्ते पुलिस के लिए बड़े काम के होते हैं। इनमें अपराधियों की गंध की शिनाख्त करने की अपार क्षमता होती है।  डाबरमैन पिन्सचर भी पुलिस के लिए खासा उपयोगी माना जाता है। इसकी खासियत है कि अजनबियों को देखते ही भड़क जाता है और मालिक पर नज़र पड़ते ही शांत हो जाता है। पिटबुल कुत्ते को बहुत खतरनाक माना जाता है। इसका वजन आमतौर पर 16 से 30 किलो के बीच होता है। दुनिया के कई देशों में इस नस्ल के कुत्ते को पालना मना है। गुस्सा आने पर ये किसी को नहीं छोड़ते। भले ही मालिक ही क्यों न हो। बीते वर्ष जयपुर में पिटबुल डॉग ने एक 11 साल के बच्चे के जिस्म को नोच-नोच कर बुरी तरह से जख्मी कर दिया था। इस वर्ष यानी 12 जुलाई, 2022 को एक पिटबुल ने तो कू्ररता की हर सीमा लांघते हुए देश और दुनिया में दहशत फैला दी। लखनऊ की अस्सी वर्षीय रिटायर टीचर सुशीला त्रिपाठी को अपने पिटबुल पर बहुत भरोसा था। वह उसे किसी इंसानी बच्चे जैसा मासूम मानते हुए उस पर अपना सारा स्नेह उंड़ेलती थीं। उनके बेटे ने घर की सुरक्षा के लिए दो कुत्तों को पाला था। जिसमें एक लैब्राडोर तो दूसरा वही पिटबुल डॉग, जिसे उस दिन उम्रदराज सुशीला बड़े भरोसे तथा इत्मीनान के साथ अपने ही घर की छत पर टहला रहीं थीं। इसी दौरान अचानक पिटबुल के गले की चैन खुल गई और उसने भूखे शेर की तरह उसने अपनी मालकिन पर हमला कर दिया। अत्यंत बलशाली बौखलाए कुत्ते ने अपनी पूरी ताकत लगाते हुए उन्हें जमीन पर गिराने में देरी नहीं लगायी और फिर उनके शरीर को नोचने-खाने लगा। सुशीला की चीख-पुकार सुनकर पड़ोसी ईपने-अपने घरों से बाहर आए तो उन्होंने देखा कि उनकी पड़ोसन खून से लथपथ जमीन पर गिरी पड़ी हैं और कुत्ता उनके शरीर के मांस को नोच-नोचकर खा रहा है। कुत्ते के चंगुल से बचाने के लिए बरसाए लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ और बड़े मज़े से इंसानी मांस खाता रहा। इतना ही नहीं उसने कमजोर मालकिन के लहुलूहान शरीर को खींचा और अंदर ले गया। खूंखार हो चुके पालतू डॉग ने उनकी अंतड़ी बाहर तक निकाल दी। शरीर के खून का कतरा-कतरा बह जाने के कारण अतत: मालकिन ने दम तोड़ दिया।
    घरों में किस नस्ल के कुत्ते पालने चाहिए इसकी जानकारी भी जानकर सुझाते रहते हैं। घर की रखवाली के लिए किन कुत्तों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए इसका पता बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। लैब्राडोर, बुलडॉग और डाबरमैन जैसे कुछ कुत्ते हैं जिन्हें वफादार माना जाता है। नये वातावरण में भी ये आसानी से ढल जाते हैं, लेकिन कई शौकीनों तथा रईसों ने जब से बिना किसी जानकारी के महंगे से महंगे कुत्ते पालने प्रारंभ कर दिये हैं तब से स्थिति बिगड़ी है। लोग तो बुलमास्टिफ जैसे कुत्ते को भी घर ले आते हैं। पचास से साठ किलो के पिटबुल जैसे दिखने वाले ये कुत्ते ट्रेनिंग के बाद ही घरों में लाये जाने चाहिए, लेकिन लोग कहां मानते हैं। वे तो बड़ी शान से अपने-अपने घरों के बड़े-बड़े ‘महाराजा’ गेट पर ‘‘कुत्ते से सावधान’’ का बोर्ड टंगवा कर अपनी छाती ताने रहते हैं। उनका हिंसक कुत्ता बाहर वालों को तो डराता ही है। फिर किसी दिन अचानक जब वह आपा खो देता है तो घर वालों पर भी झपटा मार ही देता है और जान भी ले लेता है जहां इंसानों का भरोसा नहीं वहां जानवरों से पता नहीं क्यों ज्यादा वफादारी की उम्मीद लगा ली जाती है। कुत्ता पालने की नासमझी में उन खूंखार कुत्तों को भी जंजीर से बांधकर रखा जाता है, जो बंधन तो बिलकुल पसंद नहीं करते, लेकिन ऊंचे लोग सोचते हैं कि जब हम इसे मांस-मटन खिला रहे हैं, अपने ही कमरे के खास बिस्तर पर सुलाकर अपने बच्चों की तरह दुलार-पुचकार रहे हैं तो वह हमेशा हमारा ही बना रहेगा, लेकिन ऐसा सदा होता नहीं है...।

Thursday, July 14, 2022

अब नहीं तो कब?

    2022 को किस रूप में याद रखा जाएगा? कितना... कितना उन्माद... हिंसा, भय और अशांति! जैसा चल रहा है, क्या वैसा ही चलता रहेगा? सत्ताधीश चुप हैं! देश में अशांति और अराजकता फैलाते आस्तीन के सांपों के होश कौन ठिकाने लगायेगा? विभिन्न धर्मों के अंगोछे, टोपी और भगवा, सफेद, काले, पीले चोलाधारी ऐसे ही अपनी जुबानों से ज़हर उगलते रहेंगे और आदमी ही आदमी से कब तक खौफ खाता रहेगा? और भी बहुतेरे सवाल हैं, जो नेताओं, सत्ताधीशों, समाजसेवकों और जागरूक जनता से जवाब मांग रहे हैं। रेतीले प्रदेश राजस्थान में आतंकियों ने एक सीधे-सादे दर्जी को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। अपने आकाओं के निर्देश पर नरसंहार करने वाले नराधमों ने हत्या का वीडियो बनाया, देश और दुनिया को दिखाया। इतना ही नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या तक की धमकी भी दे डाली। इतनी हिम्मत उन्होंने वहीं से पायी जहां से पहले भी धर्म के नाम पर खून-खराबा करने वाले जेहादी उन्मादी पाते चले आ रहे हैं। नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले अमरावती के दवा व्यापारी उमेश कोल्हे भी कट्टरपंथियों की खूनी हैवानियत से नहीं बच पाये। उनकी हत्या के लिए तो उन्हीं का एक दोस्त जिम्मेदार है। उसे जिगरी दोस्त (?) का नूपुर शर्मा के लिए समर्थन करना शूल की तरह चुभा और उसने खुद को आस्तीन का सांप साबित करते हुए आतंकियों के हाथों मित्र की हत्या करवा दी, जो उसकी सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था। उमेश ने युसूफ के बच्चों को स्कूल से लेकर बहन की शादी तक में खुले हाथ से आर्थिक मदद की थी। युसूफ ने उसी हमदर्द दोस्त की पीठ में खंजर घोंप कर मानवता को शर्मिंदा किया है। इस खौफनाक षडयंत्र ने हर किसी को सतर्क कर दिया है। अब तो लोग किसी दोस्त की सहायता करने से पहले हजार बार सोचेंगे...विचारेंगे। फिर वह आसिफ हो या आनंद। राम हो या रहीम। भरोसे का कत्ल करने वाले दरिंदे इधर भी हैं और उधर भी हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो चिंताग्रस्त करने वाले रक्तिम मंज़रों की झड़ी न लगी होती। कोई भी धार्मिक स्थल हो, वहां से आपसी सद्भाव और एकता के स्वर सतत गूंजने चाहिए। मंदिर, मस्जिद, दरगाह, चर्च, गुरुद्वारा आदि की स्थापना का एक ही उद्देश्य होता है, अमन, शांति, आपसी भाईचारा और मानव कल्याण, लेकिन इन दिनों कुछ इबादत के पवित्र स्थलों में अपवित्र आतंकी सोच वाले चेहरे घुसपैठ कर चुके हैं।
    अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, बौद्ध आदि सभी वाकिफ हैं। देश और विदेशों से हर धर्म के लोग अजमेर शरीफ दरगाह में जाकर सिर झुकाते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, चादर चढ़ाते हैं। खुले हाथों दान-दक्षिणा देने में कोई कमी नहीं करते। इसी अजमेर शरीफ को अपना ठिकाना बना चुके कुछ असामाजिक तत्व लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आते। अजमेर शरीफ के खादिम सलमान चिश्ती ने तो नूपुर शर्मा की गर्दन उड़ाने वाले को अपना मकान तक देने का ऐलान कर अपने अंदर छुपे, बैठे शैतान के दीदार करवा दिए। यह उसकी नीचता, कू्ररता और हैवानियत ही तो है, जिसके वशीभूत होकर वह सोशल मीडिया पर वायरल किये गए वीडियो में बकता नज़र आया कि, ‘‘वक्त पहले जैसा नहीं रहा, वरना वह बोलता नहीं, कसम है मुझे पैदा करने वाली मेरी मां की, मैं उसे सरेआम गोली मार देता, मुझे मेरे बच्चों की कसम, मैं उसे गोली मार देता और आज भी सीना ठोककर कहता हूं, जो भी नूपुर शर्मा की गर्दन लाएगा मैं उसे अपना घर दे दूंगा और रास्ते पर निकल जाऊंगा, ये वादा करता है सलमान।’’ धर्म  की बेहद नशीली अफीम चाट-चाटकर पगलाया यह शख्स कहीं से भी शरीफ आदमी नहीं लगता। उसके संगी-साथी भी जहरीली बोली बोलने में पीछे नहीं हैं।
    हिस्ट्रीशीटर सलमान को जब पुलिस ने दबोचा तब भी वह बड़ी बेशर्मी के साथ मुस्कुराता और खिलखिलाता नज़र आया। ऐसे दरिेंदे से नफरत करने की बजाय एक खाकी वर्दीधारी को उस पर रहम खाते और बचने के उपाय सुझाते देख लोग गुस्से की आग में धधक उठे। ‘‘यदि तुम यह कह दोगे कि मैंने शराब पी रखी थी उसी के नशे में अंट-शंट बक गया। वैसे मैं बहुत भला आदमी हूं। किसी की हत्या करने या करवाने की तो सोच भी नहीं सकता।’’ देशवासियों की भावनाओं को भड़काने के लिए इन दिनों एक से एक शैतानी सोचवाले चेहरे सामने आ रहे हैं। कनाडा में रह रही एक भारतीय नारी, मणिमेकलाई ने ‘काली’ नाम की फिल्म बनायी, जिसमें हिंदुओं की अराध्य देवी मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया है। ये खेली-खायी औरत जानती थी कि उसकी इस धूर्तता का पूरे भारत में विरोध होगा। फिर भी उसने हिंदुओं की आस्था पर जबर्दस्त प्रहार किया और खुद को सही ठहराने के लिए कई कुतर्क भी पेश कर दिए। शर्म और आक्रोश भरी हकीकत ये भी है कि हिंदू देवी-देवताओं का उपहास उड़ाने वालों के पक्ष में भी कुछ असली-नकली नेता, सांसद, विधायक, लेखक, संपादक, पत्रकार तक तुरंत खड़े हो जाते हैं। आतंकवादियों अपराधी तत्वों के साथ भी ऐसे लोगों को खड़ा देखा जाता है। पुलिस जब कट्टर आतंकियों को गोलियों से भूनती है तो उनकी आंखों से ऐसे आंसू टपकने लगते हैं, जैसे वे इनके करीबी रिश्तेदार हों। दुष्ट और ओछी राजनीति करते चले आ रहे स्वार्थी नेताओं ने ही इस देश का बेड़ा गर्क करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन्हीं की जहरीली सोच और साजिशों ने देश को अभूतपूर्व संकट के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इतिहास गवाह है कि, अपने देश के कुछ टुच्चे नेता सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं। गेंडे से भी अधिक मोटी चमड़ी वाले ये मतलबी अपने फायदे के लिए नीच से नीच हरकत कर सकते हैं। किसी का भी रक्त बहता देख सकते हैं। देश इन दिनों अग्निपरीक्षा से गुजर रहा है। साम्प्रदायिक सद्भाव को खत्म करने के बीज बोने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करना अत्यंत जरूरी है। कट्टर विचारधारा के हर शख्स से समाज को दूरियां बनानी होंगी। उन्हें अपने नजदीक भी नहीं आने देना होेगा। सरकार को भी मजबूर करना होगा कि उन पर भूलकर भी रहम न करे। उन्हें वोट देने के अधिकार से भी वंचित करने के साथ-साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जिससे वे किसी भी हालत में अपने दुष्कर्मों की सज़ा भुगतते नजर आएं। और हां...शासन की किसी भी योजना का फायदा भी उन्हें न मिलने पाए। देश को अब तो केवल और केवल राष्ट्रप्रेमी जनता ही बचा सकती है। अराजकता तो अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। जनता यदि अभी भी नहीं जागी तो हालात और भी बदतर होने तय हैं।

Thursday, July 7, 2022

देखी-अनदेखी

    एक 18 साल की लड़की ने खुशी-खुशी 61 साल के कब्र में पैर लटकाये उम्रदराज शख्स से शादी कर कहा कि जोड़े तो आसमान में बनते हैं। अपने दादा की उम्र के व्यक्ति को अपना शौहर बनाने वाली यह लड़की खुद को बड़ी खुशकिस्मत मानती है। उसे फख्र है कि उसका जीवनसाथी धनवान होने के साथ-साथ बड़े दिलवाला है, जो सभी के भले की सोचता है। वह ऐसा समाजसेवी है जो सपने में भी किसी का अहित होता नहीं देख सकता। कुछ लोगों ने तब उसके इस बेमेल रिश्ते के प्रति नाराजगी जतायी तो लड़की ने क्रोधित होते हुए कहा कि अपने शरीर पर मेरा पूरा-पूरा हक है। इसे मैं जिसे भी सौंपूं मेरी मर्जी। कई लड़कियां तो पेड़, बकरी, कुत्ते से शादी कर इठलाती फिरती हैं। मैंने तो शादी की है, जो मुझे कभी भी कोई तकलीफ नहीं होने देगा। उसके जाने के बाद उसका अपार धन मेरा ही होगा। भावुकता में आकर गरीब और फक्कड़ इंसान से ब्याह कर बाद में पछताने वाली मैंने कई लड़कियां देखी हैं। अपना नाम मैं उनमें दर्ज नहीं करवाना चाहती। मुझे तो जिंदगी के सभी मज़े लूटने हैं। उनके लिए यदि मुझे नब्बे साल के बुड्ढे के संग बंधना पड़ता तो भी कतई नहीं सकुचाती। सकुचायी और घबरायी तो वो लड़की भी नहीं, जिसने खुद से शादी कर धमाका कर दिया। इतना ही नहीं वह हनीमून का मज़ा लेने के लिए अकेले ही कहां-कहां घूमती-फिरती रही। अकेले रहने का फैसला उसका अपना था, लेकिन जिन्हें सवाल उठाने थे वे चुप नहीं बैठे। यह तो सरासर नाटक है। प्रसिद्धि पाने की बेहूदा नौटंकी। कुछ लोगों ने लीक से हटकर चलने वाली लड़की की भरपूर तारीफें कीं।
    मध्यप्रदेश के शहर रीवा के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाली 24 वर्षीय मास्टरनी फिज़ा हजारों मील दूर रह रहे एक पाकिस्तानी युवक को इस कदर अपना दिल दे बैठी कि वह सरहद पार जाने के लिए सीधे अटारी बॉर्डर पर पहुंच गई। सोशल मीडिया के जरिए पाकिस्तानी युवक दिलशाद से दिल लगाने वाली फिज़ा ने वीजा, पासपोर्ट के साथ-साथ अन्य सभी दस्तावेज भी बनवा लिए थे। यानी उसकी अपने प्रेमी से मिलने की मुकम्मल तैयारी थी। सोशल मीडिया पर ही दोनों प्रेमियों ने एक-दूसरे से निकाह करने की कसमें खा ली थीं। फिज़ा ने अपने इस प्यार के बारे में इशारों-इशारों में घरवालों को बता दिया था, लेकिन उनके लिए यह बचकाना सोच थी, जिसका साकार होना आसान नहीं था। उन्हें यह भी अंदाजा नहीं था कि बेटी ने तो पूरी तैयारी कर रखी है। एक दिन स्कूल जाने के लिए घर से निकली फिज़ा रात तक वापस नहीं लौटी तो सभी चिंता में पड़ गये। तीन-चार दिन तक यहां-वहां खोजने-तलाशने के बाद रीवा पुलिस स्टेशन में अपनी बेटी के गायब होने की शिकायत दर्ज करवा दी। पाकिस्तान जाने के लिए ट्रेन के जरिए अमृतसर पहुंची फिज़ा के वीजा और पासपोर्ट वैध थे, लेकिन एलओसी के चलते उसे नहीं जाने दिया और उसे उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। लड़कियों में इन दिनों कुछ नया करने का जुनून छाया हुआ है। वे शराब पीकर सड़कों पर हंगामा करने से परहेज नहीं करतीं। जिस्मानी रिश्ते बनाने में देरी नहीं लगातीं। नारी को लेकर कल भी तरह-तरह की बातें और सवाल गूंजते थे और आज भी वो इनके घेरे में है। कल जो नारी इज्जत पर बट्टा लगने की कल्पना कर घबरा जाया करती थी आज उसने परवाह करना छोड़ दिया है। जिन्हें जो कहना है, कहते रहें, लेकिन वो अपनी धुन में अपनी जिंदगी अपने ही अंदाज में जीने को आतुर है। उसके कदमों में बेड़ियां डालने की कोशिशें करने वाले सोच-सोचकर हैरान-परेशान हैं कि आधुनिक नारी के कदम कहां पर जाकर रुकेंगे। दरअसल, ऐसे लोगों के मन-मस्तिष्क में चालीस-पचास वर्ष पहले की भारतीय औरत की छवि बसी हुई है। वे नयी तस्वीर को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हैं। यही वजह है कि नारियों के प्रति पुरुषों की हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है। उत्तर प्रदेश के शहर शाहजहांपुर में नवविवाहित पति-पत्नी में शादी की पहली रात में ही जंग छिड़ गयी। पति सेक्स करने में असमर्थ था। दुल्हन ने फौरन पतिदेव को खरी-खोटी सुनाकर शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दिया। रात भर वह हाथ जोड़कर माफी मांगता रहा और फरियाद करता रहा कि वह उसकी इस कमजोरी के बारे में किसी को न बताए। यदि उसने मुंह खोला तो वह जीने लायक नहीं बचेगा। उसकी तो नाक ही कट जाएगी, लेकिन दुल्हन नहीं मानी। उसने सुबह होते ही अपनी सास और ननद को जैसे ही सारा सच बताया तो वे दोनों उसी को पीटने और कोसने लगीं। जिस शख्स ने शादी तय करवायी थी उसे भी लड़के के नपुंसक होने की जानकारी थी। ससुराल की प्रताड़ना झेलने की बजाय लड़की ने उसी दिन अपने माता-पिता को बुलवाया और उनके साथ चल दी। माता-पिता ने बड़े अरमानों के साथ 15 लाख रुपये शादी में खर्च किये थे। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके साथ इतनी भयानक धोखाधड़ी होने जा रही है। यह जानकर दिमाग के परखच्चे उड़ जाते हैं कि हर पति को कुंआरी दुल्हन चाहिए। भले ही वह हद दर्जें का अय्याश और चरित्रहीन क्यों न हो और कितनी वेश्याओं, कॉलगर्ल्स के साथ बिस्तरबाजी कर चुका हो। कल ही अखबार में पढ़ने में आया कि अब कई आज़ाद जिंदगी जीने की अभ्यस्त लड़कियां भी चालाकी के रास्ते पर चलते हुए वर्जिनिटी रिपेयर सर्जरी करवाने लगी हैं। इससे वे बड़ी आसानी से सुहागरात की ‘परीक्षा’ में पास हो जाती हैं। इस इक्कीसवीं सदी में भी सुहागरात पर संबंध बनाते समय दुल्हन को वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरना पड़ता है। संभोग के दौरान चादर पर खून के धब्बे नहीं दिखने पर दुल्हन बनी युवती को चरित्रहीन करार दे दिया जाता है। अभी हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली की एक नवविवाहिता को लड़के वालों ने इसलिए अपने घर से बाहर कर दिया, क्योंकि बिस्तर पर जो सफेद चादर बिछायी गई थी, वह वैसी की वैसी थी। उस पर खून के धब्बे थे ही नहीं। अपवित्र दुल्हन को धक्के मारकर घर से बाहर करना ही उन्हें एकमात्र रास्ता नज़र आया। अपने पति के साथ संबंध बनाते समय रक्त के नहीं निकलने के और भी कई कारण हो सकते हैं। इस पर किंचित भी सोचना-विचारना जरूरी नहीं समझा गया।