Thursday, February 23, 2017

मर्यादाहीन महारथी

यह उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों का नज़ारा है। यहां कभी मंदिर-मस्जिद की बात होती थी, अब श्मशान और कब्रिस्तान छाये हैं। मर्यादाओं को तिलांजलि दी जा चुकी है। छींटाकशी और जुमलेबाजी में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। छोटे-बडे का भी ख्याल नहीं रहा। येन-केन-प्रकारेण विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने की तो जैसे प्रतिस्पर्धा-सी चल रही है। वाकई यूपी के विधानसभा चुनाव को वर्षों तक याद रखा जाएगा...। राजनीति के मैदान पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का चलन बडा पुराना है, लेकिन इस बार चलाये जा रहे नुकीले जुबानी तीर कभी न भरने वाले जख्म देते प्रतीत हो रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के बारे में यह आम राय बन चुकी है कि वे गजब की धन प्रेमी हैं। दलितों की राजनीति ने उन्हें मालामाल कर दिया है। धन लेकर वे चुनावी टिकट थमाती हैं। उनकी इस कलाकारी ने उनके पूरे परिवार को अपार धनपति बनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान बसपा पर निशाना साधते हुए कहा कि अब तो इस पार्टी का नाम ही बदल गया है। अब यह बहुजन समाज पार्टी नहीं बल्कि 'बहन जी संपत्ति पार्टी' बनकर रह गई है। मोदी के इस सर्वविदित कथन को सुनते ही बहन जी की बौखलाहट इन शब्दों में सामने आयी: नरेंद्र दामोदरदास मोदी नाम के असली मायने हैं, नेगेटिव दलित मैन। भारत वर्ष के प्रधानमंत्री मोदी दलित विरोधी हैं। वे दलितों के हितों के पक्षधर नहीं हैं। उन्हें दलितों के पक्ष में आवाज उठाने वाले लोग भी रास नहीं आते। बहन जी ने यह भी फरमाया कि उन्होंने दलितों के आर्थिक सहयोग की बदौलत अपनी पार्टी की मजबूत नींव रखी है। प्रधानमंत्री मोदी को बहुजन समाज पार्टी की तरक्की हजम नहीं हो रही है। दलित की बेटी हेलीकॉप्टर में घूमें उन्हें यह अच्छा नहीं लगता। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं है कि बसपा एक राजनीतिक दल बाद में है, एक आंदोलन पहले है। बसपा सुप्रीमो यह बताना भी नहीं भूलीं कि उन्होंने दलितों, शोषितों, अल्पसंख्यकों और वंचितों के जीवन में बदलाव लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। मोदी ने तो शादी करने के बाद पत्नी का त्याग कर दिया, लेकिन मैंने तो शादी ही नहीं की। यूपी में ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के कमजोर तबके के लोग उन्हें देवी मानते हैं, जो उनका उद्धार कर सकती है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की देश के शालीन राजनेताओं में गिनती की जाती है। इसमें दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री को हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलने में महारत हासिल है। चुनावी मौसम में लगभग सभी दल और राजनेता जाति-धर्म का ढोल पीटते हैं। पीएम ने फतेहपुर रैली में यह कहा कि धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए। रमजान में अगर बिजली रहती है तो दिवाली में पर भी बिजली रहनी चाहिए। मोदी के इस बयान ने अखिलेश के तन-बदन को झुलसा दिया। उन्होंने फौरन शालीनता की सीमाएं लांघ डालीं। ऐसा लगा कि जैसे वे घोर अभद्रता का दामन थामते-थामते किसी तरह से रूक तो गए, लेकिन उनकी इस प्रतिक्रिया ने उनके अंदर के कुटिल नेता का असली चेहरा दिखा दिया : गुजरात में तो गधों को भी विज्ञापित किया जा रहा है। मैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से अपील करता हूं कि गुजरात के गधों का प्रचार करना बंद करें। गुजरात वाले टीवी पर गधों का प्रचार कराते हैं और उत्तरप्रदेश में आकर श्मशान और कब्रिस्तान की बात करते हैं। गौरतलब है कि अखिलेश ने गधों के जिस विज्ञापन पर निशाना साधा है वह गुजरात पर्यटन विभाग के द्वारा निर्मित है, जिसमें अभिनेता अमिताभ बच्चन पर्यटकों से आग्रह करते नजर आते हैं कि वे गुजरात के कच्छ स्थित रण में आएं और जंगली गधों के अभ्यारण्य का लुत्फ उठाएं। स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि पांच वर्ष तक उत्तरप्रदेश के शासक की भूमिका निभाने के बाद अखिलेश में भी सत्ता के घोर भूखे नेताओं वाले गुण-अवगुण घर कर चुके हैं। देखकर भी अनदेखा करने की कला में उन्होंने महारत हासिल कर ली है। अमेठी से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हैं गायत्री प्रजापति। अखिलेश सरकार के इस मंत्री पर एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी पुलिस ने इस महान समाजवादी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। प्रजापति के चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश ने अच्छी-खासी नौटंकी की। उन्होंने तब कहीं जाकर चुनाव प्रचार मंच पर पांव रखा जब प्रजापति वहां से चलते कर दिए गये। ऐसे पहुंचे हुए नेता को समाजवादी पार्टी की टिकट देने के पीछे कारण सुनने में आया है कि वे 'कमाऊ' होने के साथ-साथ चुनाव जीतने की जबर्दस्त क्षमता रखते हैं। प्रजापति ने जब २००२ में पहली बार विधानसभा का चुनाव लडा था तब उसने अपनी कुल संपत्ति ९१ हजार बताई थी। दस वर्ष बाद अमेटी में पर्चा भरते समय २०१२ में अपनी कुल संपत्ति तीन लाख ७१ हजार बताई थी, लेकिन अब उनकी संपत्ति दो लाख १२ हजार करोड की हो चुकी है। इतनी इफरात कमायी तो किसी एक नंबर के धंधे में तो नहीं, काली राजनीति में ही संभव है। बताया यह भी जाता है कि प्रजापति, मुलायम सिंह का दुलारा है। उन्हीं की जिद के चलते ही भ्रष्टाचारी प्रजापति को मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल किया गया था। यह तो हो नहीं सकता कि अखिलेश को पता ही न हो कि उनके मंत्री प्रजापति ने कौन से 'समाजवाद के रास्ते' पर चलकर एकाएक इतनी दौलत जमा कर ली है। इस देश में बडा से बडा बेइमान नेता भी खुद को ईमानदार और परोपकारी ही बताता है। भ्रष्टाचार के कीर्तिमान रचने वाले लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, तामिलनाडु की मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गई शशिकला जैसे तमाम काले चेहरे खुद को ईमानदार जनसेवक घोषित करते नहीं थकते। उन्हें हमेशा यही लगता रहता है कि जनता बेवकूफ और भुलक्कड है।

Thursday, February 16, 2017

अब क्या कहें?

विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों और प्रधानाध्यापिकाओं के पद की एक गरिमा होती है। मस्तक खुद-ब-खुद झुक जाते हैं। शिक्षक यानी गुरु को साक्षात भगवान का दर्जा यूं ही नहीं दिया गया है। यही शिक्षक जब अपने पद की गरिमा को मिट्टी में मिलाने पर तुल जाएं तो यह कहने को विवश होना पडता है शिक्षा- मंदिर के भगवान शैतान हो गए हैं। इन्होंने मान-सम्मान पाने का हक खो दिया है। अनपरा (सोनभद्र) स्थित बालिका महाविद्यालय की प्रधानाध्यापिका ने होमवर्क न पूरा करने पर छात्राओं को स्कर्ट उतारकर पूरे स्कूल में चक्कर काटने का फरमान सुना दिया। गुरु की गरिमा को तहस-नहस करके रख देने वाली इस प्रिंसिपल ने छात्राओं के स्कर्ट उतरवाने के साथ-साथ उन्हें मुर्गा बनाकर सातवें आसमान पर पहुंचे अपने गुस्से का अभद्र प्रदर्शन कर दर्शा दिया कि शिक्षा के क्षेत्र में अमर्यादित महिलाएं भी प्रवेश कर चुकी हैं। पुरुषों की तरह उन्हें भी शिक्षा के क्षेत्र की अहमियत का ज्ञान नहीं है। दरअसल, वे इस पवित्र क्षेत्र के लायक ही नहीं हैं। छात्राओं ने घर पहुंचकर अपने माता-पिता को प्रिंसिपल की दरिंदगी के बारे में बताया तो वे सन्न रह गए। उन्होंने इस बददिमाग प्रधानाध्यापिका को खूब खरी-खोटी सुनायीं।
इसी तरह से राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में एक शिक्षक की काली करतूत उजागर हुई। यह शिक्षक ट्यूशन पढने आने वाले बच्चों के साथ कुकर्म कर कमीनगी की सभी हदें पार करने में मशगूल रहता था। छब्बीस वर्षीय रमीज नामक इस हैवान ने ११ बच्चों के साथ कुकर्म की वारदातें कबूली हैं। वह बच्चों को डरा-धमकाकर दूसरे बच्चों से की जाने वाली हरकतों की वीडियो क्लिपिंग तैयार करवाता था। अब तक पांच से पंद्रह साल तक के बच्चों की ७६ क्लिपिंग सामने आ चुकी हैं। बच्चों के परिजन जब पुलिस के पास पहुंचे तो उन्हें डांट-डपटकर भगा दिया गया। स्कूल प्रशासन ने भी मामले को दबाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। बाबुलगांव तहसील के नांदुरा खुर्द स्थित जिला परिषद की प्राथमिक शाला की पांच छात्राएं अपने ही गुरु की अंधी वासना की शिकार हो गर्इं। इस शाला में कक्षा एक से चार तक की कक्षाएं हैं। यहां पर दो शिक्षक कार्यरत थे। हवस का पुजारी शिक्षक रमेश तुमाने मुख्याध्यापक तथा शिक्षक के तौर पर कार्यरत था। तुमाने छात्राओं को फांसने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाता था। छात्राएं जब गणित का गलत जवाब देतीं तो वह उन्हें शाला के एक कमरे में ले जाता और फिर उनसे अश्लील हरकतें करने लगता था। एक पीडित बालिका ने अपनी मां को आपबीती बतायी तो नराधम शिक्षक के दुराचार का पर्दाफाश हो गया। जिन छात्राओं ने भय के कारण पहले अपना मुंह बंद कर रखा था उन्होंने भी अपने साथ की गयी घिनौनी हरकतों का पूरा ब्यौरा पेश कर दिया। अभिभावक और ग्रामवासी गुस्से से इस कदर तिलमिला उठे कि अगर उनको रोका नहीं जाता तो वे अय्याश शिक्षक की हत्या तक कर देते। गुस्से की आग में जलती भीड ने उसे तब तक शाला के कमरे में कैद रखा जब तक पुलिस और तहसीलदार वहां नहीं पहुंचे। उन्होंने बदजात शिक्षक को कडी से कडी सज़ा दिलवाने का आश्वासन दिया। कुकर्मी तुमाने ने तो अपना जुर्म स्वीकार कर लिया... लेकिन गांव के लोगों का रोष और उनके चेहरों पर खिंची तनाव की गहरी लकीरें इतनी आसानी से नहीं मिटने वालीं। अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजते हैं। वे कभी सपने में भी नहीं सोच सकते कि स्कूलों में ऐसे व्याभिचारी लोग हो सकते हैं।
वर्ष २०१६ के मार्च महीने में इसी तरह से राजधानी के एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल को कक्षा आठवीं में पढने वाली एक छात्रा के साथ छेडछाड करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गुस्साए माता-पिता और स्थानीय लोगों ने प्रिंसिपल की जूतों और चप्पलों से ऐसी पिटायी की थी कि वे बेहोश हो गए थे। सन २०१५ के सितंबर माह में गोवा के एक प्रमुख कॉलेज के प्रिंसिपल की छात्राओं की खूबसूरती पर नीयत डोल गयी। लडकियों को फांसने के लिए प्रिंसिपल ने उन्हे शराब पीने के लिए उकसाया और जब उन पर नशा हावी हो गया तो वह उनके शरीर से खेलने लगा। बाद में छात्र-छात्राओं ने प्रिंसिपल की वो ठुकायी की, कि उन्हें गोवा छोडने को मजबूर होना पडा। दिल्ली की ही एक स्कूल की पैंतीस वर्षीय शिक्षिका अपने सोलह वर्षीय छात्र को पढाते-पढाते उस पर मोहित हो गई। वासना की आग में अपने विवेक को तिलांजलि दे चुकी शिक्षिका ऐन वेलेनटाइन डे की शाम छात्र के साथ भाग खडी हुई। यह स्तब्ध कर देने वाली खबर अखबारों और खबरिया चैनलों में छा गई। शिक्षिका के पति ने माथा पीट लिया। किसी तरह से दोनों को ढूंढ निकाला गया। शिक्षिका छात्र को छोडने को तैयार ही नहीं थी। लोगों के बहुतेरा समझाने-धमकाने के बाद ही उसकी अक्ल ठिकाने आई। स्कूल, कॉलेजों में ऐसी कई घटनाएं होती रहती हैं जिनसे शिक्षा जगत बदनाम होता है। लोग लाख कोसते रहें, लेकिन शिक्षकों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। शिक्षा के मंदिरों में शिक्षकों की नियुक्ति करते समय उनके चरित्र की अनदेखी किये जाने का ही यह परिणाम है। दरअसल इस क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार ने अपने पांव पसार लिए हैं इसलिए 'दक्षिणा' की बदौलत बदचलन चेहरों की भी चांदी हो गई है।

Thursday, February 9, 2017

जुमलेबाजों का तमाशा

देश का ऐसा कौन-सा प्रदेश है जहां शराब और अन्य नशे के सामान नहीं मिलते। शासन और प्रशासन को भी पूरी खबर रहती है, लेकिन अनदेखी का दस्तूर निभाया जाता है। देश के जिन प्रदेशों में शराब बंदी है वहां पर भी शराब आसानी से उपलब्ध हो जाती है। गुजरात इसका जीता-जागता प्रमाण है। इतिहास गवाह है कि जिन प्रदेशों में नशाबंदी के प्रयोग किये गए वहां पर सफलता नहीं मिल पायी। पूरी तरह से सफलता मिल पाना मुमकिन भी नहीं है। शराब के बारे में तो यह बात दावे के साथ की जा सकती है। कौन नहीं जानता कि नशा पंजाब की जवानी को दीमक की तरह खा रहा है। गांवों से लेकर शहरों के डिस्कोथेक और क्लबों तक हर जगह नशीले पदार्थ उपलब्ध हैं। पुलिस ने बीते कुछ वर्षों में अरबों रुपयों की ड्रग पकडी। कई गिरोहों का पर्दाफाश किया। आजकल चुनाव के समय सभी विपक्षी पार्टियां नशे के मुद्दे को भुनाने में लग जाती हैं। सच यह भी कि जब उनकी सत्ता आती है, तब भी नशे का कारोबार सतत चलता रहता है। जितनी जांचें होती हैं उनमें से अधिकांश में कहीं न कहीं सत्ताधारी नेताओं की भागीदारी सामने आती है, लेकिन होता-जाता कुछ नहीं। पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में नशे का मुद्दा छाया रहा। प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया कि एक राज्य जो कभी गेहूं का कटोरा माना जाता था, नशा करने वालो का राज्य बन गया? दूध और लस्सी पीने वाले शराब के शौकीन हो गए? जानकार बताते हैं कि पंजाब में आतंकवाद के ठंडे पडने के बाद अचल सम्पत्तियों की कीमतों में भारी उछाल आया। अनेक लोग जमीनें बेचकर रातों-रात लखपति-करोडपति बन गए। जमीन बेचकर अमीर बने खेतों के मालिकों ने बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से मजदूर बुलाने शुरू कर दिए। उनसे काम लिया जाने लगा। युवाओं के पास कोई काम-धाम नहीं रहा। कहावत भी है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। युवा नशे की ओर आकर्षित होने लगे। धीरे-धीरे हालात कुछ ऐसे बने कि शराब तो शराब, अफीम और हेरोइन भी युवाओं की साथी बनती चलती गई। एक सच यह भी है आतंकवाद के दौरान आतंकवादियों की वजह से भी पंजाब में नशाखोरी बढी। युवाओं में असमंजस की स्थिति बन गयी थी और आतंकवादी गिरोह हथियार खरीदने के लिए नशे के सामानों को बाजार में फैलाकर धन जुटाने लगे थे। उसी दौर में पडोसी देश पाकिस्तान से इफरात ड्रग्स आने का सिलसिला शुरू हो गया। पंजाब के एक पत्रकार ने कुछ वर्ष पूर्व इस लेखक को बताया था कि पंजाब के कई गांव नशे की भेंट चढ चुके हैं। उन्हीं गांवों में से है एक गांव मकबूलपूरा जो अमृतसर के निकट स्थित है। इस गांव को विधवाओं और अनाथों के गांव के रूप में पहचाना जाता है। यहा पर लगभग हर घर में से किसी न किसी परिवार के सदस्य को मादक पदार्थों की लत के कारण अपनी जान गंवानी पडी। इस गांव में १९९० में नशीले पदार्थों का चलन शुरु हुआ था और सन २००० तक तो ऐसे हालात बन गये कि शराब, सिंथेथिक दवाओं, अफीम इंजेक्शन, चरस, गांजा आदि नशों ने गांव वालों को अपना गुलाम बनाकर रख दिया। चौंकाने वाली सच्चाई यह भी थी कि स्कूली बच्चे भी नशेडी बन गए थे। हालांकि अब हालातों में काफी सुधार आता दिखायी दे रहा है। पंजाब में नशे की समस्या को काफी करीब से देखने वाले एक डॉक्टर बताते हैं कि धनलोलुपों को जैसे ही पता चला कि नशे के धंधे में बहुत बडा मुनाफा है तो वे विभिन्न नशीले पदार्थों को गांव-गांव पहुंचाने लगे। १९९१ में जब उन्होंने मनोरोग चिकित्सालय बनाया तब हर सप्ताह दो-चार नशे के मामलों से रूबरू होते थे, लेकिन कालांतर में इनकी संख्या कई गुणा बढती चली गयी। जब नशे के सौदागरों ने देखा कि ड्रग्स युवाओं की कमजोरी बन चुकी है तो उन्हें और नशे के गर्त में धकेलने के लिए एक नया फंडा अपनाया। जो स्मैक पहले प्रति ग्राम ४५० रुपये में बेची जाती थी, वही स्मैक २५० रुपये प्रति ग्राम के रेट पर बेची जाने लगी। आज पंजाब में कुछ ऐसे हालात बन चुके हैं कि जो नशेडी महंगी ड्रग्स नहीं खरीद सकते उनके लिए कई ऐसी दर्द निवारक दवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं जो भरपूर नशा देती हैं। नशे की लत ने पंजाब के कई हंसते-खेलते परिवारों को बरबाद करके रख दिया है। नशे के चक्कर में बर्बाद हुए कई लोगों को भीख का कटोरा थामना पडा। ऐसा तो हो नहीं सकता कि पंजाब के शासक और राजनेता इस चिंताजनक हकीकत से वाकिफ न रहे हों। यकीनन उन्हें हालात की पूरी खबर थी, लेकिन वे जानबूझकर चुप्पी साधे रहे। इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने मतदाताओं में शराब बांटने के लिए एक नया हथकंडा अपनाया। वोटरों को टोकन दिए गये जिनसे उन्होंने शराब की दुकानों से जमकर शराब हासिल की। कूपन या टोकन के माध्यम से शराब बंटने के खेल को देखकर चुनाव आयोग भी दंग रह गया! पंजाब के विभिन्न शहरों में भारी मात्रा में शराब की बरामदगी के बाद चुनाव आयोग को शराब के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने के आदेश देने पडे। इसी तरह से गोवा के विधानसभा चुनाव में कसीनो और ड्रग्स बडे सियासी मुद्दे बने रहे। गोवा एक ऐसा प्रदेश है जहां पर देश और विदेश से लाखों सैलानी पहुंचते हैं। शराब, बीयर और अन्य नशों के साथ-साथ कसीनो का आकर्षण भी उन्हें गोवा खींच लाता है। कसीनो यानी जुआघर भारत में आमतौर पर प्रतिबंधित है। लेकिन गोवा, दमन एवं दीव और सिक्किम में राज्य सरकारों की स्वीकृति से वर्षों से कसीनो चल रहे हैं। बीती सदी के अंतिम दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने गोवा में कसीनो की अनुमति पर्यटन को बढावा देने के लिए दी थी। वर्तमान में गोवा में डेढ दर्जन से ज्यादा कसीनो हैं। गोवा में कसीनो का व्यवसाय १२०० करोड रुपये सालाना का है। इसमें करीब दस हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है और विभिन्न करों के रूप में कारीब २०० करोड रुपये हर साल सरकार को प्राप्त होते हैं, जो खनन और पर्यटन के बाद सरकार की आय का सबसे बडा जरिया है। देशी-विदेशी पर्यटकों की बडी संख्या तो गोवा में सिर्फ कसीनो का आनंद उठाने और दांव लगाने के लिए ही आती है। गोवा में मटका (एक तरह का जुआ-सट्टा) भी युवाओं की बरबादी का कारण बन चुका है। इसे तो कसीनो से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है। कसीनो में तो ज्यादातर रईस ही पहुंचते हैं, लेकिन मटका के चक्कर में तो गोवा के बहुतेरे युवा बर्बाद हो रहे हैं। इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कसीनो और नशे के कारोबार के खात्मे का ढोल पीटकर भाजपा को घेरने की भरपूर कोशिश की। भाजपा जब सत्ता में नहीं थी, तब उसने भी गोवा को हर तरह से सुधारने के वादे किये थे। इस चुनावी जुमलेबाजी का कभी अंत होने वाला नहीं है।

Thursday, February 2, 2017

कफन पर लिखी पीडा

लानत है इन नेताओं पर जो हमेशा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खात्मे का ढोल पीटते हैं और चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त सामान देने का रिश्वती जाल फेंकते हैं। उत्तरप्रदेश में मुलायम के बागी पुत्र अखिलेश ने अपने समाजवादी घोषणा पत्र में फिर से उनकी सरकार बनने पर स्कूल जाने वाले हर बच्चे को एक किलो देसी घी और महिलाओं को प्रेशर कुकर देने का वादा किया है। पिछली बार भी अखिलेश ऐसे ही मुफ्तखोरी के वादे कर सत्ता पाने में कामयाब हुए थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कितने छात्रों को लैपटाप के लालीपाप बांटे यह तो शोध का विषय है, क्योंकि शासक जितना करते है उसका हजार गुणा ज्यादा ढिंढोरा पीटते हैं। वोट हासिल करने के लिए नेताओं का मतदाताओं को रिश्वत देने का तरीका बदल चुका है। पहले कैश, कंबल, साडियां और शराब छुप-छिपा कर बांटी जाती थी, अब डंके की चोट पर प्रलोभन दिया जा रहा है। अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में यह लोग इस अंदाज से मतदाताओं को लुभाने का अभियान चला रहे हैं जैसे अपना घर लुटाने की तैयारी कर चुके हों। सत्ता में आने के बाद बडी बेदर्दी से सरकारी धन लुटा कर अपने चुनावी वायदे पूरे करने का नाटक करने वाले इस देश के नेताओं के असली चरित्र को समझना कोई टेढी खीर तो नहीं है। सच सभी के सामने है।
लगभग सभी राजनीतिक दल और उनके कर्ताधर्ता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वोटरों को ललचाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तत्पर रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी को देश की स्वाभिमानी और गरिमामय पार्टी माना जाता है। इस पार्टी ने भी पंजाब में दोबारा सत्ता में आने पर नीले राशन कार्ड धारकों को २५ रुपये प्रति किलो की दर से देसी घी देने का वादा किया है। गौरतलब है कि पंजाब में भाजपा और अकाली दल का गठजोड है। अकाली दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में हर गांव में मुफ्त वाई-फाई और क्लोज सर्किट टीवी देने की घोषणा कर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए धर्म संकट खडा कर दिया है। वैसे इन दोनों पार्टियों का दावा है कि यदि मतदाताओं ने उन्हें मौका दिया तो वे पंजाब में जहां-तहां फैले नशे के कारोबार को खत्म करके ही दम लेंगी। आम आदमी पार्टी तो नशे के खिलाफ कुछ ज्यादा ही आवाज बुलंद कर रही है। वह सत्ता पर काबिज होते ही कांग्रेस और अकाली दल के ऐसे नेताओं को जेल में ठूंसने की बात कह रही है जो वर्षों से नशे के काले कारोबार में लिप्त हैं और उन्होंने पंजाब के लाखों-लाखों युवाओं को नशे की लत के हवाले कर दिया है। यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान खुद अक्खड शराबी हैं। संसद में नशे में टुन्न होकर जाने का उनका पुराना इतिहास है। चुनाव प्रचार के दौरान भी वे नशे में धुत होकर पार्टी का प्रचार करने के लिए जा पहुंचे, जहां उन्हें खुद को संभालना ही मुश्किल हो गया। चुनावी मंच पर उनके अनियंत्रित होने की तस्वीरें मीडिया में छायी रहीं। पंजाब में नशाखोरी की हकीकत से बच्चा-बच्चा वाकिफ है। प्रदेश में पिछले तीन दशकों से लगातार बढती यह समस्या अब बेकाबू हो चुकी है। राज्य में लगभग दस लाख लोग हेरोइन जैसी जानलेवा ड्रग के पूरी तरह से आदी हो चुके हैं। पंजाब के बुजुर्ग बताते हैं कि नशे की शुरुआत अफीम से हुई। तब लोगों को मुनाफा कमाने का यह आसान तरीका लगा। कई नेताओं ने नशे के कारोबार में सक्रिय भूमिका निभाकर अरबों-खरबों कमाये। पंजाब में नशाखोरी को सिर्फ बेरोजगारी और अशिक्षा से नहीं जो‹डा जा सकता। यहां नशे के आदी लोगों में ८९ फीसदी साक्षर या पढे लिखे लोग हैं और ८३ फीसदी के पास रोजगार है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि ड्रग के नाम पर महज चुनावी पतंग उडाई जा रही है या फिर राजनीतिक दलों और नेताओं के स्थायी समाधान तलाशने के भी कोई पुख्ता इरादे हैं? पंजाब में ऐसे कई पिता हैं जिन्होंने ड्रग्स के चलते अपने जवान बेटे खोये हैं। उन्हीं में से एक हैं मुख्तियार सिंह, जो इस चुनावी मौसम में ड्रग्स के खिलाफ प्रचार करते धूम रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बेटे के कफन पर अपना दुखडा लिखकर भेजा है। उनका बेटा मंजीत दिन-रात ड्रग्स लेता था जिससे उसकी मौत हो गई। ४६ वर्षीय मुख्तियार कहते हैं कि सत्ता के भूखे सभी नेता सब कुछ जानते हैं, लेकिन पंजाब के सुधार के लिए कुछ नहीं करते हैं। मैं एक ऐसा बदनसीब बाप हूं जिसे अपने जवान बेटे की लाश को श्मशान लेकर जाना पडा। नेताओं की कौम उनके दर्द को नहीं समझ सकती। मैं नहीं चाहता कि किसी अन्य बाप को अपना बेटा खोना पडे इसलिए ड्रग्स के खिलाफ लडते-लडते इस दुनिया से विदा होना चाहता हूं। ड्रग्स के खिलाफ जंग में उनकी पत्नी भी उनके साथ है। वे हर रोज सुबह से शाम तक ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए लोगों के बीच जाते है। यकीनन पंजाब के विधानसभा चुनाव प्रचार में नशे का मुद्दा उफान पर है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संदीप सिंह मन्ना पंजाब में नशे के बेपनाह चलन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए निम्न पंक्तियों को अपने भाषण के दौरान गाना नहीं भूलते,
"इक रोई सी धी (बेटी) पंजाब दी,
तू लिख-लिख मारे वैण।
आज्ज लखां धियां रोंदिया तैनू
वारिस शाह नू कैण।"
मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के द्वारा देश के विभाजन के दौरान लहुलूहान पंजाब की स्थिति पर लिखी गई इस कविता में पंजाब के मशहूर सूफी कवि वारिस शाह को उलाहना दिया गया है कि आज पंजाब की लाखों बेटियां रो रही हैं, तुम कहां हो? वैसे यह सवाल आज के राजनेताओं से भी है जो अपने स्वार्थ में इस कदर अंधे हो गये हैं कि उन्हें सत्ता के सिवाय और कुछ नहीं दिखायी देता! देश के गरीबों, दलितों, शोषितों और वंचितों को मुफ्त में गेहूं, दाल, चावल, घी आदि देने का वादा कर सत्ता पाने वाले नेता हमेशा 'दाता' बने रहना चाहते हैं और जनता को  सक्षम बनाने की बजाय 'पाता' यानी मुफ्तखोर बनाये रखना चाहते हैं। ध्यान रहे कि मुफ्तखोरी अच्छे-खासे इंसान को निकम्मा, आरामपरस्त और अपराधी बना देती है और ऐसे में ही 'खाली दिमाग शैतान का घर' की कहावत साकार होती है। शैतानों को व्यसनी और व्याभिचारी बनने में भी देरी नहीं लगती।