Thursday, June 28, 2018

लापरवाही, भूल और अपराध

शहर अपराध के घने जंगल बनते जा रहे हैं जहां अपराधी अपना काम करके बडी आसानी से गुम हो जाते हैं। हत्या, अपहरण, डकैती, लूटपाट और बलात्कार जैसी संगीन घटनाएं नगरों और महानगरों की पहचान बन चुकी हैं। एक जमाना था जब अपराधी पुलिस से खौफ खाते थे, लेकिन आज जिस तरह से सरेआम सडकों पर गोलियां चलती हैं, हत्याएं कर दी जाती हैं उससे यह मानने में कोई हर्ज नहीं कि अपराधी खुद को खाकी वर्दी से ज्यादा ताकतवर समझने लगे हैं। अपनों और बेगानों की पहचान करना बेहद मुश्किल हो गया है। रिश्तों को स्वार्थ के हाथों बिकने में देरी नहीं लगती। दोस्ती, भरोसा और जान-पहचान कब आफत बन जाए कहा नहीं जा सकता। १० जून २०१८ की रात नागपुर में एक राक्षस प्रवृत्ति के अपराधी ने अपने चार साल के बेटे, बहन, जीजा उनकी बेटी और बहन की सास को गाजर-मूली की तरह काट डाला। यह नृशंस हत्यारा मन की शांति और बुरी आत्माओं से दूरी बनाये रखने के लिए शहर के एक मंदिर में देर रात तक बैठकर पूजा-पाठ किया करता था। उसने अपने एक हाथ पर काली मां तो दूसरे हाथ पर खुद का नाम गुदा रखा है। नागपुर शहर ने ऐसा नरसंहार पहले कभी नहीं देखा था। अपने जीजा के परिवार के साथ-साथ अपने ही बेटे का खात्मा करने वाले इस नशेडी ने २०१४ में अपनी पत्नी की चरित्र पर संदेह होने के चलते हत्या कर उसकी लाश सूखी घास डालकर जला दी थी। सत्र न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उसे जेल भेज दिया था। उसके जेल जाने के बाद उसके दोनों बच्चों की देखरेख बहन और जीजा ने की थी। यह सिलसिला अभी तक चल रहा था। इतना ही नहीं उन दोनों ने उसे जेल से रिहा करवाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की और पानी की तरह पैसा बहाया था। तीन साल तक जेल में रहने के बाद अंतत: हाईकोर्ट ने उसे निर्दोष मानते हुए रिहा कर दिया। बहन और जीजा ने यह सोचकर उसे अपने घर में रहने की इजाजत दे दी थी कि अब उसमें सुधार आ चुका होगा। हालांकि इस सनकी हत्यारे को घर में रखने का कुछ रिश्तेदारों ने पुरजोर विरोध किया था। जब हत्यारा जेल में था तब उसके जीजा ने उसके खेत को अधिया यानी किराये पर दे दिया था। वे चाहते थे कि यह खेती की जमीन सुरक्षित रहे ताकि उसके बच्चों के काम आ सके। लेकिन हत्यारा साला खेती को बेचकर ऐश करना चाहता था। इसी बात को लेकर लगभग छह महीने पूर्व उसने जीजा को जान से मारने की धमकी भी दी थी, लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया और अहसानफरामोश साला मौका पाते ही इतनी विभत्स और भयावह वारदात को अंजाम देकर पंजाब के लुधियाना शहर में जा पहुंचा। लुधियाना में उसे कृषि के औजार बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी भी मिल गई। जिस शख्स ने उसे नौकरी दिलायी थी वह उसके मोबाइल का इस्तेमाल करने लगा था जिसके चलते पुलिस ग्यारह दिन बाद उसे दबोचने में सफल हो गयी। उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह गये।
नोएडा में एक न्यूज चैनल मालिक को एक युवती ने ऐसा फांसा और सबक सिखाया जिसे वह जीवनभर याद रखेगा। उसे किसी मित्र ने सेहत बनाने के लिए प्रतिदिन जिम जाने की सलाह दी तो उसने शहर की एक जिम में जाना प्रारंभ कर दिया। इसी दौरान जिम चलाने वाली खूबसूरत युवती से उसका सामना हुआ तो वह उस पर मर मिटा। युवती को पता था कि चैनल मालिक मोटी आसामी है। ऐसे में उसने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। एकांत में मिलने-जुलने का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया। इसी दौरान दोनों के बीच की सभी दूरियां मिट गयीं। वासना के आवेग में अंधा हुआ चैनल मालिक मुफ्त में मिल रहे देह सुख से आनंदित था। उसे भनक ही नहीं लगी कि उन दोनों के मिलन का अश्लील वीडियो बनाया जा चुका है। हैरत की बात तो यह है कि लोगों को हमेशा सजग रहने का पाठ पढाने वाला चैनल मालिक, युवती के चरित्र और चाल-चलन का आकलन ही नहीं कर पाया! कुछ दिनों के बाद युवती ने अपना असली रंग दिखाया और वीडियो को वायरल करने की धमकियां देते हुए ब्लैकमेल करने लगी। चैनल मालिक ने सोचा कि पच्चीस-पचास हजार रुपये लेकर युवती पीछा छोड देगी, लेकिन युवती ने जब मुंह खोला तो उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई। वह पूरे पच्चीस करोड मांग रही थी। ब्लैकमेल के इस खेल में युवती का एक दोस्त भी शामिल था। दोनों ने मिलकर न्यूज चैनल वाले को दिन में ऐसे तारे दिखाए की उसकी नींद उड गई। दिन में कभी झपकी लगने पर भी बुरे-बुरे सपने आने लगे। यह डर भी सताने लगा कि अगर उसने ब्लैकमेलर युवती की मांग पूरी नहीं की तो वह दूसरे न्यूज चैनल वालों के पास पहुंच जाएगी और वे अपने-अपने चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज दिखा-दिखाकर उसका तमाशा बना कर रख देंगे। उसके अतीत और वर्तमान की चीरफाड कर उसका भी राम-रहीम, आसाराम और तरुण तेजपाल जैसा हाल करके रख दिया जाएगा। एक शुभचिंतक ने उन्हें सलाह दी कि अगर युवती की मांग पूरी कर दी तो भी आसानी से छुटकारा नहीं मिलेगा। पुलिस का सहारा लेना ही होगा। बहुत सोच-विचार करने के पश्चात वह पुलिस की शरण में पहुंचा। दो करोड की पहली किश्त लेने के बहाने उसने दोनों को नोएडा के एक रेस्टारेंट में बुलाया। जैसे ही वे रुपये लेने के लिए रेस्टारेंट पहुंचे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों आरोपी पहले भी कई रईसो को अपने जाल में फंसा चुके हैं।
सोलह साल के दसवीं कक्षा में पढने वाले एक छात्र को शिक्षक ने पढाई में ध्यान नहीं देने की वजह से डांटा तो उसने अपने घरवालों को नमक-मिर्च लगाकर ऐसा भडकाया कि उन्होंने स्कूल पहुंचकर शिक्षक को जी भर कर खरी-खोटी सुनायी और भविष्य में कभी भी ऐसी भूल न दोहराने की चेतावनी दे डाली। अपने शिक्षक से आये दिन मुंहजोरी करने वाले इस छात्र ने पुलिस स्टेशन पर भी फोन कर शिक्षक की शिकायत की। जब इतने में भी उसका जी नहीं भरा तो उसने स्कूल को ही बंद करवाने की ठान ली। इसके लिए उसने वो अपराध कर डाला जिसकी कल्पना भारत में तो नहीं की जाती। तीन दिन बाद वह नौवीं कक्षा के एक छात्र को डरा-धमका कर स्कूल के शौचालय में ले गया और उसके पेट, माथे, सीने और पीठ पर चाकू से कई वार कर उसकी हत्या कर दी। इस छात्र का बस चलता तो उसे डांटने वाले शिक्षक को ही मार डालता। पर शिक्षक की मजबूत कद-काठी ने उसके मंसूबे और हौसले को पस्त कर दिया। स्कूल के अत्यंत सीधे-सादे छात्र की हत्या करने वाला यह हिंसक छात्र जब पकड में आया तो वह बडे आराम से पेशेवर अपराधी की तरह पुलिस के सवालों का जवाब देता रहा। पुलिसवाले भी हैरान थे। जिस सोलह साल के बच्चे का चेहरा डरा-सहमा दिखायी देना चाहिए था वह तो पछतावे से कोसों दूर भयमुक्त था।

Thursday, June 21, 2018

नेकी के साथी

यह भारत ही है जहां एक तरफ समृद्धि के अनंत उजाले हैं तो दूसरी तरफ गरीबी और बदहाली का घना अंधेरा है। जिन धनपशुओं की आंखों पर पट्टी बंधी है वे कल्पना नहीं कर सकते कि देश के कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहां भूख के कारण मौतें होती रहती हैं। लाखों बच्चों को कई दिनों तक अन्न का दाना तक नसीब नहीं होता। कुपोषण के चलते कितने बच्चों को असमय इस दुनिया से विदायी लेनी पडती है इसका सटीक आंकडा सरकारों के पास भी नहीं है। जो लोग खबरों से करीबी रिश्ता रखते हैं उन्हें २०१७ के उस सितंबर महीने की याद होगी जब झारखंड की एक दस-ग्यारह साल की बच्ची अपनी बेबस मां से भात की मांग करते-करते चल बसी थी। ऐसी खबरें मीडिया में कम ही सुर्खियां पाती हैं। लेकिन यह खबर किसी तरह से सजग भारतवासियों तक पहुंच गयी थी। लोग स्तब्ध रह गये थे। संतोषी नाम की इस बच्ची की भूख से हुई मौत को लेकर सरकार और प्रशासन को कई दिनों तक कोसा गया था। नेताओं के लिए ऐसी मौतें चुनावों में वोट बटोरने का साधन बनती हैं। हिन्दुस्तान के अधिकांश नेता किस मिट्टी के बने हैं इससे कौन वाकिफ नहीं है। यही नेता ही तो प्रदेश और देश चलाते हैं। इनके कभी भी न पूरे होने वाले वादों और छल-कपट के दंश से करोडों भारतवासी वर्षों से लहुलूहान होते चले आ रहे हैं। यह अपना चेहरा बदल-बदल कर आते हैं और वोट झटक कर ले जाते हैं। पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलने वाला है। ऐसे अनिश्चित दौर में भी कई इंसानियत के रखवाले हैं जो भारतीय संस्कारों को जिन्दा रखे हुए हैं। दीन-दुखियों के प्रति इनका समर्पण देखकर जी चाहता है कि काश- ऐसा वक्त आ जाए जब देश की सत्ता सौदागर किस्म के राजनेताओं के हाथों से छिनकर मानवता के रक्षकों के हाथों में चली जाए। अगर सभी देशवासी ठान लें तो इस सपने को साकार करना नामुमकिन नहीं है। हां, अफसोस इस बात का भी है कि ईमानदार, चरित्रवान, परोपकारी और संवेदनशील लोग राजनीति में आना ही नहीं चाहते। बहुत से लोगों को पता ही नहीं होगा कि लगभग २० करोड गरीब भारतीयों को रोज भूखे पेट सोना पडता है। गरीबी हटाने के नारे उछालकर कितने नेता विधायक, सांसद, मंत्री बन गए लेकिन गरीब वहीं के वहीं हैं। बस धनवानों का ही धन सतत बढता चला जा रहा है। इनका धन इन्हीं के घर-परिवार के काम आता है। अधिकांश धनपतियों के मन में जनहित का विचार कभी भी नहीं आता। कुछ लोग हैं जो यह मानते हैं कि ईश्वर ने उन्हें दीन-दुखियों की सेवा करने के लिए इस धरती पर भेजा है।
हरियाणा के दामोदा खुर्द गांव निवासी बलविन्द्र सिंह नैन एक ऐसे इन्सान है जिन्हें दूसरों की सेवा करने में अपार सुख की अनुभूति होती। अनाज मंडी में आढत के साथ-साथ पेट्रोल पम्प चलाने वाले बलविन्द्र अपने दोस्तों के सहयोग से वर्ष २००५ से सालासर और वैष्णोदेवी पैदल जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था करते चले आ रहे हैं। धार्मिक यात्रा पर निकलने वाले धर्म प्रेमियों को भोजन मुहैय्या करवाते-करवाते एक दिन उनके मन में विचार आया कि जो लोग घर से बेघर हैं, अपंग हैं, कुछ कमा नहीं सकते, सडकों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि स्थानों पर भूखे-प्यासे भटकते रहते हैं उनके लिए कुछ-न-कुछ जरूर किया जाना चाहिए। ऊपर वाले की मेहरबानी से उनके पास किसी सुख-सुविधा की कमी नहीं है। चारों तरफ से धन बरस रहा है तो फिर ऐसे में जरूरतमंदों की सेवा कर जीवन को सार्थक क्यों न बनाया जाए। बलविन्द्र ने भूखे-प्यासों को दो समय का भोजन नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए २०१६ में हिसार प्रशासन की मदद से सबसे पहला 'रोटी बैंक' खोला। धीरे-धीरे और यह सिलसिला आगे बढता चला गया। हरियाणा के पानीपत, सिरसा, जींद, कैथल, रोहतक और पीरागढी (दिल्ली) में एक-एक जगह फतेहाबाद (हरियाणा) में दो 'रोटी बैंक' खुल चुके हैं। जहां पर प्रतिदिन औसतन छह हजार, माह में करीब दो लाख और साल में २२ लाख भूखों को दो वक्त का खाना खिलाया जाता है। इन रोटी बैंकों को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रतिवर्ष पांच करोड की जरूरत पडती है। रोटी बैंक चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन बलविन्द्र बताते हैं कि "जहां-जहां भी रोटी बैंक खुले हुए हैं, वहां ७०-८० संपन्न लोग ट्रस्ट के साथ जुडे हैं।" दानदाताओं की यह संख्या ८०० तक पहुंच चुकी है। इनमें सक्षम किसान, व्यापारी और कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। ये लोग खाद्य सामग्री और दान में रकम देकर 'रोटी बैंक' के संचालन में मदद करते हैं। 'रोटी बैंक' के पास से गुजरने वाले लोग भी दान पात्र में इच्छानुसार रुपये डालते हैं। रिक्शा चालक और दिहाडी मजदूर, जिनके पास किसी छोटे ढाबे पर भोजन करने लायक पैसे नहीं होते, वे भी रोटी बैंक में दोनों समय का खाना खाते हैं और इच्छानुसार योगदान करते हैं। इसके अलावा भी राशि कम पडती है तो ट्रस्ट के २३ सदस्य अपनी हैसियत के अनुसार भागीदारी करते हैं। इस सच को अच्छी तरह से जान लें कि अपने देश में अच्छे कामों में साथ देने वाले लोगों की कमी नहीं है। बस उन्हें इंतजार रहता है ईमानदार, कर्तव्यपरायण और विश्वासपात्र नायकों का जिनका अतीत और वर्तमान पाक-साफ हो, उसूलों के पक्के हों और जनहित के कार्यों को अंजाम देने की अथाह इच्छाशक्ति हो। जब उन्हें किसी भी व्यक्ति में यह खूबियां नजर आती हैं तो वे उनका हर तरह से साथ देने और अनुसरण करने में देरी नहीं लगाते। इस सच से लगभग हर कोई अवगत है कि अन्न की बर्बादी के मामले में हम भारतवासी अव्वल हैं। विभिन्न समारोहों के सम्पन्न होने के बाद बचने वाले भोजन को बडी बेदर्दी के साथ कचरे के ढेर के हवाले कर दिया जाता है। धनवान और उच्च मध्यमवर्ग के लोग भी बचे हुए अन्न को इधर-उधर फेंक देते हैं। उनके मन में कभी यह विचार ही नहीं आता कि इस भोजन से कई भूखे व्यक्तियों का पेट भरा जा सकता है। इस तरह से होने वाली भोजन की बर्बादी संवेदनशील इंसानों को बुरी तरह से व्यथित कर देती है। ऐसे ही एक शख्स हैं द्वारिका प्रसाद अग्रवाल जो व्यापारी होने के साथ-साथ एक सिद्धहस्त कहानीकार और उपन्यासकार भी हैं। अग्रवाल जी बिलासपुर के सदर बाजार स्थित एक होटल के संचालक हैं, जिसका नाम है, 'श्री जगदीश लॉज।' इस लॉज के प्रवेश द्वार पर उन्होंने एक फ्रिज रखवाया है तथा एक बैनर लगाया है जिसपर लिखा है कि- "क्या आपके घर में खाना या नाश्ता बच जाता है। उस खाने को यहां रखे फ्रिज पर रख जाइए ताकि किसी भूखे की भूख मिट सके। कृपया वही सामान रखें जो शुद्ध और खाने योग्य हो।" श्री अग्रवाल सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। मेरे पाठक मित्रों को यह जानकर ताज्जुब होगा कि श्री अग्रवाल का यह अभूतपूर्व प्रयास खूब रंग ला रहा है। कई लोग शादी-ब्याह और घरों में बचने वाला भोजन फ्रिज पर रख देते हैं जो भूखे पेट भरने के काम आता है और हां ऐसे लोगों की भी अच्छी खासी तादाद है जो ताजा गर्मागर्म भोजन और फल आदि भी फ्रिज में रखकर सच्ची मानवता का धर्म निभाते हैं।

Thursday, June 14, 2018

सच और झूठ

हमारे यहां बात-बात पर होहल्ला मचता रहता है। राजनीति और बुद्धिजीवियों की जमात में ऐसे कई चेहरे हैं जो अच्छा होता नहीं देख सकते। उनकी बस यही मंशा रहती है कि देश में आपसी टकराव होता रहे। चरित्र हनन का दौर चलता रहे और सर्वधर्म समभाव के परखच्चे उडते रहें। हां अब तो सोशल मीडिया भी भडकाने, लडाने और झूठ को सच बताने का अड्डा बन गया है। फेक न्यूज के जन्मदाता भी सीना तानकर चलते हैं। बीते सप्ताह देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तृतिय वर्ष के प्रशिक्षण शिविर में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। प्रणब मुखर्जी के द्वारा संघ के निमंत्रण को स्वीकार किए जाने पर ही कई कांग्रेसियों ने विरोध किया था। उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी भी अप्रसन्न थीं। दरअसल हुआ यूं कि जैसे ही प्रणब मुखर्जी ने नागपुर की धरा पर कदम रखा तो दिल्ली में शर्मिष्ठा मुखर्जी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की चर्चा ने जोर पकड लिया। एक-दो न्यूज चैनलों ने यह खबर भी प्रसारित कर दी कि पूर्व राष्ट्रपति की यह पुत्री पश्चिम बंगाल की मालदा लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लडेंगी। दिल्ली से दूर रानीखेत के पहाडों पर सूर्यास्त के खूबसूरत नजारों का लुत्फ उठाती शर्मिष्ठा ने जब यह खबर सुनी तो वह हतप्रभ रह गयीं। उन्हें ऐसा लगा कि उनकी खुशी, शांति और सुकून को किसी ने एक ही झटके में लूट लिया है। अपने पिता के संघ के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर प्रारंभ से नाराजगी जता चुकी शर्मिष्ठा ने फौरन ट्वीट किया कि मैं कांग्रेस की एक समर्पित कार्यकर्ता हूं। मैं किसी सपने को पूरा करने नहीं बल्कि विचारधारा की वजह से कांग्रेस से जुडी हूं। इस पार्टी की विचारधारा में मुझे अटूट यकीन है। कांग्रेस छोडने से बेहतर होगा कि मैं राजनीति ही छोड दूं। मेरे द्वारा भविष्य में भाजपा की टिकट पर चुनाव लडने की खबर भाजपा के डर्टी ट्रिक डिपार्टमेंट का कारनामा है। उन्होंने फिर से अपने पिता को सचेत करते हुए कहा कि भविष्य में उनका भाषण तो भुला दिया जाएगा, लेकिन तस्वीरें संभालकर रखी जाएंगी।
नागपुर के रेशिमबाग स्थित संघ मुख्यालय में आयोजित गरिमामय समारोह में प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण से समस्त देशवासियों का दिल जीत लिया। जो कांग्रेस के नेता इस कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर बवाल मचाये थे, वे भी वाहवाही करते रह गए। संघ ने उम्मीदें लगा रखी थीं कि प्रणब मुखर्जी संघ की तारीफों के पुल बांधकर एक अच्छे मेहमान की भूमिका निभायेंगे, लेकिन उन्होंने एक अनुभवी नेता की तरह नपा-तुला भाषण देकर अपनी चतुराई और कला-कौशल का प्रदर्शन किया। प्रणब मुखर्जी जब संघ के नेताओं के साथ मंच पर विराजमान थे तब उन्होंने धोती-कुर्ता और जाकिट पहन रखी थी। मंच पर उन्होंने एक बार भी न संघ अथवा उसके संस्थापक केशव बलिराम हेडगवार का नाम लिया और न ही ध्वज को प्रणाम किया। लेकिन कार्यक्रम के समाप्त होने के कुछ घण्टों के बाद ही एक फर्जी फोटो सोशल साइट्स पर वायरल हो गई जिसमें प्रणब मुखर्जी सर संघचालक मोहन भागवत के साथ ध्वज प्रणाम करते नजर आए। जिन-जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर पूर्व राष्ट्रपति को इस मुद्रा में देखा उनकी तीखी प्रतिक्रियाओं का तांता लग गया। प्रणब मुखर्जी की पुत्री और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने आगबबूला होकर इस फोटो को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा कि जिसका डर था, वही हुआ। मैंने तो अपने पिता को पहले ही चेताया था। शर्मिष्ठा का गुस्सा संघ और भाजपा को लेकर था, लेकिन फोटो के साथ छेडछाड करने का काम यकीनन किन्हीं ऐसे लोगों का था जो पूर्व राष्ट्रपति संघ और भाजपा की छवि बिगाडना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने यह कहने में देरी नहीं लगायी कि यह तो उन विभाजनकारी राजनीतिक तत्वो की शर्मनाक करतूत है। जो संघ को बदनाम करने के लिए घटिया चालें चलते रहते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि सोशल मीडिया पर काफी हद तक ऐसे लोगों का कब्जा हो चुका है जो फेक न्यूज और तस्वीरों के साथ छेडछाड करने की कलाकारी में माहिर हैं। सोशल मीडिया इन लोगों के लिए दुष्प्रचार करने का माध्यम बन गया है। पिछले सप्ताह पुणे पुलिस ने एक संदिग्ध नक्सली से एक पत्र बरामद किया। इस पत्र में खुलासा किया गया था कि नक्सलियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बनायी है। जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की गई थी ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी को भी जान से मारने की योजना है। इस खबर के न्यूज चैनलों से प्रसारित और अखबारों में छपते ही देशवासी चिन्ताग्रस्त हो गये। कुछ राजनेताओं ने चुनाव जीतने के लिए इसे भाजपा की चाल बताया। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद ने यह ट्वीट कर खलबली मचायी और मीडिया की सुर्खियां पायीं, "ऐसा लगता है कि संघ और गडकरी मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं।" राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर लगे इस संगीन आरोप का भाजपा के कार्यकर्ताओं ने सडक पर आकर विरोध दर्शाया तो गडकरी ने ऐसी घटिया सोच रखने वालों को अदालत में घसीटने की चेतावनी दे दी।

Thursday, June 7, 2018

अभी टूटी नहीं आशा की डोर

मुझे २०१४ की याद आ रही है। देश में कितना उत्साह भरा माहौल था। हर कोई खुश था आशान्वित था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और दावे दमदार लगते थे। ऐसा प्रतीत होता था कि अब देश का पूरी तरह से कायाकल्प होना तय है। वो दिन दूर नहीं जब देश से गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, असमानता और किसानों की समस्याओं का नामोनिशान मिट जाएगा। हर चेहरे पर चमक होगी। चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली नज़र आएगी। देश आर्थिक सुधारों के मार्ग पर सरपट दौडने लगेगा। नरेंद्र मोदी नाम के इस प्रभावी परिश्रमी और ईमानदार नेता ने जो वादे किए हैं वे जल्द पूरे हो जाएंगे। नरेंद्र मोदी को सत्ता पर काबिज हुए चार साल बीत चुके हैं। किसी प्रधानमंत्री के कार्यों के मूल्यांकन के लिए इतनी अवधि कम नहीं होती। आज चारों तरफ सवाल गूंज रहे हैं। बस यही कहा जा रहा है कि मोदी जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरे। उनकी सरकार किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों, दलितों-शोषितों के लिए कुछ नहीं कर पायी। २०१४ में जो भीड यह नारे लगाती थी कि २०१९ में भी भाजपा का परचम लहरायेगा, नरेंद्र मोदी के सामने कोई नहीं टिक पायेगा, वह आज असमंजस में है। वो युवा बेहद निराश हैं जिन्होंने मोदी पर भरोसा कर उन्हें विजयी बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। आम जनता का भी यही हाल है। फिर भी विपक्ष भी केंद्र की सत्ता पाने के लिए एकजुट होने लगा है। भले ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आज भी यह कहते नहीं थकते हों कि भाजपा आने वाले पचास साल तक देश पर राज करेगी, लेकिन सच तो यह है कि वे भी देशवासियों के बदलते मूड से अनभिज्ञ नहीं हैं। चतुर नेताओं की यही फितरत होती है कि वे हवा का रुख पहचानने के बाद भी अपनी जीत के दावे करते रहते हैं। इसी का नाम राजनीति है। अभी हाल ही में हुए उपचुनावों में भाजपा को जिस तरह की पराजय का मुंह देखना पडा उससे भाजपा के अच्छे भविष्य की तस्वीर तो नहीं उभरी। कर्नाटक में सरकार बनाने में मिली विफलता के बाद कैराना, गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीटों तथा नुरपुर विधानसभा उपचुनाव में हुई करारी हार ने भाजपा के दिग्गजों को अंदर से तो हिलाकर रख ही दिया है। यही वजह है कि अमित शाह को अपने 'शुभचिंतकों' के यहां चक्कर काटने शुरू कर दिये हैं। पिछले दिनों वे अपने पुराने प्रचारक बाबा रामदेव से मिले और उन्हें २०१९ में भी साथ देने का अनुरोध किया। रोज़-रोज़ भाजपा को दुत्कारने वाले शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के समक्ष नतमस्तक होने में भी अमित शाह ने अपनी भलाई समझी है। विख्यात उद्योगपति रतन टाटा के यहां हाजिरी लगाकर अपनी बेचैनी दर्शा दी है। भाजपा ने एकाएक अखबारों और न्यूज चैनलों पर विज्ञापनों की झडी लगा दी है जिनमें अपनी उपलब्धियां गिनायी जा रही हैं। कहा जा रहा है कि चार साल में देश एशिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हुआ है। सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में कई ऐतिहासिक व साहसिक निर्णय लिए हैं। यह मोदी के नेतृत्व का ही कमाल है कि अंतरराष्ट्रीय राजनयिक व कूटनीतिक पहल के क्षेत्र में भारत ने विश्व स्तर पर अपनी छाप छोडी है। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, नमामि गंगे आदि कई परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के साथ-साथ सरकार का पूरे देश में सीमेंट की सडकें बनाने का काम तेजी से चल रहा है। मेट्रो रेल के काम  की प्रगति किसी से छिपी नहीं है। रोजगार भी पैदा किये जा रहे हैं। लाखों बेरोजगारों को नौकरियां दी जा चुकी हैं।
यह सरकार के वो दावे हैं जिनसे कुछ लोग सहमत हैं और अधिकांश असहमत। अपने देश में तो आज भी रोटी, कपडा और मकान करोडों लोगों की प्रमुख जरूरत है। जनता की समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए था, जो नहीं हो पाया। जब तक मूल समस्याएं रहेंगी तब तक सत्ताधीशों को कटघरे में खडा किया जाता रहेगा। जिस देश में अव्यवस्था के कारण रेलगाडियां घंटों लेट चलती हों, दुर्घटनाओं का सदा खतरा बना रहता हो, रेलपटरियों की हालत जर्जर हो चुकी हो, यात्रा के दौरान मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव हो और रिश्वतखोरी उफान पर हो वहां पर बुलेट ट्रेन के 'ऊंचे सपने' लोगों को राहत नहीं दे सकते। जब नोटबंदी की गई थी तब जोर-शोर के साथ यह कहा गया था कि इससे काला धन और काला कारोबार करने वालो को चोट पहुंचेगी। सच तो यह है कि नोटबंदी के दौरान सिर्फ आम आदमी को ही तकलीफें झेलनी पडीं। जीएसटी के चलते छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलों का पहाड खडा हो गया। काला धन आज भी बाजार की शान बना हुआ है। भ्रष्टाचार से भी मुक्ति नहीं मिली है। दलितों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग सकी। आर्थिक संकट से जूझते किसान आत्महत्या करने को विवश हैं। कानून के डंडे का भय अपराधियों को न उस सरकार के कार्यकाल में सताता था और न ही आज।
हां इस सच को कोई नकार नहीं सकता कि देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा परिश्रमी और ईमानदार नेता नहीं देखा। ऐसे में अगर उनके कार्यकाल में सकारात्मक परिणाम नहीं निकले तो लोगों का राजनीति और राजनेताओं से भरोसा ही उठ जाएगा। इसलिए अभी भी वक्त है। आस की डोर अभी पूरी तरह से नहीं टूटी है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को प्राथमिकता के आधार पर लोगों की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी ही होगी।