Thursday, August 30, 2018

नींद है कि टूटती नहीं

देशभर के न्यूज चैनलों और अखबारों में अपराध और अपराधियों के बारे में जो तमाम खबरें प्रसारित और प्रकाशित की जाती हैं उनका एक बहुत बडा मकसद यही होता है कि लोग सावधान हो जाएं। देश और समाज के दुश्मनों को पहचानें और बिना खौफ खाए उनके खिलाफ आवाज़ उठाएं, लेकिन जो तस्वीर सामने है वह तो यही बता रही है कि अधिकांश लोग पढ और सुनकर भूल जाते हैं और जब तक खुद पर नहीं आती तब तक आंखें बंद किये रहते हैं, चुप्पी साधे रहते हैं। लुट-पिट जाने के बाद ही उनके होश ठिकाने आते हैं। लोगों ने अगर जागृत होने और सबक लेने की आदत पाल ली होती तो ऐसी खबरों पर काफी हद तक विराम लग जाता जो आतंक, हिंसा, देशद्रोह, धोखेबाजी, व्याभिचार, छलकपट, गुंडागर्दी का जीवंत दस्तावेज हैं।
नागपुर में एक ऐसे नटवरलाल को हथकडियां पहनायी गर्इं, जिसने तीन दर्जन महिलाओं को अपने जाल में फंसाया था। वह कभी खुद को शहर का बडा व्यापारी बताकर किसी महिला को अपना शिकार बनाता था तो कभी डॉक्टर बताकर। उसके निशाने पर ज्यादातर विधवा महिलाएं रहती थीं। वह शादी करने की इच्छुक महिलाओं की सेकंड शादी डॉट कॉम से जानकारी लेता था। इस जालसाज के चक्कर में कई महिलाओं ने अपने घर तक बेच दिए। वे उसके मायाजाल में फंस कर पूरी तरह से अंधी हो गई थीं। वह उन्हें जैसे नचाता वे वैसे नाचती रहीं। नाम, पेशा और रूप बदल-बदल कर महिलाओं के साथ शादी और अय्याशी करने वाले इस धूर्त की एक साथी थी जो कभी उसकी बहन बन जाती तो कभी पत्नी। महिलाओं को फांसने के लिए वह उसकी पूरी मदद करती थी। वर्धा निवासी एक तलाकशुदा महिला पर भी उसने सेकंड शादी डॉट कॉम नामक साइट के जरिए अपना जाल फेंका। उसने उसे बताया कि वह भी विधुर है और शहर का बडा व्यापारी है। महिला ने अपने परिजनों से सलाह लेने का हवाला देकर उसे कुछ दिन तक इंतजार करने को कहा, लेकिन उसने कुछ जानकारी देने के बहाने महिला को नागपुर आने को विवश कर दिया। महिला वर्धा से नागपुर पहुंची तो वह फौरन उसे कार में बैठाकर सुनसान इलाके की तरफ ले जाने लगा। इस बीच इस बेसब्रे ने उससे छेडछाड करनी शुरू कर दी। महिला को उसकी नीयत का भान हो गया और उसने तीव्र विरोध करते हुए कार रुकवायी और थाने जा पहुंची। पुलिसिया जांच के बाद बदमाश की हकीकत की परत-दर-परत पोल खुलती चली गयी। दो-तीन दिन में ही पांच-छह और महिलाएं थाने में पहुंच गर्इं। इन्हें भी शातिर ने अपना शिकार बनाकर लाखों रुपये एेंठ लिए थे।
पंजाब के लुधियाना शहर की एक २२ साल की युवती अपने फेसबुक फ्रेंड पर इस कदर आसक्त हुई कि वह उससे मिलने के लिए अकेली होटल में जा पहुंची। प्रेमी ने कोल्ड ड्रिंक में कोई नशीला पदार्थ मिलाया तो वह बेहोश हो गई। होश में आने के बाद उसे पता चला कि उसकी अस्मत लूटी जा चुकी है। करीब ढाई महीने पहले फेसबुक पर दोनों की दोस्ती हुई थी। एक दूसरे की पोस्टों के लिंक करने के साथ-साथ चेटिंग का भी सिलसिला शुरू हो गया। फिर एक दूसरे के मोबाइल नंबर शेयर किये गए। एक दिन दोस्त ने होटल में आने का आमंत्रण दिया तो वह खुद को रोक नहीं पाई। खुशी-खुशी पहुंच गई ऐसे बलात्कारी की गोद में, जिसने पता नहीं अब तक कितनी युवतियों को फेसबुक के माध्यम से अपना शिकार बनाया होगा और भविष्य में भी बनायेगा। लडके ही नहीं, लडकियां भी छल-कपट में बडी दिलेरी के साथ बुरे कामों में बाजी मार रही हैं। गाजियाबाद के एक युवक की सोशल साइट के जरिए एक युवती से दोस्ती हुई। दोस्ती और बातचीत के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए। एक दिन जब दोनों मौज-मस्ती कर रहे थे तो एक युवक वहां पहुंच गया जिसने युवक को बताया और धमकाया कि उसका अश्लील क्लिप बना लिया गया है। इसलिए उसे पांच लाख रुपये देने होंगे वर्ना अश्लील क्लिप को सार्वजनिक कर दिया जाएगा। युवक ने अपनी सोने की चेन और हजारों रुपये देकर पीछा छुडाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। उनकी पांच लाख रुपये की मांग अभी भी बनी हुई है।
लेडी डॉन! वो भी दिल्ली में! दिल्ली तो भारतवर्ष की राजधानी है, कोई जंगल नहीं! आप कितना भी आश्चर्य करते रहें, लेकिन यह सच है। फिल्मी किरदारों को साकार करने का ठेका सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं ले रखा है। यह बात अलग है कि देश में नाममात्र की लेडी डॉन हुई हैं, लेकिन जितनी भी हुई हैं, उन्होंने खूब दहशत मचाकर अपने नाम का डंका बजाया। दिल्ली के संगम विहार में काला चश्मा पहनने वाली बशीरन तीन दशक से अधिक समय तक दहशत का पर्याय बनी रही। उसने न जाने कितने बच्चों को अफीम, गांजा, चरस और शराब का लती बनाते हुए अपराध के गुर सिखाए। इस शातिर महिला ने परायों और अपनों में कोई भेद न करते हुए अपने आठ बेटों और आठ पोतों को भी जुर्म की दुनिया में उतारकर अपनी ऐसी डरावनी छवि बनाई, जिससे लोग उसकी परछाई से भी खौफ खाने लगे। बडे से बडे अपराध को धंधे की तरह अंजाम देने वाली बशीरन ने हत्या, अपहरण से लेकर हाथ-पैर तोडने और धमकी-चमकी देने तक के रेट तय कर रखे थे। देश के कोने-कोने से कई सफेदपोश और गुंडे-बदमाश उसके पास आते थे और तयशुदा रकम देकर हत्याएं और अपहरण करवाते थे। अपने दुश्मनों की हड्डी-पसली तुडवाने के लिए बशीरन की शरण में आने वालों की तादाद भी अच्छी-खासी थी। इससे उनका अपने इलाके में दबदबा बढ जाता था और आगे का काम भी आसान हो जाता था। भेष बदलने में माहिर ६२ वर्षीय बशीरन ने पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए अपने मकान और आसपास सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे। जब भी उसे किसी खतरे का आभास होता तो वह घर के पीछे के दरवाजे से जंगल के रास्ते की ओर निकल भागती थी। इस लेडी डॉन ने कई सालों से पूरे इलाके के सरकारी बोरवेलों पर कब्जा कर रखा था। नागरिकों को घंटे के हिसाब से पानी देकर रकम वसूलती थी। भले ही पुलिस ने पिछले हफ्ते उसे किसी तरह से गिरफ्तार करने में सफलता पा ली, लेकिन इलाके के किसी भी निवासी ने उसके खिलाफ मुंह नहीं खोला। कल भी लोग उससे कांपते थे और आज भी खौफ खाते हैं। वे मानते हैं कि वह कुछ हफ्तों के बाद जमानत पर छूटकर बाहर आ जाएगी और अपने विशाल गिरोह के साथ आतंक मचायेगी। यह खौफनाक तस्वीर यकीनन यही दर्शाती है कि हमारे देश में सरकारें सोयी हुई हैं। जनप्रतिनिधि अपनी आखें बंद किये हैं और नौकरशाहों का तो कहना ही क्या...। जिन गुंडे, बदमाशों, हत्यारों से पुलिस डरती हो, दबोचने से पहले सौ बार सोचती हो, तो ऐसे में असहाय जनता से यह उम्मीद रखना बेमानी है कि वह अपने आसपास पनप रहे अपराधों और खूंखार अपराधियों को सबक सिखाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा देगी।

Thursday, August 23, 2018

बहुत बडी सीख दे गए अटल

"धरती को बौनों की नहीं
ऊंचे कद के इंसानों की जरूरत है
किंतु इतने ऊंचे भी नहीं कि
पांव तले दूब ही न जमे
कोई कांटा न चुभे
कोई कली न खिले
न बसंत हो, न पतझड हो
सिर्फ ऊंचाई का अंधड
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूं
इतनी रुखाई कभी मत देना"

यह उस राजनेता, पत्रकार, कुशल वक्ता, कवि की कविता है जिन्हें भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहलाने का गौरव हासिल हुआ। जिन्हें विरोधी भी उतना चाहते थे, जितना उनके समर्थक। क्या यह हैरान कर देने वाला सच नहीं है कि जो राजनेता पिछले एक दशक से मौन था, चलने-फिरने में लाचार था, चुप्पी जिसकी मजबूरी थी, लेकिन फिर भी उसकी लोकप्रियता जस की तस रही। ऐसा लगा ही नहीं वे अपने प्रिय देशवासियों की नजरों से दूर हैं। शारीरिक तौर पर निष्क्रिय होने के बावजूद देश की राजनीति में उनकी उपस्थिति सतत बनी रही। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे एक ऐसे जननायक थे, जिनसे सभी दलों के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और आमजन दिल से जुडे हुए थे। अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे। हर किसी को उनपर भरोसा था। ९३ साल की उम्र में देश और दुनिया से विदायी लेने वाले कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी जिन्दादिली, कर्तव्यपरायणता, कर्मठता, निष्पक्षता और निर्भीकता की प्रतिमूर्ति थे। संसद हो या सडक, हर जगह सजग रहने वाले अटलजी उन नेताओं में शामिल नहीं थे, जो भीड से खौफ खाते हैं और खुद को किसी भी जोखिम में डालने से बचते हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भडके सिख विरोधी दंगों के कारण संपूर्ण दिल्ली जल रही थी। दंगाई बेखौफ होकर सिखों की हत्या कर रहे थे। इंसानियत की तो जैसे मौत ही हो चुकी थी। अटलजी ने अपने बंगले के गेट के बाहर का भयावह नजारा देखा तो उन्होंने संभावित खतरे को फौरन भांप लिया। तलवारों, लाठियों और हाकियों से लैस गुंडे मवालियों की भीड ने सिखों को हत्या करने के इरादे से घेर रखा था। अटलजी तुरंत बंगले से निकल कर अकेले ही टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए। भीड ने अटलजी को तुरंत पहचान लिया। उन्होंने सभी को फटकारा। किसी ने भी उनके समक्ष मुंह खोलने की हिम्मत नहीं की और नजरें झुकाकर भाग खडे हुए। अगर अटलजी टैक्सी स्टैंड पहुंचने में थोडी भी देरी करते तो दंगाई अपना काम कर चुके होते। सिख ड्राइवरों और टैक्सियों को जला दिया गया होता। उसी दिन वे अपनी पार्टी के सहयोगी लालकृष्ण आडवाणी के साथ तब के केंद्रीय गृहमंत्री पीवी नरसिंह राव से मिले और सारी घटना की विस्तार से जानकारी दी। जलती दिल्ली को बचाने के सुझाव पेश करते हुए सिखों को हर तरह की सुरक्षा देने का निवेदन किया। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को बुलाकर निर्देश दिया कि अपने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सिखों के कत्लेआम को हर कीमत पर रोकने में जुट जाएं।
पहले १३ दिन, फिर तेरह महीने और फिर लगभग पांच वर्ष तक हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री रहे अटलजी के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा सदस्य के उनके पहले कार्यकाल में उनका भाषण सुनकर कह दिया था कि यह कुशल वक्ता एक दिन जरूर देश की सत्ता पर काबिज होगा। अटलजी गजब के सिद्धांतवादी थे। वे अगर दांवपेंच और जोड-जुगाड के खिलाडी होते तो उन्हें मात्र तेरह दिनों में सत्ता नहीं खोनी पडती। विश्वास मत पर मतदान से पहले ही उन्होंने सदन के भीतर त्यागपत्र का ऐलान कर सबको चौंका दिया था। उन्होंने कहा था कि पार्टी तोडकर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता। अगर डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं। चालीस साल का मेरा राजनीतिक जीवन खुली किताब है। कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए। नीयत पर शक नहीं होना चाहिए। मैंने यह खेल नहीं किया है। मैं आगे भी नहीं करूंगा।
मेरे विचार से अटलजी देश के पहले ऐसे नेता थे, जिनके भाषण को सुनने के लिए देशवासी लालायित रहते थे। बिलासपुर और रायपुर में उनके भाषण सुनने का सौभाग्य इस कलमकार को भी हासिल हुआ। मुझे अच्छी तरह से याद है कि भीड को रोके रखने के लिए उनका भाषण अंत में रखा जाता था। श्रोता भी उनका भाषण सुनने के मोह के चलते घंटों अपनी जगह से हिलते नहीं थे। अटलजी का आकर्षण फिल्मी सितारों पर भी भारी पडता था। मंच पर किसी नायक और नायिका के होने के बावजूद लोग सिर्फ और सिर्फ अटलजी को ही सुनना चाहते थे। उनके भाषणों में जहां हास-परिहास होता था, वहीं उनका एक-एक शब्द लोगों के मर्म को छूता था। आज भी यू-ट्यूब पर उन्हीं के भाषण सर्वाधिक सुने जाते हैं। युवा पीढी तो मंत्रमुग्ध हो जाती है। इशारों-इशारों में बडी-बडी बातें कह देने और व्यंग्य के तीर छोडने वाले अटल की शख्सियत का ही कमाल था कि विरोधी भी उनकी सशक्त वाक्शैली का लोहा मानते थे। एक बार राज्यसभा में विभिन्न पारिवारिक समस्याओं को लेकर चर्चा चल रही थी। सभी को लग रहा था कि अटलजी इस विषय पर चुप्पी साधे रहेंगे, लेकिन जब वे अपनी बात कहने के लिए खडे हुए तो कांग्रेस सांसद मार्गरेट अल्वा ने तपाक से कहा कि "अटलजी आप तो कुंआरे हैं। पारिवारिक समस्याओं की जानकारी तो शादीशुदा लोगों को ही होती है?" उन्होंने फटाक से जवाब दिया कि मैं अविवाहित जरूर हूं, लेकिन कुंआरा होने की कोई गारंटी नहीं है। उनकी इस साफगोई पर ठहाके और तालियां गूंजनें लगीं। वे एक ऐसे राजनेता थे, जो अपने विरोधियों की तारीफ करने में कोई कंजूसी नहीं करते थे। स्पष्टवादिता में भी कोई उनका सानी नहीं था। गुजरात के दंगों के समय तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई उनकी यह सीख आज के राजनेताओं के लिए बहुत बडी सीख है- "मेरा एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर और न ही संप्रदाय के आधार पर।" अटलजी अपने दिल की बात कहने में कभी कोई संकोच नहीं करते थे। भले ही सामने वाले को कितना ही बुरा लगे। एक बार राजधानी से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार के मालिक अपने संपादक के साथ अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए उनके निवास पर पहुंचे। उन्होंने दोनों का खूब आदर-सत्कार करते हुए उनके अखबार की भी तारीफ की। चाय-नाश्ते के बाद उन्होंने अपने अंदाज में कहा कि आप लोग तो अंतर्यामी हैं। पिछले दिनों आपके अखबार से ही मुझे पता चला कि मैंने अपने भांजे से दूरियां बना ली हैं और अपने घर में उनके प्रवेश पर भी बंदिश लगा दी है। अटल जी की यह शिकायत सुनते ही मालिक और संपादक दोनों पानी-पानी हो गए। कार्यालय पहुंचकर मालिक ने जब इस खबर के बारे में पता लगवाया तो पता चला कि मात्र अफवाह को संवाददाता ने कार्यालय में पहुंचाया था और संपादक ने बिना पुख्ता छानबीन किए उसे सुर्खियों के साथ अपने बहुप्रसारित दैनिक में प्रकाशित कर दिया था। मालिक ने उस लापरवाह संपादक को खूब डांटा-फटकारा और भविष्य में ऐसी खबरें न छापने की सख्त हिदायत दी। इस कलमकार के देखने में आया है कि अधिकांश कवि, लेखक जो लिखते हैं उनका आचरण उसके अनुकूल नहीं होता, लेकिन कवि अटल शब्द और कर्म को एकाकार करने में पूरी तरह से समर्थ थे। उन्होंने अपने गीतों के भाव को जी भरकर जिआ- "मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिन्दगी सिलसिला, आजकल की नहीं... मैं जी भर जिआ, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा कूच से क्यों डरूं?"

Thursday, August 9, 2018

आज़ादी का मज़ाक

कैसी-कैसी तस्वीरें। कैसे-कैसे लोग। कैसी-कैसी चाहतें। कैसे-कैसे बोलवचन। खुद का नाम चमकाने और तारीफ पाने के पागलपन ने लोगों को कहां तक पहुंचा दिया है। पिछले दिनों गुरुग्राम के एक युवक ने अपनी आत्महत्या को फेसबुक पर लाइव डालते हुए लिखा कि इस पर 'लाइक' और कमेंट अवश्य देवें। इसी तरह से एक माडर्न पति ने बडी तन्मयता के साथ अपनी पत्नी की आत्महत्या का वीडियो बनाकर फेसबुक और वॉटसएप के हवाले कर दिया। अभी हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिकागृह की आड में बालिकाओं से वेश्यावृति करवाने वाले एक नराधम के हाथों में पुलिस ने जब हथकडियां पहनायीं तो उसके चेहरे पर ऐसी कुटिल हंसी थी जो बता रही थी कि दुर्जनों को अपने किये का पछतावा नहीं होता। तीस से ज्यादा बच्चियों पर बलात्कार और प्रताडना का कहर ढाने वाले इस अमानुष के हाथों में हथकडी और चेहरे पर हंसी वाली तस्वीर अखबारों में छपी और सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो फिर से यह सवाल उठा कि शैतानों में इतना साहस कहां से आता है? किसी बडी हस्ती का इन पर हाथ तो होता ही होगा जिनके आशीर्वाद और प्रेरणा से यह इंसान से हैवान बन जाते हैं। वैसे तो ब्रजेश ठाकुर के कई धंधे हैं, लेकिन उसका सबसे बडा धंधा अखबार और एनजीओ चलाने का रहा है। आज के समय में अपना रूतबा जमाने के लिए अखबार निकालकर संपादक कहलाने का एक अलग ही मज़ा और फायदा है। बडे-बडे उद्योगपति, नेता, बिल्डर और यहां तक कि गुंडे बदमाश भी देश के कई शहरों में अखबारों के संपादक, प्रकाशक और मालिक बन अपना रूतबा और आर्थिक साम्राज्य बढाने में लगे हैं। ब्रजेश ठाकुर के एक नहीं, तीन-तीन अखबार निकलते हैं। यह अखबार पाठकों तक तो नहीं पहुंचते, लेकिन इन्हें प्रतिवर्ष करोडों के सरकारी विज्ञापन जरूर मिल जाते हैं। यह सारा खेल सरकारी अफसरों, नेताओं के साथ और सांठगांठ से चल रहा था। यह भी जान लें कि ऐसे खिलाडी देशभर में भरे पडे हैं। कोई भी नगर, महानगर नहीं होगा जहां से ऐसे दिखावटी अखबार न निकलते हों। इनका काम सिर्फ और सिर्फ मिलीभगत से सरकारी विज्ञापन पाना और अखबार की आड में काले कारोबारों को बढाना है। अखबारों और जमीन जायदाद से अंधाधुंध कमाई करनेवाले ब्रजेश ठाकुर के मन में नेता बनने की अटूट चाहत थी। इसके लिए उसने एनजीओ की स्थापना कर लडकियों और महिलाओं के 'कल्याण' के लिए एक-एक कर पांच आश्रम गृह चलाने शुरू कर दिए। इस महान सेवा के लिए सरकार की तरफ से उसे प्रतिवर्ष करोडों रुपये मिलने लगे। समाजसेवक के रूप में ख्याति भी फैलने लगी। राजनीतिक गलियारे में गहरी पैठ बनने पर दो बार विधानसभा का चुनाव लडा, लेकिन असफलता हाथ लगी। जनसेवा के नाम पर खोले गये बालिका गृह बनाम आश्रय गृह में चलने वाले व्याभिचार की भी धीरे-धीरे सच्चाई बाहर आने लगी। अपने रसूख के दम पर ब्रजेश ने मामले को दबाने की काफी कोशिशें कीं। सत्ता में बैठे उसके खैरख्वाहों ने भी इसमें उसका पूरा साथ दिया। लेकिन कहावत है कि, "जब पाप का घडा भर जाता है तो फूट कर ही रहता है।" आश्रम की आड में बेसहारा लडकियों का यौन शोषण करने, गर्भवती बनाने, गायब करवाने तथा दफनाने वाले संपादक, समाज सेवक और नेता का नकाब तार-तार हो गया। आम जनता में जनसेवक और शोषित लडकियों में हंटर वाले अंकल की पहचान बनाने वाले ब्रजेश से लडकियां कितनी नफरत करती थीं इसका पता शोषित लडकियों से बातचीत में चल जाता है। एक लडकी ने तो उसकी तस्वीर पर थूक कर तो कुछ लडकियों ने उसे कुत्ता कहकर अपना गुस्सा जाहिर किया। एक लडकी ने अदालत में अपना दुखडा इन शब्दों में बयान किया, "मेरे साथ इतनी नृशंसता के साथ बलात्कार किया गया कि मेरे लिए ठीक से चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया है।" ३४ अनाथ लडकियों से साथ बलात्कार की पुष्टि से स्पष्ट हो गया है कि एक सफेदपोश वर्षों तक यातना गृह चलाता रहा और शासन और प्रशासन स्वार्थवश अंधा बना रहा।
ब्रजेश जैसे और भी कई कपटी और ढोंगी लोग बेसहारा लडकियों के जीवन के साथ खिलवाड करने में लगे हैं। इस दुराचारी, व्याभिचारी का सच सामने आने के चंद दिन बाद जब देश स्वतंत्रता दिवस की ७१वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है तब उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में बालिका संरक्षणगृह के संचालकों के द्वारा लडकियों को वेश्यावृति के कीचड में धकेले जाने की शर्मनाक हकीकत ने देशवासियों को स्तब्ध कर दिया है। रात को लडकियों को अय्याशों के बिस्तर गर्म करने के लिए कार से बाहर भेजा जाता था। सुबह लुटी-पिटी लडकियां जब संरक्षणगृह में वापस आती थीं तो फूट-फूट कर रोती थीं। यह रोज का सिलसिला बन गया था। बेसहारा, मजबूर लडकियों को आसरा देने की आड में वेश्यावृति करवाने का यह गंदा धंधा एक महिला के मार्गदर्शन में किया जा रहा था जिसमें उसका पति और कुछ अन्य सफेदपोश शामिल थे।
यह सफेदपोश अपनी पहुंच का पूरा फायदा उठाते हैं। ब्रजेश ठाकुर ने जब देखा कि वह अब जेल जाने से नहीं बच सकता तो उसने बीमार होने का नाटक कर अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा प्राप्त कर ली। शातिर धनवान अपराधी जानते हैं कि अपने अच्छे दिनों में वे जिनकी सेवा करते रहे हैं, कोई भी संकट आने पर वे उनका साथ जरूर देंगे। इन अपराधियों के ऊपर से लेकर नीचे तक रिश्ते रहते हैं। अब तो वो दिन आ गये हैं जब अपराधी भी शर्तें रखने लगे हैं। भारतीय बैंकों को नौ हजार करोड का चूना लगाकर विदेश फरार हुआ शराब कारोबारी जेल में फाइव स्टार सुविधाएं चाहता है। उसका कहना है कि अभी तक वह हर तरह के ऐशो-आराम के साथ रहता आया है और वह चाहता है कि उसका आने वाला हर दिन मौजमस्ती के साथ बीते। भारतीय जेलें इस लायक नहीं हैं कि वह उनमें एक दिन भी रह सके। इन जेलों में तो किसी का भी दम घुट सकता है। सरकार जब तक उसके लिए उसकी पसंद की जेल नहीं बनाती तब तक वह भारत नहीं आने वाला।

Thursday, August 2, 2018

जानवर और जानवर

कहावत है कि डायन भी एक घर छोड देती है। कहावतें सिर्फ पढने और भूल जाने के लिए नहीं बनी हैं। इनमें हमारे बुजुर्गों का वर्षों का अनुभव और निष्कर्ष समाहित है। मेरे पाठक मित्र सोच रहे होंगे कि मुझे एकाएक यह डायन वाली कहावत क्यों याद आ गई। दरअसल हुआ यूं कि कल ही मैंने एक समाचार पढा जिसका शीर्षक है "देश की राजधानी दिल्ली में बर्तन धो रहा है कारगिल का हीरो।" इस खबर का एक-एक अक्षर पढने के बाद मुझे एक ही सच समझ में आया कि हमारे देश में ऐसे नेता हर जगह हैं जो देश प्रेम और देश भक्ति की ऊंची-ऊंची बातें तो करते हैं, लेकिन उनका लालच, स्वार्थ उनकी असली औकात दिखा ही देता है। कारगिल युद्ध के एक वीर योद्घा सतवीर सिंह, जिनके पैर में आज भी एक गोली फंसी हुई है, राजधानी दिल्ली में जूस की दुकान खोलकर खुद ही झूठे बर्तन धो रहे हैं। वे बैसाखी के सहारे बडी मुश्किल से चल-फिर पाते हैं। कारगिल युद्ध में शहीद हुए अफसरों, सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पम्प और खेती की जमीन मुहैया करवाने की घोषणा की थी। लांस नायक सतवीर सिंह को भी जीवनयापन के लिए पांच बीघा जमीन दी गई थी। इसके साथ ही पेट्रोल पम्प भी दिया जाने वाला था। सरहद पर पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियां खाने वाले इस जवान ने बडी मेहनत से जमीन पर फलों का बाग लगाया। तीन साल बीतते-बीतते बाग हरा-भरा हो गया। उनके खून-पसीने की हरियाली पर किसी दबंग की नजर गडी थी। पांच बीघे का बाग उनसे छीन लिया गया। इसी तरह से एक बडी पार्टी के नेता को देश के लिए लडने वाले सैनिक का पेट्रोल पंप मालिक होना इतना चुभा कि उसने उन पर दबाव डाला कि जमीन व पेट्रोल पम्प उनके नाम कर दो। सैनिक ने इनकार कर दिया, लेकिन नेता की पहुंच और दबंगई भारी पड गयी। धमकाने-चमकाने की झडी लगा दी गयी। गुंडई जीत गई। बाग की तरह पेट्रोल पंप भी उनसे छिन गया। इस लूटकांड के बाद जांबाज सैनिक को व्यवस्था से जंग करनी पड रही है। वर्षों बीत गए। पेट्रोल पम्प और जमीन की फाइल ऐसी अटकी है कि कारगिल के इस नायक की चक्कर काटते-काटते पता नहीं कितनी चप्पलें घिस चुकी हैं और बैसाखियां टूट चुकी हैं। मेरी तो सैनिक को यही सलाह है कि उन्हें उस दुष्ट नेता का नाम उजागर कर देना चाहिए। देशवासी भी तो जानें कि जनसेवा करने का दावा करने वाले राष्ट्र भक्तों का असली सच क्या है। बदमाशों के चेहरे के नकाब हटने ही चाहिए।
अभी हाल ही में एक पत्रकार ने देश के एक सैनिक से देश भक्ति की परिभाषा पूछी तो उनका जवाब इन शब्दों में आया- "अपने काम को पूरी इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से करना ही सच्ची देशभक्ति है। मेरा काम देश की रक्षा करना है और अगर मैं वह अच्छे से कर रहा हूं तो राष्ट्र भक्त हूं। इसी तरह से किसी भी प्रोफेशन में जो भी है, वह वहां अपना काम सूझबूझ और ईमानदारी से कर रहा है तो सच्चा देश प्रेमी है।
सच तो यह है कि देश के अधिकांश नेताओं से जब राष्ट्रप्रेम की परिभाषा पूछी जाती है तो वे आम आदमी को उलझा कर रख देते हैं। जाति, धर्म के जाल में उलझे इन कपटियों की सोच और परिभाषाएं समय और मौका देखकर तय होती हैं। यही वजह है कि देश में ऐसे राजनेता कम ही हैं जिनकी विश्वसनीयता बची हुई है। राजनेताओं और सत्ताधीशों की गलत नीतियों की वजह से अमीरों और गरीबों के बीच का फासला लगातार बढता चला जा रहा है। सरकार चलाने वाले दिन-रात ढोल पीट रहे हैं कि रोजगार मुहैया कराए जा रहे हैं।
दिल्ली सरकार का तो यह दावा है कि सरकार घर-घर तक राशन पहुंचा रही है। सवाल उठने लगा है कि आखिर गरीबों के हिस्से का भोजन कहां जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं यह योजना महज कागजी है। यथार्थ कुछ और है। केंद्र और राज्य सरकारें यह कहते भी नहीं थकतीं कि किसानों के अच्छे दिन आ गए हैं। उनका कर्ज माफ हो रहा है, लेकिन जो सच सामने है, वह दिल को दहला देने वाला है। महाराष्ट्र के ग्राम सावखे‹डतेजन में बीते रविवार को एक युवा किसान अपनी चिता सजाकर उस पर जिंदा जल गया। सत्तर हजार रुपये के कर्ज के तले दबे इस किसान ने चिता पर लेटने के बाद जहर पिया। यानी वह किसी भी हालत में जीना नहीं चाहता था। अगर कहीं आग से बच जाता तो जहर उसके प्राण ले ही लेता। पुख्ता मौत के लिए जिंदा जल मरने की यह इकलौती घटना नहीं है। ऐसी हृदय विदारक घटनाओं के बारे में जब पढने और सुनने मात्र से कंपकपी छूटने लगती है तो सोचें कि आत्महत्या करने वाले किसानों की कैसी मानसिक स्थिति रहती होगी? खुद की चिता के लिए खुद ही लड़कियां यां और केरोसीन का इंतजाम करना कोई बच्चों का खेल तो नहीं। आधुनिकता के इस युग में अंधविश्वास, घृणा, उदासीनता और अविश्वास की कोई सीमा नहीं रही। पडोसी किस हाल में है इसकी भी चिंता करने की जरूरत नहीं समझी जाती। देश की राजधानी में तीन बच्चियों की भूख से दुखद मौत हो गई। बच्चियों का पिता रिक्शा चलाता था और मां की मानसिक हालत दुरुस्त नहीं थी। बच्चों के साथ-साथ वह भी कई दिन तक भूखी रहती थी। पिता जिस रिक्शा को चलाता था उसे बदमाशों ने छीन लिया। इसके बाद उसने कभी होटल पर बर्तन मांजे तो कभी मजदूरी की, लेकिन इससे होने वाली कमाई शराब की भेंट चढ जाती थी। यह शख्स कुछ वर्ष पूर्व चाय और पराठे का ढाबा चलाता था। उसे जानने वाले बताते हैं कि उसकी दुकान अच्छी चलती थी। अनेकों रिक्शा-ठेलेवाले उसके स्थायी ग्राहक थे। कई बार जब उनकी जेब खाली होती थी तो वह उन्हें मुफ्त में खाना खिला दिया करता था। कोई गरीब बेसहारा उसके यहां पहुंच जाता तो वह उसे खुशी-खुशी खाना खिलाता। जो खाना बच जाता उसे भिखारियों में बांट देता था। ऐसे परोपकारी इंसान की तीन बच्चियों की भोजन न मिलने के कारण हुई मौत हमारे समाज को भी कटघरे में खडा करते हुए प्रश्न कर रही है क्या इंसान की संवेदनाएं लुप्त होती चली जा रही हैं? कुछ लोग कहते हैं कि इंसान जानवर बनता चला जा रहा है। क्या वाकई यह सच है? एक जुलाई २०१८ की रात दिल्ली के बुराडी में एक ही परिवार के ११ सदस्यों ने अंधविश्वास के चक्कर में आत्महत्या कर ली थी। इस घटना से उस परिवार के रिश्तेदारों और पास-पडोसियों से ज्यादा उनके कुत्ते टामी को आघात पहुंचा था। घटना के बाद टामी की हालत बहुत नाजुक हो गई थी। उसने खाना-पीना छोड दिया था। गुमसुम रहने लगा था। वह अपने परिवार को इधर-उधर तलाशते हुए रात भर रोता तो अचानक गुस्सा हो जाता। उसका स्वभाव पूरी तरह से बदल गया था। अपनों को खोने का सदमा बर्दाश्त न कर पाने वाले टामी की भी कुछ दिनों के बाद दिल का दौरा पडने से जान चली गई। हरियाणा के मेवात इलाके में गर्भवती बकरी तडप-तडप कर मर गई यह मौत स्वाभाविक मौत नहीं थी। उसके साथ आठ इंसानों ने सामूहिक बलात्कार किया था।