Thursday, June 24, 2010

भाजपा तो है थैलीशाहों की पार्टी

जब से संघ की पसंद नितिन गडकरी ने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी पायी है तभी से पार्टी की इमारत धसकती-सी दिखायी देने लगी है। इस डगमगाती इमारत पर कई नेता अपना-अपना डंडा लेकर खडे हैं। डंडे में झंडा कहीं नजर नहीं आ रहा है। नितिन गडकरी भले ही यह कहते नहीं थक रहे हों कि भारतीय जनता पार्टी काम करने वालों की कदर करना जानती है और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वे स्वयं हैं जो कभी दिवारों पर पोस्टर चिपकाया करते थे और आज पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं। अध्यक्ष महोदय सच कहते हैं या झूठ यह भी खोज और शोध का विषय है।जिन्होंने भाजपा को बहुत करीब से देखा और जाना है उनका निष्कर्ष तो यही बताता है कि यह पार्टी रईसों की पार्टी है। इसमें सौदागरों की भरमार है। खाली जेब वालों की यहां कोई पूछ-परख नहीं होती। वैसे तो देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी का यह उसूल बन चुका है कि विधान परिषद और राज्यसभा में धन्नासेठों को ही पहुंचाओ और फटेहालों को दिलासा देकर मुंह ताकते रहने के लिए छोड दो। पर भाजपा तो इस मामले में सबको मात देती चली आ रही है। एडवोकेट राम जेठमलानी का नाम तो आपने जरूर सुना ही होगा। यह महाशय देश के बडे नामी वकील कहलाते हैं। सिर्फ रईसों के ही केस लडते हैं। गरीब इन तक पहुंचने की सोच ही नहीं सकते, क्योंकि इनकी कोर्ट में एक बार खडे होने की फीस ही पंद्रह से पच्चीस लाख रुपये तक है। जाहिर है कि बहुत मालदार हैं वकील साहब...। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना इन पर हमेशा मेहरबान रही है। हद दर्जे के मतलब परस्त जेठमलानी जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने से भी नहीं चूकते। जब देश में राजग की सरकार थी और संत पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब जेठमलानी को केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। मंत्री पद पर रहते हुए इस शख्स ने ऐसी-ऐसी नौटंकियां कीं कि आखिरकार मंत्री की कुर्सी छिन गयी। तब जेठमलानी की बौखलाहट देखने लायक थी। अटल जी से खुन्नस खा चुके जेठमलानी ने बाद में अटल जी के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लडा और मुंह की खायी। रईस अपराधियों और देश के गद्दारों तक की पैरवी करने वाले जेठमलानी हद दर्जे के असभ्य अहंकारी और बदतमीज भी हैं। पता नहीं भाजपा की कौन-सी कमजोर नस उनकी मुट्ठी में है कि 'थाली छेदक' को दुत्कार के बदले उपहार ही मिलता चला आ रहा है। बताते हैं अटल जी से जबर्दस्त वैमनस्य रखने वाले जेठमलानी का भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी से गजब का याराना है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के नये अध्यक्ष गडकरी जेठमलानी को राज्यसभा की सदस्यता से नवाजने के लिए मजबूर हो गये। अस्सी वर्ष से ऊपर के हो चुके भाजपा के इस नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य ने मीडिया की तौहीन करके दिखा दिया है कि इनकी सनक मिजाजी और हेकडी जस की तस है। राम जाने यह शख्स राज्यसभा में कैसे-कैसे गुल खिलायेगा...। इस हकीकत से तो हर कोई वाकिफ है कि अपने यहां के न्यूज चैनल वालों को विवादास्पद चेहरों का साक्षात्कार लेना और दिखाना कुछ ज्यादा ही सुहाता है। इसी परिपाटी का पालन करते हुए स्टार न्यूज चैनल के दीपक चौरसिया जेठमलानी के राज्य सभा सांसद निर्वाचित होते ही साक्षात्कार लेने के लिए उनके निवास स्थान पर जा पहुंचे। जेठमलानी को गदगद होना चाहिए था कि मीडिया उनके जैसे सत्ता खोरों को खास तवज्जो देता है। पर ऐसा हुआ नहीं...।पत्रकार दीपक चौरसिया ने साक्षात्कार के दौरान जेठमलानी के अतीत और वर्तमान को लेकर कुछ ऐसे सवाल दाग दिये कि वे आग बबूला हो गये। उन्हें लगा कि यह पत्रकार किसी दुश्मन का भेजा हुआ कोई ऐसा दलाल है जो उनके मुखौटे को नोच डालना चाहता है। बडे-बडे गुंडे-बदमाशों और अपराधियों को अपने तर्कों के दम पर बरी करवा चुके वकील को सच की सुई ने इस कदर आहत कर दिया कि वे आपे से बाहर होकर अशिष्ट भाषा पर उतर आये- ''तुम सब मीडिया वाले असभ्य और जाहिल हो। जहां-तहां बिछ और बिक जाते हो। कांग्रेस के तो तुम जरखरीद गुलाम हो। इसलिए तुम जैसों को तो मैं देखना भी पसंद नहीं करता... तुम्हारी भलाई इसी में है कि फौरन मेरे घर से बाहर हो जाओ। नहीं तो...!''जेठमलानी की दुत्कार सुनने के बाद पत्रकार दीपक चौरसिया मुंह लटका कर बदतमीज सांसद के घर से बाहर निकल गये। परंतु जिन लाखों सजग लोगों ने पूरे तमाशे का जीता जागता चित्रण टेलीविजन पर देखा वे तो जेठमलानी और भाजपा को जी भरकर कोसते रह गये। पत्रकार दीपक चौरसिया का अहंकारी और सनकी सासंद के समक्ष चुप्पी साधे रहना किसी भी मीडिया प्रेमी को रास नहीं आया। लगता है वे अपने न्यूज चैनल पर जो तमाशा दिखाना चाहते थे उसे उन्होंने बेइज्जत होकर फिल्माया भी और दिखाया भी। यही उनका असली मकसद था। अधिकांश न्यूज चैनल वाले आजकल ऐसे ही पत्रकारिता कर रहे हैं। वाहियात नेता के समक्ष नामी-गिरामी पत्रकार की चुप्पी के भला और क्या मायने हो सकते हैं? क्या यह भी मान लिया जाए कि पत्रकार बंधु किन्हीं मजबूरियों के वशीभूत होकर अपनी खुद्दारी भी गिरवी रखते चले जा रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी को जेठमलानी जैसे 'चेहरे' मुबारक हों। बेचारी की समझ में अब यह बात तो आने से रही कि किनकी वजह से उसके पांव के नीचे जमीन लगातार दरकती ही जा रही है...। जेठमलानी जैसे खरबपतियों को कुर्सियां बांटने वाली पार्टी के अध्यक्ष से कोई यह भी तो पूछे कि जनाब अगर आपकी पार्टी में पोस्टर लगाने वालों को तरजीह दी जाती है तो फिर जेठमलानी जैसे धनपतियों का भाजपा में वर्चस्व क्यों है? लोगों की यह धारणा कहां पर गलत है कि भाजपा थैलीशाहों का जमावडा है। इसके आगे और पीछे सिर्फ और सिर्फ थैलीशाह ही खडे हैं। अभी हाल में बिहार में मोदी के विज्ञापनों के प्रकाशन को लेकर जो हंगामा हुआ उसके पीछे का सच भी जान लीजिए। बिहार की राजधानी पटना में मोदी को प्रचारित करने वाले तमाम विज्ञापन सूरत के एक भाजपा सांसद के जरिए छपवाये गये थे। गुजरात में हुए सहकारी बैंक घोटाले के खलनायक रहे इस सांसद ने गुजरात के हीरा व्यापारियों से मोटी उगाही कर इन विज्ञापनों के बिल का भुगतान किया१ वैसे भी टाटा-बिडला और तमाम अंबानियों की जमात नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाये जाने की चाह व्यक्त करती रही है। इसी से समझा और जाना जा सकता है कि भाजपा को कितने...कितने पावरफुल धनबलियों का साथ मिलता चला आ रहा है। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जैसों के शोर मचाने से क्या फर्क पडता है...

Thursday, June 17, 2010

मुसलमान कब तक होते रहेंगे राजनेताओं के छल-कपट के शिकार?

धिक्कार है उन राजनेताओं पर जो रंग दर रंग बदलते हुए गिरगिट को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। लानत है उन पर जो अपने ही देशवासियों के साथ छल-कपट करने में कतई नहीं कतराते। उन पर भी लानत है जिनके लिए इस देश के मुसलमान सिर्फ और सिर्फ वोटर भर हैं। देश की राजनीति के प्रख्यात-कुख्यात दलाल अमर सि‍ंह को इन दिनों मुसलमानों की बहुत चिन्ता सता रही है। हाल ही में उनका बयान आया है कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा मुसलमानों को बेवकूफ बनाया है और येन-केन-प्रकारेण उनके वोट हथियाने के मकसद को पूरा किया है। यह वही अमर सि‍ंह हैं जो चौदह वर्षों तक समाजवादी पार्टी में रह चुके हैं और पार्टी सुप्रीमो मुलायम सि‍ंह के हर फैसले में शामिल हुआ करते थे। पार्टी से धकियाये जाने के बाद अब उन्हें मुसलमानों के साथ होते चले आ रहे भेदभाव और अवहेलना की चिन्ता इस कदर सताने लगी है कि मंचों पर भाषण देते-देते रुआंसे हो जाते हैं। उन्होंने अभी कोई राजनीतिक पार्टी तो नहीं बनायी, पर एक 'मंच' (लोकमंच) जरूर बना लिया है जिसकी छाती पर सवार होकर किसी को कोसने और किसी को चूमने-चाटने का नाटक करते रहते हैं। राजनीति में बुरी तरह से पिटने के बाद फिल्मों में लटके-झटके दिखाने में लगे अमर सि‍ंह ने ऐलान किया है कि आगामी विधान सभा चुनाव जीतने के बाद उनका मंच किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बना कर ही दम लेगा। अमर सि‍ंह की तरह और भी बहुतेरे नेता हैं जो मुसलमानों को रिझाने और लुभाने के लिए शाब्दिक चारा फेंकते रहते हैं। अन्दर से भले ही मुसलमानों के प्रति कैसी भी सोच रखते हों पर ऊपर से सभी मुसलमानों के शुभ्‍‍ाचि‍न्‍‍तक दिखना चाहते हैं। बीते सप्ताह बिहार में गजब का नजारा देखने में आया। एक असली फोटो ने दंगल-सी हालत पैदा कर दी। बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल युनाईटेड मिल-जुलकर सरकार चला रहे हैं। तय है कि दोनों पार्टियों ने एकजुट होकर विधान सभा चुनाव लडा था और लालू प्रसाद यादव का पत्ता साफ करने में सफलता पायी थी। दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे के अहसानमंद थे। नीतीश कुमार सफलता पूर्वक साढे चार साल से मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले चले आ रहे हैं और कहीं न कहीं उनके मन में यह बात बैठ गयी है कि उन्होंने बिहार के लिए इतना कुछ कर दिया है कि लोग अब सिर्फ उनको देखकर ही सिर पर खडा अगला विधान सभा चुनाव जितवा देंगे। दूसरी तरफ भाजपा वालों ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। भाजपा के थके-हारे नेता लालकृष्ण आडवाणी भले ही बिहार का अगला विधान सभा चुनाव जनता दल युनाईटेड के साथ लडने की मंशा रखते हों पर नये भाजपा कप्तान नितिन गडकरी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कोई अलग-सी खिचडी पकाने के फेर में हैं। भाजपा के तेजतर्रार नेता नरेंद्र मोदी अपने किस्म की राजनीति करने में विश्वास रखते हैं। बीते सप्ताह उन्होंने बिहार की जमीन पर पैर रखने से पहले बिहार के अखबारों में ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करवा दिये कि नीतीश के तन-बदन में आग लग गयी। उस पुरानी फोटो ने उन्हें आगबबूला कर दिया जिसमें वे और नरेंद्र मोदी एक दूसरे का हाथ थामे विजयी मुद्रा में मुस्करा रहे थे। यह फोटो फर्जी नहीं असली थी। पर नीतीश कुमार के तो होश ही उड गये। उन्हें लगा कि भाजपा वाले उनके मुस्लिम वोटों पर डाका डालने की साजिश को अंजाम देने की फिराक में हैं। बिहार के मुस्लिम मतदाता दो यारों की लुभावनी फोटो को देखकर बहक न जाएं इसलिए नीतीश कुमार ने हंगामा खडा कर दिया। गुजरात के नरेंद्र मोदी की यह मजाल कि वे बिहार में आकर तमाम अखबारों में ऐसी तस्वीर और ऐसी तकरीर छपवा दें जिससे उनके वोट बैंक पर नकारात्मक असर पडे और मुसलमान भाई बिचक जाएं। सवाल यह उठता है कि अगर नीतीश कुमार की निगाह में मोदी इतने साम्प्रदायिक हैं तो उन्होंने चहकते हुए मोदी के हाथ को अपने हाथ में लेकर वो फोटो क्या सोच कर ख्‍ि‍ाचवायी थी? नीतिश कुमार के पास इतना बडा झूठ बोलने की गुंजाइश भी नहीं है कि वे कह सकें कि यह फोटो गोधरा कांड के पहले ि‍ख‍ंचवायी गयी थी। तय है नीतीश जब यह पोज दे रहे थे तब भी मोदी वही थे जो आज हैं। पर नीतीश बदल गये हैं। उन्हें बिहार के सोलह प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के हाथ से निकल जाने का भय सताने लगा है। नरेंद्र मोदी के छपवाये गये विज्ञापन में यह भी कहा गया कि संकट की घडी में गुजरात ही था जिसने बिहार की सर्वाधिक सहायता की। नीतीश इस सच्चाई को भी नहीं झेल पाये। उन्हें लगा कि उनके दोनों गालों को थप्पडों से लाल कर दिया गया है। नरेंद्र मोदी कोई साधु-संत तो हैं नहीं कि अवसर का फायदा न उठायें। उन्होंने वही किया जो अभी तक दूसरे शातिर नेता करते चले आ रहे हैं।यह मुसलमानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें इस देश की हर पार्टी ने अपने मकसद के लिए ही इस्तेमाल किया है। यह भी मुसलमानों की बदनसीबी ही है कि इस देश में ऐसे ‘दल‘ भी हैं जिनकी निगाह में अधिकांश मुसलमान गद्दार हैं। खाते हि‍ंदुस्तान की हैं और गाते पाकिस्तान की हैं। भारतीय मुसलमानों की छवि को बिगा‹डने में नेताओं का बहुत बडा हाथ है। मीडिया, लेखकों और चि‍न्‍‍तकों के एक वर्ग ने मुसलमानों की अनेक मनग‹ढंत छवियां बनाने और पेश करने में कोई कसर नहीं छोडी। हि‍ंदुस्तान के एक जाने-माने पत्रकार और लेखक तो यह मानते हैं कि आम मुसलमानों का तबका आठ-दस बच्चे पैदा करने में विश्वास रखता है। परिवार नियोजन से उसका कोई लेना-देना नहीं है। इनके बच्चे गली-कूचों की गंदगी में खेलते रहते हैं और यह लोग अंधेरी, बदबूदार गंदी बस्तियों में इतने रम गये हैं कि उनसे बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारना नहीं चाहते। देश के अधिकांश मुसलमान अपनी औरतों और बच्चियों को आज भी आधुनिकता के उजाले और शिक्षा से दूर रखना चाहते हैं। अपने आपको कुछ ज्यादा जानकार समझने वालों का यह भी कहना है कि मुसलमान धर्म के आधार पर मतदान करते हैं और उनकी यही कोशिश रहती है कि उनका वोट मुस्लिम प्रत्याशी को ही जाए। भारतीय मुसलमानों के बारे में और भी कई ऐसी ऊटपटांग बातें समय-समय पर प्रचारित होती रहती हैं जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। असली सच तो यह है कि अपने देश में कुछ राह भटके मुसलमानों के कारण पूरे मुसलमानों की शक की निगाह से देखने वालों की कमी नहीं है। नरेंद्र मोदी जैसे नेता इन्हीं ‘शकी‘ लोगों के नायक हैं। यह हकीकत है कि आप अगर किसी को शक की निगाह से देखेंगे तो वह भी आप पर विश्वास करने से कतराने लगेगा। आजादी के ६३ साल बाद भी मुसलमानों का बहुत बडा वर्ग एक अजीब कश्मकश के दौर से गुजर रहा है। उनमें एकजुटता का घोर अभाव है। किसी भी दल के नेता ने कभी भी मुस्लिमों के हालात सुधारने के प्रयास नहीं किये। मुसलमानों के पास अपना ऐसा कोई मुस्लिम नेता नहीं है जो वाकई ईमानदार हो। अगर मुस्लिम नेता नेकनीयत के साथ अपने समुदाय का नेतृत्व करते तो कोई भी तथाकथित विद्वान मुसलमानों की तरह-तरह की छवियां गढने की जुर्रत नहीं कर पाता। न ही ‘दलालों‘ को मुसलमानों की झूठी तरफदारी करने का कोई मौका मिलता।

Thursday, June 10, 2010

रामू की उडान

हरिद्वार में रहने वाले एक मित्र बताते हैं कि आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व एक दुबला-पतला लडका पैदल या फिर सायकल से शहर की सडकें नापा करता था। उसकी बातचीत और पहनावे से लगता था कि उसने बचपन से ही भगवाधारी साधु-संत बनने की चाह पाल रखी है। देश की प्रख्यात तीर्थनगरी हरिद्वार जहां पर एक से बढकर एक साधु-संतों का हमेशा मेला लगा रहता हैं वहां पर उसकी दाल गल पाना कोई सहज बात नहीं थी। वह लडका बेरोजगार था और अक्सर हर की पौडी के निकट स्थित दुकानदारों के यहां अपनी हाजिरी लगा दिया करता था। दुकानदार भी उससे परिचित थे। जब कभी किसी दुकानदार के यहां ग्राहकों की भीड होती और उन्हें वह लडका आस-पास घूमते हुए दिख जाता तो वे उसे फौरन आवाज लगाते...अरे रामू जरा चायवाले को दुकान पर चाय भेजने को कह देना। और हां खुद भी एक प्याली गटक लेना। लडका फौरन हुक्म बजाता। इस तरह से उसे कहीं से चाय तो कहीं से रोटी-सब्जी मिल जाती। उस साधारण से दिखने वाले लडके ने असीम महत्वाकांक्षाएं पाल रखी थीं। वह गजब का कर्मठ भी था। वो कल का रामू आज योग बाबा रामदेव के नाम से देश और दुनिया में अपना डंका बजाये हुए है। नामी-गिरामी उद्योगपति, राजनेता, व्यापारी, नौकरशाह उसे सलाम करते हैं। हरिद्वार के वो छोटे-मोटे दुकानदार और रेडीवाले अपने रामू को अखबारों और टीवी चैनलों के पर्दे पर देखकर गर्व से अपना सीना फुला लेते हैं। रामू आज उनके लिए दूर की कौडी हो गया है। उस तक पहुंचना उनके लिए कतई आसान नहीं रहा। उनका रामू अब पैदल या सायकल पर नहीं हवाई जहाजों से देश विदेश की यात्राएं करता है। हरिद्वार के कई संतों को बाबा रामदेव ओर फरेबी बाला राखी सावंत में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। हरिद्वार के लोग अपने रामू के बारे में कुछ भी कहें पर रामू के नये अवतार बाबा रामदेव को हाशिये में डालना आसान नहीं है। आज देश के बडे-बडे मीडिया ग्रुप उनके साथ हैं। सम्पादक, पत्रकार और सत्ताधीश उनके साथ मंच पर जगह पाने के लिए तरसते रहते हैं। धनबलि और बाहुबलि भी उनके लिए कोई भी ‘सेवा‘ कर गुजरने को आतुर रहते हैं। आज उनके पास क्या नहीं है। अपने प्रचार के लिए उन्होंने अपना टेलीविजन चैनल खरीद लिया है। लोगों तक पहुंचने के लिए जिन जरुरी साधनों की जरुरत होती है वे सब उन्होंने ‘योग‘ के माध्यम से जुटा लिये हैं। यकीनन वे आज खरबों में खेल रहे हैं। योग की दुकानदारी उन्हें रास आ गयी है। प्रवचनों का कारोबार उन्हें इस कदर नामचीन न बना पाता। इसलिए उन्होंने लोगों को योगासन कराने का रास्ता पक‹डा और सफलता झटक ली। बाबा अब जमीन पर नहीं आसमान पर उड रहे हैं। तभी तो वे यह फरमाने से नहीं चूके कि मुझे (अब) राजनीतिक पावर की जरुरत नहीं है। मैं अपने आप में ही इतना पावरफुल हूं कि देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मेरे चरणों में आकर बैठते हैं। योगगुरू ने जिस अंदाज से यह वक्तव्य दिया उससे कई लोगों को पीडा हुई। क्रोध भी आया। कहा जाने लगा कि बाबा अहंकारी हो गया है। अकड आ गयी है। जमीन पर पैर नहीं पड रहे हैं। संत को तो विनम्र भाषा बोलनी चाहिए। सच्चे साधु को अहंकार शोभा नहीं देता। लगता है रामदेव माया-मोह के चक्कर में प‹डकर अपना अतीत भूल गये हैं। ऐसे अहंकारी का पतन होकर ही रहता है। पर योगी ने बहुत सोच समझकर अपने बोलवचनों की तेजाबी बरसात की है। वैसे भी वे शुरू से बडबोलेपन के शिकार रहे हैं। पर अब उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह गलत भी तो नहीं है। वे जहां जाते हैं वहां पर आम लोगों के पहुंचने से पहले मंत्रियों-संत्रियों की फौज पहुंच जाती है। यह फौज इस सच से वाकिफ है कि आज देश भर में बाबा के चाहने वालों की तादाद करोडों में है। बाबा के आगे-पीछे मंडरायेंगे तो अपना भी भला हो जायेगा। वोटों की फसल तैयार हो जाएगी। अब इन नेताओं को कौन समझाये कि वो पहले वाली बात नहीं रही जब बाबा उनके सानिध्य के लिए तरसा करते थे। आज उनकी तूती बोलने लगी है। वे ऐलान कर चुके हैं कि वे राजनीति से जुडने जा रहे हैं वे खुद चुनाव नही लडेंगे। देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का भी उनका कोई इरादा नहीं है। योगी जानता है कि इस देश मं ‘त्याग‘ की बडी महिमा है। सोनिया गांधी ने भी इसी त्याग का फार्मूला अपनाया था ओर आज अपने इशारों पर देश की सरकार चला रही हैं। अपने सपने का साकार करने की जोडतोड में जुटे बाबा को जब अपने लोगों को चुनाव लडवाना है तो फिर ऐसे में वे अपने वोट बैंक में सेंध क्यों लगवायें...। वे बाल ठाकरे की तरह किंगमेकर की भूमिका में छा जाने को उत्सुक हैं। वे अपने चहेतों को गद्दी पर विराजमान होते देखना चाहते हैं। वे अपने ढंग से पावर हासिल करना चाहते हैं। इसे लोग भले ही किसी भी रूप में लें पर योगी को किसी की कोई परवाह नहीं है। योगी को यकीन है कि वह धीरेंद्र ब्रम्हचारी, जयगुरूदेव बाबा और चंद्रास्वामी की तरह पटकनी नहीं खायेंगे और देखते ही देखते जिसतरह से योग के धंधे में छा गये वैसे ही राजनीति में भी छा जायेंगे। रामू से योग गुरू बाबा रामदेव बनने का लंबा सफर यूं ही तय नहीं हो गया।

Thursday, June 3, 2010

शरणार्थियों की बस्ती

कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर ही देती हैं। आप लाख चाहें पर उन्हें नजर अंदाज नहीं कर सकते। उल्हासनगर की इस खबर को ही लीजिए जिसे प‹ढते ही मैं खुद को कलम चलाने से रोक नहीं पाया। मुंबई के निकट स्थित उल्हासनगर में तीन हजार से अधिक पत्रकार हैं! इनमें से अधिकांश पत्रकारों का एक सूत्रीय लक्ष्य हफ्ता वसूली का है। अधिकांश पत्रकार ऐसे हैं जो दिन भर अपने शिकार की खोज में लगे रहते हैं। जनजीवन से जुडी आम खबरों से उनका कोई वास्ता नहीं है। अपने वाहनों पर पत्रकार लिखकर घूमते ये शिकारी हमेशा इस बात की जानकारी लेने के लिए दौड-भाग करते रहते हैं कि शहर में कहां-कहां अवैध धंधे चल रहे हैं, अतिक्रमण हो रहे हैं और कौन-सी योजना के लिए कितना सरकारी फंड स्वीकृत हुआ है या फिर होने जा रहा है। अराजक तत्वों को आश्रय देना और उनसे हफ्ता वसूल करना इनका पेशा बन चुका है। महानगर पालिका, पीडब्ल्यूडी, सि‍चाई विभाग, आबकारी विभाग और पुलिस वालों से भी इन्हें नियमित देन मिलती रहती है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो किसी अखबार या न्यूज चैनल से नहीं जुडे हुए हैं फिर भी बडी ठसन के साथ खुद को पत्रकार बताते हुए अपना कामधंधा कर रहे हैं। इनकी आलीशान कारों पर पत्रकार का स्टीकर लगा देख बडी-बडी हस्तियां भी इन्हें सलाम करती हैं और झुक कर पेश आती हैं। शहर की हर धडकन से वाकिफ कुछ सज्जनों का कहना है कि उल्हासनगर में जब से अवैध निर्माणों और अवैध धंधों की बाढ आयी है तभी से गली-गली में पत्रकार और अखबार निकालने वाले पैदा हो गये हैं। छुटभइये किस्म के नेताओं बिल्डरों और शराब माफियाओं ने भी अखबारों का प्रकाशन शुरू कर दिया है और वे बडे फख्र के साथ संपादक और अखबार मालिक कहलाते फिरते हैं। यहां पर अखबार चलने और बिकने से तो रहे फिर भी अखबारों की संख्या बढती ही चली जा रही है। स्थानीय लोगों में इस बात की चर्चा है कि उल्हासनगर में हजार-दो हजार रुपये में प्रेस का कार्ड आसानी से मिल जाता है। जो प्रेस कार्ड खरीद लेता है वही पत्रकार बन जाता है और शिकार फांसने में लग जाता है। नकली सामान बनाने और फिर उसे पूरे देश में खपाने के लिए उल्हासनगर को जो कुख्याति हासिल हो चुकी है उसमें निरंतर इजाफा करने में लगे हैं कुकरमुत्तों की तरह उगते और फैलते ये पत्रकार। उल्हासनगर और उससे एकदम सटे कल्याण में से उन सि‍ंधियों का वर्चस्व है जो देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से यहां आये और बसाये गये थे। दाऊद और अरुण गवली की तर्ज पर आपराधिक गतिविधियां चलाने और देखते ही देखते अरबों-खरबों का साम्राज्य खडा करने वाले पप्पू कालानी जैसे लोग यहां की राजनीति में भी छाये हुए हैं। पप्पू कालानी मर्द मराठा शरद पवार की मेहरबानी से विधायक बनने का आनंद भी भोग चुके हैं। पप्पू की धर्म पत्नी ज्योति कालानी भी राजनीति तथा समाज सेवा के क्षेत्र में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं। सत्ता और धन के बल पर पप्पू और ज्योति वो सारे गलत काम करते चले आ रहे हैं जिन्हें अवैध और अनैतिक माना जाता है। उल्हासनगर में ऐसे-ऐसे धनबलि और बाहुबलि हैं जो रातोंरात किसी का भी काम तमाम कर सकते हैं। प्रापर्टी और होटल व्यवसाय में लगभग इन्हीं की तूती बोलती है। मुंबई की तर्ज पर यहां के बीयर बारों और होटलों में जमकर देह व्यापार होता है जिसकी पुख्ता जानकारी पुलिस को भी रहती है और राजनेताओं को भी। पत्रकारों की तरह वे भी आंख, कान और मुंह बंद कर अपना काम करते रहते हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उल्हासनगर एक ऐसा टापू है जहां नेताओं, समाज सेवकों, गुंडे बदमाशों, पत्रकारों और पुलिस वालों के बीच ऐसा जबरदस्त गठजोड हो चुका है कि सारे मामले आपस में मिल बैठकर सुलझा और निपटा लिये जाते हैं। शाम होते ही कई पत्रकार आबकारी विभाग और पुलिस वालों के साथ दारू पीते देखे जा सकते हैं। मनपा के अधिकारियों का भी कई पत्रकारों से अटूट याराना है। दरअसल पत्रकार खबरी की भूमिका भी बखूब निभाते हैं। इसलिए हर किसी के काम आते हैं। पुलिस वालों को अवैध धंधो और धंधेबाजों की सूचना देकर अपना हिस्सा पाने वाले पत्रकारों का रूतबा भी देखते बनता है। खून-पसीना बहाने से परहेज करने वाले बेरोजगार नये-नवेले छोकरे भी इनसे प्रभावित हो रहे हैं। वे इन्हें अपना आदर्श मानते हुए इनके आगे-पीछे घूमते देखे जा सकते हैं। तय है कि शरणार्थियों की बस्ती का भविष्य बहुत उज्जवल है।