Thursday, November 28, 2019

नारी ही होती है दोषी!

'बीवी का सिर काटकर चौराहे पर लटकाने पहुंचा शराबी पति' इस शीर्षक के अंतर्गत छपी खबर ने चौंका और रुला दिया। यह तो इन्सान के खूंखार पशु बनने की पराकाष्ठा है। क्या कसूर था उस पत्नी का, जिसे उसके पति ने ऐसी मौत दी, जिससे लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। हत्यारे पिता के कारण चार मासूम बच्चों से सदा-सदा के लिए उनकी मां छिन गई। वे दर-दर भटकने को मजबूर हो गये। उन्हें हाथ में भीख का कटोरा थामने को विवश होना पडा? इस दरिंदे हैवान शैतान का नाम है, नरेश बघेल। नरेश की पंद्रह साल पूर्व शांति से शादी हुई थी। तीन बेटियां और एक बेटा है। सबसे बडी बेटी पायल तेरह साल की है। जब शादी हुई थी तब नरेश को शराब पीने का शौक था, लेकिन कालांतर में यह शौक उसकी बरबादी की गंदी आदत बन गया। घर में रोज की कलह का कारण बन गया। उस रात भी नरेश शराब पी रहा था। शांति रसोई घर में खाना बना रही थी। चारों बच्चे डरे-सहमें बैठे थे। नरेश पिछले दो घण्टे से शराब पीते हुए गालीगलौच किए जा रहा था। नरेश बाहर से पीकर तो आता ही था, घर में भी बच्चों के सामने पीने बैठ जाता था। कोई भी रात ऐसी नहीं गुजरती थी, जब उसका हाथ पत्नी पर नहीं उठता था। बच्चे भी नशे में धुत पिता के लात-घूसे और डंडे खाकर दहशत में जीने को विवश थे। वे हंसना भूल चुके थे। उन्हें न ढंग का खाना मिलता था और ना ही कपडे। अनाथों-सी हालत हो गई थी उनकी। पिता अधिकांश कमायी शराब में ही उडा देते थे। बच्चे इतने घबराये रहते थे कि अक्सर पिता के आने से पहले ही सो जाते थे, या सोने का नाटक करते थे। नरेश को शांति का पीने से रोकना-टोकना, समझाना और बडबडाना किसी शूल की तरह चुभता था। उसे लगता था कि शांति उसकी आजादी की शत्रु है। रोज-रोज उसकी पुरुष सत्ता को चुनौती देकर उसे अपमानित करती रहती है। वह उसकी पत्नी है, गुलाम है। उसे रोकने-टोकने का कोई हक नहीं। उसे अपनी कमायी को अपने तरीके से लुटाने का पूरा अधिकार है।
हमेशा की तरह उस रात भी पति और पत्नी में काफी देर तक लडाई-झगडा होता रहा। पतिदेव के हाथों पिटने के बाद पत्नी सोने चली गई। दो दिन पहले नरेश ने अपने एक दोस्त को शराब पीने के लिए घर में आमंत्रित किया था। जब दोनों पीते-पीते लगभग बेसुध हो गए थे तब शांति ने उसके दोस्त को जो नुकीली शाब्दिक फटकार लगायी थी, उससे नरेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। तभी उसने बेहद खतरनाक फैसला कर लिया था। बांका (हथियार) भी खरीद कर घर में लाकर रख दिया था। सुबह करीब ५.३० बजे जब शांति गहरी नींद में थी तब नरेश ने उसके गले में ऐसा जोरदार प्रहार किया कि उसका सिर धड से अलग हो गया। शांति को तडपने का मौका ही नहीं मिला। उसके बाद हैवान, शैतान नरेश बीवी के कटे सिर को एक कनस्तर में लेकर हरिपर्वत चौराहे पर जा पहुंचा। वह कटे हुए सिर को ट्राफिक सिग्नल के खंभे में लटकाने की कोशिश में लगा था कि ट्राफिक सिपाही की उस पर नजर पड गई। पहले तो उसे लगा कि कहीं कोई आतंकी बम रखने तो नहीं जा रहा है। दरअसल, प्रदेश में राम मंदिर का फैसला आने के बाद हाई अलर्ट जारी किया गया था। हर कोई सजग और सतर्क था। उत्तरप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी आगरा की पुलिस भी पूरी तरह से मुस्तैद थी। उस सिपाही ने बडी फुर्ती के साथ नरेश के करीब पहुंच कर उसे दबोच लिया। उसके मुंह से शराब की तीखी गंध आ रही थी। सिपाही ने कनस्तर को खोला तो सन्न रह गया। आटे के कनस्तर में नारी का कटा हुआ सिर था। सिपाही ने तुरंत पुलिस थाना में फोन कर सूचना दी। ३५ वर्षीय इस नृशंस हत्यारे ने जो कहानी सुनाई उसे सुनकर पुलिस अधिकारी भौंचक रह गए। उसके चेहरे पर पश्चाताप की जगह किसी युद्ध को जीतने के बाद की खुशी थी। उसका कहना था कि चौराहे पर पत्नी के सिर को टांगकर वह सभी महिलाओं को सतर्क करना चाहता था कि कभी भूले से भी अपने पतिदेव की मौजमस्ती और शराबखोरी में बाधक न बनें। जो औरतें यह भूल करती हैं, वे सावधान हो जाएं। पुरुष को हैवान बनने और उसके दिमाग को पटरी से उतरने में देरी नहीं लगती...।
दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एकतरफा प्यार में पगलाये पहलवान सोमवीर ने ताइक्वांडो खिलाडी सरिता की हत्या कर दी। एक साल पहले २५ वर्षीय सरिता रोहतक में एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए गई थी। वहीं पर उसकी मुलाकात सोमवीर से हुई। राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर नाम कमाने वाला सोमवीर पहली ही मुलाकात में सरिता पर लट्टु होकर एकतरफा मुहब्बत करने लगा था। कुछ दिनों के बाद ही पहलवान ने सरिता से शादी करने की जिद पकड ली, लेकिन सरिता ने पूरी तरह से इनकार कर दिया, लेकिन वह नहीं माना। वह सरिता को तरह-तरह से परेशान कर जान से मारने की धमकियां देने लगा। पुलिस में उसकी शिकायत दर्ज करवाई गयी, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पडा। एक दिन वह सुबह चार बजे दीवार फांदकर उसके घर में जा घुसा और वही जिद पकड ली। घर के लोगों के विरोध करने पर उसने बरामदे में खडी सरिता पर गोली चलाई और भाग खडा हुआ। सरिता जयपुर के एक कॉलेज से फिजिकल एजुकेशन में ग्रैजुएशन की पढाई कर रही थी। करीब ४ साल तक ताइक्वांडो खेलने के बाद वह खेलों को ही अपना कैरियर बनाना चाहती थी, लेकिन एकतरफा प्यार में अंधे हुए पहलवान ने उसके सपने एक ही झटके में खत्म कर दिए और अपना भी वर्तमान और भविष्य चौपट कर दिया।
लगभग दो वर्ष पूर्व विक्की और ज्योति की दोस्ती फेसबुक पर हुई थी। विक्की से दस वर्ष बडी ज्योति के दस और सात साल के दो बेटे थे। कुछ वर्षों से पति से अलग रह रही थी। जब दोनों की पहली मुलाकात हुई तो विक्की ने प्यार का इज़हार कर दिया। उसके बाद उनका होटल के कमरे में मिलने का दौर शुरू हो गया। वे अक्सर सुबह नौ-दस बजे होटल आते और रात को ११ बजे तक चले जाते थे। इसलिए होटल स्टाफ दोनों को अच्छी तरह से जानता था। हमेशा की तरह उस दिन भी दोनों ने जमकर शराब पी और काफी देर तक मौजमस्ती करते रहे। इसी बीच नशे में धुत ज्योति ने किसी बात पर विक्की को थप्पड जड दिया। इससे पहले विक्की भी कई बार नशे में ज्योति की पिटायी कर चुका था। ज्योति के लिए तो यह भी प्रेमी के प्यार करने का एक अंदाज था, लेकिन विक्की प्रेमिका के थप्पड को सह नहीं पाया। उसके तन-बदन में आग लग गई। उसे लगा कि एक अदनी-सी औरत ने उसके पौरुष को चुनौती दी है। सीना तानकर ललकारा है। उसकी इज्जत की धज्जियां उडा कर रख दी हैं। प्रेमिका शराब के नशे के खुमार में डूबी थी और प्रेमी उसका गला घोंट होटल से भाग खडा हुआ। और अब... कमरे में तेज आवाज में कोई पुराना फिल्मी गाना चल रहा था और बिस्तर पर एक लाश पडी थी।

Thursday, November 21, 2019

धरती के फरिश्ते

हमारी इस दुनिया में भले ही कितना अंधेरा हो, अनाचार हो, हैवानियत हो, लालची और स्वार्थी लोगों की भीड हो और रिश्तों के कातिलों की कतारें लगी हों, लेकिन इस सच को कभी भी ना भूलें कि हर दौर में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मानव होने के नाते धर्म को निभाने में कोई कसर नहीं छोडते। वे अपने शरीर को ईश्वर का दिया उपहार मानते हैं। उन्हें खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता रहती है...। दरअसल यह इंसान नहीं फरिश्ते हैं, जो अपनों को ही नहीं, गैरों को भी नई जिन्दगी का उपहार देकर बडी खामोशी के साथ इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। वे माता-पिता, पति, भाई, बहन एवं अन्य रिश्तेदार भी महान हैं, जो हर गम को भूलकर अपनी संतानों के अंगदान की पहल करते हैं। इन्हें किसी पुरस्कार और प्रचार की कतई भूख नहीं। २४ वर्षीय हरीश नाजप्पा अपने गांव में छुट्टियां मनाने के बाद मोटर साइकल से बेंगलुरु लौट रहा था। इसी दौरान अंधी रफ्तार से दौडते एक ट्रक ने उनकी मोटर साइकल को इतनी जोर की टक्कर मारी कि हरीश का शरीर दो हिस्सों में बंट गया। मौत से चंद मिनट पहले हरीश ने न सिर्फ मदद की गुहार लगाई बल्कि लोगों से बार-बार यही कहा कि अब उसका बचना असंभव है इसलिए उसके शरीर के अंगों को दान कर दिया जाए। भीड तो अपने में मस्त थी। उसे तो लहुलूहान तडपते हरीश की तस्वीरें लेने और वीडियो बनाने के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। आखिरकार एक एम्बूलेंस में हरीश को अस्पताल में ले जाया गया। वह रास्ते में ही दम तोड चुका था। उसने हेल्मेट पहना हुआ था, जिसके कारण उसकी आखें सुरक्षित थीं। जिन्हें जरूरतमंद को दान कर दिया गया।
नागपुर के २१ वर्षीय युवा अमित को एक सडक दुर्घटना में सिर में गहरी चोट लगने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो दिन इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। डॉक्टरों और समाज सेवकों ने अमित के भाइयों को अंगदान करने की सलाह दी और उसका महत्व समझाया तो वे सहर्ष मान गये। १२ नवंबर २०१९ को गुरुनानक जयंती पर अमित की दोनों किडनियां और लीवर डोनेट कर तीन लोगों को नया जीवन प्रदान किया गया। इसके साथ ही अमित के हार्ट और लंग्स डोनेशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सूचना जारी की गई, ताकि जरूरतमंद को लाभ मिल सके तथा किसी और का जीवन बच सके।
उत्तरप्रदेश के झांसी का रहने वाला २१ वर्षीय जसवंत आज भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसने तीन लोगों को नई जिन्दगी देकर अंतिम सांस ली। जसवंत दिल्ली स्थित झंडेवालान में फूलों की दुकान में काम करता था। छत से गिरने से उसके सिर में गंभीर चोट पहुंची थी। हादसे के समय मौके पर मौजूद लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया। जसवंत के परिजनों की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इधर अस्पताल के प्रत्यारोपण काउंसलरों को जब जसवंत के ब्रेन डेड होने का पता चला तो वे उसके परिजनों के पास पहुंचे और उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि उनका बेटा भले ही इस दुनिया से चला गया हो, लेकिन वह तीन लोगों को नई जिन्दगी दे सकता है। एक बार तो परिजन अंगदान करने में हिचके, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने सहमति जता दी। जसवंत की दोनों किडनी और लीवर से जहां तीन लोगों को नई जिन्दगी मिली, वहीं उसके परिवार के सदस्यों के चेहरे भी गौरव भरी तसल्ली से चमक रहे थे।
मुंबई का पवई निवासी लोमेश पटेल कच्छ जिले के गांधीग्राम नगर में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने गया था, जहां वह दुर्घटना का शिकार हो गया। तीन दिन के इलाज के बाद लोमेश को ब्रेन डेड यानी दिमागी रूप से मृत घोषित कर दिया गया। लोमेश के पिता की सहमति से उसके दो गुर्दे, दो आंखें (कार्निया) और लीवर पांच जरूरतमंदों को दान कर नई जिन्दगी दी गई।
देश की राजधानी दिल्ली की पूजा के साहस ने तो उन लोगों के मुंह पर तमाचा जड दिया जो आज भी घर में लडकियों के जन्मने पर मातम मनाते हैं। इस बहादुर बेटी ने अपना लीवर दान कर अपने पिता की जान बचायी। डॉक्टरों ने भी पूजा की तारीफ करते हुए कहा कि इस लडकी ने तो लडकों को भी मात दे दी। वह इतनी बडी सर्जरी करवाने में किंचित भी नहीं घबराई। भोपाल की ६२ वर्षीय विमला एक सडक दुर्घटना में चल बसीं। उन्होंने तीन लोगों को नवजीवन प्रदान किया, जिसमें एक बारह वर्षीय बच्चा भी शामिल है। उनके बेटे के भावुकता भरे इन शब्दों ने जहां लाखों लोगों की आंखें नम कीं, वहीं अंगदान के लिए भी प्रेरित किया : मेरी मां ने एक बारह साल के बच्चे को नया जीवन दिया है। उनका दिल इस बच्चे के सीने में धडकता रहेगा। मेरी मां इस दुनिया में नहीं रहकर भी अमर है। इस बच्चे की जिन्दगी को हम अपनी मां की ही जिन्दगी समझेंगे। हम इस बच्चे की बहुत लम्बी उम्र की कामना करते हैं। जब तक वह दुनिया में रहेगा हम यही मानेंगे कि मां जीवित है। हमारा पूरा परिवार सतत इस बच्चे से मिल मां के दिल की धडकन को महसूस करता रहेगा।
जेपी अस्पताल के डॉक्टर अमित देवडा ने बताया कि पिछले पांच साल में हुए ५०० से अधिक ट्रांसप्लांट में ६५ फीसद महिलाएं ही डोनर रहीं। वह कई सालों से किडनी ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। कई मामले ऐसे आते हैं, जब नारी के त्याग की प्रतिमूर्ति होने की बात सच साबित होती है। सुरेश कुमार डायबिटीज के मरीज हैं। उन्हें कुछ समय पहले गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनका पहले भी किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका था। पहली बार उन्हें उनकी मां ने किडनी दी, लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि ट्रांसप्लांट प्रक्रिया विफल रही। दूसरी बार उनकी पत्नी ने किडनी देने का फैसला किया, लेकिन इस बार भी उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और प्रत्यारोपण सफल नहीं हो पाया। सभी परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने एक बार फिर ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया। अब समस्या थी कि किडनी कौन देगा। सुरेश की दो बेटियां और एक बेटा है। इस बार बेटी ने बिना कुछ विचार किए पिता को किडनी दी। पिता अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं।

Thursday, November 14, 2019

अपनी समस्या, अपना समाधान

प्रदूषण की मार से बचने के लिए कई लोग दिल्ली-एनसीआर छोडना चाहते हैं। किसी जमाने में जिन्हें राजधानी बहुत भाती थी, अब उनका यहां दम घुटने लगा है। वे अब विषैली हवा में सांस लेने की बजाय इसे अलविदा कहना चाहते हैं। मटियाला क्षेत्र में रहने वाले रामचेत यादव ने २०१९ की दीपावली से पहले ही अपनी चार वर्षीय बेटी को टाटानगर स्थित उसकी नानी के घर भेज दिया। पेशे से मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव यादव की पुत्री की वायु प्रदूषण के कारण हमेशा तबीयत खराब रहने लगी थी। वर्षों तक नोएडा में स्थित एक जिम में दूसरों को बलिष्ठ बनाने वाले राज नामक नौजवान को ऐन दीपावली के समय शहर छोडने को मजबूर होना पडा। उसके लिए भी यहां सांस लेना दूभर हो गया था। दिल्ली कभी सीमा शर्मा का पसंदीदा शहर था। कई वर्षों तक यहां रहने के बाद २००६ में सीमा अपने पति के साथ मुंबई चली गई। कुछ वर्ष तो अच्छे गुजरे, फिर वे अक्सर बीमार रहने लगीं। ऐसे में वे अपने पति के साथ दिल्ली लौट आई। सीमा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मेरे खयालों में तो २००६ वाली दिल्ली बसी थी, लेकिन २०१७ में जब हम यहां वापस रहने आए तब तक यहां की हवा बहुत बिगड चुकी थी। मेरी यादों की जिस दिल्ली में सर्दियों में फॉग होती थी, उसकी जगह अब धुंध ने ले ली थी। बार-बार की बीमारी से तंग आकर उन्हें फिर से दिल्ली छोडने का फैसला करना पडा। कई जानी-मानी हस्तियों और आम लोगों ने प्रदूषित जहरीली हवा के लिए सत्ताधीशों को दोषी ठहराते हुए प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को कोसने में कोई कसर नहीं छोडी। फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने इंस्टाग्राम पर लिखा, 'रात के ढाई बजे... सूनसान सडक... धुंध और प्रदूषण से फेफडे जम गए हैं... सांस ले पाने में बेहद मुश्किल हो रही है।' विख्यात क्रिकेटर हरभजन सिंह ने भी चुटीले अंदाज में ट्वीट किया, 'आज बहुत दिनों बाद उससे बात हुई। उसने पूछा कैसे हो। हमने कहा, आंखो में चुभन, दिल में जलन, सांसें भी हैं कुछ थमी-थमी-सी।' दिल्ली की धुंध की फोटो साझा करते हुए एक महिला ने लिखा, 'सुबह से ही गंभीर सिर दर्द। हम सब जल्द ही मरेंगे। प्रधानमंत्री जी, कुछ तो कीजिए।'
प‹डौसी राज्यों में पराली जलाए जाने के कारण उसके धुएं से भी दिल्ली की हवा बदतर हो जाती है। वैसे किसानों के द्वारा खेतों की सफाई के लिए पराली के जलाए जाने का चलन कोई नया नहीं है। वैसे भी पराली हमेशा तो नहीं जलायी जाती। इसका एक खास समय होता है। फैक्टरियों, निर्माण कार्यों और विभिन्न वाहनों का धुआं चौबीस घंटे की समस्या है। यह भी सच है कि दिल्ली के प्रदूषण की जितनी चर्चा होती है, उतनी दूसरे नगरों महानगरों की नहीं। वास्तविकता तो यह है कि देश के तकरीबन हर शहर के यही हाल हैं। लोग अब गांवों में नहीं रहना चाहते। इसके पीछे उनकी मजबूरी भी है और शौक भी। नेताओं ने वादे तो बहुत किये, लेकिन ग्रामों का विकास नहीं कर पाये। ऐसे में रोजगार, शिक्षा, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गरीब ग्रामीण नगरों, महानगरों में आकर रहने को विवश हैं। प्रदूषण की काफी बडी वजह घनी आबादी तथा कांक्रीट के बेतहाशा बढते जंगल हैं। शहरों को प्रदूषित करने में हर किसी का बहुत बडा योगदान है, लेकिन इस सच को स्वीकारने को कोई भी तैयार नहीं। हम तो बस दूसरों को ही दोष देने के आदी हो चुके हैं। स्वयं कोई पहल करना ही नहीं चाहता।
महानगर बेंगलुरु में एक इलाका है काडुगोडी। यहां के लोगों ने एक अनुकरणीय पहल कर कमाल ही कर दिया। यहां पर एक टूटी हुई सडक पिछले चार साल से आने-जाने वालों की परेशानी का सबब बनी हुई थी। इस इलाके में करीब आठ सौ लोग रहते हैं, जिन्हें रोजाना यहां से गुजरना होता था। बारिश के मौसम में तो यहां से निकलने के बारे में सोचना भी मुश्किल था। सर्दियों-गर्मियों में यहां उडने वाली धूल ने जीना दूभर कर रखा था। कई लोग घायल भी हो चुके थे। स्कूल जाने वाले बच्चे और उनकी वैन काफी मुश्किल से निकल पाती थी। इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए स्थानीय प्रशासन से अनेकों बार शिकायतें की जा चुकी थीं, लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगने पर अंतत: यहां के निवासियों ने खुद ही इस खस्ता हाल जानलेवा सडक को दुरुस्त करने की ठान ली। उन्होंने मिलजुलकर २ लाख रुपये इकट्ठे कर सडक निर्माण की सामग्री के लिए एक ठेकेदार से संपर्क किया। एक रोड रोलर और मात्र तीन मजदूरों के साथ लोग खुद ही सडक निर्माण में जुट गये और मात्र दो ही दिन में सिर्फ २ लाख रुपये में एक किलोमीटर सडक तैयार हो गई! इस सडक को यदि निगम बनाती तो कम-अज़-कम १५ लाख का बजट पास करवाती। सभी लोग अपनी मदद कर काफी खुश हैं। इस खबर को पढने के बाद बालकवि बैरागी की कविता 'सूर्य उवाच' की यह पंक्तियां लगातार दिमाग की बंद खिडकियों और दरवाजे पर हथोडे बरसाते हुए पूछती रहीं कि आखिर कब तक संदिग्ध, सौदागर प्रवृति वाले नेताओं को सत्ता सौंपते रहोगे और फिर उन्हीं पर आश्रित रहोगे?
आज मैंने सूर्य से बस जरा सा यूं कहा,
'आपके साम्राज्य में इतना अंधेरा क्यूं रहा?'
तमतमाकर वह दहाडा- 'मैं अकेला क्या करूं?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पडो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लडूँ कुछ तुम लडो।

Thursday, November 7, 2019

कब और कैसे खुलेंगी आंखें?

नया युग है। नयी सोच वालों के बीच पुरानी परंपराओं, अंधविश्वासों, आदतों में जकडे कई लोगों के कारण पूरी तरह से बदलाव नहीं आ पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के बावजूद इस बार भी राजधानी दिल्ली में पटाखों की जबरदस्त आवाजें गूंजती रहीं। लगभग यही हाल पूरे देश का रहा। जहां देखो वहां दमघोटू धुआं। लोग वायु और ध्वनि प्रदूषण से जूझते रहे। २०१९ की दिवाली में भी जहरीली हवा को निगलने को विवश हजारों लोगों को अस्पतालों की शरण लेनी पडी। विषैले, धमाकेदार पटाखों ने सैकडों मूक परिंदों की भी जान ले ली। पटाखों से हुए प्रदूषण से हजारों पक्षी जमीन पर आ गिरे। उनके लिए फिर से आकाश को छूना मुश्किल हो गया। देश की राजधानी में तो बच्चों के स्कूलों की छुट्टी कर दी गई। अमीरों ने अपने घरों से निकलने में कई सावधानियां बरतीं। मरना तो उन गरीबों का हुआ, जिनका घर से निकले बिना गुजारा नहीं होता। जिन बदनसीबों के पास अपना घर नहीं उन्हें तो अपनी सांसों की कभी फिक्र ही नहीं रही। उनके लिए सब दिन एक समान हैं। बेचैनी और खांसी तो गरीबों की हमेशा साथी बनी रहती है। यह समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक प्रकृति की ओर नहीं लौटा जाएगा, आत्मसंयम को अपने जीवन में उतारा जाएगा, लेकिन हम तो मेलों में मग्न हैं। नौटंकियों और कुरीतियों के मकडजाल में उलझे हैं। तमाशेबाजी में ही खुशियां तलाशते हैं। इंसानी खून हमें मनोरंजित करता है।
देश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल शिमला से करीब ३० किमी की दूरी पर स्थित है धामी, जहां पर प्रतिवर्ष दिवाली के अगले दिन एक अनोखा मेला लगता है। इस मेले में सैकडों समझदार लोगों की उपस्थिति में दो समुदायों के बीच पत्थरों की जबरदस्त बरसात होती है। इस बार भी वर्षों से चली आ रही परंपरा को निभाया गया। धामी रियासत के राजा जगदीप qसह पूरे शाही अंदाज में मेला स्थल पर पहुंचे। दोपहर बाद मेला शुरू हुआ और दोनों ओर से पत्थरों की बारिश का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक किसी का सिर नहीं फटा। जिस व्यक्ति के सिर से खून का फव्वारा छूटा उसके खून का तिलक माता के मंदिर में बने चबूतरे में लगाया गया और माता का आशीर्वाद लिया गया। बताते हैं, पहले यहां हर वर्ष नरबलि दी जाती थी। एक बार रानी यहां सती हो गई। इसके बाद नरबलि पर तो विराम लग गया, लेकिन पशुबलि शुरू हो गई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया गया। इसके बाद पत्थर यानी खून बहाने का मेला शुरू किया गया।
छियासठ वर्षीय चिंताहरण पिछले तीस वर्षों से प्रतिदिन दुल्हन की तरह श्रृंगार कर घर से निकलते हैं। पहले लोग उन पर हंसा करते थे, व्यंग्यबाण भी छोडा करते थे, लेकिन अब जौनपुर और आसपास के स्त्री, पुरुष, बच्चों और वृद्धों को उम्रदराज चिंताहरण को लाल साडी, बडी-सी नथ और झुमके पहने देख कतई भी अटपटा नहीं लगता। दुल्हन की तरह सजने-संवरने वाले चिंताहरण को अंधविश्वास की जंजीरों ने बुरी तरह से जकड रखा है। वे मानते हैं कि यह अनोखा वेश उनका सुरक्षा कवच है, जिससे उन्हें तथा उनके परिवार को सुरक्षा मिली हुई है। उनके किसी भी करीबी का बाल भी बांका नहीं हो सकता। उनका कहना है कि बीते सालों में मेरे परिवार के १४ सदस्य एक-एक कर इस दुनिया से विदा हो गये। ऐसे में मुझे बाकी बचे अपने बच्चों, अपने परिजनों और खुद के खत्म होने का भय सताने लगा था। मेरी रातों की नींद ही उड गई थी। जब कभी नाममात्र की नींद आती भी थी तो सपने में दूसरी पत्नी रोती-बिलखती दिखायी देती, जिससे मैंने बेवफाई की थी। इस गम ने ही उसे आत्महत्या करने को विवश कर दिया था। एक दिन सपने में मैंने पत्नी से माफी मांगी और मेरे परिवार को बख्श देने का निवेदन किया। तब उसने मुझसे यह वेश धारण कर बाकी की जिन्दगी गुजारने को कहा तो मैंने प्रतिदिन दुल्हन की तरह सजना-संवरना प्रारंभ कर दिया। पहले लोग मुझ पर हंसा करते थे, लेकिन जब उन्हें मेरी विवशता का भान हुआ तो हमदर्दी जताने लगे। अब मेरी तथा बच्चों की जिन्दगी बडे मजे से कट रही है।
ओडिशा में गंजाब के जिलाधिकारी विजय अमृत कुलंगे ने जादू-टोना और अंधविश्वास से जुडी प्रथाओं से उबारने और लोगों को जागरूक करने के लिए यह ऐलान किया है कि जो व्यक्ति भूतों के अस्तित्व को साबित कर देगा उसे बडे आदर-सम्मान के साथ ५० हजार रुपये का इनाम दिया जायेगा। जिलाधिकारी को गंजाब जिले में जादू-टोने के नाम पर हुई हिंसा के बाद यह कदम उठाना पडा। कुछ सप्ताह पूर्व ग्रामीणों ने जादू-टोने के शक में छह लोगों के दांत तोड दिए थे। उन्हें जबरदस्ती अपशिष्ट पदार्थ खिलाया गया था। डंडे, लाठियों और हाकियों से तब तक पीटा गया था, जब तक वे बेहोश नहीं हो गये थे। पीटने वाले ग्रामीण बस एक ही रट लगाये थे कि उनके द्वारा किये जाने वाले जादू-टोना के कारण ही उनके रिश्तेदार बीमार होते रहते हैं। यह भी काबिलेगौर है कि यह पिटायीबाज जादू-टोने से बीमार होने वाले अपने प्रियजनों को इलाज के लिए तंत्र-मंत्र और झाडफूंक करने वाले बाबाओं के पास ले जाते हैं। उन्हें डॉक्टरों पर भरोसा नहीं है। जिलाधिकारी कुलंगे को हर सप्ताह आयोजित होने वाली जनसुनवाई में अंधविश्वास के जाल में फंसे लोगों की दलीलें और जादू-टोना संबंधी शिकायतों ने स्तब्ध कर दिया था। उन्होंने अंधविश्वासियों को बहुतेरा समझाया कि यह उनका भ्रम है कि जादू-टोना करने से कोई बीमार होता है। दरअसल, जादू-टोना और भूतों का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। फिर भी जब अंधविश्वासी नहीं माने तो उन्होंने यह घोषणा कर दी, "भूत को ढूंढकर लाओ, ५० हजार इनाम पाओ।