Thursday, April 26, 2018

इन्हें कौन सुधारे?

यह अच्छी बात है कि अधिकांश परिवारों-पुरुषों ने यह स्वीकार कर लिया है कि लडकियों को पढाया-लिखाया जाए। स्त्रियों को घर से बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता दी जाए। लडकियों और महिलाओं के नौकरी करने पर भी कोई पाबंदी नहीं हो। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर नारियां पुरुषों को जबर्दस्त चुनौती देती दिखायी देती हैं। खुले दिल के लोग इसे अच्छा संकेत मानते हुए तहेदिल से स्वीकार रहे हैं। अफसोस और चिन्ता की बात यह भी है कि देश में अभी भी कुछ संकीर्ण मनोवृत्ति वाले लोग हैं जो यह चाहते हैं कि नारियां उनके हिसाब से चलें। युवतियों का किसी युवक से हंस-बोलकर बात कर लेना उन्हे शूल की तरह चुभता है। भारत में ऐसा प्रदेश भी है जहां के गांवों में लडकियों का मोबाइल पर बात करना और जींस पहनना अपराध माना जाता है। लडकियों की स्वतंत्रता उन्हें डराती है और उन्हें अपनी नाक कटने की चिन्ता सताती है। ऐसे ही लोगों की भीड में अपनी नाक कटवाने वाले सीना तानकर चलते नजर आते हैं जिन्हें दूसरों की मां-बहनें बाजारू प्रतीत होती हैं। वे उनकी आबरू लूटने की फिराक में रहते हैं।
हिन्दुस्तान की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मुंबई से लौटी थीं और एयरपोर्ट से दिल्ली स्थित अपने निवास पर जा रही थीं। इस दौरान उन्होंने पाया कि एक सफेद रंग की कार उनकी गाडी का पीछा कर रही है। कार में चार लडके सवार थे। वे उनकी गाडी के बराबर अपनी कार दौडा रहे थे और उनकी तरफ देखते हुए ओछी हरकतें कर रहे थे। मंत्री ने अपने ड्राइवर से बीकन लाइट ऑन करने को कहा, लेकिन नशे में धुत चारों लडकों की अक्षम्य इशारेबाजी की रफ्तार तेजी पकडती गई। ऐसे में उन्होंने १०० नंबर पर कॉल कर दिया। पुलिस की पकड में आते ही वे हाथ-पांव जोडने लगे। उनका नशा काफूर हो गया। उनकी उम्र महज १८ से १९ साल है। वे अभी कालेज में पढाई कर रहे हैं। देश में महिलाओं से दुर्व्यहार और अश्लील हरकतों की वारदातें थम नहीं रही हैं। राजधानी दिल्ली में बीते सप्ताह एक उबर कैब चालक ने महिला यात्री के सामने ऐसी अश्लील हरकत की जिसकी वजह से महिला को बहुत गहरा सदमा लगा। चालीस वर्षीय यह महिला टूर एंड ट्रेवल्स एजेंसी में काम करती हैं। वे रविवार रात को इंदौर से लौटी थी। रात दस बजे उन्होंने एयरपोर्ट से घर जाने के लिए उबर कैब की। रास्ते में महिला ने देखा कि कैब चालक अपनी पैंट की चेन खोल कर अश्लील हरकत कर रहा है। महिला को बेहद बुरा लगा। गुस्सा भी आया। वह बार-बार व्यू मिरर के जरिए उन्हें देखते हुए अश्लीलता की पराकाष्टा पार करता रहा। हद तो तब हो गई जब उसने महिला से छेडछाड करनी शुरू कर दी। ऐसे में उन्होंने ड्राइवर को धमकाते हुए कैब रूकवाई व १०० नंबर पर शिकायत की। पुलिस की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वह पिछले डेढ साल से फर्जी लाइसेंस पर कैब चला रहा था। अब वो जमाना तो है नहीं कि महिलाएं घर में बंद कमरों में सिमटी रहें।
आज लडकियां आसमान छूना चाहती हैं। इसके लिए वे दौड-भाग करने में कोई कसर नहीं छोडतीं। हरियाणा के तरक्की करते शहर सोनीपत के गांव में पिछले दिनों पंचायत ने मुनादी कराई कि गांव की लडकियां जींस पहनना बंद कर दें और मोबाइल से भी पूरी तरह से दूरी बना लें। हैरानी की बात तो यह है कि अधिकांश ग्रामीणों ने पंचायत के इस फैसले की सराहना की। गांव के सरपंच का कहना है कि लडकियां जींस पहन कर लडकों को रिझाती हैं, लडके भी उनपर लट्टू हो जाते हैं। उनके हाथ में आया मोबाइल आग में पेट्रोल डालने का काम करता है। सरपंच बार-बार उन तीन लडकियों का जिक्र भी करते रहते हैं जो जींस पहनती थीं और मोबाइल भी रखती थीं। फिर अपने प्रेमियों के साथ गांव से भाग खडी हुर्इं। सरपंच कहते हैं कि लडकियों के भाग जाने से गांव और पंचायत की जबर्दस्त बदनामी हुई है। हम नहीं चाहते कि गांव की और लडकियां अपना मुंह काला करें इसलिए जींस और मोबाइल पर बैन लगाना निहायत जरूरी हो गया है। सरपंच लोगों को यह बताना भी नहीं भूलते कि उनकी दो बेटियां और एक नातिन है, जिन्हें साधारण कपडे पहनने को दिये जाते हैं और मोबाइल भी तभी उन्हें दिया जाता है जब किसी रिश्तेदार से बात करनी जरूरी हो। गौरतलब है कि हरियाणा तुगलकी फरमानों के लिया जाना जाता है। खाप पंचायतों की मनमानी और दादागिरी की कई खबरें पढने-सुनने में आती रहती हैं। प्रेमियों को सूली पर लटकाने में देरी नहीं की जाती। कुछ माह पहले एक खाप पंचायत ने चाऊमीन खाने पर प्रतिबंध लगाया था। वजह बतायी गयी थी कि इसे खाने से उत्तेजना बढती है और बलात्कारों में इजाफा होता है।
मनचलों के आतंक से लडकियां अक्सर परेशान रहती हैं। कुछ ही लडकियां उनकी छेडछाड का प्रतिरोध कर उन्हें सबक सिखा पाती हैं। बदमाश इसलिए बेफिक्र रहते हैं क्योंकि उनकी निगाह में लडकियों में आत्मविश्वास और हिम्मत का अभाव होता है जिससे उनके मंसूबे आसानी से पूरे हो जाते हैं। देश के प्रदेश मध्यप्रदेश के शहर में भी गुंडे-बदमाशों ने महिलाओं का जीना हराम कर रखा है। अपने भी दुष्कर्म में पीछे नहीं रहते। पिता द्वारा बेटी से दुष्कर्म, मौसा द्वारा भानजी से ओछी हरकत, पडोसी द्वारा नाबालिग पर अत्याचार की खबरें इस शहर में भी आम होने से चिंतित और परेशान लडकियों ने आत्मरक्षा के गुर सीखने शुरू कर दिये हैं। विशेषज्ञ उन्हें गुंडे बदमाशों का मुकाबला करने के विभिन्न तरीके सिखा रहे हैं। आत्मरक्षा के गुर सीख कर लडकियां निर्भीक बन रही हैं। कभी बदमाशों से भयभीत हो जाने वाली लडकियां आत्मविश्वास से लबरेज हैं। वे ऐलानिया स्वर में कहती हैं कि अगर किसी ने हमारे साथ बदसलूकी की तो हम बडे जोर से चीखेंगी और भीड इकट्ठा कर उन्हें भागने को विवश कर देंगी। हमने उनकी ठुकाई के भी तरीके सीख लिए हैं। अब गंदी सोच रखने वाले सावधान हो जाएं। अभी तक ५० बालिका और किशोरियां प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं। यह सिलसिला अनवरत जारी है।

Thursday, April 19, 2018

यह कैसी पाशविकता?

बलात्कार और बलात्कारियों के खिलाफ कितना कुछ लिखा गया। सुधर जाने की चेतावनियां दी गर्इं। नपुंसक बनाने का डर दिखाया गया। चौराहे पर फांसी देने की भी मांग की गयी। हजारों बार कैंडल मार्च निकाले गये। लेकिन कोई फर्क नहीं पडा। लिखना, बोलना, चीखना, चिल्लाना जैसे सब व्यर्थ। अजय पुनिया लिखते हैं :
'बहन बेटी की इज्जत लुटते हुए
एक जमाना... हो गया है
बलात्कारी सब पकडे नहीं गये हैं
एक जमाना... हो गया है
रपट दर्ज नहीं... पुलिस को बिकते
एक जमाना... हो गया है
हवस के शहंशाह पुजते आ रहे
इक जमाना... हो गया है
हम सब पक्के हिजडे बन चुके हैं
इक जमाना... हो गया है।'
भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक पर एक नाबालिग ने दुराचार का आरोप लगाया। सत्ता और पुलिस ने विधायक का साथ देकर हर किसी को निराश किया। लडकी के मां-बाप की किसी ने फरियाद नहीं सुनी। उलटे पिता को ही जेल में ठूंस दिया गया। जहां उन्हे इस कदर यातनाएं दी गर्इं कि उनकी मौत हो गई।
जम्मू के कठुवा में आठ साल की बच्ची के साथ कई दिनों तक हुए बलात्कार और उसकी बर्बर हत्या ने पूरी मानवता को स्तब्ध करके रख दिया। देश शर्मसार हो गया। राजधानी दिल्ली में सिरफिरे ने तमंचे के बल पर एक ११वीं कक्षा की छात्रा को अगवा किया और अपने ही घर में दस दिनों तक कैद कर उससे दुष्कर्म करता रहा। वह छात्रा के हाथ, पैर, मुंह बांधकर उसे बेरहमी से पीटता भी रहा। देश में इस तरह के दुराचारों की कतार-सी लग गई है। कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब बेटियों पर बलात्कार की खबरें इंसान होने की शर्मिन्दगी का अहसास न कराती हों। बलात्कार पर बलात्कार का शिकार होतीं छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के बिलखते मासूम चेहरे नींद उडा देते हैं। मन में यह विचार भी आता है कि जहां पर पिता ही दुराचारी बन बेटियों की अस्मत लूटते हों वहां शाब्दिक प्रहार कितने असरकारी होंगे। दूसरों की मां, बहन, बेटी को वासना के तराजू में तौलने वालों के लिए शब्दों और रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रही। एक फिल्म अभिनेत्री ने रहस्योद्घाटन किया है कि उसका अक्सर ऐसे मर्दों से सामना होता रहता है जो दिन में तो उसे बहन कहते हैं और रात में साथ सोने की मांग करते हैं। ऐसे चरित्रहीन लोगों के कारण ही कभी-कभी अच्छे और सच्चे चेहरों को शंका और अविश्वास के कटघरे में खडा कर दिया जाता है। तामिलनाडु के उम्रदराज राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित जिस हैरतअंगेज अनुभव से गुजरे हैं उसे वे जीवन भर नहीं भूल पाएंगे। हुआ यूं कि एक महिला पत्रकार के सवाल पर प्रसन्न होकर उन्होंने उसका गाल थपथपा दिया। इसके पीछे उनका उद्देश्य पत्रकार की सराहना और प्रोत्साहित करना था। वे वर्षों तक पत्रकारिता से जुडे रहे हैं। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वात्सल्य को वासना समझ लिया जाएगा और हंगामा हो जाएगा। उन्होंने फौरन पत्रकार से यह कहते हुए माफी मांग ली कि आप तो मेरी पोती जैसी है। एक पत्रकार होने के नाते हौसला-अफजाई के लिए मैंने आपका गाल थपथपाया था।
खरगोन के डीआइजी ए.के. पाण्डेय जैसे तमाम लोग आज बेहद गुस्से में है, उनका क्रोध इन शब्दों में सामने आया है : "बलात्कार विरोध प्रदर्शन, कैंडल मार्च से नहीं बल्कि बलात्कारियों को कठोरतम सजा दिलाने से ही खत्म होंगे। यह कितनी शर्म की बात है कि जब बलात्कारियों को सजा देने की बात आती है तो इसी देश के कुछ सफेदपोश कहते हैं कि लडकों से तो गलती हो ही जाती है। इन नासमझों, बेचारों को फांसी देने की सोचना ही उनके साथ अन्याय करना है। एक सवाल यह भी है जब कोई बलात्कारी हमारा करीबी होता है तो हम उसका साथ देने के लिए खडे हो जाते हैं। ऐसा कम ही देखने में आया है जब बलात्कारी का उसके परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों और समाज ने बहिष्कार किया हो। यदि वास्तव में बलात्कार का विरोध करना है तो उन लोगों का भी बहिष्कार करना होगा जो बलात्कारी को बचाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाते हुए दुराचारियों के पक्ष में खडे हो जाते हैं। एक जाने-माने नेताजी की दलील है कि पिछले कई वर्षों से बलात्कार होते चले आ रहे हैं। यह कोई नयी बात नहीं है।" दरअसल, नेता भूल जाते हैं कि ऐसे बयान दुराचारियों के पक्ष में जाते हैं और उनका मनोबल बढाते हैं। बलात्कारी हिन्दू है या मुसलमान यह कहकर जनता को गुमराह किया जा रहा है। भारतवासी चाहते हैं कि देश में भरपूर 'फास्ट ट्रैक कोर्ट' हो जहां बलात्कारी को छह महीने में ही फांसी की सजा हो जानी चाहिए। देखने में तो यह आ रहा है कि जो बेटियां बलात्कार की शिकार हो रही है उन्हीं के परिजनों को कई तकलीफें झेलनी पडती है। बलात्कारी आराम से रहते-खाते रहते हैं और पीडितों को ऐसे लडाई लडनी पडती है जैसे उन्हीं ने कोई अपराध किया है। देश में लोग सुलग रहे हैं। प्रसिद्ध व्यवसायी आनंद महिन्द्रा का रोष-आक्रोष इन शब्दों में सामने आया है : जल्लाद का काम कोई ऐसा नहीं होता कि कोई खुशी-खुशी करना चाहे। लेकिन बच्चियों के साथ रेप और हत्या करने वालों को सजा देने के लिए मैं बिना हिचक जल्लाद बनने को तैयार हूं।
देश की सजग महिलाओं ने फेसबुक और वाट्सएप में जितना खुलकर इन दिनों लिखा उतना पहले कभी देखने में नहीं आया। मुंबई की कवयित्री डॉ. प्रमिला शर्मा के अंगारों जैसे तपाने और सचेत करने वाले यह अक्षर समाज, सत्ता और व्यवस्था के निकम्मेपन और तमाशेबाजी पर भी जबर्दस्त प्रहार हैं:
ओह बिटिया,
तुम थी सिर्फ़ आठ साल की,
तुम्हें नहीं पहचान थी मनुष्य के रूप में भेडियों की खाल की।
तुम किस धर्म और जाति की हो?
यह सवाल कोसों दूर था,
सिर्फ़ तुम्हारा लडकी होना ही सबसे बडा क़ुसूर था।
अगर उन राक्षसों को होती सिर्फ़ जातीय दुश्मनी,
तो उनकी करनी नहीं होती इतनी घिनौनी। अगर तुम लडकी नहीं, लडके के रूप में इस संसार में आई होती,
क्या तब भी उन नर पिशाचों ने ऐसी ही पाशविकता अपनाई होती?
तुम्हारे साथ हुआ है दुनिया का क़्रूरतम अत्याचार,
समाज में छटपटाहट तो है,
लेकिन तुम्हें न्याय दिलाने में है लाचार।
यही लाचारी गीदडों को निडर बनाती है
और हर दूसरे दिन एक निर्भया समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर आती है।
अब यह प्रवृत्ति छोडनी होगी,
अपनी चुप्पी तोडनी होगी।
जब तक अपनी चरम पर नहीं पहुँचेगा आक्रोश,
तब तक सिस्टम यूँ ही पडा रहेगा बेहोश।
नारियों में अब निर्भया को निर्भय समाज दिलाने का जगाना होगा जुनून,
तभी गुनहगारों को फ़ौरन फाँसी पर लटकाने का बन पाएगा क़ानून।

Thursday, April 12, 2018

शर्म क्यों नहीं आती?

बिना आगा-पीछा देखे यह तेजी से दौडने का ज़माना है। एक दूसरे को पछाडने के लिए तरह-तरह के साधन और साजो-सामान ईजाद कर लिये गये हैं। आधुनिकता के इस दौर में जब इंसान के जबरन लापरवाह और मंदबुद्धि होने की खबरें सामने आती हैं तो घबराहट-सी होने लगती है। असुरक्षा की भावना पनपने लगती है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक अजीबो-गरीब किस्म का मामला सामने आया जिसने दर्शा दिया कि पढे-लिखे होने के बावजूद कुछ लोगों को समय की रफ्तार ने बहुत पीछे छोड दिया है। एक सरकारी स्कूल की टीचर सुधा ने डेढ साल पहले उत्तराखंड स्थित मातृछाया से एक बच्चे को गोद लिया था। महिला का पति एक प्राइवेट अस्पताल में काम करता है। सुधा ने बच्चे को गोद ले तो लिया था, लेकिन बच्चे के काले रंग के कारण उसके उत्साह पर पानी फिर गया था। बच्चे को गोरा बनाने के लिए उसने उसका कई जगह इलाज कराया। करीब एक साल पहले किसी ने उसके कान में डाला कि बच्चे को काले रंग के पत्थर से घिसा जाए तो वह अंग्रेजों के बच्चों की तरह गोरा-चिट्टा हो सकता है। पढी-लिखी शिक्षिका सुधा को तो जैसे वेदमंत्र ही मिल गया। वह फौरन कहीं से काला पत्थर ले आई और दिन-रात मासूम बच्चे के शरीर पर जोर-जोर से घिसने लगी। इससे बच्चे की कलाई, कंधे, पीठ और पैरों में घाव होते चले गए, लेकिन शिक्षिका ने कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर बच्चे को गोरा करने का भूत सवार था। कडे खुरदरे पत्थर को घंटो शरीर पर रगडे जाने के कारण पांच वर्षीय बच्चे का रोना-चीखना भी स्वाभाविक था। बच्चे की पीडा को देखकर शिक्षिका की बहन की बेटी से रहा नहीं गया। उसने कई बार रोकने की कोशिश की, लेकिन फिर भी सुधा को सुध नहीं आई। वह बच्चे को प्रताडित करने से बाज नहीं आई। आखिरकार बहन की बेटी के द्वारा 'चाइल्ड लाइन' और पुलिस में शिकायत की गयी। बच्चे को मुक्त करवाकर अस्पताल ले जाया गया। बच्चे की बहुत बुरी हालत हो चुकी थी। उसके शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहां पर घाव न हों।
सोमवार की रात को बाइक से जा रहे उभरते गायक आरुष को कार ने टक्कर मार दी। पुलिसवाले उन्हें नई दिल्ली के नामी बत्रा हॉस्पिटल ले गए। वहां इलाज शुरू करने से पहले ४० हजार रुपये जमा कराने को कहा गया। यह भी बताया कि रोज का ३५ हजार का खर्च आयेगा। पैसों का इंतजाम न होने पर आरुष को उसके परिजन दूसरे अस्पताल ऐम्स ट्रामा सेंटर में ले गए। वहां पर भी नोटों को भगवान मानने वाले डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया। हैरान-परेशान परिवार वाले आरुष को सफदरगंज अस्पताल ले गए। दूसरे दिन सुबह दस बजे आरुष की मौत हो गई। यहां पर भी बडी शर्मनाक और आहत करने वाली ड्रामेबाजी हुई। आरुष की मौत की सूचना मिलने के बाद यार-दोस्त और घरवाले हास्पिटल की मार्चुरी के बाहर खडे होकर यह सोचते रहे कि अंदर पोस्टमार्टम किया जा रहा होगा इसलिए लाश को उनके सुपुर्द करने में देरी हो रही है। चार घण्टे के बाद एक डॉक्टर ने बताया कि शव का पोस्टमार्टम यहां नहीं बल्कि एम्स में होगा। डॉक्टरों से जब यह पूछा गया कि अगर पोस्टमार्टम करना ही नहीं था तो पहले क्यों नहीं बताया। चार घण्टे तक इंतजार करवाने की क्या जरूरत थी? डॉक्टर सवाल को अनसुना कर चलते बने। एम्स ने भी कई लटके-झटके दिखाये और दूसरे दिन सुबह अहसान जताते हुए शव का पोस्टमार्टम किया। देश की राजधानी के अस्पतालों की मृत हो चुकी इंसानियत का शर्मनाक चेहरा दिखा दिया। अगर बत्रा हास्पिटल ने थोडी-सी भी इंसानियत दिखाई होती तो आरुष आज जिन्दा होता। उसे देखने से यह कतई नहीं लग रहा था कि उसे बहुत अधिक चोट लगी होगी। उसके शरीर में बाहर से कहीं से भी बहुत अधिक खून नहीं बह रहा था। वह बेहोश जरूर था। आरुष के दोस्तों को भी इस बात का जीवनभर मलाल रहेगा कि अस्पतालों की अमानवीयता के कारण उनके चहेते मित्र को अपनी जान गंवानी पडी। वह अपने भाई-बहन का और मां का भी बहुत चहेता था। वह किसी को भी किसी काम के लिए मना नहीं करता था। किसी के भी पारिवारिक कार्यक्रम में वह गाना गाकर महफिल में जान डाल देता था। वह हरियाणवी स्टार बनना चाहता था। उसने अपने नाम से यू-ट्यूब चैनल भी शुरू किया था। पांच गाने उसने अपने चैनल पर डाले थे। और भी गानों की तैयारी में जुटा था। उसपर पूरे घर को चलाने की जिम्मेदारी थी। उस रात भी वह खाना डिलिवर करने जा रहा था। तभी अचानक एक तेज रफ्तार गाडी ने टक्कर मार दी। कुछ दिन पहले ही उसे एक नई अच्छी नौकरी मिली थी। वह खुश था कि अब अच्छे पैसे मिलेंगे। जिन्हें जोडकर वह बहन की शादी करेगा। शादियों की पार्टियों में बतौर डीजे का भी काम करने वाले आरुष के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर सुनकर जब परिजन मौके पर पहुंचे तब तक पुलिस उसे बत्रा हॉस्पिटल ले जा चुकी थी। गरीब माता-पिता, परिजनों को भी इस बात का मलाल है कि उनके पास बेटे की जान को बचाने के लिए पैसे नहीं थे। अगर होते तो बेटा आज जिन्दा होता। जहां देखो वहां धन के लालची जमा हो गए हैं। युवतियों को अकेला पाकर खाकी वर्दी वालों की नीयत डोल जाती है।
दिल्ली की वह युवती दो सहेलियों के साथ अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने नोएडा के एक फार्महाऊस में गई थी। पार्टी के दौरान सभी मेहमान डीजे पर नाच-गा रहे थे। बेफिक्री और मस्ती का आलम था। ऐसे में अचानक २० लोग फार्महाऊस में पहुंचे और अंधाधुंध लाठी-डंडे बरसाने लगे। कुछ बदमाशों ने तीनों युवतियों को घेर कर छेडछाड शुरू कर दी। इसी दौरान किसी ने १०० नंबर पर पुलिस को कॉल कर दिया। थोडी देर बाद एक आम गाडी में वहां पर पहुंची। उसमें से एक सिपाही बाहर निकला जिसने सबसे पहले बदमाशों के मुखिया को झुककर नमस्कार किया। लडकियों को कॉन्स्टेबल ने अपनी गाडी में बिठाया और लडकों को दूसरी गाडी में डालकर थाने ले गया। स्कार्पियो में महिला पुलिस कर्मी नहीं थी। इसी का फायदा उठाते हुए रास्ते भर वह लडकियों से अश्लील हरकतें करता रहा। पुलिस स्टेशन पहुंचने पर तीनों युवतियों की शिकायत भी दर्ज नहीं की गई। उलटे उनसे घूस के रूप में बीस हजार रुपये वसूल लिए गये। पुलिस का यह अय्याश, लुटेरा और भक्षक चेहरा इन तीनों युवतियों को ताउम्र याद रहेगा। उनसे जब कोई कहेगा कि पुलिस तो विपदा में फंसे लोगों की रक्षक होती है तो जवाब में वे थूकने और गाली देने में देरी नहीं करेंगी। कुछ लोग हद दर्जे के मतलबी और असंवेदनशील हो गये हैं। दूसरों की पीडा में रोमांच और मनोरंजन तलाशते हैं। मरते हुए इंसानों की आखिरी सांसों को रिकॉर्ड करने वालों की करतूत ईश्वर के सच्चे बंदों के खून को खौला देती है। दिल्ली में ही एक तेज रफ्तार कार ओवरटेक करते हुए बाइक सवार को कुचलती हुई चली गई। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि बाइक सवार युवक करीब १० फुट उछलकर डिवाइडर पर जा गिरा। खून से लथपथ युवक तडप रहा था। लोग वहां से गुजरते रहे। गाडियां भी रूक गर्इं। काफी भीड जमा हो गई। किसी को भी उसे अस्पताल पहुंचाने की नहीं सूझी। हां कुछ तमाशबीन फोटो खींचने और वीडियो बनाने में जरूर लगे रहे। आरुष के साथ भी ऐसा ही हुआ था। वह तडप रहा था और तमाशबीन फोटो और वीडियो बनाकर दुर्घटना को यादगार बनाने में लगे थे।

Thursday, April 5, 2018

उनका क्या कसूर?

हां... कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने हिन्दुस्तान के अमन-चैन, सद्भावना और आत्मीयता को जख्म पर जख्म देने की आदत पाल ली है। नफरतों की आंधियों का समर्थन करना और बम बारुद बिछाकर खून की नदियां बहाते हुए इंसानियत को शर्मिंदा करने की कारस्तानियां करते रहना उनकी फितरत है। उन्हें पता कि अधिकांश भारतवासी उनसे नफरत करते हैं। दूरियां बनाकर रहते हैं। उनका बस चले तो मानवता के इन शत्रुओं का गला ही घोंट दें। लेकिन कानून और भारतीय संस्कृति उन्हें इसकी इजाजत नहीं देते। हर सच्चा हिंदुस्तानी खून बहाने नहीं, एक-दूसरे को गले लगाने में यकीन रखता हैं। सर्वधर्म समभाव और भाईचारे के पोषकों के समक्ष नतमस्तक होता चला जाता है। हिंसा की फसले बोने वाले भी हमारे इर्द-गिर्द रहते हैं, जिनकी शिनाख्त करने में हम अक्सर चूक जाते हैं या फिर नजरअंदाज कर देते हैं। अधिकांश दंगई भी हमीं लोगों के बीच के लोग होते हैं जिन्हें सदैव मौके की तलाश रहती है। यही भूलें और चूकें अब बहुत भारी पडने लगी हैं। कभी जंगलों में रहकर खून खराबा करते हुए शासन प्रशासन को चुनौती देने वाले नक्सली शहरों को सुरक्षित मानने लगे हैं।
मैंने जब यह खबर पढी कि गुजरात के भावनगर में ऊंची जाति के लोगों ने एक दलित युवक की इसलिए निर्मम हत्या कर दी क्योंकि उसे घोडी रखने और उसकी सवारी का शौक था तो मुझे हत्यारों की घटिया सोच और अमानवीयता पर बेइंतहा गुस्सा आया। प्रदीप नाम के इस युवक की उम्र मात्र इक्कीस वर्ष थी। दो माह पहले ही उसने अपनी मेहनत की कमायी से एक घोडी खरीदी थी। सामंती सोच रखने वाले सवर्ण जाति के लोगों को उसका घोडी खरीदना और उस पर बैठना ही खंजर की तरह चुभ गया था। उन्होंने अपना ऐतराज जताते हुए प्रदीप को धमकाया था कि अपनी औकात मत भूलो। दलित हो... सिर झुका कर चलो। ऊंची जाति के लोगों की बराबरी करने के सपने देखना छोड दो। तुम जैसे हवा में उडने वालों को मिट्टी में मिला दिया जाता है। धमकियों पर धमकियां मिलने के बाद प्रदीप ने तो घोडी को बेचने का मन बना लिया था लेकिन उसके पिता ने उसे ऐसा न करने और अपने में मस्त रहने की सलाह दी थी। खेतीबाडी के काम में पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहाने वाला बेटा गुरुवार की सुबह यह कहकर खेत गया था कि वापस आकर साथ में खाना खाएंगे। जब देर तक वह नहीं आया तो पिता को चिन्ता ने घेर लिया। वे उसे खोजने के लिए निकले। गांव के करीब दो-तीन किमी दूर एक सुनसान खेत की ओर जाने वाली सडक पर अपने जवान बेटे को मृत पडा देखकर पिता बेहोश हो गए। बेटे की प्रिय घोडी भी कुछ ही दूरी पर मरी हुई पायी गई। ऊंची जाति के होने का दंभ पालने वाले इस तरह के सवर्ण कैसे भूल जाते हैं कि दलित वर्ग हिंदू समाज का अभिन्न अंग है उन्हें भी सबके बराबर खडा होने का हक है। इस आधुनिक युग में छुआछूत और भेदभाव यकीनन अहंकार की निशानी है। दलित उत्पीडन की घटनाओं को देखकर सभ्य समाज का माथा शर्म से झुक जाता है फिर भी...।
आगरा में एक दलित की महज इसलिए पिटायी कर दी गई क्योंकि उसका हाथ गलती से ब्राह्मण के शरीर को छू गया था।  कन्नोज में एक दलित महिला के साथ बलात्कार के बाद उसे तेजाब से नहला दिया गया। चित्तौडगढ में बाइक चोरी के आरोप में दलित बच्चे को नंगा कर बेरहमी से पीटा गया। ऐसी कई खबरें लगभग रोज पढने और सुनने को मिल जाती हैं। एक सर्वेक्षण के आंकडे बताते हैं कि देश में हर दूसरे घंटे किसी न किसी दलित को निशाना बनाया जाता है। हर २४ घंटे में तीन दलित महिलाओं पर बलात्कार होता है। हर घंटे कोई न कोई दलित मारा जाता है। ऐसी तमाम वारदातें दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र देश पर कलंक से कम नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल के आसनसोल में रामनवमी के दिन से भडकी सांप्रदायिक हिंसा की आग के चलते चार लोगों को अपनी जान गंवानी पडी। इन मृतकों में आसनमोल की मस्जिद के इमाम का सोलह वर्षीय बेटा भी सम्मिलित था। दंगाइयों ने उनके बेटे की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। कोई आम पिता होता तो गुस्से से तिलमिला जाता। दंगाइयों के होश ठिकाने लगाने के लिए भडकाऊ भाषणबाजी पर उतर आता। लेकिन इमाम ने जिस सहनशीलता और धैर्य का परिचय दिया उसे देखकर लोगों की आंखें भीग गयी और उन्हें यकीन हो गया कि दरिंदों की भीड में ऐसे फरिश्ते भी बसते हैं। गुस्सायी भीड हिंसक मुद्रा में थी। अपना आपा खोती भीड को संबोधित करते हुए इमाम ने कहा, 'मेरे पुत्र के लिए अल्लाह ने जितना समय मुकर्रर किया था, उतना वह जी लिया। अब किसी और बच्चे की जान न लें। इस्लाम शांति और सौहार्द का धर्म है। वह बदला लेने तथा हिंसा की  शिक्षा नहीं देता।' अपने दुलारे बेटे को हमेशा-हमेशा के लिए खो चुके इस शांतिदूत ने यहां तक कह डाला कि अगर किसी ने हिंसा और बदले की बात की तो मैं मस्जिद और शहर छोडकर चला जाऊंगा।
अभी तक हम यही पढते और सुनते थे कि नक्सली दुर्गम जंगली इलाकों में रहकर आतंक और लूटमारी की वारदातों को अंजाम देते हैं। लेकिन अब कई नक्सलियों ने नगरों और महानगरों को अपनी कर्मस्थली बना लिया है। अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली के निकट स्थित नोएडा में बडे आराम से रह रहे नक्सली को पकडा गया। सुधीर भगत नामक यह व्यक्ति मूलरूप से बिहार का रहने वाला है। पुलिस ने नोएडा के एक मकान पर छापा मारकर उसे गिरफ्तार किया। फर्जी आधार कार्ड, कॉलेज के आईकार्ड और अन्य कागजात के साथ पकड में आए इस नक्सली पर बिहार में १४ हत्याएं और छह नरसंहार के मामले दर्ज हैं। यह नक्सली बिहार में बैठे अपने साथियों के जरिए हर माह लाखों की वसूली करता चला आ रहा था। वर्ष २०१४ में एक विधायक के प्रतिनिधि को पूरे गांव के सामने खुलेआम तडपा-तडपा कर मारने वाले इस दरिंदे की बिहार पुलिस के पास कोई फोटो नहीं थी। २००८ से वह नोएडा में रह रहा था। ताज्जुब है कि किसी को भी भनक नहीं लग पायी कि एक ईनामी खूंखार नक्सली उनके आसपास बडे मज़े से रह रहा है!