Thursday, March 29, 2018

मानहानि का तमाशा

अन्ना हजारे। पूरा नाम किसन बाबूलाल हजारे। कम ही लोग होंगे जो इस नाम से वाकिफ न हों। कुछ वर्ष पूर्व इस शख्स ने रामलीला मैदान पर आमरण अनशन कर तत्कालीन कांग्रेस गठबंधन की सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थीं। यह कहना गलत नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को केन्द्र की सत्ता दिलवाने में इस सत्याग्रही ने बहुत ब‹डी भूमिका निभायी। अरविंद केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय भी अन्ना को जाता है। उन्हीं के मंच ने आम आदमी पार्टी को जन्म दिया। अन्ना की प्रभावी लडाई से ऐसा प्रतीत होने लगा था कि देश और प्रदेशों में अवश्य बदलाव आयेगा। अन्ना की सभी मांगे पूरी होंगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। सात साल बाद एक बार फिर से ८१ वर्षीय वृद्ध अन्ना हजारे को उसी रामलीला मैदान पर आमरण अनशन के लिए बैठना पडा। मंच पर वो रौनक नजर नहीं आयी, लेकिन मांगें वही की वही थीं। न जन लोकपाल आया ना ही लोकायुक्त की नियुक्ति की गयी। किसानों की आत्महत्याओं की संख्या बढती चली जा रही है। बूढी काया के फिर से आमरण अनशन पर बैठने के बाद पुराने चेहरों ने जिस तरह से उनकी सुध-बुध लेना जरूरी नहीं समझा उससे स्पष्ट हो गया कि स्वार्थ पूरे होते ही अन्ना उनके लिए निरर्थक हो गये। पागलों की तरह अन्ना के आगे-पीछे दौडने वाले न्यूज चैनलों ने भी एकदम किनारा कर लिया। अन्ना तो वही हैं, लेकिन वक्त बदल गया है। पिछली बार जब उन्होंने आमरण अनशन किया था तो हजारों का हुजूम होता था और ६०-६५ कैमरे लगे रहते थे, लेकिन इस बार चंद चेहरे दिखे और एकाध कैमरा टिका कर खानापूर्ति की गयी। कहावत है कि 'दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है।' अन्ना ने इस बार स्पष्ट कह दिया था कि वही लोग उनके आंदोलन का हिस्सा बनेंगे जो कभी राजनीति में नहीं जाएंगे। इस बार अन्ना को अरविंद, कुमार विश्वास, सिसोदिया आदि की बहुत याद आई होगी। यही लोग ही थे जिन्होंने उनका मंच लूट लिया था। अरविंद केजरीवाल को अगर अन्ना का साथ नहीं मिला होता तो वे राजनीति के नायक की तरह नहीं उभर पाते। अन्ना के मंच से ही उन्होंने भ्रष्टाचारियों को ललकारने का अभियान चलाया था। आम आदमी के चेहरे-मोहरे और पहनावे वाले केजरीवाल के तूफानी भाषणों का दिल्ली ही नहीं, देश की जनता पर भी काफी प्रभाव पडा था। लोगों को लगने लगा था कि यही वो निर्भीक शख्स है जो पथभ्रष्ट राजनीति को सही रास्ते पर लाने का दमखम रखता है। सत्ता पाने के बाद यह कभी बहकेगा नहीं। कोई भी लालच इसको खरीद नहीं पायेगा। जोर-शोर के साथ देश के दिग्गज नेताओं पर आरोप पर आरोप लगाने और सबूत के पुलिंदे लहराने वाले अरविंद केजरीवाल ने भी कभी कल्पना नहीं की थी कि उनकी आम आदमी पार्टी को हाथों हाथ लिया जाएगा और एक दिन ऐसा भी आयेगा जब वे दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले और बाद में विरोधी नेताओं और उनके परिवारों के खिलाफ भ्रष्टाचार, अनाचार के ऐसे-ऐसे आरोप लगाये कि लोग दंग रह गए। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को तो उन्होंने उम्र भर के लिए जेल में सडाने की कसम खाई थी। वे अपने भाषणों में यह बताने से नहीं चूकते थे कि वे कभी तथ्यहीन आरोप नहीं लगाते। पूरे सबूत जुटाने के बाद ही अपनी जुबान खोलते हैं। यही वजह थी कि लोगों को लगने लगा था कि  देश को सच्चा राजनेता मिलने के साथ-साथ एक ऐसा योद्धा मिल गया है जिसकी वर्षों से तलाश थी। दिग्गज राजनेताओं और बडे-बडे उद्योगपतियों को भ्रष्टाचारी, ठग और लुटेरा बताने वाले केजरीवाल को देश के मीडिया ने भी रातोंरात हीरो बना दिया था। हर न्यूज चैनल पर जैसे उनका कब्जा हो गया था। केजरीवाल ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, अरूण जेटली, पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल उनके पुत्र अमित सिब्बल, पंजाब के अकाली दल के नेता विक्रम मजीठिया से लेकर न जाने कितने नेताओं को तेजाबी आरोपों की बौछारों से नहलाया। गडकरी को तो केजरीवाल के संगीन आरोपों के बाद भाजपा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र तक देना पडा था। अरूण जेटली की भी काफी बदनामी हुई थी। तभी तो उन्होंने केजरीवाल और उनके साथियों पर कई करोड की मानहानि का मुकदमा दर्ज कर रखा है। नतीजतन वे तकरीबन ४० मुकदमो की गिरफ्त में आ गए। हालत इतने गंभीर हो गए कि उनके सामने यह समस्या खडी हो गई कि मुख्यमंत्री के दायित्व को निभायें या फिर मुकदमों से निपटने के लिए अपना कीमती समय जाया करें। ऐसे में उन्होंने अपना दिमाग लडाया तो उन्हें मानहानि के मुकदमों से मुक्ति पाने के लिए माफी मांग लेना ही सबसे आसान रास्ता लगा। इससे वे न्यायालयों के चक्कर काटने से तो बच जाएंगे। पंजाब के अकाली दल के नेता विक्रम मजीठिया, जिन्हें उन्होंने नशे का सौदागर घोषित कर जेल में पहुंचाने की हुंकार लगायी थी, से माफी मांग ली है। इसके साथ ही नितिन गडकरी, कपिल सिब्बल के पुत्र से भी लिखित माफी मांग कर यह संकेत दे दिए हैं कि वे उन सभी नेताओं, उद्योगपतियों से माफी मांगने से संकोच नहीं करने वाले, जिनकी कभी उन्होंने डंके की चोट पर बदनामी की थी। कभी आरोपों के कीचड उछालकर नायक बनने वाले केजरीवाल के झुकने के पीछे का असली सच यही है कि उन्होंने बिना गहराई से अध्ययन किए सुनी-सुनायी बातों के आधार पर आरोप तो लगा दिए, लेकिन जब सबूत पेश करने की बारी आयी तो उन्हें नानी याद आ गई। अगर उनके पास पुख्ता सबूत होते तो वे माफी मांगने की सोचते भी नहीं। वे जानते थे कि जनता का दिल कैसे जीता जा सकता है। उन्होंने सत्ता पाने के लिए तब वही किया जो इस देश के धूर्त नेता करते आए हैं। माफी मांगकर वे यह दिखाना चाहते हैं कि आज की तारीख में देश की राजनीति में उन सा साहसी और कोई नेता नहीं है। वे इस भ्रम के साथ अपना सीना ताने हैं कि माफी के खेल से उनके कद में बढोत्तरी हुई है। सवाल यह है कि क्या वे अब जब किसी पर आरोप लगायेंगे तो क्या लोग उन पर यकीन कर लेंगे? यही साख ही तो किसी भी राजनेता की असली पूंजी होती है जो उन्होंने खो दी है। देश के अन्य बडबोले बेसब्रे नेताओं को अरविंद के माफीनामों की झडी से सीख ले लेनी चाहिए कि वे बिना पुख्ता सबूतों के अपने विरोधियों पर कीचड उछालने से बचें। भले ही राजनीति में यह कार्य आम माना जाता हो, लेकिन अदालत में तो साक्ष्य पेश करने ही पडते हैं अन्यथा जेल और जुर्माने की चोट खानी ही पड सकती है। एक सच यह भी है कि अपने यहां के सभी नेता दूध के धुले नहीं हैं। अरविंद ने जिन्हें निशाना बनाया उनमें कुछ तो बेहद कुख्यात रहे हैं। कुख्यात भ्रष्टाचारी भी जानते है कि आरोपों को कोर्ट में सिद्ध करना बेहद मुश्किल होता है इसलिए वे खुद को पाक साफ दिखाने के लिए करोडो रुपये की मानहानि का मुकदमा करने में देरी नहीं लगाते।

Thursday, March 22, 2018

अदने से शख्स की विराट सीख

कई लोग प्यार की शुरुआत में तो बहुत उत्साहित रहते हैं। उनके हावभाव उनके वफादार होने के संकेत देते हैं, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ जब उनकी मनोकामनाएं पूरी नहीं होतीं तो वे प्यार को बरबाद करके रख देते हैं। ऐसा ही कुछ खूबसूरती को लेकर भी है। इसका आकर्षण किसी को भी बहका सकता है, लेकिन बहकने का वो अर्थ नहीं होता जो इन दिनों देखने में आ रहा है। बडे-बडे लोग जब प्यार की परिभाषा में खरे नहीं उतरते तब किसी अदने से इंसान के द्वारा सच्चे प्यार की परिभाषा गढ देना चौंका कर रख देता है। रेशमा के पति उस्मान का भी यही दावा था कि उसे अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार है। उस्मान ऑटो चलाता था। गरीब परिवार में पली-बढी रेशमा उस्मान को एक ही नजर में भा गई थी। वह उसकी बेइंतहा खूबसूरती पर मर मिटा था तभी तो उसने शादी के लिए हां करने में देरी नहीं लगायी थी। शादी के बाद रेशमा का जब पति से सुहाग की सेज पर पहली बार सामना हुआ तो यह बता दिया गया कि उसे बेटे की मां बनना है। उनके परिवार को बेटी नहीं, बेटा ही चाहिए। पति ने यह मान रखा था कि बेटा या बेटी का होना औरत के अपने हाथ में ही होता है। जो औरतें बेटे नहीं पैदा कर पातीं वे किसी काम की नहीं होतीं। बहरहाल, करीब डेढ वर्ष के बाद रेशमा गर्भवती हुई। रेशमा की खूबसूरती पर मर-मिटने वाले उस्मान के अरमान तब ठंडे पड गए जब रेशमा ने बेटी को जन्म दिया। पहली बार तो पति और परिवार वालों ने किसी तरह से खुद को संभाला, लेकिन रेशमा ने जब एक-एक कर पांच बेटियों को जन्म दे दिया तो पति और घर के सभी सदस्य उसके बैरी बन गए। उसे जानवर से भी बदतर माना जाने लगा। बेतहाशा मारपीट की जाने लगी। रेशमा की बडी बेटी तेरह साल की हो चुकी थी। छठवीं बार जब वह गर्भवती हुई तो पति अस्पताल चलकर गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण के लिए जोर डालने लगा, लेकिन रेशमा तैयार नहीं हुई। पति के लिए यह असहनीय बात थी। उसे बडा गुस्सा आया। वह भागते-भागते बाजार गया और तेजाब खरीद लाया। घर वापस लौटने के बाद पहले तो उसने रेशमा के साथ खूब गाली गलौच की फिर उसके पेट पर तेजाब उंडेल दिया जिससे उसका पेट और नाभी के नीचे का हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया। निर्दयी पति और उसके परिवार वाले रेशमा को तडपता देखकर आनंदित होते रहे। वह चीखती-बिलखती रही। कुछ पडोसियों को जब खबर लगी तो उसे अस्पताल पहुंचाया गया। रेशमा के साथ हुए जुल्म की दास्तान अखबारों में छपी। लोगों ने ऐसे अत्याचारी पति और परिवार को कोसा और थू-थू की। रेशमा का कई दिनों तक सघन उपचार चलता रहा और उसने छठी बार बेटे को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद रेशमा ने निर्दयी पति के घर जाने से साफ इनकार कर दिया। आज वह ३५ वर्ष की हो चुकी है। उसे जो जख्म दिये गए हैं वे तो कभी भी नहीं भर सकते। उसे तो पुरुष और शादी के नाम से भय लगने लगा है। उसने कसम खायी है कि वह अपनी पांचों बेटियों और बेटे की परवरिश के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगी। अपना खून पसीना बहाकर उनका भविष्य संवारेगी। रेशमा की खूबसूरती आज भी पुरुषों को अपनी तरफ आकर्षित करती है, लेकिन अब वह किसी के झांसे में नहीं आना चाहती।
खूबसूरत चेहरे के दिवाने एक मनचले के तेजाबी दंश झेलने वाली लक्ष्मी को आज भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है कि जो लोग किसी के चेहरे को पसंद करते हैं उसके इनकार को बर्दाश्त क्यों नहीं कर पाते! यह कहां का प्यार है जो एकतरफा राह पर दौडता है और जो मेरी नहीं हुई उसे किसी और की नहीं होने देने के लिए तेजाब से नहला दिया जाता है। लक्ष्मी का कहना है कि दुनिया वैसी ही है जैसे पहले थी। कुछ भी नहीं बदला है। अब तो मैंने देखने का नजरिया ही बदल दिया है।
बडे-बडे लोग भी खूबसूरती को लेकर ओछे और शर्मनाक बयान देने से बाज नहीं आते। कर्नाटक के पूर्व डीजीपी एच.पी. सांगलियान ने कहीं पर निर्भया की मां को देख लिया। वही निर्भया जिसके साथ देश की राजधानी में चलती बस में सामूहिक बलात्कार कर मरने के लिए सडक पर फेंक दिया गया था। अधिकारी ने मर्दाने अंदाज में कहा कि निर्भया के मां की खूबसूरती को देखकर ही अंदाजा हो जाता है कि निर्भया कितनी हसीन रही होगी। यानी ऐसी खूबसूरती पर तो किसी का भी दिल मचल सकता है। खूबसूरत थी तभी तो बदमाशों की निगाह में आ गई और दुराचार की शिकार हो गई।
तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री ने भी खूबसूरती को अपने अंदाज से निशाने पर लिया। हुआ यूं कि मंत्री के विधायकों की बैठक से बाहर आने के दौरान महिला रिपोर्टर ने मीटिंग में लिये गए फैसलों की जानकारी मांगी तो मंत्री ने कोई जवाब देने की बजाय कहा, आप बहुत अच्छी लग रही हैं। अगले दो सवालों पर भी मंत्री ने रिपोर्टर का मुंह बंद करने की कोशिश की : आपका चश्मा आपकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा है। मंत्री महिला पत्रकार से खुलकर तो कह नहीं सकते कि तुम पहले खुद को संभालो। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम जैसी हसीन युवतियों को फांसने के लिए शिकारी जहां-तहां घूमते रहते हैं। देश में दिन-रात न जाने कितनी खूबसूरत युवतियां बलात्कार का शिकार होती रहती हैं। इसलिए मेरा कहा मानो... यह पत्रकारिता और सवाल पूछना छोड घर में जाकर बैठ जाओ। तुम सिर्फ वहीं सुरक्षित रहोगी।
२४ फरवरी २०१८ को खूबसूरत अभिनेत्री श्रीदेवी की दुबई में मृत्यु हो गई। श्रीदेवी के जीवंत अभिनय और बेमिसाल खूबसूरती के करोडों चाहने वालों में एक हैं गांव तकिया के रहने वाले गंगाराम। गंगाराम दिन-रात श्रीदेवी की फिल्मों के गाने सुनते और उनकी कोई भी फिल्म देखना नहीं भुलते थे। कुछ फिल्में तो उन्होंने दस-दस बार भी देखीं। उन्होंने श्रीदेवी को अपनी जीवन संगिनी बनाने का सपना देखा था जिसके पूरे होने का सवाल ही नहीं उठता था। फिर भी वे श्रीदेवी की दिवानगी से कभी मुक्त नहीं हो पाए। श्रीदेवी की मौत की खबर सुनते ही गंगाराम गहरे सदमे में डूब गए और खुद को घर के कमरे में कैद कर लिया। श्रीदेवी के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने अपना सर मुंडवाया और तस्वीर के सामने पुतला बनाकर जल अर्पित करने के साथ अगरबत्ती और फूलों से उनका पूजन किया। ध्यान रहे कि आमतौर पर मृतक की आत्मा की शांति के लिए मृतक के परिजन ही यह संस्कार करते हैं। गंगाराम श्रीदेवी को अपनी जान से ज्यादा चाहते थे। तभी तो उन्होंने सर्वप्रिय अभिनेत्री के नाम से १०१ आम के पेडों का बगीचा लगाने के साथ-साथ प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया है ताकि रोज उनकी पूजा कर सकें। सच्चे प्यार और समर्पण की बेमिसाल परिभाषा पेश करने वाले गंगाराम एक कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं।

Thursday, March 15, 2018

वो का जाने पीर पराई...

पिता की दिली तमन्ना थी कि उनके बेटा-बेटी बडा होकर इंजीनियर बनें। कुदरत के खेल बडे निराले हैं। आदमी कुछ चाह रहा होता है और वह एकाएक अकल्पनीय दृश्य उपस्थित करते हुए यह संदेश दे देती है कि तुम्हारी चाहतें और इच्छाएं अपनी जगह हैं। मेरे फैसले तो अटल हैं। तुम मात्र मूकदर्शक ही हो। दिल की बीमारी के कारण पिता का अचानक निधन हो गया। शव आंगन में पडा था और बेटा-बेटी को ४५ किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र में दसवीं की परीक्षा देने जाना था। दोनों की आंखों से झर-झर कर आंसू बह रहे थे। बच्चों को पिता के सपने और परीक्षा की भी चिन्ता थी। तीनों लिपटकर रोते रहे। मां ने बच्चों को परीक्षा की याद दिलायी। दोनों पिता के शव के पास गए। चरणस्पर्श किया और आंखों में आंसू लिए परीक्षा देने के लिए चल दिए। उनके आने तक घर वालों ने इंतजार किया और शाम को अंतिम संस्कार किया गया। परीक्षा देकर लौटे बेटे ने मुखाग्नि दी। रिश्तेदारों, मित्रों और आसपास के लोगों की आंखों से अश्रुधारा बहती रही। रात को बेटा-बेटी अगले दिन की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। अचानक अपने पति को खोने वाली मां बच्चों की मनोभावना को अच्छी तरह से समझ रही थी।
मां-बाप की इच्छाओं को पूरा करने का तीव्र ज़ज्बा रखने वाली संतानों की जितनी तारीफ की जाए, कम है। यह भी देखने में आता है कि बच्चों को गलत राह पकडने में देरी नहीं लगती। भटकाने वालों की मायावी चालें युवाओं के जीवन से खिलवाड करने को आतुर रहती हैं। देश के असंख्य किशोर और युवा नक्सलियों और आतंकियों का अनुसरण कर अपनी जिन्दगी तबाह कर रहे हैं। उनके बूढे असहाय मां-बाप पर क्या बीतती होगी इसकी उन्हें पता नहीं चिन्ता क्यों नहीं सताती! छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, उडीसा, झारखंड आदि के कई वृद्ध माता-पिता वर्षों से अपने उन बच्चों के इंतजार में दिन काट रहे हैं जो वर्षों से नक्सलवादियों के बनाये प्रलोभन के घने जंगल गुम हो गये हैं। आज से लगभग सत्रह वर्ष पूर्व नक्सलियों के फैलाये जाल का शिकार होकर बंदूक थामने वाले बस्तर के रहने वाले युवक नीरू के उम्रदराज माता-पिता ने छत्तीसगढ की सीमा पर गढचिरोली (महाराष्ट्र) व आसपास के इलाकों में जगह-जगह पर पोस्टर चिपकाये हैं। जिनमें बेटे से लौट आने की फरियाद की गई है :
"बूढी हुई मां,
झुकी कमर,
अब तो लौट आ।
करना न तू देर
सांसें चंद बाकी
अब तो लौट आ।
पथरा गई है आंखें
इक नजर देखने को
अब तो लौट आ।"
गंभीर रूप से बीमार बिस्तर पर पडी मां को यकीन हैं कि उसकी आवाज उसके बेटे तक जरूर पहुंचेगी। तभी तो उसके कांपते ओंठों से बस यही शब्द निकलते हैं- मेरा नीरू जरूर आएगा। छडी के सहारे बडी मुश्किल से चल पानेवाली मां ने बेटे के नाम आंसुओं से भीगा एक खत भी लिखा हैं :
मेरे नीरू,
दूर से ही सही, मेरा और अपनी मां का आशीर्वाद लेना। भगवान जगन्नाथ की कृपा से तू जहां भी हो, अच्छे से हो, यही हमारी आशा है। पिछले १७ साल से हम तुम्हारे वापस आने की राह देख रहे हैं। अब भी हमे आशा है कि तू हमारे पास सुरक्षित वापस आएगा। सभी माता-पिता की इच्छा होती है कि वृद्धावस्था में उसका बेटा साथ में हो। यही इच्छा हम दोनों पति-पत्नी की भी है। मुझे वह दिन कल जैसा ही लग रहा है, जब तुमने अपनी मां का अस्पताल में इलाज कराया था। तुम्हारे जाने के बाद से हमारी स्थिति बहुत खराब हो गई है। तुम्हें याद कर रो-रोकर हमारा बुरा हाल है। इसी वजह से तुम्हारी मां ने बिस्तर पकड लिया है। हमारा पूरा घर टूट गया है। पैसे खत्म हो गए हैं। झोपडी में रहने को मजबूर हैं। यदि तू झोपडी को देखेगा तो आंखों में आंसू आ जाएंगे। हमें आशा है कि तू वह रास्ता छोडकर हमारे पास वापस आ जाएगा। हम तुम्हारे आने की राह देख रहे हैं। तू ही अपनी मां की आंखों से बहते आंसू पोंछ पाएगा। हमारा टूटा घर भी बना पाएगा। हमारी आशा को निराश मत करना।
तुम्हारे हताश और दुखी माता-पिता
नरहरि राउत व सरस्वती राउत।
किसी भी माता-पिता के मन में अपनी औलाद के प्रति असीम स्नेह होता है। नरहरि और सरस्वती का बेटा नीरू उनसे सत्रह वर्षों से दूर है। वे उनसे मिलने के लिए तडप रहे हैं। ऐसे और भी कई मां-बाप हैं जिन्हें नक्सलियों की आतंकी दुनिया में भटकते अपने बेटे-बेटियों का इंतजार है। सोचिए, जब किसी का बच्चा सुबह स्कूल जाता है और शाम को तय समय पर नहीं लौटता तो वे कितने व्याकुल और बेचैन हो जाते हैं। जब किसी के बच्चे का अपहरण हो जाता है तो वह उसे छुडाने के लिए कुछ भी देने और करने को तैयार हो जाता है। धनवान तो मुंहमांगी फिरौती देने में भी देरी नहीं लगाते। जिनके बच्चे वर्षों से नक्सली षडयंत्र के शिकार बन उनसे दूर हो गए हैं उन पर क्या बीतती होगी। नक्सलियों के द्वारा गरीब आदिवासियों के बच्चों का अपहरण कर लेने पर कहीं से भी कोई आवाज नहीं उठती। उनकी व्याकुलता और पीडा को कभी समझा ही नहीं जाता। यह कितनी हैरत की बात है कि हम काल्पनिक कहानियों पर तो यकीन कर लेते हैं और विचलित हो जाते हैं, लेकिन इस सुलगती हकीकत पर नाममात्र की चिन्ता भी नहीं जताते। किसी ने सच ही कहा हैं :
"जाके पांव न फटी बिंवाई,
वो का जाने पीर पराई..."
नक्सलवाद का जन्म पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग जिले में नेपाल की सीमा से लगे एक कस्बे नक्सलवाडी में गरीब किसानों को बडे खेतिहर किसानों के शोषण जाल से मुक्त कराने और उनके जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से हुआ था। प.बंगाल से शुरू हुए नक्सलवाद ने धीरे-धीरे उडीसा, छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, झारखंड और कर्नाटक तक अपनी पैठ जमा ली। सरकार की ढुलमुल नीतियों ने भी इसके फलने-फूलने में खासी भूमिका निभायी। नक्सलवादी समर्थक भी कहते नहीं थकते कि सत्ताधीशों की मक्कारी के चलते प्रजातंत्र के विफल हो जाने के कारण ही नक्सली आंदोलन जन्मा। लेकिन इस आंदोलन का हश्र आज हमारे सामने है। नक्सलवादियों ने पुलिस और विशेष पुलिस दल के जवानों पर घात लगाकर जितने हमले किए और खून खराबा किया उससे हर राष्ट्रप्रेमी का खून बार-बार खौल जाता है। अपने परोपकारी लक्ष्य को पूरी तरह से विस्मृत कर हत्यारे बन चुके नक्सलियों ने उन गरीब आदिवासियों का जीना हराम कर दिया है जिनके जीवन में बदलाव लाने के दावों के साथ नक्सलवाद की नींव रखी गई थी। खून की होली खेलते चले आ रहे हिंसक नक्सलियों ने न जाने कितनी लडकियों को भी अपने साथ जबरन जोडकर उनका यौन शोषण किया और उनके जीवन को नर्क से भी बदतर बनाकर रख दिया है।

Thursday, March 8, 2018

नशे के कैदी

अपने शराबी पिता के हाथों मां की पिटायी और अपशब्दों की बौछार से तंग आ गई थी रानी। एक दिन की बात होती तो वह सब्र कर लेती। लेकिन पिता तो रोज शराब पीकर आता और उसकी मां और बहन के साथ अंधाधुंध मारपीट करता। सत्रह वर्षीय रानी से मां और बहन की दुर्दशा देखी नहीं जाती। पिता की करतूतों की वजह से पूरे परिवार को हंसी का पात्र बनना पड रहा था। पढी-लिखी रानी ने आखिरकार पुलिस में शराबी पिता की शिकायत करने की ठानी। तीन-चार बार वह थाने गई, लेकिन खाकी वर्दी वालों ने उसकी समस्या जानने, सुलझाने के बजाय उसे चलता कर दिया। पुलिसवालों का रवैया देखकर रानी निराश तो हुई, लेकिन फिर भी अपना दुखडा सुनाने के लिए बार-बार पुलिस स्टेशन जाती रही। वहां उसे बस यही कहा जाता कि नशा करना कोई अपराध नहीं है। अधिकांश पति और पिता नशे में नियंत्रण खो देते हैं। राजधानी दिल्ली में सरकार ने ही जगह-जगह शराब की दुकानें खुलवा रखी हैं। यह सिर्फ देखने के लिए तो नहीं हैं। जिन्हें पीनी है वे पिएंगे ही। पीने के बाद मारपीट और गालीगलोच होना आम बात है। वह कैसी बेटी है जो अपने पिता की शिकायत करने थाने आ जाती है। शहर में हजारों ऐसे शराबी हैं जो अपनी पत्नियों और बच्चों की पिटायी करते रहते हैं। तुम्हारी तरह उनकी बेटियां तो पिता के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराने के लिए नहीं चली आतीं!
रानी को तरह-तरह के उपदेश देकर पुलिसवाले विदा कर देते। शराबी पिता सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह दिन-रात उदासी और चिन्ता में डूबी सोचती-विचारती रहती। एक दिन उसके मन में एक नया विचार आया। पिता को सज़ा दिलाने के लिए उसने कोर्ट में छेडछाड का झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया। अदालत में जब मामले की सुनवाई हुई तो उसने जज को बताया कि उसने यौन उत्पीडन का झूठा मुकदमा दर्ज कराया है। उसने जज को झूठा मुकदमा दर्ज कराने के पीछे की वजह बताई कि किस तरह से वह अपने शराबी पिता के आतंक से तंग आकर थाने में शिकायत दर्ज करवाने के लिए गयी, लेकिन उसकी एक भी नहीं सुनी गई। अदालत ने लडकी के साहस की प्रशंसा की और पिता को यौन उत्पीडन के आरोप से तो बरी कर दिया, लेकिन पत्नी और बेटी पर नशे में गाली-गलौच और मारपीट करने के आरोप में दोषी ठहराया। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अपनी मां की दुर्दशा देखकर बेटी ने जो रास्ता अख्तियार किया वो उसकी मजबूरी थी। नशे में गर्क हो चुके पिताओं का जानवरों से भी बदतर हो जाना हर संस्कारवान इंसान के खून को खौलाता है। ऐसे दुष्टों को भरे चौराहे पर गोली से उडा देने का मन होता है।
नागपुर में एक ११ वर्षीय छठवीं में पढने वाली छात्रा को उसी के नशेडी पिता ने अपनी अंधी वासना का लगातार शिकार बनाया। विरोध करने पर उसकी मां की हत्या करने की धमकी देता रहा। शराब और गांजे के नशे के गुलाम बाप से डरी सहमी रहने वाली बालिका ने आखिरकार अपने साथ हो रहे दुष्कर्म की जानकारी अपनी पडोसी महिला को दे दी। महिला बाप की हैवानियत के बारे में जानकर सन्न और स्तब्ध रह गई। ऐसी बातों को फैलने में देरी नहीं लगती। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं तक जब यह बात पहुंची तो उन्होंने दुष्कर्मी को सबक सिखाने की ठानी। बलात्कारी हैवान को इसकी भनक लग गयी। वह घर से भाग गया। फिर बात पुलिस तक भी जा पहुंची। पुलिस खोजबीन कर बस्ती में छिपे नराधम को दबोचकर थाने में ले आयी। बालिका की मां को भी अपने पति की गिरफ्तारी के बाद बेटी के साथ होते चले आ रहे घिनौने कृत्य का पता चला। उसने थाने के अंदर पति की चप्पलों से ऐसी धुनायी की, कि लोग देखते रह गये।  गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व बेटी ने इशारों-इशारों में मां को पिता की करतूत के बारे में अवगत कराने की कोशिश की थी, लेकिन मां ने बाप-बेटी के प्रेम का हवाला देकर उसे डांटा था। दरअसल मां ने कभी कल्पना ही नहीं की थी कि कोई बाप इस हद तक नीचे गिर सकता है। हां उसे यह जरूर पता था कि उनका पति शराब और गांजे के नशे में मदहोश रहता है।
शराब ने न जाने कितने हंसते-खेलते परिवार तबाह किये हैं। एक आदमी की नशे की लत पूरे परिवार की बरबादी का कारण बन जाती है। असंख्य महिलाओं को न चाहते हुए भी शराबी पतियों के साथ रो-रोकर जिन्दगी काटनी पडती है।
नई दिल्ली की रहने वाली एक महिला ने शराबी पति से छुटकारा पाने के लिए जहर देकर मार डाला। महिला का पति एक फाइनेंस कंपनी में मैनेजर था। वह रात को नशे में टुन्न होकर घर आता और उससे लडाई-झगडा करता। पडोसी भी तमाशा देखते और तरह-तरह की बातें करते थे। पति को सुधारने के लिए उसने कई उपाय किए, लेकिन बात नहीं बनी। वह पुलिस थाने भी गई, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। किसी के बताने पर एक तांत्रिक के पास गई जो नशेडियों का इलाज करने में सिद्धहस्त माना जाता था। तांत्रिक के तंत्र-मंत्र के बाद भी जब पति की पीने की आदत नहीं छूटी तो उसने तांत्रिक को ही कोसना शुरू कर दिया। शातिर तांत्रिक ने महिला को नशेडी पति से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति पाने के लिए जहर पिलाकर खत्म करने की सलाह दी तो वह फौरन तैयार हो गई। तांत्रिक ने उसे जहरीला तरल पदार्थ लाकर दिया जिसे उसने पति को पिला दिया। पति की मौत हो गयी। जब भेद खुला तो महिला और तांत्रिक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
पुलिसवालों को शराब और शराबियों के आतंकी तांडव में कोई बुराई नजर नहीं आती। अधिकांश वर्दीधारी मदिराप्रेमी हैं। कई तो ड्यूटी के दौरान भी च‹ढाए रहते हैं। पटना में एक दरोगा को होली के दौरान मयखाने और शराबियों पर नजर रखने की ड्यूटी दी गई थी। गश्ती के दौरान वह मयखाने में पहुंच गया जहां पर उसने छककर दारू पी और झूम-झूम कर डांस करते हुए गाने लगा :
"हुई महंगी बहुत शराब,
एक मशविरा है जनाब,
थोडी-थोडी पिया करो"
गाते और गिरते-पडते दरोगा की तस्वीर किसी ने एसएसपी को भेज दी। नशे में टुन्न दरोगा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जिस थाने में वह तैनात था, उसी में कैदी बन गया।

Thursday, March 1, 2018

कोई साजिश तो हो ही रही है

पिछले साल होली से कुछ हफ्ते पहले की बात है। एक छोटा-सा मंच बना था। उस पर खडा वह युवक बोले ही चला जा रहा था। उसकी उत्तेजना देखते बनती थी। उसके इतिहास के ज्ञान ने छोटे से मोहल्ले के श्रोताओं को अचंभित कर दिया था : "मेरे दोस्तो, सच तो यह है कि भारत के इतिहास की कुछ डरावनी तारीखें ऐसी हैं जिन्हें कभी भुलाया ही नहीं जा सकता। ३० जनवरी १९४८ को सर्वधर्म समभाव के पथ के सच्चे राही महात्मा गांधी की जिस नत्थुराम गोडसे ने निर्मम हत्या की वह भारत का ही रहने वाला था। गोडसे ने महात्मा पर गोलियां बरसाते समय सोचा होगा कि उनका नाम हमेशा-हमेशा के लिए मिट जाएगा। वह यह भूल गया था अच्छाई और अच्छे लोगों की कभी मौत नहीं होती। वे लोगों के दिलों पर राज करते हैं। लेकिन यह देखकर अफसोस भी होता है कि अपने देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गोडसे के प्रति सम्मान और सहानुभूति रखते हैं। इनका बस चले तो देशभर में बापू के हत्यारे की प्रतिमाएं लगवा दें और मंदिर बनवा दें। यह कितनी शर्म की बात है कि भारतवर्ष में हत्यारों के नाम को जिन्दा रखने वाले भक्त छाती तानकर चलते हैं।
६ दिसंबर १९९२ में हुए बाबरी मस्जिद के ध्वंस ने भी आपसी भाईचारे की चूलें हिलाते हुए हिन्दू-मुस्लिम के बीच की मधुरता का हरण कर अविश्वास की दीवारें खडी कर दीं। ऐसी ही कई घटनाएं हैं जिन्होंने देश के माहौल को जहरीला बना दिया। इंदिरा जी की हत्या के बाद देश की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ देश भर में निर्दोष सिखों के खिलाफ हुए सुनियोजित दंगों की याद करने से ही दिल दहल जाता है। गोधरा और उसके बाद के गुजरात दंगों ने भी मानवता का सिर झुकाकर रख दिया। हर बडे दंगे ने राजनीतिक दलों और नेताओं की किस्मत चमकायी। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा ने देश और प्रदेशों की सत्ता पायी। सच कहें तो राजनेताओं ने दंगों को खूब भुनाया। कई बार नेताओं ने ही देशवासियों को आपस में लडवाया है और दंगे करवा कर अपना मतलब साधा है। सत्ता के भूखे नेताओं की फितरत से वाकिफ कवि गोरख पाण्डे ने इस शर्मनाक सच्चाई को इन पंक्तियों में बखूबी पेश किया है:
"इस बार दंगा बहुत बडा था,
खूब हुई खून की बारिश,
अगले साल अच्छी होगी,
फसल मतदान की।"
जब भी चुनाव करीब आते हैं तो सत्तालोलुपों को गरीब, गरीबी, दलित, बेरोजगार, गाय और मंदिर की याद आ जाती है। नेताओं से कम-अज़-कम यह तो पूछा जाना चाहिए कि उनकी निगाह में किसकी कीमत ज्यादा है? गाय की या इंसानों की। मंदिर की या मानवों की। वर्षों तक सत्ता का सुख भोगने के बाद यह देश की गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा तो दूर नहीं कर पाए, लेकिन हिन्दूओं और मुसलमानों को आपस में लडाने में लगे हुए हैं। लडने वाले भी अभी तक यह नहीं समझ पाए कि उन्हें गरीबी और बदहाली से लडना है या आपसी भाईचारे की हत्या का गुनाह करते रहना है। कौन से धर्मग्रंथ में आतंकी राह पर चलने और एक-दूसरे का खून बहाने का संदेश दिया गया है? किसके बहकावे में आकर लडना-मरना कहां की अक्लमंदी है? यहां फिर मुझे किसी ज्ञानी की यह पंक्तियां याद आ रही हैं :
"मैंने गीता और कुरान को
कभी लडते नहीं देखा
जो लडते हैं उन्हें
कभी पढते नहीं देखा।"
शासक कहते हैं कि देश बदल रहा है। बदलाव हमें भी दिखायी दे रहा है :
]"काले पैसे की नुमाइश हो रही है,
सब्र की खूब आजमाइश हो रही है,
छूट दे रखी है चमन को लूटने की,
ये बाज़ाहिर कोई साजिश हो रही है।"
अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं। आपसी टकराव बढता चला जा रहा है। सहनशीलता खत्म होती चली जा रही है। भीडतंत्र भेडतंत्र में तब्दील हो चुका है। कानून के रखवाले अपराधियों के समक्ष बौने दिखने लगे हैं। देश के वर्तमान हालात पर गजलकार उदयनारायण सिंह की ही यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं :
"यह रोज कोई पूछता है मेरे कान में
हिन्दुस्तां कहां है अब हिन्दोस्तान में
इन बादलों की आंख में पानी नहीं रहा
तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में।"
आप ही बताएं कि वो हिन्दुस्तान कहां है जिसकी आजादी के लिए शहीदों ने कुर्बानियां दी थीं। सपना तो यह देखा गया था कि सभी धर्मों को मानने वाले एक साथ एकजुट होकर रहेंगे, लेकिन यहां तो :
"कोई हिन्दू है कोई मुसलमान है, कोई ईसाई है। सबने इंसान न बनने की कसम खाई हैं।"
लोगों को होशो-हवास में लाने के लिए दिन-रात गर्जना करने वाले उस युवक की पिछले साल ही ऐन होली के दिन हत्या कर दी गई। अखबारों में छपी खबरों से पता चला कि गली-कूचों और शहर के चौराहों पर खडे होकर देश के वर्तमान हालात पर अपना गुस्सा और चिन्ता व्यक्त करने वाले इस युवक की शब्दावली निरंतर पैनी होती चली जा रही थी। वह साम्प्रदायिकता को जिन्दा रखने के अभिलाषी राजनेताओं को बेखौफ बेनकाब करने लगा था। उसने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ भी खुली जंग छेड दी थी। वह कई लोगों की आंखों में चुभने लगा था। इसलिए उसका खात्मा कर दिया गया।