Thursday, June 27, 2019

असहायों की मददगार

तकलीफें और परेशानियां तो हर इंसान के हिस्से में आती हैं। हादसे और दुर्घटनाएं हंसते-खेलते इंसान के जीवन के उजाले को घने अंधेरे में बदल देती हैं। ऐसे लोग भी हैं जो समस्याओं के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर दूसरों के अंधेरों को दूर करने में लगे हैं। खुद विकलांग होने के बावजूद भी असंख्य विकलांगों का सहारा बने हुए हैं। हमारी ही दुनिया में ऐसे संवेदनशील लोग भी हैं, जिनसे गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी और बेरोजगारी नहीं देखी जाती। अशिक्षित गरीब माता-पिता के बच्चों का भटकाव और अंधकारमय भविष्य उन्हें विचलित कर देता है। प्रीति श्रीनिवासन की उम्र तब १८ साल की थी जब एक दुर्घटना ने उनको आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया। हंसी-खुशी और उमंगों के दिन अंधेरी रातों में तब्दील हो गये। कुशल तैराक प्रीति उस दिन अपनी क्लास के दोस्तों के साथ स्विqमग पूल में खूब मस्ती के मूड में थी। इसी दौरान अचानक प्रीति ने पानी में करंट-सा महसूस किया। उसने बाहर निकलने की सोची, लेकिन तभी उसने महसूस किया कि उसके शरीर का निचला हिस्सा एकदम सुन्न हो गया है। सहेलियों ने फौरन उसे पानी से बाहर निकाला। प्रीति का शरीर तो जैसे पत्थर हो चुका था। पूरी तरह से अचेतन। उन्हें पॉन्डिचेरी अस्पताल पहुंचाया गया। अस्पताल के डॉक्टरों को मामला काफी गंभीर लगा। उन्होंने आधा-अधूरा इलाज कर प्रीति को आगे के इलाज के लिए चेन्नै भेज दिया। वहां तक पहुंचने में ही चार घण्टे लग गये। सघन जांच की गयी तो पता चला कि वह गंभीर लकवे का शिकार हो चुकी है। पूरी तरह से ठीक होने की दूर-दूर तक सम्भावना नहीं थी। अगर फौरन सही इलाज मिल जाता तो उनकी ऐसी हालत न होती। अंडर १९ क्रिकेट की कैप्टन रही प्रीति ने अपनी जिन्दगी का हर पल हंसते-खेलते बिताया था। इस हादसे के बाद तो उन्हें अपना भविष्य ही अंधकारमय लगने लगा। कुछ महीने अस्पताल में बिताने के बाद वह अपने घर लौटी। लकवा उम्र भर का साथी बन चुका था। बिस्तर पर लेटे-लेटे वह आंसू बहाती रहती। व्हीलचेयर पर बैठती तो मन-मस्तिस्क में आत्महत्या करने के विचार हावी हो जाते। घर से बाहर निकलने की तो कभी इच्छा ही नहीं होती। ऐसा लगता जैसे सबकुछ लुट गया है। प्रीति के माता-पिता किसी भी तरह से उसे हताशा और निराशा के भंवर से बाहर निकलते देखना चाहते थे। उन्होंने अपने दिन और रात बेटी पर कुर्बान कर दिये। उन्होंने बार-बार उसे याद दिलाया कि खिलाडी कभी भी हार नहीं माना करते। मैदान में सतत डटे रहते हैं। हमारी इसी दुनिया में कई विकलांगों ने ऐसी-ऐसी उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, जो अच्छे भले शरीरधारी भी हासिल नहीं कर पाते। शरीर के किसी हिस्से के निष्क्रिय हो जाने से हौसलों और सपनों की मौत नहीं होती। जब तक सांस है, तब तक आस है। यह माता-पिता की सकारात्मक सीख का ही परिणाम था कि प्रीति ने लकवाग्रस्त होते हुए भी खुद को विकलांगों की सहायता तथा देखरेख में झोंक दिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि ११ जुलाई १९९८ में हुए हादसे ने प्रीति की सोच और जिन्दगी को ही बदल दिया। वह एक एनजीओ चलाती हैं जो विकलांगों को उत्साहित और प्रोत्साहित कर फिर से पूरे आत्मविश्वास के साथ जीवन की जंग लडने को प्रेरित करता है। लकवा के शिकार मरीजों को रहने की सुविधा के साथ-साथ आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती है। वे दूसरों पर आश्रित न रहें इसके लिए उन्हें अपने पैरों पर खडे होने के लायक बनाया जाता है। प्रीति के कारण सैकडों विकलांगों की खोयी हुई खुशियां वापस लौट आयी हैं। उनके एनजीओ के द्वारा दिव्यांगों की प्रतिभा को सामने लाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। उन्हें रेडियो जॉकी, वाइस डबिंग आर्टिस्ट, टेली मार्केटिंग आदि की ट्रेनिंग भी दी जाती है, जिनका रुझान किसी अन्य क्षेत्र के प्रति होता है उन्हें उसी के बारे में शिक्षित और दीक्षित किया जाता है।
अपना भविष्य संवारने के लिए भरपूर मेहनत करने वाले तो ढेरों हैं, लेकिन दूसरों की जिन्दगी में परिवर्तन और खुशहाली लाने वाले गिने-चुने ही लोग हैं। उन्हीं में से एक हैं माही भजनी। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रहती हैं। गरीब बच्चों के कल्याण के लिए वर्षों से काम कर रही हैं। माही भजनी ने अपने कुछ साथियों के सहयोग से अनुनन एजुकेशन एवं वेलफेयर सोसाइटी बनाई है, जिसके तहत भोपाल और आसपास के इलाकों में सेंटर खोले गये हैं, जहां पर गरीब बेसहारा बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इनमें से कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो कभी भीख मांगा करते थे। बात करने में सकुचाते और घबराते थे और आज फर्राटे के साथ अंग्रेजी बोलते हैं। सैकडों बच्चों का जीवन संवार चुकी माही को शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां झेलनी पडीं। झोपडपट्टी में रहने वाले बच्चों और उनके परिवारों को शिक्षा के लिए तैयार करना आसान नहीं था। यह बच्चे कचरा बीनते थे। चोरी-चकारी भी करते थे। इन्हीं बच्चों की कमायी से कई घरों में का चूल्हा जलता था। अशिक्षित मां-बाप कतई नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे कमाना छोड दें। यह उनकी मजबूरी भी थी। कई शराबी पिता तो अपने बच्चों को अपराध की दुनिया में धकेलने के मंसूबे बना चुके थे। बच्चों को भी आवारागर्दी करने की लत लग चुकी थी। ऐसे में उन्हें पढाई-लिखाई से कोई लगाव नहीं था। वे भी अपने माता-पिता की तरह अशिक्षा और गरीबी के दलदल में ताउम्र फंसे रह जाते। यदि माही येन-केन प्रकारेण उनके मां-बाप को उनके बच्चों को पढाने-लिखाने के लिए तैयार करने में सफल नहीं होती। माही को वो शुरुआती दिन भी भुलाये नहीं भूलते जब उनके पडोसी और जान पहचान वाले उनपर शब्दबाणों की वर्षा करते रहते थे कि तुम भी कैसी बेवकूफ हो जिसे यह भी समझ में नहीं आता कि भिखारी हमेशा भिखारी रहते हैं। झुग्गी-झोपडी में जानवरों की तरह रहने वाले निकम्मे और अपराधी किस्म के माता-पिता के बच्चे होश संभालने के बाद सिर्फ और सिर्फ चोर-लुटेरे, जेबकतरे, हत्यारे और बलात्कारी ही बनते हैं। यही इनका नसीब होता है। भगवान के लिखे को कोई भी नहीं बदल सकता। अभी भी वक्त है अपना इरादा बदल डालो। अपना कीमती वक्त इन पर  बर्बाद मत करो। अपने बाल-बच्चों के भविष्य की चिन्ता करो। अपने इरादों की पक्की माही ने अंतत: असंभव को संभव कर दिखाया है। कल तक ताने मारने वाले आज उन्हें सराहने लगे हैं। तारीफें करते नहीं थकते। दरअसल इस सफलता का श्रेय तो उन बच्चों को भी जाता है, जिन्हें नाली का कीडा कहकर दुत्कारा जाता था, लेकिन उन्होंने दिखा दिया है कि अवसर और साथ मिलने पर वे भी आसमान को छूने का दम रखते हैं। जिन बच्चों के कभी भी नहीं सुधरने के दावे किये जाते थे, उन्हीं बच्चों के परीक्षा परिणाम और अन्य गतिविधियां वाकई स्तब्धकारी हैं। इन बच्चों ने पांचवी की परीक्षा में ९६ से ९८ प्रतिशत अंक हासिल किये हैं। अभी तक पांच सौ से ज्यादा गरीब बच्चों को स्कूल तक लाने में सफल रहीं माही भजनी की तमन्ना है कि इस देश का कोई भी बच्चा पढाई से वंचित न रहे। उन्हें साक्षर बनाना हम सबका दायित्व है।

Thursday, June 20, 2019

कौन किसके साथ?

मालगाडी के डिब्बे पटरी से उतर गये थे। एक न्यूज चैनल के पत्रकार अमित शर्मा इस घटना को कवरेज कर रहे थे। तभी जीआरपी यानी रेलवे पुलिस के कुछ कर्मी वहां पहुंचे और उन्हें लात-घूसों से पीटने लगे। जब उनके साथी पत्रकार ने खाकी वर्दी वाले गुंडों को रोका तो उन पर भी डंडों की बरसात कर दी गयी। यह डंडेबाज नशे में धुत थे। उन्होंने पत्रकार का मोबाइल छीनकर तोड दिया। जेब में रखे लगभग तीन हजार रुपये और घडी भी छीन ली। यही नहीं उसके मुंह में पेशाब कर हवालात में डाल दिया। बर्बरता से की गई इस पिटायी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पूरे देश में खाकी की गुंडागर्दी की चर्चाएं होने लगीं। अपने यहां की पुलिस में कुछ अपराधी भी घुसपैठ कर चुके हैं, जिनकी वजह से बार-बार खाकी को कटघरे में खडा होना पडता है। कई पुलिस वालों के संगीन अपराधों में लिप्त होने के अनेकों उदाहरण हैं। इसी वजह से अपराध बढ रहे हैं और वर्दी लाचार नजर आती है। यह हकीकत भी हर सजग भारतीय को परेशान किये है कि पुलिस के अधिकांश उच्च अधिकारी सत्ताधीशों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गये हैं। राजनेता और शासक उन्हें जैसे नचाते हैं, वे वैसे ही नाचते और तांडव मचाते हैं। उत्तरप्रदेश के शामली में हुए इस कांड से ऐन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में एक ट्वीट पर पत्रकार प्रशांत को प्रदेश की पुलिस ने जेल भेजने में जैसी फुर्ती दिखायी वैसी आम जनता की सुरक्षा के मामले में बहुत कम दिखती है। पत्रकार कनौजिया ने कोई डाका, बलात्कार या लूटमारी नहीं की थी, उन्होंने तो बस किसी महिला के उस वीडियो को ट्वीट कर दिया था, जिसमें महिला ने दावा किया था कि उसने योगी को शादी का प्रस्ताव भेजा है। इस तरह के ट्वीट सोशल मीडिया पर धडल्ले से वायरल होते रहते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर शरीफों की पगडी उछालने की मनमानी भी चलती रहती है। सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बरसात कर कई संदिग्ध प्राणी अब पत्रकार भी कहलाने लगे हैं। पत्रकार प्रशांत के द्वारा किये गए ट्वीट का जुडाव यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री से नहीं होता तो इसकी कहीं चर्चा भी नहीं होती। कहा गया कि इससे उत्तरप्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश की गई है। सारी दुनिया जानती है कि मुख्यमंत्री योगी  आदित्यनाथ ब्रम्हचारी हैं। संन्यासी हैं। ऐसे महापुरुष का किसी नारी से क्या लेना-देना। किसी प्रचार की भूखी अज्ञानी महिला ने अनाप-शनाप बकवास की, जिसे उन लोगों ने खबर बना दिया, जिन्हें लोकतंत्र के चौथे खंभे का सजग प्रहरी माना जाता है। सच्चे पत्रकार तो पहले पता लगाते हैं कि सच क्या है। ऐसे विवेकहीन, जल्दबाजी करने वाले पत्रकारों के कारण पत्रकारिता भी बदनाम हो रही है। कनौजिया की गिरफ्तारी के बाद न्यूज चैनलों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असली और नकली पत्रकारों को लेकर युद्ध छिड गया। विभिन्न अखबारों और न्यूज चैनलों के संपादक, बुद्धिजीवी आदि-आदि  आपस में ही उलझने लगे। सभी विद्वानों ने काफी माथापच्ची की। ऐसी माथापच्ची तब भी हुई थी जब चुनाव के दौरान प्रियंका नाम की युवती ने पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक मीम सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिसे उनकी फोटो के साथ छेडछाड कर बनाया गया था। प्रियंका को प.बंगाल की पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डालने की अभूतपूर्व फुर्ती दिखायी थी। मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया था। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद प्रियंका को जेल से रिहा कर दिया गया था। इस गिरफ्तारी ने सत्ता और राजनीति का असली चेहरा भी दिखाया था। वोटों की खातिर अपने विरोधियों का अपमान करने का कोई भी मौका नहीं छोडने वाली ममता, जो शेरनी कहलाती हैं वह एक मीम यानी कार्टून से बौखला उठीं और अपनी पुलिस को एक महिला को ही गिरफ्तार करने का आदेश दे डाला। जैसे वह महिला कोई खतरनाक आतंकवादी हो। प्रदेश को उससे बहुत बडा खतरा हो।
उत्तरप्रदेश के शामली में पत्रकार की निर्वस्त्र कर की पिटायी और मुंह में पेशाब करने की शर्मनाक घटना के बाद भी पत्रकारों की बिरादरी में कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ। जनता में भी चुप्पी बनी रही। सभी ने यह माना कि ऐसा तो होता ही रहता है। इस बार भी हुआ तो हुआ। देश का हर सजग नागरिक यह भी जान चुका है कि निर्भीक और ईमानदार पत्रकार ऐसी तमाम गुंडागर्दियों के शिकार होने को अभिशप्त हैं। यह भी सच्चाई है कि जो पत्रकार सत्ता और व्यवस्था को साध कर चलते हैं उन पर कभी भी इस तरह कोई खतरा नहीं मंडराता। बडे अखबारों और नामी न्यूज चैनलों के पत्रकार ऐसी पुलिसिया बदमाशी के कभी शिकार होते नहीं देखे जाते। बिजली तो छोटे पत्रकारों पर गिरायी जाती है और उनका साथ देने के लिए उनकी बिरादरी के लोग भी सामने आने में झिझकते हैं। दरअसल पत्रकारों में विभाजन हो चुका है। एक तरफ तथाकथित बडे पत्रकार, संपादक हैं, जिनके अपने गिरोह बने हुए हैं। इनका खबरों से नाता कम रहता है। यह तो हर वक्त सत्ता से करीबियां बनाने में लगे रहते हैं। राजनेताओं की चाटूकारिता और दलाली करते-करते इन्होंने वो सभी सुख-सुविधाएं हासिल कर ली हैं, जो मेहनतकश करोडपतियों को भी मुश्किल से हासिल होती हैं। देश के हर नगर, महानगर में ऐसे पत्रकारों, संपादकों की दुकानदारी चल रही है। यह लोग अभ्यस्त घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारी मंत्रियों, सांसदों के स्वागत के लिए हवाई अड्डों पर सबसे पहले पहुंचते हैं। बडी आन-बान और शान के साथ उनके बंगलों पर गुलदस्ते लेकर जाते हैं, जिनमें खास तौर पर एक पर्ची लगी होती है, जिस पर लिखा होता है, "आप घबरायें नहीं, हम आपके साथ हैं।" खाकी भी इन बिकाऊ पत्रकारों को सलाम करती है। अधिकांश राजनेता और शासक कतई नहीं चाहते कि पत्रकार सच के साथी बन उनकी आलोचना करें। जो पत्रकार उनके अनुकूल नहीं चलते, समझौते नहीं करते उन्हें शासन और विकास विरोधी बताकर तरह-तरह से अपमानित और प्रताडित करने का चलन अब किसी से छिपा नहीं...।

Thursday, June 13, 2019

क्या कहती हैं ये खबरें?

नेताओं को हिन्दुस्तान की अधिकांश जनता बहुत मान-सम्मान देती है। ब‹डी उम्मीदों और गर्व के साथ उन्हें विधायक और सांसद बनाती है, लेकिन जब यही जनप्रतिनिधि इंसानियत को अपमानित और शर्मिंदा करने वाली हरकतें करते हैं तो जनता की निगाह में उनकी कीमत दो कौडी की भी नहीं रह जाती। ऐसा तो हो नहीं सकता कि वे इस सच से वाकिफ न हों। कुछ नेता आखिर बार-बार ऐसी हरकतें क्यों करते हैं, जिनकी वजह से उन्हें लोगों की निगाहों से गिरना पडता है। देशवासी तो यह मानकर चलते हैं कि उनके नेता, विधायक, मंत्री चरित्रवान हैं। उनका आचरण पारदर्शी है, लेकिन सच तो यह है कि देश के कुछ नेता तो हद दर्जे के गिरे हुए इन्सान हैं। मतदाता उन्हें अपना कीमती वोट देकर शर्मिंदा हैं। वे अक्सर ऐसी-ऐसी घटिया हरकतें करते रहते हैं, जिनसे साधू नहीं, शैतान, राम नहीं, रावण बनने की प्रेरणा मिलती है। चरित्रहीनता तो गुंडे बदमाशों की निशानी है। उनके इसी दुर्गुण के चलते लोग उन्हें आसानी से पहचान लेते है।
गुजरात के एक विधायक ने एक महिला को लात-घूसों से पीटने की दरिंदगी दिखाकर देशवासियों के खून को खौला दिया। अहमदाबाद शहर में नरोदा से भाजपा विधायक बलराम थवानी में यह हैवानियत तब जागी जब वह महिला उनके पास पानी की व्यवस्था करने की गुहार लगाने के लिए आई थी। विधायक महोदय महिला को देखते ही गुस्से से आग बबूला हो गये। एक महिला का इतना साहस कि उनके घर में आकर उनके दरबारियों के सामने पानी की मांग करे। जहां पर अच्छे-अच्छे उनके सामने खडे होने की हिम्मत नहीं करते, बस हाथ बांधे ख‹डे रहते हैं वहां पर एक अदनी-सी नारी ऐसे मुंह खोलने का साहस दिखाए जैसे नेतागिरी करने की ठान कर आई हो! यह तो सरासर उनकी विधायकी का अपमान है। खुद को सर्वशक्तिमान समझने वाले अहंकारी विधायक ने कल्पना ही नहीं की थी कि महिला को पीटना उन्हें बहुत भारी पड जाएगा। लोग उनपर थू...थू करने लगेंगे। उन्होंने अपने बचाव में तरह-तरह की बातें कीं और सफाई दी। महिला से हाथ जोड कर माफी भी मांगी, लेकिन उनका अफसोस जताना और गिडगिडाना असरहीन रहा। वो नेता ही क्या जो आसानी से अपने सभी हथियार डाल दे। फिर भारतीय नेता तो जन्मजात कलाकार हैं।
विधायक ने अपनी दाल ना गलती देख शातिर खलनायकों वाला वही पुराना तीर चलाते हुए महिला से राखी बंधवा ली। यानी उसे अपनी बहन मान लिया। भीड का गुस्सा भी शांत हो गया। विधायक के इस नुस्खे का गुंडे-बदमाश बखूबी इस्तेमाल करते हैं। शरीफ दिखने वाले उम्रदराज शख्स भी मौका तलाशते हुए किसी राह चलती युवती को यह सोचकर अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं कि वह चालू किस्म की होगी। अनुमान हर बार तो सही नहीं होता। सजग युवती जब उन कामुकों पर शेरनी की तरह झपटती है और धुनाई के लिए चप्पल अपने हाथ में ले लेती है तो सारी की सारी कामुकता धरी रह जाती है। शालीनता और बुजुर्गियत का नकाब ओढ मिमियाते हुए वे यह कहने लगते हैं कि तुम तो मेरी बेटी जैसी हो। बहन के समान हो। हाथ जोडकर माफी मांगता हूं। मुझसे अनजाने में बहुत बडी भूल हो गई। अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी...। यह हमारी ही दुनिया का काला सच है कि जहां पर कुछ बहन-बेटियों की अस्मत उनके सगे भाई और पिता तक लूट लेते हैं। घर की इज्जत का तमाशा न बने इसलिए किसी शोर और विरोध का स्वर नहीं उभरता। जहां असली रिश्ते अपनी मौत मर रहे हों वहां नकली रिश्तों की क्या औकात और कैसा मोल!
साक्षी महाराज का नाम तो मेरे पाठक मित्रों ने अवश्य सुना होगा। उन्नाव से भाजपा के सांसद हैं। भगवाधारी हैं। चुनाव में विजयी होने के बाद यह भगवाधारी बलात्कार के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से जेल में जाकर ऐसे मिले जैसे वर्षों से बिछडे भाई से मिले हों। उनका यह मिलन जब 'तूफानी खबर' बना तो उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि विधायक ने चुनाव में उनकी मदद की थी इसलिए वे उनका शुक्रिया अदा करने गये थे।
देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस ने एक ऐसे नाबालिग को धर दबोचा जो अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बनना चाहता था। उसकी चाहत थी कि अपराध जगत में उसका ऐसा डंका बजे कि जहां से वह गुजरे लोग खौफजदा होकर सिर झुका लें। इसके लिए उसने बडा ही अनोखा रास्ता चुना। वह लूटपाट, हत्या, मारपीट को अंजाम देते समय अपने दोस्तों से वीडियो बनवाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर देता था। कुछ ही महीनों में पचासों अपराधों को अंजाम देने वाले इस नाबालिग ने एक महिला से रंगदारी मांगी और नहीं देने पर उसके बेटों के सामने ही उसकी हत्या कर दी। लोगों में दहशत पैदा करने के लिए जहां-तहां पिस्तौल से फायरिंग करने में उसे बडा मज़ा आता था। दिल्ली का डॉन बनने के लिए वह कोई भी अपराध करने से नहीं घबराता था। अपराध कथाओं वाले टीवी सीरियल उसे काफी भाते और लुभाते हैं। विवादास्पद नेताओं के बारे में भी जानने और पढने को उत्सुक रहता है यह अनोखा नृशंस अपराधी...। यह अपराधी यदि पुलिस की पकड में न आता तो उसका कहर पता नहीं कितनी लूटपाट की वारदातें कर गुजरता और जानें ले लेता। पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो उसके पास से पिस्तौल और कारतूस बरामद किए गए।

Thursday, June 6, 2019

रोष में रघु, होश में रघु

चित्र - १ : नेताजी दूसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी हुए। इस बार जीत का हार पहनने के लिए उन्हें ऐसे-ऐसे पापड बेलने पडे, जिसकी उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी। उन्हें धूल चटाने के लिए सभी विरोधी दल एकजुट हो गये थे। उनका एक ही मकसद था कि नेताजी किसी भी हालत में सांसद न बन पाएं, लेकिन पिछले चुनाव की तरह इस बार भी धनबल ने अंतत: अपना चमत्कार दिखा ही दिया। उनकी हजारों कार्यकर्ताओं की भीड ने भी कम दम नहीं लगाया। नेताजी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को उनकी हैसियत के अनुसार थैलियां थमाने में भरपूर दरियादिली दिखायी। इन कार्यकर्ताओं में विधायक और पार्षद भी शामिल थे, जिन्हें आगामी महानगर पालिका और विधानसभा के चुनाव में टिकट देने का आश्वासन देकर अपने खूंटे से ऐसे बांधा गया था, जैसे बैल और बकरी के सामने चारा डालकर उन्हें इधर-उधर न ताकने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। नेताजी की चुनावी जीत का जश्न चार दिन पहले मनाया जा चुका था। आज उनके केंद्रीय मंत्री बनने पर गुलदस्तों और मिठाई के डिब्बों के साथ कार्यकर्ताओं और तरह-तरह के लोगों का हुजूम कोठी को खचाखच कर चुका था। कुछ अति उत्साही कार्यकर्ता कई एकडों में फैली कोठी की बाउंड्रीवॉल पर चढकर नेताजी के नाम का जयकारा लगा रहे थे। नेताजी के सुरक्षाकर्मी भीड को संयमित होने का पाठ पढा रहे थे, लेकिन जीत का जोश उन्हें बेकाबू और बेचैन किये था। भीड को बार-बार यह भी बताया जा रहा था कि नेता जी आज सुबह ही मंत्री पद की शपथ लेकर दिल्ली से लौटे हैं। उन्हें तैयार होकर आने में कम अज़ कम दो घण्टे लग सकते हैं। मस्तायी भीड के लिए दो घण्टे दो मिनट समान थे। उसे इन्तजार करने और नारे लगाने की जन्मजात आदत थी। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, भीड को संभालना मुश्किल होता चला जा रहा था। शहर के जाने-माने-उद्योगपति, व्यापारी, ठेकेदार और अखबारों और न्यूज चैनलों के वो संपादक और मालिक, जिन्होंने नेता जी के आरती गान की सभी पराकाष्ठाओं को लांघ कर पत्रकारिता और चापलूसी के अंतर की निर्ममता से हत्या कर दी थी, गुलदस्तों और हारों के साथ पहुंच चुके थे। कुछ तो पांच सौ और दो हजार के नोटों के हार भी लाये थे। उन्हें नेताजी के निजी कमरे में शोभायमान कर दिया गया था। उनके लिए किशमिश, काजू-बादाम के साथ-साथ तरह-तरह के पेय पदार्थों की भी व्यवस्था थी।
नेताजी की एक झलक पाने को लालायित भीड का साम्राज्य कोठी के सामने की मुख्य सडक पर भी अपना कब्जा जमाने लगा था। इस भीड में पसीने से तरबतर रघु भी खडा था। उसके हाथ में एक बडा गुलदस्ता था। नेताजी के जीतने की खुशी में मनाये गये जश्न की भीड में भी रघु शामिल हुआ था, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी उसका नेताजी के निकट जाना संभव नहीं हो पाया था। रघु रिक्शा वाला उस दिन तो खुशी से फूला नहीं समाया था, जब उसकी जर्जर झोपडी में नेताजी के चरण पडे थे। उनके साथ क्षेत्र के पार्षद तथा कई और पार्टी कार्यकर्ता थे, जिन्हें रघु अच्छी तरह से पहचानता था। पार्षद ने रघु की तारीफ करते हुए नेताजी को बताया था कि यह बंदा बडे काम का है। झोपडपट्टी के सभी लोग इसी के इशारे पर चलते हैं। यह जिसे वोट देने को कहेगा उसी को उनके वोट मिलेंगे। नेताजी के चेहरे पर चमक आ गई थी। उन्होंने झट से रघु से हाथ मिलाया था। पीठ भी थपथपायी थी। उनके साथ आये एक कार्यकर्ता ने चुपके से पांच-पांच सौ के दस नोट उसकी तरफ बढाये थे, जिन्हें रघु ने यह कहते हुए लेने से इन्कार कर दिया था कि मैंने कभी भी अपना वोट नहीं बेचा। वोट बेचने वालों से मैं नफरत करता हूं। नेताजी उसका चेहरा देखते रह गये थे। उन्होंने जाते-जाते कहा था कि तुम्हारे जैसे ईमानदार वोटरों की बदौलत ही मैंने पिछला चुनाव जीता था। इस बार भी कोई माई का लाल मुझे हरा नहीं सकता। पिछली बार की तरह इस बार भी मेरा मंत्री बनना तय है। चुनाव का परिणाम आने के पश्चात तुम मुझसे जरूर मिलना। तुम सभी झोपडपट्टी के निवासियों के लिए शीघ्र ही पक्के घरों की व्यवस्था करवा दूंगा।
गर्मी की तपन बढती जा रही थी। रघु का दम घुटने लगा था। उसके कपडे पसीने से गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे। एकाएक रघु पर उसी की झोपडपट्टी में रहने वाले विद्रोही नामक पत्रकार की नजर पडी तो उसने रघु पर सवाल दागा कि क्या तुम भी नेताजी को उनका वादा याद दिलाने आये हो? रघु हैरान होकर पत्रकार को देखता रह गया। फिर पत्रकार ने बताया कि वोट हथियाने के लिए मतदाताओं से तरह-तरह के वादे करना और मनमोहक प्रलोभनों के जाल फेंकना तो नेताजी का पुराना पेशा है। वोटरों को बेवकूफ बनाने की इसी कला की बदौलत ही तो आज वे सत्ता की बुलंदियों पर हैं। इस भीड में तुम जैसे हजारों लोग शामिल हैं जो नेताजी से मिलने की आस में पहुंचे हैं। चुनाव जीतने के बाद नेताजी को अपने खास लोगों के काम करवाने और उन्हें मालामाल करने से कभी फुर्सत नहीं मिलती। ऐसे में वे तुम जैसे आम लोगों से क्या खाक मिलेंगे! रघु पत्रकार का चेहरा देख रहा था और पत्रकार खिलखिला रहा था। रघु ने विद्रोही की निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के कई किस्से सुने थे। यह भी सुना था कि शहर का यह पत्रकार दूसरे पत्रकारों की तरह नेताओं और मंत्रियों के दरबार में माथा टेकने की बजाय उनकी पोल खोलने के अभियान में लगा रहता है। उनकी बातचीत चल ही रही थी कि वहां पर पुलिस वाले भीड को खदेडने लगे। नेताजी अपने खास लोगों से मेल-मुलाकात करने के बाद सुरक्षाकर्मियों के घेरे में कोठी से निकले और अपनी चमचमाती कार में बैठकर फुर्र हो गये। रघु को बडा गुस्सा आया। उसने गुलदस्ते को तोडा-मरोडा और वहीं सडक पर फेंक दिया।  यह देश के नब्बे प्रतिशत से अधिक नगरों, महानगरों और वहां के सांसदों की कडवी हकीकत है इसलिए किसी एक शहर और नेता का नाम लिखना बेमानी है।
चित्र - २ :  कहते हैं हिन्दुस्तान चमत्कारों का देश है। यकीनन यह चमत्कार ही है कि ओडिसा के बालासोर लोकसभा क्षेत्र से एक एकदम आम शख्स ने लगभग एक भी पैसा खर्च किए बिना चुनाव लडा और करोडपति को मात दे दी। इस आम... महान शख्स का नाम है प्रतापचंद्र सारंगी। पैदल या साइकिल पर चलने वाले ६४ वर्षीय सारंगी संन्यासियों की तरह जीवन जीते हैं। ओडिशा के मोदी कहलाते हैं। पिछले पच्चीस वर्षों से भुवनेश्वर से एक छोटा-सा साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित करते चले आ रहे रघु राय तो सारंगी के दिवाने हैं। उनकी निगाहें हमेशा सारंगी का पीछा करती रहती हैं। अच्छा करने पर तारीफ तो गलत करने पर उनकी खिंचाई करने से कभी नहीं चूकते। सारंगी की बेमिसाल सादगी को प्रणाम करते हुए वे सवाल करते हैं कि आप ही बतायें कि अपने देश में कितने ऐसे नेता, विधायक, सांसद, मंत्री हैं, जो आपको शहर और गांवों की सडकों पर पैदल चलते नजर आते हों। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर आम आदमी की तरह बस और रेल का इंतजार करते हों और किसी झोपडीनुमा होटल में बडे मजे से खाना खाने में कतई न सकुचाते हों। रघु का मानना है कि यदि देश के सभी नेता सारंगी जैसे हों तो इस देश की तस्वीर को बदलने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा। सारंगी दो बार विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन आज भी मिट्टी और बांस के घर में रहते हैं, जिसके दरवाजे चौबीस घण्टे जनता जनार्दन के लिए खुले रहते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में कई स्कूल और अस्पताल बनवा चुके सारंगी के लिए राजनीति सिर्फ और सिर्फ जनसेवा का माध्यम है। लोकसभा चुनाव जीतकर जब वे संसद भवन पहुंचे तो हर कोई उनसे मिलने को उत्सुक था। यह उनके सच्चे जननेता होने का पुरस्कार ही है कि पहली बार सांसद बनने के बावजूद उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गयी। सबसे ज्यादा तालियां भी उनके द्वारा मंत्रीपद की शपथ लेने पर बजीं।