Thursday, January 26, 2017

तार-तार नकाब

सन २०१६ के रविवार की शाम थी। जिन लोगों को समाचार चैनल देखने की लत है, वे अपनी-अपनी पसंद के चैनल पर नजरें गढाये थे। एक चैनल पर स्वयंभू देवी राधे मां की दास्तान दोहरायी जा रही थी। राधे मां का कसीनो में डांस करता हुआ वीडियो वायरल हुआ था। जिस तरह से आसाराम, इच्छाधारी, नित्यानंद आदि तथाकथित संत व्याभिचार में लिप्त होने पर सुर्खियों में आए, वैसे ही राधे मां ने पुरुषों से अवैध सम्बंध रखने के कीर्तिमान रचकर कुख्याति पायी। पाखंडी बाबा ओमजी अपनी आराध्य राधे मां के गुणगान में जमीन-आसमान एक कर रहे थे तो एक अन्य तथाकथित साध्वी दीपा शर्मा राधे मां के घृणित काले इतिहास के पन्ने-दर-पन्ने को खोलते हुए उसके कुटिल आचरण का बखान कर रही थी। इस तेजतर्रार साध्वी का साथ दे रही थी एक नारी ज्योतिषचार्य, जिसका नाम वाई राखी बताया जा रहा था। जैसे-जैसे मुखौटेधारी राधे मां के अतीत के पन्ने खुल रहे थे, बिकाऊ ओमजी महाराज का ब्लड प्रेशर बढता चला जा रहा था। घाट-घाट का पानी पी चुका ओम शायद दीपा शर्मा के अतीत से वाकिफ था। इसलिए उसने अपने फूहड अंदाज में उसकी निजी जिन्दगी के दाग-धब्बों और फिसलनों का विवरण पेश करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते वातावरण में तेजाबी गर्मी आ गई। दोनों तरफ से आपत्तिजनक शब्दों की बौछार का अंतहीन सिलसिला-सा चल पडा। चैनल पर लगातार बीप बजती रही, लेकिन अनोखे साधु और साध्वियों के बीच की गाली-गलोज भरी हमलेबाजी नहीं थमी। एक-दूसरे के चरित्र का चीरहरण होता रहा। दो नारियों के बीच फंसे ओम को अपनी पूज्य राधे मां पर होने वाला हर कटाक्ष शूल की तरह चुभ रहा था। उसे लग रहा था कि राधे मां के व्याभिचार और छल-कपट के किस्सों के पर्दाफाश के बहाने उस पर व्यंग्यबाण छोडे जा रहे हैं। उसकी मर्दानगी को चुनौती दी जा रही है। ऐसे में उसका खून खौल उठा और उसने हर मर्यादा को ताक पर रखते हुए दीपा शर्मा को चरित्रहीन घोषित करते हुए जब यह कहा कि, 'मेरी नजरों में तुम जैसी औरतों की औकात दो टक्के से ज्यादा नहीं। मेरी राधे मां तो देवी हैं। उनके लाखों अनुयायी हैं जो उनके लिए अपनी जान तक देने को तत्पर रहते हैं। किसी को भी उनकी बुराई करने की जुर्रत करने का कोई हक नहीं है।' ओम के व्यक्तिगत प्रहार, बोलने और ललकारने के अंदाज ने दीपा के तन-बदन को क्रोध की अग्नि के हवाले कर दिया। उसने खुद पर नियंत्रण खो दिया और फटाक से ओम तक जा पहुंची और उसके गाल पर करारा तमाचा जड दिया। ओम भौंचक्क रह गया। उसके लिये यह व्यवहार, यह पुरस्कार अकल्पनीय था। जैसे-तैसे उसने खुद को संभाला और अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए घायल सांड की तरह दीपा से भिड गया। गर्मागर्म बहस धक्का-मुक्की, घूसों और थप्पडबाजी में तब्दील हो गई। साधु और साध्वी के कुत्ते और बिल्ली की तरह भिडने से करोडों मनोरंजन प्रेमियों की रविवार की छुट्टी साकार हो गई। संवेदनशील जन माथा पीटते रह गए। वाकई यह हैरतअंगेज घटना थी।
विदेशी टीवी चैनलों पर तो ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं। वहां पर लाइव शो के दौरान कभी-कभी खुद महिला एंकर ही यकायक बेलिबास होकर दर्शकों को मनोरंजित करने लगती हैं। भारतवासियों के लिए यह नजारा अभूतपूर्व था। मारपीट और अंधाधुंध गालीगलोज के इस लाइव शो ने पूरी दुनिया को हिन्दुस्तान के बाजारू साधु-संतों का असली चेहरा दिखा दिया! 'राधे मां की चौकी के पांच रहस्य' का यह ड्रामा कई दिनों तक विभिन्न न्यूज चैनलों पर अनवरत चलता रहा। ओम की तो जैसे निकल पडी। उसका बाजारभाव आसमान पर जा पहुंचा। पुरस्कार स्वरुप उसे मनोरंजन की आ‹ड में फूहडता और अश्लीलता परोसने वाले 'बिग बॉस' में भाग लेने का सुनहरा अवसर भी मिल गया। बद और बदनाम ओम की तो बल्ले-बल्ले हो गयी। वैसे भी 'बिग बॉस' में ऐसे चेहरों को प्राथमिकता दी जाती है जो विवादास्पद होने के साथ-साथ कुख्यात भी हों। बिग बॉस के आयोजकों ने 'थप्पड कांड' से प्रभावित होकर ही ओम को अपने शो में मान-सम्मान के साथ जगह दी। वे जानते थे कि ऐसे कुख्यात प्रतिभागियों की बदौलत ही लोगों में शो के प्रति आकर्षण बढता है और टीआरपी में जबर्दस्त उछाल आता है। स्वामी ओम ने भी बिग बॉस के आयोजकों को निराश नहीं किया। उसने शो में ऐसी-ऐसी ओछी हरकतें कीं, कि सजग दर्शक बिग बॉस के आयोजकों को कोसते नजर आए। देशभर में अपने ४५ लाख अनुयायी होने का दावा करने वाले इस शख्स ने शो में शामिल महिलाओं पर भद्दी-भद्दी टिप्पणियां करते हुए जी भरकर अभद्रता की सभी सीमाएं लांघीं। लोपमुद्रा नामक प्रतिभागी युवती ने स्वामी पर अश्लील  इशारेबाजी करने, बदन को गलत इरादे से छूने और बार-बार घूरने का आरोप लगाया। बदचलन ओम पर प्रतिभागियों के निजी सामान चुराने के आरोप भी लगे। शो के दौरान ही मीडिया में इस खबर ने धमाका मचाया कि यह स्वामी तो हद दर्जे का लुच्चा और टुच्चा इंसान है। यह दिल्ली की लोधी कालोनी स्थित अपने छोटे भाई प्रमोद की दुकान का ताला तोडकर एक दर्जन साइकल, महंगे स्पेयर पार्टस और कागजात चुराने के आरोप में गिरफ्तार भी हो चुका है। गैरकानूनी हथियार रखने का भी उस पर मुकदमा चल रहा है। डिफेंस कालोनी पुलिस ने उसके यहां से हथियार, गोलाबारूद और अश्लील तस्वीरें बरामद की थीं। इन तस्वीरों के सहारे वह महिलाओं को ब्लैकमेल करता था। न्यूज चैनलों के दम पर उभरे ओम की बिग बॉस में बार-बार नाक कटती रही और जगहंसाई होती रही, लेकिन फिर भी उसकी छाती चौडी होती गई। बेहूदा हरकतों और महिलाओं पर छींटाकशी करने के कारण आखिरकार उसे शो से खदेड दिया गया। बहुत ही बेआबरू होकर बिग बॉस से बाहर आने के बाद भी खबरिया चैनलों ने जिस तरह से उसे हाथों-हाथ लिया उससे प्रबुद्ध लोग हतप्रभ रह गए। उसका साक्षात्कार लेने के लिए कई चैनलों के संपादकों में होड मच गयी। उसे चैनलों के स्टुडियो में ऐसे निमंत्रित किया जाने लगा जैसे कि वह बहुत बडा ज्ञानी-ध्यानी हो और उसमें हर समस्या के निराकरण करने की क्षमता हो।
३१ दिसंबर की रात बंगलुरु में महिलाओं के साथ हुई अभद्रता पर न्यूज चैनलों ने अपने विचार रखने के लिए देश के जिन विद्धानों को आमंत्रित किया उसमें ओम का भी समावेश था। ऐसा लग रहा था जैसे चैनलवालों को नववर्ष २०१७ के लिए एक बेमिसाल चेहरा मिल गया है। देश में इससे बडा 'एक्सपर्ट' और कोई हो ही नहीं सकता। खुद को 'हिन्द बाबा' के नाम से प्रचारित करने वाला ओम यहां पर भी अपनी कमीनगी से बाज नहीं आया। उसके द्वारा दर्शकों में बैठी एक महिला के लिए बेहद असंसदीय शब्दों को इस्तेमाल किये जाने के कारण भीड और मेहमान भडक उठे। मेरी मुर्गी की एक टांग की कुनीति पर चलने वाले इस कपटी बाबा ने आखिर तक अपनी गलती स्वीकार नहीं की। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह न्यूज चैनल वाले पगला गए हैं जो ऐसे बेहूदा छिछोरे नकली साधु को स्टुडियों में बुलाकर गर्वित होते हैं, जिसे महिलाओं के साथ बेअदबी से पेश आने के कारण थप्पड और जूते खाने पडे और बिगबॉस से बाहर कर दिया गया। लगता है चैनलवालों को अपनी हंसी उडवाने में बडा मज़ा आता है...।

Thursday, January 19, 2017

उनकी शिनाख्त होनी ही चाहिए

पहले जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तैनात २९वीं बटालियन के जवान तेज बहादुर यादव ने सोशल मीडिया पर अपनी पीडा उजागर करते हुए कहा कि जवानों को खराब खाना दिया जा रहा है। जली हुई रोटियां और पानी में डूबी नाममात्र की दाल खिलाकर उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड किया जा रहा है। जब अधिकारियों से इसकी शिकायत की जाती है तो वे अनसुना कर देते हैं। वे इस सच को भूल जाते हैं कि हम जवानों को कैसी कडकती ठंड में विपरीत हालातों में अपनी ड्यूटी निभानी पडती है। यहां हमारी फरियाद को सुनने वाला कोई नहीं है। उसके बाद केंद्रीय रिजर्व पुलिस के एक जवान ने वेतन एवं अन्य तकलीफों पर अपनी पीडा व्यक्त की। उसके बाद तो जैसे एक सिलसिला चल पडा। देश के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर देने वाली वर्दी के असंतोष ने सजग देशवासियों को चिन्तन-मनन करने को विवश कर दिया। आर्मी के लांस नायक वाई.पी. सिंह का जो वीडियो सामने आया, उसमें आरोप लगाया गया कि उनका सीनियर अफसर उनसे गालीगलौज करने के साथ-साथ जूते भी साफ करवाता है। आदेश न मानने पर नौकरी से निकाल देने की धमकी देता है। बीएसएफ में खराब खाना देने की शिकायत करने वाले जवान तेज बहादुर की पत्नी ने आरोप लगाया कि उनके पति पर शिकायत वापस लेने का दबाव तथा माफी मांगने को कहा जा रहा है। अर्धसैनिक बल के जवानों को सेना के बराबर वेतन एवं अन्य सुविधाओं की मांग करने वाले जवान जीत सिंह ने अपने वीडियो संदेश में कहा- "मैं कांस्टेबल जीत सिंह सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) का जवान हूं। मैं आप लोगों के जरिए हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तक एक संदेश पहुंचाना चाहता हूं। मेरा कहना यह है कि हम लोग इस देश के अंदर कौन-सी ड्यूटी है, जो नहीं करते। लोकसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव, यहां तक कि छोटे-मोटे ग्राम पंचायत चुनाव में भी काम करते हैं। इसके अलावा वीवीआईपी सिक्योरिटी, संसद भवन, एयरपोर्ट, मंदिर, मस्जिद कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स के जवान योगदान न देते हों। सेना और सीआरपीएफ को दिए जाने वाले वेतन और सुविधाओं में काफी फर्क है। अफसोस कि हमारे दु:ख और दर्द को समझने वाला कोई नहीं है।"
कहीं न कहीं यह प्रतीत तो होता ही है कि सेना और अर्द्धसैनिक बलो में सबकुछ ठीक नहीं है। ऐसी शिकायतों और असंतोष का बेवजह जन्म नहीं होता। देश के तमाम सैनिक जान की परवाह न करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। सैनिकों के साथ न तो पक्षघात होना चाहिए और न ही उन्हें किन्हीं दिक्कतों का सामना करने को मजबूर किया जाना चाहिए। उन्हें पौष्टिक भोजन मिलना ही चाहिए। यह उनका हक है। लेकिन यह बहुत ही शर्म की बात है कि सैन्यबल भी भ्रष्टाचार के कीटाणुओं से अछूते नहीं हैं। सैनिकों को खराब और घटिया भोजन उपलब्ध कराने का आरोप लगाने वाले जवान तेज बहादुर ने सेना के अधिकारियों को कठघरे में खडा करते हुए यह भी कहा है कि उनकी भ्रष्टाचारी और भेदभाव की नीति के कारण ही जवानों को पौष्टिक भोजन से वंचित रहना पडता है।
यह तो देश की रक्षा करने वाले सैनिकों और जवानों के जीवन के साथ खिलवाड करने वाला एक ऐसा अपराध है जो यकीनन अक्षम्य है। भ्रष्टाचार के कैंसर ने भारत को अंदर ही अंदर कितना खोखला कर डाला है यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन सरहद पर सैनिकों के साथ होने वाला अन्याय, भ्रष्टाचार और भेदभाव देश के साथ विश्वासघात है। जो सैनिक देश के लिए कुर्बानी देने को सदा तत्पर रहते हैं उनके साथ यह बहुत बडी बेइंसाफी है। अभी तक तो हमने यही सुना और जाना था कि सैनिकों के लिए खरीदे जाने वाले कम्बलों, जूतों और अन्य सामानों में भ्रष्टाचार, हेराफेरी और रिश्वतखोरी चलती है, लेकिन अब यह भी साफ हो गया है कि राशन की खरीदी और वितरण में भी बेइमानी की जाती है। बढ़िया भोजन सामग्री अधिकारियों के यहां और घटिया सामग्री सैनिकों तक पहुंचायी जाती है। सेना के कुछ सीनियर अफसरों के द्वारा यह भी कहा गया कि बीएसएफ के जवान तेज बहादुर ने घटिया खाने के खिलाफ आवाज उठाकर अनुशासन तोडा है। लेकिन यह भी सच है कि जब अन्याय हद से ज्यादा बढ जाता है तो मुंह खोलने को विवश होना ही पडता है। जवानों ने चुप्पी तोडकर देशवासियों की आंखें खोल दी हैं। शुक्रिया सोशल मीडिया का... जिसने जवानों को अपनी तकलीफों और परेशानियों को जगजाहिर करने का अभूतपूर्व हथियार उपलब्ध करवाया है। देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक जवानों की आवाज पहुंच चुकी है।
गौरतलब है कि देश के जवान पहले भी ऐसे गंभीर समस्याओं को उठाते रहे हैं। लेकिन उनकी कभी सुनी नहीं गई। गत वर्ष कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया था कि जवानों को घटिया खान-पान और खाने के सामानों में तय मानकों से कम सामान दिया जा रहा है। यह गोरखधंधा पिछले कई वर्षों से चल रहा है। कैग की रिपोर्ट पर तो किसी का ध्यान नहीं गया, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए धमाका हो गया। जो लोग जवानों को दिए जाने वाले राशन में भ्रष्टाचार करते हैं उन्हें कतई माफ नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें भी नहीं बख्शा जाना चाहिए जो जवानों को अपना गुलाम समझते हैं। राशन, वर्दी और बाकी सामानों में चलने वाली कमीशनखोरी और कमीशनबाजों की शिनाख्त होना जरूरी है। यह काम ठेकेदारों और अफसरों की मिलीभगत से ही होता है। सेना में भी भ्रष्टाचारी और बेइमान भरे पडे हैं। इसका यदा-कदा पर्दाफाश होता रहता है। पिछले दिनों भारत के पूर्व वायुसेना प्रमुख ए.पी.त्यागी को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। भारत के इतिहास में यह पहली घटना थी। इससे यह तो पता चल ही गया कि ऊंचे पदों पर विराजमान लोग कितने भ्रष्ट हो सकते हैं। इन्हें अपना आदर्श मानने वालों की कहीं कोई कमी नहीं है।

Thursday, January 12, 2017

चीनी और चींटियाँ

"छोटे कपडों के कारण ही लडकियों से छेडखानी होती है। जो लडकियां छोटे कपडे पहनती हैं उन्हें आधुनिक माना जाता है। लडके-लडकियों को इधर-उधर घूमने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। जहां चीनी होगी, वहां चींटियाँ तो आएंगी ही।" यह भद्दे विचार हैं एक समाजवादी नेता के... जो उन्होंने बंगलुरू में नये साल की पूर्व संध्या पर जश्न मनाने के लिये जुटी युवतियों के साथ की गयी बदतमीजी के बाद प्रकट किए। इसी तरह से एक मंत्री ने भी बेतुका बयान देते हुए कहा कि लडकियों को आधुनिक पहनावे में देखकर युवक इतने अधिक उत्तेजित हो जाते हैं कि उनका खुद पर नियंत्रण नहीं रह पाता। नेताओं की यह ओछी सोच यकीनन यही दर्शाना चाहती है कि महिलाओं के साथ अभद्रता के साथ पेश आनेवाले छिछोरे 'मर्द' कतई दोषी नहीं हैं। असली कसूरवार तो वे युवतियां हैं जो इस आजाद देश में अपने मनचाहे पहनावे में घूमने निकल पडती हैं। पुलिस की तैनाती के बाद भी उन्हें मनचलों की छेडछाड और अश्लील टिप्पणियों से दो चार होना पडता है। बंगलुरू का विख्यात एमजी रोड जहां कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे, हर कोना रोशनी में नहा रहा था, लोगों की भीड थी, वहां पर लडकियों को पकडा और दबोचा गया। उनके कपडे फाडे गए। घोर ताज्जुब कि वहां पर लगभग १५०० पुलिसवाले भी तैनात थे।
जिस बंगलुरू को सभ्य, शालीन, अनुशासित और समृद्ध लोगों का शहर माना जाता है वहां पर ३१ दिसंबर की रात ऐसी घिनौनी और घटिया हरकतों का होना बेहद डराता और चिंतित करता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि सतर्क और समझदार लोग भी हैवानियत के नंगे नाच को देखकर तमाशबीन बने रहते हैं या फिर अनदेखा कर देते हैं? दिल्ली विश्वविद्यालय की एक महिला प्रोफेसर को नववर्ष २०१७ ने एक ऐसा उपहार दिया जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगी। उन्हें सार्वजनिक जगह पर बेवजह गाली-गलौच और मारपीट का शिकार होना पडा। वे कॉलेज में कक्षाएं लेने जा रही थीं। पेट्रोल भराने के लिए उन्होंने पेट्रोल पम्प पर अपनी कार रोकी। कार से निकलकर पैसे देकर वे वापस बैठने जा रही थीं, तभी उल्टी दिशा से स्कूटी पर आये एक नकाबपोश युवक ने उनके पर्स पर झपटा मार दिया। पर्स के साथ वे भी घसिटती चली गर्इं। उन्होंने जोर लगाकर अपने पर्स को युवक के हाथ से खींचा तो वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही उसने गालीगलौच व धमकाना शुरू कर दिया। प्रोफेसर के विरोध करने पर बदमाश ने उनपर थप्पड और घूसों की बरसात कर दी। प्रोफेसर का चश्मा टूट कर नीचे गिर गया। वहां पर खडे लोग तमाशा देखते रहे। युवक के भाग जाने के बाद पेट्रोल पम्प पर खडे कुछ लोग प्रोफेसर के पास आए और पेट्रोल भरनेवाले लडके को डांटने लगे कि उसने युवक को रोका क्यों नहीं। बदतमीज युवक को डांटना-फटकारना उसकी जिम्मेदारी थी। एक-दो ऐसे भी निकले जिन्होंने अफसोस जताते हुए प्रोफेसर से कहा कि वे तो यही समझ रहे थे कि वह आपका पति हैं। इसलिए हमने बीच-बचाव करने की जरूरत नहीं समझी। प्रोफेसर ने फेसबुक पर अपने दर्द को व्यक्त करते हुए लिखा, "यह समाज को क्या हो गया है? अगर वह मेरा पति भी होता तो क्या कोई किसी भी औरत को यूं ही पिटते देखना सहज महसूस करता है? औरतों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। ठग और मनचले गलियों में खुलेआम घूम रहे हैं। मेरे साथ खुलेआम हिंसा हुई, जिसके जख्म मेरे शरीर पर हैं। इससे ज्यादा मैं इस बात पर हैरत में हूं कि खुलेआम कोई भी किसी महिला को मौत का भय दिखाकर उसके साथ मारपीट, गालीगलौच और यौन हिंसा कर सकता है। महिला पर हमला होता है, उसके साथ यौन हिंसा होती है और लोग बस तमाशा देखते रहते हैं।"
बदमाशों और सडक छाप मजनूओं की पैरवी करने वालों के खिलाफ देशभर में गुस्सा फूटता देखा गया। एक अभिनेत्री ने खुलकर अपनी बात रखी, "लडकियों के साथ होने वाली अभद्रता के बाद हमेशा लडकी के कपडे, उसके अकेले होने या फिर उसके गलत समय पर बाहर रहने जैसे विषय उठाए जाते हैं। ऐसी हर घटना के बाद कहीं न कहीं लडकी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। सवाल यह है कि अगर लडकियां छोटे कपडे पहनकर पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर रही हैं, तो जो ल‹डके उन्हें छेडते हैं क्या वह भारतीय सभ्यता की नकल कर रहे हैं? क्या यह इतने पतित और कमजोर हैं कि किसी भी युवती को देखकर उत्तेजित हो जाते हैं?
बंगलुरू की शर्मनाक घटना के बाद आये निष्कृष्ट और आपत्तिजनक बयानों ने सजग फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार का खून खौला दिया। उन्होंने चेतावनी देने के अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, "दिल से बोलूं... आज मुझे अपने इंसान होने पर शर्म आ रही है। अपनी बेटी को गोद में उठाए एयरपोर्ट से निकल ही रहा था कि टीवी पर आ रही एक खबर पर नजर पडी। बंगलुरू में नए साल में खुलेआम सडक पर कुछ लोगों की वहशियत का नंगा नाच देखा। उसे देखकर पता नहीं आप लोगों को कैसा लगा, लेकिन भगवान कसम, मेरा खून खौल उठा। एक बेटी का बाप हूँ। अगर ना भी होता तो यही कहता कि जो समाज अपनी औरतों को इज्जत नहीं दे सकता, उसे अपने आप को इंसानी समाज कहने का कोई हक नहीं। सबसे शर्म की बात पता है क्या है? कुछ लोग राह चलते एक लडकी के हैरेसमेंट को उचित ठहराने की औकात रखते हैं। लडकी ने छोटे कपडे पहने क्यों? लडकी रात में घर से बाहर गई क्यों? ऐसे सवाल करते हैं। शर्म करो। छोटे लडकी के कपडे नहीं, छोटी आपकी सोच है। भगवान न करे जो बंगलुरू में हुआ है, वह आपकी बहन या बेटी के साथ हो। ये बदतमीजी करने वाले किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। ये हमारे यहां से ही हैं। हमारे आपके घरों से ही हैं। हमारे बीच ही घूमते हैं ये दरिंदे। अभी भी वक्त है, सुधर जाओ। वर्ना जिस दिन इस देश की बेटी ने पलटकर जवाब दिया ना, सुधरोगे नहीं, सीधा ऊपर सिधार जाओगे। लडकियों से भी मैं कुछ कहना चाहूंगा। लडकियां किसी भी तरह लडकों से अपने आप को कमजोर न समझें। आप अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह काबिल बन सकती हैं। ऐसे लडकों को संभालने की ऐसी छोटी और आसान टेक्निक्स हैं मार्शल आर्ट्स में। किसी में इतना दम नहीं कि आपकी मर्जी के बिना आपको हाथ भी लगा सके। आपको डरना नहीं है। बस अलर्ट रहो। सेल्फ डिफेंस सीखो। क्योंकि पुरुष नहीं सुधरेंगे, इसलिए वक्त है कि औरतें इस सुधार को अपने हाथों में लें। और हां, अगली बार आपके कपडों पर आपको कोई ज्ञान देने की कोशिश करे, तो उससे कहना कि अपनी सलाह अपने पास रखिए और अपने काम पर ध्यान दीजिए, मुझ पर नहीं।"
केंद्रीय मंत्री वी.के.सिंह ने छेडखानी की घटनाओं पर खेद जताते हुए कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि हमारी मौजूदा प्रणाली महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने में प्रभावी नहीं है। ऐसे में हमें दूसरे देशों से सीख लेनी चाहिए जो इस बुराई से सफलतापूर्वक निपट रहे हैं। यौन अपराधियों का रासायनिक बंध्याकरण आज के समय की बहुत ब‹डी जरूरत है। जब तक आदतन दुराचारियों को ऐसा कडा दंड नहीं मिलता तब तक देश में व्याभिचारियों के सुधरने के आसार नज़र नहीं आते।

Thursday, January 5, 2017

सत्ता की बगावत

तमाशे तो बहुत देखे थे, लेकिन ऐसा तमाशा पहली बार देखा। पिता और पुत्र के अजूबे दंगल ने एक बार फिर राजनीति का बदरंग चेहरा दिखाया। समाजवादी पार्टी की अंदरूनी कलह ने भाजपा, बसपा को उछालने का मौका दे दिया। कांग्रेस और रालोद के सपनों को पर लगा दिए। उत्तरप्रदेश में चुनावों की तारीखों की घोषणा हो गयी है। टिकटों को लेकर जिस तरह से बाप-बेटे में घमासान मचा, वह भी सबने देख लिया। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि मुलायम सिंह राजनीति के पुराने खिलाडी हैं। लेकिन अखिलेश ने भी अपने शासनकाल में खासी प्रभावी छवि बनायी है। उन्हें यकीन है कि वे अपनी व्यक्तिगत छवि के दम पर विरोधियों को मात दे सकते हैं। वे शिक्षित हैं और उन पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का भी कभी कोई आरोप नहीं लगा। नेताजी पर तो तरह-तरह के छींटे पडते रहे हैं। उन्होंने तो समाजवाद और लोहियावाद के नाम पर अपने भाई, भतीजे, पुत्र-पुत्रवधू और चहेतों को मंत्री, सांसद और विधायक बनाकर परिवारवाद और मित्रवाद की जैसे परंपरा ही स्थापित कर डाली। इस उम्रदराज नेता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस बेटे को उन्होंने यूपी का मुख्यमंत्री बनाया वही उनके लिए सिरदर्द बन जाएगा। यहां यह बताना भी जरूरी है कि राजनीति के कुछ धुरंधरों का कहना है कि बाप और बेटे के इस तथाकथित अलगाव के पीछे भी बहुत बडी राजनीति छिपी हुई है। यह मात्र ड्रामा है। राजनीति में हमेशा दो और दो चार नहीं होते। जो दिखता है, वही सच नहीं होता। लेकिन आम जनता इतनी गहराई से कहां सोच पाती है। उसे तो वही सच लगता है जो उसे दिखता और सुनायी देता है। समाजवादी पार्टी में जो घमासान मचा है, आमजन की उसी पर नजरे हैं। सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या अखिलेश अहसानफरामोश हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी ने उन्हें अहंकारी और विद्रोही बना दिया है? गौरतलब है कि युवा अखिलेश सिंह ने जब यूपी की सत्ता संभाली थी तब शुरुआती दौर में यादव कुनबे का ही दबदबा था। ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता था कि अखिलेश को मुख्यमंत्री बना तो दिया गया है, लेकिन उन्हें शासन और प्रशासन को चलाने के संपूर्ण अधिकार नहीं दिए गये हैं। मुलायम सिंह और उनके परिवार से जुडे राजनेताओं को यकीन था कि अखिलेश उनके इशारे पर नाचते रहेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अखिलेश अपनी अलग छवि बनाने में जुट गये। उन्होंने स्वतंत्र निर्णय लेने शुरू कर दिए। यादवी कुनबे से अलग छवि बनाने का उनका प्रयास रंग लाने लगा। उन्होंने उन अपराधी प्रवृत्ति के चेहरों से भी दूरी बनायी जो पिता मुलायम के करीबी थे। अखिलेश का धीरे-धीरे नायक की तरह उभरना मुलायमवादियों को ही रास नहीं आया। उनके स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता के कारण विरोधी नेताओं के तो मुंह बंद हो गये, लेकिन अपनों के वार बढते चले गए। पिता मुलायम सिंह ने ही अनेको बार मुख्यमंत्री के कामकाज पर ऐसी-ऐसी कटु टिप्पणियां कीं, जो मीडिया की सुर्खियां तो बनीं, लेकिन उनके कद को छोटा कर अखिलेश की निर्विवाद बेदाग छवि का डंका पीट गर्इं। प्रदेश में अखिलेश की बढती चमक ने सबसे ज्यादा परेशान किया उनके चाचा शिवपाल और अमर सिंह जैसे सत्ता के दलालों को। नेताजी के दुलारों ने अखिलेश को पटकनी देने के लिए अनेकों साजिशें रचीं। चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश की अनबन की खबरें लगातार आती रहीं। नेताजी ने अमर qसह को पार्टी में फिर से शामिल कर भले ही 'दोस्ती' निभायी हो, लेकिन पुत्र को सोचने पर विवश कर दिया। नेताजी को पक्का यकीन था कि बेटा उनका परमभक्त है। कभी बागी नहीं बनेगा। उन्हें यह भी यकीन था कि सभी समाजवादी उनके साथ हैं, और रहेंगे। वे एक इशारा करेंगे और सारे विधायक उनके पीछे खडे आएंगे। अखिलेश को उन्होंने ही मुख्यमंत्री बनाया है इसलिए उसका कोई साथ नहीं देगा। सत्ता की राजनीति में हमेशा किंगमेकर की चलती है। दरअसल, नेता जी पुत्र की तरक्की और छवि का आकलन नहीं कर पाए। अगर वे चाहते तो जगहंसाई की नौबत ही नहीं आती। राजनीतिक वर्चस्व की लडाई तो हर राजनीतिक दल में चलती रहती है, लेकिन ऐसी तमाशेबाजी बहुत कम देखने में आती हैं। फिर यहां तो पिता और पुत्र आमने-सामने हैं। चुनावी टिकटों के बंटवारे ने भी बाप-बेटे में दूरियां बढायीं। पिता की लिस्ट में कई ऐसे चेहरे थे जो घोर विवादास्पद रहे हैं। अखिलेश नहीं चाहते कि ऐसे लोगों को चुनाव मैदान में उतारा जाए जिनकी छवि संदिग्ध हो और हार तय हो। अखिलेश को अपने भविष्य की चिन्ता है। उन्होंने पांच वर्ष तक यूपी में शासन कर अपनी जो स्वच्छ छवि बनायी है उसे वे कलंकित नहीं होने देना चाहते। बाहुबलि अतीक अहमद और दलाल अमर सिंह जैसों की तरफदारी में अपनी संपूर्ण ताकत लगा देने वाले समाजवादी मुलायम सिंह एक तरफ तो यह कहते हैं कि उनकी राजनीतिक यात्रा पूरी तरह से पाक-साफ रही है। उन्होंने कभी कोई गलत काम नहीं किया। दूसरी तरफ अमर सिंह को दोबारा गले लगाने पर उठने वाले प्रश्नों का जवाब देते हुए कहते हैं कि अमर सिंह मेरे भाई जैसा है। मेरे इस भाई ने कभी मुझे जेल जाने से बचाया था। मैं उसका अहसान कभी नहीं भूल सकता। नेताजी से यह सवाल तो किया ही जा सकता है कि क्या पाक-साफ और ईमानदार शख्स पर भी कभी जेल जाने की नौबत आती है? मुलायम सिंह और अखिलेश के बीच जारी युद्ध पर कुछ पत्रकारों-संपादकों ने लिखा है कि इतिहास खुद को दोहराता है। इक्कसवीं सदी में सत्ता के लिए पिता पुत्र की यह लडाई मुगल शासक औरंगजेब और शाहजहां के बीच की जंग की याद दिलाती है। जब बेटे औरंगजेब ने अपने पिता से बगावत करते हुए उन्हें कैद कर दिल्ली का तख्त कब्जा लिया था। मेरे विचार से यह बेहद बचकानी सोच है। अतिशयोक्ति से परिपूर्ण। लोकतंत्र में ऐसी कल्पना करने वाले पता नहीं कौन सी दुनिया में रहते हैं। देश के विशालतम प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी बेहतर साख बनाने वाले अखिलेश कोई कू्रर मार्ग नहीं अपना सकते। पितृभक्ति उनमें कूट-कूट कर भरी है। उन्होंने अपने पिता का सदैव सम्मान किया है। उन्होंने पिता-पुत्र के बीच की मर्यादा भी कभी नहीं लांघी है। ऐसे में उन्हें औरंगजेब कहना बहुत बडी बेइंसाफी है। उनकी लडाई तो उन साजिशों के खिलाफ है जो उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहतीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अखिलेश यादव ने राजनीति से ज्यादा रिश्तों का मान रखा है। उनका यह कहना गलत तो नहीं है कि जब मैंने पांच साल तक प्रदेश में शासन किया है तो परीक्षा भी मुझे ही देनी है। तो ऐसे में चुनावी टिकटों के आवंटन का संपूर्ण अधिकार मेरे पास ही होना चाहिए।