Thursday, August 25, 2011

भिखारी की खुद्दारी

मध्यप्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन का दावा है कि यदि उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिं‍ह चौहान दस करोड रुपये उपलब्ध करवा दें तो वे छिन्दवाडा लोकसभा सीट भाजपा के खाते में डलवा सकते हैं। फिलहाल कांग्रेस के कमलनाथ छिन्दवाडा के सांसद हैं। छिन्दवाडा लोकसभा क्षेत्र में कमलनाथ की तूती बोलती है। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। सिर्फ एक बार भाजपा के बुजुर्ग नेता सुंदरलाल पटवा ने छिन्दवाडा लोकसभा से विजयश्री हासिल की थी। अपने विवादास्पद क्रियाकलापों के चलते अक्सर चर्चाओं के घेरे में रहने वाले गौरीशंकर बिसेन ने यह भी कहा है कि चुनाव प्रचार के लिए दस करोड के साथ-साथ एक हेलीकाप्टर एवं सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी का साथ अगर उन्हें मिल जाए तो वे कमलनाथ को बडी आसानी से पटकनी दे सकते हैं। हेमा मालिनी भाजपा की राज्यसभा सांसद हैं। देश के कोने-कोने के मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा इस सुंदरी का खुलकर इस्तेमाल करती रहती है। छिन्दवाडा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कमलनाथ जिस तरह से नोटों की बरसात करते हैं उसके सामने अन्य किसी पार्टी का प्रत्याशी टिक नहीं पाता। कमलनाथ येने-केन-प्रकारेन चुनाव जीतने के लिए कितनी दौलत लुटाते होंगे इसे लेकर तरह-तरह के अनुमान लगाये जाते हैं। वैसे भी कमलनाथ के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। उनके परिवार के कई उद्योगधंधे हैं। उन्हें सरकारी ठेके भी आसानी से मिल जाते हैं। इसलिए कमलनाथ जैसे सौदागर चुनाव में धन लुटाने के मामले में सदैव आगे रहते हैं। भाजपा के सहकारिता मंत्री भी चुनावी राजनीति के घाघ खिलाडी हैं। उन्हें मालूम है कि चुनाव चाहे विधानसभा का हो या लोकसभा का अंधाधुंध धनवर्षा करनी ही पडती है। न जाने कितने मतदाताओं को दारू की बोतलों, कम्बलों, साडि‍यों और कडकते नोटों से रिझाना पडता है तभी वे वोट देने के लिए अपने घर से बाहर निकलते हैं। अब वो जमाना भी नहीं रहा कि पार्टी के कार्यकर्ता फोकट में अपना समय जाया करें। अगर चुनाव जीतना है तो गुंडे-मवालियों की फौज भी तैयार करनी पडती है और इनकी कीमत की तो कोई सीमा ही नहीं होती। ईमानदारी के साथ चुनाव लडने की मंशा रखने वाले प्रत्याशी का तो मैदान में कदम रखते ही पसीना छूटने लगता है। भारतवर्ष के चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के लिए २५ लाख रुपये की खर्च सीमा तय की हुई है पर बिरले ही ऐसे होते हैं जो इतने रुपयों में काम चला लेते हैं। दरअसल यह अंदर की बात है कि कौन प्रत्याशी कितने करोड उडाकर चुनाव जीतता है और चुनाव आयोग के नियम-कायदों की धज्जियां उडाता है। किसी भी राजनीतिक पार्टी और उसके प्रत्याशी के द्वारा इस रहस्य को सरेआम उजागर नहीं किया जाता। गौरीशंकर बिसेन बडबोले भी हैं और भोले भी इसलिए लोकतंत्र की जडों को खोखला करते चले आ रहे गूढ मंत्र का भारी भीड के बीच जाप कर गए। यह दौर ही कुछ ऐसा है जब 'देर आये पर दुरुस्त आये' की तर्ज पर दबा और छिपा सच सामने आने लगा है। ऐसा भी नहीं है कि सजग जन इससे वाकिफ न रहे हों। इंडियन जस्टिस पार्टी के सुप्रीमो उदित राज की पीडा है कि इस देश में सिर्फ पैसे वाले ही चुनाव जीत सकते हैं। देश के अधिकांश मतदाता दारू और कम्बल में बिक जाते हैं। उन्होंने एक न्यूज चैनल पर अपना दुखडा रोते हुए बताया कि वे अच्छी-खासी सरकारी नौकरी में थे। मजे से जीवन गुजर रहा था। देश के दबे-कुचले लोगों की दुर्गति और पीडा उन्हें हमेशा आहत करती रहती थी। इसलिए उन्होंने राजनीति में कदम रखने की ठान ली। परंतु राजनीति में पदार्पण करने के बाद उनका साक्षात्कार जिस कडवी हकीकत से हुआ उससे उनकी रूह कांप उठी और पैरों तले की जमीन खिसक गयी। चुनाव हारने के बाद उन्हें एक ही बात समझ में आयी कि राजनीति में तो सिर्फ और सिर्फ पैसा ही बोलता है और धनपतियों की ही चलती है। सोच और सिद्धांत के बलबूते पर चुनाव जीतना असंभव है।उदित राज ही नहीं और भी कई सुलझे हुए लोग हैं जो यह मानते हैं कि अगर नेता भ्रष्टाचारी हैं तो अनेकों मतदाता भी बिकाऊ हैं। दरअसल भारत की यह वो तस्वीर है जिसमें हर तरफ गौरीशंकर बिसेन जैसे सत्ताधारी हैं जिनकी सोच यही जाहिर करती है कि देश के मतदाताओं को आसानी से खरीदा जा सकता है। यहां यह भी कहने में हर्ज नहीं है कि जिन्होंने देश को लूटा-खसोटा उन्होंने ही आम देशवासियों को भिखारी बना कर रख दिया है। इन्होंने अगर ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया होता तो देश में इस कदर असमानता और बदहाली का आलम न होता। जो नेता नोट देकर वोट लेते हैं वे कभी भी यह नहीं चाहेंगे कि इस देश से गरीबी हटे और आम आदमी खुशहाल हो। पर अब उनके चाहने से कुछ नहीं होने वाला। मतदाताओं को इस सच का पता चल गया है कि भ्रष्टाचारियों के झांसे में आकर उन्होंने अभी तक भारत माता का काफी अहित किया है। मजबूरन वोट बेचने वालों ने अपने स्वाभिमान का कभी सौदा नहीं किया। इस देश के आम आदमी को ना जाने कितनी मजबूरियों के हाथों का खिलौना बनने को विवश होना पडता है। जिन लोगों ने भीख को अपना पेशा बना लिया है उनके अंदर की खुद्दारी भी अभी जिं‍दा है। नागपुर की जनता उस समय अचंभित रह गयी जब उसने जनलोकपाल ओर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भिखारियों को सडकों पर अन्ना हजारे के पक्ष और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते देखा। शहर के तमाम भिखारियों ने मोर्चा निकाला। उनके हाथों में जो तख्तियां थीं उन पर लिखा था:
''भिखारियों का ऐलान, सारे राजनेता हैं बेईमान, जो अन्ना को देगा धोखा, भिखारी उससे भीख नहीं लेगा।''
इसे अब आप क्या कहेंगे कि पेशेवर भिखारी भी यह कहने लगे हैं कि वे भ्रष्टाचारियों से भीख नहीं लेंगे...।

Thursday, August 18, 2011

खत्म नहीं हुआ है सब कुछ...

राजनीति से अलविदा, नैतिक मूल्य तमाम
नंगों के इस देश में, धोबी का क्या काम...
जिस देश की जनता अपने ही चुने जनप्रतिनिधियों की धोखाधडी की शिकार हुई हो और जहां देखते ही देखते अरबों-खरबों के घोटालों और भ्रष्टाचार का इतिहास रच दिया गया हो वहां पर राजनेताओं की साख पर लगे दाग-दर-दाग से आहत होकर यदि कोई कवि उपरोक्त पंक्तियां लिखने को विवश होता है तो उसके अंदर घर कर चुके गुस्से और निराशा को नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। इस देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिं‍ह स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में जब यह कहते हैं कि अनशनों और धरना प्रदर्शनों से देश का भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता तो लोग अवाक रह जाते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर जंग लडने वाले अन्ना हजारे को जब जेल भेज दिया जाता है तो आम जनता का गुस्सा फूट पडता है और वह सडक पर आ जाती है। हालात यहां तक जा पहुंचते हैं कि सरकार को झुकना पडता है। जो प्रधानमंत्री लाल किले पर अनशन और शांत आंदोलन के प्रति बेपरवाह नजर आते हैं वही अपना माथा पकड कर बैठ जाते हैं। उन्हें अंतत: अपनी गलती का अहसास हो ही जाता है। अन्ना की जीत में आम जनता की जीत शामिल है और यही लोकतंत्र का असली चेहरा है जिसे हुक्मरान नजरअंदाज करते आये हैं। आंकडे चीख-चीख कर बता रहे हैं कि वर्ष १९९२ से लेकर अब तक देश में छत्तीस महाघोटाले हो चुके हैं, जिनकी वजह से देशवासियों के खून पसीने के ८० लाख करोड भ्रष्टाचारियों की तिजोरियों में समा चुके हैं। इस देश का आम आदमी तरह-तरह की समस्याओं से निरंतर जूझ रहा है पर राजनेताओं ने उसकी चिं‍ता करनी ही छोड दी है। देश के लिए नासूर बन चुके भ्रष्टाचार के कारण ही महंगाई बेलगाम हो चुकी है। खाद्यान और दूसरी जरूरी वस्तुओं के मूल्यों में बेहिसाब वृद्धि के चलते पिछले तीन सालों में उपभोक्ताओं की जेब से छह लाख करोड रुपये काला बाजारियों, नेताओं, दलालों और बेईमान व्यापारियों की जेबों में जा चुके हैं। मुल्क में बडे ही सुनियोजित ढंग से लूट-खसोट का कारोबार चल रहा है। राजनेता, अफसर, उद्योगपति, व्यापारी और छोटे-बडे सरकारी कर्मचारी अपने-अपने तौर-तरीकों के साथ भ्रष्टाचार को बेखौफ होकर अंजाम देते चले आ रहे हैं। उन्हें दबोचने के मामले में देश का कानून इतना बौना है कि उसकी कुछ भी चल नहीं पाती। ऐसे में जब अन्ना हजारे जनलोकपाल के लिए अपनी जान तक दांव पर लगाने के लिए सामने आये तो भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता उनके साथ खडी हो गयी। यह बात सरकार को रास नही आयी। पर देशवासी परिवर्तन चाहते हैं। उनकी बर्दाश्त करने की हिम्मत जवाब दे चुकी है। आम आदमी को हर जगह भाई-भतीजावाद और रिश्वतखोरों का सामना करना पडता है। पढाई से लेकर नौकरी तक अपनी जेबें ढीली करनी पडती हैं। कई लोग तो यह भी मान चुके हैं कि हिं‍दुस्तान से भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो ही नहीं सकता। दरअसल इस तरह के नकारात्मक और निराशावादी विचार लोगों में इसलिए अपनी जगह बना चुके हैं क्योंकि जिन्हें देश को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी उनमें से अधिकांश नेता भ्रष्ट और बेईमान निकले। नेताओं की देखा-देखी अफसरशाही ने भी लोगों को बुरी तरह से निराश और हताश किया है। पिछले दिनों काली कमायी करने वाले कई मंत्रियों और अफसरों को जेल भेजा गया। मध्यप्रदेश के आईएएस अधिकारी अरविं‍द जोशी और टीनू जोशी के यहां से बरामद हुई अपार दौलत ने तो आयकर अधिकारियों को भी हतप्रभ कर दिया। नोट गिनने के लिए मशीने मंगवानी पडीं। इसतरह की भ्रष्ट जमात देश के हर प्रदेश में भरी पडी है। महिलाएं भी भ्रष्टाचार के मामले में पीछे नहीं हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते जब सीबीआई ने पंजाब के शहर मोहाली की प्रथम महिला डीएसपी राका गीरा को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार करने में सफलता पायी। राका गीरा ने लोगों की इस धारणा के परखच्चे उडाकर रख दिये कि महिलाएं काफी हद तक संवेदनशील ईमानदार होती हैं। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से दूर रहती हैं। इस महिला पुलिस अधिकारी के घर मारे गये छापे में करोडों रुपये की नगदी, हीरे जवाहरात तथा हथियार तो मिले ही साथ ही 'बार' में सजी जो विदेशी शराब की पचासों बोतलें मिलीं उनसे यह भी स्पष्ट हो गया महिलाएं भी नशाखोरी में इतिहास रच रही हैं। उन्होंने खुद को किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार कर लिया है। उन्हें भी पुरुषों की तरह मौकों का इंतजार रहता है। फिर भी पूरी तरह से निराश होने की जरूरत नहीं है। अभी भी देश में अन्याय से लडने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। यह बात दीगर है कि उन्हें वो तवज्जो नहीं दी जाती जिसके वे हकदार हैं। यह वो लोग हैं जो लाख तकलीफें सहने के बावजूद अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। बडी से बडी मुसीबत और तूफान के सामने डटे रहते हैं।मदुराई के जिलाधिकारी यू. सागायम का नाम भले ही ज्यादा जाना-पहचाना न हो पर वर्षों से जो लडाई वे लडते चले आ रहे हैं उसे हाशिये में नहीं डाला जा सकता। सागायम एक ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जिन्हें अपने उसूलों पर कायम रहने की वजह से १८ बार तबादलों की सज़ा भुगतनी पडी है पर फिर भी उनका मनोबल नहीं टूटा है। वे न खुद रिश्वत लेते हैं और न ही किसी को लेने देते हैं। उनकी इस परिपाटी के चलते उनके दुश्मनों की संख्या भी कम नहीं है। उनसे न तो उनके उच्चाधिकारी खुश रहते हैं और न ही नीचे वाले। उन्होंने दो वर्ष पूर्व स्वेच्छा से अपनी संपत्ति की घोषणा करते हुए बताया था कि उनके पास सात हजार एक सौ बहत्तर रुपये का बैंक बैलेंस और १९ लाख रुपये का एक मकान है। ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य निभाते चले आ रहे इस अधिकारी की बेटी जब गंभीर रूप से बीमार हुई तो अस्पताल में भरती कराने के लिए उनके पास एक मुश्त पांच हजार रुपये भी नहीं थे। यकीनन बेहद हैरतअंगेज सच्चाई है यह। उस समय यू. सागायम आबकारी विभाग में उपायुक्त थे। इस देश में आबकारी अधिकारी करोडों के वारे-न्यारे करते रहते हैं पर कुछ ऐसे भी हैं जो कहीं भी रहें, अपना ईमान नहीं बेचते। इसी तरह से अपने यहां चंद ऐसे राजनेता भी हैं जिन्होंने अपने माथे पर चरित्रहीन होने का दाग नहीं लगाया है। ऐसे लोग ही आशाएं जगाते हैं कि अगर ठान लिया जाए तो देश में कैंसर की शक्ल अख्तियार कर चुके भ्रष्टाचार के कलंक को मिटाया और धोया जा सकता है:
''अभी खत्म नहीं हुआ है सबकुछ
बचा है औरतों में धीरज
बाकी है बच्चों में भोली मुस्कान
आदमी की आंखों में अभी भी हैं सपने
दुनिया को खूबसूरत व बेहतर बनाने के लिए
बाकी है बहुत कुछ
अभी खत्म नहीं हुआ है सबकुछ''।

Wednesday, August 3, 2011

इज्जत की जंग

पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आई तो प्रिं‍ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छा गयीं। अखबारों और न्यूज चैनलों ने पडौसी देश की इस महिला मंत्री की शिक्षा-दीक्षा और राजनीतिक सूझबूझ के बारे में देशवासियों को अवगत कराना कतई जरूरी नहीं समझा। बस हर तरफ उनके खूबसूरत चेहरे, पहनावे और रहन-सहन का बखान होता रहा। अमेरिका की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से होटल मैनेजमेंट में एमएससी कर चुकीं ३४ वर्षीय हिना एक सुलझी हुई महिला हैं और अपनी योग्यता की बदौलत पाकिस्तान की पहली विदेश मंत्री बनने में सफल हुई हैं। उन्होंने पाकिस्तान में वर्ष २००८ में हुए आम चुनाव में पी पी पी की टिकट पर चुनाव लडा था और हजारों वोटों से जीती थीं। यानी हिना सिर्फ अपनी खूबसूरती की वजह से इस मुकाम तक नहीं पहुंची हैं। हिना को भारत यात्रा के दौरान यही बात खटकती रही कि हिं‍दुस्तानी मीडिया ने उसे महज आकर्षक मॉडल की तरह पेश किया और उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दिया। हिना की कातिल खूबसूरती और पतली कमर का गुणगान तो पाकिस्तान के अखबार भी करते रहे हैं पर हिना को भारत से ऐसी उम्मीद नहीं थी। हिना के मन में यह बात बैठ गयी है कि भारतीय मीडिया ने उनके साथ बेशर्मी भरा रवैया अख्तियार करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। उनके राजनीतिक कद की अनदेखी करते हुए सिर्फ और सिर्फ उनकी फैशनपरस्त कीमती पोशाक, डिजायनर हैंडबैग और कीमती धूप के चश्में पर बार-बार टिप्पणी कर बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं। नारियां चाहे कहीं की भी हों पर उन्हें हमेशा यह शिकायत रहती है कि बेशर्मों की निगाहें उनके पहनावे और देह के भूगोल पर ही टिकी रहती हैं। इसमें सिर्फ मीडिया को दोषी ठहराने से कुछ नहीं होगा। दोषियों की जमात तो हर तरफ खडी नजर आती है। कहने को दुनिया बदल चुकी है और हम २१ वीं सदी में रह रहे हैं, लेकिन पुरुष की मानसिकता नहीं बदली है। वह खुद को राजा समझता है और स्त्री को अपना गुलाम। आज की पढी-लिखी नारी पुरुषों की दादागिरी सहने को तैयार नहीं है। वह उनकी इस सोच से बेहद खफा है कि नारियां देह मात्र हैं। पुरुषों की वासना को भडकाने के लिए वे जानबूझकर बदन दिखाऊ वस्त्र पहनती हैं। पुरुषों की इसी मानसिकता के खिलाफ दिल्ली में 'बेशर्मी मोर्चा' निकाला गया। दरअसल इस मोर्चे की प्रेरणा उन्हें कनाडा से मिली जहां एक पुलिस अधिकारी ने यह कहा कि हम महिलाओं को तभी सुरक्षा दे पायेंगे जब वे स्लट (बेशर्म) कपडे पहनना छोड देंगी। हिं‍दुस्तान में भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि महिलाओं का पहनावा पुरुषों को उकसाता है और ऐसे में कई बार वे बेकाबू हो जाते हैं। आखिर वे भी तो इंसान हैं...। राजधानी में निकाले गये बेशर्मी मोर्चा को इज्जत की जंग भी कहा गया। इस जंग में भाग लेने वाली लडकियों का कहना था कि हम आजाद देश की आजाद नागरिक हैं। हमें क्या पहनना है और कैसे रहना है यह फैसला करने का अधिकार किसी ओर को कतई नहीं है। हम मॉडर्न कपडे पहनें या छोटे कपडे इस पर पुरुषों को मिर्ची क्यों लगती है? एक सुलझी हुई अभिनेत्री का बयान आया कि दिल्ली देश की राजधानी है फिर भी यहां महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। जिन लोगों की सोच गंदी है वही लोग यह कहते हैं कि लडकियों का कम कपडे पहनना, फैशन करना या देर रात घर से बाहर निकलना छेडछाड को बढावा देता है। अगर ऐसा होता तो भंवरी देवी का बलात्कार नहीं होता।वैसे यह सच है कि उन महिलाओं के साथ भी बलात्कार होते देखे गये हैं जो बनाव श्रृंगार से दूर रहती हैं और बदन उघाडू वस्त्र भी नहीं पहनतीं। छेडछाड और बलात्कार के लिए महिलाओं के पहनावे को दोषी ठहराने वालों के लिए नारियां इंसान न होकर हाट में खरीदे गये पशु के समान हैं जिन्हें मनमाने ढंग से सताने में उन्हें मज़ा आता है। मज़ा लेने में तो मीडिया भी नहीं चूकता। न्यूज चैनल वालों की नजर में पाकिस्तानी हिना रब्बानी हों या हिं‍दुस्तानी लडकियां सब एक समान हैं। ये वही देखते हैं जो इन्हें दिखाना होता है। 'बेशर्मी मोर्चा' के दौरान अधिकांश चैनल वालों ने सारा फोकस महिलाओं के पहनावे पर ही केंद्रित रखा और उन लडकियों को बार-बार दिखाया जो आधे-अधूरे कपडे पहन कर अंग प्रदर्शन कर रही थीं। महिलाओं का शारीरिक शोषण करने वाले जहां-तहां भरे पडे हैं। पुलिस थानों में महिला सिपाहियों पर बलात्कार और दुष्कर्म की खबरें अक्सर पढने में आती रहती हैं। शिक्षण संस्थानों में जहां नैतिकता और शालीनता का पाठ पढाया जाता है वहां भी छात्राओं का शीलहरण हो जाता है। वासनाखोरों के लिए मर्यादा महत्वहीन है। नारी देह ही हमेशा उनके निशाने पर रहती है। मौका मिलते ही वे शैतानियत पर उतर आते हैं। इसे अब आप क्या कहेंगे कि चेन्नई के एक कॉलेज में शिक्षक ने छात्रा को बाथरूम में ले जाकर कपडे उतारने को विवश कर दिया। बताते हैं कि इस कॉलेज में छात्राओं के मोबाइल फोन ले जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। शिक्षक महाशय ने पहले बैग की तलाशी ली फिर तलाशी के नाम पर वो कर्मकांड कर डाला जिससे इस सोच पर मुहर लग गयी कि लडकियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। चेन्नई के इस कॉलेज में तलाशी के बहाने छात्राओं को निर्वस्त्र करने की कुछ घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। सच तो यह है कि महिलाओं के प्रति समाज का जो नजरिया है उसमें नीचे से ऊपर तक खोट ही खोट है। गंवार ही नहीं पढे-लिखे भी स्त्रियों पर बलात्कार का कहर ढाने और हिं‍सा के चाबुक बरसाने में अपनी बहादुरी समझते हैं। कई बार भरी भीड की आंखों के सामने राह चलती महिलाओं की इज्जत तार-तार कर दी जाती है पर लोग तटस्थ बने रहते हैं। समाज की इसी संवेदनहीनता की वजह से अगर महिलाएं बेशर्मी मोर्चा निकालती हैं तो समाज के कई ठेकेदारों को तकलीफ क्यों होती है?