Thursday, June 30, 2022

अच्छा-बुरा

    अपने ही तो अपनों की हिफाजत के लिए होते हैं। मां-बाप, भाई, चाचा, मामा, नाना, दादा आदि को बच्चे अपना सुरक्षा कवच मानते हुए बेफिक्र रहते हैं। अपने बड़े-बुजुर्गों से ही उन्हें अच्छे आचरण की सीख और शिक्षा मिलती है। गलत और सही का पता भी बच्चों को अपने घर की पाठशाला से ही चलता है, लेकिन कुछ घर-परिवार मान-मर्यादा की राह पर चलने की बजाय भोग-विलास को ही जीवन माने हुए हैं। उनके यहां वासना का नंगा तांडव होता रहता है, लेकिन वे मुंह नहीं खोलते। अपनी तथाकथित इज्जत को बचाने के ढोंग में बस ढोंगी बने रहते हैं। इंसानियत और पवित्र रिश्तों की भी नीलामी कर दी जाती है, लेकिन सच सदा छिपा नहीं रहता। वो तो बाहर आकर ही दम लेता है। कुछ सच बहुत विस्फोटक होते हैं। हैदराबाद में एक बच्ची वर्षों तक अपने सौतेले पिता की विषैली वासना का शिकार होती रही। मासूम बच्ची इतना भी नहीं समझती थी कि उसके साथ क्या हो रहा है। बस मन में एक भरोसा था। अपने कभी गलत नहीं करते। वर्षों तक वह नर्क की यातना झेलती रही। कुछ वर्ष के बाद स्कूल में जब एक दिन टीचर ने बच्चों को ‘गुडटच’ और ‘बैडटच’ के बारे में बताया... समझाया तो बच्ची की समझ में आया कि उसके साथ तो घर में ही बहुत गलत होता चला आ रहा है! उसने अपनी टीचर को यह बताकर चौंका दिया कि उसके सौतेले पिता और चाचा वर्षों से उस पर बलात्कार का कहर ढाते चले आ रहे हैं। टीचर ने फौरन पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी। अभी हाल ही में कोर्ट ने पिता को बीस साल तथा चाचा को तीन साल की सज़ा सुनाई है।
    24 मई, 2022 को महाराष्ट्र के शहर गोंदिया के निकट स्थित एक गांव के तीस वर्षीय मजदूर कृष्ण कुमार ने घर में खुदकुशी कर ली। खुदकुशी का कारण था उसकी पत्नी के साथ बलात्कार होना और बलात्कारी द्वारा खुद को मर्द दर्शाते हुए छाती तानकर घूमना और दोनों को अपमानित करना। लगभग दो वर्ष पूर्व कृष्ण के पड़ोस में रवि नाम का युवक रहने आया। अय्याश और चंचल प्रवृत्ति के रवि ने अकेले में एक दिन कृष्ण की पत्नी के पेट पर हाथ फेरते हुए मज़ाक किया तो उसने हलका-सा विरोध किया। खुलकर आपत्ति नहीं जतायी, जिससे रवि ने मान लिया कि आज नहीं तो कल उसकी मंशा पूरी होकर रहेगी। रवि के पास महंगा मोबाइल फोन था। कृष्ण की पत्नी किसी से बात करने के लिए कभी-कभार रवि से मोबाइल मांग लिया करती थी। एक दिन जब उसके दोनों बच्चे स्कूल गये थे, तब रवि उस पर भूखे शेर की तरह झपट पड़ा और मनमानी करके ही माना। बलात्कारी ने यह धमकी भी दे दी कि यदि किसी को भी खबर लगने दी तो मौत के हवाले कर दी जाओगी। पीड़िता ने अपने पति को बताने की सोची तो जरूर, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा सकी। बदनामी के भय से एक दिन उसने कीटनाशक दवा पी और मरने की राह देखने लगी। इसी दौरान उसे धड़ाधड़ उल्टियां होने लगीं और पति ने अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल में पति के बार-बार पूछने पर उसने अपने साथ हुए कुकर्म का खुलासा कर दिया। बलात्कारी रवि को पुलिस ने गिरफ्तार तो किया, लेकिन शीघ्र ही उसे जमानत मिल गई। अब तो वह दोनों को अपमानित करने पर उतर आया। अपने कॉलर खड़े कर जब-तब बस यही कहता कि मैंने तेरी औरत की इज्जत तार-तार कर दी और तू नामर्द कुछ भी नहीं कर पाया! तंज मार-मारकर बलात्कारी ने कृष्ण कुमार का जीना ही दुश्वार कर दिया। उसे लगने लगा कि बलात्कारी ने उसका आत्मसम्मान और आत्मविश्वास ही छीन लिया है। घर से बाहर निकलने पर जान-पहचान वाले भी उसकी मर्दानगी पर सवाल उठाते हुए मज़ाक उड़ाने लगे। हर तरफ से अपमानित किए जाने से निराश और परेशान कृष्ण ने खुदकुशी कर इस दुनिया से किनारा कर लिया है, लेकिन पत्नी दिन-रात खुद को कोसती रहती है। काश! उसने तभी कपटी पड़ोसी को फटकार दिया होता, जब उसने पहली बार उस पर अपनी गंदी निगाहें डालीं थीं। कहीं न कही उसकी चुप्पी भी उसके पति की आत्महत्या की जिम्मेदार है।
    हमारे बुजुर्ग कहते और समझाते आये हैं कि खुद पर नियंत्रण रखो। वक्त और मौके का ख्याल रखो। भावावेश में कोई ऐसी भूल न करो, जिससे जगहंसाई हो और इज्जत जाने की भी नौबत आ जाए। बीते हफ्ते एक युवा जोड़ा अयोध्या की सरयू नदी में उमंगित होकर स्नान कर रहा था। इसी दौरान प्रफुल्लित पति अपनी पत्नी के साथ चुम्मा-चाटी करने लगा। अयोध्या की पवित्र राम की पैड़ी पर मदमस्त होकर अपनी पत्नी पर प्यार बरसाते पति पर जब कुछ लोगों की नज़र पड़ी तो वे आगबबूला हो गए। उन्होंने आव देखा न ताव... पति को अंधाधुंध पीटना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई। तिलमिलायी भीड़ ने उसकी धुनाई करते हुए बाहर खींचा और मां-बहन की गालियों की झड़ी लगा दी। भीड़ की मार से बचने के लिए पति यहां-वहां भाग रहा था और पत्नी उसे माफ कर देने की फरियाद करते हुए पीछे-पीछे दौड़ रही थी। कुछ तमाशबीनों ने सरयू नदी की पवित्रता को नष्ट करने की जुर्रत करने वाले पति-पत्नी का वीडियो शूट करके उसे धड़ाधड़ वायरल करना भी प्रारंभ कर दिया। आज के सोशल मीडिया के इस जंगी दौर में किसी के बहकने की देरी है, तमाशा बनाने वाले लंगोट कस कर खड़े हैं।
    कल ही मेरी एक वीडियो पर नज़र पड़ी। रात का समय है। शराब के नशे में टुन्न एक लड़की बेकाबू हो चुकी है। उसने कहीं जाने के लिए कैब की है। कैब ड्राइवर उसे समझा रहा है, लेकिन वह उसे गंदी-गंदी गालियां दिये जा रही है। इसी दौरान उसे अपनी किसी सहेली की याद हो आती है तो वह उसका नाम लेकर चीखने-चिल्लाने लगती है और उसकी मां-बहन एक करने पर उतर आती है। जो खाकी वर्दीधारी उसे समझाने की कोशिश करता है, उसी का कॉलर पकड़ कर अंधाधुंध बरसने लगती है। इतना ही नहीं कैब ड्राइवर पर भी छेड़खानी का आरोप जड़ देती है। लड़की के बदन के कपड़े भी इधर-उधर हो उसे नंगा करने पर उतारू हैं, लेकिन उसका हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है...

Thursday, June 23, 2022

कुछ तो शर्म करो दंगावीरो

    भारत में कुछ लोग विरोध करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। लोगों को सड़कों पर लाने और दंगे भड़काने के लिए सतत बेचैन रहते हैं। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है और कर्मवीर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से इन विघ्न संतोषियों की तो नींद ही उड़ गई है। मोदी सरकार की हर जनहित योजना में कमियां और खामियां निकालने बैठ जाते हैं। इनके पाले-पोसे उपद्रवी गुंडे-बदमाश डंडे और झंडे लहराते हुए तोड़फोड़ और आगजनी पर उतर आते हैं। हिंसक जाट आंदोलन, शाहीन बाग, किसान आंदोलन और नूपुर शर्मा विवाद में सजग देशवासियों ने जन्मजात विरोधियों के कितने-कितने विषैले रंग देखे हैं। राजनीति के कुटिल खिलाड़ियों को बार-बार मर्यादाहीन और विवेक शून्य होते देखा है। अभी हाल ही में सैन्य सुधार के लिए भारत सरकार ने 17 से 23 साल की ऊर्जावान युवा शक्ति को देश की सेवा में तल्लीन करने के दूरगामी उद्देश्य से अग्निपथ योजना की घोषणा की तो उसका बिना सोचे-समझे विरोध शुरू हो गया। सरकार की तो यही मंशा रही कि भारतीय सेना को अधिक से अधिक युवा बनाया जाए। दो-ढाई साल का कीमती समय तो कोरोना निगल गया। सरकार को इस महामारी से पूरी ताकत के साथ लड़ना पड़ा, जिससे देशहित के कई अन्य जरूरी दायित्व पीछे छूट गये। अब सरकार तेजी से जनहित की योजनाओं को साकार करना चाहती है।
    देश के तरुणों और युवाओं में देश सेवा की भावना को जगाने तथा और बलवति बनाने का सशक्त माध्यम है अग्निवीर योजना। इस तरह की योजनाओं को और भी कई देशों में लागू किया जा चुका है। इजराइल, सिंगापुर, ब्रिटेन ऐसे देश हैं, जहां पर बारहवीं के बाद लड़कों तथा लड़कियों को कुछ समय के लिए सेना में भर्ती किया जाता है और वे सेना की सेवा कर गर्वित होते हैं। भारत सरकार भी यही चाहती है, लेकिन यहां तो अग्निपथ योजना को पूरी तरह से जाने समझे बिना ही विरोध के डंडे और लाठियां चलने लगीं। जिन्हें सेना में भर्ती होकर देश के लिए बहुत कुछ करना था वही उपद्रवी बन गये या बना दिये गए, जिससे देश की सैकड़ों करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान हो गया। प्रश्न तो ये भी है कि अपनी बात मनवाने के लिए ऐसी हिंसा क्यों... जो बेहद शर्मनाक होने के साथ-साथ युवा शक्ति के प्रति क्रोध और अविश्वास जगाती है। लोकतंत्र में असहमति और विरोध जताने का अधिकार सभी को है, लेकिन यह तरीका अपराध भी है और अक्षम्य भी है। सरकारी और निजी संपत्ति को बेदर्दी से फूंके जाने, पेट्रोल बम और टायर जलाकर दहशत मचाने के दृश्य देखकर भले ही कुछ लोगों को अच्छा लगता हो, उन्हें अपनी भावी राजनीति की खिचड़ी पकती दिखती हो, लेकिन आमजन को तो बहुत कष्ट और पीड़ा पहुंचती है। दरभंगा में एक निजी बस हुड़दंगियों की भीड़ में एक घंटे तक फंसी रही। उस बस में स्कूली बच्चे खिड़की का बाहर का दृश्य देखकर भय से कांप रहे थे। आठ-नौ साल के ये बच्चे भूखे-प्यासे स्कूल से घर लौट रहे थे। स्कूल बस में बच्चों के भयभीत होने और रोने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती रहीं और संवेदनशील जागरूक भारतीयों को गुस्सा दिलाती रहीं।
    तथाकथित छात्र बेखौफ होकर हाथ में डंडे लहराते हुए आगजनी कर सरकार के विरोध में नारेबाजी कर हंगामा मचाये थे। जलते टायरों के उठते धुएं के कारण बस में कैद बच्चों को सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी। उनका बुरी तरह से दम घुट रहा था, लेकिन हंगामेबाज अपनी जिद और मस्ती में अंधे और बहरे बन खौफ और आतंक मचाते रहे। अदिति के पापा को कैंसर हो जाने के कारण पटना के अस्पताल में भर्ती किया गया था। बीस दिन से अपने पापा का चेहरा देखने के लिए तरस रही अदिति अपने परिजनों के साथ कई घंटों से पाटलीपुत्र स्टेशन पर ट्रेन की राह देख रही थी, लेकिन ट्रेन को तो उपद्रवियों और शैतानों ने रोक रखा था। उनके हाथों में पेट्रोल की बोतलें थीं और उनके चेहरे गमछों से ढके थे। डरी-सहमी दस वर्षीय अदिति ने आगजनी की तस्वीरें लेते अखबार के संवाददाता से धीरे से पूछा, ‘‘अंकल ये कौन लोग हैं, जो ट्रेन में आग लगा रहे हैं?’’ पटना स्टेशन के बाहर एक युवक बच्चों की तरह रोते हुए भीड़ का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा था। उस बेरोजगार गरीब युवक की मोटरसाइकिल दंगाइयों ने फूंक कर राख कर दी थी। ऐसे न जाने कितनी-कितनी अदिति और युवक हैं, जिनको रेलगाड़ियों के पहिये रोक देने के कारण तरह-तरह की असुविधाएं और नुकसान झेलना पड़ा। समय पर इलाज न हो पाने के कारण अपनों को खोना पड़ा। खून-पसीने की कमायी अपनी आंखों के सामने धू...धू कर जलती देखनी पड़ी। इस आतंक के मंजर को दंगाई तो भूल जाएंगे, लेकिन जिनको अपनी तबाही देखनी पड़ी वे तो ताउम्र नहीं भूल पायेंगे। उनके तो जीवन भर आंसू बहते रहेंगे और खून भी खौलता रहेगा। हिंदुस्तान के विख्यात कवि, गज़लकार श्री अशोक अंजुम ने जलती गाड़ियों, रोते-बिलखते बच्चों, जवानों, बूढ़ों की तकलीफ, चिंता और पीड़ा से रूबरू होने के बाद जो व्यंग्य गीत लिखा है उसे आप भी और वो भी पढ़ें और जानें कि देशवासी कितने गुस्से में हैं। यकीनन यह व्यंग्य गीत मनोरंजन के लिए तो नहीं लिखा गया है...
‘‘दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
वक्त है न चूक तू
वाहनों को फूंक तू
यदि कहें हिमायती
आसमान पे थूक तू
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
बन नज़ीर... बन नज़ीर... बन नज़ीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
फोर्स हों बड़ी-बड़ी
घेर कर तुझे खड़ी
तू निडर, न डर, न डर
इम्तिहान की घड़ी
छोड़ तीर, छोड़ तीर... छोड़ तीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
छवि दिखा तू रोष की
यह घड़ी है जोश की
क्या सही है, क्या गलत
बात कर न होश की।
रख न धीर, रख न धीर, रख न धीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर
बस्तियों को लूट ले
आग लगा फूट ले,
खा पुलिस की लाठियां
फिर भले ही टूट ले
ये शरीर... ये शरीर... ये शरीर
दंगावीर... दंगावीर... दंगावीर।’’

    भोले-भाले लोगों को उकसाने, भड़काने तथा दंगे की आग लगाने में और कोई नहीं, नेताओं की खून-खराबा पसंद बिरादरी की बहुत अहम भूमिका होती है, जो कभी स्पष्ट दिखती है, तो कभी छिपी रहती है। कुछ हफ्ते पूर्व कानपुर में हुई हिंसा के दौरान बच्चों ने भी जमकर पथराव और बमबाजी की थी। इसके पीछे का सच तब सामने आया जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदेश पर पुलिस ने गहन जांच शुरू की। कुछ शातिर स्थानीय नेताओं और मोहल्ले के हिंसा पसंद लोगों ने बच्चों को रुपये बांटे थे। इतना ही नहीं मजहबी कट्टरता का पाठ पढ़ाने वालों ने बच्चों को मिठाई और बिरयानी भी बांटी। कश्मीर में पत्थरबाजी करने के लिए आतंकवादी यही खेल खेलते रहे हैं।

Thursday, June 16, 2022

धर्म का धर्म

    मैंने सिद्धू मूसेवाला का पहले कभी नाम नहीं सुना था। मेरी तरह और भी बहुत से लोग होंगे, जिन्हें इस पंजाबी गायक की मौत पर मातम मनाने वाली अथाह भीड़ ने चौंकाया होगा और यह सच भी समझ में आया होगा कि सिद्धू की शोहरत बेमिसाल थी। गायक शुभदीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला की जिन्दगी का सफर बहुत छोटा रहा। मात्र 28 बरस के ही थे, जब उनके लाखों चाहने वालों को उन्हें अंतिम विदायी देनी पड़ी। उनकी हत्या को लेकर तरह-तरह की बातें और सवाल-जवाब हैं। मधुर कर्णप्रिय आवाज के धनी मूसेवाला ने 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में मनसा सीट से कांग्रेस की टिकट पर अपना भाग्य आजमाया था, लेकिन पराजय उनके हिस्से में आयी थी। उनकी अपार लोकप्रियता वोटों में तब्दील नहीं हो पायी। गायक को इस बात का यकीनन गम रहा होगा, लेकिन उन्होंने कभी जाहिर नहीं होने दिया। वे अपने गीत-गानों में ही मस्त और व्यस्त थे। गायन और राजनीति में उनके प्रतिस्पर्धी मौके की तलाश में थे और जैसे ही उन्होंने मूसेवाला को अकेले पाया, गोलियों से भुनवा दिया।
    यह भी कितने-कितने ताज्जुब की बात कि भारत में जेल में बैठकर गैंग चलाये जा रहे हैं। कनाडा-आस्ट्रिया से फिरौती की कॉल की जाती है। मर्डर का आर्डर पाकर किसी मां-बाप की औलाद छीन ली जाती है। अपनी स्वर लहरी में अपने दिल की बात कहने वाले गायक के आखिरी सफर में पंजाब ही नहीं, अन्य राज्यों के भी लाखों प्रशंसक शामिल हुए। 43 डिग्री की झुलसाने वाली गर्मी में क्या पुरुष, क्या महिलाएं, क्या बूढ़े, क्या बच्चे... सब गमगीन हो अश्रु बहा रहे थे। शुभदीप के मनपसंद ट्रेक्टर पर जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो बेगानों में भी अपने किसी बेहद करीबी के असमय चल देने के भाव उमड़ रहे थे। उनका अंतिम संस्कार श्मशान घाट की बजाय गांव में ही उनके खेत में किया गया। सुबह 11 बजे से उमड़ी प्रशंसकों की लाखों की भीड़ ढाई बजे तक संस्कार होने तक टस से मस नहीं हुई। जननायक... गायक बेटे के चाहने वालों का यह अपनत्व और प्यार ही था, जिसने उनके पिता बलकार सिंह को अपनी पगड़ी उतार कर आभार जताने को विवश कर दिया। अंतिम यात्रा से पहले दर्द में डूबे मां-बाप का अपने लाल को दूल्हे की तरह तैयार करना, बार-बार माथा चूमना, उसकी मूच्छों को ताव देना और मां का एकटक निहारना पत्थर से पत्थर दिल को भी अश्रु की तीव्र धारा में बहाता रहा। जिस मां-बाप का जवान बेटा छीन लिया गया हो उन पर क्या गुजरी उसे दुनिया की कोई कलम बयां नहीं कर सकती। सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार के बाद हुए भोग संस्कार को देखकर उनके एक फैन ने आत्महत्या कर ली। भोग का लाइव कार्यक्रम देखते हुए युवक ने कोई जहरीला पदार्थ खाकर मौत को गले लगा लिया। दरअसल वह सिद्धू के दुखी माता-पिता को देखकर तनाव में आ गया। जसविंदर नामक यह युवक मूसेवाला को दिलो-जान से चाहता था। गायक के अंतिम संस्कार के बाद भी एक सच्चे प्रशंसक ने फिनाइल पीकर आत्महत्या की कोशिश की थी। 19 साल का अवतार सिंह अपने आदर्श गायक के दिन-रात गाने सुनता था। यहां तक कि उन्हीं के नाम की टी-शर्ट पहनता था।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन दिनों धर्मांध, गुंडे-बदमाश, हत्यारे और इंसानियत के दुश्मन कुछ ज्यादा ही बेखौफ हो गये हैं। मानसिक तनाव भी लोगों को बुरी तरह से पराजित कर रहा है। कोलकाता फिल्म उद्योग की तीन मॉडल की रहस्यमय मौत की गुत्थी अभी सुलझी भी नहीं थी कि एक और 18 वर्षीय सिने मॉडल ने पंखे पर लटक कर खुद को परलोक पहुंचा दिया। कोई यूं ही मौत को गले नहीं लगाता। यह भी सच है कि किसी की हत्या और आत्महत्या के पीछे भी कोई न कोई वजह तो होती ही है, लेकिन अपनी जान देना और किसी की जान ले लेना अनुचित है। इंसानियत के शत्रु, धार्मिक उन्माद के जन्मदाता आखिर चाहते क्या हैं? देश के अमन-चैन के दुश्मन बन कर उन्हें भले ही संतुष्टि और प्रचार मिल रहा हो, लेकिन भारत माता बेहद अशांत और निराश है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। ऐसा दिखाया जा रहा है कि, हिंदू-मुसलमान आमने-सामने आने को उतारू हैं। जुबानी तलवारें जमकर चल रही हैं। तीखे बयानों के खंजर भी बेखौफ चलाये जा रहे हैं। एक से एक भस्मासुर पैदा हो रहे हैं। बीते दिनों एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने मो.पैगंबर पर ऐसी टिप्पणी कर दी, जिससे देश और विदेश के मुसलमान बुरी तरह से गुस्सा गये और हंगामा बरपा हो गया। यह मानना बेवकूफी होगी कि नूपुर को हंगामा होने का पूर्वाभास नहीं था। नूपुर की असावधानी देश को बहुत भारी पड़ी है। ऐसी भड़काऊ शाब्दिक चालें अक्षम्य हैं, लेकिन यह भी अक्षम्य है कि क्रिया की प्रतिक्रिया दिखाते हुए जहां-तहां पथराव और आगजनी करते हुए आपसी भाईचारे का गला ही घोट दिया जाए। नूपुर ने माफी तो मांग ही ली थी। भाजपा आलाकमान ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से बाहर भी कर दिया, लेकिन फिर भी अश्लील गालियां देने और उनको मौत के घाट उतारने वाले को एक करोड़ का इनाम देने के क्या मायने हैं? यकीनन अपने देश में कुछ लोग हैं, जो इसकी बरबादी के सपने देख रहे हैं। इसमें हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी। जिनके लिए अफवाहें और वैमनस्य फैलाने के लिए सोशल मीडिया एक सहज-सुलभ हथियार है। अगर आप ध्यान से देखें तो यही पायेंगे कि इनकी अपने समाज में भी कोई इज्जत नहीं। मान न मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज पर खुद को मसीहा दर्शाने की कसरत करते रहते हैं। भाईचारे का कत्लेआम इन्हें अपार प्रसन्नता दिलाता है। कहने और दिखाने को तो ये अपने धर्म के वास्ते कुर्बान होने की नाटक-नौटंकी करते हैं, लेकिन इन्हें न तो हिंदू होने और ना ही मुस्लिम होने के धर्म का पता है। यह विडंबना ही है कि जिन देशों में लोकतंत्र का नामोनिशान नहीं, केवल मजहब के नाम पर शासन चलता है वे भी हिंदुस्तान को नसीहतें देने पर उतर आये। दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा करने की सीख नहीं देता। किसी भी धार्मिक ग्रंथ में नहीं लिखा है कि जहां की धरती का अन्न खाओ, वहीं से गद्दारी करो। उसे खून से नहलाने की साजिशें रचते रहो। हर पोथी प्यार-मोहब्बत के पन्नों से भरी है, जिसने इन्हें ध्यान से पढ़ा है वह इंसानियत की हत्या करने की सोच ही नहीं सकता।

Thursday, June 9, 2022

लक्ष्मण रेखा

    अत्यंत दुखद खबर। पिछले महीने ही तो अरविंद से बड़े खुशनुमा माहौल में मुलाकात हुई थी। अरविंद ने अपनी भावी योजनाओं से भी अवगत कराया था। बेटी की शादी को लेकर उसने बहुत कुछ सोच रखा था। बेटे को विदेश में मोटी पगार पर नौकरी मिलने की खुशी में उसने मित्रों को शहर के बड़े होटल में पार्टी दी थी। कहता था कि बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से करूंगा। वर्षों से हमारे परिवार में कोई मंगल-उत्सव नहीं हुआ। अचानक उसकी मौत की खबर ने मेरे पैरोंतले की जमीन हिला दी। श्मशान घाट पर ही उसके रिश्तेदारों से पता चला कि वह पिछले कई महीनों से कैंसर से लड़ रहा था। अरविंद अंधाधुंध सिगरेट पीने का लती था। तंबाकू और खैनी चबाते मैंने जब-जब उसे देखा तो जरूर टोका था, लेकिन कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी उसे अपना शिकार बना लेगी इसकी मैंने दूर-दूर तक कल्पना नहीं की थी। देखने में वह स्वस्थ हट्टा-कट्टा लगता था। कुछ वर्ष पूर्व हमारे मित्र दैनिक अखबार, ‘सुबह-सुबह’ के संपादक उत्कर्ष वर्मा की भी इसी कैंसर से मौत हो गई थी। वह सिगरेट और तम्बाकू के बिना रह ही नहीं पाते थे। उनका कहना था कि तंबाकू खाने-चबाने से उन्हें दिमागी शांति मिलती है। कुछ नया सोचने और लिखने का मूड बनता है। तंबाकू नहीं मिलने पर बेचैन हो जाने वाले उत्कर्ष ने अपने जीवनकाल में सिगरेट, तंबाकू, गुटका, खैनी, सुर्ती आदि खाने से होने वाले शारीरिक और मानसिक नुकसान के बारे में न जाने कितने लेख और संपादकीय लिखे होंगे, लेकिन खुद इनके चंगुल से नहीं बच पाया! लोगों को जब पता चला कि विचारक उत्कर्ष वर्मा तंबाकू के अत्याधिक सेवन से हुए मुंह के कैंसर से चल बसे तो उनकी कथनी और करनी को लेकर बातों पर बातें होती रहीं।
देश के विख्यात दैनिक समाचार पत्र ‘पंजाब केसरी’ के जुझारू संपादक अश्विनी कुमार भी गुटके के शौक के चलते कैंसरग्रस्त हुए और विदेश में इलाज करवाने के बावजूद बच नहीं पाये। ऐसे कितने नाम हैं, जिनकी निराली शान थी, लेकिन तंबाकू, गुटका, सिगरेट उनके ऐसे साथी बने कि परलोक जाने से बच नहीं पाये। यह सिलसिला सतत जारी है। कई डॉक्टर... इंजीनियर, उद्योगपति, सी.ए., साहित्यकार, साधु-संत इसके चक्कर में पड़े नज़र आते हैं, जबकि उन्हें हश्र का भी पता है। सिगरेट और तंबाकू के खिलाफ चलाये जाने वाले विभिन्न जागृति अभियानों में प्रभावी लेक्चर देने वाले एक प्रोफेसर की गले के कैंसर से तिल-तिल मरने की हकीकत को यह कलमकार कभी भूल नहीं सकता। इन महाशय को अपने छात्रों के समक्ष भी धुआं उड़ाने में कोई परहेज नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने वर्षों तंबाकू-गुटके की लत की वजह से कैंसर का जबरदस्त कहर झेला, लेकिन अंतत: कैंसर से जीत कर भी दिखाया। छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में रहते हैं द्वारिका प्रसाद अग्रवाल। जाने-माने साहित्यकार हैं, जिनकी लिखी किताबें पाठकों को पसंद आती हैं और उन्हें जीने की प्रेरक ताकत देती हैं। तीन बार उन पर कैंसर की गाज गिरी। दोनों गाल इसके शिकार हुए। सारे दांतों ने साथ छोड़ दिया, पूरे चेहरे का नक्शा बिगड़ गया। स्पष्ट बोलना मुश्किल हो गया। मौत उनके निकट थी, लेकिन वे साहसी मनोबल की मजबूत डोर से बंधे रहे। कैंसर से वर्षों तक लड़ाई लड़ते हुए अंतत: उन्होंने विजय पायी और आज 75 वर्ष की उम्र में किताबें लिखकर और घंटों भाषण देकर लोगों में जागृति लाने के काम में लगे हैं। खुद को महान दार्शनिक... बुद्धिजीवी दिखाने, दर्शाने के लिए कई कवि, कथाकार, उपन्यासकार भी ये रोग पाले हुए हैं। शराब के घूंट-घूंट के साथ मदमस्त सिगरेट के कश लेने में उन्हें अथाह खुशी मिलती है। उन्हें याद ही नहीं रहता कि यही मौज-मज़ा बाद में जीते जी नर्क के दीदार करवाने वाला है।
    कोरोना काल ने भी कई लोगों को सिगरेट, तंबाकू, गुटखा ने अपनी तरफ आकर्षित किया। नये-नये बीड़ी पीने और खैनी खाने वाले पैदा हुए। यूनीसेफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत के युवाओं में सिगरेट व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन निरंतर बढ़ रहा है। लड़कियों और महिलाओं का इसके चंगुल में गहरे तक फंसते चले जाने और चिंता बढ़ाने वाला है। चिंताजनक सत्य तो यह भी है कि सरकारें तथा लालची उद्योगपति जिस तरह से अपने फायदे के लिए इन नशों को सुलभ करवा रहे हैं उससे ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ के नाम पर लोगों में जागृति लाने की कोशिशें महज ढकोसला ही लगती हैं। एक तरफ सिगरेट, गुटका के विज्ञापनों की झड़ी लगी है तो दूसरी तरफ अस्पतालों में कैंसर रोगियों की कतारें लगी हैं। शाहरुख खान, अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन फिल्मी अभिनेता करोड़ों की कमायी कर रहे हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री ऑफ साइंस के प्रोफेसर राबर्ट प्रॉक्टर, जिन्होंने तंबाकू-सिगरेट से होने वाले नुकसान को गंभीरता से समझा और जाना है, वर्षों से दुनियाभर के लोगों को सचेत करने में लगे हैं। उन्होंने हैरतअंगेज रहस्योद्घाटन किया है कि तंबाकू को सिगरेट में तब्दील करने की टेक्नोलॉजी से अधिक खतरनाक दुनिया में अब तक कुछ नहीं बना। सिगरेट के जरिए तंबाकू का धुआं गले में नहीं लगता और लोग इसे फेफड़े तक खींचते हैं। विभिन्न कंपनियों में लाइट, फिल्टर्ड और सुगंधित सिगरेट बनाने की होड़ मची है। सिगरेट जितनी लाइट है, उतनी ही ज्यादा फेफड़ों को तबाह करती है। सच तो ये है कि सिगरेट तबाही और भ्रष्टाचार की उपज है। इस जानलेवा खेल में वैज्ञानिकों और विज्ञापनों का भरपूर योगदान है। जब धन कमाने का इतना लालच नहीं था, मशीनों ने भी मानव के श्रम पर सेंध नहीं लगायी थी तब एक व्यक्ति अधिक से अधिक 200 सिगरेट बना पाता था, लेकिन आज एक मशीन ही एक मिनट में बीस हजार सिगरेट बनाती है। इनमें सायनाइड, रेडियोएक्टिव आइसोटोप और अमोनिया जैसे करीब 600 किस्म के ज़हरीले पदार्थ मिलाकर बाजार में धड़ाधड़ खपाया जाता है। यदि सरकारें इस मौत के सामान को बनाने और बेचने का लाइसेंस देना बंद कर दें तो लाखों लोगों की जान बच सकती है। सरकारें अंधी नहीं। उन्हें भी खबर है कि हर वर्ष छह लाख करोड़ सिगरेटों का धुआं करोड़ों लोगों को मौत के हवाले कर रहा है। मात्र सिगरेट निर्माण के लिए ही 60 करोड़ पेड़ों की बलि चढ़ायी जा रही है। तंबाकू की खेती से लेकर सिगरेट बनाने की प्रक्रिया में जो जलवायु में बदलाव हो रहा उससे कितनी जानें जा रही हैं उसका तो कोई हिसाब ही नहीं है। अंतिम सच यही है कि, तंबाकू का सेवन और धूम्रपान एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। जिसने भी नशा करने की लक्ष्मण रेखा पार की उसने देर-सबेर मुंह, गले, फेफड़े, गुर्दे के कैंसर एवं अन्य कई बीमारियों की सज़ा भुगती है। ब्रिटेन के एक शहर में प्रशासन ने धूम्रपान पर अंकुश लगाने के लिए घोषणा की है कि जो भी स्मोकिंग से तौबा करेगा उसे बीस हजार रुपये दिए जाएंगे। अपने देश के नागरिकों को इस जानलेवा लत से दूर रखने के लिए करोड़ों का बजट पास किया गया है।

Thursday, June 2, 2022

आदमखोर

    25 जून, 2022 की दोपहर से ही न्यूज चैनलों ने बताना प्रारंभ कर दिया था कि कुछ ही देर बाद आतंकवादी यासीन मलिक की किस्मत का फैसला आने वाला है। करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद खूंखार हत्यारे को सुनायी जाने वाली सज़ा पर सभी की निगाहें लगी थीं। सभी यही दुआ कर रहे थे कि इस बर्बर जानवर को फांसी से कम की सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। उसके गुनाहों की बड़ी लंबी फेहरिस्त है। 1999 में कश्मीर घाटी में एयरफोर्स के चार लोगों की हत्या, कश्मीरी पंडितों के क्रूरतम नरसंहार और उन्हें अपनी ही जड़ों और ज़मीन से चले जाने को मजबूर करने वाले इस राक्षस ने खुद को बचाने के लिए मुखौटे पर मुखौटे लगाकर मान-सम्मान और सहानुभूति पाने के लिए न जाने कितनी चालें चलीं। गिरगिट की तरह रंग बदलता रहा, लेकिन जिन्हें इसने गहरे जख्म दिए, जीते-जागते इंसानों को लाशों में बदला, उनके परिजन इसे कैसे माफ कर सकते हैं! देशभर के विभिन्न न्यूज चैनलों पर स्क्वॉर्डन लीडर रवि खन्ना की उम्रदराज हिम्मती पत्नी निर्मला खन्ना अपने दर्द की परतें खोल रही थीं और देश के लाखों लोगों की तरह मेरी आंखें बार-बार भीग रही थीं और खून भी खौल रहा था। 25 जनवरी, 1990 को श्रीनगर के एयरफोर्स बेस जा रहे रवि खन्ना समेत तीन अन्य वायुसेना अधिकारियों को यासीन मलिक ने अन्य आतंकियों के साथ मिलकर गोलियों से भून दिया था। देश के नायक शहीद रवि खन्ना की पत्नी निर्मला खन्ना का बस यही कहना था कि उन्हें तो तभी शांति मिलेगी, जब इस आदमखोर दरिंदे को फांसी के फंदे पर लटकाये जाने की सज़ा सुनायी जाएगी। इसने मेरे पति पर 28 गोलियां बरसायीं और उनकी जान ले ली। मैं अपनी आखों देखा वो रक्त से सना मंज़र कैसे भूल सकती हूं? मुझे अफसोस यह भी है कि, यासीन ने उन्हें एक बार मारा, लेकिन हुकुमतें मुझे 32 साल से मारती चली आ रही हैं। सोच कर ही हैरत होती है कि, मेेरे पति को मारने के बाद भी वह अभी तक जिन्दा है! जब तक खून का बदला खून नहीं, तब तक मैं चैन से नींद नहीं ले पाऊंगी, चाहे कुछ भी हो जाए मुझे अंतिम सांस तक उस दिन का इंतजार करते रहना है, जब इसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा।
    शाम होते-होते तक जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी उत्पाती, शैतान, हत्यारे यासीन मलिक को टेरर फंडिग सहित अन्य मामलों में दस लाख रुपये के जुर्माने के साथ उम्र कैद की सज़ा सुनायी गई तो कई लोगों की तरह मुझे भी घोर निराशा हुई। देश के करोड़ों भारतीयों की तरह एनआईए ने भी दरिंदे के लिए मौत की सज़ा की मांग की थी। विशेष जज प्रवीण सिंह ने यूपीए और आईपीसी के अपराधों में उसे अलग-अलग सज़ा सुनाई। देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, आतंकवाद के लिए धन जुटाने, आपराधिक साजिश रचने और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहे इस खूंखार जानवर को उम्रकैद के अलावा 10 मामलों में दस-दस साल की सज़ा भी सुनाई गई। यह सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। यानी उसे अंतिम सांस तक जेल में ही सड़ना होगा। जम्मू कश्मीर का यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें किसी कश्मीरी आतंकवादी को हत्या के मामले में उम्र कैद हुई है। 2001 में अदालत ने कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता हृदय नाथ वांचू के कत्ल के मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता और दुख्तरान-ए-मिलत की सर्वेसर्वा दरक्शा अंद्राबी के पति डॉक्टर कासिम फक्तू को मरते दम तक जेल में रहने की सज़ा सुनाई थी। तभी से दोनों पति और पत्नी जेल में अपने पापों का दंड भुगत रहे हैं।
    उम्र कैद की सज़ा ने यासीन मलिक के चेहरे पर चमक ला दी। उसे इस कदर राहत महसूस हुई कि, उसने फैसला सुनने के तुरंत बाद अपने वकील को गले लगा लिया। तय है कि उसे भी फांसी के फंदे पर लटकाये जाने की चिंता खाये जा रही थी, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी? कई हंसते-खेलते घर-परिवार उजाड़ चुके यासीन पर अभी भी अदालत में कई संगीन मुकदमें चल रहे हैं, जो निर्मला खन्ना की खून का बदला खून की मांग को साकार करने को बेताब हैं। आतंकी यासीन को उम्र कैद की सज़ा मिलने पर पाकिस्तान में मातम छा गया। कश्मीर में आतंकी वारदातों के लिए फंडिग और तबाही का सामान उपलब्ध कराने वाले पाकिस्तान के शासकों और विभिन्न नेताओं के तन-बदन को आग लग गई। वे एकजुट होकर चीखते-चिल्लाते रहे कि यह सज़ा बनावटी आरोप के आधार पर सुनायी गई है। हमारा यासीन तो बेगुनाह है। उसे सभी आरोपों से मुक्त कर खुली हवा में सांस लेने को छोड़ दिया जाए। यासीन मलिक की पैंतरेबाजी और धूर्तता का भी जवाब नहीं। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली की तर्ज पर मदमस्त इस दानव को असंख्य हत्याएं करने के बाद स्वयं को महात्मा गांधी का सच्चा अनुयायी घोषित करने में जरा भी लज्जा नहीं आई। उसे लग रहा था कि देशप्रेमी भारतीयों की याददाश्त बहुत कमजोर है। गांधीवादी की छवि उसके गुनाहों पर ऐसा पर्दा डालने में सहायक होगी, जिससे भारत का कानून भी उसके प्रति नर्मदिली दिखाने को मजबूर हो जाएगा। पहले की सरकारें भी उसको पुचकारती और आदर सम्मान देती रहीं, जैसे वह वाकई गांधी का सच्चा भक्त और एकदम भला मानुष हो। उसने अपने जीवन में कोई गुनाह ही न किया हो। सच्चे मन से देखा और सोचा जाए तो भारत माता के अमन-चैन के दुश्मनों का तो हर किसी को तिरस्कार करना चाहिए, लेकिन हमारे ही देश में ऐसे कुछ लोग हैं, जिनका राष्ट्रद्रोहियों को फटकारने और अवहेलना करने का मन ही नहीं होता। उनके अंदर सतत कोई और ही खिचड़ी पक रही होती है। देश की राजधानी दिल्ली में सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुई हिंसा में जिस शाहरूख पठान ने पुलिस पर बंदूक तान दी थी, वह जब बीते हफ्ते पैरोल पर अपने बीमार पिता को देखने घर पहुंचा तो उसके पड़ोसी खुशी से झूम उठे। उन्होंने उसकी हौसला अफजाई के लिए जुलूस भी निकाला। फटाखे भी फोड़े। जमकर नारेबाजी भी की। हमारे समाज का यह जो चेहरा है यकीनन बहुत डरावना तो है ही, गहन चिंता में भी डालने वाला है। आतंकियों की आरती गाने वाले भूल जाते हैं कि उनकी यह उत्साह और अक्षम्य गलती उन्हीं के माथे पर कलंक का अमिट टीका लगाती है और उस भरोसे का कत्ल करती है, जो वर्षों की तपस्या के बाद बना है।