Thursday, November 24, 2011

लीला की लीला

मंत्रियों, सांसदों और विधायकों से यह उम्मीद तो कतई नहीं की जाती कि वे अपराधों को अंजाम देने के मामले में बडे-बडे अपराधियों को भी मात देने लगें। पर हो तो कुछ ऐसा ही रहा है। राजस्थान में एक केबिनेट मंत्री की नीच हरकतें सामने आने के बाद यह भी माना जाने लगा है कि हमारे कई जनप्रतिनिधी ऐसे हैं जो शर्म और नैतिकता को बेच कर बाजार में नंगे होने से भी नहीं कतराते। अय्याशियों के समंदर में डुबकियां लगाने से पहले इनके मन में किं‍चित भी यह विचार नहीं आता कि इनका असली चेहरा जब सामने आयेगा तो उस जनता पर क्या बीतेगी जिसने उन्हें अपना कीमती वोट देकर विधायक और सांसद बनने का सुनहरा मौका बख्शा है। दरअसल इस मुल्क के कई नेता और नौकरशाह चरित्रहीनता की तमाम सीमाएं लांघ चुके हैं। कुछ का चेहरा बेनकाब हो जाता है और बहुतेरे अपने-अपने मुखौटों में कैद रहते हैं। जब पर्दाफाश होता है तो लोग माथा पीटते रह जाते हैं।उम्रदराज कांग्रेसी नेता महिपाल मदरेणा पर यह कहावत सटीक बैठती है कि कुत्तों को कभी खीर हजम नहीं होती। मदरेणा राजस्थान के केबिनेट मंत्री थे। नैतिकता का दामन थामे रहते तो निश्चय ही उनका भविष्य उज्जवल होता। पर खुद पर संयम नहीं रख पाये और अर्श से फर्श पर पहुंच गये। उनके पास जनस्वास्थ्य विभाग था। नर्स भंवरी बाई उनके पास अपने तबादले के सिलसिले में पहुंची तो वे उसकी समस्या का समाधान करने की बजाय उसकी खूबसूरती और कातिल अदाओं में खोकर रह गये। भंवरी बाई भी खेली-खायी नारी थी। राजनीति के क्षेत्र में भाग्य आजमाने की मंशा भी उसने पाल रखी थी। मदरेणा से मिलने के बाद उसे यकीन हो गया कि यह शख्स उसे कांग्रेस के गढ में कोई-न-कोई जगह जरूर दिलवा देगा। उसने हल्का-सा इशारा पाते ही मंत्री जी को गले लगा लिया और उनकी हर चाहत पूरी कर दी। वासना के पुजारी मदरेणा ने भंवरी के साथ शारीरिक रिश्ते बनाने से पहले यह भी नहीं सोचा कि वह उसकी लडकी की उम्र की है। उसकी एक अच्छी-खासी बीवी भी है जो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती आयी है।मंत्री से मिलने के बाद भंवरी की तकदीर बदल गयी। उसने अपनी पहचान का दायरा इतना विस्तृत कर लिया कि राजस्थान के और भी कुछ मंत्री और विधायक उसके करीबियों में गिने जाने लगे। नौकरशाहों को भी उसने अपने कामुक जिस्म का स्वाद चखाया और अपना काम निकलवाया। भंवरी के कहने पर कई ठेकेदारों को मनचाहे सरकारी ठेके मिलते चले गये। भंवरी के पास आलीशान घर और कारें भी आ गयीं। हवाई जहाज की यात्राएं भी उसके लिए रोजमर्रा की बात हो गयीं। वाकई भंवरी को वो सब मिल गया जो उसने चाहा था। पर ऐसे रास्तों पर चलने वालों के लिए खतरे भी बहुत होते हैं। फिर भंवरी तो अति महत्वाकांक्षी थी। राजस्थान की विधायक बन मंत्री बनना चाहती थी। पर उसे यह पता नहीं था कि जिस्मखोर मंत्री-संत्री जिनके साथ बिस्तरबाजी करते हैं, उन्हें महज सब्जबाग ही दिखाते रहते हैं। चालाक भंवरी ने सीडी बनाने-बनवाने से लेकर क्या-क्या नहीं किया पर आखिरकार उसका भी वही हश्र हुआ जो अभी तक राजनीति के गलियारों में चहल-पहल करने वालियों का होता आया है। भंवरी गायब है। राजस्थान सरकार की चूलें हिल गयी हैं।देहभोगी अय्याश मंत्री महिपाल मदरेणा को अपना चेहरा दिखाने में शर्म महसूस हो रही है। कल तो जो लोग साये की तरह साथ थे, आज कन्नी काट चुके हैं। हां उनकी पत्नी लीला मदरेणा जरूर उनके साथ हैं। वे पढी-लिखी महिला हैं। उन्हें लगता है कि उनके पति परमेश्वर को फंसाया गया है। मीडिया तिल का ताड बना रहा है। उनके शौहर ने भंवरी से जबरन बलात्कार तो नहीं किया। सबकुछ रजामंदी से हुआ है तो फिर शोर-शराबा किस लिए? पुराने जमाने में राजा-महाराजा भी तो कई-कई स्त्रियों को भोगते थे और मस्त रहते थे। उनके पति ने कोई नया काम तो नहीं किया है। लीला अपने पथभ्रष्ट पति को जिस तरह से बचाने और उसके कर्मकांड को उचित दर्शाने पर तुली हैं उससे उनकी कलुषित मानसिकता का पता चलता है। जो औरत अपने पति को इधर-उधर मुंह मारने की छूट देने की हिमायती है वह खुद कितनी दूध की धुली होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। हम तो बस यही कहेंगे कि अगर सभी नारियां लीला जैसी हो जाएं तो पुरुषों को भटकने और पतित होने तथा नारियों की इज्जत को खतरें में पडने से भगवान भी नहीं बचा सकता...।

Thursday, November 17, 2011

यह कैसा मज़ाक है?

कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी ने कई दिनों बाद अपनी चुप्पी तोडी। वे मानती हैं कि भाषणबाजी से भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं हो सकता। अपने भाषण में उन्होंने टीम अन्ना को भी नहीं बख्शा। जहां-तहां बोलने के लिए खडे हो जाने वाले अन्ना के साथियों को अपने अंदर झांकने की सलाह भी थकी-हारी सोनिया ने दे डाली। पर यहां कौन किसी की सीख और सलाह पर चलता है। सभी खुद को ज्ञानी-ध्यानी समझते हैं। हर राजनेता को यही लगता है कि वही हिं‍दुस्तान की बागडोर संभालने का असली हकदार है। दूसरे इसे बेच खा रहे हैं और बेच खाएंगे। जिनके पास देश की सत्ता है वो उसे जकडे और दबोचे हुए हैं और दूसरे छीनने-झपटने को बेताब हैं। हर तरफ यही लडाई चल रही है। यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के ६४ साल गुजर जाने के बाद भी देश के प्रदेश बिहार, उत्तर प्रदेश के लोगों को रोजगार की तलाश में जहां-तहां भटकना पडता है। मायानगरी मुंबई में लाखों बेरोजगारों को पनाह मिलती आयी है। कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाले हर मेहनतकश को यह नगरी अपने में समाहित कर लेती है और इतना कुछ दे देती है कि वह यहीं का होकर रह जाता है। पिछले दिनों कांग्रेस सांसद संजय निरुपम ने जब यह कहा कि मुंबई उत्तर भारतीयों की बदौलत ही चलती-फिरती और सांस लेती है तो शिवसेना वालों ने हंगामा खडा कर दिया था। निरुपम से कई कदम आगे बढते हुए कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी मिशन की शुरुआत करते हुए जब जनता को संबोधित करते हुए कहा कि तुम लोग कब तक महाराष्ट्र जाकर भीख मांगोगे और कब तक पंजाब में जाकर मजदूरी कर अपना खून-पसीना बहाते रहोगे तो जैसे बवंडर ही मच गया। सब के सब बौखला उठे। राहुल गांधी युवा हैं और अपनी माताश्री की तरह हर बार किसी और का लिखा भाषण नहीं पढते। उनके अंदर का एंग्री यंगमैन बेकाबू हो जाता है। अच्छे-अच्छे धुरंधर वक्ता भावावेश में अपने शब्दों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। राहुल गांधी तो नेता हैं। भीड को देखकर अपना आपा खो बैठना नेताओं की आदत में शुमार होता है। पर राहुल के मुंह से निकले 'भीख' शब्द ने तो जैसे हंगामा ही बरपा दिया। इस बार भी सबसे ज्यादा मिर्ची शिवसेना को ही लगी। उसकी तरफ से प्रतिक्रिया आयी कि जिस उत्तर प्रदेश ने नेहरू गांधी परिवार को सत्ता की भीख दी उन्हीं का वारिस यूपी वालों को 'भिखारी' कह रहा है। रेलवे की नौकरी के लिए साक्षात्कार देने गये उत्तर भारतीयों पर डंडे और मुक्के चला चुकी पार्टी के नेताओं ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश से मुंबई में कोई भीख मांगने नहीं आता। हर कोई मेहनत करके रोजी-रोटी कमाता है। राहुल गांधी ने मेहनत कश देशवासियों का अपमान किया है। देश और प्रदेश के हर कांग्रेस विरोधी नेता को राहुल गांधी पर निशाना साधने का जैसे मौका मिल गया। न्यूज चैनलों पर पक्ष और विपक्ष के नेता आपस में ऐसे भिड गये जैसे किसी तमाशे को अंजाम दिया जा रहा हो। ऐसे तमाशों का अब आम जनता पर कोई फर्क नहीं पडता। उसका सिरदर्द बढाने के लिए ढेरों समस्याएं हैं जो राजनेताओं और सत्ता के निर्मम खिलाडि‍यों की देन हैं।यह भी गौर करने वाली बात है कि ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश जब यह फरमाते हैं कि भारत सबसे गंदा देश है तो कहीं कोई हलचल नहीं होती। किसी का मुंह नहीं खुलता!राहुल गांधी जब यह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के हालात देखकर उन्हें गुस्सा आता है तो न जाने कितने लोगों का खून इस सवाल के साथ खौल उठता है कि देश पर पचास साल से ज्यादा समय तक राज करने वाली युवराज की कांग्रेस ने इस प्रदेश को खुशहाल बनाने के लिए आखिर ऐसा क्या किया है कि आज उन्हें यहां की बदहाली पर पीडा हो रही है? केंद्र में उनकी सत्ता है और देश के कैसे हालात हैं क्या उनसे राहुल वाकिफ नहीं हैं? वो जमाना लद गया जब लोग हर नेता पर यकीन कर लेते थे। खुद नेताओं ने ही नेतारुपी जीव की साख लगभग खत्म करके रख दी है। ऐसे में राहुल पर विश्वास करने वाले कम और अविश्वास करने वाले ज्यादा हैं। हर समझदार शख्स जान-समझ रहा है कि राहुल गांधी की नजर भी अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों पर टिकी है। यहां की जीत ही उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा सकती है। उत्तर प्रदेश ने हमेशा नेहरू और गांधी खानदान को सत्ता और ताकत बख्शी पर इस प्रदेश का चेहरा नहीं बदल पाया। कांग्रेस ने यदि यूपी और बिहार को औद्योगिक राज्य बनाया होता तो यहां के लोगों को कहीं भी जाने की जरूरत न पडती। बाद में इन प्रदेशों की जिन्होंने भी सत्ता संभाली उन्होंने केवल और केवल अपनी तथा आने वाली दस-बीस पुश्तों के लिए सभी इंतजाम कर लिये। बेचारी आम जनता वहीं की वहीं रही। उसे अपना पेट भरने के लिए मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों की खाक छाननी पडी। यह सिलसिला कहां और कब जाकर थमेगा कोई नहीं जानता। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से लोगों का मोहभंग होने के पश्चात समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिं‍ह जब मुख्यमंत्री बने थे तो कुछ उम्मीद जागी थी। समाजवादी समाज के साथ न्याय करेगा और हर प्रदेशवासी के हिस्से में खुशहाली आयेगी। पर कुछ भी नहीं बदला। सिर्फ मुलायम सिं‍ह और उनका परिवार अरबों-खरबों में खेलने लगा। अमर सिं‍ह जैसे दलालों ने जीभर कर चांदी काट ली। भारतीय जनता पार्टी को भी मौका मिला पर वह भी कोई कमाल नहीं दिखा सकी।बहुजन पार्टी की कर्ताधर्ता मायावती की माया तो अपरंपार है। उन्हें मूर्तियां बनवाने और लगवाने से ही फुर्सत नहीं मिलती। वे अपनी करनी से इतना घबरायी हुई हैं कि अपने जीवनकाल में ही अपनी प्रतिमाएं स्थापित किये जा रही हैं। हाथ आये मौके को वे खोना नहीं चाहतीं। दलितों की तथाकथित मसीहा जनता की सेवा किये बिना ही अमर हो जाना चाहती हैं। वे इस दंभ में हैं कि उन्हें उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटाना किसी भी राजनीतिक पार्टी के बस की बात नहीं है। बांटो और राज करो के खेल में भी गजब की महारत हासिल कर चुकी हैं वे। राहुल गांधी बहन जी के भ्रम की धज्जियां उडाने पर उतारू हैं। वे उन पर केंद्र से मिलने वाले फंड को हडप कर जाने से लेकर और न जाने कितने आरोप जडते हैं और वे सुने को अनसुना कर उनका मजाक उडाने लगती हैं। दरअसल इन दिनों देश में हर तरफ ऐसा ही कुछ चल रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि देश का भी मजाक उडाया जा रहा है?

Thursday, November 10, 2011

उम्रदराज़ नेता की रुलायी

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को समझ पाना कतई आसान नहीं है। उनके आसपास रहने वालों का भी यही मानना है। लालकृष्ण आडवाणी, जिन्होंने मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोडी थी, वे भी अंदर ही अंदर पछता रहे होंगे। पर मुंह से कुछ कह नहीं पाते। राजनीति का यही दस्तूर है कि चुप्पी साधे रहो। हर कोई अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हो सकता जो दिल की बात फौरन उजागर कर दे। नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सीख सिर्फ और सिर्फ अटल जी ही दे पाये थे। आडवाणी ने तो चुप्पी ही साध ली थी। चुप्पी में कहीं न कहीं समर्थन भी छिपा रहता है। राजनीति का यह अघोषित नियम है कि यदि अपनी जडे जमाये रखनी हैं तो दूसरे की खोदने की कतई हिमाकत न करो। जिन्होंने भी इस दस्तूर को निभाया वे सदैव मजे में रहे हैं।पिछले कई दिनों से मीडिया में यह खबरें आम थी कि नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के रिश्तों में खटास आ चुकी है। जबसे आडवाणी ने प्रधानमंत्री बनने की मंशा दर्शायी है तभी से मोदी खफा-खफा चल रहे हैं। दरअसल मोदी सभी को धकिया कर खुद देश के पी.एम. बनना चाहते हैं। भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर निकली लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से नरेंद्र मोदी के असहमत और रुष्ट होने की न जाने कितनी खबरें मीडिया की सुर्खियां बनीं। पर जब रथ यात्रा मोदी के गुजरात में पहुंची तो उसका वो स्वागत हुआ जिसकी उम्मीद खुद रथयात्री ने भी नहीं की थी। हेलीकाप्टर से पुष्पवर्षा करवा आडवानी को गदगद कर देने वाले मोदी ने जब यह कहा कि 'आडवाणी का पसीना रंग लायेगा और कमल खिलेगा' तो लोग अपनी-अपनी सोच के अनुसार अर्थ तलाशते रहे। आडवाणी के मंच पर पहुंचते ही जैसे नजारा बदल गया। मोदी और आडवाणी के बीच की खाली पडी सिं‍हासननुमा कुर्सी ने दोनों दिग्गजों के बीच की दूरी को उजागर कर ही दिया। तथाकथित भावी प्रधानमंत्रियों की 'खटास' को मीडिया में छाना ही था पर नरेंद्र मोदी बौखला उठे। बोले, मीडिया को तो चटपटी खबरें परोसने की आदत ही पड गयी है।वैसे इस खबर में चटपटा कुछ भी नहीं था। जैसा देखा गया था, वैसा ही छापा और बताया गया था। जो लोग मोदी की फितरत से वाकिफ हैं उनका यह कहना है कि मोदी जानबूझ कर आडवाणी की बगल में नहीं बैठे क्योंकि उन पर हमेशा विवादास्पद खबरें पैदा करने और खबर बनने का जूनून सवार रहता है। इसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखते हैं। उन्हें क्रुर और कठोर शासक मानने वाले भी ढेरों हैं। सत्ता के लिए मोदी वो सब कुछ कर सकते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मोदी के अतीत के साथ जुडे किस्से असंख्य भारतीयों को आज भी भयग्रस्त कर देते हैं। फिर भी उन्हें चाहने और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखने के इच्छुकों की संख्या भी कम नहीं है। देश और दुनिया के कई जाने-माने उद्योगपति उन्हें देश के शीर्ष सिं‍हासन पर विराजमान करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाते रहते हैं। यह सच्चाई कइयों को डराये हुए है। आडवाणी भी उनमें से एक हैं। आडवाणी को लौहपुरुष भी कहा जाता है। वे अपने सिद्घांतों पर हमेशा भी अडिग रहते हैं। आदमी के हर रूप की उन्हें पहचान है। पर लगता है कि वे मोदी को नहीं पहचान पाये। गुजरात में जब मोदी उनकी प्रशंसा कर रहे थे तब वे चिं‍तक और विचारक की मुद्रा में मंच पर आसीन चेहरों के भाव पढने में तल्लीन थे।यात्रा से हल्का-सा अवकाश निकाल उन्होंने अपना ८५ वां जन्मदिन दिल्ली में मनाया। जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में भी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की चर्चा छिड गयी। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिं‍ह ने फरमाया कि जब मैं अखबारों में आडवाणी जी के प्रधानमंत्री पद की दौड में शामिल होने की खबरें पढता हूं तो मुझे दुख होता है। क्या आडवाणी के कद का नेता कभी खुद को प्रधानमंत्री बनाने का दावा पेश कर सकता है? वे तो इस पद के लिए सबकी स्वाभाविक पसंद हैं। वहां पर उपस्थित दूसरे भाजपाई नेताओं का भी यही मत था कि आडवाणी की नेतृत्व क्षमता का कोई सानी नहीं है। आडवाणी की इतनी प्रशंसा की गयी कि वे भावविभोर हो उठे और उनके आंसू छलक पडे। आंसू सबने देखे पर इन आंसुओं के पीछे का दर्द किसी ने भी नहीं देखा। कोई देख भी नहीं सकता। खुशी और पीडा के अश्रुओं में बहुत फर्क होता है। उम्रदराज नेता यूं ही नहीं रोया करते। इसके पीछे बहुत गहरा दर्द और अपनों के विश्वासघात की पीडा भी छिपी होती है। आडवाणी भी अपनी पीठ के पीछे वार करने वालों को जानते तो हैं पर खामोश हैं। वे ये भी चाहते हैं कि उनके हितैषी ही उनकी राह के कांटें को हटाएं। तभी बात बनेगी। आज की तारीख में लालकृष्ण आडवाणी की राह का कांटा कौन है यह तो आप सब को पता है...। जोर लगाते रहते हैं। यह सच्चाई कइयों को डराये हुए है। आडवाणी भी उनमें से एक हैं।

Thursday, November 3, 2011

मगरमच्छों की भीड में एक चेहरा ऐसा भी!

उद्योगपति मुकेश अंबानी ने मुंबई में पांच हजार करोड की गगनचुंबी इमारत तानी तो धन्ना सेठ विजय माल्या को भी जोश आ गया। उन्होंने भी दारू की कमायी से जुटायी अरबों-खरबों की दौलत का जलवा दिखाने के लिए अंबानी की टक्कर की सर्वसुविधायुक्त बिल्डिंग खडी करनी शुरू कर दी। इस देश में ऐसे नजारे आम हैं। धनपति एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए भी कुछ इसी तरह से अपनी धन-दौलत और ताकत का प्रदर्शन करते रहते हैं। वे यह भी याद नहीं रखते कि इस देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी और बदहाली से जूझ रही है। करोडों भारतीय ऐसे हैं जिन्हें टूटी-फूटी झोपडी तक नसीब नहीं है। स्वार्थी और बेहया उद्योगपतियों की भीड में एक शख्स हमेशा अलग खडा नजर आता है जिसे बार-बार नमन करने को जी चाहता है। विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी एक ऐसी हस्ती हैं जो दोनों हाथों से कमायी गयी अथाह दौलत को अपने ऐशो-आराम पर लुटाने की बजाय देशवासियों के हित में खर्च करना अपना कर्तव्य और धर्म मानते हैं।अजीम प्रेमजी ने ऐलान किया है कि अगले वर्ष वे देश के सभी जिलों में दो-दो ऐसे स्कूल खोलने जा रहे हैं जिनमें गरीबों के बच्चों की मुफ्त में शिक्षा-दीक्षा उपलब्ध करायी जाएगी। उनकी इस घोषणा और पहल की प्रतिस्पर्धा करने के लिए कोई भी उद्योगपति सामने नहीं आया है। दरअसल अंबानी, माल्या जैसे घोर मतलबपरस्त, अय्याशों के मुंह पर प्रेमजी ने एक तमाचा जडा है जिसे हम और आप तो देख-समझ रहे हैं पर देश को लूटने-खसोटने वाले औद्योगिक घराने जानबूझकर अनाडी और नासमझ बने रहना चाहते हैं। आजादी का असली फायदा तो देश के चंद औद्योगिक घरानों ने ही उठाया है। देश की सबसे बडी बीमारी भ्रष्टाचार के भी असली पोषक यही हैं। सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, संत्रियों को चारा डालने की जो महारत इन्हें हासिल है, उसका भी कोई सानी नहीं है। यह सच्चाई जगजाहिर है कि अधिकांश उद्योगपति 'चंदे' और 'फंदे' की बदौलत सरकार में अपनी पैठ रखते हैं। सरकार इन पर हर तरह से मेहरबान रहती है। इन्हें अरबों-खरबों की जमीनें पानी के भाव मुहैय्या कराने के साथ-साथ मनचाही सुविधाएं उपलब्ध करवाने में कहीं कोई कमी नहीं की जाती। यहां तक करों में भी अपार छूट दी जाती है। यह मनमाना मुनाफा कमाते हैं और उस मुनाफे का कुछ हिस्सा राजनेताओं और नौकरशाहों तक पहुंचाने के बाद बाकी बचे सारे धन को अपने बाप की जागीर समझने लगते हैं। इतिहास गवाह है कि देश में होने वाले तमाम बडे-बडे घोटालों में उद्योगपतियों राजनेताओं और अफसरों की मिलीभगत रही है। यह लोग कमायी का कोई भी मौका नहीं छोडना चाहते। इसलिए इन्होंने शिक्षाजगत को भी नहीं बख्शा। देश में जहां-जहां राजनेताओं और उद्योगपतियों के द्वारा स्कूल कॉलेज भी चलाये जा रहे हैं जहां पर शिक्षा कम और धंधा ज्यादा होता है। शिक्षण संस्थाओं के नाम पर सरकारी जमीनें हथिया ली जाती हैं और फिर तरह-तरह से लूटमार का सिलसिला शुरू कर दिया जाता है। हाल ही में महाराष्ट्र के विभिन्न सरकारी मान्यता प्राप्त स्कूलों की जांच की गयी तो ऐसे-ऐसे फर्जीवाडे सामने आये कि प्रबुद्धजनों ने माथा पीट लिया। सनद रहे कि देश के इस महाप्रदेश में अधिकांश स्कूल और कॉलेज व्यापारियों के साथ-साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं तथा उनके चेले-चपाटों के द्वारा संचालित किये जाते हैं। तथाकथित देशसेवकों के स्कूलों में छात्रों की संख्या बढा-चढा कर दर्शायी जाती है। जिस स्कूल में पचास छात्र पढते हैं वहां पर पांच-सात सौ छात्रों का उपस्थित रहना और पढना-लिखना दर्शाकर शासन के साथ धोखाधडी की जाती है। मुंबई में लगभग चालीस हजार, नागपुर में अस्सी हजार, पुणे में दो लाख, कोल्हापुर में एक लाख, रायगढ में पचास हजार, नांदेड में साठ हजार और जलगांव के विभिन्न स्कूलों में लगभग पचास हजार फर्जी छात्रों के होने का पर्दाफाश होने के बाद भी अभी और आंकडों का आना बाकी है। महाराष्ट्र में पचास लाख फर्जी छात्रों के होने का अनुमान है। इस धोखाधडी की एक खास वजह यह भी है कि महाराष्ट्र सरकार प्रत्येक छात्र के नाम पर कम से कम सौ रुपये प्रतिमाह की नगद सहायता प्रदान करने के साथ-साथ और भी कई तरह के फंड उपलब्ध कराती है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिक्षा की आड में कितना बडा फरेब और घोटाला किया जा रहा है। यह ऐसी ठगी है जिसे सफेदपोश बेखौफ होकर अंजाम देते चले आ रहे हैं। जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के इलाके में ही ऐसे फर्जी स्कूल चल रहे हों तो फिर दूसरों को तो खुद-ब-खुद शह मिल ही जाती है। हालांकि मगरमच्छों के लिए ऐसी लूटमारें कोई खास मायने नहीं रखतीं।मेडिकल कॉलेज, इंजिनियरिंग कॉलेज आदि में जो लाखों-करोडों का गुप्त डोनेशन लिया जाता है उसका आंकडा तो बेहद चौंकाने वाला है। यही अंधाधुंध कमायी ही नेताओं और व्यापारियों को स्कूल कॉलेज खोलने को मजबूर करती है। यह लोग अपनी-अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं और शिक्षा का भट्ठा बैठता चला जाता है। गरीबों के बच्चे तो स्कूलों का मुंह तक नहीं देख पाते। कॉलेज तो बहुत दूर की बात है। अजीम प्रेमजी इस सच से वाकिफ हैं। इस खतरनाक सच ने उन्हें यकीनन चिं‍तित और आहत किया होगा तभी उनके दिल-दिमाग में गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दिलाने के लिए स्कूल-दर-स्कूल खोलने का विचार आया है। विप्रो के अध्यक्ष सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर भी बेहद चिं‍तित रहते हैं। उनका मानना है कि सरकार और नौकरशाही में निर्णय लेने की क्षमता का जबरदस्त अभाव दिखायी देता है। यही वजह है कि देश के आर्थिक विकास की रफ्तार थम-सी गयी है और महंगाई ने आम आदमी को इस कदर जकड लिया है कि उसका उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। हिं‍दुस्तान की सरकार को कौन और कैसे-कैसे चेहरे चला रहे हैं यह बताने और बार-बार दोहराने की तो कोई जरूरत ही नहीं बचती...।