Thursday, March 28, 2024

पांव पर कुल्हाड़ी

     संतरों के शहर नागपुर में एक शख्स ने बियर बार में जी भरकर शराब गटकी। बैरे के बिल थमाने पर उसका पारा चढ़ गया। बार संचालक को वह धमकाने लगा। यदि इस इलाके में बार चलाना है तो 5 हजार का हफ्ता देना होगा। बार वाला उसे जानता नहीं था। वह सोच में पड़ गया। यह नया ‘दादा’ कहां से आ टपका! शराबी ने सीना तानते हुए अकड़ दिखायी, तू मुझे जानता नहीं। मेरी ऊपर तक पहुंच है। मेरे ज़रा से इशारे पर पचास-साठ लठैत दौड़े-दौड़े चले आयेंगे। बार के साथ-साथ तेरे भी परखच्चे उड़ा देंगे। बार संचालक ने जब धमकी को अनसुना करने की कोशिश की तो उसने उसके सिर पर कांच का गिलास फोड़ दिया। उसके हिंसक तेवर देखकर जाम से जाम टकराते ग्राहक धीरे-धीरे बिना बिल दिये खिसक लिए। गुंडे ने उसके हाथ से पांच सौ का नोट और गल्ले से दो हजार रुपये लूटे और लड़खड़ाते हुए चलता बना। 

    पुलिस को एक ही परिवार के चार लोगों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डालना पड़ा। बात बहुत छोटी थी, लेकिन खून बह गया। नागपुर के निकट स्थित वाडी में एक कार चालक को किसी घर के सामने खड़े दोपहिया वाहन को देखकर गुस्सा आ गया। दोपहिया वाहन के कारण उसकी चार चक्के वाली चमचमाती कार को आगे निकलने में कुछ मुश्किल हो रही थी। हॉर्न पर हॉर्न बजाने पर घर के सदस्य जब बाहर निकले तो उन पर गंदी-गंदी गालियों की बौछार की जाने लगी। आसपास के लोगों ने दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर शांत किया। फिर भी कार वाले ने जाते-जाते देख लेने की धमकी दे डाली। आधे घण्टे के बाद तीन-चार लोग घर के सामने आ धमके। इनमें कार चालक के साथ उसका पिता भी शामिल था। बेटा घर मालिक युवक पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किये जा रहा था और उसके पिता ने लहुलूहान होते युवक को पीछे से कसकर पकड़-जकड़ रखा था। युवक की पत्नी जब उन्हें रोकने के लिए पहुंची तो उसे भी चाकू से जख्मी कर दिया गया। उससे छेड़छाड़ भी की गई। खून से तरबतर पति-पत्नी को किसी तरह से उनके चंगुल से निकाल कर अस्पताल पहुंचाया गया। पति को 17 टांके लगे। पत्नी के सिर पर भी गंभीर चोटें लगने के कारण मोटी पट्टी बांधनी पड़ी। 

    कोचिंग क्लास में पढ़ाने वाली एक तीस वर्षीय युवती की ऑटोमोबाइल कंपनी में काम करने वाले युवक से फेसबुक के माध्यम से पहचान हुई। दोनों जवान थे। दोस्ती को प्रेम संबंधों में तब्दील होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। इसी दौरान युवक ने पढ़ी-लिखी फेसबुक मित्र को अपनी कंपनी में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी दिलवाने का आश्वासन दिया। दोनों औरंगाबाद जा पहुंचे। यहां पर कंपनी का मुख्यालय है। वहां दोनों ने एक होटल में कमरा बुक कराया। रात को कमरे में युवक ने बड़ी चालाकी से शीतल पेय में कोई नशीला पदार्थ मिलाकर युवती को पिलाया। वह सुध-बुध खो बैठी। सुबह जब वह नींद से जागी तो उसे पता चला कि उसकी अस्मत लूटी जा चुकी है। युवक ने युवती को शीघ्र्र ही शादी के बंधन में बंधने का विश्वास दिलाया। फिर तो दोनों जब भी मौका पाते एक हो जाते और जिस्मानी प्यास बुझाते। कुछ दिनों के पश्चात युवक की नीयत बदल गई। युवती ने पुलिस स्टेशन जाकर खुद के बरबाद होने की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। युवक फरार है। पुलिस उसकी तलाश कर रही है।

    शहर के एक 49 वर्षीय व्यापारी को 40 वर्षीय खूबसूरत औरत ने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। मौजमस्ती के शौकीन व्यवसायी ने अनुरोध को स्वीकार करने में जरा भी देरी नहीं की। फटाफट एक-दूसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिये गए। मीठी-मीठी बातचीत के साथ-साथ मिलना-मिलाना भी शुरू हो गया। एक दिन महिला मित्र के निमंत्रण पर व्यापारी निर्धारित होटल जा पहुंचा। कमरा पहले से बुक था। दोनों ने घण्टों साथ रहकर शारीरिक संबंध बनाये। इसी दौरान महिला ने वीडियो-फोटो भी ले लिए। कुछ दिनों के पश्चात महिला ने उस पर शादी का दबाव बनाया। व्यापारी शादीशुदा है। बेटी का विवाह हो चुका है। बेटा भी शादी के लायक है। व्यापारी ने अपनी मजबूरी बतायी, लेकिन महिला अपनी पर उतर आयी। वह उससे बार-बार धन की मांग करने लगी। कुछ ही महीनों में उसने पचास लाख की चपत लगा दी। बदनामी के डर से व्यापारी सब्र का घूंट पीकर शांत रहा। एक दिन महिला अपने आठ-दस रिश्तेदारों को लेकर व्यापारी के घर जा पहुंची और गालीगलौच कर उस पर जीवन बर्बाद करने का आरोप लगाने लगी। व्यापारी की सांसें अटक गयीं। महिला ने तुरंत ही पास की मस्जिद से इमाम को बुलाकर निकाह पढ़ाया, साथ ही जबरन उसके घर में रहने लगी। कुछ हफ्तों के बाद वह महंगे फ्लैट की मांग करने लगी। व्यापारी के इनकार करने पर उसने अश्लील तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। व्यापारी के सब्र का बांध टूटा तो वह थाने जा पहुंचा। वहां उसे पता चला कि महिला तो पहले ही सात शादियां कर चुकी है। शादी पर शादी कर लूटना ही उसका पेशा है। दरअसल, ऐसी वारदातें, नगरों, महानगरों में वर्षों से होती चली आ रही हैं। फेसबुक पर होने वाली मायावी, कपटी मित्रता के फलस्वरूप होने वाली धोखाधड़ी, लूटपाट और तरह-तरह के घात का खुलासा अखबारों तथा न्यूज चैनलों पर होता रहता है। कुछ लोग सतर्क हो जाते हैं। कुछ लोग यह सोचकर मदमस्त रहते हैं कि जिन्होंने धोखा खाया वे बेवकूफ और नादान हैं। हम तो अक्लमंद हैं। हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। फेसबुक के आभासी संसार में सक्रिय किस्म-किस्म के ठग, लुटेरे, धूर्त, चालबाज चेहरों को ऐसे ही मदमस्त शिकारों की तलाश रहती है और यह अति बुद्धिमान ‘आ बैल मुझे मार’ की कहावत को खुद पर चरितार्थ कर अंतत: माथा पीटते देखे जाते हैं। क्षणिक आवेश में आकर अपराधी बनने वाले भी हर हश्र से वाकिफ होते हैं। फिर भी गुनाह करने से बाज नहीं आते। दूसरों की दुर्गति से सबक न लेकर खुद को कलंकित और तबाह करने वालों का तो भगवान ही मालिक है...।

Thursday, March 21, 2024

आतंकवादी

    बीते दिन एक फिल्म देखी! ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’! छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली वर्षों से खून-खराबा करते चले आ रहे हैं। उनकी खूनी आतंकी रफ्तार से सरकारें भी हिलती रही हैं। फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो जिस गांव में जन्मे वह बस्तर से मात्र 40 किलोमीटर दूर है। विवादास्पद फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को बनाने का श्रेय भी सुदीप्तो को ही जाता है। भयावह सच को दिखाना उनका फिल्म बनाने का मकसद है। ‘द नक्सल स्टोरी’ फिल्म के रिलीज से पहले गीत, वंदे वीरम के लांच के दौरान मुंबई में उन्होंने बस्तर इलाके के 14 शहीद जवानों के परिजनों को निमंत्रित कर पत्रकारों से मिलवाया था। शहीदों के परिजनों ने मंच पर बस्तर में वर्षों से हो रहे नरसंहार की पीड़ादायी हकीकत बयान कर अपनी आपबीती सुनाई। बस्तर का नाम सुनते ही मन भयभीत हो जाता है। फिल्म का ट्रेलर और गीत देख-सुनकर सभी की आंखें नम होती रहीं। यहां रोज औसतन 4-5 लोगों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। बस्तर में नक्सलियों ने गरीब आदिवासियों को अपना गुलाम बना रखा है। उन्हें नक्सलियों के नियम-कानूनों का मजबूरन पालन करना पड़ता है। बस्तर के घने जंगलों में करीब साढ़े तीन हजार बस्तियां हैं। यहां हर मां को अपना एक बच्चा नक्सलियों को देना पड़ता है। मना करने पर पूरे परिवार का खात्मा कर दिया जाता है। बस्तर में 57 सालों में 55 हजार जवान शहीद हो चुके हैं। 

    लेकिन, गुस्सा दिलाने वाला एक सच यह भी है कि अपने ही देश में कुछ देशद्रोही चेहरे ऐसे हैं जिनको जवानों की शहादत पर ज़रा भी गम नहीं होता। नक्सलियों को मार गिराये जाने पर उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगती है। मानवाधिकार का झंडा उठाकर सड़कों तथा अदालतों के चक्कर लगाने लगते हैं। नक्सलियों के शुभचिंतकों को भी राष्ट्र स्वाभिमान और राष्ट्र विकास से चिढ़ है। शहरी नक्सली खुद को मानवता के रक्षक दर्शाते हैं, लेकिन आतंकवादियों के पक्ष में ही खड़े नजर आते हैं। नक्सलियों को हथियार तथा धन उपलब्ध कराने की उनकी शर्मनाक भूमिका राष्ट्रभक्तों का खून खौलाती है। शासन, प्रशासन की सक्रियता से कभी-कभार यह तथाकथित बुद्धिजीवी पकड़ में भी आते हैं। इनके पक्ष में इन्हीं के रंग में रंगे चेहरों का हो-हल्ला गूंजने लगता है। देश की राजधानी दिल्ली, मायानगरी मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, रांची, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, पुणे, नागपुर जैसे नगरों, महानगरों में जो शहरी नक्सली चोरी-छिपे सक्रिय हैं, उनका मुख्य एजेंडा शहरों में नक्सलवाद का गुणगान करना और लोगों को नक्सली विचारधारा से जोड़ना है। 

    ऐसा भी होता रहता है कि असली शैतानों के साथ-साथ कुछ बेकसूर भी पुलिस के शिकंजे का शिकार हो जाते हैं। पुलिसिया भूल और जल्दबाजी की वजह से उन्हें सालों जेल में सड़ना पड़ता है। उनकी जिन्दगी के कई वर्ष बर्बाद कर दिये जाते हैं। उनके मान-सम्मान पर भी जो दाग लगते हैं वे भी बड़ी मुश्किल से धुल पाते हैं। कुछ भारतीयों ने इस नाइंसाफी को वर्षों तक झेला है। उन्हीं में से एक हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा। माआवादियों से कथित संबंध रखने के आरोप में दस साल जेल में रहने के पश्चात बम्बई हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में बरी किए गए साईबाबा के दर्द को कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है। नागपुर केंद्रीय जेल से सात वर्षों के बाद बाहर निकलने के बाद उनके शब्द थे ‘‘मुझे अभी भी ऐसा लग रहा है जैसे मैं जेल में ही हूं।’’ नक्सलियों से करीबी रखने और उन्हें खून-खराबा करने के लिए उत्साहित करने के संगीन आरोप में साईबाबा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी थी। उन्हें खतरनाक आतंकवादी भी कहा गया था। जेल में मर-मर कर गुजारे पलों को याद करते हुए साईबाबा इस कदर भावुक हो जाते हैं कि उनकी आंखें भीगी-भीगी हो जाती हैं। पिछले सात वर्षों में उनके परिवार ने कैसी-कैसी तकलीफें झेलीं, बिना कोई गुनाह किये लोगों की नजरों में अपराधी बन उनके तानों, नुकीले व्यंग्य बाणों की मार से सतत लहुलूहान होना पड़ा। जेल में बंद रहने के दौरान साईबाबा को खुद से ज्यादा अपने परिजनों की चिंता सताती थी। साईबाबा दिव्यांग हैं। विकलांगता निरंतर बढ़ती चली जा रही है। चलने-फिरने से एकदम लाचार हैं। व्हीलचेयर ही उनका एकमात्र सहारा है। उन्हें यह सच भी शूल की तरह चुभता है कि अपने देश में इंसाफ का चक्का बहुत धीमे चलता है। बेकसूरों को वर्षों तक न्याय पाने की राह देखनी पड़ती है। कुछ तो इंतजार करते-करते मौत के आगोश में समा जाते हैं। उन्हें आज भी 22 अगस्त, 2013 का वो दिन याद है जब उन्हें गड़चिरोली के अहेरी बस अड्डे से गिरफ्तार किया गया। दूसरे दिन के अखबारों में पहले पन्ने पर मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था, ‘खतरनाक आतंकवादी’ खूंखार हत्यारे, नक्सलियों का साथी, प्रोफेसर जी.एन.साईबाबा बड़ी मुश्किल से पुलिस की पकड़ में आया। यह पढ़ा-लिखा शहरी नक्सली जंगल में रहने वाले देश के दुश्मन नक्सलियों से भी ज्यादा खतरनाक है। न्यूज चैनल वालों ने इस शहरी नक्सली को उम्र भर जेल में सड़ाने की पुरजोर मांग करते हुए देशवासियों से अपील की थी कि ऐसे हर देशद्रोही से सतर्क और सावधान रहें। तभी साईबाबा ने देखा और जाना था कि लोगों की निगाहों ने तुरंत उन्हें अपराधी मान लिया है। कल तक जो लोग इज्जत से पेश आते थे अब नफरत करने लगे थे। 

    कुछ दिन पहले मैंने पुरानी दिल्ली के रहने वाले मोहम्मद आमिर खान की आपबीती किसी अखबार में पढ़ी। इस युवक को आतंकवादी होने के झूठे आरोप में 14 वर्ष तक जेल में रहना पड़ा। उन्हीं की लिखी ‘आतंकवादी का फर्जी ठप्पा’ नामक किताब में व्यवस्था के अंधेपन को उजागर करने का साहस दिखाया गया है। आमिर तब लगभग अठारह वर्ष के थे जब बम विस्फोट और हत्या के लिए दोषी मानते हुए जेल में डाल दिया गया। पुलिस रिमांड में उन्हें अमाननीय यातनाएं दी गयीं। जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं था उसे कबूलने के लिए जिस्म की हड्डी-हड्डी तोड़ी गई। किसी से मिलने नहीं दिया गया। पिता के गुजरने पर उन्हें सुपुर्द -ए-खाक भी नहीं कर पाए। यह वही पिता थे, जिन्होंने बेटे के इंसाफ के लिए अपना घर-बार तक बेच डाला था। जेल की काली कोठरी में अपनी जवानी को गला कर आमिर जब 14 साल बाद बाहर निकले तो पूरी दुनिया ही बदल चुकी थी। कई डरी -डरी निगाहें उन्हें ऐसे ताक रही थीं जैसे कोई जंगली जानवर शहर में जबरन घुस आया हो...।

Thursday, March 14, 2024

बाज़ार

    दूसरे उत्सवों की तरह शादी-ब्याह भी उत्सव का मज़ा देते हैं। विवाह बंधन में बंधने वाले जोड़े के साथ-साथ घर, परिवार यार-दोस्त और रिश्तेदार अधिक से अधिक पहचान वाले, अड़ोसियों, पड़ोसियों, दूर पास के यारों, रिश्तेदारों से आत्मीय मेल-मुलाकात का सुअवसर भी होते हैं शादी-ब्याह के विभिन्न आयोजन। अपने देश में शादियों को स्टेटस सिंबल के तौर पर भी देखा जाता है। अपना रुतबा और जलवा दिखाने के लिए बढ़-चढ़कर धन खर्च करने के इस अवसर पर होड़ भी खूब देखी जाती है। गरीब हो चाहे अमीर सभी अपनी-अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर शादी के उत्सव को यादगार बनाने की भरसक कोशिश करते हैं। यहां तक कि बैंकों तथा साहूकारों से कर्जा लेकर अपनी हसरतें पूरी करने में संकोच नहीं किया जाता। शादी को सात जन्मों का बंधन भी कहा जाता है। इस पवित्र बंधन को कितने जोड़े निभा पाते हैं। वो अलग बात है। वफा, पवित्रता, आत्मीयता और मजबूती के साथ स्त्री-पुरुष को बांधे रखने के लिए ही कभी विवाह के प्रचलन की नींव पड़ी थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि, आज से लगभग 4 हजार साल पूर्व शादी ने एक सामाजिक संस्था के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। 

    एक समय ऐसा भी था जब मानव विभिन्न जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरता था। स्वयं को जानवरों से सुरक्षित रखने के लिए समूहों में रहना उनकी मजबूरी थी। एक समूह में पच्चीस से तीस के आसपास लोग होते थे। इन समूहों के लीडर दो-तीन  पुरुष होते थे जो अपनी मर्जी से समूह की कई महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाते थे। बाकी तो मन मारकर रह जाते थे। इन महिलाओं से जन्म लेने वाले बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी पूरे समूह की होती थी, लेकिन इस मामले में संतानों के साथ इंसाफ नहीं हो पाता था। लीडर और एक दो को छोड़कर बाकी के मन में यह बात घर किये रहती थी कि जब बच्चे उनके हैं हीं नहीं तो वे उनकी परवरिश पर क्यों ध्यान दें। संतान के पिता की पहचान के संकट के खात्मे के उद्देश्य से की शादी-ब्याह का रास्ता चुना गया। एक महिला की एक पुरुष से शादी का पहला सबूत 2,350 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया में मिलता है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में वैदिक काल से विवाह एक जरूरी धार्मिक और पवित्र संस्कार था। पति-पत्नी मिलकर यज्ञ करते थे और पुत्र पैदा करना शादी का जरूरी मकसद होता था। पुरातन काल में भी शादी-विवाह को भव्यता प्रदान करने का चलन था। धार्मिक पौराणिक विवाहों में दान-दहेज का भी रिवाज था। रामायण में राम और सीता के भव्य विवाह के उल्लेख के साथ राजा जनक के द्वारा अपनी पुत्री सीता को हजारों हाथी, घोड़े, गाएं और सोने-चांदी के आभूषण उपहार में देने का वर्णन है। इसी तरह से महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यू और उत्तरा की भव्य शादी में गीत, नृत्य, गायन, मदिरा और महंगे उपहारों की झड़ी लगा दी गयी थी। वो राजा-महाराजाओं का जमाना था। उन्हीं की चलती थी। प्रजा तो बस मूकदर्शक होती थी। राजतंत्र कब से भारत से विदा हो चुका। आज जनतंत्र है। जनता ही राजा है, लेकिन फिर भी जनता की ही बदौलत धनवान बने धनपति खुद को राजा-महाराजा से कम नहीं मानते। उन्हें इस सच से कोई लेना-देना नहीं है कि उनकी गगन चुम्बी तरक्की में असंख्य लोगों के खून-पसीने का योगदान है। नेता, राजनेता, मंत्री, संत्री और उद्योगपति अपने बीते कल को विस्मृत करने में जरा भी देरी नहीं लगाते। अपने बेटे-बेटियों की सगाई और शादी ब्याह में अंधाधुंध धन की बरसात कर खुद को महाराजा साबित करने का मौका नहीं गंवाते। अभी हाल ही में भारतवर्ष के सबसे उद्योगपति अमीर मुकेश अंबानी ने अपने छोटे बेटे अनंत की प्री-वेडिंग सेरेमनी में  1000 करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च डाले। देश और दुनिया की हजारों अति विशिष्ट हस्तियों को इस महाआयोजन में निमंत्रित कर अपने व्यक्तिगत आयोजन को ऐसी मंडी की शक्ल दे दी, जहां बड़े-बड़े धुरंधर बिकने को मजबूर हो गए। उन्हें बस अपनी कीमत बतानी थी। तमाम न्यूज चैनल वाले भी मुकेश अंबानी तथा उनके पुत्र की दयालुता और हिम्मत की गाथाओं के पन्ने खोले जा रहे थे। बार-बार राग गा रहे थे कि कभी 208 किलो के वजन वाले अनंत ने प्रतिदिन इक्कीस किलोमीटर की छह घंटे के कड़े विभिन्न व्यायाम और जंक फूड का पूरी तरह से त्याग कर अपना 100 किला वजन कम कर दिखा दिया है कि वो जो ठान लेते हैं उसे साकार करके ही दम लेते हैं। अनंत जमीन से जुड़े पिता के आज्ञाकारी बेटे हैं। खरबपति परिवार में जन्म लेने के बाद भी उनकी जिन्दगी संघर्ष भरी रही है। आज भी वह स्वास्थ्य समस्याओं से घिरे हैं। संस्कारी परिवार के इस बेटे ने संस्कारी लड़की राधिका को अपनी जीवनसाथी बना कर सभी का दिल जीत लिया है। अंबानी परिवार ने इस अपार तामझाम भरी प्री-वेडिंग को विज्ञापित कर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों जरूर बटोरीं, लेकिन उन पर ऐसे-ऐसे सवालों की झड़ी भी लगी रही, जिनके जवाब नदारद रहे। धन कुबेर मुकेश अंबानी ने 2018 में अपनी इकलौती बेटी ईशा की शादी में 800 करोड़ उड़ा कर भी सुर्खियां बटोरी थीं। तब इसे भारत की सबसे महंगी शादी प्रचलित किया गया था। अब 2024 में अपने बीमार दुलारे को खुश करने के लिए 1000 करोड़ खर्च कर डाले। उनके लिए इतना धन हाथ का मैल है। वे जितना रुपया उड़ाना चाहें, कोई उन्हें नहीं रोकने वाला। यह तो खुद की सोच और विवेक का मामला है। धार्मिक प्रवृत्ति के मुकेश को विभिन्न साधु-संतों तथा प्रवचन कारों के सानिध्य में भी देखा जाता है। मोहन यादव वर्तमान में देश के विशाल प्रदेश मध्यप्रदेश के सम्मानित मुख्यमंत्री हैं। वर्षों से राजनीति में हैं। मुख्यमंत्री बनने के पश्चात वे अपने बेटे की शादी का न्यौता देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निवास पर गये थे। मोदी जी ने उन्हें असीम मंगलकामनाओं के साथ एक बात कही, ‘‘अब आप प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। किसी भी ऊंचे पद पर पहुंचने के बाद लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। वे अच्छा होते देखना चाहते हैं। जनप्रतिनिधि हों या उद्योगपति, उन्हें बहुत सोझ-समझ कर चलना चाहिए। अपने परिवारिक समारोहों में अत्याधिक दिखावे और फिजूल खर्ची से बचना चाहिए। आचार, व्यवहार और विचार के प्रभावी संदेश से ही दूरगामी आदर्श स्थापित होते हैं। मुकेश अंबानी को अथाह धन फूंक कर भले ही संतुष्टि मिली हो, लेकिन आम लोगों को उनका यह रंगारंग तमाशा अच्छा नहीं लगा। उनकी यह सोच फिर से बलवति हुई है कि अपने देश के अधिकांश धनपतियों का जन सरोकार से कोई वास्ता नहीं। उनके लिए अपना परिवार ही सर्वोपरि है।

Thursday, March 7, 2024

भक्षक-संरक्षक

    सोचें तो माथा घूम जाता है। पैरोंतले की जमीन खिसकती लगती है। आजाद भारत में इतने जुल्म! गुंडागर्दी, लूटमार, बलात्कार। और भी न जाने कैसे-कैसे जुल्मों-सितम। हिसाब लगाना मुश्किल। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली पहुंचे पत्रकारों के हृदय के साथ-साथ कान भी कांप रहे थे। मंजर ही कुछ ऐसा था, जो रोंगटे खड़े कर रहा था। शेख शाहजहां उसका नाम था। ऊपर से नीचे तक दुष्कर्मी, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, बलात्कारी और भू-माफिया शेख शाहजहां ने दरअसल संदेशखाली में शासन और प्रशासन को अपनी मुट्ठी में कर आतंकी दबदबा बनाया था। दूर-दूर तक उसकी तूती बोलती थी। कोई उसके विरोध में आवाज नहीं उठा पाता था। महिलाएं तो उसका नाम सुनते ही कांपने लगती थीं। रात होते ही अपने-अपने घरों में दुबक जाती थीं। फिर भी जो औरत, लड़की उसे और उसके साथियों को पसंद आ जाती, कदापि बच नहीं पाती थी। उसे जबरन उसके घर से उठवा लिया जाता था। शाहजहां पूरी तरह से हैवान बन चुका था। बांग्लादेश से चोरी-छिपे पश्चिम बंगाल आया शाहजहां कभी मजदूरी करता था। सत्ताधारी दल के नेताओं के लालची सहयोग ने देखते ही देखते उसे बेताज बादशाह बना दिया। गरीब कल्याण और स्थानीय विकास की योजनाओं में जमकर घोटाले कर उसने चंद वर्षों में अकूत धन-संपत्ति बनायी। पंचायत से लेकर विधानसभा, लोकसभा चुनाव तक स्थानीय मतदाताओं को डरा-धमका कर तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करवाने वाले शाहजहां के राजनीतिक आकाओं की लिस्ट बहुत लंबी थी। पुलिस प्रशासन भी उससे घबराता था। 2024 के पांच जनवरी के दिन ईडी की एक टीम, सीआरपीएफ के टुकड़ी के साथ बीस हजार करोड़ के राशन घोटाले के इस सरगना के ठिकानों पर छापेमारी करने पहुंची तो उसने पकड़ में आने से बचने के लिए अपने पाले-पोसे गुंडों से टीम पर ही जानलेवा हमला करवा दिया और खुद फरार हो गया। पचपन दिनों तक गायब रहने के बाद बड़ी मुश्किल से वह पुलिस के हाथ लग पाया। 

    उसकी मनचाही फरारी के दौरान उसके रक्तपात से सने गुनाहों के काले चिट्ठे एक-एक कर खुलते चले गये। महिलाओं पर ढाये गये कहर और बर्बरता के किस्सों को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े होने लगे। बीस साल की वर्षा का तो तब मुंह खोलने का साहस ही नहीं था। शाहजहां की गिरफ्तारी के बाद कॉलेज की छात्रा वर्षा ने अंतत: भय को अपने अंदर से बाहर निकाल फेंका। शाहजहां का नाम लेते ही वह गुस्से से लाल हो जाती है। गालियों की बौछार करते हुए कहती है कि शाहजहां इंसान नहीं, दरिंदा है। व्यवस्था का पाला-पोसा क्रूरतम भक्षक है। इस जैसा चरित्रहीन और कोई हो ही नहीं सकता। दूसरों की मां, बहन, बेटी, बहू को बाजारू समझता है। संदेशखाली में इसकी सतायी अनगिनत महिलाएं हैं, जो किसी भी हालत में अपनी पहचान उजागर नहीं होने देंगी। इसने तथा इसके कुकर्मी साथियों ने पूरे इलाके की औरतों का जीना मुहाल कर रखा था। अंधेरा घिरते ही ये वहशी तांडव मचाने लगते थे। जिस घर-परिवार की लड़की, औरत, बहू, बेटी इन्हें पसंद आती उसकी तो जैसे शामत आ जाती। जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाते। तृणमूल कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में ले जाकर रात भर बलात्कार करते। जब मन भर जाता तो इस आदेश के साथ छोड़ते कि फिर हम जब बुलाएं तो बिना किसी ना-नुकर के चली आना। कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हारे मां-बाप, पति, भाई आदि से हम देख लेंगे। 

    शारदा पचास की हो चुकी है। उसकी तीन बेटियां हैं। दो जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी हैं। शारदा को वो मंजर भुलाये नहीं भूलता जब शाहजहां के गुंडे उसकी बड़ी बेटी को रात को उठा कर ले गये थे। दो दिन के बाद लहुलूहान, लुटी-पिटी बेटी घर लौटी थी तो घंटों फूट-फूट कर रोती रही थी। वह बार-बार कहती रही थी कि वह अपवित्र हो चुकी है। उसकी वापस घर लौटने की हिम्मत ही नहीं थी। कुएं में छलांग लगाकर मर जाना चाहती थी, लेकिन अपनी दोनों छोटी बहनों की चिंता ने उसके पांव में बेड़ियां पहना दीं। वह गुंडों के समक्ष हाथ जोड़ती रही, लेकिन उन्होंने अपनी मनमानी करके ही दम लिया। जिस्म को रौंदने के साथ-साथ जालिमों ने उसे अंधाधुंध मारा-पीटा। पच्चीस वर्षीय रानी को संदेशखाली आये अभी पंद्रह दिन ही हुए थे। शादी के पांचवे दिन उसका पति नौकरी बजाने शहर चला गया था। हाथों में लाल चूड़ियां और माथे पर बड़ी-सी बिंदी लगाये रानी खुशी-खुशी बाजार में सब्जी लेने के लिए गई थी, तभी शाहजहां की उस पर काली नजर जा पड़ी थी। आधी रात को किसी गुंडे ने घर के दरवाजे की कुंडी खटखटायी थी। बूढ़े ससुर ने डरते-डरते दरवाजा खोला था। रानी गहरी नींद में थी। उसे जबरन खटिया से उठा कर शाहजहां के हवेलीनुमा घर में बिस्तर पर पटक दिया गया था। शाहजहां और उसके साथी भूखे भेड़िये की तरह उस पर टूट पड़े थे। तीसरे दिन की सुबह जब रानी को उसके घर ले जाकर छोड़ा गया था, तब वह अधमरी हो चुकी थी। शाम को उसे होश आया था। उसके ससुर का रो-रोकर बड़ा बुरा हाल हो चुका था। रानी को घर लेकर पहुंचे गुंडों ने उसे चेताया था कि जब भी बुलावा आए तब फौरन इसे शाहजहां की कोठी में लेकर पहुंच जाना। कोई होशियारी की तो हड्डी-पसली तोड़कर अपाहिज बना देंगे। रानी के ससुर ने दूसरे ही दिन सामान बांधा था और बहू को साथ लेकर अपने बेटे के पास शहर जा पहुंचा था। हताश-निराश ससुर ने बस में बहू से हाथ जोड़कर विनती की थी कि उसके साथ जो हुआ उसे वह बुरा सपना समझ कर भूल जाए। अपने पति को कुछ भी न बताए। 

    संदेशखाली जहां पर शाहजहां ने अपने भाई तथा चंद शैतान साथियों के साथ वर्षों तक अपना शासन चलाया, वह बांग्लादेश का सीमावर्ती क्षेत्र है। सुंदरवन से घिरा यह इलाका अनुसूचित जाति और जनजाति बहुल है। शाहजहां के ठिकाने पर यदि ईडी नहीं पहुंचती तो यहां की असंख्य दलित और आदिवासी महिलाओं पर हुए घोर अत्याचार और बलात्कार की अनगिनत घटनाओं का देशवासियों को पता ही नहीं चल पाता। यह भी सच है कि शाहजहां की गुंडई को यदि राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलता तो उसकी हैवानियत इस कदर नहीं फल-फूल पाती। यह उसका दबदबा ही था कि पुलिस भी उसकी साथी बनी हुई थी। लोग उसकी शिकायतें लेकर थाने जाते और वर्दीधारी शाहजहां और उसके पाले-पोसे गुंडों को शिकायतकर्ताओं के नाम और पत्तों से अवगत करा देते। मुंह खोलने का साहस दिखाने वाले की फिर वो शामत आती कि उसकी हड्डी-पसली एक हो जाती। बहन, बेटी, बहू की इज्जत भी सलामत न रह पाती। तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां ने लोगों की खेती की जमीनें छीन कर वहां छोटे-बड़े तालाब बना दिए और उनमें खारा पानी भर दिया। जहां कभी विभिन्न फसलों की पैदावार होती थी वहां मछली पालन कर करोड़ों की कमायी की जाने लगी। शाहजहां तथा उसके आतंकी गुर्गों ने खेल के अनेकों मैदान भी कब्जा लिए। जिन किसानों की जमीनें छीनी गयीं उन्हें एक धेला भी नहीं दिया गया। उलटे मार-पीटकर कही दूर भागने को मजबूर कर दिया गया। हजारों बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत की ज़मीन पर बसाने वाला जन्मजात अपराधी शाहजहां वर्षों तक खतरनाक हथियारों से लेकर गो-तस्करी और सोना तस्करी करता रहा, लेकिन शासन और प्रशासन ने आंखे और कान बंद रखे। इस सच को याद रखा जाना चाहिए कि जैसे ही लोगों को पता चला कि शेख शाहजहां लंबे समय तक जेल में सड़ने वाला है और उसके आकाओं ने फिलहाल उसके सर से संरक्षण के हाथ खींच लिये हैं, तो उन्होंने एकजुट होकर शाहजहां और उसके साथियों के घर पर हमला बोल दिया और यह संदेश भी दे दिया कि अपराधियों के आतंक का भय तभी तक रहता है, जब तक राजनेता और नौकरशाह उनके साथ बने रहते हैं।