Thursday, January 25, 2024

कलंक

चित्र-1 : 2024 के जनवरी माह ने अपनी आंखें अभी पूरी तरह से खोली भी नहीं थीं कि मन-तन को कंपकंपाने और सोच पर हथौड़े बरसाने वाली खबरें आने लगीं। रक्षकों के भीतर कैद भक्षक बाहर निकलकर तांडव मचाने लगे। फिर अंधश्रद्धा भारी पड़ी और भरोसे के परखच्चे उड़ गये। बेटे की चाहत में बेटियों की हत्या की खबरें तो हम सबने बहुतों बार पढ़ी-सुनीं, लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल शहर के एक पिता ने बेटी की चाह में बेटे को गला दबाकर मार डाला। इस क्रूर बाप के दो बेटे हैं। बड़ा सात साल तो छोटा पांच साल का। उसकी पत्नी तीसरी बार गर्भवती हुई थी। निर्दयी पति को यकीन था कि इस बार जरूर बेटी होगी, लेकिन जैसे ही बेटे का जन्म हुआ तो उसका खून खौल उठा। वह पत्नी को डांटने-फटकारने लगा। तुमने बेटी पैदा क्यों नहीं की? पत्नी क्या जवाब देती! उसकी चुप्पी बेवकूफ पति को शूल-सी चुभी। अंधाधुंध शराब पीकर उसने पत्नी को जीभरकर पीटा। पत्नी यह सोचकर घर से बाहर निकल गई कि थोड़ी देर में उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा। लगभग पौन घंटे के बाद वह वापस लौटी तो उसने अपने बारह दिन के नवजात को मृत पाया। 

चित्र-2 : मां तो ममत्व से परिपूर्ण होती है। अपनी संतान उसे जान से भी प्यारी होती है। उसके लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने से कभी पीछे नहीं हटती। शास्त्रों में कहा भी गया है कि माता कुमाता नहीं होती। बच्चे भले ही कैसे हों। पढ़ी-लिखी खूबसूरत नज़र आने वाली लगभग चालीस वर्षीय हावर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च फेलो रह चुकी नामी कंपनी की सीईओ सूचना सेठ ने गोवा के एक होटल में अपने चार साल के मासूम बेटे को तड़पा-तड़पा कर मार डाला। बैंगलुरू की रहने वाली सूचना की पति से बिलकुल नहीं निभती थी। दोनों के बीच तलाक का केस चल रहा था। अदालत ने आदेश दिया था कि वह हर रविवार को बेटे को पिता से मिलवाएगी, लेकिन सूचना नहीं चाहती थी उसका पति बच्चे से मिले। वह उसे अपने पिता से दूर रखना चाहती थी। अहंकारी और क्रोधी पत्नी की सोच थी कि बच्चे के कारण ही उसे अपने पति का चेहरा देखना पड़ता है। उसके मन में इस सच को लेकर भी गुस्सा भरा था कि बेटे का चेहरा उसके पिता से मिलता है। जिसे वह देखना नहीं चाहती। बेटे को उसके पिता से हमेशा-हमेशा के लिए अलग करने के लिए ईर्ष्यालु सूचना बेंगलुरु से गोवा चली गई। वहां पर उसने अपने ही हाथों अपनी कोख उजाड़ दी। उसे भ्रम था कि उसका अपराधी चेहरा कभी भी दुनिया के सामने उजागर नहीं होगा। हर शातिर अपराधी की यही सोच होती है। ममता के रिश्ते को तार-तार करने वाली इस हत्यारिन मां की सारी जिंदगी अब जेल की सलाखों में ही कटेगी। कोई भी दांवपेच उसे बचा नहीं सकता। 

चित्र-3 : अपने करीबी रिश्तेदार की मौत किसे गमगीन नहीं करती? मां-बाप-भाई-बहन के जुदा होने की कल्पना ही चिंताग्रस्त कर देती है। मन उदास हो जाता है। परमपिता परमेश्वर से बस यही प्रार्थना की जाती है कि खून के रिश्तों की डोर हमेशा सलामत रहे। उनमें ज़रा-सी भी आंच न आए, लेकिन...! उत्तरप्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा में धन संपत्ति को पाने के लालच में तीन बेटियों ने श्मशान घाट पर जो तमाशा किया उसे देख सभी स्तब्ध रह गये। यह बात किसी से छिपी नहीं कि महिलाएं श्मशान घाट पर नहीं के बराबर जाती हैं। मथुरा में एक उम्रदराज मां की मौत के बाद श्मशान घाट पर उसकी चिता को जलाने की तैयारी चल रही थी तभी भागते-भागते उसकी दो बेटियां वहां आ पहुंचीं। तीसरी पहले से ही वहां उपस्थित थी। पहले तो तीनों बहनों ने मां की जमीन-जायदाद को लेकर आपस में बातचीत की। फिर देखते ही देखते लड़ने-झगड़ने लगीं। अंतिम संस्कार कराने के लिए पहुंचे पंडित ने उनसे झगड़े की वजह पूछी तो पता चला कि मृतका का कोई बेटा नहीं है। सिर्फ तीन बेटियां हैं। बड़ी बेटी मां के कुछ ज्यादा ही करीब थी। बीमार मां की उसने भरपूर देखभाल और सेवा भी की थी। इसी वजह से मां ने अपनी जायदाद का बड़ा हिस्सा उसके नाम कर दिया था। अस्पताल में इलाज के दौरान मां चल बसी। बड़ी बेटी ने मां के शव को रिश्तेदारों के सहयोग से मोक्षधाम पहुंचाया। दोनों छोटी बहनों को जैसे ही मां के चल बसने की खबर मिली तो वे भी भागती-दौड़तीं मोक्षधाम पहुंचकर तमाशा करने लगीं। रिश्तेदारों ने उन्हें शांत रहने को कहा तो वे और भड़क उठीं। दोनों ने जिद पकड़ ली कि जब तक संपत्ति उनके नाम नहीं होगी, तब तक वे अंतिम संस्कार नहीं होने देंगी। चाहे कुछ भी हो जाए। किसी ने पुलिस को खबर पहुंचा दी, लेकिन पुलिस की भी लालची बेटियों ने एक नहीं सुनी! अपनी जिद पर अड़ी रहीं। शव आठ से नौ घंटे तक श्मशान घाट पर पड़ा रहा। तमाशा देखने के लिए बाहर से भी लोग अंदर आकर जमा हो गये। कई लोगों ने उन्हें मनाने-समझाने की कोशिशें कीं, लेकिन वे अंतत: तब जाकर मानीं जब स्टाम्प पेपर पर लिखित समझौता हुआ, जिसमें लिखा गया कि, मां की बची हुई जमीन-जायदाद पर इन दोनों बहनों का ही हक होगा। बड़ी की कोई भी दखलअंदाजी नहीं चलेगी। उसने पहले ही मां को बहला-फुसलाकर अपना हिस्सा ले लिया है...।

चित्र-4 : नागपुर में स्थित पोस्टमार्टम गृह में बीते सोलह वर्षों से मृत शरीरों की चीरफाड़ करते चले आ रहे अरविंद पाटिल का कहना है कि उन्हें मुर्दों से नहीं, जीवित इंसानों से ही डर लगता है। अरविंद अभी तक पैंतीस हजार से अधिक मुर्दों का पोस्टमार्टम कर चुके हैं। पोस्टमार्टम गृह में जाने से अधिकांश लोग कतराते और घबराते हैं। यह भी कहा जाता है कि अस्पतालों में पोस्टमार्टम करने वाले कर्मचारी बिना शराब पिये निर्जीव जिस्म को हाथ तक नहीं लगाते, लेकिन अरविंद इसके अपवाद हैं, जिन्हें पोस्टमार्टम करने से पहले कोई नशा-वशा नहीं करना पड़ता। जब पहली बार अरविंद ने डॉक्टर के निर्देश पर मृत देह का पोस्टमार्टम किया था तब उन्हें जरूर परेशानी हुई थी। पूरी रात आंखों के सामने वही दृष्य आता रहा था। अब तो मृतक शरीर के अंगों को अलग करने, चीर-फाड़ करने, जिस्म को फिर से सिलने की आदत हो गई है। किसी की क्षत-विक्षत लाश देखने के बाद जब उसकी मौत की वजह का पता चलता है तो जरूर रातों की नींद गायब हो जाती है। ट्रेन के सामने कूदकर, गले में फांसी का फंदा लगाकर, जहर खाकर खुदकुशी करने वाले काश! ऐसा घातक कदम उठाने से पहले अपने माता-पिता, पत्नी, पति, भाई, बहनों आदि के बारे में सोचते-विचारते, धैर्य का दामन थामे रहते, किसी करीबी को अपने गम से अवगत करा देते तो यह नौबत टल जाती। अपनों की हत्या करने वालों पर तो रह-रहकर गुस्सा आता है। अभिभावक यह क्यों भूल जाते हैं कि औलाद तो पालन-पोषण के लिए होती है। मां-बाप का तो दायित्व ही है, अपने बच्चों के भविष्य को संवारना। उनकी हत्या करना दुनिया का सबसे घृणित पाप है। अक्षम्य अपराध है...।

Thursday, January 18, 2024

सबके हैं राम...

    ‘‘राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी, दीप जला के दिवाली मनाऊंगी। मेरे जन्मों के सारे पाप मिट जाएंगे, राम आएंगे, मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे...।’’ ऐसा कोई भी इंसान नहीं होगा, जिन्हें भजन की इन पंक्तियों ने मंत्रमुग्ध नहीं किया होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जब इस भजन को सुना तो भाव विभोर हो गये। तहेदिल से की गई उनकी सराहना ने इस भजन की गायिका को रातों-रात प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। सभी के मन में इस मनभावन भजन की गायिका स्वाति मिश्रा के बारे में जानने की उत्सुकता जाग उठी। बिहार के छपरा की रहने वाली स्वाति मिश्रा इन दिनों मुंबई वासी हो चुकी हैं। स्वाति 22 जनवरी, को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में यह भक्ति गीत गाना चाहती हैं,

‘‘मेरी चौखट पर चलकर आज 

चारों धाम आए हैं

बजाओ ढोल स्वागत में

मेरे घर राम आये हैं

कथा शबरी की जैसे

जुड़ गई मेरी कहानी से

ना रोको आज धोने दो चरण

आंखों के पानी से

बहुत खुश हैं मेरे आँसू

की प्रभु के काम आए हैं

बजाओ ढोल स्वागत में

मेरे घर राम आए हैं।

तुमको पा के क्या पाया है,

सृष्टि के कण-कण से पूछो

तुमको खोने का दु:ख क्या है,

कौशल्या के मन से पूछो

द्वार मेरे ये अभागे,

आज इनके भाग जागे, 

बड़ी लंबी इंतजारी हुई रघुवर तुम्हारी

तब आई है सवारी

संदेशे आज खुशियों के

हमारे नाम आये हैं, 

बजाओ ढोल स्वागत में

मेरे घर राम आये हैं...।’’

    भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के करीब से दर्शन करने के लिए हर भारतीय लालायित है। सरयू तट पर बसी श्री रामजन्म भूमि अयोध्या का कायांतरण किया जा चुका है। रामभक्तों के स्वागत के लिए अयोध्या के चौक-चौबारे और तमाम रास्ते सज-धज चुके हैं। धर्मनगरी की साफ-सफाई, सजावट और रंगबिरंगी रोशनाई गहराई तक लुभा रही है। देश और विदेश में रहने वाले कई श्रीराम भक्तों को रामोत्सव में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया गया है। इस पावन अवसर पर देशभर के संत-महात्मा और गणमान्य हस्तियां उमंग-तरंग के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने जा रही हैं। देश ही नहीं, विदेशों के पर्यटकों व श्रद्धालुओं के लिए अत्याधुनिक टाउन शिप में आलीशान होटल, रिवरसाइड, बहुमंजिला इमारतें, आवासीय कॉलोनी, मॉल, रेस्टारेंट निर्मित हो चुके हैं। आश्रम और गुरूकुल बनाए जाने वाले हैं। श्रीराम नगरी के सभी होटल तथा गेस्ट हाऊस बुक हो चुके हैं। सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किये गए हैं। देश के एक शीर्ष उद्योगपति का कहना है कि, हमें इस आयोजन का बेसब्री से इंतजार है। यह सभी हिंदुओं और भारतीयों के लिए बड़ा दिन है। सच तो यह है कि हमारे लिए यह एक आध्यात्मिक यात्रा है।  भगवान राम ने सबको आत्मसात किया था। श्रीराम सही मायनों में उच्चतम आदर्शों को स्थापित करने वाले नायक हैं। आत्मियता, करुणा, आदर-सत्कार, सर्व मंगलकामना, क्षमा, धैर्य, सौंदर्य और शक्ति के पर्याय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सबके हैं। सभी को उनसे सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। रिश्तों को कुशलतापूर्वक निभाने की सीख मिलती है। भौतिक सुखों के जाल से बचते हुए अपने कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करने का उत्साह और मनोबल मिलता है। एक आदर्श पुत्र, भ्राता, पति और न्यायप्रिय नायक हैं श्रीराम। कोई भी व्यक्ति सतत साधना और परिश्रम का श्रीराम के गुणों को अंगीकार कर सकता है और प्रतिष्ठा के शीर्ष पर पहुंच सकता है। श्रीराम के जन्मस्थली अयोध्या का अर्थ ही है, अमन और शांति की ऐसी पवित्र धरा, जहां कभी युद्ध न हुआ हो। इस अलौकिक धर्म नगरी क्षेत्र में आठ मस्जिदें और चार कब्रिस्तान मौजूद हैं। यहां कुछ मस्जिदें ऐसी भी हैं, जो राम जन्म भूमि अधिग्रहित परिसर से महज सौ मीटर की दूरी पर हैं। इन पर बाकायदा लाउडस्पीकर बंधे हुए हैं, जिनसे पांचों टाइम अजान दी जाती है। इस धर्म क्षेत्र में चार गुरुद्वारे और दो जैन मंदिर भी हैं। यहां पर सभी धर्मों के लोगों का आपसी मेल-मिलाप और सद्भाव देखते बनता है। वैसे तो भारत का जन-जन सदियों से रामायण और गीता के बहुत करीब रहा है, लेकिन राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तारीख की घोषणा के बाद लोगों में धार्मिक ग्रंथों के प्रति रुझान और सम्मान काफी ज्यादा देखा जा रहा है। देश में धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली गीता प्रेस को रामचरितमानस की मांग को पूरा करने के लिए दिन-रात परिश्रम करना पड़ रहा है। देश और विदेश के आस्थावान लोगों की मांग के कारण रामचरितमानस को गीता प्रेस की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है, जिसे मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकता है। सच तो यही है कि पूरे देश का वातावरण राममय हो गया है। बाजारों में श्रीराम की सोने-चांदी की मूर्तियों, सिक्कों, आभूषणों, वस्त्रों आदि को खरीदने के लिए बढ़ती भीड़ से व्यापारी खुश और उत्साहित हैं। बाग-बगीचों तथा गली-मोहल्लों में श्रीराम, जय राम की मधुर धुनों से लेकर विविध भक्ति गीतों की मधुर स्वर लहरियां आत्मिक सुख से रूबरू करा रही हैं। अब तो बुजुर्गों की देखादेखी युवा भी ‘गुड मार्निंग’ को किनारे कर राम...राम और जय श्रीराम के उच्चारण से एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं। भारत की कई गर्भवती महिलाएं 22 जनवरी के शुभ दिन मां बनने को आतुर हैं। अकेले मध्यप्रदेश के शहर इन्दौर की लगभग साठ गर्भवती महिलाओं ने अस्पताल के चिकित्सकों से अनुरोध किया है कि उनकी प्रसूति 22 जनवरी को करवाएं ताकि उनका मातृत्व राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के शुभ संयोग से जुड़ जाए। विदेशों में भी 22 जनवरी के ऐतिहासिक क्षण को लेकर जबरदस्त उत्साह है। अमेरिका में तो पूरे एक सप्ताह तक प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मनाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी है...। किसी शायर ने क्या खूब कहा है, 

‘‘दया अगर लिखने बैठूँ, होते हैं अनुवादित राम

रावण को भी नमन किया, ऐसे थे मर्यादित राम...।’’

Thursday, January 11, 2024

नकाब

    नारंगी नगर नागपुर में सीबीआई ने पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (पेसो) के दो अधिकारियों को दस लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ने में सफलता पायी। राजस्थान की एक केमिकल कंपनी को अतिरिक्त डिटोनेटर बनाने की अनुमति देने के लिए इस जगजाहिर सहज-सुलभ भ्रष्टाचारी राह को चुना गया था। देशभर में विस्फोटक उत्पादन करने वाली कंपनियों पर नियंत्रण और नज़र रखने वाले पेसो का मुख्यालय नागपुर के सेमिनरी हिल्स पर स्थित है। पुलिस तथा सीबीआई कार्यालय को लगातार शिकायतें मिल रहीं थीं कि इस कार्यालय के अधिकारी विस्फोटक निर्माता कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनके विस्फोटक निर्माण लाइसेंस रद्द करने की धमकी देकर लाखों रुपये की रिश्वत लेते हैं। बिना देखे-जांचे किसी भी कंपनी को मनचाहा उत्पादन करने की छूट देते हैं। राजस्थान की केमिकल कंपनी को उसकी इच्छा के अनुसार डिटोनेटर बनाने की अनुमति देने की ऐवज में भ्रष्ट अधिकारियों ने दस लाख रुपये की घूस मांगी थी, लेकिन अंतत: सीबीआई के बिछाये जाल से बच नहीं पाये। राजनेताओं, सत्ताधीशों और नौकरशाही को हर तरह से संतुष्ट कर देश में कई लोगों ने गोला-बारूद और हथियार बनाने के लायसेंस लेकर चंद वर्षों में करोड़ों-अरबों की धन दौलत जमा कर ली है। गोला-बारूद बनाने वाले अधिकांश उद्योगपति सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। कई बार उन्हीं के कारखानों से विस्फोटक सामग्री अराजक तत्वों तक पहुंच जाती है और उन्हें पता ही नहीं चल पाता? जब कहीं धमाके होते हैं तब भी उन पर आंच नहीं आती! 

    अपने यहां नाम मात्र के ही उद्योगपति हैं, जो अपने बारूद कारखानों में सुरक्षा नियमों का सतर्कता के साथ पालन करते हैं। अधिकांश धन्नासेठों के लिए मेहनतकश मजदूर कीड़े-मकोडे हैं। नागपुर के इस रिश्वत कांड के उजागर होने से कुछ दिन पहले नागपुर में स्थित दुनिया की सबसे बड़ी विस्फोटक निर्माता कंपनी में हुए भयानक विस्फोट में छह महिलाओं सहित नौ श्रमिकों के परखच्चे उड़ गये। उनके परिजन अपनों के शवों को देखने के लिए तरसते रहे। उनके हाथ आए बस चीथड़े ही चीथड़े। जिनका रोते-कलपते हुए उन्होंने अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन उनके आंसू थम नहीं पाये। हथियारों के कारखाने के स्वामी की नज़र में भले ही हादसा हो, लेकिन मृतकों के परिजनों के लिए तो यह हत्या ही है। अंधाधुंध धन कमाने के लिए किया गया अक्षम्य संगीन अपराध है। इस बारूद के कारखाने में पहले भी कई बार जानलेवा विस्फोट हो चुके हैं, लेकिन इस बार के भयानक धमाके के बाद का मंजर इतना दर्दनाक था कि देखने वालों की रूह कांप गयी। आंखों से आंसू ही आंसू झरते रहे। लोगों ने धमाके की आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनी। सभी मृतकों के टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे शवों को बड़ी मुश्किल से समेट कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। प्रतिवर्ष हजारों-हजारों टन विस्फोटक बनाने वाली इस इंडस्ट्रीज में भारतीय सेना के उपयोग में आने वाले गोला-बारूद और विभिन्न हथियारों का निर्माण किया जाता है। 1984 में भारतीय स्टेट बैंक से साठ लाख रुपये का कर्ज लेकर विस्फोटकों के निर्माण क्षेत्र में पदापर्ण करने वाली कंपनी के निर्माता आज की तारीख में पंद्रह हजार करोड़ रुपये से अधिक की धन-दौलत के स्वामी हैं। देश के शीर्ष धनाढ्यों में अपना नाम शुमार करा चुके इस कंपनी के सर्वेसर्वा का एक से एक ऊंचे लोगों के बीच उठना-बैठना है। उनकी छाती पर दानवीर का तमगा भी लगा है। विख्यात पत्रिका फोर्ब्स के कवर पेज पर उनकी तस्वीर शोभायमान हो चुकी है। 

    कुछ दिन पहले एक अंतराष्ट्रीय जांच एजेंसी की बड़ी ही चौंकाने वाली रिपोर्ट पढ़ने में आयी कि भ्रष्टाचार के मामले में हमारा महान भारत देश पांचवें नंबर पर आ गया है। इसी रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पृथ्वी का स्वर्ग कहलाने को बेताब हिंदुस्तान में सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार आम भ्रष्टाचार के मुकाबले सर्वाधिक है, जिसे राजनीति और राजनेताओं का भरपूर साथ और आशीर्वाद मिलता चला आ रहा है। सरकारी भ्रष्टाचारियों की बदौलत कई काले-पीले उद्योगपति देखते ही देखते टाटा-बिरला और अंबानी के समक्ष खड़े नज़र आने लगे हैं। देश के जाने-माने कुछ उद्योगपति अपनी आत्मकथाओं में लिख चुके हैं कि यदि भ्रष्ट अफसरशाही नहीं होती तो वे यहां तक पहुंच ही नहीं पाते। कंगाली और गरीबी के चक्रव्यूह में ही फंसे रह जाते। देश में नकाबपोश अफसरों की भरमार है। यही धुरंधर कारोबारियों को भ्रष्टाचार के मार्ग सुझाते हैं। जब तक यह गठजोड़ रहेगा तब तक इस देश का ईमानदार आदमी गरीबी और भुखमरी के शिकंजे में जकड़ा रहेगा। अधिकांश भ्रष्टाचारियों के चेहरों के नकाब उतर ही नहीं पाते। अब तो बेइमान धंधेबाज सीनाजोरी करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर तथा विभिन्न सरकारी जांच एजेंसियों के कार्य में विघ्न डालते हुए उन पर हमले भी करने लगे हैं। अभी हाल ही में प.बंगाल के उत्तरी परगना जिले में तृणमूल कांग्रेस नेता के यहां ईडी ने छापा मारी की तो अधिकारियों पर जानलेवा हमला कर उन्हें लहुलूहान किया गया। छत्तीसगढ़ के भिलाई में भी ईडी के अधिकारियों पर ऐसा ही हमला हो चुका है। पटना तथा मेरठ में शराब माफियाओं के यहां जांच करने गये अधिकारियों के पिटने की खबरों के साथ-साथ और भी ऐसी मार-ठुकायी की वारदातें सुनने-पढ़ने में आती रहती हैं। कुछ राजनेता और सत्ताधीश तो ईडी और आयकर विभाग को जरा भी अहमियत ही नहीं देते। उनकी निगाह में यह सरकारी संस्थान कठपुतली भर हैं। इनसे काहे को डरना। डरने का काम तो आम जनता का है। हम तो खास हैं...।

Thursday, January 4, 2024

गारंटी

    बीते सालों से अलग है। 2023 के गर्भ से निकला 2024 का यह साल। इस वर्ष में क्या-क्या होगा उसका अनुमान लगाना आसान भी है और थोड़ा मुश्किल भी। वक्त की नब्ज़ को पूरी तरह से जांचने और परखने वाला डॉक्टर अभी तक तो पैदा नहीं हुआ है। इसे लेकर अपने-अपने अनुमान होते हैं। अपनी-अपनी सोच होती है। वक्त से बड़ा बलवान और कोई नहीं। कब किसी अर्श से फर्श पर पटक दे। राजा को फकीर बना दे, बताना मुश्किल है। बीते सालों में इस कहावत को हमने बार-बार साकार होते देखा है। धर्म और राजनीति का घालमेल भी हमारे सामने है। ऐसा भी लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की गाड़ी धर्म और राजनीति की पटरी पर ही चल रही है। नामी-गिरामी बाबाओं, स्थापित नेताओं की नैया डूबने और किस्मत के चमकने के अटूट सिलसिले भी किसी से छिपे नहीं हैं।

    चार दशक तक राम मंदिर के निर्माण को लेकर संशय की स्थिति बनी रही। करोड़ों भारतीयों का स्वप्न अब शीघ्र ही साकार होने को है। 22 जनवरी को रामलला की भव्य मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। वर्षों से राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र रहे अयोध्या को सर्व सुविधायुक्त बनाने तथा श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह को यादगार बनाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी जा रही है। अयोध्यावासियों ने भी देश और दुनिया के अतिथियों के स्वागत-सत्कार के लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं। श्रीराम मंदिर के अलौकिक स्वरूप और उसकी भव्यता की खबरों को सुनने और के पश्चात करोड़ों भारतीय 22 जनवरी को ही अयोध्या पहुंचने को लालायित हैं। यह स्वाभाविक भी है, लेकिन इस जल्दबाजी से खतरे भी जुड़े हैं। इसीलिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सभी से प्रार्थना की है कि मुझे पता है कि हर किसी की 22 जनवरी को अयोध्या आने की प्रबल तमन्ना है, लेकिन सभी राम भक्तों के एक साथ पहुंचने से सुरक्षा और व्यवस्था की गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है। इसलिए मेरी आप सबसे बार-बार प्रार्थना है कि जिस तरह से आपने 500 साल तक इंतजार किया है, तो कुछ दिन तक और इंतजार कर लें। अयोध्या का भव्य, दिव्य मंदिर आने वाली सदियों-सदियों तक दर्शन के लिए उपलब्ध है। 22 जनवरी को जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम विराजमान हों तब अपने घरों में श्रीराम ज्योति जलाएं। दीपावली मनाएं। इस दिन की शाम पूरे हिंदुस्तान में जगमग-जगमग होनी चाहिए। 

    गौरतलब है कि देश के कुछ मंदिरों, धार्मिक स्थलों में अनियंत्रित भीड़ की बेसब्री की वजह से भगदड़ मचती रही है, जिसमें कई लोगों की जान जाने तथा बुरी तरह से घायल होने की सुर्खियां पाती रही हैं। 2024 में ही आम चुनाव होने हैं। भाजपा ने ‘अबकी बार 400 पार, तीसरी बार मोदी सरकार’ के नारे को जोर-शोर से गुंजायमान करना प्रारंभ कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी श्रीराम मंदिर को अपनी उपलब्धि दर्शाने पर तुले हैं। बीते महीने सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में राम मंदिर के चित्र और नारे वाले चुनावी होर्डिंग लगाये थे तो कांग्रेस ने इसे आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लंघन बताकर आपत्ति दर्शायी थी। भाजपा के नेताओं का दावा था कि राम मंदिर का चित्र कोई धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। इसलिए इसके इस्तेमाल में आदर्श आचार संहिता आड़े नहीं आती। सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम और अयोध्या में मंदिर निर्माण के आश्वासन की बदौलत ही भारतीय जनता पार्टी की गाड़ी यहां तक पहुंची है। अब तो उसने अपना वादा भी पूरा कर दिया है। सफलता का श्रेय लेने का चलन तो तब से चला आ रहा है जब से देश आजाद हुआ है। कम अज़ कम भारत में तो इसके बिना राजनीति चलने से रही। 22 जनवरी को अयोध्या में ही नहीं पूरे देश में भगवान श्रीराम के चित्र के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें नज़र आएंगी। यह सिलसिला लोकसभा चुनाव तथा उसके बाद भी बना रहेगा। विपक्षी बस देखते और खौलते रह जाएंगे। स्किल डेवलपमेंट, डिजिटल इंडिया, मेक-इन-इंडिया और सबसे महत्वपूर्ण स्टार्ट-अप के पूरे इकोसिस्टम को बढ़ावा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नाम की गारंटी देकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में भाजपा की जीत का झंडा फहराया है। यकीनन मोदी का कद भाजपा से बहुत बढ़ा हो चुका है। सिर पर खड़े लोकसभा चुनावों में भी वे मतदाताओं से यह कह कर वोट मांगेंगे कि आप सभी बस मुझ पर यकीन करें। हर वादा जरूर पूरा होगा। मतदाताओं को यदि उन पर यकीन नहीं होता तो विधानसभा के चुनावों में भाजपा को चौंकाने वाली जीत नहीं मिलती। वैसे यह भी सच है कि मतदाताओं के मन को पूरी तरह से जान और पढ़ पाना कभी भी आसान नहीं रहा। उन्होंने बड़ी खामोशी के साथ कई बार सत्ताधीशों के होश ठिकाने लगाये हैं। कई बार छले जा चुके देशवासी शाब्दिक गारंटी नहीं चाहते। वादों को धरातल पर साकार होते देखना चाहते हैं। हर भारतवासी आपसी सद्भाव, सर्वधर्म समभाव के व्यवहार की गारंटी चाहता है। वह भारत में राम राज्य के मूल्यों को पूर्णतया स्थापित होते देखना चाहता है। महिलाओं तथा दबे-कुचले भारतीयों की सुरक्षा की गारंटी के साथ-साथ वह इस बात की भी पूरी-पूरी गारंटी चाहता है कि भाजपा का कोई भी राजनेता भड़काऊ भाषणबाजी न करे। किसी के साथ अन्याय न हो। सभी के धर्म-कर्म और आस्था के मान-सम्मान के साथ शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए।