Thursday, March 30, 2023

महामानव का अवसान

    कोरोना की महामारी ने ऐसे-ऐसे महामानवों को अपना निवाला बनाया, जिनका अनेकों लोग अनुसरण करते थे। उनके क्रियाकलापों, संकल्पों, सद्भाव और मानवता से अपार जुड़ाव के निस्वार्थ भाव से बार-बार प्रेरित होते थे। उन्हीं में से एक थे श्री हरीश अड्यालकर। एक ऐसी हस्ती, जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। एकदम सरल, सहज और मिलनसार। जो भी उनसे मिलता उन्हीं का होकर रह जाता। बीती 19 मार्च, 2023 की शाम नागपुर में अड्यालकर जी की जयंती पर अड्यालकर स्मृति विशेषांक का लोकापर्ण संपन्न हुआ, जिसमें शहर, प्रदेश तथा देश के दिग्गज नेता, साहित्यकार, पत्रकार और तमाम बुद्धिजीवी सम्मिलित हुए। इस गरिमामय स्मृति विशेषांक को पढ़ने के पश्चात पता चलता है कि उनके चाहने वालों की कितनी विस्तृत दुनिया थी। समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों के प्रति अपार समर्पण और निष्ठा रखने वाले श्री हरीश अड्यालकर जी के नाम से परिचित तो मैं बहुत पहले से था, लेकिन उनसे रूबरू मिलना हुआ था वर्ष 2002 में। इस यादगार मुलाकात के माध्यम बने थे देश के वरिष्ठ पत्रकार, संपादक श्री रमेश नैय्यर। आदरणीय श्री रमेश नैय्यर जी भी अब हमारे बीच नहीं रहे। बीते वर्ष अचानक उनका स्वर्गवास हो गया। किसी कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए वे रायपुर से नागपुर आये थे। उन्होंने मुझे पहले ही बता दिया था कि निर्धारित कार्यक्रम के समापन के पश्चात लोहिया अध्ययन केंद्र जाना है। डॉ. राम मनोहर लोहिया की प्रेरक समाजवादी सोच को जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगभग साढ़े चार दशक पूर्व अड्यालकर जी ने नागपुर में लोहिया अध्ययन केंद्र की स्थापना की थी और अंतिम समय तक डॉ. लोहिया तथा महात्मा गांधी के सर्वधर्म समभाव के विचारों के प्रति समर्पित रहे। 1990 से पूर्व जब मैं छत्तीसगढ़ में था तब भी बिलासपुर तथा रायपुर के पत्रकार तथा साहित्यिक मित्र अड्यालकर जी की निस्वार्थ समाजसेवा तथा लोहिया अध्ययन केंद्र की चर्चा करते रहते थे। हमेशा ऊर्जावान, तरोताजा रहने वाले अड्यालकर जी अपने सिद्धांतों और उसूलों के बड़े पक्के थे। जो एक बार ठान लेते उसे पूरा करके ही दम लेते। डॉ. लोहिया की जन्म शताब्दी पर उन्होंने ‘लोहिया : तब और अब’ का प्रकाशन किया और सतत एक वर्ष तक देशभर के अतिथि विद्वानों को आमंत्रित किया। वे लोहिया अध्ययन केंद्र में सदैव ऐसे विद्वान वक्ताओं को आमंत्रित करते, जो वास्तव में निर्धारित विषय में जानकार होते थे। सच्चे समाजवादी रघु ठाकुर के प्रति उनके हृदय में जो स्नेह, सम्मान था वह भी देखते बनता था। रघु ठाकुर भी उनसे दिल से जुड़े थे। अड्यालकर जी के हिंदी प्रेम और सार्थक साहित्य के प्रति अपार लगाव का जीवंत उदाहरण है, ‘सामान्य जनसंदेश’ पत्रिका, जिसे उन्होंने आर्थिक संकटों को झेलते हुए भी निरंतर प्रकाशित किया। 

    दरअसल, अड्यालकर जी व्यक्ति नहीं, एक जीवंत संस्था थे। मैंने कई संस्थाओं को करीब से देखा और जाना है, जहां के संस्थापक, कर्ताधर्ता संस्था को अपनी जागीर समझते हैं। संस्था के मंच पर उन्हीं का एकाधिकार रहता है। अपने जान-पहचान वालों को निमंत्रित कर उनकी आरती गाने और गवाने का उन्हें जबरदस्त रोग होता है। उनका बस एक ही लक्ष्य होता है अपनी बनायी या हथियायी संस्था के माध्यम से अपनी तथा अपने चाटूकार मित्रों की छवि को चमकाना। अखबारों में बस अपनी ही फोटुएं तथा न्यूज छपवाकर उनकी एलबम बनाना। मंच से चिपके रहने की इनकी असाध्य बीमारी इन्हें हंसी का पात्र बनाती है, लेकिन छपास रोगियों को कभी कोई लज़्जा नहीं आती है। अड्यालकर जी तो लोहिया अध्ययन केंद्र के मंच से ही दूर रहते थे। अपनी वास्तविक प्रतिभा का लोहा मनवा चुके योग्यतम व्यक्ति को मंच पर आसीन करने में उन्हें अपार संतुष्टि और खुशी मिलती थी। वे सामने वाले का नाम, हैसियत और जैसे-तैसे पायी हवा-हवाई ऊंचाई को देखकर उसका मूल्यांकन नहीं करते थे। उन्होंने आसानी से किसी के प्रभाव में आना सीखा ही नहीं था। उनके द्वारा देशभर के ऐसे विद्वानों को लोहिया अध्ययन केंद्र में निमंत्रित किया जाता था, जो जोड़-तोड़ के धनी होने की बजाय वास्तव में प्रतिभावान हों। देश और प्रदेश के निष्पक्ष, सजग और निर्भीक पत्रकार तथा साहित्यकार स्वयं लोहिया अध्ययन केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए लालायित रहते थे। उनके लिए यह केंद्र कभी किसी तीर्थ से कम नहीं रहा। नागपुर आने पर केंद्र तथा अड्यालकर जी से मिलना उनकी प्राथमिकता में शामिल होता था। स्थापित ही नहीं, नये पत्रकारों, कवियों, व्यंग्यकारों, कहानीकारों, समाजसेवकों को सम्मानित करने की उनमें अद्भुत लालसा रहती थी। उनका स्नेह और अपनत्व पाकर नये पत्रकार, लेखक, कवि खुद को खुशनसीब और सौभाग्यशाली मानते थे। उन्हीं में एक खुशनसीब मैं भी हूं, जिसे उनका भरपूर साथ, विश्वास और आशीर्वाद मिलता रहा।

    2018 में प्रकाशित मेरे कहानी संग्रह ‘चुप नहीं रहेंगी लड़कियां’ पर परिचर्चा आयोजित करने की उनकी जिद मुझे ताउम्र याद रहेगी। पुस्तक विमोचन तथा चर्चा के मामले में सुस्त तथा संकोची होने के कारण मैं टालमटोल करता चला आ रहा था। इसी दौरान एक दिन मुझे उनका फोन आया कि तुम्हारी कृति पर शनिवार, 23 नवंबर (2019) की शाम 5.30 बजे परिचर्चा एवं सम्मान का कार्यक्रम होने जा रहा है। देश के विख्यात साहित्यकार गिरीश पंकज रायपुर से विशेष रूप से पधार रहे हैं। पत्रकार मित्र टीकाराम शाहू ने जब मेरे हाथ में निमंत्रण पत्रिका थमायी तो स्तब्धता के साथ-साथ मेरे भीतर की नदी का पानी आंखों की कोरों तक उमड़ आया।

    कोरोना काल के दौरान उन्हें अपनी नवीन कृति ‘आईना तो देखो ज़रा’ जब भेंट स्वरूप सौंपी तो उन्होंने बधाई तथा शुभकामनाओं के साथ कहा कि कोरोना के खात्मे के फौरन बाद इस कृति पर भव्य कार्यक्रम आयोजित करेंगे। जिसमें दिल्ली से ‘दुनिया इन दिनों’ के यशस्वी संपादक सुधीर सक्सेना और रायपुर से वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार रमेश नैयर को जरूर बुलवायेंगे। तब उनसे बहुत देर तक इधर-उधर की बातें होती रहीं। उन्होंने मुझे ‘सामान्य जनसंदेश’ पत्रिका के कुछ पुराने अंकों के साथ श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी तथा कुछ अन्य लेखकों की सात-आठ पुस्तकें भेंट स्वरूप दीं। स्पष्टवादी अड्यालकर जी का धन के प्रति कभी कोई मोह नहीं रहा। वे अक्सर कहते थे कि अवसरवादिता, जी-हजूरी और गुलामी कर जो सफलता मिलती है वह अस्थायी होती है। असली मज़ा तो अपनी मेहनत, ईमानदारी और दूरदर्शिता से पायी उपलब्धियों का होता है। 

    करनी और कथनी में सदैव एकरूपता रखने वाले इस महामानव को कई सम्मानों, पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें जो भी सम्मान निधि भेंट स्वरूप प्रदान दी जाती थी उसे भी लोहिया अध्ययन केंद्र को समर्पित कर देते थे। तीन सितंबर 2020 की शाम कोरोना की चपेट में आने के कारण उनके निधन की खबर सुनी तो दिमाग सुन्न हो गया। दिल और दिमाग को हिला कर रख देने वाली इस अत्यंत दुखद खबर के दो दिन बाद ही उनके 52 वर्षीय पुत्र नितिन की भी कोरोना की वजह से हुई मौत पूरी तरह से अंतर्मन को थर्रा गयी। ईश्वर की इस निर्दयता ने मन को छलनी कर दिया। जो हमारे प्रेरणा स्त्रोत हों, जिनका स्नेह और साथ बल देता हो उन्हें एकाएक छीन लेना बेइंसाफी ही तो है। 

    ‘‘ईश्वर- हां... नहीं... तो।’’ लोहिया अध्ययन केंद्र में डॉ. सुधीर सक्सेना की इसी काव्यकृति के विमोचन और परिचर्चा कार्यक्रम में देश के विख्यात लेखक, समीक्षक ज्योतिश जोशी जी का विशेष रूप से दिल्ली से आगमन हुआ था। तभी उनका पहली बार अड्यालकर जी से रूबरू मिलना हुआ था। उनके जीवन चरित्र के बारे में जानकर जोशी जी तो उनके पूरी तरह से मुरीद हो गये थे। उन्होंने कहा था कि अड्यालकर जी किसी महाग्रंथ से कम नहीं। इसे हर उस देशवासी को पढ़ना और प्रेरित होना चाहिए, जिसे देश और समाज की चिंता है। दिल्ली पहुंचते ही उन्होंने दैनिक ‘जनसत्ता’ में सच्चे समाजवादी की जुनूनी संघर्ष गाथा पर विस्तार से लिखा था। स्पष्टवादी अड्यालकर जी मुखौटाधारियों को पहचानने की अद्भुत क्षमता रखते थे। विश्वासघाती तो उन्हें शूल की तरह चुभते थे। नागपुर शहर के एक लेखक, पत्रकार पर उन्हें कभी बहुत भरोसा था, लेकिन जब उसने अपना असली रंग दिखाया तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उससे दूरियां बना लीं। इसका उल्लेख स्वयं अड्यालकर जी अक्सर अंतरंग बातचीत में करना नहीं भूलते थे। वे ऐसे बुद्धिजीवी थे, जिनपर किसी बड़े मंत्री, नेता और नौकरशाह का रुतबा असर नहीं डालता था। लोहिया तथा गांधी के इस सच्चे अनुयायी के लिए तो सभी एक समान थे। न कोई बड़ा, न कोई छोटा।

Thursday, March 23, 2023

यह क्या है सरकार?

     आजकल के युवा प्यार के भंवर में फंसने की जल्दी में हैं। प्यार, मोहब्बत ही क्यों, हर काम को फर्राटे से करने में उन्हें जिस रोमांच का स्वाद मिलता है, उससे वे वंचित नहीं होना चाहते। आज के अधिकांश लड़के-लड़कियों को परिणाम की भी चिंता नहीं रहती। जो होगा देखा जाएगा की मानसिकता के इस जमाने में करे कोई और भरे कोई की पुरातन कहावत बड़ी तीव्रता से चरितार्थ होती दिख रही है। सरकारें और स्वयंभू पंचायतें अपनी मनमानी कर रही हैं। जेबों से बलवान ऊंची पहुंच वालों का जबरदस्त बोलबाला है। असहायों और गरीबों की कोई सुनने को तैयार नहीं। गजब की मनमानी का दौर है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के छोटे से गांव में रहने वाले उधा अहिरवार के जवान बेटे को एक सजातीय लड़की से प्यार हो गया। जब उन्हें लगा कि परिवार और समाज उनके प्यार को स्वीकार करने की बजाय अवरोध खड़े करने से नहीं चूकने वाला तो दोनों घर-गांव छोड़ भाग गये। लड़की के माता-पिता को लगा कि किसी ने दिन-दहाड़े उनकी प्रतिष्ठा को रौंदते हुए उनकी भोली-भाली बेटी को बरगलाने की अक्षम्य दुष्टता की है। पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवाने की बजाय उन्होंने गांव की दबंगों की पंचायत का दरवाजा खटखटाया। पंचायत के शूरवीर कर्ता-धर्ता तुरंत काम में लग गये। उन्होंने लड़के के पिता उधा अहिरवार को तुरंत फरमान सुनाया कि वह कहीं से भी दोनों को ढूंढ़ कर लाए नहीं तो उसकी तथा उसकी पत्नी की ऐसी-तैसी करने में देरी नहीं की जाएगी। उन्हें ऐसा दंड दिया जाएगा, जिससे उनकी कई पीढ़ियां शर्म और दर्द से कराहती रहेंगी। लड़के के माता-पिता ने हाथ जोड़कर कहा कि उनका जवान बेटा अपनी मनमर्जी का मालिक है। उसके क्रियाकलापों की उन्हें कभी कोई जानकारी नहीं रहती। ऐसे में वे दोनों को कहां से पकड़कर लाएं? भगौड़े लड़के को पंचायत के समक्ष हाजिर करने में असमर्थता जताने पर पंचों के गुस्से का पारा बेकाबू हो गया। लड़की के परिजनों ने वृद्ध माता-पिता को अंधाधुंध पीटना प्रारंभ कर दिया। पंचों के हिटलरी आदेश पर लड़के के पिता के हाथ-पैर में कसकर रस्सी बांधने के पश्चात नीम के पेड़ से बांध दिया गया, ताकि सभी जान जाएं कि किसी संपन्न परिवार की लड़की को भगाने पर लड़के के गरीब माता-पिता की कैसी दुर्गति हो सकती है। दो दिन तक उन्हें जानवरों की तरह मारा-पीटा जाता रहा। पत्नी रोती-बिलखती रही। अपने हाथों से पति को खाना भी खिलाती रही। इसी दौरान किसी जागरूक सज्जन इंसान ने पुलिस को फोन लगाकर पूरा माजरा बताया, लेकिन वह नहीं आई। कई घंटों की मारपीट तथा जंजीरों में बंधे रहने के कारण उधा अहिरवार अधमरी हालत में जा पहुंचे। बड़ी मुश्किल से जंजीरों से मुक्त करवा पत्नी पति को घर ला पाई। कुछ देर के बाद उसे शौच के लिए बाहर जाना पड़ा। उसके जाते ही उधा ने आत्महत्या कर ली। बंधक बनाकर मारपीट का वीडियो सामने आने के बाद पुलिस की नींद टूटी। काश! वह तब जाग जाती जब जाति पंचायत बेटे की करनी की खौफनाक सज़ा पिता को देने पर तुली थी, लेकिन अपने देश में ऐसे किसी चमत्कार की आशा रसूखदार तो रख सकते हैं, लेकिन दलित, शोषित और गरीब तो बिलकुल नहीं। 

    अपनी गुंडागर्दी और मनमानी चलाने वाली खाप पंचायतों तथा जाति पंचायतों को सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा अमान्य घोषित किया जा चुका है, लेकिन फिर भी उनकी तानाशाही की खबरें मीडिया में सुर्खियां पाते हुए चौंकाती रहती हैं। उत्तर भारत में तो ये पंचायतें जाति, गोत्र और परिवार की इज्जत के नाम पर लड़के-लड़कियों के लिए भय तथा आतंक का प्रयाय बनी हुई हैं। प्यार, मोहब्बत एक ऐसी पवित्र भावना है, जिसका गरीबी, अमीरी, जाति धर्म और गोत्र से कोई लेना-देना नहीं होता। यह तो बस हो जाता है। इसलिए अंधा भी कहलाता है, लेकिन वो अंधे क्यों बन जाते हैं, जो मासूम प्रेमी-प्रेमिका के आड़े आते हैं! उन्हें कहीं दूर भाग जाने को विवश करते हैं? इन पंचायतों में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता। पुरुष ही सभी फैसले लेते हैं। इसी तरह से इन पंचायतों में दलितों के लिए भी कोई जगह नहीं। अगर कहीं होती भी है तो उनकी सुनी नहीं जाती। जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर चलने वाली इन पंचायतों की तानाशाही ने कितनी जानें ली हैं, इसका कोई हिसाब नहीं। 

    हैरत भरी हकीकत तो यह भी है कि, अब तो सरकारें भी खाप पंचायतों की तर्ज पर फैसले करने, सुनाने लगी हैं। अपनी अहंकारी इज्जत की खातिर बेकसूर पिता को जंजीरों में बांधने की खबर पढ़ते-पढ़ते मुझे आसिफ और साक्षी की याद हो आई। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव में रहने वाले इस सच्चे प्रेमी जोड़े को धर्म के ठेकेदारों ने बार-बार चेताया कि तुम दोनों का अलग-अलग धर्म से वास्ता है, ऐसे में फौरन दूरियां बना लो। नहीं तो वो हश्र होगा कि दुनिया देखेगी। जिद्दी प्रेमी-प्रेमिका अंत तक नहीं माने। साक्षी के माता-पिता ने तो किसी तांत्रिक से झाड़फूंक भी करवायी फिर भी उनकी बेटी की अक्ल ठिकाने नहीं आयी। दोनों ने अपने गांव से पांच सौ किलोमीटर दूर भागकर शादी कर ली। प्रेम के शत्रुओं के डर से भागते फिर रहे जोड़े ने एक वीडियो भी बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसमें साक्षी बड़े साहस के साथ कहती दिखी कि मैं अपनी मर्जी से आसिफ के साथ शादी के बंधन में बंधी हूं। हमें आजादी से जीने दिया जाए। साक्षी के माता-पिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी कि बदमाश आसिफ उनकी बेटी को बरगलाकर ले भागा है। पुलिस ने भी खूब चुस्ती दिखायी। वह दोनों के पीछे दौड़ पड़ी। समाज में आपसी तनाव और खिंचाव के मंजर देख प्रशासन भी ऐसे हरकत में आया कि जागरूक(?) प्रशासनिक अधिकारियों ने रातों-रात आसिफ के परिवार की दुकान और घर को बुलडोजर चलवा कर जमींदोज कर दिया। कारण भी बता दिया कि अवैध निर्माण था इसलिए गिरा दिया। मेरे मन में बार-बार यही विचार आता रहा कि खुद को सही दर्शाने के लिए तर्क और बहाने कितनी आसानी से तलाश लिए जाते हैं।

Thursday, March 16, 2023

आप क्या सोचते हैं?

    दलितों, शोषितों और अल्पसंख्यकों के साथ जुल्म थमते नजर नहीं आते। कोई भी ऐसा दिन नहीं होता जब देश में कहीं न कहीं महिलाओं और बच्चियों के साथ अमानवीय बर्ताव की खबर दिल न दहलाती हो। कुछ बेलगाम गुंडे, बदमाशों तथा धर्म-जाति के ठेकेदारों ने देश में खौफ और अराजकता फैलाने का अभियान-सा छेड़ रखा है। उन्हें कानून, प्रशासन और शासन का भी कोई भय नहीं। वे इस सच को भी अपने पैरोंतले रौंदने-कुचलने से बाज नहीं आ रहे कि भारत देश की अपनी एक संस्कृति और मान-मर्यादा है। जो भी यहां जन्मा है वह भारत माता की संतान है। हर किसी को खुली हवा में सांस लेने, जीने, रहने की पूरी आज़ादी है, लेकिन देश को तोड़ने पर आमादा विषैले चेहरे अपनी कमीनगी से बाज नहीं आ रहे हैं। लातों के भूतों के हिंसक तमाशों का पुरजोर विरोध करने की बजाय खामोशी और नजरअंदाज करने की परिपाटी बददिमाग जुल्मियों के हौसले बढ़ा रही है।

    देश की बुलंद राजधानी दिल्ली में एक जापानी लड़की को अकेली देखकर तीन गुंडे उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ते हैं, लेकिन कोई उसे बचाने नहीं आता। कहीं कोई विरोध का स्वर नहीं लहराता! पर्यटन की शौकीन यह लड़की बड़ी उमंगों, तरंगों के साथ भारत में खासतौर पर होली के रंगों में सराबोर होने को आई थी, लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से अपनी अस्मत बचायी। मध्य दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में कुछ लोगों को होली खेलते देख वह उनके निकट पहुंची ही थी कि तीन बदमाशों ने उसे जबरन काले-पीले सस्ते रंगों से पोतना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने लड़की के नाजुक ज़िस्म को जहां-तहां दबोचा, जिससे वह अपनी जान बचाने के लिए जंगल में अकेली पड़ी हिरनी की तरह छटपटाने और घबराने लगी। वासना की आंधी में नाचते-गाते बदमाशों ने उसके सिर पर धड़ाधड़ अंडे फोड़े और उसके अंगों से जीभर कर खिलवाड़ और बदसलूकी की। उसके लाख विनती करने के बावजूद जब वे नहीं माने तो उसने उन पर थप्पड़ों की बरसात भी की। विदेशी बाला की घृणा, तिरस्कार और थप्पड़ों की बरसात को वे प्रसाद की तरह ग्रहण करते रहे और भारत माता के माथे पर कलंक का काला टीका लगाते रहे। हतप्रभ लड़की ने मन ही मन कसम खायी कि अब वह कभी भी भारत देश की धरा पर कदम नहीं रखेगी। उसने जो सोचा और सुना था वो भारत तो नदारद था। इस शर्मनाक घटना का वीडियो जब असंख्य लोगों ने सोशल मीडिया पर देखा तो उनका खून खौल गया। ताज्जुब है कि उनके खून में जरा भी उबाल नहीं आया जो घटनास्थल पर तमाशबीन की तरह मौजूद थे! 

    राजधानी दिल्ली को सभ्य और सुलझे लोगों का नन्हा से प्रदेश कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि यहां के निवासी किसी के फटे में टांग नहीं अड़ाते। अपने में ही मस्त रहते हैं। लेकिन...? यहीं के शानदार मयूर विहार में वर्षों से रहते चले आ रहे हैं, राम अवतार वर्मा। वे मूलत: राजस्थान के हैं। रोजी-रोटी की तलाश उन्हें दिलवालों की महानगरी दिल्ली ले आई। राम अवतार वर्मा शुरू-शुरू में सड़क किनारे चप्पल जूते सिलते थे। कालांतर में उन्होंने अपनी छोटी सी दूकान बना ली, जिस पर अपने नाम का बोर्ड भी लगा दिया। खुद के नाम के साथ अपना मोबाइल नंबर भी लिख दिया ताकि यदि कभी वे दुकान पर न हों तो लोग उनसे मोबाइल के माध्यम से संपर्क कर सकें। कुछ दिन पूर्व दिल्ली के किसी दबंग मालदार की दुकान के बोर्ड पर ऩजर पड़ी। नाम के आगे वर्मा लिखा देख उसका तो खून ही खौल गया। दरअसल उसके नाम के साथ भी वर्मा जुड़ा है। उसका अच्छा खासा कारोबार है। साथ ही समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा होने का अहंकार भी। कहां वह और कहां यह जूता-चप्पल सिलने वाला अदना-सा दलित मजदूर। उस ‘ऊंचे आदमी’ ने पहले भी राम अवतार पर जाति सूचक गालियों की बौछार की फिर फौरन बोर्ड पर लिखे वर्मा सरनेम को हटाने, मिटाने का फरमान सुना दिया। बाल-बच्चे वाले गरीब राम अवतार ने डरकर उसी के सामने ‘वर्मा’ के ऊपर पेपर चिपका दिया, जिससे अहंकारी रईस चला गया। कुछ दिनों के पश्चात जब तेजी से बारिश बरसी, बोर्ड भी भीग गया और उस पर चिपका कागज भी बोर्ड से उतर गया। दो-चार दिनों के पश्चात उस धनवान वर्मा का फिर से वहां से गुजरना हुआ तो वह बोर्ड पर वर्मा लिखा देख आपे से बाहर हो गया। राम अवतार ने फिर हाथ पांव जोड़े और नाम के आगे मजबूती से कागज चस्पा कर दिया। अपना नाम बदलने को मजबूर हुए राम अवतार की पुलिस ने भी नहीं सुनी।

    कुछ हफ्ते पूर्व दर्शन सोलंकी ने खुदकुशी कर ली। उसके मां-बाप ने बड़े अरमानों के साथ उसे मुंबई में केमिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए भेजा था। दर्शन को कॉलेज का माहौल रास नहीं आया। दलित और गरीब होने के कारण सहपाठी उस पर व्यंग्यबाण चलाते हुए अपमानित करने में लगे रहते थे। 12 फरवरी, 2022 के दिन उसने आईआईटी परिसर में बने हॉस्टल के सातवें माले से कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। हालांकि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं। दर्शन की तरह देश में कई होनहार भेदभाव के दंशों को सहन नहीं कर पाने के कारण इस कायराना रास्ते पर चलते हुए अपने मां-बाप के सपनों का खून कर चुके हैं। अपने होनहार बेटे को खो चुके दर्शन के माता-पिता ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार करते हुए सीधे-सीधे कहा कि यह खुदकुशी नहीं है, बल्कि यह तो एक सुनियोजित हत्या है। मेरा भी यही मानना है कि किसी को आत्महत्या के लिए विवश करना, उसकी हत्या करना ही है। इस बारे में आपका क्या कहना है? आप क्या सोचते हैं?

Thursday, March 9, 2023

माथे में ठुकी कील

    अंधविश्वास, अंधभक्ति, भ्रम, शंका, प्रतिशोध और क्रोध यह सभी ऐसे रोग हैं, जिनका कहीं न कहीं एक दूसरे से भी बड़ा गहरा नाता है। इनके शिकार और शिकारी कल भी खबरों में छाये थे, आज भी बड़ी-बड़ी सुर्खियों में हैं। अफसोस तो यह भी है कि पढ़े-लिखे लोग भी इस बीमारी और महासंकट की जंजीरों में जकड़े हैं। केरल प्रदेश की 23 वर्षीय ग्रीष्मा को कॉलेज की पढ़ाई के दौरान 24 वर्षीय जेपी शैरोन से प्यार हो गया। मिलते-मिलाते दोनों ने परिणय सूत्र में बंधने का पक्का मन बना लिया। इसी दौरान ग्रीष्मा के माता-पिता ने अपनी इकलौती बेटी की शादी किसी आर्मी आफिसर से तय कर दी। हालांकि उन्हें जानकारी थी कि उनकी बेटी शैरोन को दिलोजान से चाहती है। दरअसल, हुआ यह कि जब वे अपनी लाड़ली के लिए रिश्ता तलाश रहे थे, तभी उन्होंने किसी ज्योतिषी को बेटी की कुंडली दिखायी। धन के लालची धूर्त ज्योतिषी ने यह बताकर उनके पैरोंतले की जमीन खिसका दी कि ग्रीष्मा की पहली शादी जिससे भी होगी उसकी कुछ ही महीनों के बाद मौत हो जाएगी। हां, दूसरी शादी जरूर हर तरह से खुशहाल और पूरी तरह से सफल रहेगी। ग्रीष्मा को यह बात जब पता चली तो वह बेचैन हो उठी। उसकी रातों की नींद जाती रही। उसके अंदर बैठी स्वार्थी नारी ने नागिन बनने में भी देरी नहीं लगायी। वह किसी भी हालत में विधवा होने की वेदना से बचना चाहती थी। उसने घण्टों बैठकर हिसाब-किताब लगाया तो आर्मी अफसर से शादी कर ठाठ से उम्र बिताने में फायदा नज़र आया। 

    कभी अपने प्रेमी शैरोन को दिलो-जान से चाहने वाली अंधविश्वासी प्रेमिका ने जो राह पकड़ी उसने तो उसके नारी होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। उसने बड़ी चालाकी से शैरोन को मंदिर ले जाकर उससे अपनी मांग में सिंदूर भरवाया और गले में मंगलसूत्र पहन कर पतिव्रता पत्नी का ढोंग करते हुए कुंडली दोष से मुक्ति पाने की क्रूरतम लीला प्रारंभ कर दी। वह सुबह-शाम अपने पति-परमेश्वर को आयुर्वेदिक जूस पिलाने लगी, जिसमें मिला होता था धीमा ज़हर। भोला पति इस भरोसे के साथ पीता चला गया कि पत्नी को उसकी सेहत की बड़ी चिन्ता है। इसीलिए पानी कम और जूस ज्यादा पिलाती है। कई हफ्ते बीत जाने पर भी जहर का असर न होता देख ग्रीष्मा ने एक दिन कीटनाशक मिला जूस पिलाया तो शैरोन की तबीयत बहुत गड़बड़ा गई। शैरोन के माता-पिता को भी ग्रीष्मा पर संदेह हो गया। अपने बेटे को तुरंत अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि विषैले जूस ने शरीर के विभिन्न अंगों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। उनकी सभी कोशिशें नाकाम होती चली गईं और अंतत: शैरोन की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने भी पूरी सच्चाई उगल दी। ग्रीष्मा पहले तो किसी भी खूनी साजिश से इनकार करती रही। फिर आखिरकार उसे टूटना ही पड़ा। अब उसकी सारी जिन्दगी जेल की सलाखों में कटने वाली है। 

    देश और दुनिया में कहर बरपाने वाले कोरोना का खौफ एक महिला के मन में ऐसा बैठा कि उसके लिए उससे बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया। गुरुग्राम की रहने वाली इस महिला ने सन 2020 में अपने दस वर्ष के बेटे के साथ खुद को कमरे में ऐसे कैद किया कि अंतत: उसे बड़ी मुश्किल से 2023 के मार्च महीने में बाहर निकाला गया। कोरोना के भूत से खौफजदा महिला और उसके बच्चे ने तीन वर्षों तक सूरज की किरण नहीं देखी और न ही किसी बाहरी शख्स का चेहरा देखा। महिला को पक्का यकीन था कि अगर उसने किंचित भी बाहर झांका तो कोरोना दोनों पर भूखे शेर की तरह झपटा मार देगा। 2020 में जब कोरोना की पहली लहर आई थी तभी परिवार ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था। कोरोना की दूसरी लहर के हर तरफ आतंक बरपाने पर मजबूरन जब पति को रोजी-रोटी के चक्कर में बाहर जाना पड़ा तो महिला ने उसके लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए। अपनी पत्नी के इस हिटलरी बर्ताव से परेशान पति पुलिस थाने भी गया, लेकिन वहां से उसे भगा दिया गया। रिश्तेदारों ने भी महिला को समझाने के पचासों प्रयास किए, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही। घर में जब सिलेंडर खत्म हो गया पर कोरोना की दहशत की मारी महिला ने इंडक्शन पर खाना बनाना प्रारंभ कर दिया। पुलिस और जिला प्रशासन के लोग जब मां-बेटे को कमरे से बाहर निकालने के लिए पहुंचे तो वह दरवाजा खोलने को तैयार नहीं थी। उसने बच्चे को मारकर खुद आत्महत्या कर लेने की धमकी तक दे डाली। उसके घर में कूड़े का अंबार लगा था। चारों तरफ फैली गंदगी की बदबू के कारण वहां खड़े रहना मुश्किल था। कोरोना के खौफ में अपने होशो-हवास खो चुकी महिला को यदि उसके पति की शिकायत पर बाहर नहीं निकाला गया होता तो कुछ दिनों के बाद दोनों की मौत की खबर आती।

    अंधभक्तों और अंधविश्वासियों तथा उनके आकाओं के खिलाफ बोलने और लिखने का अब अभिप्राय हो गया है एक से बढ़कर एक शत्रु पैदा करना और तथाकथित महान धर्म प्रेमियों की निगाह में घोर नास्तिक होना। अपना भारत देश वाकई अद्भुत है। जीते-जागते इंसानों की अवहेलना और जानवरों को पूजे जाने की खबर से अवगत होने के बाद तो मैंने मान लिया है कि यहां कुछ भी हो सकता है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खापरी गांव में वर्षों से ‘कुकुरदेव’ मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के प्रदेशों के शहरों ग्रामों के निवासी बड़े ताम-झाम के साथ पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। मंदिर के गर्भागृह में कुत्ते की भव्य आकर्षक मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दो कुत्तों की प्रतिमाएं हैं। हैरतअंगेज सच यह भी है कि इस अनोखे मंदिर का संरक्षण राज्य का संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग करता है। वीरों की भूमि बुंदेलखंड की मऊरानी तहसील में कुतिया का मंदिर बना हुआ है, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘जय कुतिया महारानी’ लिखा हुआ है। शादी-विवाह जैसे मांगलिक आयोजनों से लेकर विभिन्न तीज-त्योहारों तक स्थानीय लोग यहां पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते। मजे की बात तो यह भी है कि आसपास के गांवों के मांगलिक कार्यक्रमों में भोजन का पहला चढ़ावा कुतिया महारानी को अर्पित किया जाता है। इस तरह के मंदिर देश के कुछ अन्य शहरों में भी बनाए गये हैं, जहां अद्भुत... अभूतपूर्व आस्था का नजारा देखते बनता है...।

Thursday, March 2, 2023

कहां से कहां तक

    रति की विख्यात मॉडल तथा अभिनेत्री बनने की प्रबल चाह थी। मध्यप्रदेश के एक छोटे शहर मेें उसने जन्म लिया था। बी.काम. करने के बाद उसकी मायानगरी मुंबई जाने की तमन्ना जोर मारने लगी। यहीं उसके सभी सपने साकार हो सकते थे। महाराष्ट्र की उपराजधानी, संतरा नगरी में उसके मामा रहते थे। स्कूल और कॉलेज की उसकी छुट्टियां मामा के यहां ही बीतती थीं। अब तो नागपुर में भी फिल्में बनने लगी थीं। ‘झुंड’ फिल्म का निर्माण भी नागपुर में ही हुआ था, जिसमें सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ स्थानीय कलाकारों ने अत्यंत प्रभावी भूमिका निभायी। बी.काम. कर लेने के बाद रति ने मामा के यहां नागपुर रहते हुए नौकरी की तलाश शुरू कर दी। वह नहीं चाहती थी कि मामा को उसके कारण आर्थिक संकट का सामना करना पड़े। वे किसी थोक कपड़े की दुकान में सेल्समैन थे। तनख्वाह घर गुजारने लायक ही थी। इसी दौरान उसकी शामू नामक युवक से एम्प्रेस मॉल में मुलाकात हो गई। बातों ही बातों में शामू ने रति को बताया कि उसकी फिल्मी दुनिया के नामी-गिरामी फिल्म निर्माताओं से अच्छी-खासी पहचान है। उसने तीन-चार युवतियों को फिल्मों तथा टीवी सीरियल में काम दिलवाया है। आज वे लाखों में खेल रही हैं। अपने सपनों को फटाफट साकार करने को आतुर 21 वर्षीय रति शामू की फरेबी बातों में आ गई। उसने शामू को बताया कि उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पांढुर्णा से नागपुर आने के लिए भी अक्सर उसके पास रेल टिकट के लिए समुचित पैसे नहीं रहते। फिलहाल वह चाहती है कि उसे कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए, जिससे वह नागपुर में कोई छोटा-मोटा कमरा किराये पर लेकर बेफिक्र रह सके। शामू ने रति पर कोई ऐसा जादू चलाया, जिससे वह उस पर बेहद भरोसा करने लगी। दोनों शहर के बाग-बगीचों तथा यहां-वहां बैठकर घण्टों बातें करते। शामू उसके सपनों में नये-नये रंग भरता रहता। एक शाम शामू ने उसे किसी बार में ले जाकर बीयर का स्वाद चखाया और फिर उसे चुटकियों में धन कमाने का आसान मार्ग सुझाया। पहले तो रति ने देह के धंधे में कदम रखने से इनकार कर दिया, लेकिन जब शामू ने उससे कहा कि तुम अधिकांश हीरोइनों को पर्दे पर नाचते-झूमते देखती चली आ रही हो वे सभी फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं को अपनी देह की सौगात दे चुकी हैं। इसके बिना अभिनेत्री तो क्या अदनी-सी मॉडल बनना भी संभव नहीं। 

    रति ने अपना निर्णय बताने के लिए दो दिन का वक्त मांगा। वह रात भर चिन्तन-मनन करती रही। खुद को समझाती भी रही। चाहे कुछ भी हो जाए उसे टी.वी. और फिल्मी पर्दे पर चमकना ही है। शामू गलत तो नहीं हो सकता। वैसे उसने भी कितनी बार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा ही है कि अधिकांश युवतियों को अभिनेत्री बनने के लिए ‘देह-दान’ के दस्तूर को निभाना ही पड़ता है। वह उनसे अलग तो नहीं। रति की स्वीकृति ने शामू को गद्गद् कर दिया। दोनों ने तुरंत शहर के एक बदनाम होटल के कमरे में डट कर शराब पी। जब रति नशे में धुत हो गई तो शामू चुपचाप कमरे से खिसक गया। सुबह जब रति की आंख खुली तो उसने खुद को अस्त-व्यस्त बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया। उसके बाद तो रति की हर रात विभिन्न होटलों में किसी न किसी अनजान धनवान अय्याश पुरुष के संग बीतने लगी। कुछ महीनों के बाद रति ने होटल के उसी कमरे को ही अपना स्थायी ठिकाना बना लिया, जहां से उसके देह व्यापार की शुरुआत हुई थी। दो साल में रति के पास कार भी आ गई। उसने खुद का आलीशान फ्लैट भी खरीद लिया। यदाकदा जब वह कभी पांढुर्णा अपने माता-पिता से मिलने जाती तो उन्हें यही बताती कि वह नागपुर के नामी-गिरामी उद्योगपति के यहां कार्यरत है। जहां उसे हर माह मोटी पगार मिलती है। माता-पिता भी बेटी की तरक्की से बहुत खुश हुए। उन्होंने बेटी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश भी शुरू कर दी। कहावत है कि पाप का घड़ा एक दिन तो फूटता ही है। रति एक रात जब शहर के फाइव स्टार होटल में किसी देहभोगी ग्राहक के साथ नशे में हमबिस्तर थी तभी वहां पुलिस का छापा पड़ गया। एक बारगी तो रति को यकीन ही नहीं हुआ। शामू तथा होटल के मैनेजर ने उसे यकीन दिलाया था कि शहर के इस इकलौते फाइव स्टार होटल में छापे-वापे पड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता। पुलिस वालों को नियमित हफ्ता भेज दिया जाता है। बड़े-बड़े नेता, अफसर और उद्योगपति बेफिक्री के साथ यहां अपनी रातें रंगीन करते हैं। अखबारों के माध्यम से शहर के छोटे-मोटे होटलों पर खाकी वर्दी की जब-तब गाज गिरने की खबरों से भी वह अच्छी तरह से अवगत हो चुकी थी, लेकिन इस रईसों के होटल पर छापे पड़ने की कोई भी खबर उसके सुनने और पढ़ने में नहीं आई थी। उस रात रति को कुछ घण्टे पुलिस स्टेशन में बिताने पड़े तो बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। खबर मिलते ही उसके कुछ चाहने वाले भी थाने पहुंच गए। सुबह होते-होते तक वह आजाद हो चुकी थी। एक-दो दिन आराम करने के पश्चात फिर से वह अय्याशों के बंगलों तथा फार्महाऊसों में जाकर उनकी वासना की आग को बुझाने लगी। धन की बरसात ने उसके सभी सपनों का हरण कर लिया था। अपने नाम को पर्दे पर रोशन करने की बजाय माथे पर ऐसा कलंक का टीका लगा चुकी थी, जो अब कभी भी नहीं मिटने वाला था। शामू देह धंधे का अभ्यस्त खिलाड़ी था। रति की तरह उसने न जाने कितनी लड़कियों को वेश्या बनाकर उनकी जिन्दगी नर्क बना दी थी। हमेशा शराब के नशे में गर्क रहने वाली रति देह के धंधे के दलदल में और...और धंसती चली गई। पुलिस की पकड़ा-धकड़ी का भी उसे कोई भय नहीं रहा। उसके पिता तो उसी दिन ही हार्ट अटैक से चल बसे जब उन्हें बेटी की गंदी हकीकत पता चली। मां ने भी बेटी की शक्ल देखने से इनकार कर दिया। उसे उसकी परछाई से भी नफरत हो गई। अत्याधिक शराब पीने की वजह से रति अब कई जानलेवा रोग की शिकार हो चुकी है। होश में तो उसे खुद से डर लगने लगता है। क्या बनने का सपना देखा था और क्या बनकर रह गई। एक अजीब किस्म के भय का हरदम उसके मन-मस्तिष्क में बसेरा रहता है।

    मरीजों की देखरेख और निस्वार्थ सेवा की असीम भावना से वशीभूत होकर मेघा ने नर्स का पेशा चुना था। वह अपना अच्छा-बुरा अच्छी तरह से समझती थी। रोज के अखबार तथा तरह-तरह की किताबें पढ़ने का मेघा को खासा शौक था। किसी ईमानदार परिश्रमी, शालीन रिश्ते से जुड़ने की अभिलाषी मेघा, चंदन को अपना दिल दे बैठी। दोनों शादी किये बिना साथ-साथ रहने लगे। कुछ ही महीनों में चंदन की सज्जनता दुर्जनता में बदलने लगी तो मेघा चिन्ता में पड़ गई। मेघा को पता नहीं था कि चंदन ने अपने चेहरे पर कई नकाब लगा रखे हैं। शराब के नशे में जब उसने उसे पहली बार रात को पीटा तो उसके दिमाग में तंदूर में जला दी गई नैना साहनी, पैंतीस टुकड़े कर दी गई श्रद्धा से लेकर उन सभी युवतियों की दास्तानें हलचल मचाने लगीं, जिन्हें छल-कपट, धोखे का शिकार होना पड़ा। सुबह नशा उतरने के बाद चंदन ने उसके चरणों में माथा रगड़ते हुए जब माफी मांगी थी तो उसे उस पर रहम आ गया था। पांच-सात दिन बाद फिर चंदन के अंदर का शैतान जाग गया था। फिर सुबह उसने माफी मांगी थी। चंदन मेघा से कम कमाता था। किसी सौंदर्य प्रसाधन कंपनी में नौकरी करता था। उसने कई लड़कियों को अपने मोहपाश में बांधकर उनका देह शोषण किया था। उसकी सतायी एक लड़की ने तो मेघा के सामने अपना रोना भी रोया। दिन-पर-दिन बीत रहे थे। चंदन उसके समक्ष कुछ इस तरह से गिड़गिड़ाता, जिससे मेघा को उस पर दया आ जाती। एक दिन तो वह बेशर्मी को ताक पर रखते हुए अपनी किसी प्रेमिका को घर ले आया। रात भर उसने उसे अपने साथ रखा। वह घर के बरामदे में सुबकती रही। अब तो उसने चंदन को छोड़ने का पक्का मन बना लिया था। अपनी पुरानी सहेली वंदना को भी उसने चंदन की शर्मनाक करतूतों के बारे में बता दिया था। वंदना ने भी उसके निर्णय के प्रति सहमति जताते हुए फौरन उससे किनारा करने का सुझाव दिया था। जिस दिन दोनों में यह बातचीत हुई, उसके दूसरे दिन जब वंदना ने मेघा को मोबाइल लगाया तो वह स्विच ऑफ था। दिनभर वंदना चिंतित और परेशान रही। तीसरे दिन अखबारों में उसकी हत्या की खबर पढ़कर वंदना के होश उड़ गए। चंदन ने उसकी नृशंस तरीके से हत्या कर लाश को गद्दे में छिपा दिया था। क्रूर हत्यारा चंदन जब मेघा के शव को पेट्रोल डालकर जलाने जा रहा था तभी पुलिस ने उसे धर-दबोचा। अपनी प्रिय सहेली की मौत से गमजदा वंदना के मन में बार-बार विचार आ रहा था, कि काश! मेघा ने नराधम हत्यारे को उसी दिन छोड़ दिया होता, जिस दिन उसने उसे पहली बार नशे में बेदम पीटा था।