Thursday, September 26, 2013

राजनीति के ठेकेदारों की नपुंसकता

कई सवाल वर्षों से जवाब मांग रहे हैं। जवाब नदारद हैं। सरकारें खामोश हैं। प्रशासन ने हाथ बांध रखे हैं। कितना भी खून खराब हो जाए, लाशें बिछ जाएं, नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। बेचारा कानून हत्यारों को हाथ लगाने से घबराता है। सज़ा तो बहुत दूर की बात है। आजादी के इतने वर्षों के बाद भी यह कैसा दमघोटू आतंकी अधेरा ही अंधेरा नज़र आता है? हरियाणा के एक गांव में दलित युवक का हाथ काट डाला गया। क्या आपको पता है कि उस युवक का कसूर क्या था? दरअसल उसने एक धनवान किसान के खेत में रखे मटके को छूने की हिमाकत की थी। उसे प्यास लगी थी। उसने मटके से पानी पी लिया। उसी दौरान एक दबंग युवक उसके पास आया। उसने उसकी जाति पूछी। जैसे ही उसने खुद को हरिजन बताया तो युवक का खून खौल उठा। एक हरिजन की इतनी हिम्मत! हमारे मटके का पानी पीने का साहस दिखाए। गुस्साये किसान के बेटे ने उसे सबक सिखाने की ठानी। इधर-उधर नजर दौडायी। साइकिल में लगी दरांती निकाली। हरिजन युवक का हाथ ऐसे काट डाला जैसे किसी पेड की सडी टहनी को काटा जाता है। हरियाणा में ऐसा होना आम बात है। कुछ ही खबरें मीडिया में सुर्खियां पाती हैं। अधिकांश खबरों को जहां का तहां दफन कर दिया जाता है। गांव-कस्बों के पत्रकार दबंगों के खिलाफ कलम चलाने से घबराते हैं। नेताओं और समाजसेवकों की संदिग्ध भूमिका भी दबंगों के हौसले बढाती रहती है। आज भी देश के प्रदेश हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश और बिहार में दलितों को इंसान की निगाह से नहीं देखा जाता। उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। प्रेमी जोडों के प्रति भी कुछ ऐसे ही हालात हैं। यह भी एक किस्म की छुआछूत की बीमारी है। प्रेमियों को पकड-पकड कर मौत के घाट उतार दिया जाता है। हरियाणा में तो ऐसे बदतर हालात हैं कि लगता ही नहीं कि हम इक्कसवीं सदी में रह रहे हैं। इस प्रदेश में खाप पंचायतें देश के कानून को कुछ समझती ही नहीं। इनका अपना कानून है। खाप पंचायत के फरमान की अनदेखी करने वाले प्रेमियों को कुत्ते से भी बदतर मौत की सौगात देने का चलन है। खाप पंचायत का तथाकथित कानून एक ही समुदाय एवं गांव में शादी की अनुमति नहीं देता। ऑनर किलिं‍ग यानी झूठी शान के लिए क्रूरतम हत्याओं को अंजाम देना आम बात है। इस आधुनिक दौर में भी हर वर्ष सैकडों प्रेमियों को इसलिए मार डाला जाता है, क्योंकि वे समाज और अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ प्रेम और शादी करने की हिम्मत दिखाते हैं।
दलितों और प्रेमियों का एक जैसा हश्र करने वाले हरियाणा के रोहतक शहर में बीते सप्ताह झूठी शान के लिए एक युवक और युवती की निर्मम हत्या कर दी गयी। धर्मेंद्र और निशा का यही दोष था कि उन्होंने सच्चा प्रेम किया था। वे दोनों शादी करना चाहते थे। एक साथ जीना चाहते थे। पर उनके घरवाले कतई नहीं चाहते थे कि वे जीवनभर के लिए एक दूसरे के हो जाएं। यह दोनों प्रेमी इतने फटेहाल थे कि धन के अभाव में आर्य समाज मंदिर में शादी नहीं कर पाए। उनकी दिली इच्छा तो यही थी। धर्मेंद्र ने शादी के लिए कुछ रुपयों के लिए अपने गांव के दोस्त को फोन किया। धर्मेंद्र का दोस्त उस वक्त निधि के घर पर ही बैठा था। घर वालों को उनकी असली मंशा का पता चल गया। उन्होंने उसी दोस्त के माध्यम से प्रेमी जोडे को राजीखुशी शादी करवा देने का झांसा देकर बुलवाया और खात्मा कर दिया। इस खौफनाक हत्याकांड को अंजाम देने में युवती के परिजनों ने जो निर्मम भूमिका निभायी उससे बडे से बडे दिलवाला इंसान भी विचलित हो सकता है। ऐसे मामलों में पुरुषों को तो क्रूर कर्म करने का आदी माना जाता है, लेकिन एक मां के बेरहमी भी बेनकाब हो गयी। युवती की मां चीख-चीख कर हत्यारों का मनोबल बढाती रही और यह कहती रही कि इस कलमुंही ने पूरे परिवार की इज्जत पर बट्टा लगाया है। इसे जीने का कोई हक नहीं है। यह ऐसी मौत की हकदार है जिसे देखकर कोई भी बेटी घर से बाहर झांकने और परिवार की नाक कटवाने की जुर्रत न कर पाए। निर्मोही मां की आंखों के सामने एक मासूम बेटी की गर्दन धड से अलग कर दी गयी। प्रेमी युगल की चीखें गूंजती रहीं पर किसी को रहम नहीं आया। आसपास के लोगों ने भी उन्हें बचाने की बजाय हत्यारों का पूरा-पूरा साथ देने की नपुंसकता दिखायी। यह वही नपुंसकता है जो दलितों पर जुल्म ढाये जाने पर लोगों की चुप्पी में नजर आती है और इसी नपुंसकता की वजह से देश में बलात्कारों की संख्या को गिन पाना मुश्किल होता चला जा रहा है। देश के प्रदेशों में होने वाले आतंकी हमले और साम्प्रदायिक दंगे भी इसी मूक हिजडेपन की देन हैं।
यह कितनी हैरत की बात है कि इज्जत के नाम पर होने वाली अधिकांश हत्याओं में कभी लडके तो कभी लडकी के पूरे परिवार की सहमति होती है। कभी-कभी तो लडके और लडकी के परिवार वाले मिलकर ही मर्जी से विवाह करने के इच्छुक या सगोत्रीय प्रेमी जोडों को मौत की नींद सुला देते हैं। स्थानीय नेताओं की चुप्पी तो समझ में आती है पर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले दिग्गज उम्रदराज नेता भी आनर किलिं‍ग की वकालत करते नजर आते हैं।
प्रा. दामोदर मोरे की कविता में उठाये गये प्रश्न पता नहीं कब तक उत्तर की बाट जोहते रहेंगे :
''मुझे बताओ! हमारे लिए
जातिवाद का जाल कौन बिछाता है?
हमारी राह पर ऊंच-नीच का गतिरोधक
कौन और क्यों खडा करता है?
अज्ञान के अंधियारे में हमें कौन ढकेलता है?
अन्याय की आग में हमें कौन जलाता है?
अस्पृश्यता की नागिन को,
हमारे आंगन में किसने छोडा है?
हमें हीन बनाकर इन्सानियत का गला किसने घोटा है?''
दलितों के दुश्मनों और इज्जत की खातिर अपनी ही संतानों के हत्यारों की अक्ल अगर समय रहते ठिकाने नहीं लगायी गयी तो भविष्य में और...और होने वाले अनर्थ की कल्पना कर यह कलम कांप उठती है। अब तो होश में आओ हुक्मरानों और राजनीति के ठेकेदारो... कब तक वोटों के लालच में अंधे और बहरे बने रहोगे?

Thursday, September 19, 2013

विषैला काला चोलाधारी

दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म के चार अपराधियों को मौत की सजा सुना दी गयी। देश भी तो यही चाहता था। जैसी क्रुरता, वैसी सज़ा। लेकिन इसी देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें यह सज़ा रास नहीं आयी और ऐसी मिर्ची लगी कि तमतमाकर रह गये। वैसे यह अच्छा हुआ। काले कोटधारी का भी काला सच सामने तो आया। उस दोपहर ढाई बजे माननीय जज ने जैसे ही चारों दरिंदों को फांसी की सज़ा सुनाई तो पूरे कोर्टरूम में तालियां बज उठीं। जज का यह कहना था कि अपराधियों ने क्रुरता की सारी सीमाएं तोड दीं। यह ऐसा अपराध है, जिसने समाज को हिलाकर रख दिया। ऐसे में अदालत आंख मूंदे नहीं रह सकती। समाज में सख्ती का संदेश जाना जरूरी है। इस खुशी और तसल्ली के माहौल में एक व्यक्ति ऐसा भी था जो गुस्से के मारे फडफडा रहा था। यह शख्स था बलात्कारियों का वकील, जिसका नाम है एस.पी.सिं‍ह। माननीय जज के द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद इस वकील ने गुस्से में जोर से मेज पर हाथ मारा। आंखें तरेरीं और जब जज बाहर जाने लगे तो यह महाशय चीखे -'यह सरासर अन्याय है। जज साहब आपने सत्यमेव जयते की जगह झूठमेव जयते का परचम लहराकर न्याय का गला घोटने का संगीन अपराध किया है।'
बलात्कारियों को सज़ा सुनाने वाले जज पर उंगलियां उठाने वाले बचाव पक्ष के इस वकील ने निर्भया के चरित्र पर भी अपने अंदाज से शर्मनाक तीर चलाये। उसने आपत्तिजनक बयान देकर देश और दुनिया को स्तब्ध कर डाला : ‘अगर मेरी बेटी इस तरह से किसी दोस्त के साथ फिल्म देखने जाती और रात में उसके साथ घूमती-फिरती तो मैं उसे अपने फार्म हाऊस में लाकर परिवार के सामने पेट्रोल छिडकर आग लगा देता।' दरअसल एस.पी.सिं‍ह नामक यह वकील उन लोगों का मुखिया है जो औरत को गुलाम समझते हैं और हिकारतभरी सोच रखते हैं। दरअसल, यह लोग रहते तो इक्कासवीं सदी में हैं पर इनकी मंशा पूरी की पूरी तालीबानी है। इनकी निगाह में महिलाएं ही व्याभिचारी हैं और पुरुष देवता। यही लोग पुरुष को तो खुले सांड की तरह विचरण करने की छूट देने की पैरवी करते हैं, लेकिन औरतों को अपने-अपने घरों के पिं‍जरों में कैद देखना चाहते हैं। यह कतई नहीं चाहते कि नारी पढे-लिखे और पुरुष की बराबरी करने का साहस दिखाए। इन्हें नारी की स्वतंत्रता शूल की तरह चुभती है। इनकी यही मंशा रहती है कि बहू-बेटियां इनके इशारों पर नाचें। भूल से भी बाहर न ताकें। यह अपने परिवार का एकमात्र सुप्रीमों कहलाना पसंद करते हैं। कथावाचक भी अपने प्रवचनी और आश्रमी संसार का सुप्रीमो है। सुप्रीम को एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने में कोई लज्जा नहीं आयी। हर सुप्रीमो बेलगाम और लज्जाहीन हो जाता है। गलियों, सडकों-चौराहों और जलसों-जलूसों में छाती तानकर अहंकारी भाषा में भाषणबाजी करता है।
अपने घरवालों पर दुशासन करते-करते उद्दंड सुप्रीमो के हौसले बुलंद हो जाते हैं। इनकी गुंडागर्दी और दादागिरी इस कदर बढ जाती है कि आसपास के लोगों के साथ-साथ पूरे समाज में अपनी धाक जमाने में लग जाते हैं। जो इनकी नहीं सुनते, उन्होंने ठिकाने लगाने में भी यह देरी नहीं लगाते। यही लोग आनरकिलिं‍ग को बढावा देते हैं। इस किस्म के समाज सुधारकों और तथाकथित चरित्रवानों ने यह धारणा बना रखी है कि रेप के लिए सिर्फ और सिर्फ लडकियां ही जिम्मेदार होती हैं। उनका पहनावा अच्छे-भले इंसानों की नीयत को डांवाडोल कर देता है। शरीफजादो को अर्धनग्न युवतियां खुद-ब-खुद आमंत्रण देती हैं। बाद में शोर मचाती हैं। रूढि‍वादी और विषैली सोचवाले ऐसे लोग चाहते हैं कि युवतियां बंद गले के कपडे पहनें। उनके जिस्म का कोई भी हिस्सा दिखना नहीं चाहिए। इनकी निगाह में लडकियों की लडकों से दोस्ती बलात्कार की जननी है। जिन महिलाओ को अपनी अस्मत को बचाये रखना हो उन्हें न तो मॉडर्न कपडे पहनने चाहिए और न गैर पुरुषों के निकट जाना चाहिए। दोस्ती-यारी से तो कोसों दूर रहना चाहिए। यह देश अभी उतना विशाल हृदयी नहीं हुआ है जितना कि समझने की भूल की जा रही है। लडकियों को अपनी पसंद के ही लडकों से भूलकर भी शादी नहीं करनी चाहिए। यानी लव मैरिज भी घोर अपराध है। मां-बाप जिससे बांधे उसी को स्वीकार कर लेना चाहिए। किसी भी युवक से बात करने से पहले अपने परिवार के बडे-बुजुर्गों की राय और अनुमति भी अवश्य लेनी चाहिए। हिं‍दु संस्कृति का संरक्षक होने का दावा करने वाले इन चेहरों का मानना है कि नारियों को सीता को अपना आदर्श मानते हुए सति-सावित्री की तरह जीवन जीना चाहिए। अपने पति-परमेश्वर की तमाम रावणी प्रवृतियों को भी हंसते-खेलते झेलने की आदत डाल लेनी चाहिए...। ऐसा होने पर ही उनकी बेटियां पथभ्रष्ट होने से बच पायेंगी। सच तो यह है कि अपनी संतानो को विचारहीनता और संकीर्णता के दमघोटू वातावरण में सांसें लेने को विवश करने वाले ऐसे लोगों के दम पर ही खाप पंचायतें बेलगाम हैं और खुद को कानून से ऊपर मानती हैं। मनमाने फैसले सुनाकर सच्चे प्रेमियों की जानें तक ले लेती और दंगे करवाती हैं। कहीं न कहीं शासन और प्रशासन भी इनकी अनदेखी कर देता है। मामला वोटों का है इसलिए हुक्मरान भी चुप्पी साधे हैं...।

Thursday, September 12, 2013

मायावी संतों की ठगी के हैं बहुतेरे हिस्सेदार

यह अच्छा हुआ। जैसे-तैसे सच बाहर तो आया। आसाराम को भगवान मानने वालो का भ्रम तो टूटा। कई अंध भक्त अभी भी जागना नहीं चाहते। पता नहीं उनकी कौन-सी मजबूरियां हैं? यह शख्स हद दर्जे का सौदागर है। अपने भक्तों के साथ भी सौदेबाजी करना इसकी फितरत है। जिस किशोरी के साथ इसने दुराचार किया उसी के पिता ने इसका मुखौटा उतार डाला। वह अपना माथा पीटने को विवश है। उसे तो इस ढोंगी को बहुत पहले ही पहचान लेना चाहिए था। अंधश्रद्धा अंधेर का कारण बन गयी। बिटिया के भविष्य पर सवालिया निशान लग गये। पछतावे की आग में जलते पिता को बार-बार उस दोपहरी की याद हो आती है जब शातिर आसाराम ने अपने अनुयायियों की उपस्थिति में चुटकी बजाते हुए उससे कहा था कि बोल तुझे कितने रुपये चाहिए। अपने अराध्य के सवाल के पीछे छिपी महा दगाबाजी को वह समझ ही नहीं पाया था। उसे तो यही लगा था कि वे उसे उसकी गुरूभक्ति से प्रसन्न होकर पुरस्कृत करना चाहते हैं।
आसाराम ने तब यह कहा भी था कि यह मेरा सच्चा भक्त है। सच्चे भक्त के साथ ऐसा सलूक! समर्पित भक्त की बेटी पर भी रहम नहीं आया। कभी भी न मिटने वाले दंश और दाग दे डाले! कहावत है... 'डायन भी एक घर छोड देती है।' आसाराम से यह भी नहीं हो पाया! पीडि‍त किशोरी का भाई कहता है कि मैंने तो अपने पिता को कई बार मना किया था। अंधभक्त पिता माने ही नहीं। अपने अच्छे-खासे ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय को नजर अंदाज कर आसाराम की सेवा में लगे रहे। पैसा और समय बर्बाद करते रहे। आसाराम का असली चेहरा सामने आते ही भाई का दिल दहल उठा। गुस्से के मारे वह पागल हो उठा। यह अंतहीन गुस्सा ही है जिसकी वजह से आसाराम के कृत्य से आहत किशोरी ने राज्य महिला कल्याण निगम की अध्यक्ष लीलावती के समक्ष अपने इरादे स्पष्ट करने में कोई संकोच नहीं किया। जब उससे यह पूछा गया कि अगर कानूनी लडाई लडते-लडते तुम्हारे पिता ने अपने घुटने टेक लिए तो तुम क्या करोगी? तमतमाई किशोरी का जवाब था : 'तब मैं इस वहशी बाबा को खुद गोली से उडा दूंगी। इस बाबा ने न जाने कितनी बेटियों के जीवन को बर्बाद किया है। जब तक इसे अपने दुष्कर्मों की सजा नहीं मिलेगी, मैं चैन से नहीं बैठूंगी।' क्रोध और अपमान की आग में झुलसी किशोरी की अथाह पीडा को उसके इस कथन से भी समझा और जाना जा सकता है : 'वह रात मेरे जीवन की भयावह काली रात थी...। ताउम्र नहीं भूल पाऊंगी वह घिनौना खेल जो मुझ पर कहर बनकर टूटा। आसाराम ने हमारे तमाम सपने चूर कर दिए। ऐसे वासनाखोरों को सबक सिखाने के लिए मैंने आईएस बनने की ठान ली है। कभी मेरा इरादा सीए बनने का था।'
आसाराम को जेल भेजे जाने के बाद कई लडकियां और भी सामने आयीं, जिनपर उसने गलत नजर डाली थी और अश्लील व्यवहार किया था। यह सिलसिला और लंबा चलने वाला है। लोगों की आस्थाओं के साथ खिलवाड करने वाले इस शख्स ने इतिहास ही कुछ ऐसा रचा है। इस काले इतिहास के कई पन्ने खुलने के बाद भी उसके कई भक्त ऐसे हैं जिन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है। उनके लिए आसाराम आज भी भगवान हैं। इस घोर विवादास्पद भगवान के आश्रमों में चलने वाले गोरखधंधों और वहां के शाही ठाठबाट के नजारें भी कम हैरान करने वाले नहीं हैं। स्वयंभू संत के चेलों का आक्रामक होना भी बेहद चौंकाता है। कई आश्रमों पर चेलों ने पहरेदारी करनी शुरू कर दी है। मीडिया को देखते ही वे दादागिरी दिखाये लगते हैं। सभी आश्रमों में मीडिया का प्रवेश निषेध कर दिया गया है। फिर भी मीडिया वाले पहुंच ही जाते हैं। जबलपुर के आश्रम के मुख्य द्वार पर चेलों ने ताले जड दिये और यह गुरुमंत्र बुदबुदाते नजर आये : 'बापू हमारे बाप हैं, उनके खिलाफ मीडिया जो कर रहा है उसके कारण मीडिया का आश्रम में प्रवेश सख्त निषेध कर दिया गया है।' जब कुछ पत्रकार वहां पहुंचे तो उन्हें धमकाया-चमकाया गया : 'तुम लोग बापू की ताकत से वाकिफ नहीं हो इसलिए इतना शोर-शराबा कर रहे हो। हमारे बापू भी पत्रकार और सम्पादक हैं। उनके सम्पादन में कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। पत्रिका 'ऋषिप्रसाद' का सर्कुलेशन लाखों में है। अकेले जबलपुर में ही इसके १६ हजार स्थायी ग्राहक हैं, जो तन, मन और धन से बापू के साथ हैं। ऐसे में आप लोग खुद अंदाजा लगा लिजिए कि इसी शहर में एक आवाज पर कितने लोग इकट्ठे हो सकते हैं और आप लोगों का दिमाग दुरुस्त कर सकते हैं।'
आसाराम के दम पर मालामाल हुए सेवक उसके लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते हैं। शिवा नामक सेवक के पास २०० करोड की सम्पत्ति का होना इस रहस्य से पर्दा हटाने के लिए काफी है कि कुछ भक्त अपने 'देवता' के प्रति इतने समर्पित क्यों हैं। नागपुर, मुंबई, दिल्ली, छिं‍दवाडा, इंदौर, जबलपुर, जोधपुर आदि शहरों में आसाराम के आशीर्वाद से मालामाल हुए ऐसे सेवकों की सहज ही शिनाख्त की जा सकती है। जो आसाराम के मोटे-मोटे चंदों, फंदों, प्रवचनी कार्यक्रमों और आश्रमों की बदौलत फर्श से अर्श तक जा पहुंचे हैं। यह भी सच है कि इस किस्म के स्वार्थी भक्तों की बदौलत ही आसाराम भौतिक सुख-सुविधाओं का ऐसा विशाल साम्राज्य खडा करता चला गया, जिसकी सच्चाई बेहद विस्मित करने वाली है। बीते शनिवार को इंदौर के खंडवा रोड स्थित आसाराम के आश्रम का भव्यतम नजारा जगजाहिर हो गया। यह भी स्पष्ट हो गया कि जब भी उस पर कोई संकट आता तो वह इंदौर की दौड क्यों लगाता है। आसाराम जिस कुटिया में एकांतवास करता रहा उसकी भव्यता बडे-बडे रईसों के बंगलों को मात देती है। यह आलीशान कुटिया करीब पांच हजार वर्गफीट में बना ढाई मंजिला सर्व-सुविधायुक्त बंगला है, जहां आसाराम और उसके लाडले नारायण साई की रासरंग भरी लीलाएं चलती थीं। कुटिया में बना स्वीमिं‍ग पूल पिता-पुत्र के मौज मनाने के तौर-तरीकों का भी पर्दाफाश करता है। अब निर्णय लेने का सटीक वक्त आ गया है। देश में जहां-जहां आसारामों, सुधांशु महाराजों, नित्यानंदो और इच्छाधारियों जैसे मुखौटेधारियों ने आश्रमों, स्कूलों और कुटियाओं के नाम पर सरकारी जमीनें पायी हैं और अवैध कब्जे किये हैं उन पर फुटपाथ पर रहने वाले गरीबों को बसाया जाए। दिखावटी साधु-संतों को सरकारी खैरातें मिलनी बंद होनी चाहिए। यह कहां का इंसाफ है कि सफेदपोश ठगों को अरबों-खरबों की ऐसी जमीनें मुफ्त में दे दी जाएं जहां हजारों-लाखों बेघरों को बसाया जा सकता है और उन्हे खुले आसमान के आंधी-पानी और तमाम मुसीबतों से निजात दिलायी जा सकती है। यह तो सरासर अन्याय है। लोकतंत्र का अपमान है। धोखेबाजी है। अब इसे और बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। अगर मायावी संतों की जमीनें गरीबों और असहायों को नहीं दी जातीं तो रास्ते और भी हैं। सजग जरूरतमंदों के लिए इशारा ही काफी है। जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेडी करने में कोई हर्ज नहीं है...।

Thursday, September 5, 2013

इतने बुरे दिन...?

आसाराम ने हाथ-पैर तो खूब मारे पर बात बन नहीं पायी। आखिरकार उसे जेल जाना ही पडा। जेल जाने से पहले उसने कई नाटक किये। क्या कुछ नहीं कहा। धमकियां देने से भी बाज नहीं आया चतुर-चालाक कथावाचक। शासन और प्रशासन को डराता रहा। अपने अंधभक्तों को भी भडकाता रहा। पहले कहा कि एकांतवास के लिए जेल है अच्छी जगह। फिर बोल फूटे कि जेल भेजा गया तो शरीर त्याग दूंगा। जेल के अन्न-जल को हाथ भी नहीं लगाऊंगा। पुलिसिया पूछताछ में यह सवाल भी दागा कि पोती जैसी शिष्या के साथ एकांतवास गुनाह है क्या? अपनी गिरफ्तारी से ऐन पहले उसने राजस्थान सरकार को खुली धमकी दे डाली : मदहोश सरकार होश में आओ। ध्यान रखो कि कुछ ही महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कोई आलाकमान तुम्हें बचा नहीं पायेगा। दुनिया के १६७ देशों में मेरे अनुयायियों की भरमार है। देश भर में फैले मेरे चार करोड भक्त तुम्हारा बाजा बजा सकते हैं। मुझे फंसाओगे तो हर हाल में चुनाव हार जाओगे। किसी फकीर को परेशान करना ठीक नहीं है।
खुद को कानून और अदालत से ऊपर समझने वाला आसाराम आखिर तक लुका-छिपी का खेल खेलता रहा। पीडि‍ता को लेकर द्विअर्थी टिप्पणी-दर-टिप्पणी भी जारी रही। दुनिया को नैतिकता का पाठ पढाने वाले वाचक ने नैतिकता की धज्जियां उडाकर रख दीं। आसाराम पर सरकार और राजनीतिक पार्टियां हमेशा मेहरबान रहीं हैं। इस बार भी उसे यकीन था कि अकूत दौलत और प्रभावशाली शिष्य उसके रक्षाकवच साबित होंगे। आसाराम के एक पुराने साथी जिनका नाम राजू चांडक है, कहते हैं कि उन्होंने राजस्थान में आसाराम को एक महिला के साथ संभोग करते देख लिया था, तभी से उससे घृणा हो गयी। ऐसे और भी कई आंखों देखे किस्से हैं। अहमदाबाद के कई लोगों का दावा है कि यह महापुरुष १९५९ में शराब का धंधा करता था। इसने शराब पीकर परशुराम नाम के व्यक्ति के साथ मिलकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। यह वही आसाराम है जिसपर अहमदाबाद में ही १६ मामले दर्ज हैं। तंत्र साधना के लिए दो बच्चों की बलि देने और आश्रम के नाम पर सीधे-सादे लोगों की जमीने हडपने वाले इस शख्स ने आसुमल से आसाराम बापू तक का सफर जिस चालाकी के साथ तय किया उसका भी भंडाफोड हो गया है। कभी शराब का कारोबार करने वाले आसाराम की सौदागर प्रवृति का इससे बडा सबूत और क्या हो सकता है कि उसने अपने अनुयायियों की संख्या बढने के साथ-साथ अपने धंधो में भी विस्तार करना शुरू कर दिया। पहले आयुर्वेद की दवाओं का कारोबार फैलाया। फिर तरह-तरह के साबुन, शैम्पू, अगरबत्ती, फलो के जूस और पत्र-पत्रिकाओं की दुकानें सजाने और जमीने हथियाने का कीर्तिमान रच डाला।
आसाराम ने अपने धर्म के धंधे को जमाने के लिए एक किताब भी लिखी जिसका नाम है गुरुभक्ति। इस किताब में चतुर आसाराम ने अपने चेलों को सुझाया कि गुरू से कभी भी सवाल-जवाब मत करो। गुरू गलत हो तब भी चुप्पी साधे रहो। इतना ही नहीं उसने अपने शिष्यों को चेताया कि यदि शिष्य गुरू से सवाल-जवाब करता है या फिर गुरू के आदेशों की अवहेलना करता है तो उसके बुरे दिन आने में देरी नहीं लगती। एक दिन ऐसा भी आता है जब वह अपार कष्टों के तूफानों में घिर कर रह जाता है। आसाराम ने इस किताब में यह नसीहत भी दे डाली कि गुरू के आलोचकों के खिलाफ हिं‍सात्मक होना अपराध नहीं है। यानी गुरू जो कहे, जो करे, वही सही। बाकी सब बेकार और गलत। बहादुर आसाराम ने अपने सैनिकों का मनोबल बढाने के लिए यह भी लिखा कि यदि आलोचक दूसरे धर्म का हो तो उसकी जीभ तक काट डालो। नाबालिग से दुष्कर्म करने के पुख्ता आरोप के चलते जैसे ही स्वयंभू संत आसाराम की गिरफ्तारी हुई तो उसके चेले-चपाटे भडक उठे। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एकत्रित होकर ट्रेनें रोक दीं। पीडि‍त लडकी के पिता को आसाराम के समर्थकों ने धमकी दी कि उनके गुरू के खिलाफ सीबीआई की जांच की मांग करने से बाज नहीं आए तो उनकी सात पुश्तें बर्बाद कर दी जाएंगी। खाकी वर्दी को भी खरीदने की कोशिश की गयी। इतना ही नहीं आसाराम के कई अंध-भक्त जोधपुर के अलग-अलग स्थानों पर मीडिया कर्मियों को मार-पीट, शांति भंग और धरना प्रदर्शन कर गिरफ्तार हुए और फिर अदालत के आदेश पर जेल भेज दिये गये, जहां आसाराम कैद हैं। उनकी इस गिरफ्तारी का एकमात्र मकसद अपने भगवान के निकट रहना और उनकी भरपूर सेवा करना है। इस महागुरु की गिरफ्तारी के बाद यह खुलासा हो गया है कि वे लडकियों से अकेले में मिला करते थे। यह उनका शौक था। बाबा रामदेव ने आसाराम का कांड सामने आने के बाद साधु-संतो को तुरंत यह सलाह दे डाली कि वे महिलाओं से एकांत में मिलने से बचें। काश! बाबा ने यह सुझाव पहले दिया होता तो कम से कम आसाराम को इतने बुरे दिन तो न देखने पडते...।