Thursday, July 26, 2018

असहमति, शरारत, अफवाह और गुंडागर्दी

बहुत आम शब्द हो गया है... मॉब लिचिंग। बच्चे भी इसका अर्थ समझने लगे हैं। 'भीड तंत्र' ने देशवासियों की नींद उडा दी है। ऐसा लग रहा है... जैसे अफवाहों, शरारतों, गुंडागर्दी और वैमनस्यता का दौर चल रहा है। हिंसक भीड में शामिल लोगों की पहचान करना मुश्किल हो गया है। अगर कहीं पहचान भी लिए जाते हैं तो उनके खिलाफ गवाही देने के लिए कोई सामने नहीं आता। नेता, मंत्री उन्हें मालाएं पहनाने के लिए पहुंच जाते हैं। राजस्थान के अलवर जिले में गो तस्करी के संदेह में रकबर खान नाम के युवक को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। अस्पताल पहुंचने तक उसने दम तोड दिया। इस मामले में पुलिस का व्यवहार भी कई सवाल छोड गया। लहुलूहान युवक का इलाज करवाने से ज्यादा उसे गायो की चिन्ता थी। इसलिए उसका सारा ध्यान गायों को गो-शाला पहुंचाने में लगा रहा और युवक को समय पर अस्पताल पहुंचाने की जरूरत नहीं समझी गई। इस अमानवीय घटना से कुछ दिन पहले ही विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश के साथ कथित तौर पर भाजपा, भारतीय जनता युवा मोर्चा एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सौ से अधिक कार्यकर्ताओं ने मारपीट की और उनके कपडे तार-तार कर डाले। इन दोनों घटनाओं ने फिर से यह सवाल खडा कर दिये हैं कि लोग इतने बेलगाम कैसे हो जाते हैं। उन्हें कानून को अपने हाथ में लेने से भय क्यों नहीं लगता? कोई अगर अपराध करता भी है तो उसे सजा देने के लिए भीड स्वनिर्मित कानून का झंडा लहराते हुए क्यों और कैसे हत्यारी बन जाती है? किसी की विचार धारा भिन्न होने से क्या किसी भीड तंत्र द्वारा हमले को न्यायोचित कहा जा सकता है? देश में बेलगाम भीड ने पिछले वर्षों में कितनी हत्याएं कीं और कितनों को किसी न किसी कारण तथा शंका के चलते मार-मार कर अधमरा कर दिया इसका सटीक आंकडा अनुपलब्ध है, लेकिन जितने भी मामलों ने मीडिया में जगह पायी, सभी दिल को दहलाने वाले हैं। वर्ष २०१५ में उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक को भीड ने घर में बीफ रखने के शक में मौत के घाट उतार दिया था। तब देश और दुनिया में ऐसी हैवानियत के खिलाफ पुरजोर आवाजें उठी थीं। इसके बाद भी गो-तस्करी, बीफ रखने और जादू-टोने की शंका में भीड के द्वारा बेखौफ होकर मारपीट और हत्याएं करने का जैसे सिलसिला ही चल पडा।
वर्ष २०१६ में महाराष्ट्र के लातुर में एक पुलिस कर्मी को इसलिए मार डाला गया क्योंकि उसने 'जय भवानी' का नारा लगाने से इनकार कर दिया था। २०१७ में झारखंड में बच्चा चोरी के संदेह के चलते भीड ने सात लोगों की निर्मम हत्या कर दी। जादू-टोने का आरोप लगाकर देश के विभिन्न शहरो और ग्रामों में सैकडों निर्दोष महिलाओं और पुरुषों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। एक रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ असम में ही पिछले सात-आठ वर्षों में लगभग १२० महिलाओं और ८५ पुरुषों को डायन और ओझा होने के शक में मौत के हवाले कर दिया गया। लगभग ऐसे ही हालात देश के अन्य प्रदेशों के हैं जहां अंधविश्वास अपना कहर ढाते हुए बेकसूरों को मौत के मुंह में सुलाता चला आ रहा है। पिछले कुछ महीनों से सोशल मीडिया पर ऐसे लोग काफी सक्रिय हो गये हैं जो अफवाहें फैलाकर जनता को गुमराह करने में लगे हैं। सोशल मीडिया का असर नगरों, महानगरों के साथ-साथ गावों की फिज़ा को भी विषैला बना रहा है। लोग एक-दूसरे को अविश्वास की निगाह से देखने लगे हैं। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है कि महज दो महीनों के भीतर वॉट्सऐप में चली अफवाहों के कारण पूरे देश में २९ से अधिक लोगों की भीड के हाथों हत्या हो गई।
बीते दिनों महाराष्ट्र के आमगांव के निकट स्थित ग्राम बोथली में एक अजनबी को पीट-पीटकर इसलिए लहुलूहान कर दिया गया क्योंकि भीड को शक था यही वह शख्स है जो बच्चों को चाकलेट देकर गायब करता है और बाद में उनकी किडनी चोरी कर ली जाती है। बाद में पता चला कि भीड की मारपीट का शिकार हुआ व्यक्ति किडनी चोर नहीं बल्कि मानसिक रूप से कमजोर यानी पागल है। इसी तरह से किडनी चोर होने के संदेह के वशीभूत होकर भीड ने कचरा व शराब की खाली बोतलें जमा कर पेट पालने वाली औरत और उसके पति पर बेरहमी के साथ लात-घूसे और डंडे बरसाये। दोनों को बहुत अधिक चोटें लगने की वजह से उपचारार्थ निकट स्थित गोंदिया शहर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। कई दिनों के इलाज के बाद कहीं उनकी जान बच पायी।
मध्यप्रदेश के सिंगरोली जिले के मोरबा इलाके में १९ जुलाई २०१८ की रात कुछ लोगों ने एक अजनबी औरत को घूमते हुए देखा। उसे बच्चा चोर समझ कर लोग जमा हो गए और सबने मिलकर उसपर कुल्हाडियां और लाठियां बरसायीं जिससे उसने वहीं पर दम तोड दिया। महाराष्ट्र के भंडारा के निकट स्थित एक गांव में २२ जुलाई की रात जादू-टोने के संदेह में एक ही परिवार के चार लोगों को लोहे की कटारी से अंधाधुंध वार कर घायल कर दिया गया। दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक मुस्लिम युवक उन्मादी भीड के हाथों बुरी तरह से पिट गया। उसका कसूर था कि वह हिन्दू लडकी से शादी करने के लिए कोर्ट में पहुंचा था। इसमें दोनों की सहमति थी। भीड और कट्टरवाद के कारण भारत का नाम विश्व में बदनाम हो रहा है। सजग देशवासियों की नींद उड चुकी है। उन्हें अपने सिर पर भी खतरे के बादल मंडराते नजर आने लगे है।

Thursday, July 19, 2018

अखबार, पत्रकार और व्यापार

अब लोग यह कहने में कोई संकोच नहीं करते कि आज के अधिकांश पत्रकार, संपादक बिकाऊ हो गये हैं। उनका जनपक्षधर पत्रकारिता से कोई वास्ता नहीं रहा। उन्हें भ्रष्ट नेताओं, उद्योगपतियों, राष्ट्रद्रोही तत्वों, सत्ता के दलालों और खतरनाक माफियाओं की आरती गाने में कोई लज्जा नहीं आती। देश में कुछ ही ऐसे समाचार पत्र हैं जो सच का दामन थामे हुए हैं, लेकिन अधिकांश तो एक पक्षीय, आधी-अधूरी और भ्रामक खबरें प्रकाशित कर पत्रकारिता को कलंकित करने में लगे हैं। इन अखबारों को हाथ में लेते ही तुरंत यह समझ में आ जाता है कि इनके मालिक कौन हैं। उनकी सोच क्या है। वे किस राजनीतिक दल के प्रति हद से ज्यादा वफादार हैं। कहने और लिखने को तो यह निष्पक्षता और निर्भीकता का भरपूर दावा करते हैं, लेकिन इनका खबरें प्रकाशित करने का अंदाज बता देता है कि यह किसके साथ हैं और किसके दबाव में हैं। इन अखबारों में सिर्फ और सिर्फ मालिकों की चलती है। संपादक तो नाम भर के लिए होता है जिसके लिखे पर दूसरों का नाम जाता है। मैं ऐसे कुछ अखबार मालिकों को बहुत करीब से जानता हूं जो पढने-लिखने में शून्य हैं, लेकिन उनके नाम और फोटो के साथ ऐसी-ऐसी संपादकीय और लेख छपते हैं जो तुरंत यह विश्वास दिला देते हैं कि इन्हें तो किसी विषय के जानकार विद्वान ने ही लिखा है। कार्पोरेट घरानों के अखबारों में काम किसी का और नाम किसी का नयी बात नहीं है। सच तो यही है, अब वह दौर नहीं रहा जब अन्यायी सत्ताधीशों, जुल्मी ताकतों, भ्रष्टाचारियों, अनाचारियों से लोहा लेने, सबक सिखाने और उनका पर्दाफाश करने के लिए अखबार निकाले जाते थे और बडी शान और गर्व के साथ यह कहा और माना जाता था -
"खींचों न कमानों को न तलवार निकालो... जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।" अब तो न पहले-सी सोच रही है और न ही वैसे बुलंद इरादे। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से अखबारों की डोर ऐसे हाथों में जा चुकी है, जिनकी नज़र में पत्रकारिता सरकारी ठेके हथियाने, राजनीति और सत्ताधीशों तक अपनी पहुंच बनाने और माल कमाने का जरिया है। जो लोग सच्ची और जनहितकारी पत्रकारिता करना चाहते हैं उनकी जेबें खाली हैं। वे तो अखबार निकालने की सोच ही नहीं सकते। जिस चौबीस पृष्ठीय दैनिक समाचार पत्र को चार-पांच रुपये में बेचा जाता है उसका लागत मूल्य ही पंद्रह से बीस रुपये तक होता है। घाटे का सौदा होने के बावजूद भी हिन्दुस्तान में अखबारों की संख्या निरंतर बढती चली जा रही है। अखबारी पेशे में धनवानों का ही बोलबाला है। यह धनवान अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही अखबार निकालते हैं। उनके लिए यह पेशा बहुत उपजाऊ है। अखबार भले ही घाटे में बेचने पडते हों, लेकिन इसकी आड में तमाम काले-पीले कामों को बडी आसानी से अंजाम दिया जा सकता है। उद्योगपतियों, बिल्डरों, खनिज माफियाओं, चिटफंड कंपनियों और नेताओं के द्वारा चलाये जाने वाले अधिकांश अखबारों में ऐसे-ऐसे संपादक रखे जाते हैं जो जुगाड तंत्र में माहिर हों। उनका, उन सबके बीच उठना-बैठना हो जिनके जरिए अपने मंसूबों और व्यवसाय के साम्राज्य को रातों-रात आकाश तक पहुंचाया जा सके और अपना काला चेहरा भी छुपाये जा सके।
ऐसे अखबार मालिकों पर जब कोई संकट आता है तो वे रातों-रात कार्यालय में ताला लगाकर गायब हो जाते हैं। उनकी टीम के लोगों के मन में उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं होती। उनके यहां काम करने वाले संपादक, पत्रकार दूसरे अखबारों में नौकरी पाने के लिए फौरन दौड-धूप शुरू कर देते हैं। अखबार हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं। पिछले दिनों श्रीनगर में आतंकियों ने 'राइजिंग कश्मीर' के मुख्य संपादक शुजात बुखारी की हत्या कर यह मान लिया था कि अब यह बुलंद अखबार कभी प्रकाशित नहीं हो पायेगा, लेकिन अखबार में काम करने वाले पत्रकारों और कर्मचारियों की टीम ने अखबार को प्रकाशित कर आतंकियों के मुंह पर ऐसा तमाचा मारा कि वे देखते रह गए। यही तो है सच्ची पत्रकारिता। सच्चे मालिक, संपादक की पत्रकारिता को समर्पित टीम का अनंत हौसला। जिसकी बदौलत इंसानियत के दुश्मनों को पस्त किया जा सकता है।
देश के अधिकांश न्यूज चैनलों की भी तस्वीर ज्यादा अच्छी नहीं है। पता नहीं कैसे-कैसे कार्पोरेट के काले धंधों में पारंगत धनकुबेरों ने न्यूज चैनल शुरू कर दिए हैं। इन न्यूज चैनलों में निष्पक्षता का नितांत अभाव स्पष्ट दिखायी देता है। ऐसा लगता है कि इन न्यूज चैनल मालिकों ने चाटूकारिता, दलाली और अपने मनपसंद नेताओं के इर्द-गिर्द घूमने को ही पत्रकारिता मान लिया है। आम आदमी की समस्याओं की अनदेखी कर ज्यादातर राजनीति और अपराध की खबरें दिखाने वाले इन न्यूज चैनलों के प्रति सजग देशवासियों में काफी गुस्सा है। यह न्यूज चैनल कुछ ब‹डबोले नेताओं को हद से ज्यादा अहमियत देते हैं और उनके अनर्गल बयानों पर धडाधड बहसें शुरू करवा देते हैं। ईमानदार पत्रकारों को कार्पोरेट घरानों के न्यूज चैनलों में कई तरह के समझौते करने पडते हैं। जो नहीं कर पाते उन्हें दूध की मक्खी की तरह बाहर निकालकर फेंक दिया जाता है। इन न्यूज चैनलों में भी धन्नासेठों के अखबारों की तरह पत्रकारों, संपादकों का भरपूर शोषण होता है। पत्रकारों की आत्महत्या की भी खबरें आती रहती हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे अभी हाल में एक बडे अखबार के समूह संपादक ने खुदकुशी कर ली और मालिकों को कोई फर्क नहीं पडा। वे तो यही मानते हैं कि एक गया तो दूसरा आ जाएगा। कुर्बानी देने वाले पत्रकारों, संपादकों की अपने देश में कोई कमी नहीं है।

Thursday, July 12, 2018

सत्ता और राजनीति के कारोबारी

आखिरकार नेताजी को जमानत मिल ही गई। उनके वकील अर्जियां लगा-लगा कर थक गये थे, लेकिन जमानत मिल ही नहीं रही थी। उनके भक्तों की तो नींद ही उड गयी थी। फकीर से खरबपति बने नेताजी का असली गुनाह अदालत को तो नजर आ रहा था, लेकिन उनके अंध भक्त उन्हें कसूरवार मानने को तैयार ही नहीं थे। उनका मानना था कि इस देश में नब्बे प्रतिशत नेता भ्रष्टाचार कर धनवान बनते हैं। रातों-रात धनपती बने ऐसे नेताओं की तकदीर बदलने का सच सभी को पता होता है, लेकिन कुछ पर ही क्यों आंच आती है? यह तो सरासर अन्याय है। जेल भेजना है तो सभी को भेजो। भेदभाव क्यों? लगभग हर नेता के पास ऐसी सोच रखने वाले समर्थकों का खजाना होता है। यह खजाना समय के अनुसार घटता-बढता रहता है। नेताजी ने जिस रफ्तार में दौलत कमायी उसी रफ्तार से उनके इर्द-गिर्द चापलूसों का घेरा भी बनता चला गया।
इन चापलूसों में से कुछ तो इतने मालामाल हो चुके हैं कि एक के यहां कुछ वर्ष पहले आयकर का छापा पडा था तो कई किलो सोना, करोडों की नगदी और अरबों की खेती, फार्महाऊस, बंगलों के कागजात बरामद हुए थे। नेता भक्त का सितारा तभी चमका जब नेताजी प्रदेश के गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने अपने चहेतों को धडाधड कौडी के दामों पर सरकारी जमीनें और ऐसे-ऐसे सरकारी ठेके दिलवाये जिनसे उन्होंने देखते ही देखते अपनी आने वाली पांच पीढ़ियों की सुख-सुविधाओं के लिए धन जुटा लिया। आज से लगभग छत्तीस साल पहले वे सब्जी और फल बेचा करते थे। तब उनके यहां छोटे-मोटे नेताओं का आना-जाना होता रहता था। गल्ली-मोहल्ले के नेताओं के ठाठ-बाट देखकर उनके मन में भी नेता बनने का विचार आया। उन्होंने महानगर के एक बडे नेता का दामन थाम लिया जो एक राजनीति पार्टी के सर्वेसर्वा भी थे। दिखने और बोलने में प्रभावशाली सब्जी वाले की किस्मत चमकने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। कुछ साल तक वे उसी नेता की पार्टी का दामन थामे रहे और धन कमाने के लिए वो सब करते रहे जिसके लिए देश के अधिकांश भ्रष्टाचारी नेता जाने जाते हैं। धन के साथ पद और प्रतिष्ठा के मिलने का सिलसिला बना रहा। जब लगा कि अब इस पार्टी में रहकर अपनी दाल गलाना आसान नहीं, उनकी तरक्की से शत्रु बढते चले जा रहे हैं तो दूसरी पार्टी के पाले में जा पहुंचे। यहां भी नेताजी ने जनसेवा की आड में ऐसे-ऐसे भ्रष्टाचारों के कीर्तिमान रचे कि लोग देखते रह गए। आखिर वो दिन भी आ गया, जब हजारों करोड के मालिक बन चुके इस भ्रष्ट नेता को जेल की सींखचों के पीछे जाना पडा। लगभग दो साल बाद जब नेताजी जेल से छूटे तो उनकी छाती कुख्यात भ्रष्टाचारी लालू प्रसाद यादव, मधु कोडा और जयललिता की तरह तनी हुई थी। उनके समर्थक भी सीना ताने थे।
नेताजी कुछ दिन तक आराम करने के पश्चात फिर से राजनीति के मैदान में कूद चुके हैं। अंदर से भले ही वे टूट चुके हैं, लेकिन भीड के समक्ष बडी दक्षता के साथ एक 'अपराजित योद्धा' का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि सरकार उन्हें कितनी भी यातनाएं देती रहे, लेकिन वे पिछडों और दलितों के हित की लडाई लडना नहीं छोडेंगे। भ्रष्टाचारियों को भी चुन-चुन कर बेनकाब करेंगे। यह हमारे देश के अधिकांश नेताओं का असली चेहरा है जिससे वो मतदाता भी वाकिफ हैं जो बार-बार इन्हें विधानसभा और संसद में पहुंचाते रहते हैं।
अभी हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री  नवादा जेल में बिहार दंगे के आरोपियों का हालचाल जानने के लिए जा पहुंचे। यह आरोपी उनके कार्यकर्ता थे। कार्यकर्ता अगर खून भी कर दें तो नेता उनकी तरफदारी में खडे नजर आते हैं। यही हाल कार्यकर्ताओं का भी है, जो अपने नेता को हमेशा ही मसीहा मानते हैं भले ही वह डाकू, लुटेरा और बलात्कारी ही क्यों न हो। अधिकांश नेताओं को खुद पर कम अपने चम्मचों, समर्थकों पर अधिक भरोसा होता है। अपने चहेतों के प्रति ऐसी ही वफादारी मोदी सरकार के एक और मंत्री ने भी लोगों को पीट-पीटकर हत्या करने के दोषियों को मालाएं पहनाकर दिखायी। हालांकि इसके लिए उन्हें अपनी पिता की नाराजगी भी झेलनी पडी। मंत्री जी के पिता भी धाकड नेताओं में गिने जाते हैं। आजकल भाजपा में उनकी दाल नहीं गल रही है, इसलिए विरोध का झंडा उठाये घूम रहे हैं। उन्होंने अपने पुत्र की करतूत पर शर्मिंदगी और गुस्सा जाहिर करते हुए खुद को नालायक बेटे का बाप तक कह डाला। अपने देश के नेता खुद को बहुत अकलमंद समझते हैं। इन महा अकलमंदों का बडबोलापन इन्हें चर्चा में भी ला देता है। उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक ने बढते बलात्कारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह कहकर देशवासियों को शांत रहने का सुझाव दिया कि यदि भगवान राम भी धरती पर आ जाएं तो भी बलात्कार की घटनाएं नहीं रूकने वाली। यह तो एक आम अपराध है। अपने देश में एक से बढकर एक भोले और अंधविश्वासी नेता भरे पडे हैं। कोई ऐरा-गैरा भी उन्हें चुनाव में विजयश्री दिलवाने का मंत्र और झांसा दे दे तो वे उसके चरणों में दंडवत हो जाते हैं। छत्तीसगढ में विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान एक तांत्रिक की विधायकों, मंत्रियों ने खूब मेहमान नवाजी की। भगवाधारी तांत्रिक बाबा सोने के जेवरों से लदा था और माथे पर सिंदूर व भभूत लगा रखा था। अंदर विधानसभा की कार्यवाही चल रही थी और बाहर बाबा पत्रकारों का मनोरंजन कर रहा था। उसने रमन सिंह की सरकार फिर से बनाने के लिए तंत्र-मंत्र का नाटक किया और यह कहा कि उसने भाजपा की सत्ता की वापसी के लिए विधानसभा को अपने संकल्प से बांध दिया है। उसे अब कोई बाधा नहीं छू सकती। अपने तंत्र-मंत्र और तथाकथित संकल्प की पूर्ति के लिए अमरनाथ की यात्रा पर निकलने का ऐलान करने वाले इस बाबा के हावभाव उसके कट्टर भाजपायी होने की गवाही दे रहे थे। भाजपा, सत्ता और सरकार प्रेमी इस तांत्रिक बाबा के साथ विधायकों, मंत्रियों ने धडाधड तस्वीरें खिंचवायीं और फिर से चुनाव जीतने का आशीर्वाद भी लिया।

Thursday, July 5, 2018

यह कौन-सा हिन्दुस्तान है?

मध्यप्रदेश के मंदसौर में एक आठ साल की बच्ची के साथ हुई दिल दहला देने वाली हैवानियत ने कहीं न कहीं यह संदेश दिया है कि सरकारें कितने भी कडे कानून बनायें, लेकिन दुष्कर्मियों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। उनकी कुत्सित सोच दूसरों के ही नहीं, अपने बच्चों को भी अंधी वासना का शिकार बनाने से नहीं हिचकिचाती। इन राक्षसी प्रवृत्ति के बलात्कारियों के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। तीन-चार-पांच-सात-आठ साल की अबोध बच्चियों के साथ दुष्कर्म पर दुष्कर्म करने की जो खबरें आ रही हैं वे इस सर्वे को भी बल प्रदान करती हैं कि भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश बन चुका है। हम पाकिस्तान को कोसते नहीं थकते, लेकिन महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों की सूची में पाकिस्तान को भारत ने पीछे रखा गया है। २५ जून २०१८ को तीसरी कक्षा में पढने वाली बच्ची को दो युवक मिठाई खिलाने का लालच देकर स्कूल से अपने साथ झाडियों में ले गये। वहां पर दोनों ने उसे लड्डू खिलाया और फिर न सिर्फ उस पर बलात्कार किया बल्कि उसके गुप्तांग को नुकसान पहुंचाने के लिए उसमें रॉड या लकडी जैसी वस्तु भी डाली। जिससे उसकी आंतें तक बाहर निकल आर्इं। उसका गला काटकर मारने की भी कोशिश की गई। बेहोश हो चुकी बालिका को मरा समझकर दोनों दरिंदें अपने-अपने घर चले गए। इस घटना के विरोध में मंदसौर शहर पूरी तरह से बंद रहा। मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने बलात्कारियो को फांसी की सजा देने की मांग करते हुए यह घोषणा भी की, कि इन बर्बर जानवरों को कब्रिस्तान में भी जगह नहीं दी जाएगी। मंदसौर के वकीलों ने ऐलान कर दिया कि कोई भी वकील इन हैवानों का साथ नहीं देगा। जो वकील इनका केस लडने की जुर्रत करेगा, मंदसौर बार असोसिएशन द्वारा उसका बहिष्कार किया जाएगा। मासूम को जब इलाज के लिए अस्पताल में लाया गया तो डॉक्टरों की आंखें भी भीग गर्इं।
मेरे पाठक मित्रों को यह जानकर हैरानी होगी कि देश के चार राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में बारह साल से कम की बच्चियों के साथ बलात्कार पर फांसी की सजा का प्रावधान है इसके बावजूद इन प्रदेशों में बच्चियां सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। यौन हिंसा और उत्पीडन ने ऐसी रफ्तार पकड ली है कि संवेदनशील जनता स्तब्ध है।
हरियाणा के पलवल में एक तीस वर्षीय युवक ने पांच साल की बच्ची का अपहरण कर उस पर बलात्कार किया। गन्नोर थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव में बारह वर्षीय बच्ची के साथ उसके पडौसी ने हैवानियत की जिस पर उसके परिवार वालों को भरपूर भरोसा था। गोहाना में मात्र साढे तीन साल की बच्ची के साथ उसके नाबालिग चचेरे भाई ने दुष्कर्म कर डाला। बच्ची की मां ने बताया कि उसके जेठ का लडका उसकी मासूम अबोध बच्ची को खाने का सामान दिलाने के बहाने दुकान के पडोस में स्थित एक खाली मकान में ले गया और वहां वो कर दिया जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह तो मात्र चंद उदाहरण हैं। यहां पर सभी बलात्कारों का आंकडा दे पाना संभव नहीं है। वैसे भी बच्चियों के साथ होने वाले हर बलात्कार की रिपोर्ट थाने में दर्ज नहीं होती। जब भी किसी तीन-पांच-सात-आठ साल की बच्ची का चेहरा इन पंक्तियों के लेखक के सामने घूमता है तो उसके छोटे-छोटे हाथों में एक नन्हा-सा खिलौना नज़र आता है जिसके टूटने के भय से वह कभी-कभी असमंजस में रहती है। उसे यह यकीन भी रहता है कि अगर यह टूट गया तो पापा नया ला देंगे। प्रफुल्लित बच्ची को दुनिया के किसी दस्तूर का पता नहीं होता। वह सभी को अपना समझती है। ऐसी मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म! यह कौन-सा हिन्दुस्तान है जहां हैवानियत सभी हदें पार करती जा रही है?
बीते हफ्ते नई दिल्ली में स्थित सरिता विहार इलाके में बैग व कार्टन में एक महिला का शव मिला। महिला के शरीर के सात टुकडे किये गए थे। पहचान मिटाने के लिए उसका चेहरा भी चाकू से गोद दिया गया था। पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद महिला के पति ने बेखौफ होकर बताया कि वह दूसरी शादी करना चाहता था, इसलिए उसने अपने दो भाइयों के साथ मिलकर उस पत्नी की बडी बेरहमी के साथ टुकडे कर डाले जिससे २०१४ में उसने प्रेम विवाह किया था। यह हमारे समाज का असली चेहरा है। रिश्ते तब तक निभाये जाते हैं जब तक स्वार्थ सधता रहे। मनचाहा सुख मिलता रहे। हमारे देश में औरतों को इंसानी राक्षसों से बचाने के लिए न तो सरकार कोई ठोस कदम उठा रही है और ना ही समाज। माना कि महिलाएं पढ रही हैं, आगे बढ रही हैं, लेकिन अधिकांश पुरुषों का उन्हें कमतर आंकने और शोषण का सामान मानने का नजरिया नहीं बदला है। तभी तो यौन हिंसा और घरेलू हिंसा की खबरें प्रतिदिन सुनने-पढने को मिल रही हैं।
मंदसौर कांड की पीडिता को जब विधायक और सांसद देखने के लिए पहुंचे तो उनकी संवेदनहीनता स्पष्ट नजर आयी। विधायक ने बच्ची के परिजनों से बडी बेशर्मी से यह कहा कि सांसदजी को धन्यवाद दो कि वे बच्ची को देखने के लिए अस्पताल में आये हैं। दरअसल यह नकाब उतरने का दौर है। सजग देशवासी बेहद गुस्से में हैं। प्रख्यात रचनाकार श्री अविनाश बागडे के लिखे यह दोहे कितना कुछ कह जाते हैं :
"बलात्कार की चीख से, दहला हिन्दुस्तान।
पौरुष-हीन समाज को, कहते पुरुष प्रधान।।
पीट रहा हर धर्म है, संस्कारों के ढोल।
प्रश्न अस्मिता नार की, उत्तर सारे गोल।।"

इधर के कुछ वर्षों में असंवेदनशील नेताओं की तरह कपटी बाबाओं का जो सच सामने आया है उससे देश वासियों को बहुत आघात लगा है। लोग असमंजस के जाल में उलझ कर रह गये हैं। किस संत पर यकीन करें, किस पर नहीं। कौन संत है और कौन असंत। देश में जो सच्चे संत हैं उन्हें भी संदेह की निगाहों से देखा जाने लगा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिन्दू धर्म के तथाकथित संतों ने भक्तों की आस्था को गहरी चोट दी है, दूसरे धर्मों में भी कपटी भरे पडे हैं। अभी पिछले दिनों केरल के कोट्टाय में एक चर्च के पांच पादरियों का वासना की कालिख से पुता काला-चेहरा सामने आया। एक महिला के इस आरोप ने सुर्खियां पायीं कि... उसे ब्लैकमेल कर चर्च के यह पादरी लगातार उसका यौन शोषण करते रहे। देहभोगी कपटी संतों की लिस्ट में पिछले दिनों दाती महाराज नाम के एक और बाबा का नाम जुड गया। इस बाबा ने खुद को पाक-साफ बताने के लिए यह तक कहने में देरी नहीं लगायी कि वह तो शारीरिक संबंध बनाने में सक्षम ही नहीं है। ऐसे ही कर्नाटक का स्वामी नित्यानंद जब एक फिल्म अभिनेत्री के साथ हमबिस्तरी करते हुए रंगे हाथ पकडाया था तब उसने भी यही पासा फेंका था कि वह तो नामर्द है। ऐसे में वह किसी नारी के साथ कुकर्म कैसे कर सकता है! इस सदी के सबसे बद और बदनाम प्रवचनकार आसाराम ने भी अपने बचाव में कुछ ऐसा ही कहा था। मन में कई बार यह विचार आता है कि अपने आलीशान आश्रमों में अपने ही आस्थावान भक्तों, शिष्याओं के साथ छलावा करने वाले ढोंगी बाबाओं का अगर समय-समय पर नकाब नहीं उतरा होता तो देशवासी कितने घने अंधेरे में रह रहे होते। भला हो उन बेटियों का जिन्होंने खतरों में सांस लेकर भी ऐसे दुराचारियों का पर्दाफाश किया जो भगवान कहलाते थे। कितने सर श्रद्धावत उनके कदमों में झुक-झुक जाते थे।
अब यह सच जगजाहिर हो चुका है कि सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी मानव तस्करी पर रोक नहीं लग पा रही है। कई धनपशुओं ने बच्चों और महिलाओं की तस्करी को धंधा बना लिया है। मानव तस्करो से सावधान रहने के लिए कई जनसेवी संस्थाएं विभिन्न कार्यक्रम करती रहती हैं। कई संवेदनशील कलाकार मानव तस्करी के विरोध में नुक्कड-नाटक कर लोगों को जागृत करने के अभियान में लगे हैं। १९ जून २०१८ कुछ कलाकारों का दल कोचांग के आरसी चर्च परिसर स्थित आरसी मिशन स्कूल में नुक्कड नाटक करने हेतु पहुंचा था। इस दल में पांच युवतियां भी शामिल थीं। दोपहर के समय अचानक वहां कुछ हथियार बंद लोग पहुंचे और उन पांचों युवतियों को जबरन गाडी में बिठा लिया। जब युवतियों का अपहरण किया जा रहा था तब वहां पर एक पादरी भी मौजूद थे। युवतियां उनके सामने गिडगिडाती रहीं, लेकिन उन्होंने उनकी कोई मदद ना करते हुए उलटे गुंडो के साथ जाने की सलाह देते हुए कहा कि घबराओ मत कुछ ही घंटे में यह लोग तुम्हें आजाद कर देंगे। बदमाशों ने जंगल में ले जाकर पांचों युवतियों के साथ बर्बर बलात्कार किया। इतना ही नहीं इस कुकृत्य का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में भी डाल दिया। युवतियों का आरोप है कि जब बलात्कारी उन्हें वापस स्कूल छोड गए तो पादरी ने इस कांड को हमेशा-हमेशा के लिए भूल जाने और पुलिस के पास न जाने को कहा। उन्होंने युवतियों को चेताया कि यदि वे पुलिस से शिकायत करेंगी तो उनके परिजनों की भी जान को खतरा हो सकता है।