Thursday, May 26, 2011

शोषकों का असली चेहरा

देश के उद्योगपति मुकेश अंबानी का नया घर एक अरब डालर यानी ४५०० करोड रुपये में बन कर तैयार हो गया है। दुनिया में किसी और रईस का घर इतना महंगा नहीं है। इस घर में सभी तरह की सुख-सुविधाओं का जमावडा है। मुंबई स्थित इस घर को 'एंटालिया टॉवर' नाम दिया गया है। इस टॉवर को जो भी देखता है दांतों तले उंगली दबा लेता है। विदेशियों को तो यकीन ही नहीं होता कि गरीबों के देश भारत में जहां करोडों लोग रात को भूखे पेट खुले आकाश के नीचे सोते हैं, वहां ऐसा सर्व सुविधा संपन्न सत्ताइस मंजिला घर हो सकता है जिसमें मात्र एक परिवार रहता हो। मुकेश अंबानी देश के धन्नासेठ हैं। उनके लिए ४५०० करोड रुपये कोई मायने नहीं रखते। उन्होंने कभी गरीबी देखी ही नहीं इसलिए वे यह अनुमान भी नहीं लगा सकते कि इतने रुपयों से देश के लाखों गरीबों को छत मिल सकती है। पर उन्हें देश की गरीबी और गरीबों से क्या लेना-देना। उनकी तो अपनी एक अलग दुनिया है जहां मंत्रियों, अफसरों, फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों की तामझाम रहती है। उनकी रंगीन महफिलों में आम आदमी झांक भी नहीं सकता। वे अपनी बीवी को उसके जन्मदिन पर हवाई जहाज तोहफे में देकर देश-दुनिया तक यह संदेश पहुंचा चुके हैं कि वे ब‹डे दिलदार हैं। मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी अपने पिता धीरुभाई अंबानी के पदचिन्हों पर चलते चले आ रहे हैं। धीरुभाई अंबानी अपने साम्राज्य के फैलाव के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे। भ्रष्ट अफसरों और मंत्रियों-संत्रियों को थैलियां पहुंचा कर अपना काम निकलवाना उन्हें खूब आता था। इसी कला की बदौलत उन्होंने टाटा-बिडला को भी पछाड दिया था। ऐसे चतुर और चालाक बाप के बेटों ने विरासत में मिली परंपरा को कायम रखा और जमकर तरक्की की। यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि भाइयों के कामकाज करने के तौर-तरीकों ने रिश्तों में ऐसी दरार डाली कि दोनों ने अलग-अलग रास्ते अख्तियार कर लिये पर दौलत समेटने की नीति में कोई बदलाव नहीं आया। मुकेश अंबानी पर्दे में रहकर अपना काम करते हैं और अनिल खुल्लम-खुला। अनिल को अपनी इस खासियत के चलते कई तकलीफों का भी सामना करना पडा। देश के कुख्यात नेता अमर सिं‍ह से उनकी दोस्ती जगजाहिर है। अमर सिं‍ह की बदौलत राज्यसभा के सांसद बनने का सौभाग्य भी अनिल को मिल चुका है। कई बडे-बडे घोटालों में भी उनका नाम उछला है। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में लिप्त होने के बाद भी अभी तक जेल नहीं भेजे गये। लगता है थैलियों ने अपना काम कर दिया है। पर इस मामले में मुकेश अंबानी खुशकिस्मत हैं। वे सिर्फ धंधा करने और माल समेटने में ही यकीन रखते हैं। उन्हें मालूम है कि राजनेताओं की दोस्ती कितनी महंगी पडती है इसलिए वे अपने पिता के उसूलों पर चलने के पक्षधर हैं। इस हाथ दो और उस हाथ लो। बाकी सब कुछ भूल जाओ। किसी से कोई रिश्ता-नाता मत रखो। देश की जनता के खून-पसीने की कमायी से अपनी तिजोरियां भरते चले जाओ और दिन-रात ऐश करो। वे देश के इकलौते उद्योगपति हैं जिन्हें क्रिकेट से खास लगाव है। लगभग हर मैच में बीवी-बच्चों के साथ नजर आते हैं। आम दर्शकों के करीब फटकना नहीं चाहते इसलिए करोडों रुपये खर्च कर खास वीवीआईपी गैलरी बुक करवा कर तालियां बजाते हैं। अरबों रुपयों के घर में जश्न मनाने और क्रिकेट मैचों में शाही अंदाज से थिरकने वाले मुकेश अंबानी की जीवन शैली पर टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने लंदन के एक समाचार पत्र को दिये गये साक्षात्कार में बडा ही सटीक सवाल उठाया है कि मुकेश अंबानी उस महल में क्यों रह रहे हैं? उस महल में रहने वाले को आसपास रहने वालों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उसे यह देखना चाहिए कि क्या वह उनकी जिं‍दगी में कोई बदलाव कर सकता है। अगर वह (मुकेश अंबानी) संवेदनशील नहीं है तो यह और भी दुखद है, क्योंकि भारत में ऐसे लोग चाहिएं जो अपनी अथाह दौलत से लोगों के कष्टों को दूर करने का रास्ता ढूढ सकें...। मुकेश अंबानी प्रेमजी नहीं हैं जो देशवासियों के लिए अपने जीवन भर की कमाई समर्पित कर दें। उनके लिए घर-परिवार पहले और देश बहुत बाद में है। दरअसल वे तो हद दर्जे के स्वार्थी हैं। हाथ में आयी दौलत का पूरा उपभोग कर अपने जीवन को सार्थक कर लेना चाहते हैं। मानवता, नैतिकता, संवेदना और सहानुभूति भी उनके लिए महज शब्द हैं। इसलिये वे शब्दों के चक्कर में उलझकर खुद को तथा अपने बीवी-बच्चों को राजसी ठाठ-बाट भरे भौतिक सुखों से वंचित नहीं करना चाहते।उद्योगपति रतन टाटा खानदानी रईस हैं। उन्हें कभी भी अंबानियों की तरह सर्कसबाजी करते नहीं देखा गया। उनका रहन-सहन आमजनों-सा रहा है। यह उन्हीं का दम था जो वे मुकेश को आईना दिखाने का साहस कर सके। वैसे यह साहस तो राष्ट्रभक्त नेताओं को दिखाना चाहिए था। पर मुकेश अंबानी के सामने मुंह खोलने के लिए जो दम-खम चाहिए उसे ये बेचारे कहां से लाएंगे? वैसे भी टू-जी स्पेक्ट्रेम और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों ने कइयों की देशभक्ति का पर्दाफाश कर दिया है। दिल्ली की तिहाड जेल में हत्यारों, लुटेरों और चोर उचक्कों से ज्यादा नेताओं की भीड बढती चली जा रही है। ये नेता भ्रष्टाचार से कमायी गयी दौलत को उडाने के आदी रहे हैं। मुकेश अंबानी के पास भी जो अपार दौलत है वह उनके खून-पसीने की कमायी हुई नहीं है। हिं‍दुस्तान के करोडों लोगों ने विश्वास कर जब उनकी कंपनियों के शेयर खरीदे तभी वे इतने धनवान बन पाये। लोगों की अमानत के धन पर ऐश करना महंगा भी पड सकता है इसका अंदाजा शायद मुकेश अंबानी को नही है। जेल की सजा भुगत रहे नेता भी इस गुमान में थे कि देश की तमाम दौलत उनके बाप की जागीर है। वे जैसे चाहें वैसे उसे फूंक सकते हैं।

Thursday, May 19, 2011

नकाबपोशों का दम

यह वो दौर है जिसमें नेताओं और पत्रकारों के चमकते चेहरों के नकाब निरंतर उतरते चले जा रहे हैं। लोगों को पत्रकारों का पतित चेहरा बेहद हैरान-परेशान करता है। नेताओं की दुष्टता, नमकहरामी और नालायकी ज्यादा नहीं चौंकाती। पिछले दिनों महिला पत्रकार प्रिया दत्त के दलाली में लिप्त होने के खुलासे ने उन लोगों के पैरों तले की जमीन खिसका कर रख दी जो उसे एक आदर्श पत्रकार मानते थे। प्रिया दत्त ने जो नाम वर्षों की मेहनत की बदौलत कमाया था उसी पर उसने चंद सिक्कों के लालच में आकर ऐसा बट्टा लगाया कि सिर उठाकर चलने के काबिल नहीं रही। ऐसी ही दुर्गति प्रभु चावला की हुई। करोडों की इज्जत एक ही झटके में खो बैठे। प्रिया दत्त की तरह प्रभु को भी चांदी के सिक्कों की खनक ले डूबी। प्रभु चावला ने वर्षों तक चर्चित पत्रिका 'इंडिया टुडे' का संपादन किया और देश के आम पाठकों के दिलों में जगह बनायी। 'आज तक' न्यूज चैनल में राजनेताओं, उद्योगपतियों और कलाकारों से 'सीधी बातचीत' कर ख्याति पाने वाले इस संपादक की अमर सिं‍ह से हुई बातचीत की हकीकत ने लोगों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या देश के बडे-बडे संपादक इतने गिरे हुए भी हो सकते हैं...?अमर सिं‍ह और प्रभु चावला के बीच हुई बातचीत की कुछ अंश यकीनन हैरान कर देने वाले हैं:प्रभु चावला: हलो प्रभु चावला बोल रहा हूं अमर सिं‍ह जी कहां हैं यार?अमर सिं‍ह: हलो...।प्रभु चावला: माननीय अमर सिं‍ह जी...।अमर सिं‍ह: हां मेरी बारह बजे प्रेस है।प्रभु चावला: हां मेरी बात तो सुन लीजिए। अखबार में भी आपने छपवा ही दिया... अमर सिं‍ह: क्या?प्रभु चावला: कि हमने (प्रभु चावला) माफी नहीं मांगी तो आप (अमर सिं‍ह) केस करेंगे...।अमर सिं‍ह: (ठठाकर हंसे) ह...ह...ह...ह...।प्रभु चावला: आज इतनी बडी पोलिटिकल डेवलपमेंट हो रही है। सीडबल्यूसी से इस्तीफा दिलवा दिया। अभी बारह बजे से क्यों चला रहे हैं। पोलिटिकल ज्यादा इंटरेस्ट है न। हम करेंगे इसके ऊपर। मैं वादा कर रहा हूं आपको।अमर सिं‍ह: नहीं तो मैं बारह बजे इस पर कर देता हूं। हम क्या करें...।प्रभु चावला: नहीं यू आर ए इम्पार्टेंट परसन। आई एम नॉट टाकिं‍ग एज ए-एज ए। आज मैं सुबह से स्टुडियों में खडा हूं। खडा होकर नटवर सिं‍ह की.... रहा (अश्लील गाली दी गयी है) हूं। सोनिया गांधी की... (यहां पर भी बेहद आपत्तिजनक शब्द प्रयोग में लाये गये हैं)अमर सिं‍ह: नहीं आप देखिये न, आप भले किसी की भी... मैं एज ए ब्रदर बोल रहा हूं। (अमर सिं‍ह ने भी प्रभु चावला वाली अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है।)प्रभु चावला और अमर सिं‍ह के बीच हुई बातचीत बहुत लंबी है जिसमें दोनों ने कमीनगी की तमाम हदें पार कर दी हैं। नटवर सिं‍ह और सोनिया गांधी को अपमानित करते हुए उस भाषा का इस्तेमाल किया गया है जिसका अक्सर सडक छाप गुंडे मवाली करते हैं। उपरोक्त वार्तालाप तब की है जब प्रभु चावला इंडिया टुडे ग्रुप के सर्वेसर्वा थे। मालिकों से ज्यादा उनका रुतबा था लेकिन अपने रुतबे का वे किस तरह से इस्तेमाल कर रहे थे उसका भी इस बातचीत से पता चल जाता है। एक संपादक एक जगजाहिर दलाल से जिस तरह से माफी मांगता दिखायी देता है उससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज के तथाकथित बडे संपादक कितने बिकाऊ हो चुके हैं। एक तरफ यह लोग निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के ढोल पीटते हैं और दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों के तलवे चाटते हुए माफी तक मांगने से नहीं कतराते। जब संपादकों के यह हाल हैं तो पत्रकारों को गिरने-पडने और दंडवत होने से कौन रोक सकता है! दरअसल इनसे बडा और कोई मुखौटेबाज हो ही नहीं सकता। इंडिया टुडे पत्रिका के संपादन काल में प्रभु चावला ने न जाने कितनी बार महिलाओं को सम्मान देने की पैरवी करने वाले लेख प्रकाशित किये होंगे और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ आग उगली होगी। 'आजतक' चैनल पर भी उनका अलग ही चेहरा होता था। इस बातचीत के सामने आने के बाद यही कहा जा सकता है कि प्रभु चावला जैसे शातिर चेहरे ढोंग करने में माहिर हैं। लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड करते हुए मुंह में राम और बगल में छुरी की कहावत को चरितार्थ करना इन्हें खूब आता है। राजनेताओं की जी हुजूरी कर राज्यसभा में जाने की लालायित रहे प्रभु चावला की अमर सिं‍ह जैसे नेताओं से दोस्ती यही दर्शाती है कि भ्रष्ट नेताओं और संपादकों में जबरदस्त गठजोड हो चुका है। यह लोग एक-दूसरे के हितों के लिए काम करते हैं। इनका देश सेवा से कोई लेना-देना नहीं है।इंडिया टुडे ग्रुप से बाहर कर दिये गये प्रभु चावला अभी भी पत्रकारिता कर रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि ऐसे चाटुकार को कोई अपने पास भी न बिठाता लेकिन न्यू इंडिया एक्सप्रेस को शायद ऐसी ही जुगाडु हस्ती की तलाश थी। प्रभु चावला फिर से चम्मचागिरी के खेल में लग गये हैं। बडे-बडे राजनेताओं के साक्षात्कार के बहाने चांदी काट रहे हैं। अमर सिं‍ह भी बडे बेआबरू होने के बाद भी राजनीति का दामन नहीं छोड रहे हैं। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी को गालियां देने वाले अमर सिं‍ह कांग्रेस में शामिल होने के रास्ते तलाश रहे हैं। कांग्रेस के सांसद संजय निरुपम और महाराष्ट्र सरकार के दमदार मंत्री नारायण राणे भी कभी सोनिया गांधी के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया करते थे पर कालांतर में उन्होंने शिवसेना को छोडकर कांग्रेस में जगह पा ली और उनके सभी गुनाह माफ कर दिये गये। अमर सिं‍ह को भी कांग्रेस गले लगा लेगी और प्रभु चावला भी किसी-न-किसी राजनीतिक पार्टी की चम्मचागिरी कर राज्यसभा के सांसद बनने में सफल हो जाएंगे। वहां ऐसे लोगों की बहुत जरूरत रहती है। देश की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां अपने तलुवे चाटने वाले पत्रकारों और संपादकों को खुश करने के लिए राज्यसभा में भेजती ही रहती हैं। जो बात कल तक राजनीति पर लागू होती थी, आज पत्रकारिता पर भी लागू होने लगी है। यही वजह है कि प्रभु चावला जैसे लोगों की ताकत और कीमत पत्रकारिता में यथावत बनी हुई है... और बनी रहेगी। शोर मचाने वाले लाख दहाडते रहें पर राजनीति के दलाल अमर सिं‍ह और पत्रकारिता के 'आदर्श पुरुष' प्रभु चावला जैसों की कहीं न कहीं दाल अवश्य गलती रहेगी...।

Thursday, May 12, 2011

यह कैसा मज़ाक?

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो, उत्तरप्रदेश की बुलंद मुख्यमंत्री मायावती कहती हैं कि उन्हें भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से सख्त नफरत है। बहनजी ने कोलकाता में चुनाव प्रचार के दौरान अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान को सराहा। वे भाषण के दौरान यह रहस्योद्घाटन (!) भी करने से नही चूकीं कि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ प्रारंभ से ही लडती चली आ रही है। उनकी यह लडाई सतत चलती रहेगी। मायावती जिस बसपा की कमान संभाल रही हैं उसकी स्थापना कांशीराम ने की थी। कांशीराम ने पार्टी को स्थापित करने के लिए अपना खून-पसीना बहाया था। शुरू-शुरू में तो लोग कांशीराम का मखौल उडाया करते थे। किसी को यकीन ही नहीं था कि साइकिल पर मीलों दौड लगाने वाले कांशीराम की मेहनत रंग लायेगी। पर कांशीराम की जिद थी कि दलितों, शोषितों और असहायों की लडाई लडने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देना है और पार्टी की पुख्ता नींव तैयार करके ही दम लेना है। जो चलते रहते हैं वो आखिरकार अपनी मंजिल पा ही जाते हैं। जिद्दी और जुझारू कांशीराम को भी धीरे-धीरे सफलता मिलती चली गयी। बहुजन पार्टी का अस्तित्व कायम होता चला गया और वो दिन भी आ गया जब उनकी पार्टी उत्तरप्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई। कांशीराम का मायावती पर जीवन पर्यंत विश्वास बना रहा। यह बात दीगर है कि कांशीराम के सपने साकार नहीं हो पाये। जबकि इन सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी मायावती के कंधों पर ही थी। मायावती ने माया तो बटोरी पर दलितों और शोषितों की सच्ची साथी नहीं बन पायीं। जैसे-जैसे वे सत्ता का स्वाद चखती चली गयीं, दौलतमंद होती गयीं और भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों से भी घिरती चली गयीं। कांशीराम तो फकीर थे और वैसे ही चल बसे। उनके परिवार के नाम पर भी कोई धन-सम्पत्ति होने की कोई खबर सुनने और पढने में नहीं आयी। मायावती और उनके परिवार के विभिन्न सदस्यों के देखते ही देखते मालामाल होने की अनेकों जानकारियां मीडिया की सुर्खियां बनती रही हैं। मायावती ने अपने जन्मदिन पर धन उगाही के क्या-क्या खेल नहीं खेले। उन्हीं की पार्टी का एक विधायक तो इतना जालिम निकला कि उसने एक सरकारी अफसर को मनमाफिक चंदा न दिये जाने के कारण मौत के मुंह में ही सुला दिया। न जाने कितने अराजक तत्वों और भ्रष्टाचारियों ने बसपा सुप्रीमो की पनाह में राजनीति की नई-नई परिभाषाएं गढीं और सत्ता सुख भोगा। देश पर राज कर रहे नेताओं का यही असली चरित्र है। अधिकांश चेहरे यही मानकर चलते हैं कि जब तक हम रंगे हाथ पकडे नहीं जाएंगे तब तक कोई भी हमारा कुछ भी नहीं बिगाड पायेगा। हो भी यही रहा है। शातिर नेताओं को दबोचना आसान नहीं है इसलिए उनकी छाती हमेशा तनी रहती है। वर्तमान केंद्र सरकार की सर्वे-सर्वा और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी भी कह चुकी हैं कि वे अन्ना हजारे के साथ हैं। यानी उन्हें भी भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से कोई लगाव नहीं है। पर यह कितना हैरान कर देने वाली बात है कि उनकी नाक के नीचे उनके मंत्री अरबों-खरबों का आर-पार करते रहते हैं और उन्हें तभी खबर लगती है जब मीडिया हो-हल्ला मचाता है। सोनिया गांधी के दामाद के बारे में भी सुगबुगाहटें उठने लगी हैं कि वे सास के साये में वैसे ही गुल खिला रहे हैं जैसे अटलबिहारी वाजपेयी के दामाद ने खिलाये थे और चुटकियों में अरबपति बनने का चमत्कार दिखाया था।इतने महान नेता जब अपने आसपास के 'चमत्कार' को नहीं देख पाते तो घोर आश्चर्य होता है। अभी तक तो देशवासी यही देखते चले आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार, अनाचार और रिश्वत-व्यापार सत्ता के साये में बेखौफ फूलता-फलता चला आ रहा है। जिनके हाथ में सत्ता होती है उनके आसपास रहने वालों की तकदीर बदल जाती है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा ने कुछ ही वर्षों में जो करोडों-करोडों की दौलत कमायी है उसे 'यूं' ही नहीं कमाया जा सकता। अटलबिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य के भी अटलजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही दिन फिरे थे और देखते ही देखते वे अरबों में खेलने लगे थे। तब कुछ लोग कहते थे इस अचंभित कर देने वाली तरक्की से अटल जी अनभिज्ञ हैं! पर सवाल यह है कि ऐसी अनभिज्ञता किस काम की? जब कुछ दिनों के बाद राबर्ट वढेरा के कारनामों का पूरी तरह से पर्दाफाश हो जायेगा तो सोनिया गांधी के बारे में यही कहा जायेगा। इस देश के साथ ऐसे मजाक चलते ही रहते हैं। देश की जनता को ईमानदार नेताओं के मजाक सहने की आदत पड चुकी है...।

Thursday, May 5, 2011

क्या हम कायर हैं?

ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी की मौत पर लोग जश्न मनाएं। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने की खबर सुनकर दुनिया के करोडों अमन पसंद लोगों ने खुशियां मनायीं और राहत की सांस ली। एक दरिंदे के अंत से लोग इतने प्रफुल्लित हो सकते हैं तो कल्पना करें कि जब लादेन जैसी हिं‍सक सोच रखने वाले तमाम आतंकवादियों का सफाया हो जायेगा तो कैसा उत्सवी वातावरण होगा। भारतवासी उस उत्सव का वर्षों से इंतजार कर रहे हैं। अमेरिका के हुक्मरानों ने तो लादेन को समंदर में दफन कर अपने देशवासियों की तमन्ना को पूरा कर दिया लेकिन भारत के शासक अपने दुश्मनों को खाक करने के लिए दूसरों का मुंह ताक रहे हैं। अमेरिका ने तो एक ही हमले को झेला। भारत में तो न जाने कितने हमले और धमाके हो चुके हैं। हजारों निर्दोषों की जानें जा चुकी हैं पर हमारी सरकार कुछ भी नहीं कर पायी। जब कोई हमला होता है तो आतंकवाद के खिलाफ भाषण देने वाले राजनेताओं की कतार लग जाती है पर बराक ओबामा जैसा दम कोई भी नहीं दिखाता। दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के ढेर कर दिये जाने की खबर आने के बाद हिं‍दुस्तान के कुछ नेता यह राग भी अलापते देखे गये कि अमेरिका ने अपने दुश्मन का तो सफाया कर दिया पर उसने भारत के जख्मों की कोई परवाह नहीं की। यानी दाऊद इब्राहिम और उन तमाम आतंकियों को मौत के मुंह में सुलाने की जिम्मेदारी भी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की थी जिसे उन्होंने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। ऐसी चाहत और सोच रखने वालों के बारे में अब क्या कहें? अमेरिका ने तो दस साल बाद हजारों मील दूर छिपे लादेन को मौत दे दी पर हमारे देश के शासक तो घाव पर घाव खाने के बाद भी शांति दूत का चोला ओढे बैठे हैं। पडोसी देश पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम को कई वर्षों से पनाह दिये हुए है और हमारी सरकार पाकिस्तान के हुक्मरानों के समक्ष भिखारी की तरह हाथ फैलाये है कि मेहरबानी करके दाऊद को हमारे हवाले कर दो। पाकिस्तान के हुक्मरान कुछ भी सुनने और समझने को तैयार नहीं। उन्हें जो भाषा समझ में आती है उसे इस्तेमाल करने में भारत के शांति दूत खुद को असहाय पाते हैं। अमेरिका सरकार असहाय नहीं है। वह दुश्मन को किसी भी हालत में धूल चटाना जानती है। उसने पाकिस्तान को उसी की जमीन पर ऐसा तमाचा जडा है कि भविष्य में कोई भी आतंकवादी अमेरिका पर टेढी नजर डालने से पहले हजार बार सोचेगा। अमेरिका के राष्ट्रपति ने दिखा दिया है कि अपने देश की जनता की भावनाओं और उसके मान-सम्मान की किस तरह से हिफाजत की जानी चाहिए और शत्रुओं को किस तरह से ठिकाने लगाना चाहिए। भारतीय राजनेता तो सिर्फ बोलने में माहिर हैं। जब-जब कोई हमला होता है तब-तब इनके नेत्र और मुंह खुलते हैं। कुछ दिन बाद इन्हें कुछ भी याद नहीं रहता। दस साल तो बहुत बडी बात है। एक तरफ ओबामा हैं जिन्होंने लगातार दुश्मन का पीछा किया और उसे मार गिराने के बाद ही राहत की सांस ली। दूसरी तरफ हमारे यहां के राजनेता हैं जिन्हें अंधाधुंध दौलत बटोरने से ही फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में आतंकवादियों और राष्ट्रद्रोहियों को क्या खाक ढेर कर पायेंगे। इतिहास गवाह है कि अथाह धन और वोट बैंक के लिए देश के अधिकांश नेता कोई भी खेल खेल सकते हैं। यही वजह है कि वर्षों बीत गये पर अफजल गुरु को फांसी पर नहीं चढाया गया। कसाब भी जेल में ऐश करते-करते अपनी मौत मर जाएगा पर उसे फांसी पर नहीं लटकाया जायेगा। भारत के बारे में अमेरिका की संसद में कहा भी जा चुका है कि यह देश केवल दुश्मनों की मार खा सकता है पर उन्हें सबक नहीं सिखा सकता। यह कडवी सच्चाई है लेकिन इस देश की आम जनता यह कतई नहीं बर्दाश्त कर सकती कि उसके नेताओं की ढुलमुल नीति की वजह से देश की ऐसी शर्मनाक छवि बने। पाकिस्तान में लादेन के मारे जाने के बाद खुद पाकिस्तान भी पूरी तरह से बेनकाब हो गया है। दहशतगर्दों का सुरक्षित ठिकाना है पाकिस्तान। ऐसे में इस देश पर अब यकीन करना सरासर बेवकूफी होगी। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और वर्तमान राष्ट्रपति जरदारी और प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी की तरफ से हमेशा यही कहा जाता रहा कि लादेन का उनके देश में होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। पाकिस्तान के शहर एबटाबाद में लादेन के फ़ना कर दिये जाने के बाद यह खुलासा भी हो गया है कि पाकिस्तान हर दर्जे का झूठा और मक्कार देश है। १९९३ के बम विस्फोटों को अंजाम देने वाले दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, छोटा शकील, अयूब मेमन और उनके साथियों को पाकिस्तान सोलह-सत्रह साल से पनाह दिये हुए है। भारत की खुफिया एजेंसियां दाऊद इब्राहिम के विभिन्न पासपोर्ट और ठिकानों का भी खुलासा करती चली आ रही हैं। भारत सरकार बीस मोस्ट वांटेड आतंकवादियों को सौंपने की मांग करते-करते थक गयी है पर पाकिस्तान एक ही रट लगाये है कि वह खुद आतंकवाद से लहुलूहान है और उस पर बेवजह लांछन लगाये जाते हैं। लादेन के बारे में भी उसका यही राग था। सात समंदर पार बैठे अमेरिका ने पाकिस्तान की छाती पर चढकर उसके झूठ का पर्दाफाश कर दिया और हिदुस्तान पडोसी होने के बावजूद भी कुछ नहीं कर पाया! इस कुछ न कर पाने की शर्मिंदगी नेताओं को भले ही न हो पर आम जनता को तो है। उसके मन में बार-बार यह सवाल गूंजता रहता है कि क्या हम कायर हैं...? पाकिस्तान के परमाणु बमों के खौफ के चलते हमने अपने हाथ और पैर बांध लिये हैं और पाकिस्तान और उसके पाले-पोसे आतंकियों को हिं‍सा और आतंक का नंगा नाच करने की खूली छूट दे चुके हैं?