Thursday, February 20, 2014

इन्हें वोट मत देना

यह हकीकत है। कई नेता, नेता कहलाने के लायक नहीं हैं। कोई भी अपराध इनसे अछूता नहीं है। गुंडे मवालियों की फौज इनके इर्द-गिर्द खडी नजर आती है। किस्म-किस्म के अराजक तत्व इनके रक्षा कवच हैं। संसद को मंदिर की संज्ञा दी गयी है। इस मंदिर से धीरे-धीरे पुजारी नदारद होते चले जा रहे हैं। अपराधियों का वर्चस्व बढता चला जा रहा है। देश की वर्तमान लोकसभा में १६२ ऐसे सांसद हैं जिनका कहीं न कहीं अपराध और अपराधियों से करीबी नाता रहा है। इन पर दर्ज विभिन्न आपराधिक मामले इनकी कलई खोल देते हैं। लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा को कलंकित कर रहे ७६ सांसद तो हद दर्जे के ऐसे गुंडे बदमाश हैं कि बडे-बडे डकैत और हत्यारे भी उनके सामने बौने नजर आते हैं। जिन-जिन राजनीतिक पार्टियों ने इन्हें लोकसभा और राज्यसभा में भेजा है उनके लिए इनका अपराधी होना कोई मायने नहीं रखता। इनकी संपत्ति और काली-पीली दौलत ही इनकी एकमात्र योग्यता है। दलों के मुखिया इनकी तमाम खासियतों से वाकिफ हैं। येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतने की क्षमता रखने वालों को हाथों-हाथ लिया जाता है। उनके सभी गुनाह नजर अंदाज कर दिये जाते हैं। देश की लगभग हर बडी पार्टी यही नीति अपनाती है। थैलीशाहों को संसद और विधानसभाओं में पहुंचाती है। ईमानदार मूकदर्शक बने रह जाते हैं।
इस देश के बेईमान नेताओं और नौकरशाहों ने मुल्क को पतन के कगार पर ले जाकर खडा कर दिया है। जिन जनप्रतिनिधियों पर युवा पीढी को सुधारने का दायित्व था वही अपराधों को बढावा दे रहे हैं। यह सच्चाई क्या कम चौंकाने वाली है कि पंजाब के कई नेता ड्रग माफियाओं के साथ हिस्सेदारी कर युवा पीढी को बर्बाद करने में लगे हैं। सफेदपोशों की नशा के कारोबार में लिप्तता के कारण खाकी वर्दी भी बहती गंगा में हाथ धो रही है। पिछले दिनों पंजाब में जगदीश भोला नामक एक बडा ड्रग तस्कर पकड में आया। यह तस्कर कभी डीएसपी रह चुका है। राष्ट्रद्रोही दाऊद इब्राहिम की तरह दबदबा बनाने और धनवान बनने के लालच में इसने अपनी वर्दी नीलाम कर दी। नशे के खिलडि‍यों को दबोचने के बजाय खुद भी उनका साथी बन गया और देखते ही देखते अरबों-खरबों की माया जुटा ली। अपराधी चाहे कोई भी हो, एक-न-एक दिन पकड में आता ही है। जगदीश भोला ने पुलिसिया शिकंजे में आने के बाद कई रहस्योद्घाटन किये हैं, जो चीख-चीख कर कह रहे हैं कि अगर भारत माता को बचाये रखना है तो नेताओं और नौकरशाहों के शर्मनाक गठजोड को तोडना-फोडना होगा। नहीं तो यह लोग देश को बेच खाएंगे और हम और आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे। जगदीश भोला के इन शब्दों को तो कतई नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि वह तो मामूली आदमी है। असली मास्टर माइंड तो नेता हैं जो ड्रग और अन्य अवैध धंधों की कमायी से आज कहां से कहां जा पहुंचे हैं। पंजाब में जितने भी नशे के बडे कारोबारी हैं वे नेताओं के यहां थैलियां पहुंचाते हैं। उनकी जनसभाओं के खर्चे उठाते हैं। चुनावी मौसम में उन्हें जिताने के लिए धन के साथ-साथ गुंडे-बदमाश भी उपलब्ध कराते हैं। यह सबको पता है कि आज की तारीख में पंजाब नशे का अवैध कारोबार करने वालों की जन्नत बन चुका है। बीस हजार करोड के पार जा पहुंचे इस नशीले कारोबार से जहां युवा पीढी बर्बाद हो रही है वहीं कई मंत्री, सांसद, विधायक और अफसर मालामाल हो रहे हैं। यह लिखना, कहना और सोचना भी गलत है कि सिर्फ पंजाब में ही ऐसी गडबड है जो पूरे देश के लिए तबाही का सबब बन रही है।
हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात में भी राजनीति और अपराध एक दूसरे के हमजोली हैं। कहीं कम, कहीं ज्यादा। कहीं दबे-छिपे तो कहीं खुलेआम। गुजरात में दारूबंदी है, लेकिन यहां पीने वालों के लिए इसकी कोई कमी नहीं है। नेताओं और दारू माफियाओं के वर्षों से चले आ रहे इस गठबंधन को 'ईमानदार' और 'ब्रम्हचारी' मुख्यमंत्री ने भी तोडने और नेस्तनाबूत करने की कोई कोशिश नहीं की। महाराष्ट्र की मायानगरी मुंबई तो तरह-तरह के आतंकी माफियाओं की जैसे कर्मस्थली ही है। इनके फलने-फूलने और टिके रहने में कई नेताओं के साथ और आशीर्वाद की अहम भूमिका रही है। मुंबई में खूनी धमाके कर पूरे देश को दहलाने वाले खूंखार आतंकवादी दाऊद इब्राहिम को अगर कुछ राजनेताओं और पुलिसवालों की शह नहीं मिली होती तो वह अपराधजगत में उभर ही नहीं पाता। मुंबई तो मुंबई है। महाराष्ट्र के पुणे, नागपुर और अन्य कई शहरों में भी दाऊद इब्राहिम के अनुगामी बदमाशों का आतंक देखते बनता है। यह बदमाश कई रूपो-प्रतिरूपों के साथ सक्रिय हैं। कोई भू-माफिया है तो कोई दारू किं‍ग है। किसी ने सरकारी ठेकों तो किसी ने शिक्षा की दुकानों के जरिए लूटमार मचा रखी है। हर किसी के माथे पर किसी-न-किसी राजनीतिक पार्टी का बिल्ला चमकता नजर आता है। अपने-अपने इलाके में भाईगिरी करने वाले हर बडे-छोटे महारथी पर भी किसी-न-किसी नेता का हाथ दिखता है। इस हाथ की कीमत भी चुकायी जाती है। अगर आप इन्हें नहीं जानते-पहचानते हैं तो वक्त रहते सचेत और सावधान हो जाएं। देश में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। जिन प्रत्याशियों के इर्द-गिर्द आपको ऐसे लुटेरों और गुंडे-बदमाशों का हुजूम नजर आए तो उन्हें किसी भी हालत में अपना कीमती वोट देने की भूल न करें। ऐसे प्रत्याशी आम जनता के भले के लिए चुनाव नहीं लडते। चुनाव जीतने से पहले यह खुद को सत्यवादी हरिशचंद्र दर्शाते हैं और पता नहीं कितने मुखौटे अपने चेहरे पर सजाते हैं। चुनाव जीतने के बाद सिर्फ और सिर्फ अपना तथा अपने वालों का ही घर भरते हुए डकैत बन जाते हैं। कोई भी इनका बाल भी बांका नहीं कर पाता। इसलिए सावधान!

Thursday, February 13, 2014

यह भी तो गद्दारी है

नारों पर नारे। बातें भी कितनी बडी-बडी।
मेरा देश महान। यहां सब हैं एक समान।
अनेकता में एकता हमारी असली पहचान।
सर्वत्र सद्भाव और भाई चारा।
पर सच तो है कुछ और। अपने ही देश में अपनों का अपमान। अपनों का खून। अपनों की ही लाशें। कुछ जख्म कभी भरते नहीं। भयावह सच्चाइयां भी हमेशा याद रहती हैं। नौकरी की तलाश में आर्थिक नगरी मुंबई में खुशी-खुशी जाने और अपनों के ही हाथों लहुलूहान होकर लौट आने वाले कई उत्तर भारतीय युवकों के जख्म आज भी ताजा हैं। मायानगरी मुंबई उन्हें डराती है। इस महानगर का नाम सुनते ही उनकी कंपकंपी छूट जाती है।
इस कलमकार को दिल्ली पर बडा नाज़ था। यह भी यकीन था कि दिल्ली सबको अपना मानती है। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। मुंबई की आक्रामक, भडकाऊ और तोड-फोड वाली राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह सबको एक सूत्र में बांध कर सतत आगे बढने वाली राजधानी है। जिस पर हर भारतवासी को गर्व है। पर इस गर्व की धज्जियां उड गयी हैं। दिल्ली वालों ने यह क्या कर डाला! सपने में भी कभी यह ख्याल नहीं आया था कि दिलवालों की दिल्ली इतनी बेदर्द हो जाएगी। अपने ही अपनों का खून बहाने लगेंगे। वो भी बिना किसी वजह। मेरी निगाह में हर वो अपना है जो इस देश और किसी भी प्रदेश का वासी है। अपने देश के लोगों से नफरत करना, उनका कत्ल करना, उन्हें अपमानित करना और प्रताडि‍त करना भी राष्ट्रद्रोह है। हद दर्जे की गद्दारी है। अरुणाचल भी हिं‍दुस्तान का ही एक प्रदेश है। इस प्रदेश के कांग्रेस विधायक नीडो पवित्रा के बेटे को दिल्ली वालों ने जंगली जानवरों की तरह पीट-पीट कर मार डाला। वो कोई नेता या डकैत नहीं था जो दिल्ली को लूटने आया था। वह तो अपने देश की राजधानी में पढने और संवरने आया था। उसके माता-पिता ने उसके लिए कई सपने संजोये थे। उसके लिए सब कुछ नया था। नये रास्तों और नयी सडकों की भूल भुलैया में वह अपने गंतव्य स्थल को भूल गया। महानगरों में भटक जाना आम बात है। उसने कुछ दुकानदारों से अपनी समस्या का हल पाने के लिए पूछताछ की। दुकानदारों ने उसे रास्ता बताने की बजाय उस पर नस्लीय टिप्पणियों की बौछार शुरू कर दी। उसके बालों का मज़ाक उडाया गया। देखते ही देखते सामान्य सी बात आक्रामक बहस में तब्दील हो गयी। नीडो को कुछ भी समझ में नहीं आया। नयी भाषा नये लोग। पर देश तो अपना था। लेकिन उन अभद्र, अराजक और हिंसक सोच वाले दुकानदारों का तो कोई और ही इरादा था। तभी तो उन्होंने नीडो की थप्पडों, जूतों और घूसों से ऐसी निर्मम पिटायी की, कि अगले दिन उसकी मौत हो गयी। दिल्ली की पुलिस भी तमाशबीन बनी रही। पुलिस की यही आदत अपराधियों, आतंकियों, बलात्कारियों और हत्यारों के हौसले बढाती है और निर्दोषो को मौत के घाट पहुंचाती है। समृद्ध और पढे-लिखों की राजधानी में पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ दुरव्‍‍यहार की घटनाएं इतनी आम हैं कि कुछ कहते नहीं बनता। जनवरी में निडो को मार डाला गया तो फरवरी में मणिपुर की रहने वाली एक १४ वर्षीय किशोरी की अस्मत लूट ली गयी। किशोरी को रात में अकेले जाते देख दुष्कर्मी की नीयत डोल गयी। उसने उसे जबर्दस्ती दबोचा और अपने घर के भूतल पर स्थित कमरे में ले जाकर बलात्कार कर डाला। विरोध करने पर नाबालिग लडकी की उसने पिटायी भी कर डाली। पीडि‍त युवती काफी देर तक इधर-उधर भटकती रही! अपनी फरियाद सुनाने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे। वह हिं‍दी नहीं जानती थी। उसके परिजन उसे तलाशने के लिए हलाकान होते रहे। जैसे-तैसे मामला पुलिस तक पहुंचा। बलात्कारी युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। यह भी खुलासा हुआ है कि वह पहले भी बलात्कार कर चुका है। यानी वह आदतन अपराधी है। तय है ऐसे अपराधियों को पुलिस का भय नहीं होता। तभी तो उत्तर-पूर्व के लोगों पर दरिंदगी और दादागिरी का कहर ढाने का सिलसिला बढता ही चला जा रहा है।
दिल्ली में स्थित कोटला मुवारकपुर में मणिपुर की दो युवतियां पांच बदमाशों की छेडछाड का शिकार बनीं तो देशबंधु गुप्ता रोड इलाके में असम की युवती से जबरन वेश्यावृत्ति कराने के मामले ने भी कम सुर्खियां नहीं पायीं। दूसरे प्रदेशों से आने वाले नागरिकों के साथ अभद्र और अपमानजनक व्यवहार करने वाले दिल्लीवासी शायद इस तथ्य को भूल गये हैं कि राजधानी दिल्ली सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि भारत के हर नागरिक की है। दिल्ली वालों को किसी भी इंसान की इज्जत की धज्जियां उडाने और उसकी जान लेने का कोई हक नहीं है। फिर मेहमान तो मेहमान होता है। चाहे देशी हो या विदेशी। उसका तो आदर सत्कार किया जाना चाहिए। यही भारतीय संस्कृति है।

Thursday, February 6, 2014

जूते-चप्पल और थप्पड

जूते और थप्पड। इनका चलन ज्यादा पुराना नहीं है। इन दिनों इनके चलने और बजने की आवाजें बडी तेजी के साथ सुनायी देने लगी हैं। एक जमाना था जब अंडे और टमाटर बरसा करते थे। महंगाई की मार के चलते वक्त ने ऐसा पलटा खाया और दूभर हालातों ने ऐसा असर दिखाया कि अपनी मांगें मनवाने, सत्ताधीशों को जगाने, अपने बेकाबू गुस्से को दिखाने के तौर-तरीके ही बदल गये!
आज के अखबार में छपी इस खबर ने स्तब्ध करके रख दिया। शीर्षक ही कुछ ऐसा था: 'राष्ट्रपति से नहीं मिलने दिया तो हो गये नंगे'। दरअसल, हुआ यूं कि एक युवक और युवती देश के राष्ट्रपति से मिलने और उन्हें अपनी फरियाद सुनाने के इरादे से राष्ट्रपति भवन के मुख्य गेट पर पहुंचे। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। अपनी मंशा पूरी नहीं होने पर दोनों ने फौरन अपने कपडे उतार फेंके और नंग-धडंग हालत में चहलकदमी करने लगे। यह अजीबो-गरीब नज़ारा देख सुरक्षा कर्मी भौचक्के रह गये। बिलकुल वैसे ही जैसे मैं और देश और दुनिया के तमाम सजग पाठक जिन्होंने इस खबर को पढा, सुना और जाना। मुझे तो बरबस दुष्यंत कुमार की लिखी यह पंक्तियां याद हो आयीं:
 'कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कंवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।'
इन दिनों मेरे मन और मस्तिष्क में अक्सर यह सवाल गूंजता रहता है कि इस देश के राजनेता मुल्क की तस्वीर को बदलना क्यों नहीं चाहते? सभी साधनों के होने के बावजूद भी यह बदहाली का आलम क्यों है? चंद लोग खुश हैं। सत्ता और व्यवस्था से नाखुश करोडों देशवासियों में निराशा और हताशा घर कर चुकी है। इन हताश और उदास लोगों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मरने-मारने पर उतारू होने के करतब दिखाने में कोई संकोच नहीं करते। बीते हफ्ते हरियाना के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गाल पर एक बेरोजगार युवक ने भरे चौराहे पर तमाचा जड दिया। युवक चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि पैसे देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली। यानी युवक ने सरकारी नौकरी पाने के लिए अच्छी-खासी रिश्वत दी थी। फिर भी उसे अंगूठा दिखा दिया गया। गुस्साया युवक मुख्यमंत्री हुड्डा को ही इसका असली जिम्मेदार ठहरा रहा था। हुड्डा पर अगस्त २०१० में भी एक २१ वर्षीय युवक ने जूता फेंका था। निशाना सही नहीं होने के कारण वे बच गये थे। भूपेंद्र सिंह प्रदेश के विकास के बडे-बडे दावे करते हैं। उनका दावा है कि उनका प्रदेश विकास के युग में प्रवेश कर चुका है। वे अपनी सरकार की उपलब्धियों के बखान करने वाले लुभावने विज्ञापनों पर करोडों रुपये लुटाने के कीर्तिमान रचते चले आ रहे हैं। अपने प्रचार के लिए सरकारी खजाने को अंधाधुंध लुटाने वाले इस महारथी के विज्ञापन प्रदेश में दो लाख करोड रुपये की पूंजी के निवेश का दावा करते हैं, जबकि इसका असली आंकडा मात्र ३१८९ करोड रुपये ही है। प्रदेश में २० लाख बेरोजगार युवकों को रोजगार देने का ढोल पीटने वाले झूठे और फरेबी मुख्यमंत्री बडी मुश्किल से ३६ हजार लोगों को ही रोजगार दे पाये हैं। हुड्डा के झूठे वायदों और दावों की पोल खुल गयी है। लोकायुक्त ने भी उनसे जवाब मांगा है। जिन्हें जनता के जूते-चप्पल और थप्पड विचलित नहीं करते उनके लिए लोकायुक्त का डंडा भी कोई मायने नहीं रखता। वैसे भी नेताओं की अस्सी फीसदी कौम लज्जाहीन हो चुकी है। धन की बरसात कर चुनाव जीतना, सत्ता पाना और फिर लूट मचाना इनका पेशा है। नाराज़ नौजवानों के हाथों पिटने, जूते-वूते खाने और थप्पडों के वार हंसते-हंसते झेल जाने के इनके अनेकों सच्चे किस्से हैं। इन किस्सों में तथाकथित योगी और हद दर्जे के भोगी किस्म के साधु-संतो के नाम भी शामिल हो चुके हैं। इस सदी के सबसे बडे धूर्त प्रवचनकार आसाराम को भी जब एक पत्रकार का सवाल शूल की तरह चुभ गया था तो उसने भी उसे थप्पड मार कर अपनी 'शिष्टता' और 'विद्वता' दिखायी थी। खोखली संतई के मद में चूर आसाराम ने तो टीवी पत्रकार का कैमरा ही चूर-चूर कर डाला था। धर्म और राजनीति के मैदान में उछलकूद मचाते-फिरते बाबा रामदेव पर स्याही फेंकने का मामला ज्यादा पुराना नहीं है। नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन पर चमकदार जूता भी चल चुका है। फिर भी उनकी शान में कोई कमी नहीं आयी है। वे ठाठ से धर्म, योग और राजनीति का धंधा कर रहे हैं।
द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती देश और दुनिया के जाने-माने संत हैं। हर संत को शांति, सहृदयता और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है। मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक नगरी जबलपुर में स्वरूपानंद सरस्वती ने एक पत्रकार के गाल पर ऐसा धारदार तमाचा मारा, जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनी और सुनायी गयी। इस झन्नाटेदार थप्पड की जो वजह सामने आयी वो भी कम विस्मयकारी नहीं। पत्रकार ने उनसे पूछा था कि क्या नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं? जवाब में बेचारे पत्रकार ने गाल को लाल कर देने वाला चांटा पाया। स्वरूपानंद को यह प्रश्न ही रास नहीं आया। वे कांग्रेस प्रेमी हैं। नेहरू और गांधी परिवार से उन्हें खास लगाव है। भाजपा उन्हें नहीं भाती। मोदी से भी किसी बात को लेकर खफा हैं। ऐसे में उनके मुख्यमंत्री बनने के सवाल को वे कैसे बर्दाश्त कर लेते! उन्होंने भी वही किया जो अभी तक होता आया है। मुख्यमंत्री हुड्डा को निराश बेरोजगार नौजवान ने थप्पड मारी। पत्रकार को उस स्वामी जी ने थप्पड रसीद कर दिया जो पूरी दुनिया को संयम, शांति और अहिंसा का पाठ पढाते हैं!