Thursday, January 27, 2011

हत्यारा मनोरंजन

देश के हर सजग नागरिक को पता है कि चीन भारतवर्ष के प्रति कटुता और शत्रुता की भावना रखता है। पर हमारे देश के उदारवादी हुक्मरान इस जगजाहिर हकीकत को भुला चुके हैं। दुश्मन देश की तिजोरियों को भरने के लिए हिं‍दुस्तान के दरवाजे पूरी तरह से खोल दिये गये हैं। चीन यहां पर हुछ भी बेचने और खपाने के लिए आज़ाद है। कानून भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता। यह चीन ही है जिसने भारत के घरेलू उद्योग में ऐसी जबरदस्त सेंध लगायी है कि यहां के छोटे उद्योगपतियों का तो जीना ही हराम हो गया है। जहां देखो वहां चीन का सामान बिक रहा है और सस्ता होने के कारण लोग भी बडे फख्र के साथ बेच और खरीद रहे हैं। विदेशी खिलौने बच्चों को इतने सुहाते हैं कि वे देशी खिलौने को हाथ भी नहीं लगाते। जब से अपने देश में चीनी खिलौने बिकने शुरू हुए हैं तब से लेकर आज तक कई बच्चों को अपने प्राण गंवाने पडे हैं। ग्रामीण इलाकों में तो इन खिलौनों ने अनेकों बार कहर ढाया है। फिर भी लोग हैं कि इनमें बच्चों का मनोरंजन ढूढते हैं।खिलौनों की बिक्री और खरीदी का रोग तो पुराना पड चुका है। अब तो पतंग उडाने के लिए भी चीन की डोर यानी धागा आने लगा है। इस बार की मकर संक्रांति के मौके पर इस डोर ने कइयों की जीवन लीला ही समाप्त कर डाली। अकेले नागपुर जिले में ही चीनी मंजे ने सात-आठ प्राणियों के प्राण हर लिये और घायल होने वालों का आंकडा तीस के पार जा पहुंचा। पुणे की कंपनी में काम करने वाला एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर खरीददारी के लिए मोटर साइकिल से बाजार जा रहा था। उसकी शीघ्र ही शादी होने वाली थी। हर तरफ पतंगबाजी का उत्सव था। पतंगबाज घरों की छतों और मैदानों में चीनी डोर से पतंग उडा रहे थे। एक पतंग की डोर अचानक युवक के गले तक पहुंची और फिर उसकी तेज धार ने उसका गला ही काट डाला। युवक कुछ भी समझ नहीं पाया। घायल अवस्था में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसकी मौत हो गयी। किसी के मनोरंजन ने किसी की जान ले ली और एक हंसता-खेलता परिवार मातम के आगोश में सिमट कर रह गया। उस इंजिनियर की तरह और भी जो लोग चीनी मंजे की बलि च‹ढे उनका आखिर क्या कसूर था? पंजाब के शहर अमृतसर में भी चीनी मंजे ने कइयों को घायल किया। एक राह चलते व्यक्ति की गला कट जाने के कारण मौत हो गयी। चीनी मंजे ने पतंगबाजों का भले ही भरपूर मनोरंजन किया हो पर बेकसूरों की जिस तरह से जानें गयीं उसकी चिं‍ता किसी ने भी नहीं जतायी। बता दें कि चीनी मंजे में लोहे के चूर्ण का इस्तेमाल होता है और यह इतना धारदार होता है कि जिस भी गले को छूता है वह लहूलुहान हुए बिना नहीं रहता। गले की नसें भी कट-फट जाती हैं। जब खून बहना शुरू होता है तो रुकने का नाम ही नहीं लेता। घायल व्यक्ति को यदि फौरन अस्पताल नहीं पहुंचाया गया तो मौके पर ही उसकी जान चली जाती है। इसके शिकार हुए व्यक्ति को सोचने समझने का मौका भी नहीं मिल पाता। अमृतसर में तो चीनी डोर को बेचने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। पर नागपुर में बेचने और उडाने वालों को पूरी आजादी थी। इस मामले में गुजरात सरकार की तारीफ करनी पडेगी। वहां पर चीनी धागे को बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया। अमृतसर में जो गिरफ्तारियां हुई वे भी खानापूर्ति जैसी थीं। यह गिरफ्तारियां धारा १८८ के तहत हुई। जिसके यकीनन कोई मायने नहीं होते क्योंकि इसमें फौरन जमानत मिल जाती है। नागपुर, अमृतसर, दिल्ली, पानीपत, करनाल, सोनीपत आदि में जिन पतंगबाजों के हाथों की खूनी डोर की वजह से राह चलते लोग घायल हुए और मारे गये उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं है कि चीनी डोर की जानलेवा धार की खबर प्रशासन को नहीं थी। पर अपने यहां का प्रशासन तो अधिकतर वो लोग चलाते हैं जिन्हें तब दर्द होता है जब उनके अपनों की जान जाती है। नागरिकों की सुरक्षा की चिं‍ता न तो शासकों को रहती है और न ही सरकारी नुमाइंदों को। यह सच्चाई भी बेहद चौंकाने वाली है कि चीन में इस हत्यारी डोर पर प्रतिबंध लगा हुआ है। हिं‍दुस्तान में प्रतिबंध होने के बाद भी कितनी आजादी के साथ तरह-तरह के सामान बिकते हैं इसकी तो हर किसी को खबर है। ऐसे में चीन को दोष देना बेमानी है अभी तो चीन ने पतंग की डोर भेजी है। थोडा और सब्र कीजिए वहां से पिस्टलें, बंदूकें और बम-बारूद के जखीरे भी आने लगेंगे और बाजार में बिकते नजर आयेंगे। अंधे-बहरों के देश में यह तमाशा पता नहीं कैसे-कैसे रंग लायेगा।

Thursday, January 20, 2011

बापू के सपनों को साकार करने वाला गांव

क्या आप भारतवर्ष में किसी ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां के लोगों का गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध और अपराधियों से दूर-दूर तक नाता न हो? आपको इस सवाल के जवाब के लिए काफी देर तक माथा-पच्ची करनी पड सकती है तब भी जरूरी नहीं कि आप किसी ऐसे गांव का नाम बता सकें। भारत देश के प्रदेश महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में एक गांव है जिसका नाम है हिवरे बाजार। यह गांव वाकई देश की शान है जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के स्वराज, अपना राज के सपने को साकार किया है। महात्मा गांधी कहा करते थे कि असली भारतवर्ष गांवों में बसता है पर आज देश के अधिकांश ग्रामों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। देश के अन्नदाता को बंधुआ मजदूर की जिं‍दगी जीनी पड रही है। रोजी-रोटी के लिए शहरों की तरफ पलायन करना पडता है। सूदखोरों और शोषकों ने गांव के गांव हथिया लिये हैं। हिवरे बाजार का चेहरा भी कभी बेहद बदरंग था। इस गांव की शक्ल पिछले बारह साल के अंदर ऐसी बदली है कि गांववासी हिवरे बाजार को मंदिर मानते हैं। साफ सुथरे पेय जल और सिं‍चाई साधनों से भरपूर इस गांव की सडकों पर गंदगी का नामोनिशान नहीं है। आपसी सद्भाव और एकता के तो कहने ही क्या...। यहां एक मात्र मुस्लिम परिवार रहता है उसके लिए भी गांव वालों ने मस्जिद बनवायी है। गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी और अशिक्षा ने यहां से कब का पलायन कर लिया है। हिवरे बाजार का चेहरा-मोहरा बदलने में जिस महापुरुष की प्रेरणा का ही एक मात्र योगदान है, वे हैं समाज सुधारक अन्ना हजारे। भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग लडने वाले अन्ना हजारे अपने मूल गांव रालेगन सिद्धी का अभूतपूर्व कायाकल्प कर देश और दुनिया को दिखा चुके हैं कि महात्मा गांधी के असली अनुयायी होने के क्या मायने हैं। एक निच्छल और ईमानदार व्यक्ति की पहल ही ऐसा परिवर्तन ला सकती है जिससे सोये हुए लोग जाग सकते हैं और कुछ नया कर सकते हैं। अपने देश में ऐसी आदर्श शख्सियतों का नितांत अभाव है जिनसे युवा प्रेरणा ले सकें। अन्ना हजारे हिवरे बाजार के युवकों के प्रेरणा स्त्रोत बने और युवकों ने अपने गांव की तकदीर बदलने का फैसला कर लिया। कुछ जागरूक युवकों की निगाह से यह सच्चाई छिपी नहीं थी कि उनका गांव अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा है। नेताओं ने पूरी तरह से आंखें मूंद ली थीं। हर कोई अपना घर भरने में लगा था। शिक्षक स्कूल से गायब रहते थे। बच्चों को पढाने-लिखाने की बजाय शराब के नशे में डूबे रहना उनकी आदत बन चुका था। हालात इतने बदतर हो गये थे कि नशेडी स्कूल मास्टर बच्चों से ही शराब बुलाकर पीते और स्कूल में ढेर हो जाते। युवकों ने अपने दिल की बात बुजुर्गों को बतायी। पहले तो वे तैयार नहीं हुए। बहुत समझाने पर हिवरे बाजार की ग्राम पंचायत की सत्ता एक वर्ष के लिए उन्हें सौंपी गयी। युवकों ने एक ही वर्ष में बुजुर्गों के साथ-साथ तमाम गांववासियों का दिल भी जीत लिया। पिछले बारह वर्षों से हिवरे बाजार की सत्ता युवकों के हाथ में है।आज की तारीख में हिवरे बाजार एक ऐसा आदर्श गांव बन चुका है जिससे दूसरे गांव वाले भी सीख लेते हैं। शिक्षकों ने नशे से तौबा कर ली है और वे बच्चों को दिल लगाकर पढाते हैं। हिवरे बाजार में सभी महत्वपूर्ण निर्णय मिल-बैठकर लिये जाते हैं। ग्राम सभा में हर व्यक्ति की बात सुनी जाती है। महिलाओं को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। ग्रामवासियों को पूरी ईमानदारी के साथ राशन उपलब्ध करवाया जाता है और अफसर रिश्वत मांगने की जुर्रत नहीं करते। गांव के हर आदमी को अपने गांव में ही काम मिलने लगा है और पलायन की बीमारी का नामोनिशान मिट चुका है। पहले जहां प्रति व्यक्ति सालाना आय मात्र आठ सौ रुपये थी आज वह ब‹ढकर अट्टाईस हजार रुपये तक पहुंच गयी है। यानी चार व्यक्तियों का परिवार साल भर में बडे आराम से एक लाख से ऊपर कमा लेता है। इस गांव में लाखों हरे-भरे पेडों की कतारें देखकर बाहर से आने वाला कोई भी शख्स आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रहता। गांव के इस खुशहाल और आदर्श रूप ने बाहरी लोगों को भी आकर्षित करना शुरू कर दिया है। लोग यहां आकर बसना चाहते हैं। पर गांव वालों का फैसला है कि बाहरी लोगों को जमीन नहीं बेची जाएगी। हिवरे बाजार में विकास की गंगा बहाने वाले युवकों के पारदर्शी कामकाज का ही परिणाम है कि यहां की ग्राम पंचायत के लिए चुनाव कराने की नौबत ही नहीं आती। जब चुनाव का समय आता है युवकों को निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाती है। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविं‍द केसरी इस गांव की पंचायत की सर्वजन हितकारी कार्य प्रणाली को सराहते हुए कहते हैं कि दिल्ली में बैठे सत्ताधीशों को हिवरे बाजार से सीख लेनी चाहिए। वे तो यहां तक कहते हैं कि इस गांव में पैर रखते ही मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और देश में पहुंच गया हूं। पाठकों को यह पढ-सुनकर हैरानी भी हो सकती है कि एक समय ऐसा भी था जब यहां के पढे-लिखे युवक हिवरे बाजार का नाम लेने में भी शर्मिंदगी महसूस करते थे। जब देखो तब पुलिस वाले अपराधियों को दबोचने के लिए आ धमकते थे। पर आज न तो अपराध हैं और न ही अपराधी। इस गांव के हर बाशिं‍दे को अपने गांव पर इस कदर नाज़ है कि वह अपने नाम के साथ अपने गांव का नाम उपनाम के रूप में जोडकर गौरवान्वित होता है। भारतवर्ष की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के हाथों हिवरे बाजार को देश की सर्वश्रेष्ठ पंचायत का पुरस्कार भी हासिल हो चुका है।

Thursday, January 13, 2011

नैना...मधुमति और रूपम

एक औरत ने दिन-दहाडे बिहार के एक विधायक की हत्या कर दी। यह औरत एक शिक्षिका है। विधायक महोदय वर्षों से उसका यौन शोषण करते चले आ रहे थे। वह भी किन्हीं मजबूरियों के चलते शोषित होती चली आ रही थी। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि नेताजी के साथ बिस्तरबाजी करने से उसे खास परहेज नहीं था। दरअसल बात तब बिगडी जब अय्याश नेता उसकी जवान होती बेटी पर नजरें गढाने लगा। वह आग-बबूला हो उठी और उसने वो कदम उठा लिया जो अभी तक देह भोगी नेता उठाते चले आ रहे हैं। हां अभी तक तो हम और आपने सफेदपोश नेताओं के द्वारा निर्मम तरीके से मार दी गयी पत्नियों और प्रेमिकाओं की खबरें ही पढी हैं पर यहां तो एकदम उल्टा हो गया। अय्याश नेता को एक नारी ने मार गिराया। जिसने भी यह खबर पढी-सुनी वह हतप्रभ रह गया। भारतीय जनता पार्टी के विधायक की हत्यारी रूपम पाठक का कहना है कि उसने यह कदम बहुत सोच समझ कर उठाया है। महिला के अतीत के पन्नों में यह आश्चर्यजनक सच्चाई दर्ज है कि जब उसे पहली बार विधायक ने दबोचा और मनमानी की तो बदनामी के डर से उसने खामोशी ओडे रखी। फिर तो उसके साथ सिलसिला ही चल पडा। विधायक ने देह सुख की एवज में शिक्षिका को कई सुख सुविधाएं भी मुहैय्या करवायीं। रूपम पाठक एक पढी-लिखी महिला हैं, पढाती-लिखाती हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि वह पुरुषों के नीयत को भांपना न जानती हों। कौनसी बदनामी के डर से वे तब चुप्पी साधे रहीं जब विधायक ने पहली बार उनकी अस्मत लूटी थी? उसे तो तभी शोर मचा देना चाहिए था जब नेता ने पहली बार उन पर हाथ डालने की जुर्रत की थी। इस किस्म के दुराचारी नेताओं के एक बार बडे हाथ फिर कभी पीछे नहीं हटते। उन्हें मां-बहन और बेटी की पहचान ही कहां होती है। वे तो सिर्फ अपनी भूख मिटाना जानते हैं। रूपम भी एक देह भोगी की हवस का जिस तरह से सहज निशाना बनी वो कोई नयी बात नहीं है। नयी बात तो यह है कि उसने हवसखोर नेता को मौत की नींद सुला कर एक नया अध्याय रचा है...।इसी देश में ऐसे राजनीतिज्ञ भी हुए हैं जिन्होंने बेरहमी की तमाम सीमाएं लांघने में कभी कोई संकोच नहीं किया। देश की राजधानी दिल्ली में कभी सुशील शर्मा का सिक्का चलता था। युवक कांग्रेस का नेता था वह। बहुत ऊपर तक पहुंच थी उसकी। सुशील शर्मा के वैभव और रसूख से प्रभावित होकर नैना साहनी नामक युवती ने पहले उससे प्यार किया फिर शादी भी कर ली। नैना साहनी उन महत्वाकांक्षी युवतियों में शामिल थी जो राजनीति में पांव जमाने के लिए नेताओं से सहर्ष रिश्ते जोडती हैं। २ जुलाई १९९५ के दिन युवा नेता सुशील शर्मा ने गोली मार कर नैना साहनी की हत्या कर दी। हत्या के बाद भी जब उसका जी नहीं भरा तो उसने उसके टुकडे-टुकडे कर तंदूर में मुर्गे की तरह भूनकर इंसानी दरिंदगी का वो चेहरा पेश किया जिसे देख-सुनकर लोग दहल उठे। दरअसल सुशील शर्मा को अपनी पत्नी पर शक हो गया था कि उसके दूसरे मर्दों के साथ भी अवैध संबंध हैं। कई युवतियों के साथ जिस्मानी ताल्लुकात रखने वाले सफेदपोश नेता ने सिर्फ शक के चलते ही अपनी पत्नी का वो हश्र कर डाला कि मानवता भी कांप उठी। इस कांड से उन महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिए थी जो राजनीति में किस्मत आजमाने के सपने देखा करती हैं और हर नेता को फरिश्ता मान लेती हैं। इस दानवी कृत्य के बाद भी न जाने कितनी महत्वाकांक्षी युवतियां सफेदपोश भेडि‍यों के चंगुल में फंस कर बर्बाद हुई और कई तो बे-मौत मारी भी गयीं।अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब पूरे देश में उत्तरप्रदेश के एक अय्याश विधायक अमरमणि त्रिपाठी के मोहपाश में फंसकर जान गंवाने वाली मधुमिता का हैरतअंगेज तूफानी किस्सा गूंजा था। मधुमिता भी हद दर्जे की महत्वाकांक्षी युवती थी। वीर रस की कविताएं लिखा करती थी। खूबसूरत भी थी। देश के विभिन्न शहरों में होने वाले कवि सम्मेलनों में शिरकत करती रहती थी। ऐसे ही किसी कार्यक्रम में अमरमणि त्रिपाठी की नजर उस पर पडी और फिर दोनों को जिस्मानी तौर पर एक होने में देरी नहीं लगी। विधायक त्रिपाठी ने मधुमिता को ऐसे-ऐसे सपने दिखाये कि वह अपना अच्छा-बुरा भूल गयी। वह एक भावुक कवियत्री थी। राजनीति की अंधी गलियों में चलने वाले कर्मकांडो का भी उसे पूरा ज्ञान था। पर उसके मन में तो दौलत से खेलने और राजनीति के क्षेत्र में चमकने का सपना पल रहा था। खूबसूरत नारियों की देह को भोगने के अभ्यस्त हो चुके अमरमणि ने मधुमिता को दो बार गर्भवती बनाया और तीसरी बार जब फिर यह नौबत आयी तो मधुमिता विद्रोह पर उतर आयी। नेता संग सात फेरे लेने की जिद करने लगी। नेता के घर में पहले से ही एक पत्नी विराजमान थी। वैसे भी नेताओं को विद्रोह कभी रास नहीं आता। मधुमिता का काम तमाम कर दिया गया। देश भर में हो-हल्ला मचा। विधायक को जेल हो गयी। एक होनहार कवियत्री दास्तां बन कर रह गयी। कविता, शशि, शारदा, अनुपमा आदि... आदि न जाने कितनियों की कतार है जो राजनेताओं के करीब गयीं और फिर कब्र में पहुंचा दी गयीं। उनकी सारी महत्वाकांक्षाएं धरी की धरी रह गयीं। वे अगर अनपढ और गंवार होतीं तो बात आयी-गयी हो जाती। एकाध को छोडकर अधिकांश जानती समझती थीं कि वेश्या बन चुकी राजनीति के गलियारे में साधू कम और दुर्जन ज्यादा हैं। फिर भी उस जाल में जा उलझीं जिससे निकल पाना आसान नहीं होता। नैना भून दी गयी और रूपम ने भून डाला। रूपम, नैना, मधुमिता आदि के प्रति सहानुभूति दिखाने वालों की भीड को देखकर मन में यह विचार भी कौंधता है कि इनके प्रति इतनी अंधी सहानुभूति क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि यह महिलाएं हैं? क्या इनकी अमर्यादित भूल कोई मायने नहीं रखती? औरत होने भर से अगर यह दया और सहानुभूति की पात्र बनती रहेंगी तो बात और बिगडेगी।

Thursday, January 6, 2011

देवता बीमार है

२०१० की विदायी तो हो चुकी है परंतु उसके द्वारा छोडे गये कई सवालों के जवाब २०११ को ही देने हैं। सबसे बडा सवाल भ्रष्टाचार का है जिसने देश की नस-नस को जकड लिया है। सियासियों और नौकरशाहों में ईमानदारों की तलाश कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। जिसे देखो वही कटघरे में खडा नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले भी मुखौटे में कैद नजर आते हैं। ऐसे विकट दौर में कुछ चेहरे हैं जो तूफानों में आशा के दीप थामे हुए हैं। बिहार चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज हासिल करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रष्ट नौकरशाहों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए अपने हाथ में हंटर थाम लिया है। उनका दावा है कि यह हंटर किसी भी भ्रष्ट नौकरशाह को नहीं बख्शेगा। अपने पिछले शासन काल में अफसरशाही की मनमानी और भ्रष्ट आचरण से रूबरू होने के बाद ही उन्होंने यह अभूतपूर्व निर्णय लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर बिहार में भ्रष्टाचारियों को पनपने और जीने नहीं देंगे। देश का प्रदेश बिहार लालू मार्का नेताओं के शोषण और लूटपाट का वर्षों तक शिकार होता रहा है। जनता ने ऐसे भ्रष्ट नेताओं को पूरी तरह से नकार कर जब नीतीश कुमार को बागडोर सौंपी है तो वे भी कुछ कर गुजरना चाहते हैं। वे जानते हैं कि बिहार को बरबाद करने में नौकरशाही ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी। राजनेताओं और अफसरों ने एकजुट होकर प्रदेश को लूटा-खसोटा है। जनता को हर काम के लिए रिश्वत देनी पडती है। नीचे से ऊपर तक सबसे रेट तय हैं। नीतीश कुमार के द्वारा भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने की मुहिम के चलते सरकारी महकमों में हडकंप-सा मच गया है। प्रदेश में भ्रष्टाचार की परंपरा को निभाने वाले अफसरों और कर्मचारियों को धडाधड रंगे हाथ पकडने के अभियान में अभूतपूर्व तेजी लायी जा चुकी है। नीतीश के तेवर बता रहे हैं कि उन्होंने कथनी और करनी में एकरूपता लाने की कसम खा ली है। जिन्हें दबोचा जा रहा है उनकी संपत्तियों को जब्त कर वहां पर स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोले जा रहे हैं। नीतीश सरकार भ्रष्ट नौकरशाहों की शिनाख्त करने के बाद उनकी सूचियां बनाने में भी दिमाग खपा रही है क्योंकि भ्रष्टाचार की बदौलत करोडपति और अरबपति बनने वालो की बहुत बडी संख्या है। सभी सरकारी अफसरों को अपनी संपत्ति की जानकारी देने के आदेश दे दिये गये हैं। साथ ही उन्हें हिदायत दी गयी है कि वे प्रतिवर्ष अपनी संपत्ति की जानकारी पेश करना न भूलें। जो लोग अपनी संपत्ति का खुलासा करने में आना-कानी कर रहे हैं उनके वेतन रोकने के सख्त निर्देश भी दे दिये गये हैं।कहते हैं कि दूसरों को सुधारने से पहले खुद का पाक-साफ होना निहायत जरूरी है। नीतीश कुमार ने भी अपनी तथा अपने बेटे की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया है। नीतीश के तेवर अगर ठंडे नहीं प‹डे तो शीघ्र ही भ्रष्ट विधायकों और मंत्रियों की भी शामत आ सकती है। अपनी ही बिरादरी पर हंटर बरसाना और उसके होश ठिकाने लगाना आसान काम नहीं है। पर उन्हें इस अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण होकर दिखाना होगा। अन्यथा सब कुछ तमाशा बनकर रह जायेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश की पहल अगर रंग लायी तो यकीनन बिहार का चेहरा-मोहरा बदलने में समय नहीं लगेगा। बिहार तेजी से विकास के पथ पर दौडता नजर आयेगा और देश के दूसरे राज्यों के मुखिया भी अपने आप को बदलने को विवश हो जाएंगे। सबको खबर है कि देश के साथ-साथ लगभग हर प्रदेश भ्रष्टाचार के रोग के चंगुल में जकडा हुआ है। यही वो बीमारी है जिसने हिं‍दूस्तान को लगभग खोखला करके रख दिया है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद रह चुके फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र से जब यह पूछा गया कि क्या वे फिर से राजनीति में सक्रिय होना चाहेंगे? उनका जवाब था कि कौन उल्लू का पट्ठा चुनावी राजनीति में लौटेगा। तय है कि उम्रदराज नायक ने राजनीति के गंदे चेहरे को इतने करीब से देखा और समझा है कि उसे राजनीति से ही घृणा हो गयी है। उन जैसे और भी न जाने कितने हैं जिनके लिए राजनीति के रंग-ढंग वेश्या से भी बदतर हैं। वेश्या का तो कहीं न कहीं कोई ईमान धर्म होता है पर राजनीति का तो कोई ईमान-धर्म ही नहीं रहा। अभिनेता का यह भी मानना है कि आज भारत माता को मां नहीं समझा जाता। जिस दिन सियासी दलों ने भारत माता को अपनी मां समझकर इसकी सेवा शुरू कर दी, देश अपने आप स्वर्ग बन जायेगा। अक्सर यह सोचकर मन दहल जाता है कि यह कैसा राष्ट्र है और कैसे-कैसे इसके कर्ताधर्ता हैं। एक दूरसंचार मंत्री हजारों करोड का घोटाला बडी आसानी से कर गुजरता है और प्रधान मंत्री की चुप्पी पर सुप्रीम कोर्ट को सवाल उठाना पडता है? विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश के कर्णधारों की अकर्मणयता और बेबसी यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं: ''आस्था का जिस्म घायल, रूह तक बेजार हैक्या करे कोई दुआ, जब देवता बीमार है।''यकीनन अपने देश के बडे विचित्र हालात बन चुके हैं। घपलेबाजों ने आसमान का भी सीना चीर कर रख दिया है। यहां जब एक मधु कोडा पकड में आता है तो फौरन चार हजार करोड की हेराफेरी सामने आती है। राष्ट्रमंडल खेलों में हुआ आठ हजार करोड से अधिक का घोटाला देशवासियों के मुंह पर तमाचा-सा जड देता है और चीख-चीख कर बताता है कि यह देश राजनीति के खिलाडि‍यों के हाथों की कठपुतली बन चुका है। ऐसी न जाने कितनी हेराफेरियां होती रहती हैं। एकाध का ही पर्दाफाश हो पाता है बाकी मौज उडाते रहते हैं। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की जडों को काटने के लिए कोई सामने नहीं आता। ऐसे में नीतीश कुमार ने उम्मीद तो जगायी है। देखते हैं क्या होता है...।