Wednesday, January 25, 2023

भोग और योग की तस्वीर

    चित्र - 1 : सुकेश चंद्रशेखर। जैकलीन फर्नाडींस। पहला इस धरती का अत्यंत शातिर कुख्यात ठग और लुटेरा। दूसरी भारत देश की चर्चित खूबसूरत फिल्म अभिनेत्री। दोनों में दूर-दूर तक कोई रिश्तेदारी नहीं। एक हकीकत यह भी कि करोड़ों रुपये की ठगी करने वाला चोर-लुटेरा सुकेश जेल में है। अभिनेत्री आजाद पंछी की तरह उड़ती रही है। ऐसे में दोनों में किसी किस्म की करीबी...यारी की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी दोनों में खिंचाव, जुड़ाव और लगाव हो गया। इन दो विपरीत ध्रुवों के मिलन का माध्यम बना वो अपार धन, रुपया, पैसा जो हमेशा अपना चमत्कार दिखाता आया है...। अनहोनी को होनी बनाता आया है। दोनों में एक और समानता है। दोनों को ऐशो-आराम की लत है। इस लत के लिए किसी भी हद तक गिरने में कोई संकोच नहीं। हर अय्याश ठगी और लूटमारी के धन को शाही अंदाज से लुटाता है। सुकेश ने भी यही किया। नेताओं की झोली भरने के साथ-साथ हुस्नपरियों को भी खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 200 करोड़ की ठगी के मामले में जेल में कैद इस ठगराज ने जैकलीन को जो उपहार दिए उनमें शामिल हैं पांच महंगी घड़ियां, जिनकी कीमत लगभग एक करोड़ रुपये है। इसके साथ ही उसने जैकलीन को 32 डिजाइनर बैग गिफ्ट किए, जिनकी कीमत 50 हजार से लेकर 9 लाख तक की है। तकरीबन बीस ज्वेलरी आइटम, जिनमें अंगूठी से लेकर चार महंगे सनग्लासेज, तीन मसाज चेयर, डिश वॉशर, कई बेल्ट, डिनर सेट एवं पेंटिंग्स उपहार में दीं, जिनकी कीमत भी करोड़ों में है। खूबसूरती के पीछे पगलाये शातिर अपराधी ने एक ही साल में 47 डिजाइनर कपड़े, 62 जूते और सैंडल्स भी गिफ्ट किए। चार्जशीट के मुताबिक जैकलीन और उसके परिवार को 7 करोड़ 62 लाख 78 हजार के उपहार दिये गए। 

    ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जब ठग जेल में बंद था तो यह चमत्कार कैसे संभव हो पाया? दावा तो यह भी किया जाता है कि जैकलीन फर्नांडीस के अलावा दो और अभिनेत्रियां भी महाठग के उपहारों के मोहपाश में बंध कर पतन के गर्त में समाती रहीं। तिहाड़ जेल जहां हर तरह की चौकसी और सुरक्षा व्यवस्था का दावा किया जाता है, वहां पर सुकेश से मिलने-जुलने के लिए धन की भूखी अभिनेत्रियां टहलते और मटकते हुए बड़ी आसानी से पहुंच जाया करती थीं। सुकेश ने जेल के उच्च अधिकारियों को मोटी रिश्वत देकर खरीद रखा था। जब भी कोई हीरोइन उससे मिलने के लिए आती, तो उसे एक खास कमरे में बड़े आदर-सत्कार के साथ ले जाकर बैठा दिया जाता था। वहां पर सोफासेट, टीवी, एसी, फ्रिज और भोग विलास के अन्य सभी सामान सजे रहते थे। आलीशान कमरे के एकांत में घण्टों सुकेश और नायिकाओं की मिलन-मस्ती चलती रहती थी। जब वे सुकेश को ‘तृप्त’ कर जेल से जाती थीं, तो कभी खाली हाथ नहीं होती थीं। हर आनंददायक मुलाकात के ऐवज में उन्हें लाखों रुपये दिए जाते थे। फिल्मी परी जैकलीन के अनुसार सुकेश चंद्रशेखर से उसकी पहली पहचान उसके मेकअप आर्टिस्ट के जरिए हुई थी। उसे बताया गया था कि वह दक्षिण भारत के एक बड़े न्यूज चैनल का सर्वेसर्वा होने के साथ-साथ फिल्म इंडस्ट्री का बहुत नामी-गिरामी प्रोड्यूसर है। दरअसल, यह तो खुद को भोली-भाली तथा अनाड़ी दर्शाने की अभिनेत्री की चाल है। अखबारों तथा न्यूज चैनलों के माध्यम से कुख्यात ठग सुकेश चंद्रशेखर की काली दास्तान का देश के बच्चे-बच्चे को पता चल चुका था। मुफ्तखोरी की रोगी अभिनेत्री की हर बहानेबाजी धरी की धरी रह गई है। अब उसे वकीलों को महंगी फीस देते हुए अदालतों के चक्कर पर चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

    चित्र-2 : देश के रेतीले प्रदेश राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में स्थित त्रिवेणी नगर के एक श्मशान घाट में बने दो छोटे से कमरों में रहती हैं मायादेवी बंजारा। वर्तमान में उनकी उम्र है लगभग पचपन वर्ष। मायादेवी श्मशान घाट की देखरेख करने के साथ-साथ यहां आने वाले शवों का अंतिम संस्कार भी करवाती हैं। मेहनत की कमायी पर गुजर बसर करती चली आ रही मायादेवी की दो बेटियों की शादी हो चुकी है। दो बेटियां और एक बेटा स्कूल में पढ़ता है। एक बेटी अच्छी तरह से पढ़-लिखकर कलेक्टर बनना चाहती है। मायादेवी की मां भी श्मशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कर घर चलाया करती थीं। मायादेवी जब मात्र 10 वर्ष की थीं तभी अपनी मां के काम में हाथ बंटाने लगी थीं। तभी से उसने अपनी परिश्रमी मां की कही यह बात गांठ बांध ली थी कि कभी भी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना और मेहनत करने में भी कभी नहीं शर्माना। खून-पसीने से कमाया पैसा ही असली खुशी तथा सम्मान का अधिकारी बनाता है। कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता। किसी की दया पर जीने से अच्छा है, मर जाना। 

    शुरू-शुरू में तो मायादेवी और उसके बच्चों को श्मशान घाट पर देखकर लोग हतप्रभ रह जाते थे, लेकिन अब लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। उनकी कर्तव्यपरायणता की सराहना भी करते हैं। जैसे ही शव श्मशान घाट पर पहुंचता है तो मायादेवी अपने काम में लग जाती हैं। अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां नीचे बिछवा कर चिता तैयार करती हैं। जो लोग शव के अंतिम संस्कार की रीति से अनभिज्ञ होते हैं, उन्हें स्वयं सभी क्रियाएं बताती और समझाती हैं। परिजनों के चले जाने के बाद भी पचपन वर्षीय मायादेवी चिता की लकड़ियों को ठीक करती रहती हैं। वह तब तक वहां से नहीं उठतीं जब तक चिता पूरी तरह से जल नहीं जाती। मायादेवी की बेटियां भी स्कूल से लौटने के बाद उनकी मदद करती हैं। कोई उनसे जब पूछता है कि चौबीस घण्टे श्मशान घाट पर रहने पर तुम्हें भय नहीं लगता तो उनका साहस और आत्मविश्वास से भरा यही जवाब होता है कि श्मशान घाट तो एक पवित्र स्थान है। हमें यहां रहने या शवों के दाह संस्कार से कोई भय नहीं लगता, बल्कि सुकून मिलता है। फिर भयभीत तो जिन्दा इंसानों से होना चाहिए, मुर्दों से क्या घबराना।

    चित्र-3 : छत्तीसगढ़ के गांव चरमुड़िया की स्मारिका ने बड़ी मेहनत और लगन के साथ कम्प्यूटर साइंस में बीई करने के बाद एमबीए किया। उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में दस लाख रुपये सालाना की प्रभावी नौकरी भी मिल गई, लेकिन जब उसका ध्यान अपने पिता की लिवर ट्रांसप्लांट के पश्चात बिगड़ती सेहत पर गया, तो उसने नौकरी छोड़ी और खेती करने की जिम्मेदारी ले ली। पिता घर में आराम करने लगे। स्मारिका को शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई। आसपास के लोगों के तंज भी झेलने पड़े कि खेती तो पुरुषों के बस की बात है। महिलाएं इस कठिन काम के लिए नहीं बनी हैं। स्मारिका ने अपने 23 एकड़ के खेत में खेती के नये-नये प्रयोग करते हुए नई-नई फसलें उपजानी प्रारंभ कर दीं। बेहतरीन खाद और बीजों की बदौलत ऐसी अच्छी-अच्छी फसलें मिलने लगीं, जिन्हें देख बोलने और हतोत्साहित करने की कोशिश करने वाले सभी चेहरे स्तब्ध रह गये। आज स्मारिका के खेत की पोषक सब्जियों की दूर-दूर तक मांग है। विशेष गुणवत्ता के चलते दिल्ली, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, बिहार, ओडिसा तथा कोलकाता तक में इन सब्जियों ने अपनी पैठ जमा ली है। अब तो स्मारिका ने अपने खेत की विभिन्न पैदावारों को विदेश में भी भेजना प्रारंभ कर दिया है। 

    इसी तरह से छत्तीसगढ़ में महासमुंद के कमरौद गांव की 32 वर्षीय वल्लरी का भी खूब डंका बज रहा है। उन्होंने भी कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति कर दिखायी है। छह साल पहले 15 एकड़ के खेत में खेती शुरू करने वाली वल्लरी अब एक साथ तीन गांवों में खेती कर रही हैं। एमटेक करने के बाद किसी मोटी पगार वाली नौकरी से लाखों रुपये की तनख्वाह हासिल कर दिखावटी सुख-सुविधाओं भरी जिन्दगी जीने की बजाय खेती को चुनने वाली वल्लरी को भी शुरू में हतोत्साहित और निराश करने का अभियान चलाया गया, पर अब महासमुंद के हर गांव के पुरुष एवं महिला समूह उनसे उन्नत किस्म की खेती करने के तरीके सीख कर मोटी कमायी कर रहे हैं। कमरौद में 24 एकड़ जमीन में मिर्च, अमरूद, बांस, पपीता, नारियल, स्ट्राबेरी आदि से लाखों की कमाई कर रही इस जूझारू महिला ने भी बोलने वालों की सोच को बदलकर रख दिया है। वल्लरी खेती के नये-नये तरीकों का सतत अध्ययन करती रहती हैं। जब प्रयोग सफल हो जाते हैं तो दूसरे किसानों को भी साझा कर उनके लिए भी विकास के मार्ग खोलती चली जाती हैं। यही भारत का वास्तविक चित्र है, जहां के श्रमजीवी स्त्री-पुरूष खून पसीना बहाकर कमाये गए धन का उपभोग करने में यकीन रखते हैं। उनके लिए परिश्रम ही वास्तविक योग साधना है।

Thursday, January 19, 2023

पर्दे की चीर-फाड़

     भूख तो हर किसी को लगती है। छत के बिना भी जिन्दगी नहीं कटती। सभी को सुख-चैन से रहना अच्छा लगता है। हर कोई चाहता है कि उसकी रोजी-रोटी पर कभी कोई खतरा न आए। अपनी हाड़तोड़ मेहनत से बनाये घर, ऑफिस, दूकान, होटल और दरो-दीवार पर कोई दरार और आंच भी ना आए। इस धरा के हर इंसान की हमेशा यही तमन्ना रहती है, कि हम और हमारा परिवार हर हाल में सुरक्षित रहे। यह भी सच है कि इंसान के चाहने और सोचने के बावजूद कभी-कभी स्थितियां और परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहतीं। इंसानी दुष्टता के साथ-साथ कुदरत का कहर भी ऐसा बरपा हो जाता है कि अच्छा भला आदमी माथा पकड़ कर रह जाता है। 

    पहले बात करते हैं पड़ोसी देश पाकिस्तान की, जहां पर इन दिनों लोगों को अपने सामने मौत नाचती दिखायी दे रही है। जनता हुक्मरान को दिन-रात कोस रही है, जिनकी गलत नीतियों की वजह से उसे दिन-रात भूख से लड़ते हुए दाने-दाने को मोहताज होना पड़ रहा है। पाकिस्तान में आटे के दाम आसमान के भी पार जा पहुंचे हैं। 160 रुपये किलो में आटा और 60 रुपये किलो में नमक खरीद पाना आम आदमी के लिए आसमान के तारे तोड़ने जैसा है, फिर भी हर मां-बाप अपने बच्चों के लिए यह भी करने को तैयार हैं। प्रतिदिन दुकानों के सामने लम्बी-लम्बी कतारें लगती हैं और कुछ के हिस्से में खाने-पीने का नाममात्र सामान आता है तो अधिकांश को निराश खाली हाथ घर लौट जाना पड़ता है। इस जद्दोजहद में न जाने कितने लोग कुचले जा चुके हैं। कुछ की तो भीड़ में धक्का-मुक्की और दम घुटने की वजह से मौत भी हो चुकी है। साल भर पहले जो प्याज तीस-बत्तीस रुपये किलो बिकती थी अब उसकी कीमत दो सौ रुपये किलो के पार जा पहुंची है। गैस सिलेंडर 10 हजार में तो चिकन छह सौ रुपये तथा दालों तथा सब्जियों के दाम भी गरीबों के मुंह पर तमाचे जड़ रहे हैं। पांच-सात हजार रुपये महीने की कमायी करने वाले परिवारों को एक वक्त की रोटी भी नसीब हो जाए तो बहुत बड़ी बात है। बीमार होने पर लोगों के लिए दवाएं खरीद पाना भी आसमान से तारे तोड़ने जैसा ही है। डॉक्टरों ने भी अपनी फीस बढ़ा दी है। जमाखोरों के लालच तथा जमाखोरी की कोई सीमा नहीं रही। मौत के सौदागरों के यहां धड़ाधड़ नोट बरस रहे हैं। भ्रष्ट व्यापारी नेता, अधिकारी, कर्मचारी बस हाथ आये मौके का फायदा उठाने में लगे हैं। अपने घरों और गोदामों में खाने-पीने तथा सभी सुख-सुविधाओं के सामान का अंबार लगाकर धनवान बड़ी बेरहमी के साथ तमाशा देख रहे हैं। 

    पाकिस्तान और हिंदुस्तान एक ही उम्र के देश हैं। दोनों एक ही साथ आजाद हुए थे, लेकिन कौन कहां पहुंचा यह बताने की जरूरत नहीं। हिंदुस्तान में लोकतंत्र की जड़ें भी अत्यंत मजबूत हैं। कोई भी ताकत उन्हें हिला-डुला नहीं सकती। दूसरी तरफ पड़ोसी देश में तो जनतंत्र का बार-बार जनाजा उठता रहता है। पाकिस्तान के शासक आवाम की खुशहाली के लिए मेहनत करने की बजाय अपने पड़ोसी भारत देश की तरक्की से ही जलते आए हैं। उन्होंने वसुधैव कुटंबकम की संस्कृति और मनोभावना के साथ आगे बढ़ने वाले भारत को तबाह करके रख देने की धमकियां भी दीं, लेकिन अंतत: खुद ही बरबादी और कंगाली के कगार पर जा पहुंचे। अब जब उनका पूरा मुल्क दाल रोटी मांग रहा है, तब वहां के प्रधानमंत्री के होश ठिकाने आये हैं। अपने जन्मजात अहंकार और ऐंठन को अपनी भूल और नासमझी मानते हुए उसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समक्ष कहा है, ‘भारत के साथ हमने तीन युद्ध लड़े और इससे हमारे लोगों को दु:ख, गरीबी और बेरोजगारी के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा। अब हम शांति से रहना चाहते हैं।’ 

    जहां पाकिस्तान में आटा-दाल-चावल को लेकर हाहाकार मचा है, वहीं भारत में पहाड़ों पर भूस्खलन, पानी के रिसाव तथा दरारों ने हजारों लोगों को बेघर होने को विवश कर दिया है। आप कल्पना करें। जरा सोच कर भी देखें। जिस घर... झोपड़ी, महल, दुकान, होटल, कार्यालय आदि को आपने खूब मेहनत कर बनाया... खड़ा किया हो, उसे एकाएक छोड़कर कहीं और रहने और कमाने खाने को जाना पड़े तो आप पर क्या बीतेगी? उत्तराखंड में स्थित शहर जोशीमठ तथा उसके आसपास के गांवों-कस्बों में स्थित घरों की दीवारों तथा सड़कों में दिल दहलाते भूधंसाव तथा दरारों के आने से यहां रहने वाले हजारों लोग बेघर और बेरोजगार होने के संकट से जूझ रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि किसी ने उनकी गर्दन पर नंगी तलवार रख दी है। प्रशासन के द्वारा लगभग आठ सौ घरों पर खतरे का लाल निशान लगा दिये गए हैं। कुछ लोग अपनी जमीन से जुदा होने को हर्गिज तैयार नहीं। अपनी जान की परवाह न करने वाले इन लोगों की यह मांग भी है कि जब तक उन्हें पर्याप्त मुआवजा नहीं मिलेगा तब तक वे कहीं और नहीं जाएंगे। अंतत: वे यहीं मर खप जाएंगे। बिना रुपयों के नया बसेरा कैसे बनेगा और रोजगार के प्रबंध भी कैसे होंगे? उन्हें क्या पता था कि उन पर ऐसा आफत का पहाड़ टूट पड़ेगा? 

    ऐसा भी नहीं है कि पहाड़ों पर पड़ने वाली दरारों एवं भूस्खलन का शासन और प्रशासन को पहले से कोई अंदेशा नहीं था। 1976 में ही मिश्रा समिति ने जोशीमठ के आसपास भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश कर दी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है, यह मुख्य चट्टान पर नहीं है। यह एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है। अलकनंदा और धौलीगंगा की नदी धाराओं द्वारा कटाव भी भूस्खलन लाने में अपनी भूमिका निभा रहा है। शासन और प्रशासन को सचेत करते हुए यह भी सुझाया गया था कि पेड़ और घास लगाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाए। ढलानों पर कृषि से बचा जाए, पक्की नाली प्रणाली का निर्माण किया जाए, ताकि गड्ढों को बंद किया जा सके और सीवरलाइन के माध्यम से सीवेज का पानी बह सके। इसके अलावा रिसाव से बचने के लिए पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए और इसे सुरक्षित क्षेत्र में ले जाने के लिए नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए और सभी दरारों को चूने, स्थानीय मिट्टी और रेती से भरा जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दरअसल, शासन और प्रशासन की नींद तो तभी खुल जानी चाहिए थी, जब 2013 में केदारनाथ में प्रलय जैसे हालात बने थे और अनेकों मौतें हो गई थीं। 

    सच कहें तो अपने देश हिंदुस्तान में अतीत से सबक लेने की परिपाटी नहीं है। बहुत कुछ भगवान भरोसे चलता रहता है। जब दुर्घटना घटती है, तब शासन-प्रशासन की नींद खुलती है। भगवान न करे भारत के कभी भी पाकिस्तान जैसे भयावह हालात बनें, लेकिन यहां की अमीरी के नीचे दबती और कराहती गरीबी को छिपाने और नजरअंदाज करने का षडयंत्र-सा चल रहा है। देश के पास संसाधनों की कहीं कोई कमी नहीं, लेकिन अधिकांश साधन-संसाधन धनवानों के हाथों में सिमट कर रह गये हैं। एक प्रतिशत अमीरों की जेब में देश का चालीस प्रतिशत धन कैद होकर रहा गया है। वर्तमान में देश के 81 करोड़ लोगों को गरीब होने के कारण पांच किलो अनाज लगभग मुफ्त में देना पड़ रहा है। सरकार की इस मेहरबानी से देश की गरीबी और बदहाली का कटु सच तो नहीं बदलने वाला। अब प्रश्न तो यह भी है कि हकीकत को कब तक छिपाया जाता रहेगा? एक न एक दिन तो पर्दा फटेगा या फिर उसे किन्हीं हाथों के द्वारा चीर-फाड़ दिया जाएगा...।

Thursday, January 12, 2023

आत्मघाती मदमस्ती

    यह तो बदमाशी की इंतेहा है। जन्मजात गुंडे और सफेदपोश बदमाश लड़कियों तथा औरतों को जमीन पर भी निशाना बना रहे हैं और आसमान पर भी खून के आंसू रुला रहे हैं। उनकी इस जबरदस्ती की गुंदागर्दी में शराब भी खासी भूमिका निभा रही है। देश के प्रदेश हरियाणा के चमकते उद्योगनगर गुरुग्राम में एक नौकरीपेशा लड़की रात को ऑटो से घर लौट रही थी तब नशे में धुत बाइक सवार युवक की उस पर नजर पड़ी तो उसने लड़की को धमकाते हुए कहा कि चुपचाप मेरे साथ मेरी बाइक पर बैठ जा। लड़की के मना करते ही नशे में लड़खड़ाते युवक ने गंदी-गंदी गालियां देते हुए लड़की पर हेलमेट से इतनी जोर से वार किया, जिससे वह लहूलुहान हो गई। घोर हैरानी भरा सच यह भी है कि लड़की की बहन के 112 नंबर पर कॉल करने पर पुलिस जिप्सी में जो खाकी वर्दीधारी घटनास्थल पर पहुंचे वे भी शराब के नशे में चूर थे। उनकी जुबान बुरी तरह से लड़खड़ा रही थी। घायल लड़की को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसके सिर पर 20 से ज्यादा टांके लगाने पड़े। 

    उत्तरप्रदेश के शहर सुलतानपुर के निकट स्थित एक गांव में नशे में धुत दो शराबियों ने आधी रात को चाय की दुकान चलाने वाले उम्रदराज पति-पत्नी से नमकीन की मांग की। उनके यह बताने पर कि फिलहाल उनके यहां खाने का कोई सामान नहीं है तो वे इस कदर आगबबूला हुए कि दोनों के सीने में गोलियां दाग कर बुरी तरह से घायल कर डाला। न्यूयार्क से दिल्ली आ रही एयरइंडिया की फ्लाइट में शराब के नशे में धुत एक यात्री ने शौचालय में न जाकर एक बुजुर्ग महिला यात्री पर ही धार छोड़कर उनके कंबल, बैग और अन्य सामान को गीला और गंदा कर दिया। इस घोर अमानवीय और शर्मनाक घटना को अंजाम तो दिया गया 26 नवंबर 2022 की रात, लेकिन देश और दुनिया तक इसकी खबर उड़ते-उड़ते पहुंची 4 जनवरी 2023 के दिन। आराम से सफर करने की अभिलाषा लिए बिजनेस क्लास में यात्रा करती उम्रदराज महिला के साथ अशोभनीय हरकत करने वाले शराबी के सहयात्री ने बताया कि नशे में डोलते अभियुक्त ने लंच में ही सिंगल मॉल्ट के चार गिलास गटकने में देरी नहीं लगायी। वह बार-बार मुझसे यही पूछ रहा था कि आपके कितने बच्चे हैं। मदमस्त हो चुके शराबी की यही पहचान होती है। इतनी अधिक पीने के बाद भी वह पैग पर पैग खाली करने में लगा था। उसकी पीने की यह रफ्तार मुझे भी डराने लगी थी। इसलिए मैंने तुरंत एयरलाइन के स्टाफ से निवेदन किया कि मेरे सहयात्री को बहुत चढ़ गई है। उन्हें कृपया अब और शराब ना दें, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। वे अंधाधुंध पीते चले गये। हम बिजनेस क्लास कैबिन की पहली पंक्ति में बैठे थे। शौचालय चार पंक्ति पीछे था। जब उसे पेशाब लगी तो उसने शौचालय न जाते हुए पीछे की पंक्ति पर जाकर विंडो सीट की 72 वर्षीय महिला पर पेशाब कर दिया। इतना संगीन अपराध करने के पश्चात वह चुपचाप अपनी सीट पर जाकर सो गया। इसी दौरान ऊपर से नीचे तक भीग चुकी महिला बहुत चिंतित व घबराई हुई थी। उसके कपड़े, जूते और बैग पेशाब से भीग चुके थे। बैग में ही पासपोर्ट, यात्रा संबंधी दस्तावेज और रुपये-पैसे थे। वह काफी देर तक शराबी को कोसती रहीं। पहले तो क्रू मेंबर्स ने उसे छूने से ही इनकार कर दिया। कुछ देर के बाद उनके सामान को शौचालय में ले जाकर धोया गया तथा उन्हें भी पहनने को एयरलाइन का पाजामा और मौजे दिए गये। अच्छी-खासी नींद लेने के बाद 34 वर्षीय पेशाबबाज यात्री जागा और थोड़ा संभला तो मेरी तरफ देखते हुए बोला, ‘‘भाई शायद मैं मुसीबत में पड़ गया हूं।’’ तब मैंने कहा, ‘हां, बिलकुल। आपने गलती ही बहुत बड़ी की है।’ शराब पीकर हद से ज्यादा नशे के गर्त में समाने वाले इस शराबी के करियर और जिंदगी की ऐसी-तैसी होने में देरी नहीं लगी। कल तक नामी-गिरामी कंपनी की ‘महाराजा चेयर’ पर बैठकर लाखों रुपये महीने की पगार पाने वाला आज बदनाम और बदहाल होकर सड़क पर आ चुका है।

    हवाई यात्रा के दौरान नशे में धुत यात्रियों के लड़ने-भिड़ने की खबरें इन दिनों कुछ ज्यादा ही आने और चिंता में डालने लगी हैं। धरती का रोग हवा को भी दहलाने लगा है। 27 दिसंबर 2022 के दिन बैंकाक से कोलकाता की फ्लाइट में यात्री जानवरों की तरह आपस में ही भिड़ गये। उनकी मारकुटायी का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। दो यात्रियों के बीच सीट को लेकर शुरू हुई मामूली कहा-सुनी देखते ही देखते हाथापायी में बदल गई। क्रू मेंबरों के रोकने और समझाने का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ा। उलटे दूसरे व्यक्ति के कुछ साथी भी अकेले पड़ चुके यात्री की अंधाधुंध धुनाई करने लगे। इसी तरह से इंडिगो की इंस्ताबुल से दिल्ली आ रही फ्लाइट में एक यात्री कू्र मेंबर पर बेतहाशा भड़क कर गालीगलौज करने लगा। उसे खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा था। एयर होस्टेस ने यात्री को विनम्रता से अपनी बात कहने का अनुरोध किया तो वह और अभद्र तेवर दिखाते हुए एयर होस्टेस को धमकाने लगा, ‘‘तुम नौकर हो, इसलिए अपना मुंह बंद रखो।’’ एयर होस्टेस भी तैश में आ गई। उसने फौरन जवाब दिया, ‘‘पहले तो आप बोलने की तमीज सीखें और यह भी जान लें कि मैं आपकी नौकरानी नहीं।’’ अब तो यात्री के गुस्से का पारा और भी चढ़ गया...। बड़ी मुश्किल से समझा-बुझा कर उसे ठंडा किया गया। 

    नव वर्ष 2023 के जनवरी महीने के दूसरे हफ्ते दिल्ली-पटना इंडिगो फ्लाइट में नशे में धुत तीन युवकों ने जमकर हंगामा किया। इस दौरान जब एयर होस्टेस ने उन्हें समझाने की कोशिश की तो वे उसी के साथ छेड़खानी और बदसलूकी करने लगे। तीनों फ्लाइट में बैठते ही हंगामा करने लगे थे। तय है कि यात्रा करने से पहले ही उन्होंने चढ़ा ली थी। देश के चुनिंदा हवाई अड्डों पर यात्रियों को मदमस्त करने के लिए बीयरबार खोले ही जा चुके हैं। नशे में पियक्कड़ अपना आपा खो देते हैं। उन्हें समय, जगह और परिस्थिति का भी भान नहीं रहता। उनमें एक अजीब किस्म का अहंकार भी रहता है। इंटरनेशनल फ्लाइट में यह जो ‘पेशाब कांड’ हुआ उस पर कुछ लोग बोले कि शराब के नशे में होने के कारण ही यह निंदनीय अपराध हो गया। नशे में धुत शराबी को कहां पता होता है कि वह क्या बोल, कह और कर रहा है। यह गलती तो शराब की है, जो अच्छे भले इंसान को बहकाती है, लेकिन किसी के कुछ कहने से इतने बड़े तूफानी अपराध और अपराधी को यूं ही तो क्षमा नहीं किया जा सकता। उम्रदराज महिला के हवाई सफर को बदरंग तथा नर्क बनाने वाले शख्स को इतनी तो समझ होनी ही चाहिए थी कि पानी और शराब में फर्क होता है तथा पीने की भी कोई मर्यादा होती है। आप जब पचा नहीं सकते तो इतनी अधिक पीते क्यों हैं कि बुरी तरह से बहक जाएं। उपद्रव और उल्टियां करने लगें। लंबी उबाऊ उड़ानों में थकावट से बचाये रखने के लिए यात्रियों की शराब से मेहमान नवाजी की बहुत पुरानी परिपाटी है, लेकिन इस बात का भी तो ध्यान रखा जाना चाहिए कि मेहमान ने कहीं ज्यादा तो नहीं पी ली है। जब सहयात्रियों को उसके विनाशकारी कगार पर होने का होने का पता चल जाता है तो एयरलाइंस में कार्यरत सेवक और सेविकाओं की आंखें क्यों बंद रहती हैं?

Thursday, January 5, 2023

सच्चे कर्मयोगी ... नरेंद्र मोदी

    भारतवर्ष के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदरणीय माताश्री हीरा बेन का शुक्रवार को तड़के साढ़े तीन बजे निधन हो गया। उनके देहावसान पर पूरा देश शोक में डूब गया। उनके सुपुत्र नरेंद्र मोदी तुरंत पुत्रधर्म निभाने में जुट गए। गमगीन बेटे को अपनी आराध्य मां की अर्थी को कंधा देते देख सभी की आंखें बार-बार भीगती रहीं। मां की चिता पंचतत्व में विलीन हो रही थी और अपने असीम दर्द को अपने भीतर समेटे बेटा चुपचाप खड़ा था। दाह संस्कार की लपटें उसे अतीत की तरफ बहाकर ले जाने को आतुर थीं, लेकिन वह अपने वर्तमान के कर्तव्यबोध से बंधा था। वह अपने बड़े भाई को सांत्वना दे रहा था। उसके आंसू पोंछ रहा था। अपनी जान से भी प्रिय अपनी मां की अंत्येष्टि के फौरन बाद बेटा राजधर्म के पथ पर चल पड़ा। देशवासियों ने ऐसा कर्मठ प्रधानमंत्री पहली बार देखा, जिसने अपनी पीड़ा को अपने कर्तव्य पथ के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने वीडियो कॉन्फेंसिंग के माध्यम से पूर्व निर्धारित सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गांधीनगर में अपनी मां की अंतिम संस्कार की तैयारियों में लगे थे, तभी उन्होंने देशवासियों से अपील कर दी थी कि अपने पूर्व निर्धारित किसी भी काम को न रोकें। अपने दायित्व का पालन करना ही हीरा बा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस अपील का उन्होंने खुद भी पूरे समर्पण भाव से अमल करते हुए पश्चिम बंगाल में 7,800 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन और लोकार्पण किया। इसी दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल की पहली वंदे मातरम ट्रेन को हरी झंडी दिखायी। वे जब कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, तब उनकी जुबान लड़खड़ाने को बेताब थी, लेकिन मुश्किल की हर घड़ी में खुद पर नियंत्रण रखने में दक्ष इस कर्मवीर ने खुद को संभाले रखा और दिखा दिया कि निजी पीड़ा राष्ट्रधर्म के समक्ष कोई मायने नहीं रखती। प्रधानमंत्री के भर्राये स्वर और नम होती आंखों की भाषा को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तुरंत भांप लिया। वह प्रधानमंत्री की कर्तव्य परायणता के प्रति नतमस्तक होकर रह गईं। उन्होंने मोदी जी की माताश्री हीरा बेन के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि आपकी मां हमारी भी मां हैं। दु:ख की इस घड़ी में हम सब आपके साथ हैं। आप सीधे मां की अंत्येष्टि से आए हैं। मैं चाहती हूं कि आप अभी आराम करें। 

    जिस संयम और धैर्य के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी निजी पीड़ा को दबाते हुए अपने फर्ज़ को प्राथमिकता दी उसे हमेशा याद रखा जाएगा। मां हीरा बेन की 99 वर्ष की जीवन यात्रा भी काफी संघर्षमय रही। अपने बच्चों को पालने-पोसने-पढ़ाने-लिखाने तथा अच्छी तरह से संस्कारित करने के लिए उन्हें लोगों के घरों में बर्तन मांजने और झाडू-पोछा तक भी करना पड़ा। फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बेटे नरेंद्र पर अपनी मां के अटूट परिश्रम और सद्विचारों का इतना अधिक प्रभाव रहा कि उन्होंने सबकुछ छोड़छाड़ कर देश की सेवा करने का संकल्प ले लिया। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक की उनकी यात्रा के पन्ने-पन्ने से सभी सजग देशवासी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। देशवासी इस सच से भी अनजान नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी ने कभी भी खुद को परिवार के मोह का कैदी नहीं बनने दिया। उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनके सीएम और पीएम होने का लाभ उठाने की चेष्टा नहीं की, जबकि अमूमन होता यह है कि किसी भी विधायक सांसद के मंत्री बनते ही उनके परिवार वालों की हर रोज दिवाली मनती है। कभी जिनके पास साइकिल नहीं होती है, वे कारों के मालिक बन जाते हैं। मंत्रियो की औलादें और रिश्तेदार मंत्री के सरकारी निवास पर डेरा जमाये रहते हैं। मंत्री भी जश्न मनाने में लीन हो जाते हैं। सरकारी खर्चे पर देश और विदेश के पर्यटन स्थलों पर बार-बार जाते हैं। उन्हें छुट्टी मनाने के दिनों का बेसब्री से इंतजार रहता है। भारत के अधिकांश पूर्व प्रधानमंत्री किसी न किसी बहाने देश के हिल स्टेशनों तथा विदेश यात्राओं पर जाने के लिए विख्यात रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कोई छुट्टी नहीं ली। हर उत्सव देश के वीर सैनिकों के साथ मनाया।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोमभाई मोदी स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं देने के बाद रिटायर हो चुके हैं। अब वह अहमदाबाद में वृद्धाश्रम चलाते हुए समाजसेवा कर रहे हैं। किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि मेरे और प्रधानमंत्री के बीच एक परदा है। मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं, न कि प्रधानमंत्री का। प्रधानमंत्री के लिए वे करोड़ों भारतीयों में से एक हैं। प्रधानमंत्री जी के दूसरे भाई अमृत भाई एक प्राइवेट कंपनी में फिटर के पद से रिटायर होने के बाद अहमदाबाद में अपने चार कमरों के मकान में आम भारतीयों की तरह रह रहे हैं। उनके बेटे यानी नरेंद्र मोदी के भतीजे 47 वर्षीय संजय मोदी, जो कि अपनी लेथमशीन संचालित कर गुजर बसर कर रहे हैं, का कहना है कि उनका पीएम मोदी से बहुत ही कम मिलना-जुलना होता है। उनके बारह साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी यही स्थिति थी। पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरे भाई प्रहलाद मोदी अहमदाबाद में एक किराने की दुकान चलाते हुए सहज और सरल तरीके से जीवनयापन कर रहे हैं। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले प्रहलाद मोदी को इस बात का कतई अहंकार नहीं कि वे देश के प्रधानमंत्री के भाई हैं। नरेंद्र मोदी के सबसे छोटे भाई पंकज सूचना विभाग से रिटायर हुए हैं। वह गांधीनगर में रहते हैं। इन्हीं के साथ ही मां हीरा बेन रहती थीं। मां से जब भी नरेंद्र मोदी मिलने आते तो ही उनकी मुलाकात अपने बड़े भाई से होती थी। माताश्री हीरा बेन ने भी कभी किसी को नहीं जताया कि वह देश के प्रधानमंत्री की मां हैं। एक-दो बार प्रधानमंत्री निवास पर चंद दिन पुत्र के अनुरोध पर रहीं जरूर, लेकिन तुरंत गांधी नगर के अपने छोटे से घर में लौट आईं। उन्होंने हमेशा नरेंद्र मोदी को अपने बेटे की तरह देखा, सीएम या पीएम के रूप में तो कभी भी नहीं। यही सच उनके आदर्श और पवित्र मातृत्व को दर्शाता है। अपने कर्म को ही धर्म मानने वाले नरेंद्र मोदी को बचपन में अपनी मां से जो संस्कार मिले उनसे उन्होंने कभी भी मुंह नहीं मोड़ा। आराम करना तो उन्होंने कभी सीखा ही नहीं। वर्षों से ही उनकी ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत है। इतनी सुबह जागकर वे नियमित ध्यान में बैठते हैं, योग और कसरत करते हैं। इसी से उनकी एकाग्रता, स्फूर्ति, धैर्य और ताजगी बनी रहती है, जो उनके विरोधियों को भी चौंकाती है।