Thursday, February 23, 2023

कलाकारी

    मेले ठेले देश की पहचान हैं। अपनी कहने को आतुर साधु-संतों, प्रवचनकारों, किस्म-किस्म के चर्चित सच्चे-झूठे चेहरों को देखने और सुनने के लिए यहां भीड़ का जुटना-जुटाना बहुत आसान है। जादू-टोना, भूतप्रेत और झाड़फूंक के प्रति विश्वास रखने की घातक भूल और भ्रम से बचने की सीख देते-देते सदियां बीत गईं, लेकिन फिर भी कई लोग अभी भी अंधविश्वासों की मजबूत जंजीरों में बुरी तरह से जकड़े हैं। उनकी भेड़चाल और अंधभक्ति की वजह से इस आधुनिक युग में भी नये-नये तथाकथित चमत्कारी बाबाओं को अपने दरबार सजाने में तनिक भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। आसाराम, राम रहीम, रामपाल, नित्यानंद जैसे कई कपटी-ढोंगी असंत अब जेलों में बंद हैं या अपनी पोल खुलने के पश्चात गायब हो गये हैं। पिछले कुछ हफ्तों से बागेश्वर धाम सरकार के नाम से देशभर के मीडिया में छाये धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की नेताओं ने भी कीमत बढ़ा दी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा कमलनाथ आदि की हाथ जोड़कर नतमस्तक खड़े होने की तस्वीरें देखकर अनजान लोग भी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को जानने, देखने और सुनने को लालायित हो गए। मात्र 26-27 साल के धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कारी दावों की गूंज के बीच कुछ विरोध के स्वर भी उठे, लेकिन उन्हें बड़े सुनियोजित तरीके से दबा और दबवा दिया गया। कुशल प्रवचकार धीरेंद्र शास्त्री ने कम समय में धर्म के बाजार में जिस तरह से अपनी धाक जमायी है, उससे पुराने बाबा और प्रवचकारों को भी अपने मायावी जादू के कारोबार पर संकट के बादल मंडराते नजर आने लगे हैं। फिल्मी नायक के से चेहरे-मोहरे वाला यह युवक लोगों के चेहरे के साथ-साथ वर्तमान हालात की नज़ाकत को भी खूब समझता है। तभी तो उसने विरोधियों का मुंह बंद करने और करवाने के लिए ‘हिंदू राष्ट्र’ का गुब्बारा आकाश में ऐसे उड़ाया कि अनेक लोगों को उसमें अलौकिक चमत्कारी बाबा के साथ-साथ भावी राष्ट्रनेता का भी चेहरा नजर आया है। 

    मंचों पर मुस्कराते हुए सनातन का राग अलापने वाले इस ताजा-ताजा बाबा के प्रति आम लोगों की दीवानगी का हाल यह है कि वे उन्हें अपना संकटमोचक मानने लगे हैं। दरअसल, सभी के दिल-दिमाग में यह बात बिठा दी गई है कि बाबा के पास हर बीमारी का इलाज है। वह शरीर और चेहरा पढ़ने में पारंगत है। अपनी सफलता पर बाबा गद्गद् है। एक से एक बीमार उनके दरबार में पहुंच रहे हैं। भीड़ में बेहाल हो रहे हैं। फिरोजाबाद की रहने वाली नीलम देवी नामक महिला की हाल ही में बागेश्वर धाम में मौत हो गई। लोग हतप्रभ रह गए। नीलम देवी किडनी की बीमारी की शिकार थी। उसके घरवालों ने जहां-तहां जोर-शोर से सुना था धीरेंद्र शास्त्री की दरबार में बिना किसी दवाई के फौरन चमत्कार हो जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बेचारी नीलम देवी चल बसी। अपनी अर्जी... फरियाद लेकर बागेश्वर धाम पहुंची महिला के भला-चंगा होने की बजाय चल बसने पर सोशल मीडिया पर किस्म-किस्म की बहस छिड़ गई। नीलम देवी के घरवाले बेवकूफ थे, जो उसे बागेश्वर धाम ले गए। अस्पताल ले गए होते तो बच भी जाती। इस मौत पर बाबा को कोसना बेवकूफी है। वे उसे बुलाने के लिए तो नहीं गए थे। यह भी तो सच है कि बाबा का बीमारों को ठीक-ठाक करने का अंधाधुंध प्रचार-प्रसार भी कम कसूरवार नहीं। वैसे भी अंधविश्वासी अपने दिमाग का कम ही इस्तेमाल करते हैं। 

    उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के तिवारीपुर इलाके में हाल ही में यज्ञ का आयोजन किया गया। जुलूस की शान-शोभा बढ़ाने के लिए बड़ी धूमधाम के साथ एक विशाल हाथी को वहां पर लाया गया। कलश यात्रा के लिए महिलाएं जल भरने को जाने को तैयार थीं। तभी कुछ अति उत्साही लोग हाथी से छेड़छाड़ का मज़ा लेने लगे, तो कुछ उसके साथ फोटो खिंचवाने के लिए धक्का-मुक्की पर उतर आए। भीड़ की अनियंत्रित हरकतें देखकर हाथी को गुस्सा आ गया। फिर भी उसके साथ फोटो खिंचवाने वालों की अक्ल पर ताले पड़े रहे। वे अपनी ही ‘भक्ति मस्ती’ में हाथी को छेड़ते रहे। कोई उसकी सूंड को पकड़ता तो कोई उसकी भरी-पूरी काया को। फिर जानवर तो आखिर जानवर ही होता है। उसने अपना उत्पाती रंग दिखा ही दिया, जिसकी वजह से तीन लोगों की मौत हो गई। विशाल हाथी के पैरोंतले कुचले-मसले गए मृतकों में एक बच्चा भी था, जो काफी समय से बीमार था। इस बच्चे की मां उसे हाथी से आशीर्वाद दिलाने के लिए बड़ी श्रद्धा और उम्मीद के साथ अपने मायके आई थी। उसके माता-पिता ने भी उसे हर तरह से आश्वस्त किया था कि बच्चे का अस्पताल में इलाज कराना व्यर्थ है। यज्ञ में लाकर उसका पूजन कराओ तो वह चुटकियां बजाते ही रोगमुक्त हो जाएगा। 

    मध्यप्रदेश के सिहोर जिले में स्थित कुबेरेश्वर धाम में मुफ्त रुद्राक्ष पाने के लिए देशभर से लाखों लोग जमा हो गए। सबसे पहले रुद्राक्ष हासिल करने के लिए मची धक्का-मुक्की में कई लोग चक्कर आने से बेहोश हो गए। महाराष्ट्र के मालेगांव से आई एक पचास वर्षीय महिला सहित चार लोगों की मौत हो गई। कुछ महिलाएं भी लापता हो गईं। कुबेरेश्वर धाम के कर्ताधर्ताओं ने देशभर में प्रचार का डंका बजवाया था कि उनके द्वारा वितरित किए जाने वाले रुद्राक्ष अत्यंत गुणकारी और असरकारी हैं। इस रुद्राक्ष को पानी में डालें और बस उस पानी को पी लें। इससे उनकी हर बीमारी तथा समस्या फुर्र हो जाएगी। यही नहीं भूत बाधा के पुराने से पुराने संकट का भी तुरंत में निवारण हो जाएगा। ऐसे चमत्कारी रुद्राक्ष को किसी भी हाल में हासिल करने के लिए लोग खाना-पीना तक भूल गए। भूखे-प्यासे घण्टों लाइन में लगे रहे। दस लाख लोगों का जमावड़ा कोई म़जाक नहीं होता। उसे संभालने के लिए सुरक्षा के सभी इंतजाम करने होते हैं, लेकिन यह ‘रुद्राक्ष महोत्सव’ तो पूरी तरह से भगवान भरोसे था।

    अपने देश भारत में लोगों की आस्था से खिलवाड़ करने के मामले में कई भगवाधारी विख्यात और कुख्यात रहे हैं। अखबारों तथा न्यूज चैनलों का दायित्व है लोगों को कपटी साधुओं की अंधभक्ति के चंगुल से बचाना, लेकिन मीडिया भी तरह-तरह के खेल करने की उस्तादी दिखाता चला आ रहा है। कुछ वर्ष पूर्व संतरा नगरी नागपुर के एक सबसे पुराने दैनिक अखबार ने अपनी पाठक संख्या और धंधे को बढ़ाने तथा डूबती नैय्या को पार लगाने के लिए शहर में स्थित साईं मंदिर में भभूत के साथ मोतियों का प्रसाद बांटा था। ‘प्रसाद’ के लिए अधिक से अधिक भीड़ पहुंचे इसके लिए कई दिनों तक प्रचारबाजी का भोंपू बजाया जाता रहा था। इन मोतियों को शहर के नेताओं, बिल्डरों, उद्योगपतियों तथा विभिन्न जिन रंगधारी समाजसेवकों तथा कलाकारों ने सपत्निक अभिमंत्रित यानी सिद्ध (!) किया था, उनकी तस्वीरें भी अखबार में प्रकाशित की गई थीं। शहर भर में होर्डिंग्स भी लगाये गए थे। मजे की बात तो यह थी कि, मोतियों की संख्या तो थी मात्र इक्कीस हजार, लेकिन दूर-दूर से लाखों लोगों को निमंत्रित किया गया था। तब भी खूब भगदड़ मची थी। हर किसी को चमत्कारी मोतियों का प्रसाद पाने की जल्दी थी। अखबार मालिकों की खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं था, लेकिन कई महिलाएं भूखी-प्यासी बच्चों को अपनी गोद में लेकर रोती-बिलखती रहीं थीं। भारी भीड़ को पुलिस ने बड़ी मुश्किल से संभाला था...।

Thursday, February 16, 2023

यहां तो सब चलता है!

    कई तस्वीरें हैं, जो मेरी आंखों से ओझल ही नहीं हो रहीं। एक बच्ची कई घण्टों से मलबे में फंसी है। इस दौरान इस सात साल की बहादुर बच्ची ने अपने छोटे भाई की रक्षा... सुरक्षा के लिए उसके सिर पर हाथ रख रखा है। लगातार 17 घण्टे तक मौत का सामना कर मलबे में दबे रहने वाले बहन-भाई की इस तस्वीर को जिसने भी देखा हतप्रभ रह गया। मौत से जंग ऐसे भी लड़ी जाती है। हर किसी ने बहन की सराहना की। धरती के सभी संवेदनशील इंसानों को भावुकता से ओतप्रोत कर देने वाली इस अभूतपूर्व तस्वीर ने सृष्टिवासियों को यह भी बताया कि लाल खून के रिश्ते का पूरी दुनिया में एक ही रंग है। सोच और भावनाओं में भी कोई फर्क नहीं। कुछ नादान लोग इस सच से मुंह फेरे रहते हैं। इसी वजह से दंगे फसाद होते हैं। भाईचारे का कत्ल होता रहता है और निर्दोषों का खून बहता है। तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप ने लगभग पचास हजार लोगों की जान ले ली। इस प्राकृतिक आपदा तथा इंसानी लालच और नालायकी ने दुनिया को फिर एक बार चेतावनी देते हुए चेताया कि अभी भी वक्त है, होश में आ जाओ। प्रकृति से छेड़छाड़ करना बंद करो। हद से ज्यादा भौतिक सुखों के लालच के गर्त में मत डूबो। याद रखो जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। तुम्हारी गलतियां तुम्हें इससे भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

    तुर्की और सीरिया में आये भयावह भूकंप ने एक से एक विशाल गगनचुंबी इमारतों को जमींदोज कर दिया। मलबे को हटाने के लिए क्रेनें और इंसानी दिमाग चलते और दौड़ते रहे। कड़ाके की सर्दी में राहत कार्यों में रुकावटें आती रहीं। ऐसे-ऐसे चमत्कारों का भी सिलसिला बना रहा, जो यह बताता रहा कि इन हैरतअंगेज चमत्कारों के पीछे कोई तो है, जिसे कई लोग मानने और स्वीकारने को तैयार नहीं होते, लेकिन जब आफत का पहाड़ टूटता है तो नतमस्तक हुए बिना भी नहीं रहते। 

    एक मासूम बच्चा बीते 45 घण्टों से ढेर सारे मलबे के नीचे दबा हुआ है। वह पूरी तरह से चेतन अवस्था में है। आंखें खुली हैं। वह कभी ऊपर तो कभी इधर-उधर ताकता है। एक बचाव कर्मी उसे बोतल के ढक्कन से पानी पिलाता दिखायी देता है। पानी के कुछ घूंट पीते ही बच्चा मुस्कराता है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे ऊपर बैठा विधाता मुस्करा रहा हो। उसकी निश्छल हंसी सभी का मन मोह लेती है। बच्चा बड़ों की भाषा नहीं समझता, लेकिन फिर भी बचावकर्मी उसे बार-बार दिलासा देते हैं कि हिम्मत मत हारना। कुछ ही पलों में तुम्हें हम बाहर निकाल लेंगे। भयंकर तबाही मचा देने वाले भूकंप ने जहां कई बलशाली तंदुरुस्त लोगों को एक ही झटके में मार डाला वहीं कई मासूम बच्चों और वृद्धों को खरोंच तक नहीं आयी। क्रेन, हथोड़े, कुदाल, फावड़े के साथ चेन वाली आरी, डिस्क कटर्स और सरिया काटने वाले औजारों के साथ इंसानी जिन्दगियों को बचाने में लगी रेस्क्यू टीम ने कांक्रीट स्लैब के नीचे बुरी तरह से दबी एक नवजात बच्ची को देखा तो देखती ही रह गई। यह कुदरत का आलौकिक चमत्कार ही था कि बच्ची अपनी मां की गर्भनाल से जुड़ी पूरी तरह से सुरक्षित जिन्दा थी और जन्म देने वाली मां की मौत हो चुकी थी। तय है कि मां ने कुछ घण्टे पहले ही बच्ची को जन्म दिया था। उस बच्ची को अपनी गोद में खिलाने के लिए परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा था। बच्ची को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। भूकंप आने के 62 घण्टों बाद सात मंजिला इमारत के मलबे से एक बारह साल के बच्चे को किसी तरह से बाहर निकाला गया तो वह हंस रहा था। उस साहसी बच्चे को हाथ में लेते ही बचाव कर्मी उसे चूमते हुए अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाने लगे। भूकंप की भयावहता से रूबरू होने वाले एक शख्स ने पत्रकारों को आपबीती सुनायी कि मैंने भूकंप के बारे में सुना तो बहुत था, लेकिन इसे देखा और महसूसा पहली बार। जब हमारा अपार्टमेंट एकाएक हिलने लगा तब मैंने मान लिया था कि अब हमारे परिवार का बचना असंभव है। अपने-अपने कमरों में रह रहे सभी परिवार के सदस्यों को मैंने अपने पास बुलाया और कहा कि, अब जब हम सब मरने ही वाले हैं तो कम अज़ कम एक साथ एक ही कमरे में एक ही जगह क्यों न मरें। यह तो हमारी किस्मत अच्छी थी कि हम सब बच गए। जब भूकंप थमा तो मैं बाहर निकला। कई गगनचुंबी इमारतें जमीन पर धराशायी हो चुकी थीं। मलबे में दबे लोगों के रोने, कराहने की आवाजें आ रही थीं। रेस्क्यू टीमें बड़ी फुर्ती के साथ बचाव कार्य में लगी थीं। 

    अपने देश भारत में भी हमने भूकंपों और बादलों के फटने के बाद हुई तबाही को कई बार देखा और झेला है। हाल ही में देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में स्थित जोशीमठ में जमीन के धसने से लोगों को किस तरह से अपने घर-कारोबार को छोड़ने को मजबूर होना पड़ा, इससे भी हम सभी देशवासी खूब वाकिफ हैं। कई विनाश लीलाएं इंसानों की खुदगर्जी और अनदेखी का प्रतिफल रही हैं। भू-धंसाव का खतरा तो जोशीमठ पर 1970 से मंडराने लगा था। भू-वैज्ञानिकों ने भी कई बार चेताया था कि पहाड़ी जमीन पर धड़ाधड़ घरों, भवनों, होटलों का निर्माण तथा बेतहाशा खनन कार्य अंतत: जानलेवा साबित होगा। संभावित खतरों से वाकिफ होने के बावजूद भ्रष्टाचार और इंसानी लालच ने अपनी मनमानी जारी रखी और 2023 के आते-आते तक पहाड़ों पर स्थित जोशीमठ के घरों, होटलों और सड़कों की बेतहाशा दरारों ने हजारों लोगों को बेमन से बेघर होने को विवश कर दिया। सभी जगह बड़ी तेजी से जनसंख्या में इजाफा हो रहा है। लोगों के रहने के लिए छत तो चाहिए ही, लेकिन उन्हें बनाने, खड़ा करने में जिन सावधानियों की आवश्यकता है, उसकी तो अनदेखी नहीं होनी चाहिए। भारत वर्ष के महानगरों, नगरों में खड़ी की गईं अनेकों बहुमंजिला इमारतें भूकंप रोधी नहीं हैं। तुर्की और सीरिया में भूकंप ने ही हजारों लोगों को मौत की नींद ही नहीं सुलाया, वहां की विशाल इमारतों ने भी कई जानें ले लीं। ऐसा भी नहीं कि सभी इमारतें धराशायी हुई हों। कुछ बिल्डिंगें ऐसी भी रहीं, जिनका भूकंप बाल भी बांका नहीं कर पाया। वहां की सरकार ने उन सैकड़ों भवन निर्माताओं को हथकड़ियां पहनाकर जेल में सड़ने के लिए डाल दिया है, जिन्होंने बिल्डिंग की नींव और दीवारों की मजबूती की ओर ध्यान देने की बजाय सिर्फ अपनी तिजोरियों का वजन बढ़ाया। तुर्की में एक तरफ वैश्विक मदद से राहत एवं बचाव अभियान चलता रहा तो दूसरी तरफ बेईमानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी शुरू कर दी गई। ‘हिंदुस्तान में तो सब चलता है’ की परिपाटी चलती चली आ रही है। यहां शायद ही किसी बेईमान भवन निर्माता को जेल में डाला गया हो...।

Thursday, February 9, 2023

तेल देखो, तेल की धार देखो

    प्रवचनकार आसाराम का एक जमाने में गजब का नाम और दबदबा था। उसके प्रवचन सुनने के लिए लाखों की भीड़ जुटा करती थी। नेता, मंत्री, अभिनेता, समाजसेवक, धर्म प्रेमी... सभी उसके दरबार में नतमस्तक होने के लिए उत्सुक रहते थे। उसके प्रवचनों में मनुष्य को धैर्यवान तथा चरित्रवान बने रहने की सीखें दी जाती थीं। दूसरों की मां-बहनों का आदर-सम्मान करने का पाठ पढ़ाया जाता था। उनके बोलने, मटकने और नाचने-कूदने का अंदाज लोगों को लुभाता था। इसलिए दूर-दूर से भीड़ खिंची चली आती थी। नेता, अभिनेता, पत्रकार, संपादक, अखबार तथा न्यूज चैनल वाले उसके लिए आदरसूचक शब्दावली का इस्तेमाल कर गर्वित हुआ करते थे। तब देश और दुनिया के लाखों भक्तों के प्रिय रहे आसाराम को अभी हाल ही में बलात्कार के एक और केस में उम्रकैद की सजा होने पर उसके कट्टर अनुयायियों को भले ही एक और झटका लगा हो, लेकिन देश के लाखों आम लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा। यह वही लोग हैं, जिन्हें यह ढोंगी इंसान नहीं भगवान लगता था। अपने कुकर्मों के कारण लोगों के मन और दिमाग से उतर चुका यह यौनाचारी किसी भी तरह की सहानुभूति का अधिकारी नहीं, क्योंकि इसने करोड़ों सीधे सच्चे अपने ही भक्तों, शिष्य-शिष्याओं की पवित्र आस्था और असीम भरोसे का कत्ल करने का अक्षम्य अपराध किया है। 

    इस व्याभिचारी के कारण देश के सच्चे साधु-संतों को भी शंका की निगाह से देखा जाने लगा है। 2018 में जोधपुर की अदालत में जिस 16 साल की नाबालिग लड़की की अस्मत लूटने की वजह से इसे उम्रकैद की सजा सुनायी गई थी, वह तथा उसका पूरा परिवार इस दुराचारी का अंधभक्त था। वासना के इस खिलाड़ी ने उनकी बेटी को रोग मुक्त करने का भरोसा दिलाया था और अपनी कुटिया के एकांत में जंगली जानवर की तरह टूट पड़ा था। लड़की के माता-पिता को जब अपने भगवान के शैतान होने की सच्चाई का पता चला तो एकबारगी तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ था। इस शर्मनाक घिनौने सच की तह तक पहुंचने के लिए उन्होंने उससे गहन पूछताछ की थी। उसके बाद ही उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। 

    अभी गुजरात के गांधीनगर की एक अदालत ने जिस महिला से बलात्कार करने के कारण इस बलात्कारी को उम्रकैद की सजा सुनायी है, वह भी इसकी परम आस्थावान शिष्या थी। उसने कभी कल्पना नहीं की होगी कि जिसे वह देवता मानती है, वह तो आदतन दुराचारी है। आसाराम के देशभर में फैले आश्रमों तथा प्रवचन कार्यक्रमों के मंचों पर एक से एक दिग्गज हाजिरी लगाते थे, इसलिए तो उसे यह भ्रम था कि कानून उसकी मुट्ठी में है। वह कितने भी दुराचार करता रहे, कोई उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करेगा। इन अहंकार भरी मदमस्ती में वह लगातार अपने आश्रमों में एक तरफ भोग विलास करता रहा, तो दूसरी तरफ विभिन्न मंचों पर मायावी-प्रभावी प्रवचनों का जाल फेंक कर अपने भक्तों की संख्या बढ़ाता रहा। जब उसकी गिरफ्तारी हुई तो कई अंध भक्त उसके समर्थन में सड़कों पर उतर आये। उन्होंने जहां-तहां हंगामा बरपा किया कि हमारे पूज्यनीय बापू निर्दोष हैं। उन्हें किसी साजिश के चलते फंसाया गया है। वे किसी की बहन, बेटी और बहू पर गलत निगाह डाल ही नहीं सकते। 

    अभ्यस्त देहभोगी की शिकार हुई नारियों के परिजनों पर तरह-तरह के दबाव डाले गये। उन्हें डराया और धमकाया गया। कुछ की हत्या करने की कोशिश तो कुछ को मौत के मुंह में भी सुलाया गया। मुंह बंद रखने के लिए करोड़ों रुपये के प्रलोभन दिये गए। इस नकाबपोश नराधम को कभी कोई अपराधबोध भी नहीं हुआ! अगर हुआ होता तो भावी परिणाम के बारे में जरूर सोचता। अपनी वर्षों की तपस्या के बाद बनायी साख पर घोर कलंक नहीं लगने देता। इसमें नारी देह की अथाह भूख के साथ अपार धन की प्रबल लालसा भी भरी हुई थी। नारी जिस्मों पर गिद्ध की तरह झपट पड़ने वाले इस शैतान ने मर-मर कर अंधाधुंध पैसा कमाया, लेकिन वो भी इसके काम नहीं आया। चोर का माल चांडाल खा गये। स्वयंभू बाबा, ढोंगी धूर्त और पाखंडी प्रवचनकार आसाराम का बस चलता तो सारे जहान की धन-दौलत अपनी झोली में समेट लेता। आसाराम में चतुर और घाघ कारोबारी के सभी गुण-दुर्गुण विद्यमान रहे हैं। उसका जिस शहर में भी प्रवचन तथा तथाकथित सत्संग का कार्यक्रम होता था, वहां पर भव्य मंच और विशालतम पंडाल अहमदाबाद से लाकर खड़ा किया जाता था। आसाराम अपने नाम का डंका बजवाने के लिए अपनी तस्वीरों वाले बड़े-बड़े बैनर, पोस्टर, स्टीकर, कैलेंडर अपने ही कारखाने में बनवाता था। च्यवनप्राश, यौन उत्तेजक दवाओं, चूर्ण, चाय, साबुन, बिस्किट, पेन, आडियो-वीडियो कैसेट, घड़ियों, चाबी के छल्लों आदि को खपाने के लिए अपना पूरा प्रचार तंत्र लगा देता था। खुद को महान संत दर्शाने के लिए ‘ऋषि प्रसाद’, ‘दरवेश दर्शन’, -लोक कल्याण सेतु’ आदि पत्र-पत्रिकाओं को लाखों की संख्या में छपवा और बिकवा कर रातों-रात करोड़ों की कमायी कर लेता था। दरअसल, आसाराम आम भोले-भाले लोगों को अंधविश्वासी बनाने और उनकी हर कमजोरी का फायदा उठाने की सभी धूर्त कलाओं में जन्मजात पारंगत रहा है। इस असंत ने चंद वर्षों में अरबों-खरबों की दौलत जुटायी। दुष्ट सौदागर आसाराम के पास जब धन को अपने पास रखने की जगह नहीं बची तो उसने विभिन्न नगरों-महानगरों में रहने वाले अपने खास शिष्यों के द्वारा उस धन को ब्याज पर चलवाना प्रारंभ कर दिया। उसके यह चेले-चपाटे उस रकम को मोटे ब्याज पर चलाकर खुद भी मालामाल होते रहे और अपने ‘लालची आका’ की तिजोरी का भी वजन बढ़ाते रहे। कुकर्मी आसाराम और उसके बेटे नारायण के जेल में जाने के बाद उस सारी की सारी काली धन दौलत पर उन्हीं चेले-चपाटों का हमेशा-हमेशा के लिए कब्जा हो गया। उम्रकैद के बाद तो उन्हें पक्का यकीन हो गया है कि उनके पास अमानत के तौर पर रखवायी गयी अपार माया को अब कोई भी वापस नहीं मांगने वाला। दोनों यौन रोगी जेल में ही मर-खप जाने वाले हैं। दिल्ली, पुणे, इन्दौर, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, नागपुर, पानीपत, कटनी जैसे नगरों-महानगरों में रहने वाले जिन चेलों के पास आसाराम एंड कंपनी की काली दौलत जमा थी वे अंदर ही अंदर बहुत खुश हैं। वे भी यही चाहते हैं कि बाप-बेटा कैद में ही परलोक सिधार जाएं। अपने ‘बापू’ के धन से इन्होंने बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली हैं। विशाल फार्म हाऊस के साथ कारों की कतारें भी लग गई हैं। इनकी शान-शौकत देखते बनती है। ‘चोर का माल खाए चांडाल’ कहावत को चरितार्थ कर दिखाने की इनकी हिम्मत, ‘प्रताप’ और मक्कारी का लोहा शहरवासी भी मानने लगे हैं।

Thursday, February 2, 2023

पुरुष-सत्ता

      रविवार की सुबह मॉर्निंग वॉक कर घर लौट रहा था। वॉक पर निकलने से पहले ही मैंने अंजली से मिलने का मन बना लिया था। लगभग आठ बजे जैसे ही अंजली के किराये के घर के सामने पहुंचा तो वहां आठ-दस लोगों की भीड़ लगी थी। अंजली भीड़ के बीच अपराधी की तरह चुपचाप सिर झुकाये खड़ी थी। अंजली का मकान मालिक जोर-जोर से चिल्लाते हुए कह रहा था, ‘‘मैं तो पहले से ही तुम्हें किराये पर रखने को तैयार नहीं था। तुमने मिन्नते कीं, एक-दो इज्जतदारों से सिफारिश करवायी, तो मैंने तुम्हें अच्छी और नेक औरत समझकर हां कर दी, लेकिन मैंने तुम्हें तभी वार्निंग दे दी थी कि रात को ज्यादा देरी से आना बिलकुल नहीं चलेगा। शुरू-शुरू में तो तुम रात को दस-साढ़े दस बजे तक बाहर से लौट आया करती थीं, लेकिन अब कई दिनों से रात-रात भर गायब रहती हो। किस्म-किस्म के पुरुषों का भी तुम्हारे कमरे में आना-जाना लगा रहता है। तुम्हारी वजह से हमें आसपास के लोग कितना कुछ सुनाते रहते हैं। कुछ लोगों के मुंह से तुम्हारी बदचलनी के किस्से भी सुनने में आये हैं। लगता है, तभी तुम्हारे शरीफ पति ने हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हें घर से बाहर कर चैन की सांस ली है। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी देखा-देखी मेरी जवान बेटी भी हमारे हाथ से निकल जाए।’’ 

    ‘‘अंकल आप जो सोच रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं। अखबार में साथ काम करने वाली सहेली के अनुरोध पर उसके यहां एक-दो बार रात को ठहरना पड़ा, लेकिन अब आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।’’ 

    ‘‘तुम्हारे लाख हाथ जोड़ने पर भी मैं नहीं पिघलने वाला। यहां अब ज्यादा तमाशा न करते हुए अपना सामान उठाओ और तुरंत चलती बनो।’’ 

    मकान मालिक को मेरा समझाना भी बेअसर रहा। हां, उसने अंजली को शाम तक की मोहलत जरूर दे दी। शहर के दैनिक समाचार पत्र के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत रहने के साथ-साथ अंजली एक अच्छी कहानीकार तथा कवयित्री भी है। उसे कवि सम्मेलनों के मंचों पर छा जाने का भी खूब हुनर हासिल है। कभी-कभार दूसरे शहरों में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों में बड़े मान-सम्मान के साथ आमंत्रित होती रहती है। अंजली ने शहर के नामी कॉलेज के एक अंग्रेजी के प्रोफेसर से लव मैरीज की थी। दोनों एक दूसरे को कॉलेज के जमाने से जानते थे। शादी के कुछ महीनों के बाद अंजली को पति के माता-पिता से बड़ी परेशानी होने लगी। पहले तो उन्हें अपनी बहू का मंचीय कवयित्री होना पसंद नहीं था। उसकी लोकप्रियता और मिलनसारिता की वजह से जब देखो तब कवि, लेखक, पत्रकार और प्रशंसक उससे मिलने के लिए घर आ टपकते थे और सास और ननद को उनकी मेहमान नवाजी करनी पड़ती थी। अंजली का सभी से खुलकर हंस बोल लेना भी उन्हें शूल की तरह चुभता था। शादी के तीन-चार वर्ष बीतते-बीतते उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव भी बनाया जाने लगा। सास-ससुर पोते के सुख से वंचित रहने की वजह से बेचैन हो चुके थे। उधर अंजली ने सात फेरे लेने से पहले ही अपने पति देव को बता दिया था कि पत्रकारिता और साहित्य में अच्छी तरह से स्थापित होने के पश्चात ही वह फैमिली के बारे में सोचेगी। तब पति महोदय ने भी कोई ऐतराज नहीं जताया था। बस मुस्करा कर रह गए थे। हद तो तब हो गई जब उनके करीबी रिश्तेदार भी सवाल दागने लगे कि आखिर वह बच्चा कब पैदा करेगी? अंजली के लिए सबसे ज्यादा आहत करने वाली बात थी अपने बुद्धिजीवी पति देव का पूरी तरह से चुप्पी साधे रहना। कई बार अंजली का मन होता कि वह सभी को मुंहतोड़ जवाब दे, लेकिन...! 

    जब अंजली को लगा कि उसके लिए दकियानूसी और रूढ़िवादी रिश्ते को और निभा पाना संभव नहीं तो उसने हमेशा-हमेशा के लिए पति के घर को ही त्याग दिया। कुछ शुभचिंतकों ने अंजली के इस निर्णय को उसकी नासमझी कहा तो कुछ ने हद दर्जे की बेवकूफी। उसे अकेली औरतों पर मंडराने वाले खतरों के कई किस्से सुनाकर डराया भी गया, लेकिन अंजली अपने निर्णय पर अडिग रही। अखबारी नौकरी से उसे इतनी तनख्वाह तो मिल ही रही थी, जिससे उसके रहने और जीने-खाने पर किसी संकट का कोई खतरा नहीं था। पति का घर छोड़ने के पश्चात बड़ी मुश्किल से उसे रहने के लिए यह किराए का कमरा मिला था। उसे नहीं पता था कि उसका आजादी पसंद तथा खुले दिल-दिमाग का होना नयी आफत का कारण बन जाएगा। जिस शहर में वह जन्मी वहीं उसे किराए के छोटे से कमरे के लिए कितनी ठोकरें खानी पड़ीं। जहां भी जाती कहा जाता कि अकेली औरत के लिए घर खाली नहीं है। 

    इस घर के मालिक ने भी बड़ी मुश्किल से इस शर्त पर मनमाने किराए पर कमरा रहने को दिया था कि 9 से 10 बजे तक ही घर से बाहर रह सकती हो। किसी भी पुरुष को उसके कमरे में आता देखा गया तो अच्छा नहीं होगा। तुरंत कमरा खाली करवा लिया जाएगा। कुछ पत्रकार तथा साहित्यकार मित्रों के अलावा मकान मालिक की बीए पास लड़की यदा-कदा उससे मिलने आ जाती थी। उसकी साहित्य और पत्रकारिता में खासी अभिरुचि है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण की अभिलाषी इस महत्वाकांक्षी लड़की से अंजली को इधर-उधर की बातें करने में बहुत अच्छा लगता था। एक शाम लड़की ने उसे यह बताकर चौंकाया था कि वह अपनी एक खास सहेली से बेइंतहा प्यार करती है। दोनों की शीघ्र ही हमेशा-हमेशा के लिए एक साथ रहने की पक्की तैयारी है। इस बात का पिता को तो नहीं, मां को जरूर पता है। मां अक्सर उसे चेताती भी है कि वह इस अप्राकृतिक रिश्ते से फौरन बाज आए नहीं तो पिता को बताकर तूफान बरपा करवा देगी। गुस्सैल पिता उसकी ऐसी दुर्गति करेंगे, जिसकी उसने कभी कल्पना नहीं की होगी। जब लड़की की मां ने देखा कि उसकी बेटी घण्टों उस किराएदार महिला के साथ कमरे में बंद रहती है, जो अपने पति से अलग हो चुकी है तो उसने अपने पति के कान भरने शुरू कर दिए। संकीर्ण सोचवाले मकान मालिक को अंजली को अपने घर से खदेड़ने का सटीक बहाना मिल गया।

    अंजली के नये ठिकाने की व्यवस्था कर दोपहर को जब मैं घर लौटा तो पुरुष सत्ता का परचम लहराती यह खबर जैसे मेरा ही इंतजार कर रही थी... कब्र में पैर लटकाये एक 70 वर्षीय वृद्ध ने 28 वर्ष की लड़की से विवाह कर लिया है। यह लड़की और कोई नहीं उसकी ही विधवा बहू है। उसका पति चार साल पहले गुजर गया था। कालांतर में दो-तीन अच्छे-भले युवकों ने लड़की से शादी करने की इच्छा जतायी थी, लेकिन ससुर महाराज ने उन्हें नजरअंदाज कर खुद ही मंदिर में ले जाकर अपने मृतक बेटे की पत्नी से विवाह कर लिया। अब यह बताने की जरूरत तो नहीं कि ससुर बहू के लिए पिता की तरह होता है, लेकिन इसे तो अपने बेटे का भी ख्याल नहीं आया, जो इस लड़की को कभी बड़े अरमानों के साथ ब्याह कर अपने घर लाया था। इस लड़की को तो हर किसी से सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए था, लेकिन इस देह के भूखे ससुर ने बहू से शादी कर पवित्र रिश्ते को कलंकित करने के साथ-साथ शर्मिंदा भी कर दिया। उसकी पत्नी बारह साल पहले दिवंगत हो गई थी। उसकी देखरेख की कमी को बहू पूरा कर सकती थी। बेटियां अपने मां-बाप की सेवा करती ही हैं। वह उसका किसी बेघर युवक से ब्याह करवाने के बाद दोनों को अपने घर में रखकर एक अच्छा प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत  कर देता तो लोग नतमस्तक हो जाते। थू...थू, तो नहीं होती। नेक नीयत वाला होता तो बहू के साथ सात फेरे लेने की बजाय उसे अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाकर अपना कद भी बढ़ा सकता था, लेकिन उसके अंदर दुबक कर बैठी लूली-लंगड़ी, अंधी वासना ने उसे विवेकशुन्य कर उसके चेहरे पर कालिख ही पोत दी।