Thursday, March 28, 2019

सच का आईना

सत्ता और राजनीति में अमूमन वही मान-सम्मान पाता है जिसमें जी हजूरी करने के अपार गुण हों। सच कहने वालों को यहां बर्दाश्त नहीं किया जाता। झूठी प्रशंसा करने की कला में माहिर लोगों को हाथों-हाथ लिया जाता है। स्वाभिमानी इंसानों की भी यहां दाल नहीं गल पाती। चौकन्ने होकर देखने पर आप यही पायेंगे कि कुर्सी पाने के लालच में अधिकांश विधायक और सांसद अपनी गरिमा को ताक पर रख देते हैं। कुछ ही होते हैं जो अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करते। चुनाव जीतने से पहले मतदाताओं से किये गए वायदे उनके लिए सर्वोपरि होते हैं। सत्ता की राजधानी की चकाचौंध में भी उनका मन नहीं भटकता। अपने उसूलों के लिए वे किसी से भी भिड जाते हैं। कौनसा नेता असली है और कौन नकली इसका पता उसके बोलने और काम करने के अंदाज से चल जाता है। यह पंक्तियां लिखते समय मुझे दो नाम याद रहे हैं। एक हैं नाना पटोले तो दूसरे हैं शत्रुघ्न सिन्हा। दोनों ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लडकर २०१४ में लोकसभा पहुंचे थे। नाना पटोले ने २०१७ में सांसदी को इसलिए  लात मार दी क्योंकि शीर्ष नेतृत्व के द्वारा उनकी अवहेलना की जा रही थी। उनकी गरिमा को ठेस पहुंचायी जा रही थी। भाजपा सांसदों की बैठक में जब इस स्वाभिमानी सांसद नाना पटोले ने ओबीसी समाज और किसानों की आत्महत्या का मुद्दा उठाना चाहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुस्सा आ गया और उन्होंने उन्हें चुपचाप बैठने का फरमान सुना दिया। किसानों तथा ओबीसी समाज के लिए हमेशा संघर्ष करते रहने वाले पटोले को प्रधानमंत्री के इस अहंकारी तेवर ने निराश और आहत कर दिया। उन्होंने इस सच को भी जान लिया कि वे जिस उद्देश्य के लिए सांसद बने हैं वो पूरा नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से ही त्यागपत्र दे दिया। दूसरी तरफ शत्रुघ्न सिन्हा हैं, जो सांसद बनने के बाद बार-बार यही कहते रहे कि वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। उनकी ज़रा भी नहीं सुनी जाती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तानाशाह की तरह पेश आते हैं। बार-बार शर्मिंदगी के कडवे घूंट पीने और अपनी गरिमा की ऐसी-तैसी करवाने के बावजूद शत्रुघ्न सिन्हा लोकसभा से इस्तीफा देने की हिम्मत नहीं कर पाये। आखिरतक पार्टी से चिपके रहे। ऐसे में असली नायक तो नाना पटोले ही हुए न! जिन्होंने  आत्मस्वाभिमान को सर्वोपरि माना और वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद कम अज़ कम शत्रुघ्न जैसे मौकापरस्त नेताओं से तो नहीं की जा सकती। यह लोग तो जिस थाली में खाते हैं उसी को तबला बनाकर बजाते रहते हैं। इनकी जुबान भी तब तक विरोध के स्वर उगलती रहती है जब तक इनके मुंह में मंत्रीपद का लड्डू नहीं ठूंस दिया जाता। सिर्फ और सिर्फ मंत्रीपद के भूखे खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोचने वाले ऐसे अभिनेता-नेताओं का आम जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता। नौटंकीबाज शत्रु अब भाजपा के केसरिया किले को ध्वस्त करने के सपने के साथ कांग्रेस की टिकट पर पटना से ही लोकसभा चुनाव लडने जा रहे हैं। भाजपा ने उनके गाल पर अपमान का जो तमाचा जडा है उसके निशान उन्हें ताउम्र उनकी शातिरी और अहसानफरामोशी की याद दिलाते रहेंगे। शत्रुघ्न को कायस्थ वोटों का जबरदस्त भरोसा है। उनके इस भरोसे की बडी वजह उनका फिल्म अभिनेता होना भी है। हिन्दुस्तान की भावुक जनता फिल्मी चेहरों पर कुछ ज्यादा ही मोहित हो जाती है। फिल्मी सितारे वोटरों की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं। यह ऐसे शिकारी हैं जो शब्दजाल फेंककर वर्षों से लोगों को बेवकूफ बनाते चले आ रहे हैं। शत्रुघ्न की तरह कुटिल और फरेबी लकीर पर चलने वालों में और भी कुछ हवा बाज फिल्मी चेहरे हैं, जिनको लगता है कि जिस तरह से उनकी फिल्में हिट होती रही हैं वैसे ही राजनीति में भी कोई उनका रास्ता नहीं रोक पायेगा। राजनीतिक पार्टियां भी इन चमक-दमक वाले  नकली किरदारों से इस कदर प्रभावित हैं कि यह सोचकर इन्हें कहीं से भी खडा कर देती हैं कि इन्हें देखने और सुनने के लिए जुटने वाली भीड वोटरों में तब्दील होगी ही। हाल ही में हरियाणा की डांसर सपना चौधरी के कांग्रेस में शामिल होने की खबर को न्यूज चैनल वालों ने ऐसे दिखाया जैसे सपना कोई बहुत बडी हस्ती हो। वो जिस पार्टी में भी जाएगी उसकी झोली में वोट बरसने लगेंगे। यह खबर भी आंधी की तरह फैली कि मथुरा से कांग्रेस सपना को हेमा मालिनी के खिलाफ उतार सकती है। हालांकि बाद में सपना ने कांग्रेस में शामिल होने की खबर को निराधार बता दिया। मशहूर कलाकारों की लोकप्रियता को भुनाने के लिए देश का लगभग हर राजनीतिक दल मौका तलाशता रहता है। यह देखने और समझने की कोशिश ही नहीं की जाती कि वह कलाकार सही मायने में जननेता बनने के लायक है या नहीं। विधायक या सांसद बनने के बाद वह जनसेवा के लिए समय निकाल पायेगा या अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं में ही डूबा रहेगा। राज्यसभा की सम्मानित सदस्य बनने के बाद विश्व विख्यात गायिका लता मंगेशकर, अभिनेत्री रेखा, क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर और प्रख्यात चित्रकार एम.एस.हुसैन जैसे अन्य चेहरों ने कितनी बार जनसमस्याएं उठायीं और अपने विचार व्यक्त किए यह यकीनन शोध का विषय है। थैलियां लेकर धनपतियों को राज्यसभा का सांसद बनाने का चलन तो हमारे यहां बडा पुराना है। बैंकों को हजारों करोड की चपत लगाकर विदेश भाग खडे होने वाले अय्याश विजय माल्या और कई काले कारोबारी राज्यसभा का सांसद बनने का सौभाग्य हासिल कर भारतीय लोकतंत्र का मज़ाक उडाने में सफल रहे हैं। अभी भी देश में जो लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें अपना भाग्य आजमाने वाले लगभग सभी नेता ऐसे मालदार हैं, जिनकी करोडों रुपए फूंकने की पूरी तैयारी है।

Thursday, March 14, 2019

मामा का भात

उस दिन मैं राजधानी में था। एक कवि मित्र ने बताया कि हमारा वर्षों पुराना पत्रकार मित्र रवि जीटीबी अस्पताल में भर्ती है। कवि मित्र को साथ लेकर मैं अस्पताल जा पहुंचा। दोस्त का हालचाल जानने के बाद हम वापस लौट ही रहे थे कि अस्पताल में शोर-शराबा सुनायी दिया। अस्पताल के डॉक्टर गुस्सायी भीड को नियंत्रित करने में लगे थे। पांचवीं कक्षा की एक छात्रा की पानी की जगह तेजाब पीने से मौत हो गई थी। परिजन और स्थानीय लोग प्रदर्शन की मुद्रा में थे। पहले तो वे लोग अस्पताल के डॉक्टरों को ही छात्रा की मौत का दोषी मान रहे थे, लेकिन जब उन्हें सच से अवगत कराया गया तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई। पूर्वी दिल्ली के हर्ष विहार इलाके में स्थित एक स्कूल में पढने वाली पांचवी कक्षा की छात्रा को स्कूल प्रशासन ने एकाएक तबीयत बिगडने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया था। बाद में परिजनों को भी सूचना दे दी। अस्पताल में भर्ती कराते समय स्कूल प्रशासन ने डॉक्टरों को बताया कि बच्ची की पानी पीने से तबीयत बिगड गई है। डॉक्टरों को इलाज के दौरान कुछ शक हुआ कि बच्ची ने पानी नहीं तेजाब पिया है। उन्होंने मामले की सूचना पुलिस को दे दी और पूरी ताकत के साथ बच्ची को बचाने में लग गये, लेकिन उनकी सारी मेहनत धरी की धरी रह गई। कुछ ही घंटों के बाद बच्ची ने दम तोड दिया। पुलिस की जांच में बडा चौंकाने वाला सच सामने आया। रोज की तरह उस दिन भी सुबह संजना स्कूल पहुंची थी। लंच के दौरान वह अन्य बच्चों के साथ खाना खा रही थी। इस बीच उसने क्लास में ही खाना खाने आई चौथी कक्षा की छात्रा से पीने के लिए पानी की बोतल मांगी तो उसने संजना को सहर्ष बोतल थमा दी। जिसे पीते ही उसकी तबीयत बिगड गई और धडाधड उल्टियां होने लगीं। पेट जलने लगा। होंठ भी जल गए। दरअसल वह चौथी की बच्ची कोल्डड्रिंक की बोतल में पानी के बजाए गलती से तेजाब ले आई थी जिसे संजना ने पानी समझ कर पी लिया था। स्कूल में जहां बच्चे बैठकर खाना खा रहे थे, वहां उन्होंने फर्श पर तेजाब गिरने के बाद आने वाले सफेद निशान देखे। स्कूल प्रशासन को भी पता चल गया था कि बच्ची ने पानी की जगह तेजाब पी लिया है, लेकिन फिर भी उन्होंने परिजनों और डॉक्टरों से सच को छुपाये रखा। यदि समय पर तेजाब पीने के बारे में बताया जाता तो यकीनन डॉक्टर और गंभीरता से इलाज करते तो आज बच्ची जिन्दा होती। इस मौत के दोषी तो माता-पिता भी हैं जिन्होंने घर में तेजाब की बोतल लाकर रख दी थी और बच्ची पानी की बोतल समझकर स्कूल ले गई। इसे अगर संजना नहीं पीती तो यह बच्ची पीती और हश्र...!
दिल्ली में तेजाब बेचना गैर कानूनी है फिर भी गली की एक दुकान पर बडी आसानी से तेजाब उपलब्ध था! जिसे टॉयलेट साफ करने के लिए खरीदा गया था। संजना के पिता र्इंट के भट्टे पर मजदूरी कर अपनी बच्ची को पढा रहे थे। उनकी इच्छा थी कि लाडली बडी होकर ब‹डी अफसर बने। तेजाबी लापरवाही ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया। यह तेजाब अभी तक न जाने कितनी युवतियों को जिन्दा लाश बना चुका है। तेजाबी हमले के बाद चेहरे और दिलो-दिमाग पर जो निराशा और उदासी अंकित हो जाती है उससे आसानी से मुक्ति नहीं पायी जा सकती। उपदेश देना बहुत आसान है, सच का सामना करना बहुत मुश्किल। बीते हफ्ते एक गुस्साये प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को यह कहकर तेजाब से नहला दिया कि तुम्हें अपनी खूबसूरती पर बहुत गुरूर है। इसके खात्मे के लिए तुम्हें सजा देना जरूरी है। इससे उन युवतियों को भी सबक मिलेगा जो बात-बात पर खूबसूरत होने के अहंकार में अकड दिखाती रहती हैं।
देश के एक जाने-माने प्लास्टिक सर्जन, जो वर्षों से तेजाब हमले की शिकार महिलाओं का इलाज करते चले आ रहे हैं, का कहना है कि अगर कोई महिला पुरुष की बात नहीं मानती तो वह उस पर तेजाब फेंक कर एक सेकंड में ही उसकी सारी जिन्दगी बरबाद कर देता हैं। इस राक्षसी प्रवृति का अंत होता दिखायी नहीं देता। तेजाब की बुरी तरह से शिकार होने वाली कई महिलाएं तो जिन्दा ही नहीं रहना चाहतीं। बहुत कम ऐसी होती हैं जो जीवन की मुख्य धारा में लौटने का साहस दिखाती हैं। ज्यादातर तो घर की चार दीवारी में कैद हो जाती हैं। उनकी घुट-घुट कर कब मौत हो जाती है, पता ही नहीं चलता। तेजाब के हमले की शिकार हुई लक्ष्मी जैसी हिम्मत दिखाने वाली कुछ महिलाएं ही हैं जिन्होंने अपने जीवन को क‹डे संघर्ष में तब्दील कर दिखाया। लक्ष्मी गायिका बनना चाहती थी। तब उसकी उम्र थी पंद्रह वर्ष जब एक बत्तीस वर्षीय अमानुष ने तेजाब फेंककर उनका पूरा चेहरा बुरी तरह से जला दिया था। हमले के कुछ दिन बाद जब लक्ष्मी ने आइना देखा तो वह खुद को ही नहीं पहचान पाई। सबकुछ उलट-पुलट हो चुका था। लक्ष्मी और पूरे परिवार पर गमों का पहा‹ड टूट पडा था। बाद में लक्ष्मी ने खुद को ऐसा संभाला और ऐसे-ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये कि दुनिया हतप्रभ रह गई। दसवीं तक पढी लक्ष्मी को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने इंटरनेशनल वूमेन ऑफ कर्रेज़ अवार्ड देकर सम्मानित किया था। देश और विदेश में कई टीवी शोज में भाग लेकर अपनी प्रेरक और निर्भीक छवि बनाने वाली लक्ष्मी आज तरह-तरह की परेशानियों से घिरी हैं। शुरू-शुरू में तो उसके लिए कालीन बिछाये गये, तारीफों और स्वागतों की झ‹डी लगा दी गई, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसे बेहद कटु सच से रूबरू करवा दिया गया। जिस प्रेमी ने उम्रभर साथ देने का वादा किया था वह भी भाग खडा हुआ। बेटी का खर्च उठाने में भी असमर्थता व्यक्त कर दी है। आज लक्ष्मी को काम की जरूरत है, लेकिन वह बेरोजगारी के दंश झेलने को विवश है। कुछ साल पहले तक उसका भविष्य पूरी तरह से उज्जवल लग रहा था। आज चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। लक्ष्मी के जीवन संघर्ष पर करोडों रुपये खर्च कर फिल्म बनायी जा रही है, लेकिन उसके पास घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं। धन के अभाव के कारण वह अपनी इकलौती बेटी को पढा नहीं पा रही है। यह किसी एक लक्ष्मी की दास्तान नहीं है। इनकी संख्या हजारों में है जो नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। उन्हें सहानुभूति दिखाने वाले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन नौकरी देने में आना-कानी की जाती है।
राजधानी दिल्ली में महिला सुरक्षा पदयात्रा का आयोजन किया गया जिसमें तेजाब पीडितों ने लोगों के साथ अपना दर्द साझा किया। इस पदयात्रा में कई ट्रांसजेंडर भी शामिल हुए। उन्होंने नारे लगाए कि किन्नरों को सम्मान दो, वो भी इंसान हैं। उन्हें बेवजह अपमानित किया जाता है। किसी भी दफ्तर व पुलिस थाने में उनकी शिकायत नहीं सुनी जाती। कई किन्नरों को पढे-लिखे होने के बावजूद काम नहीं मिलता। हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के एक गांव में किन्नरों ने जो कर दिखाया उसकी मिसाल मिलना आसान नहीं है। उस गांव में एक गरीब परिवार अपनी बेटी की शादी को लेकर बहुत चिन्तित था। बिटिया की शादी तय हो गई थी और माता-पिता की जेब लगभग खाली थी। लडकी की मौसी का किन्नरों के बीच उठना-बैठना था। एक दिन उसने कुछ किन्नरों को इस गंभीर समस्या से अवगत कराया तो वे द्रवित हो उठे। उन्होंने मौसी को आश्वस्त किया कि वे लडकी की शादी में जो सहयोग बन पडेगा जरूर करेंगे। बातों ही बातों में उन्होंने मौसी से लडकी की शादी की तारीख भी जान ली। मौसी ने उनके आश्वासन को बहुत हलके में लिया। उसने सोचा कि झूठी तसल्ली देने के लिए ऐसी बातें तो सभी करते हैं। जहां अपने मुश्किल की घडी में किनारा कर लेते हैं वहां गैरों से क्यों कोई उम्मीद रखना...। जो किन्नर दूसरों के सहारे पलते हैं वो क्या किसी की सहायता करेंगे? लडकी की शादी के दो-तीन दिन पहले एक साथ नौ किन्नर ल‹डकी के घर जा पहुंचे। लडकी के माता-पिता उन्हें देखकर घबरा गये। उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि अब इन्हें कुछ-न-कुछ देकर विदा करना पडेगा। बिना लिये तो यह लोग टस से मस नहीं होंगे। लडकी के माता-पिता और रिश्तेदारों के उतरे हुए चेहरे को देखकर किन्नरों ने खिलखिलाते हुए कहा, अरे हम तो लडकी के मामा हैं जो अपना फर्ज निभाने आए हैं। अपनी भांजी की शादी में भात देने आए हैं। किसी को कुछ समझ में आ पाता इससे पहले उन्होंने पांच तोला सोना, पंद्रह तोला चांदी, और साढे तीन लाख रुपये लडकी की झोली में डाल दिए...।

Thursday, March 7, 2019

पराक्रम के सबूत?

देश की वायुसेना ने धूर्त पाकिस्तान के अंदर घुसकर हमले करके उसकी औकात बता दी। पाकिस्तान की सियासत में हडकंप मच गया। पुलवामा का बदला मांग रहे हर भारतवासी का चेहरा खिल उठा। पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के परिवारों ने कहा कि, "शहादत का बदला लेकर सेना ने उन्हें बेइंतहा खुशी दी है।" हमारा प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि पाकिस्तान के होश ठिकाने लगाने के लिए और बडी कार्रवाई करें। चंदौली के शहीद अवधेश यादव की कैंसर पीडित मां मालती देवी के शब्द थे, "जवान बेटे को खोने का दुख सबसे बडा दर्द होता है। मोदी सरकार ने पाकिस्तान की धज्जियां उडाकर मेरे कलेजे को थोडी राहत दी है। अब मैं चैन से मर सकूंगी।" शहीद जवान एच. गुरू की पत्नी कलावती ने भारतीय सैन्य बलों को सलाम करते हुए कहा कि, "यह कार्रवाई शहीद जवानों की आत्मा को शांति देगी। हमें भारतीय सैन्य बलों पर गर्व है।"
आतंकियों के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के बाद विपक्षी नेताओं ने पहले तो यही ऐलान किया कि हम सरकार और सेना के साथ हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे उनके सुर बदलते चले गये। दरअसल इस परिवर्तन के कई कारण भी थे। एयर स्ट्राइक के बाद संपूर्ण देश में जो माहौल बना उससे राजनीतिक दलों को लगा कि अब तो नरेंद्र मोदी बाजी मार ले जाएंगे। इसलिए २०१६ में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह की राजनीति हुई थी और सवालों के तीर दागे गये थे, वैसा ही सिलसिला इस बार भी शुरू होने में देरी नहीं लगी। कांग्रेस ने सवाल उठाया कि जो बात सेना को नहीं मालूम वह बात अमित शाह को किस प्रकार मालूम पडी। हम जानना चाहते हैं कि उन्होंने २५० लोगों की लाशें कब गिनीं। कभी भारतीय जनता पार्टी में रहकर कांग्रेस की धज्जियां उडाने वाले वर्तमान कांग्रेसी नवजोत सिंह सिद्धू ने तो यह कहकर नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खडा कर दिया, "तीन सौ आतंकी मारे गए, हाँ या ना? तो फिर मकसद क्या था? आप आतंकी मारने गए थे या पेड गिराने? क्या यह चुनावी नौटंकी थी? विदेशी दुश्मन से लडाई की आड में हमारे साथ धोखा हो रहा है। सेना पर सियासत बंद करो। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इस सवाल के साथ अपना तीर दागा, "विदेशी मीडिया में आतंकियों के मरने की, कोई खबर क्यों नहीं है। तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा दहाडीं कि हमें सशस्त्र बलों पर पूरा भरोसा है, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर कतई नहीं जो सैनिकों को बिना किसी योजना के मरने के लिए या किसी उद्देश्य के लिए भेज रहे हैं। दरअसल, इनका एक मात्र ध्येय बस चुनाव जीतना है। इन्होंने शहीद जवानों की बेशकीमती तस्वीरों को अपनी राजनीतिक रैली में टांग कर बेशर्मी के साथ उनका कद छोटा कर दिया।
भाजपा वालों ने भी अपनी पीठ थपथपाने और श्रेय लेने में कम उतावलापन नहीं दिखाया। सेना के पराक्रम का जयघोष करने के बजाय अपना ही बिगुल बजाते हुए विपक्षियों पर हमले करने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे जोशो-खरोश के साथ राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के पास राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को राष्ट्र को समर्पित किया तब उन्होंने शहीदों की आड में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार को निशाना बनाया। होना तो यह चाहिए था कि वे केवल शहीदों को नमन, श्रद्धांजलि अर्पित करते, लेकिन उन्होंने तो बोफोर्स तोप सौदे से लेकर उन तमाम हथियार सौदों को लेकर कांग्रेस पर हमले किये जो कांग्रेस राज में हुए थे। उन्होंने यह भी बताया कि सीमा पर लड रहे जवानों के पास हथियार तक नहीं थे। इसके लिए उनकी सरकार ने ही पहल की। कर्नाटक प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने तो छाती तानकर भविष्यवाणी कर दी कि, "वायुसेना की कार्रवाई के बाद देश में भाजपा के पक्ष में जो माहौल बना है उससे मेरा दावा है कि कर्नाटक में भाजपा लोकसभा की २२ सीटें जीत जाएगी।"
सत्ता और विपक्ष की राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे। इसी बीच एयरचीफ मार्शल बीएस धनोआ को सामने आकर कहना पडा, "वायुसेना लाशें नहीं गिनती। हमारा काम सिर्फ यह देखना है कि बम निशाने पर गिरा या नहीं। वायुसेना टारगेट पर बम गिराने की योजना बनाती है तो वहां बम गिराती भी है। अगर नुकसान नहीं होता तो पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई क्यों करता?"
पाकिस्तान के खैबर पख्तून में जिस बालाकोट को वायुसेना ने मटियामेट किया वहां पर तीन से चार मंजिला ऊंची इमारतो की शक्ल में छह बैरक बनी थीं, जहां पर भारत पर हमला करने के नापाक मंसूबे लिए सैकडों जिहादी आतंकी ट्रेनिंग लेते थे। वहां पर ढेर सारे हथियारों का जखीरा भरा पडा था। पुलवामा हमले के सूत्रधार जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बडे ट्रेनिंग सेंटर में आतंक के बाकायदा कोर्स बनाए गए थे। यहां आमतौर पर एक साथ २०० आतंकवादी और उनके ट्रेनर होते थे। पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान ने एलओसी पर स्थित टेरेरिस्ट लॉन्च पैड से बडी संख्या में आतंकियो को यहां शिफ्ट कर दिया था जिससे यह संख्या ३०० से अधिक हो गई थी। इंटेलिजेंस एजेंसियों की इस पुख्ता जानकारी के बाद एक बार में कई आतंकियों का सफाया करने के लिए भारतीय वायुसेना ने बालकोट को चुना। वायुसेना की इस कार्रवाई में न तो पाकिस्तान के रिहाइशी इलाकों में बम बरसाये गये और न ही सैनिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया। भारत ने यह संदेश भी दे दिया है कि पाकिस्तान ने यदि फिर कभी पुलवामा जैसी कमीनगी करने की जुर्रत की तो हम और भी ज्यादा आक्रामक कदम उठा सकते हैं।

Friday, March 1, 2019

सेना का मुंहतोड जवाब

शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंढियाल को अंतिम विदायी देने के लिए पूरा शहर उमड पडा था। हरिद्वार में भारत के इस सपूत का अंतिम संस्कार किया गया। इससे पूर्व शहीद के पार्थिव शरीर को उनके देहरादून स्थित आवास पर रखा गया था। शहीद मेजर की पत्नी निकिता ने ताबूत में पति के चेहरे को एकटक निहारते हुए जब यह शब्द कहे तो वहां पर उपस्थित हर किसी की आंखों से झर-झर कर आंसू बहने लगे, "आई लव यू। मिस यू विभूति। फिर मिलेंगे, ऐसी दुनिया में जहां आतंक का साया न हो।" महज दस महीने पूर्व मेजर विभूति शंकर ढौढियाल के साथ ब्याही गई निकिता ने इस मुश्किल घडी में स्वयं को संभाला और फिर मिलने का वादा कर पति को विदायी दी। यह भावुक मंजर देख पत्थर से पत्थर दिल इंसान की आंखें भीग गर्इं। घर की दीवारों पर हल्दी के हाथों के निशान अभी फीके भी नहीं पडे थे और उस वीरांगना के पति तिरंगे में लिपटकर अंतिम यात्रा पर जा रहे थे। वीर वधु ने अपने पति को सलामी देते-देते सभी को शहादत से सीख लेने का संदेश देते हुए कहा कि, "जो चले गए, उनसे कुछ सीखें। मैं सबसे प्रार्थना करती हूं कि वीर की शहादत पर सहानुभूति न जताएं। इस नौजवान की कुर्बानी, जिम्मेदारी, देश के प्रति अहसास को समझें। देश के लिए काम करने के बहुत सारे फील्ड हैं। ईमानदारी से काम करें। जय हिन्द।" इस वीरवधु के परिवार को कभी आतंकवाद के कारण कश्मीर छोडना पडा था और अब अपने जांबाज पति को खोना पडा। आठ माह की गर्भवती होने के बावजूद इस वीरांगना ने जो गजब की हिम्मत दिखाई उसे पूरा देश हमेशा याद रखेगा। उनकी आंखों से आंसू गायब थे। चेहरे पर पति के शहीद होने का गर्व था। गोरखा राइफल के जवानों ने जैसे ही मातमी धुन बजायी वीरवधु घर की देहरी पर आ गर्इं। खडे होकर पति को अंतिम सेल्यूट करती रहीं। अंतिम विदाई देते समय पिता जब फफक-फफक कर रोने लगे तो उन्होंने उन्हें रोका और बोलीं, "पापा, जाने दो उन्हें, वे देश के हीरो हैं।" अंतिम यात्रा में करीब एक किलोमीटर तक पैदल चलीं। रास्ते में जब एक महिला ने सहानुभूति जताते हुए उन्हें बेचारी कहा तो वे फौरन बोल पडीं, बेचारी नहीं हूं मैं।
पुलवामा में आतंकी हमले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी युवकों को पीटा गया। उन्हें धमकाया गया कि यह शहर छोड दो वर्ना मार डालेंगे। कश्मीर में आतंकी हमलों के लिए कश्मीर की आम जनता जिम्मेदार नहीं है। हां, यह सच है कि कुछ युवा, पाकिस्तान के प्रलोभन और बहकावे में आकर आतंक की राह पर चल पडे हैं, लेकिन उनसे कहीं बहुत ज्यादा युवा कश्मीर पुलिस, अर्ध सैनिक बलों और सेना में शामिल होकर देश के लिए लडते चले आ रहे हैं। भारत माता के लिए शहीद होने वाले कश्मीरी युवाओं की अच्छी-खासी तादाद है। पाकिस्तान की तो हमेशा यही मंशा रही है कि भारत में एकजुटता का खात्मा हो, अमन-चैन और भाईचारे की जगह हर तरफ वैमनस्य का साम्राज्य स्थापित होता चला जाए। हिन्दुस्तान पर कई आतंकी हमले करवा चुके पाकिस्तान के हुक्मरानों का सच से कभी वास्ता ही नहीं रहा। वे छल-कपट के आदी हो चुके हैं। खिलाडी इमरान खान के पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद यह कयास लगाये जा रहे थे कि दोनों देशों के रिश्ते में मधुरता आएगी। पाकिस्तान भारत में आतंक का निर्यात करना बंद कर देगा, लेकिन इमरान खान भी अल्लाह का नाम लेकर झूठ पर झूठ बोलने वाला शातिर इन्सान निकला। जब इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोन पर बधाई देने के बाद कहा था, "आइए, गरीबी, आतंक और अशिक्षा के खिलाफ मिलजुलकर लडाई लडें।" इमरान ने मोदी जी से बडे शरीफाना और दोस्ताना अंदाज में कहा था कि मैं पठान का बच्चा हूं। आपसे वायदा करता हूं कि मेरे रहते हुए ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे उन्हें शिकायत करने का मौका मिले।
यह दुर्भाग्य ही है कि हिन्दुस्तान को स्वतंत्रता के साथ-साथ पाकिस्तान जैसा दुष्ट पडोसी मिला है जो आतंकियों की पनाहगाह है। यह आतंकी भारत में खून-खराबा कर जश्न मनाते हैं और पाकिस्तान के शासक भी उनकी खुशी में शामिल होते हैं। आज भले ही इमरान इनकार करें, लेकिन वे और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ स्वीकार कर चुके हैं कि मुंबई हमले में लश्कर आतंकी शामिल थे। इन्होंने स्वीकारा था कि पाकिस्तान सरकार की मदद से ही आतंकी भारत में घुसे थे। २६ नवंबर २००८ की रात मुंबई में समंदर के रास्ते से दाखिल होकर पाकिस्तान के दस आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर १६६ लोगों के साथ १८ सुरक्षा कर्मियों की हत्या कर दी थी। उसके ६०० पन्नों के अहम सुबूत भारत ने पाकिस्तान को सौंपे थे। १२ मार्च १९९३ में किये गए सीरियल ब्लास्ट का असली सूत्रधार आतंकी सरगना दाऊद इब्राहिम वर्षों से पाकिस्तान में पनाह लिए हुए है, लेकिन यहां के हुक्मरान बस यही कहते हैं कि उन्होंने कभी भी किसी आतंकी को अपने देश में पनाह नहीं दी। पाकिस्तान की आम जनता गरीबी, बदहाली, महंगाई, बेरोजगारी और आतंकवाद से त्रस्त है। उसका वहां के नेताओं और सत्ताधीशों पर से विश्वास उठ चुका है। फौज की हद से ज्यादा की जाने वाली दखलअंदाजी से भी लोग निराश और हताश हो चुके हैं। पाकिस्तान की खस्ता हालत को सुधारने में इमरान खुद को असमर्थ पा रहे हैं। उनका दिमाग ही काम नहीं कर रहा है। इसलिए वे भी पूर्व शासकों की तरह भारतवर्ष के अमन-चैन और भाईचारे के खात्मे के सपने देख रहे हैं। वह भारतीयों की एकजुटता और ताकत को आंक नहीं पाए हैं। उन्होंने भी हमारे सब्र और सहनशीलता को हमारी कमजोरी मानने की भूल की है। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुए हमलों के बाद भारत ने जब सख्ती दिखायी तो इमरान खान पहले तो अकड दिखाते हुए सुबूत मांगने पर अड गये। फिर बाद में शांति लाने का एक मौका देने के लिए गिडगिडाने लगे। १४ फरवरी को पुलवामा में जवानों पर हमला होने के बाद प्रधानमंत्री ने जवानों के खून की एक-एक बूंद का बदला लेने के लिए सेना को खुली छूट दे दी। देशभर से आतंकियों को क‹डा सबक सिखाने की मांग उठने लगी। भारतीय सेना अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देती है। वह चुपचाप अपना काम करती है, ढोल नहीं पीटती। चार युद्धों में पाकिस्तान को धूल चटा चुकी सेना ने हमेशा जनता की भावनाओं को समझते हुए उनका आदर किया है। भारतीय वायुसेना ने जवानों की शहादत के ठीक १३वें दिन पाकिस्तान की सरहद लांघकर आतंकी अड्डे तबाह कर दिए, जिसकी गूंज पूरी दुनिया ने सुनी। मिराज लडाकू विमानों की दो मिनट की बमबारी में जिस तरह से लगभग ३५० आतंकी और पच्चीस ट्रेनर मौत के मुंह में सुला दिये गये उससे पाकिस्तान के होश उड गये हैं। अपने ही घर में पिटने की शर्मिन्दगी से वह शायद ही कभी उबर पाये।